शनिवार से, इजराइल और गाजा निवासियों के ऊपर हुई आग और स्टील की वारिश की बाढ़ आ गई है. एक ओर, हमास, दूसरी तरफ इजराइली सेना के बीच फंसे नागरिकों के ऊपर बमबारी की जा रही है, गोलिया से भूना जा रहा है, जिसमें हजारों लोग अपनी जान गँवा चुके हैं. तमाम लोग बंधक बनाये गये हैं सो अलग.
दुनियां भर का पूंजीपति वर्ग, लोगों के सामने सिर्फ अपना-अपना पक्ष सुनाने, इजराइली उत्पीडन के खिलाफ, फिलस्तीनी प्रतिरोध तथा फिलिस्तीनी आतंकवाद पर इजराइली प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए गुहार लगा रहा है. इनमें से प्रत्येक, युद्ध को उचित ठहराने के लिए दूसरे को बर्वर बता कर उसकी निंदा करता है. इजराइली राज्य दशकों से फिलिस्तीनी लोगों पर नाकेबंदी, उत्पीडन, चौकियों से घेराबन्दी और अपमान के साथ अत्याचार कर रहा है, इसलिए बदला लेना वैध्य होगा. फिलिस्तीनी सन्गठन भी चाकू और बमबारी से निदोष लोगों की हत्या कर रहे हैं. प्रत्येक पक्ष एक दूसरे का खून बहाने का आव्हान कर रहा है. यह घातक तर्क ही युद्ध को उचित ठहराने का तर्क है. यह हमारे शोषक और उनके राज्य हैं जो हमेशा अपने हितों के लिए अवैध्य, निर्दयी युद्ध लड़ते हैं, और हम शोषित वर्ग, हमेशा अपनी जान देकर इसकी कीमत चुकाते हैं.
इसमें हम सर्वहाराओं के लिए चुनने का कोई पक्ष नहीं, हमारी कोई मात्रभूमि नहीं है, रक्षा के लिए हमारा कोई राष्ट्र नहीं है! सीमा के दोनों ओर हम वर्ग भाई हैं! हमारा न फिलिस्तीन न इजराइल!
बीसवीं सदी युद्धों की सदी थी, मानव इतिहास में सबसे क्रूर युद्ध इसी सदी में लडे गये, लेकिन उनमें से किसी ने भी मजदूरों के हितों की पूर्ती नहीं की. उतरार्ध, को हमेशा अपने शोषकों के हितों के लिए “ पित्रभूमि,” “सभ्यता”, “लोकतंत्र” यहाँ तक कि “समाजवादी पित्रभूमि “ (कुछ के रूप में) की रक्षा के नाम पर मारे जाने को शहीद हो जाना कहा जाता था. (स्तालिन और गुलाके सोवियत संघ को ऐसे ही प्रस्तुत किया गया.)
आज मध्य पूर्व में एक नया युद्ध छिड़ गया है. दोनों तरफ से, सत्तारूढ़ गुट,चाहे वे यहूदी हों अथवा इजराइली, शोषितों से “मात्रभूमि की रक्षा” करने का आव्हान कर रहे हैं. जहाँ, इजराइल में यहूदी श्रमिकों का यहूदी पूंजीपतियों द्वारा शोषण किया जाता है, वहीँ फिलिस्तीनी मजदूरों का यहूदी पूंजीपतियों या अरब पूंजीपतियों द्वारा लूटा जाता है . (और अक्सर यहूदीपूंजीपतियों की तुलना में बहुत अधिक क्रूरता से, फिलिस्तीनी कम्पनियों में, श्रम क़ानून अभी भी पूर्व ओटोमन साम्राज्य के ही लागू हैं)
यहूदी मजदूरों ने 1948 के बाद पांच युद्धों में पूंजीपति वर्ग के युद्ध के पागलपन की भारी कीमत चुकाई है. जैसे ही वे विश्व युद्ध से तबाह यूरोप के याताना ग्रहों और यहूदी बस्तियों से बाहर आये, उन लोगों के दादा-दादी जो आज त्साह्ल (इजराइल के रक्षा बल) की बर्दी पहन कर इजराइल और अर्ब देशों की बीच युद्ध में शामिल हो गये है, फिर से उनके माता- पिता ने उनकी कीमत 67,,73, और 82 के युद्धों में खून से चुकाई. ये सैनिक भयानक जानवर नहीं हैं जिनका एकमात्र विचार फिलिस्तीनी बच्चों को मारना है. वे युवा सिपाही हैं, जिनमें अधिकतर मजदूरों की ही संतानें हैं, जो भय या घ्रणा से मर रहे हैं, जिन्हें पुलिस के रूप में कार्य करने के लिए मजबूर किया जाता है और जिनके सिर अरबों की “बर्बरता” के बारे में प्रचार से भरे हुए हैं.
फिलिस्तीनी मजदूर पहले से ही भयानक युद्ध की भयानक कीमत चुका चुके हैं, 1948 में अपने नेताओं द्वारा छेड़े गये युद्ध के कारण उन्हें अपने घरों से निकाल दिया गया था, नतीजतन, उन्हें अपना अधिकाँश जीवन यातना ग्रहों में बिताया है, जहाँ उन्हें किशोरों के रूप में गफा फतह, पीएएलपी या हमास मिलिशिया में भर्ती किया गया था. फिलिस्तेनियों का सबसे बड़ा नरसंहार इजराइल की सेनाओं द्वारा नहीं किया गया था, बल्कि उन देशों द्वारा किया गया था जहाँ वे तैनात थे, जैसे कि जार्डन लेबनान: सितम्बर 1970 (ब्लैक सितम्बर) में “लिटिल किंग” हुसैन ने उन्हें सामोहिक रूप से संहार कर दिया था. उनकी उस स्थिति में ही सामूहिक हत्या की गई थी जब उन्होंने जान बचाने के लिए इजराइल में शरण ली थी, सितम्बर 1982 में, अरब मिलिशिया ( माना जाता है कि ईसाई और इजराइल से संबद्ध) ने बैरुत में सबरा और शतील शिविरों में उनका नरसंहार किया.
आज, “ फिलिस्तीनी मात्रभूमि “के नाम पर, अरब मजदूरों को एक बार फिर इजरायलियों के खिलाफ लामबंद किया जा रहा है, जिनमें अधिकांश इजराइली मजदूर हैं, जैसा की “ वादा की भूमि की “ रक्षा के लिए बाद वाले को मारने के लिए कहा जा रहा है.
राष्ट्रवादी प्रचार, दोनों ओर से घ्रणित रूप से बह रहा है, जो दिमाग को सुन्न करने वाला प्रचार मनुष्यों को क्रूर जानवरों में बदलने के लिए बनाया गया है, इजराइली और अरब पूंजीपति आधी सदी से भी अधिक समय से इसे भड़का रहे हैं. इजराइली और अरब श्रमिकों से लगातार कहा जा रहा है कि उन्हें पूर्वजों की भूमि की रक्षा करनी होगी. पूर्व के लिए, समाज के व्यवस्थित सैन्यीकरण के लिए उन्हें “अच्छे सनिकों “ में बदलने के लिए घेरने का मनोविकार विकसित किया गया है. उत्तरार्ध के लिए, घर खोजने के लिए इजराइल के साथ युद्ध करने की इच्छा अंतरनिहित थी. ऐसा करने के लिए, अरब देशों के नेताओं, जहां वे शरणार्थी थे, ने उन्हें दशकों तक यातना शिविरों में असहनीय जीवन स्थितियों में रखा.
राष्ट्रवाद, पूंजीपति वर्ग द्वारा आविष्कृत सबसे बुरी और घ्रणित विचारधाराओं में से एक है. यह वह विचारधरा है जो इसे शोषकों और शोषितों के बीच के विरोध छिपाने, उन सभी को एक झंडे के नीचे एकजुट करने की अनुमति देती है, जिसके लिए शोषितों को शाशक वर्ग के हितों की सेवा और विशेषाधिकारों की रक्षा में होम दिया जायेगा.
सबसे बढ़ कर, इस युद्ध में धार्मिक प्रचार का जहर मिलाया गया है, जो सबसे अधिक विक्षिप्ति और कट्टरता का उन्माद पैदा करता है. यह यहूदियों को अपना खून से सुलेमान के मन्दिर की दीवार रोती हुई दीवार की रक्षा करने के लिए कहा जाता है. मुसलमानों को उमर की मस्जिद और इस्लाम के पवित्र स्थानों के लिए अपनी जान देने को कहा जाता है. आज इजराइल और फिलस्तीन में जो कुछ हो रहा है वह स्पष्ट रूप से यह पुष्टि करता है कि धर्म” लोगों के लिए अफीम है,” जैसा कि 19 वीं सदी के क्रांतिकारियों ने कहा था. धर्म का उद्द्येश्य शोषितों पीड़ितों को सांत्वना है, जिनके लिए जीवन नरक है, उनसे कहा जाता है कि उन्हें अपनी म्रत्यु के बाद खुशियाँ मिलेंगी, बशर्ते वे जानते हों कि उनका उद्धार कैसे अर्जित किया जायेगा. और मुक्ति का आदान- प्रदान बलिदान, समर्पण यहाँ तक कि” “पवित्र युद्ध” की सेवा में अपना जीवन अर्पित करने के लिए कहा जाता है.
वास्तविकता यह है कि, 21वीं सदी के आरम्भ में भी, पुरातनता और मध्य युग से जुडी विचारधाराएँ और अंधविश्वास अभी भी मनुष्यों को अपना जीवन का बलिदान देने के लिए व्यापक रूप से प्रयोग किये जाते हैं, यह उस बर्बरता की स्थिति के बारे में बतलाता है जिसमें मध्य पूर्व भी शामिल है. दुनियां के कई अन्य भाग इस अंधविस्वास में डूबे हुए हैं.
शोषित लोग आज हजारों की तादात में अपनी जान गंवा रहे हैं. यह यूरोप का ही पूंजीपति वर्ग था, जिसमें विशेष रूप से, ब्रिटिश पूंजीपति वर्ग ने 1917 की अपनी “ बालफोर घोषणा” के साथ, विभाजित करने और जीतने के लिए, फिलिस्तीन में एक यहूदी घर के निर्माण की अनुमति दी, इस प्रकार ज़योनीद्वाद के अंधराष्ट्रवादी यूटोपिया को बढ़ावा दिया, ये वही पूंजीपति थे जिन्होंने विश्व युद्ध के बाद, जिसे उन्होंने हाल ही में जीता था, शिविरों को छोड़ने अथवा अपने मूल क्षेत्र से दूर भटकने के बाद हजारों मध्य यूरोपीय यहूदियों को फिलिस्तीन ले जाने की व्यवस्था की थी .इसका मतलब ये था कि उन्हें घर ले जाने की आवश्यकता नहीं थी.
यह वही पूंजीपति वर्ग था, जो पहले ब्रिटिश और फ्रांसीसी, फिर अमेरिकन पूंजीपति वर्ग, जिन्होंने शीत युद्ध के दौरान इस क्षेत्र में पश्चिमी गुट की भूमिका देने के लिए इजराइल राज्य को हथियारों से लैस किया था, जबकि सोवित संघ, अपनी ओर से, अपने अरब सहयोगियों को यथासंभव सशस्त्र किया. इन महान “प्रायोजकों “के बिना 1956, 67, 73, और 82 के युद्ध नहीं हो सकते थे.
आज, लेबनान, ईरान और संभवतया रूस के पूंजीपति हमास को हथियार दे रहे हैं और उसे लड़ने के लिए आगे धकिया रहे हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका ने हाल ही में भूमध्य सागर में अपना सबसे बड़ा विमान वाहक पोत भेजा है और इजराइल को नये हथियारों की आपूर्ति की घोषणा की है. यथार्थ में, इस युद्ध और इन नर संहारों में सभी प्रमुख शक्तियाँ प्रत्यक्ष रूप से भाग ले रही हैं.
इस नये युद्ध से पूरे मध्य पूर्व में अराजकता फैलने का खतरा बढ़ गया है. दुनियां के इस कोने को शोक में डुबाने वाला यह अनगिनत खूनी टकराव नहीं है. हत्याओं के विशाल पैमाने से पता चलता है कि बर्बरता एक नये स्तर पर पहुंच गयी है: एक उतसव में नृत्य कर रहे युवाओं को मशीनगनों से उड़ा दिया गया, महिलाओं और बच्चों को सडक पर बेरहमी से कुचल डाला गया जिसका लक्ष्य, पूंजीवाद की इच्छा को पूरा करने के अलावा कोई अन्य उद्दयेश नहीं था. अंधे प्रतिशोध के लिए, पूरी आबादी को खत्म करने लिए बमों का जाल बिछाया गया, गाज़ा में दो मिलियन लोगों को पानी, गैस, भोजन सब कुछ से वंचित कर दिया गया. इन सभी अत्याचारों, इन सभी अपराधों के लिए कोई सच्चा तर्क नहीं है! दोनों पक्ष अत्यंत भयावह और अतार्किक जानलेवा रोष में डूबे हुए हैं.
लेकिन, इससे भी अधिक गम्भीर बात यह है: यह भानुमती का पिटारा फिर कभी बंद नहीं होगा. इराक,अफगानिस्तान, सीरिया और लीबिया की तरह, कोई पीछे नहीं हटेगा, कोई “शान्ति की ओर वापसी” नहीं होगी. पूँजीवाद मानवता के बड़े हिस्से को युद्ध, म्रत्यु और समाज के विघटन में घसीट रहा है. यूक्रेन मे युद्ध लगभग दो वर्षों से चल रहा है और अंतहीन नरसंहार में फंसा हुआ है. नागोर्नो-काराबाख में भी नरसंहार चल रहा है और पूर्वी यूगोस्लाविया के राष्ट्रों के बीच पहले से ही एक नये युद्ध का खतरा मडरा रहा है.
पूंजीवाद युद्ध है.
सभी देशों के मजदूरों को किसी न किसी पूंजीवादी खेमे का पक्ष लेने से इंकार कर देना चाहिए. विशेष रूप से, उन्हें उन वामपंथी और अति वामपंथी पार्टियों की बयानबाजी से मूर्ख बनने से इंकार कर देना चाहिए जो मजदूर वर्ग का होने का दावा करते हैं और जो श्रमिकों को उनसे अपने अधिकार की तलाश में एक “मात्रभूमि :फिलिस्तीनी जनता के साथ एकजुटता दिखाने के लिए कहती हैं. फिलिस्तीनी मात्रभूमि, कभी भी शोषक वर्ग की सेवा में, पुलिस और जेलों के साथ इसी जनता पर अत्याचर करने वाले एक बुर्जुआ राज्य के अलावा और कुछ नहीं होगा. सबसे उन्नत पूंजीवादी दशों के मजदूरों की एकजुटता, “फिलिस्तीनों” के पास नहीं जाती, जैसे कि वह “इजराइलियों” के पास नहीं जाती है, जिनके बीच शोषक और शोषित हैं. यह इजराइल और फिलिस्तीनी के श्रमिकों औए बेरोजगारों को जाता है (जो, इसके अलावा, पहले से ही अपने शोषकों के खिलाफ संघर्ष नेतृत्व कर चुके हैं, भले ही उनका ब्रेन- व्वास किया गया हो), ठीक उसी तरह जैसे यह दुनियां के अन्य सभी देशों के श्रमिकों को जाता है. वे, जो सबसे अच्छी एकजुटता पेश कर सकते हैं, वह निश्चित रूप से उनके राष्ट्रवादी भ्रमों को प्रोत्साहित करना नहीं है.
इस एकजुटता का अर्थ है, सबसे पहले, सभी युद्धों के लिए जिम्मेदार पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ अपनी लड़ाई को विकसित करना,अपने स्वयं के पूंजीपति वर्ग के खिलाफ भी. श्रमिक वर्ग को वैश्विक स्तर पर पूँजीवाद को उखाड़ फेंक कर शांति हासिल करनी होगी, और आज इसका अर्थ है, एक वर्ग के इलाके में अपने संघर्षों को एक दुर्जेय संकट में एक प्रणाली द्वारा उस पर लगाये जा रहे कठोर आर्थिक हमलों के खिलाफ, अपने संघर्षों को विकसित करना होगा.
राष्ट्रवाद के खिलाफ, उन युद्धों के खिलाफ जिनमें आपके तुम्हें घसीटना चाहते हैं:
सभी देशों के मजदूरों एक हो जाओ!
आईसीसी 9 अक्टूबर 2023
इंटरनेशनलिस्ट कम्युनिस्ट टेंडेंसी ने हाल ही में नो वॉर बट द क्लास वॉर कमेटियों (एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू) के साथ अपने अनुभव पर एक बयान प्रकाशित किया है, जिसे उन्होंने यूक्रेन में युद्ध की शुरुआत में शुरू किया था[1]। जैसा कि वे कहते हैं, "राजनीतिक ढांचे के वास्तविक वर्ग आधार को उजागर करने के लिए साम्राज्यवादी युद्ध जैसा कुछ नहीं है, और यूक्रेन पर आक्रमण ने निश्चित रूप से ऐसा किया है", यह समझाते हुए कि स्टालिनवादियों, ट्रॉट्स्कीवादियों ने एक बार फिर दिखाया है कि वे पूँजीकी शिविर से संबंधित हैं - चाहे यूक्रेन की स्वतंत्रता का समर्थन करके, या यूक्रेन के 'डी-नाज़ीफिकेशन' के बारे में रूसी प्रचार के लिए रैली करके, वामपंथी खुले तौर पर मजदूर वर्ग से पूंजीवादी युद्ध में एक पक्ष या दूसरे का समर्थन करने का आह्वान कर रहे हैं जो गहनता को व्यक्त करता है ग्रह पर सबसे बड़े साम्राज्यवादी शार्क के बीच प्रतिद्वंद्विता और इस प्रकार पूरी मानवता के लिए विनाशकारी परिणामों का खतरा है। आईसीटी यह भी नोट करता है कि अराजकतावादी आंदोलन उन लोगों के बीच गहराई से विभाजित हो गया है जो यूक्रेन की रक्षा के लिए आह्वान करते हैं और जिन्होंने दोनों शिविरों को खारिज करने की अंतर्राष्ट्रीयवादी स्थिति बनाए रखी है। इसके विपरीत, आईसीटी का कहना है कि "दुनिया भर में कम्युनिस्ट वामपंथी मजदूर वर्ग के अंतरराष्ट्रीय हितों के पीछे मजबूती से खड़े रहे हैं और इस युद्ध की निंदा की है।"
अब तक तो सब ठीक है। लेकिन हम तब गहराई से भिन्न होते हैं जब वे तर्क देते हैं कि "हमारी ओर से, आईसीटी ने अन्य अंतर्राष्ट्रीयवादियों के साथ काम करने की कोशिश करके अंतर्राष्ट्रीयतावादी स्थिति को एक स्तर आगे ले लिया है जो संगठित नहीं होने पर विश्व श्रमिक वर्ग के लिए खतरों को देख सकते हैं। यही कारण है कि पूंजीवाद हर जगह श्रमिकों के लिए क्या तैयारी कर रहा है, इस पर प्रतिक्रिया देने के लिए हम दुनिया भर में स्थानीय स्तर पर समितियां विकसित करने की पहल में शामिल हुए हैं।
विवाद की आवश्यकता
हमारे विचार में, नो वॉर बट क्लास वॉर समितियों के गठन के लिए आईसीटी का आह्वान अंतर्राष्ट्रीयता में एक "कदम आगे" या अंतर्राष्ट्रीयवादी कम्युनिस्ट ताकतों के एक ठोस पुनर्समूहन की दिशा में एक कदम है। हमने पहले ही इस पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करते हुए कई लेख लिखे हैं, लेकिन आईसीटी ने उनमें से किसी का भी जवाब नहीं दिया है, आईसीटी के बयान में एक रवैया उचित है जो इस बात पर जोर देता है कि वे "वही पुराने विवाद" में शामिल नहीं होना चाहते हैं। उन लोगों के साथ जिनके बारे में वे सोचते हैं कि उन्होंने अपनी स्थिति को गलत समझा है। लेकिन कम्युनिस्ट वामपंथ की परंपरा, जो मार्क्स और लेनिन से विरासत में मिली है और बिलान के पन्नों में जारी है, यह मान्यता है कि राजनीतिक स्पष्टीकरण की किसी भी प्रक्रिया के लिए सर्वहारा तत्वों के बीच विवाद अपरिहार्य है। और वास्तव में, आईसीटी कथन में एक छिपा हुआ विवाद है, मुख्य रूप से आईसीसी के साथ - लेकिन अपने स्वभाव से ऐसे छिपे हुए विवाद, जो विशिष्ट संगठनों और उनके लिखित बयानों का जिक्र करने से बचते हैं, कभी भी स्थिति का वास्तविक और ईमानदार टकराव नहीं कर सकते हैं।
NWBCW पर अपने बयान में, ICT का दावा है कि उसकी पहल 1915 के ज़िमरवाल्ड सम्मेलन द्वारा शुरू की गई प्रक्रिया में वामपंथी धारा के दृष्टिकोण के साथ निरंतरता में है, पहले से ही "NWBCW और 'रियल' लेख में इसी तरह का दावा किया गया है 1915 का अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो': "हम मानते हैं कि NWBCW पहल ज़िमरवाल्ड लेफ्ट के सिद्धांतों के अनुरूप है"।[2]
लेकिन ज़िम्मरवाल्ड वामपंथियों और सबसे ऊपर लेनिन की गतिविधियों की विशेषता क्रांतिकारी ताकतों को ख़त्म करने के उद्देश्य से एक निरंतर विवादास्पद थी। ज़िमरवाल्ड ने युद्ध के विरोध में श्रमिक आंदोलन में विभिन्न प्रवृत्तियों को एक साथ लाया, और कई सवालों पर काफी मतभेद थे; वामपंथियों को पूरी तरह से पता था कि युद्ध के खिलाफ एक आम स्थिति, जैसा कि ज़िमरवाल्ड घोषणापत्र में व्यक्त किया गया था, पर्याप्त नहीं थी। इस कारण से, ज़िमरवाल्ड वामपंथियों ने ज़िमरवाल्ड और किएंथल सम्मेलनों में अन्य धाराओं के साथ अपने मतभेदों को नहीं छिपाया, बल्कि साम्राज्यवादी युद्ध के खिलाफ अपनी लड़ाई में सुसंगत न होने के लिए इन धाराओं की खुले तौर पर आलोचना की। इस बहस में और इसके माध्यम से लेनिन और उनके आसपास के लोगों ने एक ऐसा केंद्र बनाया जो कम्युनिस्ट इंटरनेशनल का भ्रूण बन गया।
NWBCW पहल की हमारी पिछली आलोचनाएँ
जैसा कि पाठक यूक्रेन में युद्ध के जवाब में कम्युनिस्ट वामपंथ की संयुक्त घोषणा के लिए आईसीसी के आह्वान के संबंध में आईसीटी के साथ हमारे पत्राचार के प्रकाशन से देख सकते हैं, की आईसीटी द्वारा हस्ताक्षर करने से इनकार करने और NWBCW को एक प्रकार के "प्रतिद्वंद्वी" के रूप में बढ़ावा देने के बारे में इस परियोजना ने इस महत्वपूर्ण क्षण में एक साथ कार्य करने की कम्युनिस्ट वामपंथ की क्षमता को गंभीर रूप से कमजोर कर दिया। 1980 के दशक की शुरुआत में कम्युनिस्ट वामपंथ के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के टूटने के बाद पहली बार इसने अपनी सेनाओं के एक साथ आने की संभावना को ख़त्म कर दिया। आईसीटी ने इस पत्राचार को बंद करने का निर्णय लिया[3]।
हमने 1990 के दशक में अराजकतावादी परिवेश में एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू के वास्तविक इतिहास का पता लगाने वाला एक लेख भी प्रकाशित किया है[4]। इसका मतलब यह था कि इन समूहों में सभी प्रकार के भ्रम थे, लेकिन हमारे विचार में उन्होंने कुछ वास्तविक्ता व्यक्त की - मध्य पूर्व और बाल्कन में युद्धों के खिलाफ बड़े पैमाने पर लामबंदी की आलोचना करने वाले एक छोटे से अल्पसंख्यक की प्रतिक्रिया, लामबंदी जो स्पष्ट रूप से वामपंथी और शांतिवादी धरातल पर थी । इस कारण से, हमने महसूस किया कि कम्युनिस्ट वामपंथियों के लिए इन संरचनाओं में हस्तक्षेप करना महत्वपूर्ण था ताकि उनके भीतर स्पष्ट अंतर्राष्ट्रीयवादी पदों की रक्षा की जा सके। इसके विपरीत, यूक्रेन युद्ध के जवाब में ऐसी बहुत कम शांतिवादी और अराजकतावादी माहौल की लामबंदी हुई है, जैसा कि हम पहले ही देख चुके हैं, इस सवाल पर गहराई से विभाजित है। इस प्रकार हम विभिन्न एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू समूहों में बहुत कम देखते हैं जिन्होंने हमारे लेख के निष्कर्ष पर सवाल उठाया है: "जिन समूहों के बारे में हम कुछ जानते हैं उनसे हमें यह धारणा मिलती है कि वे मुख्य रूप से आईसीटी या उसके सहयोगियों के 'डुप्लिकेट' हैं"। हमारी राय में, यह दोहराव क्रांतिकारी राजनीतिक संगठन के कार्य और संचालन के तरीके और उन अल्पसंख्यकों के साथ इसके संबंधों के बारे में कुछ गंभीर असहमति को उजागर करता है जो खुद को सर्वहारा धरातल में रखते हैं, और वास्तव में पूरे वर्ग के साथ। यह असहमति फ़ैक्टरी समूहों और संघर्ष समूहों के बारे में पूरी बहस पर आधारित है, लेकिन हमारा इस लेख में इसे विकसित करने का इरादा नहीं है[5]।
अधिक महत्वपूर्ण - लेकिन वास्तविक आंदोलन की उत्त्पत्ति और राजनीतिक अल्पसंख्यकों के कृत्रिम आविष्कारों के बीच अंतर के सवाल से भी जुड़ा हुआ है - हमारे लेख का आग्रह है कि एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू पहल आज वर्ग संघर्ष की गतिशीलता के गलत आकलन पर आधारित है। वर्तमान परिस्थितियों में, हम यह उम्मीद नहीं कर सकते हैं कि वर्ग आंदोलन सीधे युद्ध के खिलाफ बल्कि आर्थिक संकट के प्रभाव के खिलाफ विकसित होगा - एक विश्लेषण जो हमें लगता है कि संघर्षों के अंतर्राष्ट्रीय पुनरुद्धार द्वारा काफी हद तक सत्यापित किया गया है जो ब्रिटेन में हड़ताल आंदोलन से शुरू हुआ था। 2022 की गर्मी और जो, अपरिहार्य उतार-चढ़ाव के साथ, अभी भी ख़त्म नहीं हुई है। यह आंदोलन "जीवनयापन की लागत के संकट" की सीधी प्रतिक्रिया है और हालांकि इसमें व्यवस्था के गतिरोध और युद्ध की ओर इसके ड्राइव के गहरे और अधिक व्यापक सवाल के बीज शामिल हैं, हम अभी भी उस बिंदु से बहुत दूर हैं। यह विचार कि एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू समितियाँ कुछ अर्थों में युद्ध के प्रति प्रत्यक्ष वर्ग प्रतिक्रिया के लिए शुरुआती बिंदु हो सकती हैं, केवल वर्तमान संघर्षों की गतिशीलता की गलत व्याख्या को जन्म दे सकती हैं। यह एक सक्रिय नीति का द्वार खोलता है, जो बदले में, पूंजी के वामपंथ की "अभी कुछ करो" स्थिति से खुद को अलग करने में सक्षम नहीं होगी। आईसीटी का बयान इस बात पर जोर देता है कि इसकी पहल सभी राजनीतिक से ऊपर है और यह सक्रियता और तात्कालिकता का विरोध करती है, और उनका दावा है कि पोर्टलैंड और रोम में एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू समूहों द्वारा खुले तौर पर लिया गया सक्रिय निर्देश पहल की वास्तविक प्रकृति की गलतफहमी पर आधारित है। . बयान के अनुसार, “जिन लोगों ने यह समझे बिना कि यह वास्तव में क्या था, एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू पर हस्ताक्षर किए, या बल्कि, जिन्होंने इसे अपनी पिछली कट्टरपंथी सुधारवादी गतिविधि के विस्तार के रूप में देखा। यह पोर्टलैंड और रोम दोनों में हुआ जहां कुछ तत्वों ने एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू को एक ऐसे वर्ग को तुरंत संगठित करने के रूप में देखा जो अभी भी चार दशकों के पीछे हटने से उबर रहा था, और जो मुद्रास्फीति के खिलाफ लड़ाई में अपने पैर जमाना शुरू ही कर रहा था। उनके तत्कालवादी और अति-सक्रिय दृष्टिकोण के कारण ही उन समितियों का अंत हुआ।'' हमारे लिए, इसके विपरीत, इन स्थानीय समूहों ने आईसीटी से बेहतर समझा कि एक पहल जो युद्ध के खिलाफ किसी भी वास्तविक आंदोलन की अनुपस्थिति में शुरू की गई है - यहां तक कि छोटे अल्पसंख्यकों के बीच भी - केवल शून्य से एक आंदोलन बनाने के प्रयासों में गिर सकती है .
एक नया "संयुक्त मोर्चा"?
हमने उल्लेख किया है कि कम्युनिस्ट वामपंथ का इतालवी गुट, जिसने बिलान को प्रकाशित किया था, ने सर्वहारा राजनीतिक संगठनों के बीच कठोर सार्वजनिक बहस की आवश्यकता पर जोर दिया था। यह पुनर्समूहन के प्रति उनके सैद्धांतिक दृष्टिकोण का एक केंद्रीय पहलू था, विशेष रूप से उस समय के ट्रॉट्स्कीवादियों और पूर्व-ट्रॉट्स्कीवादियों के संलयन और पुनर्समूहन का सहारा लेने के अवसरवादी प्रयासों का विरोध करना जो मौलिक सिद्धांतों के आसपास गंभीर बहस पर आधारित नहीं थे। हमारे विचार में, NWBCW पहल एक प्रकार के "फ्रंटिस्ट" तर्क पर आधारित है जो केवल असैद्धांतिक और यहां तक कि विनाशकारी गठबंधनों को जन्म दे सकता है।
बयान में स्वीकार किया गया है कि खुले तौर पर कुछ वामपंथी समूहों ने संघर्ष में एक पक्ष या दूसरे के लिए अपने आवश्यक समर्थन को छिपाने के लिए "युद्ध नहीं बल्कि वर्ग युद्ध" के नारे का अपहरण कर लिया है। आईसीटी का कहना है कि वे ऐसे "झूठे झंडे" अभियानों को नहीं रोक सकते। लेकिन यदि आप पेरिस एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू समिति की उद्घाटन बैठक पर हमारा लेख पढ़ें[6], तो आप पाएंगे कि न केवल प्रतिभागियों का एक बड़ा हिस्सा एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू बैनर के तहत खुले तौर पर वामपंथी "कार्रवाई" की वकालत कर रहा था, बल्कि यह भी कि एक ट्रॉट्स्कीवादी समूह जो यूक्रेन के आत्मनिर्णय के अधिकार की रक्षा करने वाले मैटियेर एट रेवोल्यूशन को वास्तव में बैठक में आमंत्रित किया गया था। इसी तरह, ऐसा लगता है कि रोम एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू समूह इटली में आईसीटी के सहयोगी (जो बैटलग्लिया कोमुनिस्टा प्रकाशित करता है) और एक विशुद्ध वामपंथी समूह के बीच गठबंधन पर आधारित है।[7]
हमें यह जोड़ना चाहिए कि पेरिस बैठक का प्रेसीडियम दो तत्वों से बना था, जिन्हें 2000 के दशक की शुरुआत में ऐसी सामग्री प्रकाशित करने के लिए आईसीसी से निष्कासित कर दिया गया था, जो हमारे साथियों को राज्य के दमन के लिए उजागर करती है - एक गतिविधि जिसे हमने मुखबिर के रूप में निंदा की है। इनमें से एक तत्व कम्युनिस्ट वामपंथ के अंतर्राष्ट्रीय समूह का सदस्य है, एक ऐसा समूह जो न केवल राजनीतिक परजीवीवाद की एक विशिष्ट अभिव्यक्ति है, बल्कि जिसकी स्थापना इस पुलिस जैसे व्यवहार के आधार पर की गई थी और इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीयवादी कम्युनिस्ट शिविर इसकी कोई जगह नहीं होनी चाहिए। दूसरा तत्व अब वास्तव में फ्रांस में आईसीटी का प्रतिनिधि है। जब आईसीटी ने संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया, तो उन्होंने तर्क दिया कि कम्युनिस्ट वामपंथ की इसकी परिभाषा बहुत संकीर्ण थी, मुख्यतः क्योंकि इसमें आईसीसी द्वारा परजीवी के रूप में परिभाषित समूहों को शामिल नहीं किया गया था। वास्तव में, यह बहुत स्पष्ट रूप से दिखाया गया है कि आईसीटी सार्वजनिक रूप से आईसीसी के बजाय आईजीसीएल जैसे परजीवी समूहों के साथ जुड़े रहना पसंद करेगा, और एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू समितियों के माध्यम से इसकी वर्तमान नीति का ऐसे समूहों को मौका देने के अलावा कोई अन्य परिणाम नहीं हो सकता है। सम्मानजनकता का प्रमाण पत्र और आईसीसी को अछूत बनाने के उनके लंबे समय से चले आ रहे प्रयास को मजबूत करने के लिए - सही व्यवहार के स्पष्ट सिद्धांतों की रक्षा के कारण, जिसका उन्होंने बार-बार उल्लंघन किया है।
कुछ मामलों में, जैसे कि ग्लासगो में, NWBCW समूह अराजकतावादी कम्युनिस्ट समूह जैसे अराजकतावादी समूहों के साथ अस्थायी गठबंधन पर आधारित प्रतीत होते हैं, जिन्होंने यूक्रेन युद्ध पर अंतर्राष्ट्रीयवादी रुख अपनाया है, लेकिन जो ऐसे समूहों से जुड़े हुए हैं जो बुर्जुआ इलाके में हैं (उदाहरण के लिए यूके में प्लान सी)। और हाल ही में एसीजी ने दिखाया है कि वह आईसीसी जैसे अंतर्राष्ट्रीयवादी संगठन के साथ चर्चा करने के बजाय ऐसे वामपंथियों के साथ जुड़ना पसंद करेगा, जिसे उसने सीडब्ल्यूओ के किसी भी विरोध के बिना लंदन में हाल की बैठक से बाहर कर दिया था।[8] इसका मतलब यह नहीं है कि हमारा लक्ष्य वास्तव में अंतर्राष्ट्रीयवादी अराजकतावादियों के साथ चर्चा करना नहीं है, और रूस में केआरएएस के मामले में, जिनके पास साम्राज्यवादी युद्धों का विरोध करने का एक सिद्ध रिकॉर्ड है, हमने उनसे किसी भी तरह से संयुक्त घोषणा का समर्थन करने के लिए कहा। लेकिन एसीजी मामला इस बात का एक और उदाहरण है कि कैसे एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू पहल संयुक्त मोर्चे की अवसरवादी नीति को याद दिलाती है, जिसमें कम्युनिस्ट इंटरनेशनल ने सामाजिक लोकतंत्र के गद्दारों के साथ काम करने की इच्छा व्यक्त की थी। यह मजदूर वर्ग में कम्युनिस्ट प्रभाव को मजबूत करने की एक रणनीति थी लेकिन इसका वास्तविक परिणाम सीआई और उसकी पार्टियों के पतन को तेज करना था।
20 के दशक की शुरुआत में, इतालवी कम्युनिस्ट वामपंथी सीआई की इस अवसरवादी नीति के कठोर आलोचक थे। इसने सीआई की मूल स्थिति का पालन करना जारी रखा, जो यह थी कि सामाजिक लोकतांत्रिक पार्टियाँ, साम्राज्यवादी युद्ध का समर्थन करने और सर्वहारा क्रांति का सक्रिय रूप से विरोध करने के माध्यम से, पूंजी की पार्टियाँ बन गई थीं। यह सच है कि संयुक्त मोर्चा रणनीति की उनकी आलोचना में अस्पष्टता बरकरार रही - "नीचे से संयुक्त मोर्चा" का विचार, इस धारणा पर आधारित था कि ट्रेड यूनियन अभी भी सर्वहारा संगठन थे और यह इस स्तर पर कम्युनिस्ट और सामाजिक लोकतांत्रिक कार्यकर्ता एक साथ संघर्ष कर सकते हैं।
NWBCW बयान के निष्कर्ष में, ICT दावा करता है कि क्रांतिकारी आंदोलन में NWBCW समितियों के लिए: इटली में 1945 में इंटरनेशनलिस्ट कम्युनिस्ट पार्टी (PCInt) द्वारा शुरू की गई संयुक्त सर्वहारा मोर्चा की अपील एक ऐतिहासिक मिसाल है। यह अपील सामग्री में मौलिक रूप से अंतर्राष्ट्रीयतावादी है, लेकिन यह "संयुक्त सर्वहारा मोर्चा" की बात क्यों करता है? और निम्नलिखित मांग का क्या मतलब है: “वर्तमान समय एक संयुक्त सर्वहारा मोर्चे के गठन की मांग करता है, यानी, उन सभी की एकता, जो युद्ध के खिलाफ हैं, चाहे फासीवादी हों या लोकतांत्रिक।
सभी सर्वहारा और गैर-पार्टी राजनीतिक संरचनाओं के कार्यकर्ता! हमारे कार्यकर्ताओं से जुड़ें, युद्ध की घटनाओं के आलोक में वर्ग समस्याओं पर चर्चा करें और हर कारखाने, हर केंद्र में संयुक्त मोर्चे की समितियां बनाएं जो सर्वहारा वर्ग के संघर्ष को उसके वास्तविक वर्ग धरातल में वापस लाने में सक्षम हों।
ये "सर्वहारा और गैर-पार्टी संरचनाएँ" कौन थीं? क्या यह वास्तव में पूर्व श्रमिक दलों के कार्यकर्ताओं से पीसीइंट(PCInt) के जुझारुओं के साथ संयुक्त राजनीतिक गतिविधि में शामिल होने की अपील थी?
केवल एक साल पहले, PCInt ने सोशलिस्ट पार्टी, स्टालिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी और बुर्जुआ वामपंथ के अन्य संगठनों की आंदोलन समितियों को स्पष्ट रूप से संबोधित करते हुए अपनी आंदोलन समिति की एक "अपील" प्रकाशित की थी, जिसमें कारखानों में संयुक्त कार्रवाई का आह्वान किया गया था। हमने इंटरनेशनल रिव्यू 32 में इसका एक लेख प्रकाशित किया। इंटरनेशनल रिव्यू 34 में हमारी अपील, आलोचनाओं का जवाब देते हुए पीसीइंट से एक पत्र प्रकाशित किया। इस पत्र में उन्होंने लिखा:
“क्या यह वास्तव में एक त्रुटि थी? हाँ यह थी; हम इसे स्वीकार करते हैं. यह 1921-23 में तीसरे इंटरनेशनल के खिलाफ इटली के सीपी द्वारा बचाव किए गए ' संयुक्त मोर्चे के आधार पर ' की रणनीति को लागू करने का इतालवी वामपंथियों का आखिरी प्रयास था। इस प्रकार, हम इसे 'निष्क्रिय पाप' के रूप में वर्गीकृत करते हैं क्योंकि हमारे साथियों ने बाद में इसे राजनीतिक और सैद्धांतिक रूप से इतनी स्पष्टता के साथ समाप्त कर दिया कि आज हम इस बिंदु पर किसी के भी खिलाफ अच्छी तरह से सशस्त्र हैं।
जिस पर हमने उत्तर दिया:
"अगर स्टालिनवादी और सामाजिक लोकतांत्रिक कसाइयों के साथ संयुक्त मोर्चे का प्रस्ताव सिर्फ एक 'मामूली' पाप है तो 1945 में पीसी इंट ने वास्तव में गंभीर गलती करने के लिए और क्या किया होगा... सरकार में शामिल होने के लिए? लेकिन बीसी हमें आश्वस्त करता है: कि उसने आईसीसी की प्रतीक्षा किए बिना काफी समय पहले इन त्रुटियों को ठीक कर लिया है और उसने कभी भी उन्हें छिपाने की कोशिश नहीं की है। संभवतः, लेकिन 1977 में जब हमने अपने प्रेस में युद्ध काल में पीसी इंट की त्रुटियों को उजागर किया, तो बैटलग्लिया ने एक आक्रोशपूर्ण पत्र के साथ उत्तर दिया कि गलतियाँ हुई थीं लेकिन यह दावा किया गया कि वे उन साथियों की गलती थीं जो 1952 में पीसी इंटरनैजियोनेल की स्थापना केलिए चले गए थे।
तो 1944 की अपील आख़िरकार "नीचे से संयुक्त मोर्चा' रणनीति को लागू करने का अंतिम प्रयास नहीं था। 1945 में "संयुक्त सर्वहारा मोर्चा" के आह्वान से पता चला कि PCInt ने "इसे राजनीतिक और सैद्धांतिक रूप से समाप्त नहीं किया था"। और 1921-23 की 'नीचे से संयुक्त मोर्चा' रणनीति अभी भी आईसीटी के अवसरवादी युद्ध नहीं बल्कि वर्ग युद्ध 'आंदोलन' के लिए प्रेरणा है।
इसलिए युद्ध नहीं बल्कि वर्ग युद्ध के बारे में आईसीटी एक बिंदु पर सही है: यह 1945 में पीसीइंट द्वारा 'संयुक्त सर्वहारा मोर्चा' के अवसरवादी आह्वान की निरंतरता में है। लेकिन इस रणनीति के बाद से यह गर्व करने योग्य निरंतरता नहीं है। कम्युनिस्ट वामपंथ के अंतर्राष्ट्रीयवाद और वामपंथ, परजीविता और अराजकतावादी दलदल के दिखावटी अंतर्राष्ट्रीयवाद के बीच मौजूद वर्ग रेखा को सक्रिय रूप से अस्पष्ट करता है। इसके अलावा NWBCW का उद्देश्य कम्युनिस्ट वामपंथ के आम वक्तव्य के अकर्मण्य अंतर्राष्ट्रीयवाद का एक विशेष विकल्प बनना था, इस प्रकार क्रांतिकारी ताकतों को न केवल वामपंथ आदि के प्रति अवसरवादिता द्वारा, बल्कि कम्युनिस्ट वामपंथ के अन्य प्रामाणिक समूहों के प्रति संप्रदायवाद द्वारा भी कमजोर किया गया।
आई.सी.सी.
[1] युद्ध नहीं बल्कि वर्ग युद्ध की पहल, Revolutionary Perspectives 22
[2] https://www.leftcom.org/en/articles/2022-07-22/nwbcw-and-the-real-ininter [1]...
[3] यूक्रेन में युद्ध पर कम्युनिस्ट वामपंथ के समूहों के संयुक्त वक्तव्य पर पत्राचार
[4] युद्ध नहीं बल्कि वर्ग युद्ध समूहों के इतिहास पर
[5] उदाहरण के लिए इंटरनेशनल रिव्यू 13 में इंटरनेशनलिस्ट कम्युनिस्ट पार्टी (बैटाग्लिया कोमुनिस्टा) का उत्तर देखें; खुले संघर्ष की अवधि के बाहर सर्वहारा वर्ग का संगठन (श्रमिक समूह, नाभिक, मंडल, समितियाँ) | इंटरनेशनल रिव्यू 21 में इंटरनेशनल कम्युनिस्ट करंट (internationalism.org); World Revolution26 "फ़ैक्टरी समूह और आईसीसी हस्तक्षेप" भी
[6] एक समिति जो अपने प्रतिभागियों को एक गतिरोध की ओर ले जाती है, World Revolution 395
[7] रोम कमेटी के भाग्य पर बट्टाग्लिया कोमुनिस्टा के एक लेख यह बयान जिसका लिंक : सुल कॉमिटाटो डि रोमा NWBCW: अन'इंटरविस्टा है। यह सोसाइटी इनसिविले ("अनसिल सोसाइटी") नामक समूह के साथ गठबंधन के नकारात्मक परिणाम का वर्णन करता है। यह इतने अस्पष्ट तरीके से लिखा गया है कि इससे बहुत कुछ निकालना बहुत मुश्किल है। लेकिन अगर आप इस समूह की वेबसाइट देखें, तो वे पूरी तरह से वामपंथी प्रतीत होते हैं, जो फासीवाद-विरोधी पक्षपातियों और इटली की स्टालिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी की प्रशंसा करते हैं। उदाहरण के लिए देखें https://www.sitocomunista.it/canti/cantidilotta.html; [2] https://www.sitocomunista.it/resistence/resistenceindex.html; [3](https://www.sitocomunista.it/pci/pci.html [4] https://www.sitocomunista.it/resistence/resistenceindex.html [5] https:/ /www.sitocomunista.it/pci/pci.html [6]),
[8] एसीजी ने आईसीसी को अपनी सार्वजनिक बैठकों से प्रतिबंधित कर दिया, सीडब्ल्यूओ ने क्रांतिकारी संगठनों के बीच एकजुटता को धोखा दिया, World Revolution 397
रूब्रिक
इजराइल, गाजा, यूक्रेन, अजरबैजान में नरसंहार और युद्ध... पूंजीवाद मौत का बीजारोपण करता है! हम इसे कैसे रोक सकते हैं?
"डरावना", "नरसंहार", "आतंकवाद", "आतंक", "युद्ध अपराध", "मानवीय तबाही", " हत्या"... अंतर्राष्ट्रीय प्रेस के पहले पन्ने पर छपे ये शब्द गाजा में बर्बरता के पैमाने के बारे में बहुत कुछ बताते हैं।
7 अक्टूबर को, हमास ने 1,400 इज़राइलियों को मार डाला, उनके घरों में बूढ़े पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को शिकार बनाया। तब से, इज़राइल राज्य बदला ले रहा है और सामूहिक रूप से हत्या कर रहा है। गाजा पर दिन-रात बरस रहे बमों के सैलाब में अब तक 4,800 बच्चों समेत 10,000 से ज्यादा फिलिस्तीनियों की मौत हो चुकी है। खंडहर इमारतों के बीच, बचे हुए लोग पानी, बिजली, भोजन और दवाएं, हर चीज से वंचित हैं। इस समय, २५ लाख गाजावासियों को भुखमरी और महामारी के खतरे का सामना करना पड़ रहा है, उनमें से 400,000 गाजा शहर में कैदी हैं, और हर दिन सैकड़ों लोग गिरते मिसाइलों से टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं, टैंकों से कुचले जाते हैं, गोलियों से मारे जाते हैं।
गाजा में हर जगह मौत है, जैसे यूक्रेन में है। आइए रूसी सेना द्वारा मारियुपोल के विनाश को न भूलें, लोगों के पलायन, खाई युद्ध जो लोगों को जिंदा दफन कर देता है। आज तक, माना जाता है कि लगभग 500,000 लोग मारे गए हैं। हर तरफ आधा-आधा. मातृभूमि की रक्षा के नाम पर रूसियों और यूक्रेनियों की एक पूरी पीढ़ी को अब राष्ट्रीय हित की वेदी पर बलिदान किया जा रहा है। अभी और भी आना बाकी है: सितंबर के अंत में, नागोर्नो-काराबाख में, 100,000 लोगों को अज़रबैजानी सेना और नरसंहार के खतरे के कारण भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। यमन में, जिस संघर्ष के बारे में कोई बात नहीं करता, उसने 200,000 से अधिक पीड़ितों की जान ले ली है और 2.3 मिलियन बच्चों को कुपोषण का शिकार बना दिया है। इथियोपिया, म्यांमार, हैती, सीरिया, अफगानिस्तान, माली, नाइजर, बुर्किना फासो, सोमालिया, कांगो, मोज़ाम्बिक में युद्ध की वही भयावहता चल रही है... और सर्बिया और कोसोवो के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है।
इस सारी बर्बरता का जिम्मेदार कौन है? युद्ध कितनी दूर तक फैल सकता है? और, सबसे बढ़कर, कौन सी ताकत इसका विरोध कर सकती है?
सभी राज्य युद्ध अपराधी हैं
लेखन के समय, सभी राष्ट्र इज़राइल से अपने आक्रमण को "संयमित" करने या "निलंबित" करने का आह्वान कर रहे हैं। रूस युद्धविराम की मांग कर रहा है, क्योंकि उसने डेढ़ साल पहले यूक्रेन पर उसी तीव्रता से हमला किया था और उसी "आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई" के नाम पर 1999 में चेचन्या में 300,000 नागरिकों का नरसंहार किया था। चीन का कहना है कि वह शांति चाहता है, लेकिन वह उइघुर आबादी को खत्म कर रहा है और ताइवान के निवासियों को और भी बड़ी आग की धमकी दे रहा है। सऊदी अरब और उसके अरब सहयोगी इज़रायली हमले को ख़त्म करना चाहते हैं जबकि साथ में यमन आबादी की तबाही भी। कुर्दों को नेस्तनाबूद करने का सपना देख रहा तुर्की गाजा पर हमले का विरोध करता है. जहां तक प्रमुख लोकतंत्रों की बात है, "इजरायल के अपनी रक्षा के अधिकार" का समर्थन करने के बाद, वे अब "मानवीय संघर्ष विराम" और "अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान" का आह्वान कर रहे हैं, जिन्होंने 1914 से उल्लेखनीय नियमितता के साथ सामूहिक वध में अपनी विशेषज्ञता का प्रदर्शन किया है।
यह इज़राइल राज्य का प्राथमिक तर्क है: "गाजा का विनाश वैध है": हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बम और ड्रेसडेन और हैम्बर्ग के कालीन-बमबारी के बारे में भी यही कहा गया था। संयुक्त राज्य अमेरिका ने अफगानिस्तान और इराक में उन्हीं तर्कों और उन्हीं तरीकों से युद्ध लड़ा, जैसे आज इजराइल! सभी राज्य युद्ध अपराधी हैं! बड़े या छोटे, प्रभुत्वशाली या शक्तिशाली, जाहिरी तौर पर युद्धोन्मादी या उदारवादी, ये सभी वास्तव में विश्व पटल में साम्राज्यवादी युद्ध में भाग ले रहे हैं, और ये सभी मजदूर वर्ग को तोप का चारा मानते हैं।
ये पाखंडी और धोखेबाज आवाज़ें हैं जो अब हमें शांति और उनके समाधान के लिए उनके अभियान पर विश्वास करने पर मजबूर कर देंगी: इज़राइल और फ़िलिस्तीन को दो स्वतंत्र और स्वायत्त राज्यों के रूप में मान्यता देना। फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण, हमास और फ़तह पूर्वाभास दे रहे हैं कि यह राज्य कैसा होगा: अन्य सभी की तरह, यह श्रमिकों का शोषण करेगा; अन्य सभी की तरह, यह जनता का दमन करेगा; अन्य सभी की तरह, यह युद्ध में जायेगा। ग्रह पर पहले से ही 195 "स्वतंत्र और स्वायत्त" राज्य हैं: कुल मिलाकर, वे "रक्षा" पर प्रति वर्ष 2,000 अरब डॉलर से अधिक खर्च करते हैं! और 2024 तक, ये बजट विस्फोट के लिए तैयार हैं।
वर्तमान युद्ध: एक झुलसी हुई पृथ्वी नीति
तो संयुक्त राष्ट्र ने यह घोषणा अभी क्यों की है: "हमें तत्काल मानवीय युद्धविराम की आवश्यकता है। तीस दिन हो गए हैं। बहुत हो गया। अब इसे रोकना होगा"? जाहिर है, फिलिस्तीन के सहयोगी इजरायली हमले का अंत चाहते हैं। जहां तक इजरायल के सहयोगियों की बात है, वे "महान लोकतंत्र" जो "अंतर्राष्ट्रीय कानून" का सम्मान करने का दावा करते हैं, वे बिना कुछ कहे इजरायली सेना को वह करने नहीं दे सकते जो वह चाहती है। आईडीएफ के नरसंहार भी दृश्यमान हैं। खासकर तब जब से "लोकतंत्र" यूक्रेन को "रूसी आक्रामकता" और उसके "युद्ध अपराधों" के खिलाफ सैन्य सहायता प्रदान कर रहे हैं। दोनों "आक्रामकताओं" की बर्बरता को बहुत अधिक समान दिखने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
लेकिन इससे भी गहरा कारण है: हर कोई अराजकता के प्रसार को सीमित करने की कोशिश कर रहा है, क्योंकि हर कोई प्रभावित हो सकता है, अगर यह संघर्ष बहुत दूर तक फैलता है तो हर किसी के पास खोने के लिए कुछ न कुछ है। हमास के हमले और इज़राइल की प्रतिक्रिया में एक बात समान है: झुलसी हुई पृथ्वी नीति। कल का आतंकवादी नरसंहार और आज का कालीन बम विस्फोट कोई वास्तविक और स्थायी जीत नहीं दिला सकता। यह युद्ध मध्य पूर्व को अस्थिरता और टकराव के युग में धकेल रहा है।
यदि इज़राइल ने गाजा को नष्ट करना और उसके निवासियों को मलबे के नीचे दबाना जारी रखा, तो वेस्ट बैंक में भी आग लगने का जोखिम है, कि हिजबुल्लाह लेबनान को युद्ध में खींच लेगा, और ईरान भी इसमें शामिल हो जाएगा। पूरे क्षेत्र में अराजकता फैलने से न केवल अमेरिकी प्रभाव को झटका लगेगा, बल्कि चीन की वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को भी झटका लगेगा, जिसका कीमती सिल्क रोड इस क्षेत्र से होकर गुजरता है।
तीसरे विश्व युद्ध का खतरा हर किसी की जुबान पर है. पत्रकार टेलीविजन पर खुलेआम इस पर बहस कर रहे हैं. वास्तव में, वर्तमान स्थिति कहीं अधिक खतरनाक है। वहाँ कोई दो गुट नहीं हैं, बड़े करीने से व्यवस्थित और अनुशासित, एक-दूसरे का सामना कर रहे हैं, जैसा कि 1914-18 और 1939-45 में, या पूरे शीत युद्ध के दौरान हुआ था। जबकि चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच आर्थिक और युद्ध जैसी प्रतिस्पर्धा तेजी से क्रूर और दमनकारी है, अन्य देश इन दोनों दिग्गजों में से किसी एक या दूसरे के आदेशों के आगे नहीं झुक रहे हैं; वे अव्यवस्था, अप्रत्याशितता और शोर-शराबे में अपना खेल खेल रहे हैं। चीन की सलाह के विरुद्ध रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया। अमेरिकी सलाह के खिलाफ इजराइल गाजा को कुचल रहा है. ये दो संघर्ष उस खतरे का प्रतीक हैं जो पूरी मानवता को मौत के खतरे में डालता है: ऐसे युद्धों का बढ़ना जिनका एकमात्र उद्देश्य प्रतिद्वंद्वी को अस्थिर करना या नष्ट करना है; तर्कहीन और शून्यवादी मांगों की एक अंतहीन श्रृंखला; हर आदमी अपने लिए, अनियंत्रित अराजकता का पर्याय।
तीसरे विश्व युद्ध के लिए, पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका और पूर्वी एशिया के सर्वहाराओं को पितृभूमि के नाम पर अपने जीवन का बलिदान देने, हथियार उठाने और ध्वज और राष्ट्रीय हितों के लिए एक-दूसरे को मारने के लिए तैयार रहना होगा, जो कि है आज बिल्कुल भी ऐसा नहीं है। लेकिन जो विकास की प्रक्रिया में है, उसे इस समर्थन, जनता की भागीदारी की आवश्यकता नहीं है। 2000 के दशक की शुरुआत से, ग्रह का व्यापक हिस्सा हिंसा और अराजकता में डूब गया है: अफगानिस्तान, इराक, सीरिया, लीबिया, लेबनान, यूक्रेन, इज़राइल और फिलिस्तीन... यह अवसाद धीरे-धीरे, देश दर देश, क्षेत्र दर क्षेत्र में फैल रहा है। पूंजीवाद के लिए यही एकमात्र संभावित भविष्य है, शोषण की यह पतनशील और सड़ती हुई व्यवस्था।
युद्ध को समाप्त करने के लिए पूंजीवाद को उखाड़ फेंकना होगा
तो हम क्या कर सकते हैं? प्रत्येक देश के श्रमिकों को कथित संभावित शांति के बारे में, "अंतर्राष्ट्रीय समुदाय", संयुक्त राष्ट्र या चोरों के किसी अन्य अड्डे से किसी समाधान के बारे में कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। पूंजीवाद युद्ध है. 1914 के बाद से, यह व्यावहारिक रूप से कभी नहीं रुका है, दुनिया के एक हिस्से को प्रभावित करता है और फिर दूसरे को। हमारे सामने आने वाले ऐतिहासिक काल में यह घातक गतिशील प्रसार और वृद्धि, जिसमें अथाह बढ़ती बर्बरता देखी जाएगी।
इसलिए प्रत्येक देश के श्रमिकों को बहकावे में आने से इनकार करना चाहिए, उन्हें पूर्व में, मध्य पूर्व में और हर जगह किसी न किसी बुर्जुआ खेमे का पक्ष लेने से इनकार करना चाहिए। उन्हें उस बयानबाजी से मूर्ख बनने से इनकार करना चाहिए जो उन्हें "हमले के अधीन यूक्रेनी लोगों", "खतरे में रूस", "शहीद फिलिस्तीनी जनता", "आतंकित इजरायलियों" के साथ "एकजुटता" दिखाने के लिए कहता है... सभी युद्धों में, सीमाओं के दोनों ओर, राज्य हमेशा लोगों को यह विश्वास दिलाता है कि अच्छाई और बुराई, बर्बरता और सभ्यता के बीच संघर्ष है। वास्तव में, ये सभी युद्ध हमेशा प्रतिस्पर्धी देशों के बीच, प्रतिद्वंद्वी पूंजीपतियों के बीच टकराव होते हैं। वे हमेशा ऐसे संघर्ष होते हैं जिनमें शोषित अपने शोषकों के लाभ के लिए मर जाते हैं।
इसलिए श्रमिकों की एकजुटता "फिलिस्तीनियों" को नहीं मिलती है, क्योंकि यह "इजरायलियों", "यूक्रेनी", या "रूसियों" को नहीं जाती है, क्योंकि इन सभी राष्ट्रीयताओं के बीच शोषक और शोषित हैं। यह इजराइल और फिलिस्तीन, रूस और यूक्रेन के श्रमिकों और बेरोजगारों को जाता है, जैसे यह दुनिया के हर देश के श्रमिकों को जाता है। यह "शांति के लिए" प्रदर्शन करके नहीं है, यह दूसरे के खिलाफ एक पक्ष का समर्थन करने का चयन करके नहीं है कि हम युद्ध के पीड़ितों, नागरिक आबादी और दोनों पक्षों के सैनिकों, वर्दी में चारे में तब्दील सर्वहाराओं, प्रेरित और कट्टर बाल-सैनिकों के साथ वास्तविक एकजुटता दिखा सकते हैं। सभी पूंजीवादी राज्यों, वे सभी पार्टियाँ जो हमें इस या उस राष्ट्रीय ध्वज के पीछे एकजुट होने का आह्वान करती हैं, इस या उस युद्ध का कारण बनती हैं; वे सभी जो हमें शांति और लोगों के बीच "अच्छे संबंधों" के भ्रम से भ्रमित करते है, की निंदा करना ही एकमात्र एकजुटता हैं।
इस एकजुटता का मतलब सबसे पहले पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ हमारी लड़ाई को विकसित करना है जो सभी युद्धों के लिए जिम्मेदार है, राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग और उनके राज्य के खिलाफ लड़ाई।
इतिहास गवाह है कि वह शोषित वर्ग ही एकमात्र शक्ति है जो पूंजीवादी युद्ध को समाप्त कर सकती है , सर्वहारा वर्ग, बुर्जुआ वर्ग का प्रत्यक्ष शत्रु है। यह वह मामला था जब अक्टूबर 1917 में रूस के श्रमिकों ने बुर्जुआ राज्य को उखाड़ फेंका और नवंबर 1918 में जर्मनी के श्रमिकों और सैनिकों ने विद्रोह कर दिया: सर्वहारा वर्ग के संघर्ष के इन महान आंदोलनों ने सरकारों को युद्धविराम पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया। इसी ने प्रथम विश्व युद्ध का अंत किया: क्रांतिकारी सर्वहारा वर्ग की ताकत! मजदूर वर्ग को विश्व स्तर पर पूंजीवाद को उखाड़ फेंककर हर जगह वास्तविक और निश्चित शांति हासिल करनी होगी।
यह लंबी राह हमारे सामने है। आज, इसका मतलब एक दुर्जेय संकट में फंसी व्यवस्था द्वारा हम पर किए जा रहे लगातार कठोर आर्थिक हमलों के खिलाफ, एक वर्ग पटल में संघर्ष विकसित करना है। क्योंकि हमारे रहने और काम करने की स्थिति में गिरावट को अस्वीकार करके, बजट को संतुलित करने, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की प्रतिस्पर्धात्मकता या युद्ध के प्रयासों के नाम पर किए गए सतत बलिदानों को अस्वीकार करके, हम पूंजीवाद के अन्दर : मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण के खिलाफ खड़े होना शुरू कर रहे हैं:
इन संघर्षों में, हम एक साथ खड़े होते हैं, हम अपनी एकजुटता विकसित करते हैं, हम बहस करते हैं और जब हम एकजुट और संगठित होते हैं तो हमें अपनी ताकत का एहसास होता है। अपने वर्ग संघर्षों में, सर्वहारा अपने भीतर एक ऐसी दुनिया लेकर चलता है जो पूंजीवाद के बिल्कुल विपरीत है: एक ओर, आपसी विनाश के बिंदु तक आर्थिक और युद्ध जैसी प्रतिस्पर्धा में लगे राष्ट्रों में विभाजन; दूसरी ओर, दुनिया के सभी शोषितों की एक संभावित एकता। सर्वहारा वर्ग ने इस लंबी राह पर चलना शुरू कर दिया है, इस दौरान कुछ कदम उठे: 2022 में यूनाइटेड किंगडम में "असंतोष की गर्मी", 2023 की शुरुआत में फ्रांस में पेंशन सुधार के खिलाफ सामाजिक आंदोलन, हाल के सप्ताहों में संयुक्त राज्य अमेरिका में स्वास्थ्य और ऑटोमोबाइल क्षेत्र में ऐतिहासिक हड़ताल। यह अंतर्राष्ट्रीय गतिशीलता श्रमिकों की जुझारूपन की ऐतिहासिक वापसी, रहने और काम करने की स्थिति में स्थायी गिरावट को स्वीकार करने से इनकार करने और संघर्ष में श्रमिकों के रूप में क्षेत्रों और पीढ़ियों के बीच एकजुटता दिखाने की प्रवृत्ति को चिह्नित करती है। भविष्य में, आंदोलनों को आर्थिक संकट और युद्ध के बीच, मांगे गए बलिदानों और हथियारों के बजट और नीतियों के विकास के बीच, उन सभी संकटों के बीच संबंध बनाना होगा जो अप्रचलित वैश्विक पूंजीवाद अपने साथ लेकर आता है, आर्थिक, युद्ध और जलवायु के बीच संकट जो एक दूसरे पर निर्भर करते हैं।
राष्ट्रवाद के ख़िलाफ़, उन युद्धों के ख़िलाफ़ जिनमें हमारे शोषक हमें घसीटना चाहते हैं, श्रमिक आंदोलन के पुराने नारे जो 1848 के कम्युनिस्ट घोषणापत्र में दिखाई दिए थे, आज पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं:
“मजदूरों “ की कोई मातृभूमि नहीं है!
सभी देशों के मजदूरों, एक हो जाओ!”
अंतर्राष्ट्रीय सर्वहारा वर्ग के वर्ग संघर्ष के विकास के लिए!
अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट करंट, 7 नवंबर 2023
रूब्रिक:
मध्यपूर्व में हालिया साम्राज्यवादी खून-खराबा, 1917 के पश्चात, एक सदी से भी अधिक समय से विश्व पूँजीवाद की विशेषता रहे, लगभग स्थायी युद्ध, नवीनतम कड़ी है.
करोड़ों रक्षाहीन नागरिकों का कत्लेआम, जाति संहार, शहरों का विध्वंश, यहाँ तक पूरे देश को मलबे में बदल डालना, आने वाले काल में और अधिक और बदतर अत्याचारों के वादे के अलावा कुछ नहीं है.
वर्तमान नर संहार के लिए विभिन्न प्रतिद्वंदी बड़ी या छोटी साम्राज्यवादी शक्तियों द्वारा प्रस्तावित औचत्य या ‘समाधान’, एक राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग दूसरे के विरुद्ध, इससे पहले के सभी खून-खराबे की भांति, शोषित, मजदूर वर्ग को शांत करने के लिए, इन्हें बांटने और उनके बीच के भाईचारे की हत्या के लिए तैयार करना,एक बड़े धोखे के समान है.
आज इजराइल और गाज़ा निवासियों पर आग और इस्पात की वर्षा हो रही है. एक ओर हमास, इयसे छलनी कर डाले, तमाम लोग बंधक बना लिए गए हैं. हजारों लोग पहले ही मारे जा चुके हैं.
पूरी दुनिया में, पूंजीपति वर्ग हमें, इजराइली उत्पीड़न के खिलाफ, फिलिस्तीनी प्रतिरोध के लिए, अथवा फ़िलिस्तीनी आतंकवाद पर इज़राइली प्रतिक्रिया के लिए, अपना- अपना पक्ष चुनने के लिए बुला रहा है. या फ़िलिस्तीनी आतंकवाद, प्रत्येक युद्ध को उचित ठहराने के लिए दूसरे की बर्बरता की निंदा करता है. इज़राइली राज्य, दशकों से नाकाबंदी, उत्पीड़न, चौकियोंसे से घेराबंदी और अपमान के साथ फ़िलिस्तीनी लोगों पर अत्याचार कर रहा है. फ़िलिस्तीनी संगठन,चाकू व बमबारी से निर्दोष लोगों की हत्या कर रहा है. प्रत्येक पक्ष, दूसरे का खून बहाने का आह्वान कर रहा है.
यह घातक तर्क ही साम्राज्यवादी युद्ध का तर्क है! यह हमारे शोषक और उनके राज्य हैं जो हमेशा अपने हितों की रक्षा के लिए निर्दयी युद्ध लड़ते रहते हैं. और यह हम हैं, मजदूर वर्ग, शोषित वर्ग, जो हमेशा अपनी जान देकर इसकी कीमत चुकाते हैं.
हम सर्वहाराओं के लिए चुनने के लिए कोई पक्ष नहीं है, हमारी कोई मातृभूमि नहीं है, रक्षा के लिए कोई राष्ट्र नहीं है! सीमा के दोनों ओर हम एक ही वर्ग के हैं! न इजराइल, न फ़िलिस्तीन!
केवल एकजुट अंतर्राष्ट्रीय सर्वहारा वर्ग ही इन बढ़ते नरसंहारों और उनके पीछे छिपे साम्राज्यवादी हितों को ख़त्म कर सकता है. ज़िम्मरवाल्ड में वामपंथ के मुट्ठी भर कम्युनिस्टों द्वारा तैयार किया गया यह अनोखा, अंतर्राष्ट्रीयवादी समाधान अक्टूबर 1917 में रूस में अपनाया. जब क्रांतिकारी मजदूर वर्ग के संघर्ष ने पूंजीवादी शासन को उखाड़ फेंका और अपनी राजनीतिक वर्ग शक्ति स्थापित कर अपने उदाहरण से अक्टूबर ने एक व्यापक, अंतर्राष्ट्रीय क्रांतिकारी आंदोलन को प्रेरित किया जिसने प्रथम विश्व युद्ध को समाप्त करने के लिए मजबूर किया.
कम्युनिस्ट वामपंथ ही वह एकमात्र राजनीतिक धारा जो इस क्रांतिकारी लहर की हार से बच गई है और जिसने अंतर्राष्ट्रीयतावादी सिद्धांत की क्रांतिकारी रक्षा को बनाए रखा है, तीस के दशक में, इसने स्पेनिश युद्ध और चीन-जापानी युद्ध के दौरान इस मौलिक श्रमिक वर्ग लाइन को संरक्षित किया, जबकि स्टालिनवादियों, ट्रॉट्स्कीवादियों या अराजकतावादियों जैसी अन्य राजनीतिक धाराओ ने अपने साम्राज्यवादी शिविर को चुना जिसने इन संघर्षों को और भडकाया जिसे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कम्युनिस्ट वामपंथ ने अपना अंतर्राष्ट्रीयवाद बनाए रखा, जबकि इन अन्य धाराओं ने साम्राज्यवादी नरसंहार में भाग लिया, जिसे 'फासीवाद और फासीवाद-विरोध' और 'सोवियत' संघ की रक्षा के बीच लड़ाई के रूप में तैयार किया गया था.
आज कम्युनिस्ट वामपंथ की अल्प संगठित उग्रवादी ताकतें अभी भी इस अंतर्राष्ट्रीयतावादी कट्टरपन का पालन कर रही हैं, लेकिन उनके अल्प संसाधन कई अलग-अलग समूहों में विखंडन और परस्पर शत्रुतापूर्ण, सांप्रदायिक भावना के कारण और भी कमजोर हो गए हैं.
इसीलिए, साम्राज्यवादी बर्बरता में बढ़ती गिरावट के सामने, इन असमान ताकतों को सभी साम्राज्यवादी शक्तियों के खिलाफ, शोषकों के पीछे राष्ट्रीय रक्षा के आह्वान के खिलाफ, 'शांति' के लिए पाखंडी दलीलों के खिलाफ और सर्वहारा वर्ग के संघर्ष, जो साम्यवादी क्रांति की ओर ले जाता है, के लिए एक आम घोषणा करनी होगी.
दुनियाभर के मजदूरों एक हो.
अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट करंट.
अंतर्राष्ट्रीय वॉईस.
यह अपील क्यों?
यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के पश्चात्, सिर्फ 20 महीने से पहले, आईसीसी द्वारा कम्युनिष्ट वामपंथी गुटों के लिए एक साझा बयान का प्रस्ताव किया था, जिन गुटों ने आईसीसी के अलावा, इस्टिटुटो ओनोराटो डेमन, इंटरनेशनलिस्ट वॉयस, इंटरनेशनल कम्युनिस्ट परस्पेक्टिव (दक्षिण कोरिया) ने बाद में कम्युनिष्ट वामपंथ गुटों ने दो चर्चा बुलेटिन तैयार किये हैं, उनके संबंधित पदों और पर बहस की गई है, और आमतौर पर सार्वजनिक सभाएं आयोजित की गयी हैं.
हालांकि, अन्य कम्युनिष्ट वामपंथी गुटों के इस प्रस्तावित बयान के अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांतों से सहमत होते हुए भी, इस पर हस्ताक्षर करने से इंकार पर दिया ( या बिलकुल भी उत्तर नहीं दिया ). आमतौर पर इस सिद्धांत का बचाव करने की अधिक आवश्यकता को देखते हुए, आज हम इन गुटों से (नीचे सूचीबद्ध) इस अपील पर पुनर्विचार करने और हस्ताक्षर करने का आग्रह करते हैं. यूक्रेन पर आम बयान पर, हस्ताक्षर करने खिलाफ एक तर्क यह था कि गुटों के बीच, इसकी अनुमति देने के लिए अन्य मतभेद बहुत अधिक थे और जिनसे इंकार नहीं किया जा सकता है, चाहे वे विश्लेषण, सैद्धांतिक प्रश्न, राजनैतिक दल की अवधारणा, यहाँ तक कि लड़ाकुओं की सदयस्ता की शर्तों से जुड़े सवाल ही क्यों न हों. लेकिन सर्वहारा अंतर्राष्ट्रीयतवाद का सबसे आवश्यक बुनियादी सिद्धांत, वर्ग की क्रांतिकारी सीमा, जो क्रांतिकारी राजनैतिक सन्गठन को अलग पहचान देती है, कहीं अधिक महत्वपूर्ण है. और इस प्रश्न पर एक आम बयान पर यह अर्थ नहीं कि अन्य मतभेदों को भुला दिया गया है. इसके विपरीत चर्चा बुलेटिन यह दर्शाते हैं कि उन पर बहस के लिए एक मंच संभव और आवश्यक है.
एक और अन्य तर्क यह था कि मजदूर वर्ग में अंन्तर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष से अधिक व्यावहारिक आवश्यकता थी, जो केवल कम्युनिष्ट वामपंथ तक सीमित अपील से अधिक व्यापक था. नि:संदेह, सभी अन्तर्राष्ट्रीय लड़ाके कम्युनिष्ट संगठन मजदूर वर्ग में अधिक प्रभाव चाहते हैं लेकिन यदि कम्युनिष्ट वामपंथ अन्तर्राष्ट्रीय संगठन, साम्राज्यवादी संघर्ष के महत्वपूर्ण क्षणों में व्यवहारिक रूप से अपने मूल सिद्धांत पर एक साथ काम करने में भी संक्षम नहीं हैं तो उनसे सर्वहारा के व्यापक वर्गों द्वारा गंभीरता से लिए जाने की उम्मीद कैसे की जा सकती है?[1]
वर्तमान, फिलिस्तीन-इजराइल संघर्ष, पहले के सभी से कहीं अधिक भयानक और परिवर्तनशील युद्ध, यूक्रेन में साम्राज्यवादी युद्ध के दोबारा उभरने के दो साल से भी कम समय के बाद उभर रहा है तथा कई अन्य साम्राज्यवादी संघर्षों के साथ जो हाल ही में फिर से शुरू हुए हैं (सर्बिया/कोसोवो, अजरबैजान/आर्मेनियाँ, और ताइवान को ले कर अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव) का मतलब है कि एक आम अंतर्राष्ट्रीय बयान पहले से भी अधिक दबाव डालता है.
इसलिए, हम सीधे और सार्वजनिक रूप से निम्नलिखित गुटों से ऊपर छपे साम्रज्य्वादी युद्ध के खिलाफ बयान पर सह-हस्ताक्षर करने की इच्छा दिखाने की आकांक्षा रखते हैं जिसे यदि आवश्यक हो तो इसके सामान्य अंतर्राष्ट्रीयतावादी उद्द्येश्य के अनुसार संशोधित या पुनः तैयार किया जा सकता है.
आईसीटी (अंतर्राष्ट्रीयवादी कम्युनिस्ट प्रवृत्ति)
पीसीआई (प्रोग्रामा कोमुनिस्टा )
पीसीआई ( इल पार्टिटो कोमुनिस्टा )
पीसीआई ( ले प्रोलेटेयर , इल कोमुनिस्टा )
आईओडी ( इस्टिट्यूटो ओनोराटो डेमन)
[1] कम्युनिस्ट वामपंथ के बाहर के अन्य समूह जो इस अपील में बचाव किए गए अंतर्राष्ट्रीयवादी पदों से सहमत हैं, वे इस अपील के लिए अपने समर्थन की घोषणा कर सकते हैं और इसे वितरित कर सकते हैं.
भारत के पूर्वी प्रान्त ओड़िसा के बालासोर शहर में तीन रेल गाड़ियों के आपस में टकरा जाने के कारण हुई भीषण ट्रेन दुर्घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. 2 जून 2023 को दो यात्री ट्रेनें, कोरोमंडल एक्सप्रेस और बेंगलुरू – हावड़ा सुपर- फ़ास्ट, एक्स्प्रेस बह्नागा रेलवे स्टेशन के पास एक मालगाड़ी से हुई शुरूआती टक्कर आपस में टकरा गईं. दिल को दहला देने वाले इस हादसे पर भारत सरकार ने एक बयान में बताया कि टक्कर में कम से कम 280 लोगों की जानें गईं और लगभग 1000 लोग बुरी तरह घायल हुए, साथ ही सरकारी प्रवक्ता ने यह भी कहा कुछ लोगों की मौत को गुप्त रखा जायेगा. आमजन, सरकार द्वारा, तमाम अन्य मामलों के बारे में जनता को दी जाने वाली सूचनाओं की भांति, इस बयान पर भी भरोसा नहीं कर रहे हैं. मिली जानकारी के अनुसार शालीमार – चेन्नई एक्सप्रेस लगभग 2500 यात्रियों को ले जा रही थी. इंजिन के पीछे वाले अनारक्षित डिब्बा जो दक्षिणके राज्यों में अपने कार्यस्थ्लों को लौट रहे, अधिकतर मजदूर यात्रियों से खचाखच भरा था, इसमें मृतकों की संख्या कहीं अधिक होने की आशंका जताई जा रही है. यह लगभग तीन दशकों की देश की सबसे भीषण दुर्घटना है. “पूंजीवादी सड़ांध के दवाब में अवर्णीय आपदायें और पीडाएं पहले से कहीं अधिक बढ़ रहीं हैं. जो 2020 के दशक की शुरूआत में स्पष्ट रूप तेज हो गयी हैं” [1]”
“डिजिटल इण्डिया का” धोखा
यह दुर्घटना उस समय हुई जब भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी देश के विशाल नेटवर्क और अन्य बुनियादी ढांचे के आधुनीकरण में उनकी सरकार के बड़े पैमाने पर निवेश के हिस्से के रूप में एक नयी हाई स्पीड ट्रेन, वन्दे भारत एक्सप्रेस का उद्घाटन करने वाले थे.ओड़िसा की इस ट्रेन दुर्घटना ने डिजिटल इण्डिया का गुब्बारा फोड़ दिया. भारतीय रेलवे ने ही कुछ साल पहले “ ऑटोमैटिक सिग्नल प्रणाली “और इलेक्ट्रिक प्रणाली” का महिमा मंडन किया था.अब उस पद्धति की पोल खुल गई. पिछले साल रेल मंत्रालय ने एक भव्य समारोह में स्वचालित ट्रेन सुरक्षा( ए टी पी ) प्रणाली या “कवच प्रणाली” का शुभारम्भ किया था. उसमें यह दावा किया गया था कि दुर्घटनाओं से बचने के लिए यह एक “शर्तिया” उपाय है. इस ताजा आपदा ने पूँजीवादी झूठ को तार-तार कर दिया. दुर्घटना के पश्चात रेल मंत्रालय के प्रवक्ता अमिताभ शर्मा ने स्वीकार किया कि हादसे वाली ट्रेनों अथवा उस रूट वाली किसी ट्रेन में “कवच सिस्टम” चालू नहीं था. फिर क्या अर्थ है आधुनिक प्रौद्योगिकी का? इसका उत्तर साफ़ है कि राज्य सुरक्षा उपायों पर खर्च करना फिजूलखर्ची समझता है. यह सभी को स्पष्ट है कि आधुनिक पूंजीवादी प्रौद्योगिकी सुरक्षा का उपाय नहीं है और यह विज्ञान और वैज्ञानिक अनुसन्धान का विकास मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए लक्षित नहीं है. बल्कि यह अधिकतम मुनाफा निचोड़ने की पूंजीवादी अनिवार्यता के अधीन है.
पूंजीवादी विशेषज्ञ, ट्रेन दुर्घटनाओं को निम्न प्रकार वर्गीकृत करते हैं : इस वर्गीकरण के अनुसार, इन हादसों के लिए ड्राइवर और सिग्नलमैन की असावधानियाँ, तकनीकी विफलता, बर्बरता, तोड़फोड़ और आतंकवाद, लेवल क्रोसिंग,का दुरूपयोग और अतिक्रमण बताये गये हैं. हाल की घटना के लिए रेलवे ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो द्वारा जांच की सिफारिश की है. इस जांच का घोषित लक्ष्य यह पता लगाना और स्थापित करना है: क्या दुर्घटना के पीछे इलेक्ट्रिक लाकिंग सिस्टम में खराबी तकनीकी थी या यह मानवीय हस्तक्षेप का परिणाम था जो संभावित आतंकवादी कनेक्शन का संकेत देता है. जांच का यह एंगिल, तोड़फोड़ का यह सिद्धांत और सीबीआई जांच सरकार को आगामी चुनाव वर्ष में रेल मंत्रालय की सुर्खियाँ फायदेमंद साबित होने वाली हैं. आगामी 2024 के चुनाव के लिए सरकार की संचार रणनीति के प्रमुख घटकों में से एक वन्दे मातरम का वह चमकदार बेडा है जो मोदी सरकार के तहत विकास का व्यापक वादा करता है.
भारतीय रेल की खस्ता हालत
आर्थिक विकास के मामले में भारत आज विश्व के लिए अनुकरणीय मॉडल बना हुआ है. दुनिया के लिए इस अनुकरणीय मॉडल का यदि हम भारतीय रेलवे के यात्रियों की सुरक्षा के लिए किये गए उपायों के परिप्रेक्ष में मूल्यांकन करें, तो तस्वीर उल्टी ही नजर आती है. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरों के आंकड़ों के अनुसार,पिछले दस वर्षों में भारत में हुई रेल दुर्घटनाओं में लगभग 26,000 लोग अपनी जाने गँवा चुके हें. हमें यह भी याद रखना चाहिए कि भारतीय रेलवे देश की जीवन रेखा है. यही रेलवे भारत की अर्थव्यवस्था के बुनियादी ढाँचे और परिवहन प्रणाली में सुधार के लिए उत्पेरक के रूप में कार्य करता है. तब सवाल है कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए इतने महत्वपूर्ण रेलवे नेटवर्क में यात्री सुरक्षा इतनी खराब क्यों है? दरअसल, रेलवे की आर्थिक कमाई उसके यात्रियों पर निर्भर करती है. रेलवे की टिकटों की कीमत दिन पर दिन बढती जा रही है, जबकि सेवा की गुणवत्ता में तेजी से गिरावट देखी जा रही है. टिकट रद्द करने का पैसा शायद ही कभी ही वापस किया जाता है. शायद ही ऐसी कोई ट्रेन होगी जहां यात्रियों ने शौचालय की दयनीय स्थिति को ले कर शिकायत न की हो.पटरियों को उन्नत करने, ट्रेनों में भीडभाड कम करने या नई ट्रेनें जोड़ने पर कम पैसा खर्च किया जाता है. देखा गया है कि एक ही ट्रेन का नाम बदल कर रेलवे के बेड़े का बड़ा रूप दिखाने का भ्रम पैदा किया जाता है. रेल विभाग ने कम लागत पर आकस्मिक अप्रश्क्षित श्रमिकों के साथ काम जारी रखने की कोशिश की है, जिससे अपर्याप्त संख्या में श्रमिकों पर काम का भार बढ़ता जा रहा है. परिणामस्वरूप, उन्हें आराम के लिए समय में कटौती करनी पड़ रही है. कभी जिस रेलवे में 22.5 लाख कर्मचारी कार्यरत थे, आज घट कर उनकी संख्या मात्र 12 लाख रह गई है.[2] रेलवे के कई स्कूल, अस्पताल, प्रिंटिंग प्रेस और अन्य कार्यालय और रेलवे से जुड़े कारखाने पूरी तरह बंद कर दिए गए है या “आउटसोर्स” कर दिए गए हैं. इसके प्रशासन में भर्ती लगभग बंद हो गई है. रेलवे के 17 जोनों में से प्रत्येक में जनरल स्टोर डिपो जिनमें 3000 से 4000 कर्मचारी कार्यरत थे, बंद कर दिए गए हैं. इस विषय पर किसी ने तनिक भी नही सोचा कि इतने कम स्टाफ से कैसे काम लिया जा सकता है. कम मजदूरों को नियोजित करने से अमानवीय दवाब बढ़ गया है.
पूंजीवादी वामपंथी राज्य से अपील करते हैं
पूंजीवादी वामपंथियो का कार्य सिर्फ घायल लोगों के लिए राज्य से मानवीय सहायता प्रदान किये जाने की मांग तक ही सीमित है. भारतीय स्तालिनवादी ( मार्क्सवादी ) ने सभी संबंधित अधिकारियों से घायलों को शीघ्र और तत्काल चिकित्सा सहायता सुनिश्चित करने और मरने वालों की संख्या में वृद्धि रोकने का आव्हान किया. वामपंथी स्वयं पूँजीवादी राज्य का अभिन्न अंग होने के कारण आमतौर पर विशेष सरकारों या राजनैतिक गुटों को समस्या का कारण मानते हैं.
मजदूर वर्ग को अपने दैनिक अनुभव से अहसास होता है कि बुर्जुआ राज्य के लिए मजदूरों के जीवन का कोई महत्व नहीं. इस लिए वामपंथी और यूनियन कार्यकर्ताओं की चेतना को संसदीय चुनावी प्रक्रिया की और मोड़ने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं. तिहरी रेल दुर्घटना में अधिकाँश पीड़ित प्रवासी श्रमिक ही थे जिनकी म्रत्यु के पश्चात् पहचान नहीं हो पायी क्योंकि वे अनारक्षित डिब्बे के यात्री थे. आज,जब संपूर्ण नागरिक समाज उथल-पुथल की स्थिति में है, व्यवस्था बदलने का दायित्व मजदूर वर्ग के कंधों पर है. ऐसी स्थिति में दुर्घटना के असली सूत्रधार पूंजीवादी राज्य की नग्न संशयवादिता को सभी के सामने नंगा किया जाना यही एक मात्र कार्य बनता है.
भारतीय मजदूर वर्ग एक अंतर्राष्ट्रीय वर्ग का हिस्सा है
सर्वहारा वर्ग सड़ांध की सभी अभिव्यक्तियों के फलस्वरूप आर्थिक संकट के दवाब के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में अपने कामकाजी और जीवनयापन करने की स्थिति पर हमलों का पूरा प्रभाव झेल रहा है.वर्तमान दुर्घटना ने स्पष्ट कर दिया है कि पूँजीवाद के भीतर किसी भी समस्या का कोई समाधान नहीं है. भारत में रेल कर्मचारियों के संघर्ष का एक गौरवमयी लम्बा इतिहास है. मजदूर वर्ग के अन्य भाग उनके अनुभवों तथा दुनियाँ के अन्य श्रमिक वर्ग के तजुर्बों से सीख ले सकते हैं. ग्रीस, एथेंस,थिस्सलुनी में सड़कों पर हुए प्रदर्शनों में हजारों लोगों ने भाग लिया, साथ में रेल कर्मचारियों ने स्वत: हड़तालें कीं और स्वास्थ्य से ले कर शिक्षा तथा अन्य क्षेत्रों के मजदूरों को संघर्ष में शामिल होने का आव्हान किया और यह जो कुछ हुआ ऐसा गत दस सालों में देखा जा रहा है. इन विरोध प्रदर्शनों में सुने गये नारों में श्रमिकों की प्रतिक्रिया थी: "यह मानवीय भूल नहीं थी, यह कोई दुर्घटना नहीं थी, यह एक अपराध था!" "हत्यारों की इस सरकार का नाश हो !" " मित्सोटाकिस अपराध मंत्री है !" भारत में होने वाले मजदूरों के संघर्ष अंरराष्ट्रीय संघर्षों का हिस्सा हैं. ये संघर्ष न केवल ग्रीस में ही नहीं देखे गये बल्कि समान दुश्मन के साथ, समान व्यवस्था से मुकाबला करने और उसे उखाड़ फेंकने के लिए ब्रिटेन, फ़्रांस और उसके बाहर भी जारी संघर्षों में देखा जाता है.
सी आई .14/6/ 23
[1] देखिये ; पूंजीवादी सड़ांध की गति मानवता के विनाश की स्पष्ट संभावना उत्पन्न करती है
[2] 22.5 लाख = 22.5 x 100,000 = 2,250,000 . 12 लाख = 12 x 100,000 = 1,200,000
यूरोप में, जब 130 साल पहले, पूंजीवादी शक्तियों के बीच तनाव बढ़ रहा था, तब फ्रेडरिक एंगेल्स ने मानवता के लिए साम्यवाद या बर्बरता के बीच दुविधा पेश की.
इस विकल्प को 1914 में शुरू हुए प्रथम विश्व युद्ध में मूर्त रूप दिया गया, जो 20 मिलियन लोगों की मृत्यु, का कारण बना, अन्य 20 मिलियन विकलांग हुए, और युद्ध की अराजकता में 50 मिलियन से अधिक मौतों के साथ स्पेन में फ्लू की महामारी फ़ैली.
1917 में रूस में क्रांति और अन्य देशों में क्रांतिकारी प्रयासों ने नरसंहार को समाप्त कर दिया और एंगेल्स द्वारा प्रस्तुत ऐतिहासिक दुविधा के दूसरे पक्ष क्रांतिकारी सर्वहारा वर्ग द्वारा विश्व स्तर पर पूंजीवाद को उखाड़ फेंकने और उसके स्थान पर एक साम्यवादी समाज की संभावना को जन्म दिया.
हालाँकि, इसके बाद:
- "साम्यवाद" के बैनर तले स्टालिनवाद द्वारा रूस में की गई क्रूर प्रति-क्रांति द्वारा इस विश्व क्रांतिकारी प्रयास को कुचला गया,
- जर्मनी में सामाजिक लोकतंत्र सर्वहारा के शुरू किये नरसंहार को नाजीवाद द्वारा पूरा किया गया.
- सोवियत संघ में सर्वहारा वर्ग की भर्ती, देश में सर्वहारा वर्ग का नरसंहार और,
- “समाजवादी पित्रभूमि” की रक्षा के लिए फासीवाद के विरोध के झंडे तले सोवियत संघ में सर्वहारा की भर्ती की गई, जिसे 1939 -45 के अबतक हुईं बर्बरता के क्षेत्र में एक और मील के पत्थर, विश्व युद्ध में झोंक दिया, युद्ध के दौरान नाजी व् स्तालिनवादी यातना शिविरों में दी जाने वाली अमानवीय यातनाओं, मित्र शक्तियों द्वारा ड्रेस्डन, हम्बर्ग तथा संयुक्त राष्ट्र अमेरिका द्वारा जापान के हीरोशिमा और नागाशाकी पर की गई अंधाधुं बममारी में 60 मिलियन लोगों की मृत्यु और पीड़ा का अन्तहीन सिलसला बन गया.
तब से, युद्ध ने हर महाद्वीप पर जान लेना बंद नहीं किया है.
सबसे पहले अमेरिका और रूसी गुटों के बीच टकराव हुआ,तबसे तथाकथित शीत युद्ध (1945-89), स्थानीय युद्धों की एक अंतहीन श्रृंखला से पूरे ग्रह पर परमाणु बमों की वर्षा का खतरा मडरा रहा है.
1989-91 में सोवियत संघ के पतन के बाद, अराजक युद्धों ने विश्व को खून से लथपथ कर दिया: इराक, यूगोस्लाविया, रवांडा, अफगानिस्तान, यमन, सीरिया, इथोपिया, सूडान ... यूक्रेन में युद्ध 1945 के बाद से सबसे गंभीर युद्ध संकट है.
युद्ध की बर्बरता के साथ-साथ पारस्परिक रूप से मजबूत करने वाली विनाशकारी ताकतों का प्रसार होता है: कोविद महामारी जो अभी भी दूर होने से दूर है और जो नई महामारियों की शुरुआत करती है; पारिस्थितिजन्य और तेजी से बढ़ रही पर्यावरणीय आपदा,जलवायु परिवर्तन के साथ मिलकर, सूखा, बाढ़, तूफान, सूनामी, आदि, और भूमि, जल, वायु और अंतरिक्ष के प्रदूषण की एक अभूतपूर्व डिग्री; बाइबिल के अनुपात के अकाल लाने वाला गंभीर खाद्य संकट तेजी से बेकाबू और घातक आपदाओं का कारण बन रही है. चालीस साल पहले, तीसरे विश्व युद्ध में मानवता के नष्ट होने का खतरा था, आज इसे विनाश की ताकतों के सरल एकत्रीकरण और घातक संयोजन से नष्ट किया जा सकता है: चाहे हम, ताप- नाभिकीय (थर्मोन्यूक्लियर) बमों की बारिश में, या प्रदूषण से, परमाणु ऊर्जा स्टेशनों से रेडियो-गतिविधि, अकाल, महामारी, और असंख्य छोटे युद्धों के नरसंहार (जहां परमाणु हथियारों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है) से मिटा दिया गया हो, अंत में यह सब समान है. इन दो रूपों के बीच एकमात्र अंतर सर्वनाश, इसमें निहित है कि एक त्वरित, जबकि दूसरा धीमा होगा, और इसके परिणामस्वरूप और भी अधिक पीड़ा होगी" [2] ( थीसिस ऑन डिकंपोज़िशन )
एंगेल्स द्वारा प्रस्तुत की गई दुविधा: साम्यवाद या मानवता का विनाश, ने अब और भी गंभीर रूप धारण कर लिया है. उक्त ऐतिहासिक क्षण और अधिक गंभीर हो गया है; और अंतर्राष्ट्रीयवादी क्रांतिकारियों को अपने वर्ग (सर्वहारा) के सामने इसकी स्पष्ट पुष्टि करने की आवश्यकता है, क्योंकि केवल सर्वहारा वर्ग ही स्थायी और अथक संघर्ष के माध्यम से कम्युनिस्ट दृष्टिकोण को प्रस्तुत कर सकता है.
साम्राज्यवादी युद्ध पूंजीवाद की जीवन शैली है.
मास मीडिया, युद्ध की वास्तविकता को झूठा और कम आंकता है. शुरुआती दौर में मीडिया 24 घंटे यूक्रेन में युद्ध के लिए समर्पित था, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, युद्ध को तुच्छ बना दिया गया, अब युद्ध, मीडिया में सुर्खियाँ भी नहीं बन रहा. इसकी गूँज, धमकी भरे बयानों से परे नहीं जा रही, "यूक्रेन को हथियार भेजने" के लिए बलिदान करने का आह्वान किया गया था, दुश्मन के खिलाफ चलाए जा रहे प्रचार अभियान, “समझौते” की फर्जी खबरों द्वारा व्यर्थ की आशाओं को परोस रहे हैं.
युद्ध को तुच्छ बनाने के लिए लाशों और धुएं की घ्रणित गंध का आदी होना, सबसे बड़ा विश्वासघात, उन गंभीर खतरों को छिपा रहा है जो मानवता को खतरे में डालते हैं, यह उन सभी खतरों के प्रति अंधा होना है जो स्थायी रूप से हमारे सिर पर मंडरा रहे हैं.
अफ्रीका ,एशिया और सेंट्रल अमेरिका के लाखों लोग युद्ध के अलावा और किसी वास्तविकता से परचित नहीं. वे पालने से लेकर कब्र तक, वे बर्बरता के समुद्र में दुबकी लगाते रहते हैं ,जहां सभी प्रकार के अत्याचार, बाल सैनिकों की भर्ती, दंडात्मक सैन्य अभियान, बंधक बनाने, पूरी आबादी का विस्थापन,अंधाधुन्ध बममारी का खतरा बढ़ता जा रहा है.
अतीत में जो युद्ध अगली पंक्तियों और कुछ लडाकों तक सीमित थे,अब 20वी और 21वीं सदी के युद्ध सम्पूर्ण युद्ध हैं जो अपने अंदर समूचे सामाजिक जीवन को घेर लेते हैं और उनके प्रभाव दुनियां भर में फैले हुए हैं. ये युद्ध सभी देशों को नीचे धकेल रहे हैं चाहे वे देश उन युद्धों में भागीदार हों अथवा जो प्रत्यक्ष रूप से विरोधी नहीं हैं. 20वीं और 21वीं सदी के युद्धों में, ग्रह पर कोई भी निवासी या स्थान उनके घातक प्रभाव से नहीं बच सकता।
अगली पंक्ति, जो जमीन पर हजारों किलोमीटर तक फैल सकती है, तथा अन्तरिक्ष के माध्यम से समुद्र और हवा में विस्तार पा सकती है, बमों, गोलीबारी,बारूदी सुरंगों और कई मामलों में “दोस्ताना आग” द्वारा जीवन को छोटा कर दिया जाता है. एक जानलेवा पागलपन द्वारा ग्रसित, उच्च रेंकों द्वारा थोपे गए आतंक के माध्यम से मजबूर और चरम स्थितयों में फंसे सभी भागीदारों को सबसे अधिक आत्मघाती, आपराधिक और विनाशकारी कार्यों के लिए मजबूर किया जाता है.
सैन्य मोर्चे की अग्रिम पंक्ति में विनाश की अति-आधुनिक मशीनों की निरंतर तैनाती के साथ “दूरस्थ युद्ध ’जो बिना रुके हजारों बम, गिराने वाले विमान, दुश्मन के ठिकानों पर हमले करने के लिए दूर से नियंत्रित ड्रोन; मोबाईल या स्थाई तोपखाना, फ़ौज दुश्मन को लगातार मार रही है.
तथाकथित फ्रंट एक स्थायी रंगमंच बन जाता है जिसमें समूची आबादी को बंधक बना लिया जाता है, जहाँ पूरा शहर समय- समय पर होने वाली बममारी से कोई भी मौत का शिकार हो सकता है. उत्पादन के क्षेत्रों में लोग बंदूक की नोंक पर काम करने को मजबूर होते हैं, पुलिस पार्टियों, ट्रेड यूनियनों और सभी संस्थानों के नियंत्रण में, “मात्रभूमि की रक्षा’ की सेवा में किया जाने वाले कार्य पूँजीवादी शोषण, नरक से भी बड़ा नरक बन जाता है, जबकि एक ही समय में वे दुश्मनों के बमों से अलग होने जोखिम उठाते हैं.
नाटकीय रूप से दिया जाने वाला भोजन गन्दा बदबूदार सूप है, जहाँ न बिजली है और न पानी और न गर्म रखने वाले यंत्र हैं. लाखों लोग का जीवन जानवरों से भी बदतर बन जाता है. जहाँ आसमान से गिरने वाले हजारों गोले मौत बरसाते हैं या भयानक पीड़ा देते हैं. जमीन पर तैनात असंख्य पुलिस, “मात्रभूमि की रक्षक” कहे जाने वाले भाड़े के राज्य सैनिकों, सशस्त्र ठगों द्वारा गिरफ्तार किये जाने का खतरा हमेशा बना रहता है. शरण लेने के लिए आपके पास सिर्फ चूहों से भरे गंदे और बदबूदार तहखाने रह जाते हैं. सम्मान, सभी से प्राथमिक एकजुटता, आपसी विश्वास तर्कसंगत विचार, और व स्थिति जिसमें पार्टिया और ट्रेड यूनियनें उत्साह के साथ भाग लेते हैं, न सिर्फ सरकार द्वारा बल्कि राष्ट्रीय संघ द्वारा फैलाये गये आतंक के माहौल में बह गए हैं. अब वहां बेतुकी अफवाहें, अत्यधिक अविश्वसनीय खबरें निरंतर प्रसारित होते हैं जिससे निदा, अंधाधुन्द संदेह, बड़े पैमाने पर तनाव और तबाही का उन्मादी माहौल पैदा होता है.
युद्ध एक ऐसी बर्बरता है जो सरकारों द्वारा जानबूझ कर नियोजित की जाती है ,जो जानबूझ कर घ्रणा, “ अन्य से भय” मनुष्य के बीच दरार और विभाजन, मौत के लिए यातना, अधीनता,सामाजिक विकास, शक्ति सम्न्धों के संस्थाकरण को एकमात्र तर्क के रूप में प्रचारित कर इसे बढाती है, यूक्रेन में जापोरिजहिंयंस परमाणु ऊर्जा संयत्र के आसपास हिंसक लड़ाई से पता चलता है कि दोनों पक्षों को चैरनोविल से भी बदतर और यूरोप की आबादी के लिए जबर्दस्त डरावने परिणामों के साथ एक रेडियोधर्मी तबाही को भडकाने के जोखिम के बारे में कोई संदेह नहीं है. गृह पर परिमाणु हथियारों का खतरा मडरा रहा है.
युद्ध की विचारधारा.
पूंजीवाद, इतिहास की सबसे पाखंडी और स्वार्थपूर्ण व्यवस्था है. न्याय, शांति, प्रगति, मानव अधिकार जैसे ऊँचे आदर्शों से सजे अपने हितों को "जनता के हित" के रूप में पेश करना ही इसकी संपूर्ण वैचारिक कला है.
सभी राज्य, इसे न्यायोचित ठहराने और अपने "नागरिकों" को मारने के लिए तैयार रहने के लिए इसे लकडभग्गा में बदलने के लिए डिज़ाइन की गई युद्ध की एक विचारधारा गढ़ते हैं, "युद्ध व्यवस्थित,संगठित, विशाल हत्या है. लेकिन सामान्य मनुष्यों में यह सुनियोजित हत्या तभी संभव है जब पहले नशे की स्थिति निर्मित हो चुकी हो. युद्ध करने वालों का यह हमेशा से आजमाया और परखा हुआ तरीका रहा है. कार्रवाई की पाशविकता को विचार और इंद्रियों की एक अनुरूप पाशविकता मिलनी चाहिए; बाद वाले को पहले वाले को तैयार करना और साथ देना चाहिए" (रोजा लक्समबर्ग, द जूनियस पैम्फलेट).
शांति, महान लोकतंत्रों के पास उनकी युद्ध विचारधारा की आधारशिला के रूप में है "शांति के लिए" प्रदर्शनों ने हमेशा साम्राज्यवादी युद्धों की तैयारी की है. 1914 की गर्मियों में और 1938-39 में लाखों लोगों ने "सद्भावना के लोगों", शोषकों और शोषितों के हाथों में नपुंसक की तरह रोते हुए "शांति के लिए" प्रदर्शन किया, जिसे "लोकतांत्रिक" पक्ष युद्ध की गतिव्रद्धि को सही ठहराने के लिए इस्तेमाल करने की तैयारी कभी बंद नहीं करता.
प्रथम विश्व युद्ध में, शांति के नाम पर वध करने के लिए, जर्मनी ने "शांति की रक्षा" में अपने सैनिकों को जुटाया था, जो "अपने ऑस्ट्रियाई सहयोगी पर साराजेवो के हमले से बिखर गया" लेकिन विरोधी पक्ष में, फ्रांस और ब्रिटेन "जर्मनी द्वारा बिखर गए.” द्वितीय विश्व युद्ध में, फ्रांस और ब्रिटेन ने हिटलर की महत्वाकांक्षाओं के सामने म्यूनिख में "शांति" का प्रयास किया, जबकि यथार्थ में उन्मादी रूप से युद्ध की तैयारी कर रहे थे, और हिटलर और स्टालिन की संयुक्त कार्रवाई से पोलैंड पर आक्रमण ने उन्हें जाने का सही बहाना दिया. युद्ध, यूक्रेन में, 24 फरवरी को आक्रमण से कुछ घंटे पहले तक पुतिन ने कहा कि वह "शांति" चाहते हैं, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका ने पुतिन की गर्मजोशी की लगातार निंदा की.
राष्ट्र, राष्ट्रीय सुरक्षा और इसके इर्द-गिर्द घूमते तमाम वैचारिक हथियार (जातिवाद, धर्म आदि) सर्वहारा वर्ग और पूरी आबादी को साम्राज्यवादी कत्लेआम में लामबंद करने के लिए हुक हैं. "शांति" के समय में पूँजीवाद, "लोगों के बीच सह-अस्तित्व" की घोषणा करता है, लेकिन साम्राज्यवादी युद्ध के साथ सब कुछ गायब हो जाता है, फिर मुखौटे उतर जाते हैं और हर कोई विदेशियों के प्रति घृणा और राष्ट्र की कट्टर रक्षा का राग अलापने लगता है.
वे सभी अपने युद्धों को "रक्षात्मक युद्धों " के रूप में प्रस्तुत करते हैं. सौ साल पहले, सैन्य बर्बरता के प्रभारी मंत्रालयों को "युद्ध मंत्रालय" कहा जाता था; आज उन्हें घोर पाखंड के साथ "रक्षा मंत्रालय" कहा जाता है. रक्षा, युद्ध का अंजीर का पत्ता है, जहां न कोई आक्रमणकारी राष्ट्र नहीं और न कोई हमले का शिकार राष्ट्र. वे सभी युद्ध की घातक मशीनरी में सक्रिय भागीदार हैं. वर्तमान युद्ध में रूस "आक्रमणकारी" के रूप में प्रकट होता है क्योंकि यह वह देश है जिसने यूक्रेन पर आक्रमण करने की पहल की है, लेकिन इससे पहले संयुक्त राज्य अमेरिका ने मैक्याविलियन तरीके से पुरानी वारसॉ संधि के कई देशों में नाटो का विस्तार किया जहां प्रत्येक कड़ी को अलग-अलग करके देखना संभव नहीं है, एक शताब्दी से भी अधिक समय से पूरी मानवता को जकड़े हुए साम्राज्यवादी टकराव की रक्तरंजित श्रखला को देखना आवश्यक है.
वे हमेशा अपने युद्धों को "स्वच्छ युद्ध" की बात करते हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार "मानवीय नियमों" का पालन करता है (या पालन करना चाहिए). " यह निरंकुश सनक और पाखंड के साथ परोसा गया एक घृणित धोखा है! पतनशील पूंजीवाद के युद्ध, दुश्मन के पूर्ण विनाश के अलावा किसी अन्य नियम से नहीं जीते हैं, और इसमें दुश्मन के विषयों को निर्मम बमबारी से आतंकित करना शामिल है. युद्ध में शक्ति का एक रिश्ता स्थापित होता है, जहां कुछ भी हो, सबसे क्रूर बलात्कार से और अपने स्वयं के "नागरिकों" के खिलाफ सबसे अंधाधुंध आतंक के लिए दुश्मन की आबादी को सजा दी जाती है. यूक्रेन पर रूस की बमबारी, इराक पर अमेरिकी बमबारी के नक्शेकदम पर चलती है, अमेरिकी जैसे अफगानिस्तान या सीरिया में रूसी सरकारें और वियतनाम से पहले; मेडागास्कर और अल्जीरिया जैसे अपने पूर्व उपनिवेशों पर फ्रांस द्वारा बमबारी; "लोकतांत्रिक के सहयोगियों" द्वारा ड्रेसडेन और हैम्बर्ग की बमबारी; और हिरोशिमा और नागासाकी की परमाणु बर्बरता, 20वीं और 21वीं सदी के युद्धों के साथ-साथ सभी पक्षों द्वारा बड़े पैमाने पर विनाश के तरीके अपनाए गए हैं, हालांकि लोकतांत्रिक पक्ष आमतौर पर इसका ध्यान उन छिपे स्तम व्यक्तियों को उप-ठेके पर देने का रखता है जिन पर दोष लगाया जाता है.
वे "सिर्फ युद्धों" की बात करने का साहस करते हैं! यूक्रेन का समर्थन करने वाले नाटो पक्ष का कहना है कि यह निरंकुशता और पुतिन के तानाशाही शासन के खिलाफ लोकतंत्र की लड़ाई है और पुतिन का कहना है कि वह यूक्रेन को नाजीवाद से मुक्त करेंगे, जो दोनों ही कोरे झूठ है. "लोकतंत्र" के पक्ष में उसके हाथ उतने ही खून से सने है जितने अनगिनत युद्धों से खून से लथपथ है जो उन्होंने सीधे (वियतनाम, यूगोस्लाविया, इराक, अफगानिस्तान) या परोक्ष रूप से (लीबिया, सीरिया, यमन) उकसाया है; समुद्र में या संयुक्त राज्य अमेरिका या यूरोप के सीमावर्ती क्षेत्रों में मारे गए हजारों प्रवासियों के खून से यूक्रेनी राज्य यूक्रेनी भाषा और संस्कृति को लागू करने के लिए आतंक का उपयोग करता है. यह रूसी बोलने के एकमात्र अपराध के लिए श्रमिकों को मारता है; यह सड़कों पर या सड़कों पर पकड़े गए किसी भी युवा को जबरन भर्ती करता है; यह अस्पतालों सहित, मानव ढाल के रूप में आबादी का उपयोग करता है; यह आबादी को आतंकित करने के लिए नव-फासीवादी गिरोहों को तैनात करता है. अपने हिस्से के लिए, पुतिन, बमबारी, बलात्कार और सारांश निष्पादन के अलावा, हजारों परिवारों को दूरदराज के स्थानों में यातना शिविरों में विस्थापित करता है; "मुक्त" प्रदेशों में आतंक फैलाता है और सेना के लिए यूक्रेन वासियों को अग्रिम पंक्ति में बूचड़खाने भेजकर भर्ती करता है.
युद्ध के वास्तविक कारण
दस हजार साल पहले आदिम साम्यवाद को तोड़ने का एक साधन आदिवासी युद्ध था ,तब से, शोषण पर आधारित उत्पादन के तरीकों के तत्वावधान में, युद्ध सबसे बुरी आपदाओं में से एक रहा है, लेकिन कुछ युद्ध इतिहास में एक प्रगतिशील भूमिका निभाने में सक्षम रहे हैं, उदाहरण के लिए, पूंजीवाद के विकास में, नए राष्ट्रों के निर्माण में, विश्व बाजार का विस्तार करने में, उत्पादक शक्तियों के विकास को प्रोत्साहित करने में युद्धों की प्रगतिवादी भूमिका रही है.
हालाँकि, प्रथम विश्व युद्ध के बाद से दुनिया पूरी तरह से पूंजीवादी शक्तियों के बीच विभाजित हो गई है, ताकि प्रत्येक राष्ट्रीय राजधानी के लिए एकमात्र रास्ता अपने प्रतिद्वंद्वियों के प्रभाव वाले क्षेत्रों बाजारों, रणनीतिक क्षेत्रों को जीतना हो. यह युद्ध और इसके साथ चलने वाली हर चीज़ (सैन्यवाद, हथियारों का विशाल संचय, राजनयिक गठजोड़) को पूंजीवाद के जीवन का स्थायी तरीका बना देता है. यह एक निरंतर साम्राज्यवादी दबाव दुनिया को जकड़ लेता है और बड़े या छोटे सभी राष्ट्रों को नीचे धकेल लेता है, चाहे उनका वैचारिक मुखौटा और बहाना कुछ भी हो, सत्ताधारी पार्टियों का झुकाव, उनकी नस्लीय संरचना या उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत कुछ भी हो. सभी राष्ट्र साम्राज्यवादी हैं. "शांतिपूर्ण और तटस्थ" राष्ट्रों का मिथक एक शुद्ध धोखा है. यदि कुछ राष्ट्र "तटस्थ" नीति अपनाते हैं, तो यह साम्राज्यवादी प्रभाव के अपने स्वयं के क्षेत्र को तराशने के लिए सबसे दृढ़ विरोधी शिविरों के बीच संघर्ष का लाभ उठाने की कोशिश करना है. जून 2022 में, स्वीडन, एक ऐसा देश जो 70 से अधिक वर्षों से आधिकारिक तौर पर तटस्थ रहा है, वह भी नाटो में शामिल हो गया है, लेकिन उसने "किसी भी आदर्श के साथ विश्वासघात नहीं किया है", उसने अपनी साम्राज्यवादी नीति को "अन्य तरीकों से" जारी रखा है.
हथियारों के निर्माण में लगे निगमों के लिए युद्ध निश्चित रूप से अच्छा व्यवसाय है, और यह अस्थायी रूप से विशेष देशों को लाभान्वित भी कर सकता है, लेकिन समग्र रूप से पूंजीवाद के लिए, यह एक आर्थिक तबाही है, एक तर्कहीन बर्बादी है, एक घटाव की ओर क्रम है जो विश्व उत्पादन पर भारी पड़ता है और जो अनिवार्य रूप से और नकारात्मक रूप से कारण बनता है. ऋणग्रस्तता, मुद्रास्फीति और पारिस्थितिक विनाश, कभी भी ऐसा नहीं है जो पूंजीवादी संचय को बढ़ा सके.
प्रत्येक राष्ट्र के अस्तित्व के लिए युद्ध एक घातक आर्थिक भार,एक अपरिहार्य आवश्यकता है. संयुक्त सोवियत संघ का पतन इस लिए हुआ क्योंकि यह संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ टकराव की पागल हथियारों की दौड़ का सामना नहीं कर सका और जो बाद में 1980 के दशक में स्टार वार्स कार्यक्रम की तैनाती के साथ चरम पर पहुंच गया. संयुक्त राज्य अमेरिका, जो द्वितीय विश्व युद्ध का महान विजेता था और 1960 के दशक के अंत तक एक शानदार आर्थिक उछाल का आनंद लिया था, उसने अपने साम्राज्यवादी आधिपत्य को बनाए रखने के लिए कई बाधाओं का सामना किया है, निश्चित रूप से ,ब्लाकों के विघटन के बाद से, जिसने एक के उद्भव का समर्थन किया है. नई साम्राज्यवादी भूखों को फिर से जगाने की गति - विशेष रूप से अपने पूर्व 'सहयोगियों' के बीच - प्रतिस्पर्धा की और हर एक अपने लिए, बल्कि उस विशाल सैन्य प्रयास के कारण भी जो अमेरिकी सेना को 80 से अधिक वर्षों के लिए करना पड़ा है और इसके महंगे सैन्य अभियान हुए हैं विश्व की अग्रणी शक्ति के रूप में अपनी स्थिति को बनाए रखने का उपक्रम करना पड़ा.
पूंजीवाद अपने जीनों में, अपने डीएनए में, सबसे अधिक तीव्र प्रतिस्पर्धा, प्रत्येक के खिलाफ सभी और हर किसी के लिए, प्रत्येक पूंजीपति के लिए, साथ ही हर देश के लिए वहन करता है. पूँजीवाद की यह " जैविक" प्रवृत्ति अपने उत्कर्ष काल में स्पष्ट रूप से प्रकट नहीं हुई क्योंकि प्रत्येक राष्ट्रीय राजधानी को अभी भी अपने प्रतिद्वंद्वियों के साथ संघर्ष में प्रवेश करने की आवश्यकता के बिना अपने विस्तार के लिए पर्याप्त क्षेत्र प्राप्त थे. 1914-89 के बीच बड़े साम्राज्यवादी गुटों के गठन से यह कमज़ोर हो गया था. इस क्रूर अनुशासन के क्रूर अंत के साथ, केन्द्र प्रसारक प्रवृत्तियाँ जानलेवा अव्यवस्था की दुनिया को आकार दे रही हैं, जहाँ विश्व वर्चस्व की वैश्विक महत्वाकांक्षाओं के साथ कोई भी साम्राज्यवाद, साथ ही क्षेत्रीय ढोंगों के साथ साम्राज्यवाद, और अधिक स्थानीय साम्राज्यवाद सभी अपनी विशाल भूखों और अपने हित का पालन करने के लिए मजबूर हैं. इस परिदृश्य में, संयुक्त राज्य अमेरिका अपनी भारी सैन्य शक्ति को लगातार तैनात करके, इसे लगातार बनाकर, और निरंतर, दृढ़ता से अस्थिर करने वाले सैन्य अभियानों को शुरू करके किसी को भी धुंधला करने से रोकने की कोशिश करता है.1990 में, सोवियत संघ रूस की समाप्ति के बाद, शांति और समृद्धि की "नई विश्व व्यवस्था" के वादे को तुरंत खाड़ी युद्ध और फिर मध्य पूर्व, इराक और अफगानिस्तान में युद्धों द्वारा विश्वास दिलाया गया, जिसने युद्ध जैसी प्रवृत्तियों को हवा दी. इस तरह की "दुनिया में सबसे लोकतांत्रिक साम्राज्यवाद", संयुक्त राज्य अमेरिका, अब युद्ध जैसी अराजकता फैलाने और विश्व की स्थिति को अस्थिर करने का मुख्य एजेंट है.
अमेरिका के नेतृत्व को चुनौती देने के लिए चीन पहले क्रम का दावेदार बनकर उभरा है. इसकी सेना, अपने आधुनिकीकरण के बावजूद, अभी भी अपने अमेरिकी प्रतिद्वंद्वी की ताकत और अनुभव हासिल करने से दूर है; इसकी युद्ध तकनीक, इसके आयुध और प्रभावी सैन्य तैनाती का आधार अभी भी सीमित और नाजुक है, जो अमेरिका से बहुत दूर है; चीन प्रशांत क्षेत्र में शत्रुतापूर्ण शक्तियों (जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, ऑस्ट्रेलिया, आदि) की एक श्रृंखला से घिरा हुआ है, जो उसके साम्राज्यवादी समुद्री विस्तार को रोकते है. इस प्रतिकूल स्थिति का सामना करते हुए, इसने एक विशाल आर्थिक-साम्राज्यवादी उद्यम, सिल्क रोड की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य दुनिया के सबसे अस्थिर क्षेत्रों से गुजरते हुए मध्य एशिया के माध्यम से एक वैश्विक उपस्थिति और भूमि विस्तार स्थापित करना है. यह एक बहुत ही अनिश्चित परिणाम के साथ एक प्रयास है जिसके लिए अपने नियंत्रण के साधनों से परे कुल और अथाह आर्थिक और सैन्य निवेश और राजनीतिक-सामाजिक लामबंदी की आवश्यकता होती है, जो अनिवार्य रूप से अपने राज्य तंत्र की राजनीतिक कठोरता पर आधारित है, स्टालिनवाद, माओवाद की एक भारी विरासत अपनी दमनकारी ताकतों का व्यवस्थित और क्रूर उपयोग, ज़बरदस्ती और एक विशाल, अति-नौकरशाही राज्य तंत्र के अधीन होना, जैसा कि सरकार की "कोविद शून्य " नीति के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों की बढ़ती संख्या में देखा गया था. यह पथभ्रष्ट अभिविन्यास और अंतर्विरोधों का संचय है जो इसके विकास को गहराई से कमजोर करता है, अंततः चीन के मिट्टी के पैर वाले कोलोसस को कमजोर कर सकता है. यह अमेरिका की क्रूर और धमकी भरी प्रतिक्रिया, जानलेवा पागलपन की डिग्री, बर्बरता और सैन्यवाद (सामाजिक जीवन के बढ़ते सैन्यीकरण सहित) में अंधी उड़ान की डिग्री को दर्शाती है, कि पूंजीवाद एक सामान्यीकृत कैंसर के लक्षण के रूप में पहुंच गया है जो सबको निगल कर दुनियाँ और अब सीधे तौर पर पृथ्वी के भविष्य और मानवता के जीवन के लिए खतरा है.
तबाही का बवंडर जो दुनिया को डराता है.
यूक्रेन में युद्ध नीले आकाश से निकला तूफान नहीं है; यह 21वीं सदी की सबसे खराब महामारी (अब तक) के बाद है, कोविड, जिसमें 15 मिलियन से अधिक लोग मारे गए हैं, और जिसका कहर चीन में कठोर लॉकडाउन के साथ जारी रहा. हालाँकि, दोनों को उत्तेजना के साथ-साथ मानवता को प्रभावित करने वाली तबाही की एक श्रृंखला के संदर्भ में देखा जाना चाहिए: पर्यावरण विनाश; जलवायु परिवर्तन और इसके अनेक परिणाम; अकाल अफ्रीका, एशिया और मध्य अमेरिका में बड़ी ताकत के साथ लौट रहा है; शरणार्थियों की अविश्वसनीय लहर, जो 2021 में विस्थापित या पलायन करने वाले 100 मिलियन लोगों के अभूतपूर्व आंकड़े तक पहुंच गई; केंद्रीय देशों में व्याप्त राजनीतिक अव्यवस्था जैसा कि हमने ब्रिटेन में सरकारों यूक्रेन में केंद्रीय देशों में व्याप्त राजनीतिक अव्यवस्था,जैसा कि हमने ब्रिटेन में सरकारों या संयुक्त राज्य अमेरिका में लोकलुभावन नारों के भार तथा सबसे दकियानूसी विचारधाराओं के उदय के साथ देखा है.
महामारी ने उन विरोधाभासों को उजागर कर दिया है जो पूंजीवाद को कमजोर करते हैं. एक सामाजिक व्यवस्था जो प्रभावशाली वैज्ञानिक प्रगति का दावा करती है, उसके पास एकांतवास की मध्ययुगीन पद्धति के अलावा कोई अन्य सहारा नहीं है, जबकि इसकी स्वास्थ्य प्रणालियाँ ध्वस्त हो गई हैं और इसकी अर्थव्यवस्था लगभग दो वर्षों से पंगु हो गई है, जिससे आसमान को छूता आर्थिक संकट बढ़ गया है. एक सामाजिक व्यवस्था जो अपने झंडे के रूप में प्रगति का दावा करती है, सबसे पिछड़ी और तर्कहीन विचारधाराओं को जन्म देती है, जो हास्यास्पद साजिश के सिद्धांतों के साथ महामारी के चारों ओर फैल गई है, उनमें से कई "महान विश्व नेताओं" के मुंह से निकली हैं.
सबसे खराब पारिस्थितिक आपदा में महामारी का सीधा कारण है जो वर्षों से मानवता को खतरे में डाल रही है. मानव आवश्यकताओं की संतुष्टि से नहीं बल्कि लाभ से प्रेरित, पूंजीवाद प्राकृतिक संसाधनों तथा मानव श्रम का शिकारी है, क्योंकि लेकिन साथ ही, यह प्राकृतिक संतुलन और प्रक्रियाओं को नष्ट करने की प्रवृत्ति रखता है, उन्हें अराजक तरीके से संशोधित करता है, एक जादूगर के प्रशिक्षु की तरह, तेजी से विनाशकारी परिणामों के साथ सभी प्रकार की तबाही को भड़काते हैं: ग्लोबल वार्मिंग, सूखा, बाढ़, आग, को बढ़ावा देने वाले ग्लेशियरों और हिमखंडों का पतन, अप्रत्याशित परिणामों के साथ पौधों और जानवरों की प्रजातियों का बड़े पैमाने पर गायब होना और मानव प्रजातियों के बहुत गायब होने की सूचना देना जिससे पूंजीवाद आगे बढ़ रहा है. पारिस्थितिक आपदा युद्ध की आवश्यकताओं से, स्वयं युद्ध संचालन से (परमाणु हथियारों का उपयोग एक स्पष्ट अभिव्यक्ति है) और विश्व आर्थिक संकट के बिगड़ने से बढ़ जाती है, जो हर राष्ट्रीय राजधानी को कई क्षेत्रों को तबाह करने के लिए एक कच्चे मॉल की हताश खोज में मजबूर करता है. 2022 की गर्मी पारिस्थितिक स्तर पर मानवता के सामने गंभीर खतरों का एक स्पष्ट उदाहरण है: औसतन और अधिकतम तापमान में वृद्धि - अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रिकॉर्ड शुरू होने के बाद से सबसे गर्म गर्मी - राइन, पोलैंड थेम्स जैसी नदियों को प्रभावित करने वाला व्यापक सूखा, विनाशकारी जंगल की आग,पाकिस्तान जैसी बाढ़ देश के सतह क्षेत्र के एक तिहाई हिस्से को प्रभावित करती है, भूस्खलन और, आपदा के इस विनाशकारी परिदृश्य के बीच, सरकारें युद्ध के प्रयास के नाम पर अपने हास्यास्पद 'पर्यावरण संरक्षण' उपायों को वापस ले लेती हैं.
1919 में कम्युनिस्ट इंटरनेशनल की पहली कांग्रेस द्वारा अपनाए गए घोषणा पत्र मे कहा: "उत्पादन के पूंजीवादी तरीके का अंतिम परिणाम अराजकता है. "वैज्ञानिक द्रष्टिकोण” के विपरीत यह सोचना कि सभी विनाश विभिन्न कारणों से पैदा हुए एक अस्थायी प्रतिमान से अधिक और कुछ नहीं, आत्म्घाती और तर्कहीन है.यह गुजरने वाली घटनाओं के योग से अधिक, प्रत्येक अलग-अलग कारणों से उत्पन्न हुई एक निरंतरता है, अंतर्विरोधों का एक संचय है, जो उन्हें एक साथ बांधने वाला आम खूनी धागा बनाता है, जो मानवता के लिए बना खतरा एक घातक बवंडर में परिवर्तित हो जाता है.
- हम पूँजीवाद के सभी अंतर्विरोधों को एक-दूसरे के साथ मिलाते हुए और विनाश और अराजकता के कारकों पर बढ़ते प्रभाव को भड़काते हुए देख रहे हैं;
- अर्थव्यवस्था न केवल संकट में डूबी है, बल्कि बढ़ती अव्यवस्था (निरंतर आपूर्ति की अड़चनें, अतिउत्पादन की स्थितियों का अभिसरण और माल और श्रम की कमी) में भी डूबी हुई है;
- अधिकांश औद्योगीकृत देश, जिन्हें समृद्धि और शांति का मरुस्थल माना जाता है, अस्थिर हो रहे हैं और स्वयं अंतरराष्ट्रीय अस्थिरता में आश्चर्यजनक वृद्धि के प्रमुख कारक बन रहे हैं.
जैसा कि हमने अपनी 9वीं कांग्रेस (1991) के घोषणापत्र में कहा था: "मानव समाज ने पिछले दो विश्व युद्धों के दौरान इतने बड़े पैमाने पर कत्लेआम नहीं देखा है. कभी भी सेवा या विनाश, मृत्यु में इतने बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक प्रगति का उपयोग नहीं किया गया है और मानव दुख और धन का ऐसा संचय कभी भी साथ-साथ नहीं हुआ, वास्तव में, इस तरह के अकाल और पीड़ा के रूप में पिछले दशकों के दौरान तीसरी दुनिया के देशों में पैदा हुआ. लेकिन ऐसा लगता है कि मानवता अभी तक गहराई तक नहीं पहुंची है. पूँजीवाद के पतन का अर्थ है व्यवस्था की मृत्यु-पीड़ा, लेकिन इस पीड़ा का अपना एक इतिहास है: आज, हम अपने अंतिम चरण में पहुँच चुके हैं, सामान्य अपघटन का चरण। मानव समाज जहाँ खड़ा है, वहीं सड़ रहा है” [3]
सर्वहारा की प्रतिक्रिया
युद्ध से समाज के सभी वर्गों में सर्वहारा ही सबसे अधिक प्रभावित होता है. “ आधुनिक युद्ध” एक विशाल औध्योगिक मशीन द्वारा छेड़ा गया है जो सर्वहारा वर्ग के शोषण की एक बड़ी तीव्रता की मांग करता है. सर्वहारा एक अन्तर्राष्ट्रीय वर्ग है जिसकी कोई मात्रभूमि नहीं, लेकिन मात्रभूमि के नाम पर लड़ा मजदूर वर्ग शोषण और दमन के लिए लडा जाने वाला युद्ध मजदूर वर्ग की हत्या है. सर्वहारा वर्गीय चेतना से लैस एक वर्ग है; युद्ध तर्कहीन टकराव, सभी जागरूक विचारों और प्रतिबिम्बों का परित्याग है. सर्वहारा वर्ग की रूचि सबसे स्पष्ट खोज में है; सत्य, जंजीरों में जकड़ा साम्राज्यवादी प्रचार के झूठ से दम तोड़ता हुआ सत्य, युद्धों में सबसे पहले शिकार होता सर्वहारा वर्ग भाषा, धर्म ,नस्ल और राष्ट्रीयता की बाधाओं से परे एक वर्ग है; युद्ध का घातक टकराव ,राष्ट्रों और आबादी के बीच अलग्गाव, विभाजन टकराव को मजबूर करता है. सर्वहारा वर्ग, भरोसे और आपसी एकजुटता का वर्ग है, युद्ध संदेह,“विदेशी”का खौफ,“ दुशमन “ की सबसे डरावनी घ्रणा है.
क्योंकि युद्ध,सर्वहारा के अस्तित्व के मूल पर हमला कर उसे विकृत करता है. सामान्यीकृत युद्ध सर्वहारा वर्ग की पूर्व हार को आवश्यक बनाता है. प्रथम विश्व युद्ध इसलिए संभव हुआ क्योंकि मजदूर वर्ग की तत्कालीन समाजवादी पार्टियाँ ने ट्रेड यूनियनों के साथ मिल कर हमारे वर्ग को धोखा दिया और दुश्मन के खिलाफ संघ के ढाँचे उनके पूंजीपतियों से जुड़ गए. लेकिन यह विस्वासघात काफी नहीं था. 1915 में, सामाजिक लोकतंत्र के बाम पंथियों ने जिम्बरवाल्ड के साथ एक समूह बनाया और विश्वक्रांति के लिए संघर्ष का झंडा बुलद किया. इसने जन संघर्षों के विकास में योगदान दिया जिसने 1917 की क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया और 1919- 23 में सर्वहारा वर्ग के हमले की विश्वव्यापी लहर; न केवल सर्वहारा अंतर्राष्ट्रीयता के सिद्धांतों की रक्षा में युद्ध के खिलाफ, बल्कि पूँजीवाद के खिलाफ मुखर हो कर शोषण की बर्बर और अमानवीय व्यवस्था को उखाड़ फेंकने की क्षमता रखता है.
1917-18 का एक अविनाशी सबक! प्रथम विश्व युद्ध कूटनीतिक बातचीत इस या उस साम्राज्यवादी शक्ति की विजय से समाप्त नहीं हुआ था.यह सर्वहारा के अन्तर्राष्ट्रीय क्रांतिकारी विद्रो द्वारा समाप्त हुआ था. इस बर्बरता को केवल सर्वहारा ही समाप्त कर सकता है.इसका वर्ग संघर्ष ही पूँजीवाद का विनाश कर सकता है.
दूसरे विश्व युद्ध का रास्ता खोलने के लिए पूंजीपति वर्ग ने सर्वहारा वर्ग की न केवल भौतिक बल्कि वैचारिक हार भी सुनिश्चित की. सर्वहारा वर्ग निर्मम आतंक के अधीन था जहाँ कहीं भी उसके क्रांतिकारी प्रयास आगे बढ़े थे; जर्मनी में नाजीवाद रूस में स्टालिनवाद के तहत, साथ ही इसे फासीवाद विरोधी झंडे और “ समाजवादी पित्रभूमि” सोवित संघ रूस की रक्षा के पीछे , वैचारिक रूप से भर्ती किया गया था. “ अपना आक्रमण शुरू करने में असमर्थ मजदूर वर्ग को दूसरे साम्राज्यवादी युद्ध में हाथपैर बाँध कर झोंक दिया गया था. प्रथम विश्व युद्ध के विपरीत,दुसरे विश्व युद्ध ने मजदूर वर्ग क्रांतिकारी तरीके से ऊपर उठने के साधन उपलब्ध नहीं कराए. इसके बजाय इसे,‘प्रतिरोध’‘फासीवाद विरोधी’ और औपनिवेशिक ‘रास्ट्रीय मुक्ति’
आन्दोलन की ‘महान जीत’ के पीछे लामबंद किया गया.( आई सी सी की पहली अन्तराष्ट्रीय कांग्रेस का घोषणा पत्र 1975 ).
1968 में वर्ग संघर्ष की ऐतिहासिक बहाली के बाद से, और इस अवध के दौरान जब दुनियां दो साम्राज्यवादी गुटों में बंटी हुई थी तब प्रमुख देशों के मजदूरों ने युद्ध द्वारा मांगे गए बलिदानों को देने पितृ भूमि की रक्षा के लिए अकेले जाने से इनकार कर दिया. यह स्थिति, 1989 के बाद से नहीं बदली है.
मंहगाई और युद्ध के खिलाफ संघर्ष
हालांकि, युद्ध के लिए केन्द्रीय देशों के सर्वहारा वर्ग की”गैर-लामबंदी” पर्याप्त नहीं है. 1989 के बाद ऐतिहासक घटनाक्रमों से एक दूसरा सबक उभरता है: युद्ध संचालन के लिए केवल निष्क्रियता, और पूंजीवादी बर्बरता के लिए सरल प्रतिरोध पर्याप्त नहीं है. इस स्तर पर बने रहने से मानवता के विनाश की दिशा में पाठ्यक्रम नहीं रुकेगा.
सर्वहारा को पूँजीवाद के विरुद्ध आम अंतरर्राष्ट्रीय हमले के राजनैतिक क्षेत्र में जाने की आवश्यकता है. केवल “मजदूर वर्ग” ही पूँजी के हमलों का जवाब देने में सक्षम होगा, और अंत में आक्रमण के इस बर्बर व्यवस्था को उखड़ फेंकेगा. धन्य है, वर्तमान ऐतिहासिक स्थिति में विशेष रूप से दाव पर क्या है, जिसके बारे में विशेष जागरूकता के नष्ट होने का खतरा जो सामाजिक विघटन पर मंडराता है; अपने वर्ग युद्ध को जारी रखने विकसित करने औए एकजुट करने का दृढ संकल्प को ; पूंजीपति वर्ग चाहे कितना ही विघठित क्यों न हो जाये,मजदूर वर्ग को अपने जाल में फंसाने की क्षमता बनाये रखता है. (सड़ांध पर थीसिस ,थीसिस 17)
विनाश, बर्बरता और तवाही के संचय की प्रष्ठभूमि, जिसकी हम निंदा करते हैं, वह पूंजीवाद का अपरिवर्तनीय आर्थिक संकट, इसके कामकाज की जड में है 1967 से पूँजीवाद एक आर्थिक संकट में फंस गया है जो पचास साल से बच नहीं पा रहा है.इसके विपरीत, जैसा कि 2018 से हो रही आर्थिक उथल- पुथल और बढती मुद्रास्फीति की वृद्धि से पता चलता है कि गरीबी,बेरोजगारी असुरक्षा और अकाल के अपने परिणामों के साथ स्थिति काफी बिगड़ रही है.
पूंजीवादी संकट इस समाज की नींब को ही प्रभावित करता है. मुद्रास्फीति,असुरक्षा बेरोजगारी नारकीय गति, मजदूरों के स्वास्थ्य,काम करने तथा रहने की बिगडती असहनीय स्थितियां मजदूर वर्ग के जीवन के निरंतर पतन की गवाही देती हैं. हालांकि, पूंजीपति वर्ग, सभी अकल्पनीय विभाजन बनाने की कोशिश करता है, कुछ को अधिक “विशेषाधिकार प्राप्त” स्थिति प्रदान करता है, मजदूरों की श्रेणियां जो हम इसकी मूर्खता में देखते हैं, एक और सम्भवतः पूँजीवाद के ऐतिहासिक परिप्रेक्षके बारे में मार्क्स द्वारा की गई भविश्यवाणी की सटीकता की पुष्टि करते हुए और जिसका अर्थशास्त्रियो और पूंजीपति वर्ग के अन्य विचारकों ने बहुत मजाक उड़ाया है.
पूँजीवाद के संकट को निर्मम रूप से बिगाड़ना वर्ग संघर्ष और वर्ग चेतना के लिए एक आवश्यक प्रेरणा है. संकट के प्रभावों के खिलाफ संघर्ष मजदूर वर्ग की ताकत और एकता के विकास का आधार है. आर्थिक संकट सीधे समाज के बुनियादी ढांचे को प्रभावित करता है; इसलिए यह समाज पर लदे सभी बर्बरता के मूल कारणों को उजागर करता है जिससे सर्वहारा वर्ग व्यवस्था को पूरी तरह नष्ट करने की आवश्यकता के प्रति सचेत हो जाता है और उसके पहलुओं को सुधारने की कोशिश नहीं करता.
पूँजीवाद के क्रूर हमलों के खिलाफ संघर्ष में और आमतौर पर अंधाधुंध तरीके से मजदूरों को प्रभावित करने वाली मंहगाई के खिलाफ, मजदूर अपनी लडाकू क्षमता विकसित करेंगे, वे स्वंय को एक ताकत के साथ एक वर्ग के रूप में पहचानने में सफल होंगे, और स्वायत्तता और समाज में एक ऐतिहासिक भूमिका निभाने लिए वर्ग संघर्ष का यह ऐतिहासिक विकास उन्हें पूँजीवाद को समाप्त करके युद्ध को समाप्त करने की क्षमता प्रदान करेगा.
अब यह परिप्रेक्ष उभरने लगा है: “ बुर्जुआ वर्ग के हमलों के के विरोध में, अब मजदूर वर्ग का गुस्सा बढ़ता जा रहा है और अब ब्रिटेन में मजदूर वर्ग दिखा रहा है कि एक बार फिर अपनी गरिमा के लिए लड़ने और पूँजी द्वारा मांग किये जाने वाले लगातार हो रहे बलिदानों को ख़ारिज करने के लिए तैयार है. यह अन्तराष्ट्रीय गतिशीलता का संकेत है. पिछली शर्दियों में, स्पेन और अमेरिका में हड़तालें दिखाई देने लगीँ; इस गर्मी में जर्मनी और बेल्जियम ने भी वाकआउट का अनुभव किया, और अब टिप्पणीकार आने वाले महीनों में फ़्रांस और इटली में “ विस्फोटक सामाजिक स्थिति “ की भविश्यवाणी कर रहे हैं. यह भविष्यवाणी करना संभव नहीं है कि निकट भविष्य में मजदूरों का जुझारूपन कब और कहाँ बड़े पैमाने पर उभरेगा, लेकिन एक बात निश्चित है: ब्रिटेन में श्रमिकों की लामबंदी का पैमाना एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है. अब निष्क्रियता और सपर्पण के दिन लद चुके हैं और मजदूरों की पीढियां अपना सर उठा रही हैं.(“ शासक वर्क वर्ग और अधिक बलिदानों की मांग करता है, मजदूर वर्ग की प्रातक्रिया संघर्ष करना है” आई सी सी , इंटरनेशनल लीफलेट. अगस्त 2022.)
हम निष्क्रियता और भटकाव के वर्षों में विराम देख रहे हैं. संकट के जवाब में मजदूरों में जुझारूपन की वापसी कम्युनिस्ट संगठनों में हस्तक्षेप से अनुप्राणित चेतना का बन सकती है. यह स्पष्ट है कि समाज के सड़ने में टूटने की प्रतेक अभिव्यक्ति मजदूरों के जुझारू प्रयाशों को धीमा करने, यहाँ तक कि उन्हें पहले पंगु बनाने का प्रबंध करती है: जैसा कि महामारी से प्रभातित फ़्रांस के 2019 के आन्दोलन में हुआ था. इसका अर्थ, संघर्षों के विकास के लिए अतिरिक्त कठिनाई है. हालाँकि, संघर्ष के अलावा और कोई रास्ता नहीं है,, संघर्ष ही पहली जीत है. विश्व सर्वहारा, अपने वर्ग शत्रु के राजनैतिक और ट्रेड यूनियन तंत्रों द्वारा तय की गई वाधाओं और फंदों से भरी एक प्रक्रिया के माध्यम से भी, कड़वी हार के साथ , अपनी वर्ग पहचान को पुन: प्राप्त करने में सक्षम होने की अपनी क्षमताओं को बरकरार रखता है और अंत में इस मरनासन्न व्यवस्था के इसके खिलाफ एक अन्तर्राष्ट्रीय आक्रमण शुरू करता है.
वाधाएं,जिन्हें वर्ग संघर्ष को पार करना है.
मजदूर आन्दोलन के ऐतिहासिक विकास क्रम में, वे देखते हैं कि इक्कीसवीं सदी का बीसवां दसक, काफी महत्वपूर्ण होगा. वे दिखाते हैं, जैसा कि अतीत की तुलना में 2020 से हमने पहले ही अधिक स्पष्ट रूप से देखा है कि पूँजीवाद की सड़ांध ने मानवता के विध्वंस के परिप्रेक्ष को प्रस्तुत किया है. विपरीत ध्रुव पर सर्वहारा वर्ग अक्सर हिचकिचाहट और कमजोरियों से भरे हुए अपने पहले कदम, साम्यवादी परिप्रेक्ष को सामने लाने की अपनी ऐतिहासिक क्षमता की ओर उठाना शुरू कर देगा. विकल्प के दोनों ध्रुवों-मानवता का विनाश या साम्यवादी क्रांति को प्रस्तुत किया जायेगा, हालाँकि, उत्तरार्ध अभी भी बहुत दूर है और खुद को मुखर करने में भारी वाधाओं का सामना कर रहा है.
1. पूंजीपति वर्ग ने रूस की क्रांति के प्रारंभिक विजय के महान झटके और 1917-23 विश्व क्रांतिकारी लहर से सबक लिया है, जिसने 1848 में कम्युनिस्ट घोषणा पत्र “ एक भूत – साम्यवाद का भूत, यूरोप को सता रहा है .... पूंजीपति वर्ग ... अपनी कब्र खोदने वाले सर्वहारा वर्ग को पैदा करता है, को व्यवहार में में उतारा है.
यह सर्वहारा के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग करता है जैसाकि 1917 (4) में रूस और 1918 में जर्मनी में या 1980 में पोलैंड में सामूहिक हड़ताल में देखा गया.
इससे ट्रेड यूनियनों और सभी राजनैतिक रंगों से बने श्रमिकों के संघर्षों के नियंत्रण , विचलन और तोड़फोड़ का विशाल तन्त्र विकसित किया है जोकि अति दक्षिण पन्थ से चरम वामपंथ तक है.
सर्वहारा वर्ग की चेतना और संघर्षो का प्रतिकार करने और बाधा डालने के उद्देश्य से निरंतर वैचारिक अभ्यं चलाने और राजनैतिक युद्धाभियासों को सवन्वित करने के लिए अपने राज्य और जनसंचार माध्यमों के सभी उपकरणों का उपयोग करता है.
2. पूँजीवाद की सड़ांध, भविष्य में विश्वास की कमी को बढाता है. यह अपने आप में सर्वहारा वर्ग के विश्वास को भी कमजोर करता है और पूँजीवाद को उखाड फेंकने में सक्षम एकमात्र वर्ग के रूप में अपनी ताकत में “ हर आदमी को अपने लिए” जन्म देता है, मजदूरों के संघर्षों के विकास और सबसे बढ़ कर उनका क्रांतिकारी राजनीतिकरण में, सामान्यीकृत प्रतिस्पर्धा, विरोधी श्रेणियों में सामाजिक विघटन , निगमवाद सभी वाधाएं हैं.
3 . इस सन्दर्भ में, सर्वहारा को अंतर – वर्गवादी संघर्षों या टुकड़े-टुकड़े लामबंदी (नारीवाद, जातिवाद विरोधे, जलवायु या पर्यावरण संम्बन्धी सवालों ....) पूंजीपतियों के गुटों के बीच टकरावों में धकेल कर सर्वहारा के संघर्षों को भटकाने का दरबाजा खोलते हैं.
4 . “समय, मजदूर वर्ग के पक्ष में नहीं है. जब तक अकेले साम्राज्यवादी युद्ध से समाज के विनाश को खतरा आसन्न था, तब तक सर्वहारा वर्ग के संघर्ष का तथ्य है कि सामाजिक विघटन मजदूर वर्ग को नियंत्रित किये बिना मानवता को नष्ट कर सकता है. क्योंकि जहाँ मजदरों के संघर्ष अर्थव्यवस्था के पतन का विरोध कर सकते हैं. लेकिन, इसके विपरीत, जो साम्राज्यवादी युद्ध जो सर्वहारा द्वारा पूंजीपति वर्ग के ( सिद्धांत ) स्वीकार कर लेने की स्थिति में मजदूर वर्ग को नियंत्रित किए बिना ही सामाजिक सड़ांध को रोकने में शक्तिहीन हो जाता है. जबकि मजदूरों के संघर्ष, आर्थिक ढांचे को विघटित होने से रोक सकते हैं, तब वे व्यवस्था के अन्दर सड़ांध को रोकने में असमर्थ हो जाते हैं. इस प्रकार , सड़ांध द्वारा पेश की गया विश्व युद्ध का खतरा कहीं दूर दिखाई दे सकता है, इसके विपरीत स्थितियां मौजूद हैं, जो आज की स्थिति नहीं है) इसके विपरीत यह स्थिति अधिक घातक है.”
( सड़ांध पर थीसिस-16 )
खतरों की इस विशालता को हमें भाग्यवाद में नहीं धकेलना चाहिए. सर्वहारा वर्ग की ताकत, उसकी कमजोरियां, उसकी कठिनाइयाँ उन वाधाओं की चेतना है जो दुश्मन या परस्थिति स्वयं उसके संघर्ष के खिलाफ खड़ा करती है.” सर्वहारा वर्ग की क्रांतियाँ ...लगातार खुद की आलोचना करती हैं, खुद को अपने रास्ते में लगातार वादा पैदा करती हैं, नये शिरे से शुरूआत करने के लिए पूर्णता की ओर लौटती हैं, वे निर्द्यता के साथ अपने पहले प्रयाशों के आधे- अधूरे उपायों, कमजोरियों और नगण्यता का उपहास उड़ाते हें. ऐसा लगता है कि वे अपने विरोधियों को केवल इसलिए गिरा देते हैं ताकि बाद वाला प्रथ्वी से ऊर्जा प्राप्त कर सके और उसके सामने फिर से पहले से अधिक विशाल बन सके ,लगातार पीछे हटे, अपने स्वयं के लक्ष्यों की अनिश्चित- विशालता जब तक कि ऐसी स्य्थिति नहीं बन जाती जो सभी को पीछे मुड़ना असंभव बना देती है,और परस्थितियाँ स्वयं पुकारती हैं: हिच रोड्स, हिच साल्टा”. ( मार्क्स: लुइ बोनापार्टका 18वां ब्रूमेर)
वामपंथी कम्युनिस्टों की प्रतिक्रिया
यूक्रेन जैसे दूरगामी युद्ध जैसी गंभीर ऐतिहासिक परस्थितियों में सर्वहारा यह देख सकता है कि कौन उसके दोस्त हें और कौन उसके दुश्मन. न केवल पुतिन, ज़ेलेंस्की या ब्राइडेन जैसी प्रमुख हस्तियाँ हैं, बल्कि अति दक्षिणपंथी वामपंथीम औरअति वामपंथी दल भी हैं जो शांतिवाद सहित एक साम्राज्यवाद खेमे के विरूद्ध दूसरे साम्राज्यवाद को सही सही, की तरह के तर्कों के साथ युद्ध का समर्थन के साथ उसका औचित्य ठहराते हैं.
एक शताब्दी से भी अधिक समय से केवल कम्युनिस्ट वामपंथ ही साम्राज्यवादी युद्ध की व्यवस्थित और लगातार विरोद्श करने में सक्षम रहा है और विश्व सर्वहारा क्रांति द्वारा पूँजीवाद के विनाश की दिशा में सर्वहारा वर्ग के वर्ग संघर्ष के विकल्प का वचाव करता रहा है.
सर्वहारा का संघर्ष उसके रक्षात्मक संघर्षो या सामूहिक हड़तालों तक ही सीमित नहीं है. इसका एक अनिवार्य, स्थाई और अविभाज्य घटक इसके कम्युनिस्ट संगठनों का संघर्ष और, अब एक सदी के लिए कम्युनिस्ट वामपथ ही ठोस रूप है. मानवता के विनाश की पूंजीवादी गतिशीलता के सामने वामपंथी कम्युनिस्टों के सभी समूहों की एकता अपरिहार्य है. जैसा कि हम अपनी पहली कांग्रेस( १९७५ ) के मैनिफैस्टो में ही पुष्टि कर चुके हैं:” संप्रदायों के एकेश्वरवाद से अपनी पीठ मोडते हुए, अन्तर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट करंट सभी देशों के कम्युनिस्टों का आव्हान करता है कि वे उनके सामने खडी उन अपार जिम्मेदारियों से अवगत हों उनसे बचने के लिए झूठे झगड़ों, और पुरानी दुनियां द्वारा उन पर थोपे गये उन भ्रामक विभाजनों पर काबू पाने के लिए उनसे दूर रहें. आई सी सी उनसे इस प्रयाश में शामिल होने का आव्हान करता है. इससे पहले कि वर्ग अपने निर्णायक संघर्षों में सलग्न हो ) हिरावल दस्ते के अन्तर्राष्ट्रीय और एकीकृत वर्ग संगठन के सबसे जागरूक अंश के रूप में कम्युनिस्टों को अपना नारा “ सभी देशों के क्रांतिकारियों एक हो”) के रूप में मार्ग प्रशस्त करें.
आई सी सी दिसम्बर 2022
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(1) 1918 में जर्मनी क्रन्तिकारी कोशिश का मुकावला करते हुए सामाजिक लोकवादी नोसके कहा कि वे प्रतिक्रांति के खून खराबा बनने के लिए तैयार हैं.
( 2 ) सड़ांध पर थीसिस-थीसिस 11
( 3 ) कम्युनिस्ट क्रांति या मानवता का विनाश
( 4 ) संयुक्त राज्य अमेरिका ,फ़्रांस , ग्रेट ब्रिटेन और जापान की संयुक्त सेनाओं ने अप्रैल 1918 से एक भयानक गृहयुद्ध में पूर्व ज़ारिस्ट सेना के अवशेषों के साथ सहयोग किया, जिसके कारण ६ मिलियन मौतें हुईं .
7 मार्च को फ़्रांस, , 8 मार्च को इटली , 11 मार्च को ब्रिटेन में आम हड़तालें और विशाल प्रदर्शनों के कारण हर तरफ गुस्सा बढ़ और चहुँ ओर फैल रहा है.
ब्रिटेन में नौ महीने से ऐतिहासिक हड़ताल की लहर चल रही है. बिना पलक झपकाए, दशकों से संयम बरतने के बाद, ब्रिटेन में सर्वहारा वर्ग अब बलिदानों को स्वीकार करने को तैयार नहीं . " बहुत हो गया अब. " फ़्रांस में, यह सेवानिवृत्ति की आयु में वृद्धि जिसने बारूद को चिंगारी लगाई, परिणामस्वरूप, वहां प्रदर्शनों ने लाखों लोगों को “न एक वर्ष अधिक, न एक यूरो कम “ के नारे के साथ सड़कों पर ला खड़ा किया है. स्पेन में , स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के पतन के खिलाफ विशाल रैलियां आयोजित की गईं और कई क्षेत्रों (सफाई, परिवहन, आईटी, आदि) में हड़तालें हुई और अखबारों ने नारा बुलंद किया, "आक्रोश _ आक्रोश दूर से आता है”. जर्मनी में , मुद्रास्फीति से पीड़ित , सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी और उनके डाक सहयोगी वेतन वृद्धि के लिए हड़ताल पर चले गये. . जर्मनी में पहले ऐसा कभी नहीं देखा गया”. ”डेनमार्क में , हड़ताल और प्रदर्शन सैन्य बजट में वृद्धि को वित्तपोषित करने के लिए सार्वजनिक अवकाश को समाप्त करने के खिलाफ आन्दोल्ट शुरू हुआ. पुर्तगाल में, शिक्षक, रेलवे कर्मचारी और स्वास्थ्य की देखभाल करने वाले कर्मचारी भी कम मजदूरी और गिरते जीवन स्तर की लागत के खिलाफ विरोध कर रहे हैं.नीदरलैंड, डेनमार्क, यूनाइटेड राज्यों, कनाडा, मैक्सिको, चीन ... समान असहनीय और अशोभनीय जीवन स्थितियों तथा: "वास्तविक कठिनाई: गर्मी, खाने, खुद की देखभाल करने, ड्राइव करने में सक्षम न होने के खिलाफ, हमला बोल रहे हैं .
मजदूर वर्ग की वापसी
इन सभी देशों में संघर्षों का एक साथ होना कोई आकस्मिक घटना नही. यह हमारे वर्ग की अंतर्रात्मा में वास्तविक परिवर्तन की पुष्टि करता है. तीस साल की घोर निराशा के बाद, अपने संघर्षों के माध्यम से हम कह रहे हैं: " इसे अब हम और बर्दास्त करने के लिए तैयार नहीं , हम लड सकते हैं और हम लड़ेंगे भी “
मजदूर वर्ग में जुझारूपन की यह वापसी, हमें एक साथ खड़े होने, संघर्ष में एकजुटता दिखाने, अपनी लड़ाई में गर्व, गरिमापूर्ण और एकजुट महसूस करने की हिम्मत और प्रेरित करती है. एक बहुत ही सरल लेकिन बेहद मूल्यवान विचार हमारे दिमाग में अंकुरित हो रहा है: हम सब एक ही नाव के सहयात्री हैं!
सफेद कोट, नीले कोट या टाई में कर्मचारी, बेरोजगार, अनिश्चित छात्र, पेंशनभोगी, सार्वजनिक और ....निजी सभी क्षेत्रों से, हम सभी खुद को शोषण की समान स्थितियों से एकजुट एक सामाजिक शक्ति के रूप में पहचानने लगे है. वही पूंजीवाद का संकट, हमारे रहने और काम करने की परिस्थितियों पर वही हमले, हम वही एक समान शोषण सहते हैं .समूचा मजदूर वर्ग इसी संघर्ष में शामिल हैं.
" फ्रांस के प्रदर्शनकारियों की आवाज को स्वर देते हुए मज़दूर एक साथ खड़े हों ", ब्रिटेन में हड़ताल करने वालों को ऊंची आवाज में कहें , " या तो हम एक साथ लड़ेंगे , या हम अंत में सड़क पर सोएंगे ".
क्या हम जीत सकते हैं ?
विगत के कुछ संघर्षों से पता चलता है कि किसी सरकार को पीछे धकेलना तथा उसके हमलों को धीमा करना संभव है.
1968 में , फ्रांस में सर्वहारा वर्ग अपने संघर्षों पर नियंत्रण करके एकजुट हो गया. छात्रों पर किये गए पुलिस दमन के विरोध में 13 मई के विशाल प्रदर्शनों के बाद, वॉकआउट और आम सभाएँ फ़ैक्टरियों में जंगल की आग की तरह फैल गईं और सभी कार्यस्थलों को अपने 9 मिलियन हडतालियों के साथ, इतिहास में अंतरराष्ट्रीय मजदूर वर्ग की इतने बड़ी हड़ताल को समाप्त करने को मजबूर होना पड़ा. मजदूरों के संघर्ष के विस्तार और एकता की इस गतिशीलता का सामना करते हुए, सरकार और यूनियनें आंदोलन को रोकने के लिए सामान्य वेतन वृद्धि पर एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए दौड़ पड़े.
पोलैंड मे 1980 में, खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि का सामना करते हुए, हड़तालियों ने विशाल आम सभाओं में एकजुट होकर, मांगों और कार्यों पर खुद को तय करके, और सबसे बढ़कर संघर्ष को आगे बढ़ाने की निरंतर चिंता करके, संघर्ष को और आगे बढ़ाया. शक्ति के इस प्रदर्शन का सामना करते हुए, केवल पोलिश पूंजीपति ही नहीं काँपते थे, बल्कि सभी देशों के पूंजीपति वर्ग भी काँपते थे.
फ्रांस में, 2006 में लामबंदी के कुछ ही हफ्तों के बाद , सरकार ने अपने " कॉन्ट्राट प्रीमियर एम्बॉचे " को वापस ले लिया। यह क्यों ? किस बात ने पूंजीपत वर्ग को इतना डरा भयभीत कर दिया कि वह इतनी जल्दी पीछे हट गया? पराधीन छात्रों ने, अनियमतीकरण और बेरोजगारी के खिलाफ लड़ाई में विश्वविद्यालयों में बड़े पैमाने पर आम सभाओं का आयोजन किया जिसमे उन्होंने , श्रमिकों, बेरोजगारों और पेंशनभोगियों को खुले रूप में एकाकार होने का नारा दिया. ये सभाएँ आन्दोलन का फेफड़ा थीं, जहाँ बहसें होती थीं और निर्णय लिए जाते थे. परिणाम: हर सप्ताहांत, प्रदर्शनों ने अधिक से अधिक क्षेत्रों को एक साथ ला खड़ा किया. वेतनभोगी और सेवानिवृत्त कर्मचारी इस नारे के तहत छात्रों में शामिल हो गए: " युवा लार्डन्स , पुराने क्राउटन, सभी एक ही सलाद में " की तर्ज पर आंदोलन को एकजुट करने की इस प्रवृत्ति का सामना करने वाले फ्रांसीसी बुर्जुआ और सरकार के पास सीपीई को वापस लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.
इन सभी आंदोलनों में आम तौर पर संघर्ष के विस्तार की गतिशीलता होती है, जिसका श्रेय स्वयं श्रमिकों को अपने नियंत्रण में लेने के लिए जाता है!
आज, चाहे हम वेतनभोगी कर्मचारी हों, बेरोजगार हों, पेंशनभोगी हों, अनिश्चित छात्र हों, हमें अभी भी अपने आप में, अपनी सामूहिक शक्ति में, अपने संघर्षों पर सीधे नियंत्रण करने का साहस करने के लिए आत्मविश्वास की कमी है. लेकिन कोई दूसरा रास्ता भी नहीं है. यूनियनों द्वारा प्रस्तावित सभी "कार्य" हार का कारण बनते हैं. धरना, प्रदर्शन, अर्थव्यवस्था को अवरूद्ध करना... इससे कोई फर्क नहीं पड़ता जब तक ये गतिविधियाँ उनके नियंत्रण में रहती हैं.यदि यूनियनें, परिस्थितियों के अनुसार अपने कार्यों के रूप को बदलते रहना हैं, तो हमेशा एक ही तत्व- क्षेत्रों को एक-दूसरे से विभाजित और अलग करना ताकि हम बहस न करें और संघर्ष का संचालन कैसे करें.
ब्रिटेन में नौ महीनों से यूनियनें क्या कर रही हैं? वे श्रमिकों की पहलकदमी को तितर-बितर कर रही हैं, हर दिन, एक अलग सेक्टर में हड़ताल कर रही हैं. हर एक अपने क क्षेत्र में, हर एक अपनी अलग पिकेट लाइन पर. कोई सामूहिक सभा नहीं, कोई सामूहिक बहस नहीं होने दे रहीं, संघर्ष में कोई वास्तविक एकता नहीं. यह रणनीति की गलती नहीं बल्कि सोची समझी साजिश है.
1984-85 में थैचर सरकार ने ब्रिटेन में मजदूर वर्ग की कमर कैसे तोड़ी? यूनियनों के गंदे काम के माध्यम से जिन्होंने अन्य क्षेत्रों में खनिकों को उनके वर्ग भाइयों और बहनों से अलग कर दिया. उन्होंने उन्हें एक लंबी और निष्फल हड़ताल में कैद कर दिया. एक वर्ष से अधिक के लिए, खनिकों ने " अर्थव्यवस्था को अवरुद्ध करने " के बैनर तले गड्ढों में दबा दिया.अकेले और शक्तिहीन, हडताली अपनी ताकत और साहस के अंत तक लडे लेकिन अंत में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा और उनकी ये हार, पूरे मजदूर वर्ग की हार थी! ब्रिटेन के मजदूर अभी तीस साल बाद सिर उठा रहे हैं, इसलिए यह हार एक महंगा सबक है जिसे विश्व सर्वहारा वर्ग को नहीं भूलना चाहिए.
केवल खुली, विशाल और स्वायत्त सामान्य सभाओं में इकट्ठा होकर, वास्तव में आंदोलन के संचालन पर निर्णय करके, हम सभी क्षेत्रों, सभी पीढ़ियों के बीच एकजुटता से आगे बढ़ते हुए, एकजुट और व्यापक संघर्ष कर सकते हैं, ऐसी सभाएँ जिनमें हम एकजुट महसूस करते हैं और अपनी सामूहिक शक्ति में विश्वास रखते हैं, जिसमें हम तेजी से एकीकृत माँगों को अपना सकते हैं. आम सभाएं जो हमारे वर्गीय भाइयों और बहनों, निकटतम कारखाने, अस्पताल, स्कूल, प्रशासन में श्रमिकों से मिलने के लिए बड़े पैमाने पर प्रतिनिधिमंडल बना सकती हैं .
संघर्ष ही असली जीत है.
"क्या हम जीत सकते हैं?" जवाब है हां, कभी-कभी अगर, और केवल अगर, हम अपने संघर्षों को अपने हाथ में लेते हैं.हम हमलों को पल भर के लिए रोक सकते हैं, सरकार को पीछे हटा सकते हैं.
लेकिन सच्चाई यह है कि वैश्विक आर्थिक संकट सर्वहारा वर्ग के पूरे वर्गों को गरीबी में धकेल देगा. बाजार और प्रतियोगिता के अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में बने रहने के लिए, हर देश में हर पूंजीपति, चाहे उसकी सरकार वामपंथी हो, दक्षिणपंथी हो या केंद्र, पारंपरिक या लोकलुभावन, रहने और काम करने की स्थिति को तेजी से असहनीय बनाने जा रहा है.
सच्चाई यह भी है कि ग्रह के चारों कोनों में युद्ध अर्थव्यवस्था के विकास के साथ, पूंजीपति वर्ग द्वारा मांगे गए "बलिदान" अधिक से अधिक असहनीय होंगे.
सच्चाई यह है कि राष्ट्रों, सभी राष्ट्रों के बीच साम्राज्यवादी टकराव विनाश और खूनी अराजकता का एक सर्पिल है जो पूरी मानवता को उसके विनाश की ओर ले जा सकता है. यूक्रेन में हर दिन मनुष्यों की एक धारा, कभी-कभी 16 या 18 साल की उम्र के लोगों को मौत के घृणित साधनों से कुचला जा रहा है, चाहे वह रूसी हो या पश्चिमी.
सच्चाई यह है कि फ्लू या ब्रोंकियोलाइटिस की साधारण महामारी अब थकी हुई स्वास्थ्य प्रणालियों को उनके घुटनों पर ला रही है.
सच्चाई यह है कि पूंजीवाद ग्रह को तबाह करना जारी रखेगा और जलवायु के साथ कहर बरपाएगा, जिससे विनाशकारी बाढ़, सूखा और आग लग जाएगी.
सच्चाई यह है कि लाखों लोग युद्ध, अकाल, जलवायु आपदा, या तीनों, केवल दूसरे देशों की कंटीली तारों की दीवारों से टकराने के लिए, या समुद्र में डूबने के लिए, पलायन करते रहेंगे.
तो सवाल उठता है: कम वेतन के खिलाफ, कामगारों की कमी के खिलाफ, इस या उस "सुधार" के खिलाफ लड़ने का क्या मतलब है? क्योंकि हमारे संघर्षों में वर्ग या शोषण के बिना, युद्ध या सीमाओं के बिना, दूसरी दुनिया की आशा उम्मीद है.
संघर्ष ही असली जीत है. संघर्ष में प्रवेश करने, अपनी एकजुटता विकसित करने का साधारण तथ्य ही जीत की गारंटी है. एक साथ लड़कर, इस्तीफा देने से इंकार करके, हम कल के संघर्षों को तैयार करते हैं और अपरिहार्य पराजयों के बावजूद हम थोड़ा-थोड़ा करके एक नई दुनिया के लिए स्थितियां बनाते हैं.
संघर्ष में हमारी एकजुटता प्रतिद्वंद्वी कंपनियों और राष्ट्रों में विभाजित इस व्यवस्था की घातक प्रतिस्पर्धा का प्रतिकार है.
पीढ़ियों के बीच हमारी एकजुटता इस प्रणाली के अ-भविष्य और विनाशकारी चक्र के विपरीत है.
हमारा संघर्ष सैन्यवाद और युद्ध की वेदी पर खुद को बलिदान करने से इनकार करने का प्रतीक है .
मजदूर वर्ग का संघर्ष तत्काल पूंजीवाद और शोषण की बुनियाद के लिए एक चुनौती है.
हर हड़ताल अपने भीतर क्रांति के बीज लिए होती है.
भविष्य वर्ग संघर्ष का है!
अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट करंट (25 फरवरी 2023)
वर्तमान और भविष्य के संघर्षों के लिए हमें फिर से संगठित होना होगा, बहस करनी होगी, सबक सीखना होगा
पूरे मजदूर वर्ग के स्वायत्त संघर्ष को तैयार करने के लिए एक साथ इकट्ठा होना चाहिए, चर्चा करनी चाहिए और अतीत के पाठों को फिर से लागू करना चाहिए. काम पर, प्रदर्शनों में, नाकेबंदी पर, धरने पर, हमें इस पर बहस और चिंतन करने की जरूरत है कि मजदूर वर्ग अपने संघर्षों को अपने हाथों में कैसे ले सकता है, कैसे वह खुद को स्वायत्त आम सभाओं में संगठित कर सकता है, कैसे एक व्यापक दायरेमें आन्दोलन का विस्तार कर सकता है?
सार्वजनिक बैठकें
इसी भावना से हम कई देशों में जनसभाओं का आयोजन कर रहे हैं. यूके में अगला 1 अप्रैल को दोपहर 3 बजे, द लुकास आर्म्स, 245ए ग्रेज़ इन रोड, लंदन WC1X 8QY में है। इस बैठक में ऑनलाइन भाग लेना भी संभव होगा - ऐसा करने के लिए यूके से [email protected] पर लिखें कहीं और, [7][email protected] [8]पर लिखें और हम लिंक भेज देंगे.। हमारी बैठकों की तारीखें और स्थान हमारी वेबसाइट: en.internationalism.org पर उपलब्ध है.
आओ और चर्चा करें!
बीते वर्ष, वैश्विक पूँजीवाद के प्रमुख देशों और दुनियां भर में मजदूरों के संघर्ष फूट पड़े हैं. हड़तालों की यह श्रंखला 2022 की गर्मियों में ब्रिटेन से शुरू हुई और तब से फ़्रांस, जर्मनी, स्पेन, नीदरलेंड, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, कोरिया तथा तमाम अन्य देशों के मजदूर संघर्ष में कूद पड़े हैं. श्रमिक वर्ग, रहन- सहन और कार्य करने की बिगडती परस्थितियों में दिन पर दिन आ रही भारी गिरावट, असमान को छूती मंहगाई, आर्थिक अस्थिरता के परिणामस्वरूप, बड़े पैमाने पर बढ़ती बेरोजगारी, पारिस्थितिकी जकडन तथा उक्रेन में बर्बर युद्ध से जुडी सैन्य बर्बरता की तीव्रता के कारण, फूटे गुस्से के खिलाफ हर जगह मजदूर वर्ग सर उठा रहा है.
तीन दशकों की इतनी लम्बी अवधि में, दुनियां के इतने सारे देशों में एक साथ संघर्ष की ऐसी लहर नहीं देखी है. पूर्वी गुट के 1989 में पतन और कथित “ साम्यवाद की म्रत्यु” के अभियानों ने विश्व स्तर पर वर्ग संघर्ष में गहरी गिरावट ला दी थी. यह प्रमुख घटना, स्तालिनवादी गुट और दुनियां की दो सबसे बड़ी शक्तियों में से एक, यूएसएसआर का विस्फोट, पूंजीवादी पतन के नये और उससे भी अधिक विनाशकारी चरण में प्रवेश की सबसे प्रभावशाली अभिव्यक्ति जो पूँजीवाद के विघटन के रूप में प्रकट हुई. [1] अपने पैरों पर खड़े समाज का सडना, सभी स्तरों पर बढती हिंसा और अराजकता, शून्यवादी और निराशाजनक वातावरण, सामाजिक परमाणुकरण की प्रव्रर्ति, इन सभी का वर्ग संघर्ष पर नकारत्मक प्रभाव पडा. इस प्रकार हमने, 1968 से शुरू होने वाली पिछली अवधि की तुलना में जुझारूपन में काफी कमजोरी देखी है. ब्रिटेन में तीन दशकों से अधिक समय से संघर्ष के लम्बे अनुभव वाले सर्वहारा वर्ग के मजदूर वर्ग में पदत्याग की प्रवृति देखी गई, वह, इस पीछे हटने की वास्तविकता को दर्शाता है. पूंजीपति वर्ग के हमलों, बेहद क्रूर “सुधारों” बड़े पैमाने पर गैर- औध्योगीकरण और जीवन स्तर में काफी गिरावट का सामना करते हुए,1985 में थैचर द्वारा खनिकों को दी गई करारी हार के बाद से देश के श्रमिकों ने कोई महत्वपूर्ण लामबंदी नहीं देखी. हालांकि, मजदूर वर्ग ने यदा-कदा जुझारूपन के संकेत दिए हैं और संघर्ष के अपने हथियारों को फिर से इस्तेमाल करने की कोशिश की है. (फ़्रांस में 2006 में कांटराट डी प्रीमियर एम्प्लोय (सीपीई) के खिलाफ, 2011 में स्पेन में इन्डिगनोज आन्दोलन, पेंशन सुधार के खिलाफ फ़्रांस में (2019 पहली लामबंदी,यह साबित करते हुए कि इसे, किसी भी तरह से इतिहास के मंच से हटाया नहीं गया है, इसकी लामबंदी काफी हद तक अनुवर्ती कार्रवाई के बिना बनी हुई है. अधिक वैश्विक आन्दोलन फिर से शुरू करने में असमर्थ है. ऐसा क्यों था? क्योंकि न केवल श्रमिकों ने पिछले कुछ वर्षों से अपनी लड़ाई की भावना खो दी बल्कि, उन्हें अपने वर्ग में वर्ग चेतना का भी गिरावट का सामना करना पड़ा है, जिसे पुनः हासिल करने के लिए उन्होंने 1970 और 1980 के दशक में बहुत संघर्ष किया था. मजदूर वर्ग का अपने संघर्षों से सबक, यूनियनों के साथ अपने टकराव, “लोकतान्त्रिक” राज्य द्वारा बिछाए गए जाल में अपना आत्मविश्वास खोना, एकजुट होने की क्षमता, सामूहिक रूप से लड़ने की क्षमता को काफी हद तक भूल गए थे. यहाँ तक कि वे काफी हद तक अपने कार्यभार को भी भूल गए थे. पूंजीपति वर्ग के विरोधी और अपने क्रांतिकारी द्रष्टिकोण रखने वाले वर्ग के रूप में पहचाना. इस तर्क के आधार पर, स्तालिनवाद की भयावहता के साथ साम्यवाद वास्तव में मृत लग रहा था और मजदूर वर्ग अब अस्तित्व मे नहीं था.
और फिर भी,कोविद-19 की वैश्विक महामारी के बाद से पूंजीवादी व्यवस्था में सड़ांध की प्रक्रिया में उल्लेखनीय सामना करना पड़ा. [2] स्थिति को और भयावह बनाने के लिए उक्रेन में युद्ध में हो रहे नरसंहार और श्रन्खलावद्ध प्रतिक्रियाओं के साथ इसने आर्थिक, सामाजिक, पारस्थितिक और राजनातिक स्तरों पर भी उकसाया है, फिर भी मजदूर वर्ग हर जगह विरोध में सर उठा रहा है, लड़ने के लिए आगे आरहा है और तथा कथित “सार्वजनिक “ भलाई के नाम पर बलिदान करने के लिए इंकार कर रहा है, पूंजीपति वर्ग के हमलों के प्रति यह एकमुश्त अधिचर्त्मिक प्रतिक्रिया,क्या यह एक संयोग है? नहीं! “ बहुत हो गया” का यह नारा, इस सन्दर्भ में पूंजीवादी व्यवस्था की व्यापक अस्थिरता स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि वर्ग की भीतर मानसिकता में वास्तविक परिवर्तन हो रहा है. जुझारूपन की ये सभी अभिव्यक्तियां एक नई स्थिति का हिस्सा हैं जो वर्ग संघर्ष के लिए खुल रही हैं. एक नया चरण जो पिछले तीन दशकों की निष्क्रियता, भटकाव को तोड़ता है.
गत वर्ष, संघर्षों का एक साथ विस्फोट कहीं भी नहीं हुआ. वे पिछले परीक्षणों के दौरान किए गये प्रयास और त्रुटी की एक श्रंखला के माध्यम से वर्ग में प्रतिबिम्ब की पूरी प्रक्रिया का उत्पाद है, जिसने पहले से ही, 2019 के अंत में, “पेंशन सुधार” के खिलाफ फ़्रांस में पहली लामबंदी के दौरान, आईसीसी ने पीढ़ियों और विभिन्न क्षेत्रों के बीच एकजुटता की मजबूत आवश्यकता की अभिव्यक्ति की पहचान की थी. इस आन्दोलन के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ-साथ फिनलेंड में भी दुनियां भर के अन्य मजदूरों के संघर्ष हुए थे, लेकिन मार्च 2020 में कोविड की महामारी के विस्फोट के कारण यह समाप्त हो गया था. इस तरह, अक्टूबर 2021 में भी हडतालें हुईं. संयुक्त राज्य अमेरिका में विभिन्न क्षेत्रों में संघर्ष शुरू हो गया, लेकिन इस बार उक्रेन में युद्ध छिड़ जाने के कारण संघर्ष की गति बाधित हो गई, जिसने शुरू में विशेषकर यूरोप में मजदूरों को पंगु बना दिया.
प्रयास और भूल तथा परिपक्वता की यह लम्बी प्रक्रिया 2022 की गर्मियों के बाद से पूँजीवाद की अस्थिरता से उत्पन्न होने वाले हमलों के सामने मजदूरों द्वारा अपने स्वयं के वर्ग क्षेत्र में एक निर्धारित प्रतिक्रिया के रूप में सामने आई. ब्रिटेन के श्रमिकों ने अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संघर्ष में एक नये युग की शुरूआत की, जिसे “क्रोध की गर्मी” कहा गया. “बहुत हो गया” का नारा यूनैत्द३ में सम्पूर्ण सर्वहारा संघर्ष के प्रतीक के रूप में स्थापित किया गया था. यह नारा कोई विशिष्ट मांग को पूरा करने को व्यक्त नहीं करता था, बल्कि शोषण की स्थितियों के खिलाफ एक विद्रोह भर व्यक्त करता था. इससे पता चला कि मजदूर अब दयनीय समझौतों को निगलने के लिए तैयार नहीं थे, बल्कि दृढ संकल्प के साथ संघर्ष जारी करने के लिए अमादा थे. ब्रिटिश श्रमिकों का आन्दोलन विशेषरूप से प्रतीकात्मक था, क्योंकि 1985 के बाद यह पहली बार है कि श्रमिक वर्ग का यह क्षेत्र केंद्र में आया है, और जैसे ही दुनियां भर में मुद्रास्फीति का संकट और गहरा गया, यूक्रेनी संघर्ष और युद्ध के कारण अर्थव्यवस्था की तीव्रता और गहराया. स्पेन, संयुक्त राज्य अमेरिका में स्वास्थ्य कार्यकर्ता भी आक्रामक हो गए, जिसके बाद नीदरलेंड में हड़तालों की लहर चल पडी, जर्मनी में परिवहन कर्मचारियों की विशाल हड़ताल, चीन में वकाया वेतन और अतिरेक के खिलाफ 100 से अधिक हड़तालें, ग्रीस में एक भयानक ट्रेन दुर्घटना के बाद हडताल और प्रदर्शन, पुर्तगाल में उच्च वेतन और बेहतर काम करने की स्थिति की मांग करने वाले शिक्षक, 10,000 सिविल सेवक उच्च वेतन की मांग कर रहे हैं, कनाडा में वेतन, और सबसे ऊपर फ़्रांस में पेंशन सुधार के खिलाफ सर्वहारा वर्ग का एक बड़ा आन्दोलन सभी का ध्यान बर्वस अपनी ओर खींचता है.
इस दीर्घावधि में, पूंजीवादी मितव्यता के विरूद्ध इस लामबंदी की अत्यंत महत्वपूर्ण प्रकृति इस तथ्य में निहित है कि, इनमें युद्ध का विरोध भी शामिल है. वास्तव में, यदि युद्ध के था खिलाफ आईसीसी ने पहले ही बता दिया था कि श्रमिकों की प्रतिक्रिया उनकी क्रय शक्ति पर हमलों के प्रतिरोध में प्रकट होगी, जो संकटों की तीव्रता और आपदाओं के बीच अंतरसम्बन्ध के परिणाम स्वरूप होगी, और यह यूक्रेनी “लोगों के वीरतापूर्ण प्रतिरोध का समर्थन के लिए बलिदानों को स्वीकार करने के लिए बुलाये जाने वाले अभियानों के विपरीत भी चलेगा. पिछले वर्ष के संघर्षों के बीज भी यही थे. चाहे, मजदूर अभी तक इस बाबत अनभिज्ञ क्यों न रहे हों; शाशक वर्ग के स्वार्थों के लिए अधिक से अधिक बलिदान देने से इनकार, राष्ट्रीय अर्थ व्यवस्था के लिए बलिदान से इनकार और युद्ध के प्रयास के लिए, इस प्रणाली के तर्क को स्वीकार करने से इनकार, जो मानवता को तेजी से विनाशकारी स्थिति की ओर धकेल रहा है.
इन संघर्षों में मजदूरों के मन में एक विचार उभरने लगा है कि “हम सभी एक नाव में हैं.” ब्रिटेन में धरना, प्रदर्शन और हडताल करने वालों ने हमें बताया कि उन्हें लगता है कि वे यूनियनों की कार्पोरेट मांगों से कहीं बड़ी चीज के लिए लड रहे हैं. “ हम सभी के लिए” बैनर, जिसके तहत 27 मार्च को जर्मनी में हडताल हुई, वर्ग में होने वाली सामान्य भावना के लिए महत्वपूर्ण है: हम सभी एक दूसरे के लिए लड़ रहे हैं.” लेकिन फ़्रांस में एक हो कर लड़ने की आवश्यकता सबसे स्पष्ट रूप से व्यक्त की गई थी. यूनियनों ने “ फ़्रांस में गतिरोध लाने लिए कथित “रणनीतिक” क्षेत्रों (जैसे ऊर्जा या कचरा संग्रहण) के पीछे प्राक्सी द्वारा हडताल “ के जाल में फंसा कर आन्दोलन को विभाजित करने और सडाने की कोशिश की. लेकिन मजदूर सामूहिक रूप से इसके झांसे में नही आये और एकजुट हो कर लड़ने के लिए प्रतिबद्ध रहे.
फ़्रांस में तेरह दिनों की लामबंदी के दौरान आईसीसी ने 150,000 से अधिक पर्चे बांटे: ब्रिटेन और अन्य स्थानों पर जो कुछ हो रहा था उसमें रूचि कभी कम नहीं हुई. कुछ प्रदर्शनकारियों के लिए, ब्रिटेन की स्थिति के साथ सम्बन्ध स्पष्ट दिखाई दे रहा था: “यह हर जगह, हर देश में समान है.” यह कोई संयोग नहीं था कि “मोबिलियर नेशनल की यूनियनों को” ब्रिटिश मजदूरों के साथ एकजुटता” के नाम पर चार्ल्स ||| (तृतीय) की पेरिस यात्रा (रद्द किये जाने ) के दौरान हड़ताल की कार्रवाई का दायित्व लेना पड़ा. फ़्रांस में सरकार के अनमनेपन के बावजूद, पूंजीपति के पीछे हटने या वास्तव में ब्रिटेन या अन्य जगहों पर बेहतर मजदूरी हासिल करने में विफलताओं के बावजूद, श्रमिकों की सबसे बड़ी जीत संघर्ष और जागरूकता ही है. निस्संदेह, उन्हें भले ही, अपनी प्रारम्भिक अवस्था में और अधिक भ्रम था, कि हम एक ही शक्ति का निर्माण करते हैं, कि हम सभी शोषित लोग हें, जो अपने- -अपने कोने में हुई, पूँजी के खिलाफ कुछ नहीं कर सकते हैं, लेकिन संघर्ष में जो एकजुट हो कर, इतिहास में सबसे बड़ी सामाजिक शक्ति बन सकते हैं.
कुछ लोगों का मत है कि मजदूरों को अभी भी संघर्षों को अपने हाथों में लेने की शक्ति और क्षमता पर भरोसा नहीं है. हर जगह यूनियनों ने आंदोलनों पर नियन्त्रण बना रखा है, विभिन्न क्षेत्रों के बीच कठोर अलगाव बनाये रखते हुए, एकता की आवश्यकता को बेहतर ढंग से निष्फल करने के लिए अधिक लडाकू भाषा बोली जा रही है .ग्रेट ब्रिटेन में मजदूर अपनी कम्पनियों की धरना लाइनों के पीछे अलग-थलग रहे, हालांकि, यूनियनों को कथित “एकात्मक” प्रदर्शनों की पैरौडी ( नकल) आयोजित करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इसी तरह, फ़्रांस में, जब श्रमिक विशाल प्रदर्शनों में एक साथ आते थे, तो यह हमेशा यूनियनों के नियंत्रण में होता था, जो श्रमिकों को अपनी कम्पनियों और क्षेत्रों के बैनर के पीछे छिपा कर रखते थे. कुल मिला कर, अधिकांश संघर्षों में कार्पोरेटी कारावास जैसी एक स्थिर स्थिति बनी रही.
ह्ड़तालों के दौरान, पूंजीपति वर्ग, विशेष रूप से इसके वामपंथी गुटों द्वारा बुर्जुआ “अधिकारों” के भ्रामक क्षेत्र पर क्रोध और आक्रोश बनाये रखने के लिए डिजायन किये गये पारस्थितिकी , नस्लवाद -विरोध,लोकतंत्र की रक्षा, गोरे- काले, नारी- पुरुष या बूढ़े -जवान के बीच भेद बनाये रख, श्रमिक आन्दोलन में भ्रम बनाये रखने के लिए अपना वैचारिक अभियान जारी रखा. फ़्रांस में पेंशन सुधर आन्दोलन के बीच, हमने “ विकास के आस-पास दोनों पर्यावरणवादी अभियानों के विकास तथा “मेगा पूल” और पुलिस दमन के खिलाफ लोकतांत्रिक अभियान को देखा. हालाँकि, श्रमिकों के अधिकांश संघर्ष वर्गक्षेत्र में बने हुए हैं, अर्थात, मुद्रास्फीति अतिरेक सरकारी मितव्यता उपायों आदि के सामने श्रमिकों की भौतिक स्थितियों की रक्षा, इन विचारधाराओं द्वारा महानतकश वर्ग के लिए उत्पन्न खतरा काफी बना हुआ है.
वर्तमान काल में, कई देशों में संघर्षो का वेग कम हो गया है, लेकिन इसका यह अर्थ यह कतई नहीं कि मजदूर निराश या पराजित हो गये हैं. ब्रिटेन में हड़तालों की लहर पूरे एक साल तक जारी रही, जबकि फ़्रांस में प्रदर्शन पांच महीने तक चले, इस तथ्य के बावजूद कि अधिकांश मजदूरों को शुरू से ही पता था कि पूंजीपति उनकी मांगों को तत्काल ही नही मान लेंगे. नीदरलेंड में सप्ताह- दर सप्ताह, फ़्रांस में माह- दर माह और ब्रिटेन में पूरे एक वर्ष तक मजदूरों ने काम करने से इनकार कर दिया. इन श्रमिकों की लामबंदी ने दिखाया कि मजदूर अपने जीवन स्तर में और गिरावट स्वीकार नहीं करने के लिए दृढ हैं. सत्ताधारी वर्ग के तमाम झूठों के बावजूद संकट थमने वाला नहीं है: आवास, हीटिंग,और भोजन की कीमतें बढना बंद नहीं होने वाली हैं, अतिरेक और असुरक्षित अनुबंध जारी रहेंगे, सरकारें अपने हमले जारी रखेंगी.
निस्संदेह, संघर्ष की यह नई गतिशीलता अभी अपनी प्रारम्भिक अवस्था में ही है, और मजदूर वर्ग के लिए, “उसकी अभी ऐतिहासिक कठिनाइयाँ कायम हैं. अपने स्वयं के संघर्षों को संगठित करने की क्षमता और इससे भी अधिक अपनी क्रांतिकारी परियोजना के बारे में जागरूक होने की क्षमता अभी भी बहुत दूर है, लेकिन पूंजीपति वर्ग द्वारा रहने और काम करने की स्थितियों पर किये गए क्रूर प्रहारों के सामने बढता जुझारूपन वह उपजाऊ जमीन है, जिस पर सर्वहारा वर्ग अपनी वर्ग पहचान को फिर से खोज सकता है, फिर से जागरूक हो सकता है: कि वह क्या है? जब श्रमिक अपनी ताकत के बारे में वह संघर्ष करता है, जब वह अपनी एकजुटता दिखाता है और अपनी एकता विकसित करता है. यह एक प्रक्रिया है, एक संघर्ष है जो वर्षों की निष्क्रियता के बाद फिर से शुरू हो रहा है, यह सम्भावना जो वर्तमान हड़तालों से चलती है.” [3] कोई नहीं जानता कि कहाँ और कब महत्वपूर्ण नये संघर्ष खड़े होंगे, लेकिन यह तय है कि मजदूर वर्ग को हर जगह संघर्ष करते रहना होगा.
हम में से लाखों लोग लड़ रहे हैं, अपने वर्ग को सामूहिक शक्ति को महसूस कर रहे हैं. जब सड़कों पर कंधे से कंधा मिला कर खड़े हैं, यह आवश्यक है. लेकिन यह किसी भी तरह पर्याप्त नहीं है. सीपीई के खिलाफ संघर्ष के दौरान 2006 में फ्रांसीसी सरकार पीछे हट गई, इसलिए नहीं कि सडकों पर अनिश्चित अनुबंधों पर अधिक छात्र और युवा लोग थे, बल्कि इसलिए कि उन्होंने संप्रभु, सभी के लिए खुली विशाल सभाओं के माध्यम से यूनियनों से आन्दोलन पर नियंत्रण ले लिया था. यह सभाएं ऐसी जगह नहीं हो रहीं थीं जहाँ मजदूर अपने ही क्षेत्र या कम्पनी तक सीमित थे, बल्कि, वे, वह जगहें थीं जहाँ से सक्रिय एकजुटता की तलाश के लिए बड़े पैमाने पर प्रतिनिधिमंडल निकटतम कम्पनियों के लिए रवाना हुए थे. आज, संघर्ष को सभी क्षेर्त्रों तक विस्तारित करने की चाह में मजदूर वर्ग की असमर्थता सक्रिय रूप से संघर्ष को हाथों में लेने में असमर्थ है. यही कारण है कि पूंजीपति वर्ग पीछे नहीं हटा है. हालाँकि, अपनी पहचान को पुन: प्राप्त करने से श्रमिक वर्ग अपने अतीत को पुन: हासिल करने में सक्षम हो गया है. फ़्रांस में मार्च में, “मई 6 और सीपीई के खिलाफ 2006 के संघर्ष का सन्दर्भ कई गुना बढ़ गया है.’ 68 में क्या हुआ था? 2006 में हमने सरकार को पीछे हटने के लिए मजबूर किया? वर्ग के अल्पसंख्यक वर्ग में, चिन्तन की प्रक्रिया चल रही है, जो पिछले वर्ष के आन्दोलन से सबक सीखने और भविष्य में संघर्षों की तैयारी करने का एक अनिवार्य साधन है, जिसे फ़्रांस में 1968 अथवा 1980 में पोलेंड के संघर्षों से भी आगे जाना होगा .
जिस प्रकार, हाल के संघर्ष पिछले कुछ समय से विकसित हो रही , भूमिगत परपक्वता की प्रणाली का परिणाम है, उसी प्रकार हाल के संघर्षों से सबक सीखने के अल्पसंख्यकों के प्रयाश आगे आने वाले संघर्षों में फलदायी होंगे .मजदूर यह पहचानें कि यूनियनों द्वारा थोपे गये संघर्षों के अलगाव को केवल तभी दूर किया जा सकता है जब वे सामान्य सभाओं और निर्वाचित हड़ताल समितियों जैसे सन्गठन के स्वायात्व रूपों को फिर से खोज लें, और यदि वे संघर्ष को सभी कार्पोरेटी विभाजनों से परे बढ़ाने की पहल करें.
ए और डी. 23 अगस्त 2023
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[1] सीएफ. " विघटन पर थीसिस [9]"; (मई 1990)", अंतर्राष्ट्रीय समीक्षा संख्या 107 (2001).
[2] देखें " अपघटन पर थीसिस का अद्यतन (2023) [10]", अंतर्राष्ट्रीय समीक्षा संख्या 170 (2023).
[3] " वर्ग संघर्ष पर रिपोर्ट 25वीं आईसीसी कांग्रेस [11]”, अंतर्राष्ट्रीय समीक्षा संख्या 170 (2023)।
"अब बहुत हो गया है!" – ब्रिटेन. "न एक वर्ष अधिक, न एक यूरो कम" – फ्रांस. "आक्रोश गहरा चलता है" – स्पेन. "हम सभी के लिए" – जर्मनी. हाल के महीनों में हड़तालों के दौरान दुनिया भर में लगे ये सभी नारे दिखाते हैं कि मौजूदा मज़दूर संघर्ष हमारे रहने और काम करने की स्थिति में सामान्य गिरावट की अस्वीकृति को कितना व्यक्त करते हैं. डेनमार्क, पुर्तगाल, नीदरलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, मैक्सिको, चीन में... वही बढ़ते असहनीय शोषण के खिलाफ वही प्रहार करता है."वास्तविक कठिनाई: गर्म करने में सक्षम नहीं होना, खाना, अपना ख्याल रखें, गाड़ी चलाओ !"
लेकिन हमारे संघर्ष इससे कहीं अधिक हैं. प्रदर्शनों में,हम कुछ तख्तियों पर यूक्रेन में युद्ध की अस्वीकृति, अधिक से आधिक हथियारों और बमों का उत्पादन करने से इनकार करते हुए, युद्ध अर्थव्यवस्था के विकास के नाम पर अपनी बेल्ट कसते हुए देखने के लिए " युद्ध के लिए कोई पैसा नहीं, हथियारों के लिए पैसा नहीं, मजदूरी के लिए पैसा, पेंशन के लिए पैसा" हम फ्रांस में प्रदर्शनों के दौरान सुन सकते थे. वे लाभ के नाम पर ग्रह को नष्ट होते देखने से भी इन्कार करते हैं.
हमारे संघर्ष ही, इस आत्म-विनाशकारी गतिशीलता के खिलाफ खड़े होने वाली एकमात्र चीज है, केवल उस मौत के खिलाफ खड़े होने की बात है जो पूंजीवाद सभी मानवता से वादा करता है. क्योंकि, अपने स्वयं के तर्क पर छोड़ दिया गया, यह पतनशील व्यवस्था मानवता के अधिक से अधिक हिस्सों को युद्ध और दुख में खींच लेगी, यह ग्रीनहाउस गैसों, तबाह जंगलों और बमों से ग्रह को नष्ट कर देगी.
पूंजीवाद मानवता को विनाश की ओर ले जा रहा है!
विश्व समाज पर शासन करने वाला पूंजीपति वर्ग, आंशिक रूप से उस वास्तविकता से अवगत है, जिसमें उस बर्बर भविष्य के बारे में जो यह सड़ी हुई व्यवस्था हमसे वादा करती है. इसे देखने के लिए आपको केवल अपने विशेषज्ञों के अध्ययन और भविष्यवाणियों को पढ़ना होगा.
जनवरी 2023 में दावोस में विश्व आर्थिक मंच में प्रस्तुत "वैश्विक जोखिम रिपोर्ट" के अनुसार: "इस दशक के पहले वर्षों ने मानव इतिहास में विशेष रूप से विघटनकारी अवधि की शुरुआत की है. कोविद -19 महामारी के बाद एक 'नए सामान्य' स्थिति की वापसी यूक्रेन में युद्ध के प्रकोप से जल्दी बाधित हो गई, भोजन और ऊर्जा के क्षेत्र में संकटों की एक नई श्रृंखला की शुरुआत हुई, 2023 के रूप में, दुनिया जोखिमों की एक श्रृंखला का सामना करती है : मुद्रास्फीति, जीवन-यापन संकट, व्यापार युद्ध , भू-राजनीतिक टकराव और परमाणु युद्ध की काली माध्यमछाया, अस्थिर ऋण का स्तर, मानव विकास में गिरावट, जलवायु परिवर्तन के बढ़ते दबाव के प्रभाव और महत्वाकांक्षाएँ . साथ में, ये आने वाले एक अद्वितीय, अनिश्चित और अशांत दशक को आकार देने के लिए अभिसरण कर रहे हैं.
हकीकत में, आने वाला दशक इतना "अनिश्चित" नहीं है जैसा कि एक ही रिपोर्ट कहती है: "अगले दशक में पर्यावरण और सामाजिक संकट, 'जीवन संकट की लागत' , जैव विविधता की विशेषता होगी, नुकसान और पारिस्थितिकी तंत्र का पतन , भू-आर्थिक टकराव बड़े पैमाने पर अनैच्छिक प्रवास , वैश्विक आर्थिक विखंडन, भू-राजनीतिक तनाव,विश्व शक्तियों के बीच बढ़ते टकराव के साथ, आर्थिक युद्ध आदर्श बन रहा है सैन्य खर्च में हाल ही में वृद्धि , हाल के दशकों में संभावित रूप से अधिक विनाशकारी पैमाने पर नई तकनीक वाले हथियारों की लक्षित तैनाती के साथ वैश्विक हथियारों की दौड़] को जन्म दे सकती है.
इस भारी सम्भावना का सामना करने में पूंजीपति वर्ग शक्तिहीन है. यह और इसकी व्यवस्था समस्या का समाधान नहीं, समस्या का कारण है. अगर, मुख्यधारा के मीडिया में, यह हमें यह विश्वास दिलाने की कोशिश करता है कि यह ग्लोबल वार्मिंग से लड़ने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है, कि "हरित" और "टिकाऊ" पूंजीवाद संभव है, तो यह अपने झूठ की सीमा को जानता है, क्योंकि, जैसा कि 'वैश्विक जोखिम रिपोर्ट' बताती है: "आज, कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड का वायुमंडलीय स्तर रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है. उत्सर्जन प्रक्षेपवक्र इस बात की बहुत कम संभावना है कि वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की वैश्विक महत्वाकांक्षा हासिल की जा सकेगी. हाल की घटनाओं ने वैज्ञानिक रूप से आवश्यक और राजनीतिक रूप से समीचीन के बीच एक विचलन को उजागर किया है."
वास्तव में, यह "विचलन" जलवायु के मुद्दे तक ही सीमित नहीं है, यह मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि पर नहीं, बल्कि लाभ और प्रतिस्पर्धा पर, प्राकृतिक संसाधनों के शिकार पर और उस वर्ग -सभी देशो के अधिकाँश सामाजिक धन का उत्पादन करने वाले सर्वहारा, दिहाड़ी मजदूर के क्रूर शोषण पर आधारित आर्थिक व्यवस्था के मूलभूत विरोधाभास को व्यक्त करता है.
क्या दूसरा भविष्य संभव है?
पूँजीवाद और पूंजीपति वर्ग समाज के दो ध्रुवों में से एक हैं, एक जो मानवता को गरीबी और युद्ध की बर्बरता और विनाश की ओर ले जाता है. दूसरा ध्रुव है, सर्वहारा वर्ग और उसका संघर्ष. पिछले एक साल से फ्रांस, ब्रिटेन और स्पेन में पनप रहे सामाजिक आंदोलनों में मजदूर, पेंशनभोगी, बेरोजगार और छात्र एक साथ डटे हुए हैं. यह सक्रिय एकजुटता, यह सामूहिक जुझारूपन, मजदूरों के संघर्ष की गहन प्रकृति का गवाह है: एक मौलिक रूप से अलग दुनिया के लिए संघर्ष, शोषण या सामाजिक वर्गों के बिना, प्रतिस्पर्धा के बिना, सीमाओं या राष्ट्रों के बिना "श्रमिक एक साथ रहते हैं", संयुक्त राष्ट्र में हडताली चिल्लाते हैं, "या तो हम एक साथ लड़ें या हम सड़क पर सोएंगे", फ्रांस में प्रदर्शनकारियों ने भी इसकी पुष्टि की. 27 मार्च को जर्मनी में जीवन स्तर पर हमले के खिलाफ हड़ताल "हम सभी के लिए" बैनर स्पष्ट रूप से उस सामान्य भावना को दर्शाता है जो श्रमिक वर्ग में बढ़ रही है: हम सभी एक ही नाव में हैं और हम सभी के लिए एक दुसरे से लड़ रहे हैं. जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस में हमले एक दूसरे से प्रेरित हैं. फ्रांस में, श्रमिक स्पष्ट रूप से ब्रिटेन में लड़ने वाले अपने वर्ग भाइयों और बहनों के साथ एकजुटता में हड़ताल पर चले गए: "हम ब्रिटिश श्रमिकों के साथ एकजुटता में हैं, जो उच्च मजदूरी के लिए हफ्तों से हड़ताल पर हैं.” अंतरराष्ट्रीय एकजुटता का यह प्रतिबिम्ब युद्ध तक और युद्ध सहित प्रतिस्पर्धी देशों में विभाजित पूंजीवादी दुनिया के ठीक विपरीत है. यह 1848 के बाद से हमारे वर्ग की रैली को याद करता है: "सर्वहारा का कोई देश नहीं है! दुनियाभर के मजदूर,एकजुट हों. "
1968
पूरी दुनिया में समाज का मिजाज बदल रहा है. दशकों की निष्क्रियता और पीछे हटने के बाद, मजदूर, वर्ग संघर्ष और आत्म-सम्मान के लिए अपना रास्ता तलाशने लगा है.1985 में थैचर द्वारा खनिकों की हार के लगभग चालीस साल बाद, 'समर ऑफ एंगर' और ब्रिटेन में हड़तालों की वापसी से यह प्रदर्शित हुआ.
लेकिन हम सभी कठिनाइयों और अपने संघर्षों की वर्तमान सीमाओं को महसूस करते हैं. आर्थिक संकट, मुद्रास्फीति, और सरकार के हमले जिसे वे "सुधार" कहते हैं, के स्टीमरोलर का सामना करते हुए, हम अभी तक अपने पक्ष में बलों का संतुलन स्थापित करने में सक्षम नहीं हैं. अक्सर अलग-अलग हड़तालों में अलग-थलग पड़ जाते हैं, बिना बैठकों या चर्चा के, सामान्य सभाओं या सामूहिक संगठनों के बिना केवल कक्क्काजुलूसों तक सीमित प्रदर्शनों से निराश होकर, हम सभी एक व्यापक, मजबूत, एकजुट आंदोलन की आकांक्षा रखते हैं. फ्रांस में प्रदर्शनों में नई 68 मई की मांग लगातार सुनी जा रही है. "सुधार" का सामना करते हुए, जो सेवानिवृत्ति की आयु को 64 तक विलंबित करता है, तख्तियों पर सबसे लोकप्रिय नारा था: "आप हमें 64 देते हैं, हम आपको 68 मई देते हैं".
1968 में, फ्रांस में सर्वहारा वर्ग संघर्ष को अपने हाथों में लेकर एकजुट हुआ. पुलिस द्वारा छात्रों पर किये दमन के विरोध में 13 मई के विशाल प्रदर्शनों के बाद, वाकआउट और आम सभाएँ फ़ैक्टरियों में जंगल की आग की तरह फैल गईं और सभी कार्यस्थलों को 9 मिलियन हडतालियों के साथ, अंतर्राष्ट्रीय इतिहास में सबसे बड़ी हड़ताल के रूप में समाप्त हुई. श्रमिकों का आंदोलन मजदूरों के संघर्ष के विस्तार और एकता की इस गतिशीलता का सामना करते हुए, सरकार और यूनियनों ने आंदोलन को रोकने के लिए एक सामान्य वेतन वृद्धि के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. जिस समय मज़दूरों के संघर्ष का यह पुन: जागरण हो रहा था, उसी समय क्रांति के विचार की जोरदार वापसी हुई, जिसकी चर्चा संघर्षरत कई मज़दूरों ने की थी.
इस पैमाने पर यह घटना समाज के जीवन में एक मूलभूत परिवर्तन का प्रमाण थी: यह उस भयानक प्रति-क्रांति का अंत था जिसने 1920 के दशक के अंत अक्टूबर 1917 में रूस में विश्व क्रांति की पहली जीत के बाद उसकी विफलता के साथ श्रमिक वर्ग को घेर लिया था. एक प्रति-क्रांति जिसने स्टालिनवाद और फासीवाद के घिनौने चेहरे का रुप
ले लिया था, जिसने अपने 60 मिलियन मृतकों के साथ द्वितीय विश्व युद्ध का द्वार खोल दिया था और फिर दो दशकों तक जारी रहा. लेकिन 1968 में फ्रांस में शुरू हुए संघर्ष के पुनरुत्थान की दुनिया के सभी हिस्सों में दशकों से अज्ञात पैमाने पर संघर्षों की एक श्रृंखला द्वारा तेजी से पुष्टि की गई थी:
- 1969 की इतालवी गर्म शरद ऋतु, जिसे 'रैम्पेंट मे' के नाम से भी जाना जाता है, जिसने मुख्य औद्योगिक केंद्रों में बड़े पैमाने पर संघर्ष और ट्रेड यूनियन नेतृत्व को स्पष्ट चुनौती दी.
- उसी वर्ष अर्जेंटीना के कोर्डोबा में मजदूरों का विद्रोह.
- 1970-71 की सर्दियों में पोलैंड के बाल्टिक सागर में मजदूरों की भारी हड़तालें.
- आगामी वर्षों में वस्तुतः सभी यूरोपीय देशों, विशेष रूप से ब्रिटेन में कई अन्य संघर्ष हुए.
- 1980 में, पोलैंड में, बढ़ती खाद्य कीमतों का सामना करते हुए, हड़तालियों ने अपने संघर्षों को अपने हाथों में लेकर, विशाल आम सभाओं में इकट्ठा होकर, खुद तय किया कि क्या मांग करनी है और क्या कार्रवाई करनी है? इस अंतरराष्ट्रीय लहर को और आगे बढ़ाया,और सबसे बढ़कर, लगातार संघर्ष को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं. मज़दूरों की इस ताकत के प्रदर्शन से न केवल पोलैंड का पूंजीपति वर्ग कांप उठा, बल्कि सभी देशों का शासक वर्ग भी काँप उठा.
दो दशकों में, 1968 से 1989 तक, श्रमिकों की एक पूरी पीढ़ी ने संघर्ष में अनुभव प्राप्त किया, इसकी कई पराजय, और कभी-कभी जीत, इस पीढ़ी को पूंजीपति वर्ग द्वारा तोड़-फोड़, विभाजन और मनोबल गिराने के लिए बिछाए गए कई जालों का सामना करने की अनुमति देती है. इसके संघर्षों से हमें अपने वर्तमान और भविष्य के संघर्षों के लिए महत्वपूर्ण सबक लेने की अनुमति मिलनी चाहिए: केवल खुली और विशाल आम सभाओं में इकट्ठा होना, स्वायत्तता से, वास्तव में आंदोलन की दिशा तय करना, बाहर और संघ के नियंत्रण के खिलाफ भी, क्या हम एक आधार रख सकते हैं एकजुट और बढ़ता संघर्ष, सभी क्षेत्रों, सभी पीढ़ियों के बीच एकजुटता के साथ किया गया. सामूहिक बैठकें जिनमें हम एकजुटता महसूस करते हैं और अपनी सामूहिक शक्ति में विश्वास रखते हैं. सामूहिक बैठकें जिसमें हम एक साथ तेजी से एकीकृत मांगों को अपना सकते हैं. सामूहिक बैठकें जिनमें हम इकट्ठा होते हैं और जिनसे हम अपने वर्ग के भाइयों और बहनों, कारखानों, अस्पतालों, स्कूलों, शॉपिंग सेंटरों, कार्यालयों के श्रमिकों से मिलने के लिए बड़े पैमाने पर प्रतिनिधिमंडलों में जा सकते हैं... जो हमारे सबसे करीब हैं.
श्रमिकों की नई पीढ़ी,जो अब मशाल उठा रही है,अतीत के संघर्षों के महान सबक को फिर से हासिल करने के लिए एकजुट होकर बहस करनी चाहिए. पुरानी पीढ़ी को चाहिए कि वह युवा पीढ़ी को अपने संघर्षों के बारे में बताए, ताकि संचित अनुभव आगे बढ़े और आने वाले संघर्षों में हथियार बन सके.
कल के बारे में क्या?
लेकिन हमें और भी आगे जाना चाहिए. मई 1968 में शुरू हुई अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष की लहर विकास में मंदी और बड़े पैमाने पर बेरोजगारी के फिर से उभरने की प्रतिक्रिया थी. आज स्थिति कहीं अधिक गंभीर है. पूंजीवाद की भयावह स्थिति मानवता के अस्तित्व को ही दांव पर लगा देती है. यदि हम इसे पलटने में सफल नहीं हुए तो धीरे-धीरे बर्बरता हावी हो जाएगी.
मई 68 की गति पूंजीपतियों के दोहरे झूठ से बिखर गई: जब 1989-91 में स्टालिनवादी शासन का पतन हुआ, तो उन्होंने दावा किया कि स्टालिनवाद के पतन का मतलब साम्यवाद की मृत्यु है शांति और समृद्धि का एक नया युग खुल रहा है. तीन दशक बाद, हम अपने अनुभव से जानते हैं कि हमें शांति और समृद्धि के बजाय युद्ध और दुख मिला है. हमें अभी भी यह समझना होगा कि स्टालिनवाद साम्यवाद का विरोधी है, यह राज्य पूंजीवाद का एक विशेष क्रूर रूप है जो 1920 के दशक की प्रति-क्रांति से उभरा है. इतिहास को मिथ्या बनाकर, स्तालिनवाद को साम्यवाद के रूप में पेश करके ( कल के सोवित संघ और आज के चीन, क्यूबा, वेनेजुएला या उत्तर कोरिया की तरह!), पूंजीपति वर्ग ने मजदूर वर्ग को यह विश्वास दिलाने में कामयाबी हासिल की, कि उसकी मुक्ति की क्रांतिकारी परियोजना केवल आपदा की ओर ले जा सकती है. जब तक "क्रांति" शब्द पर ही संदेह और अविश्वास नहीं छा गया.
लेकिन संघर्ष में हम धीरे-धीरे अपनी सामूहिक शक्ति, अपना आत्मविश्वास, अपनी एकजुटता, अपनी एकता, अपना स्व-संगठन विकसित करेंगे. संघर्ष में, हम धीरे-धीरे महसूस करेंगे कि हम, मजदूर वर्ग, एक क्षयकारी पूंजीवादी व्यवस्था द्वारा वादा किए गए दुःस्वप्न की तुलना में एक और परिप्रेक्ष्य साम्यवादी क्रांति को पेश करने में सक्षम हैं:
सर्वहारा क्रांति का परिप्रेक्ष्य हमारे मन में और हमारे संघर्षों में बढ़ रहा है।
भविष्य वर्ग संघर्ष का है!
आई सी सी २४ अप्रैल २०२३
लिंक
[1] https://www.leftcom.org/en/articles/2022-07-22/nwbcw-and-the-real-ininter
[2] https://www.sitocomunista.it/canti/cantidilotta.html;
[3] https://www.sitocomunista.it/resistence/resistenceindex.html;
[4] https://www.sitocomunista.it/pci/pci.html
[5] https://www.sitocomunista.it/resistence/resistenceindex.html
[6] http://www.sitocomunista.it/pci/pci.html
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[9] https://en.internationalism.org/ir/107_decomposition
[10] https://en.internationalism.org/content/17377/update-theses-decomposition-2023
[11] https://en.internationalism.org/content/17362/report-class-struggle-25th-icc-congress