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केवल अंतर्राष्ट्रीय स्तर का वर्ग संघर्ष ही पूंजीवाद का विनाश कर सकता है.

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जलवायु परिवर्तन के विरोध में अधिक लोकप्रिय बैनर में से एक है: “जलवायु नहीं, सिस्टम बदलो”.

यह सच सवालों से परे है कि वर्तमान व्यवस्था मानव को एक पर्यावरणीय तबाही की ओर धकेल रही है. नित रोज, ठोस सबूतों का लगता अम्बार .इसका ठोस प्रमाण है; तेजी से बढती हुई खतरनाक गर्म लहरें,, अमेज़ॅन में अभूतपूर्व रूप से सुलगती आग, पिघलते ग्लेशियर, बाढ़, और अंतिम परिणाम के रूप में मानव प्रजातियों के विलुप्त होने के साथ पूरी प्रजातियों का विलुप्त होना . और भले ही ग्लोबल वार्मिंग नहीं हो रही थी, फिर भी मिट्टी, हवा, नदियाँ और समुद्र के जहर, जीवन के दिnन कम करते रहेंगे.

कोई आश्चर्य नहीं कि इतने सारे लोग, और इतने सारे युवा लोग जो एक जोखिम भरे भविष्य का सामना करते हैं, इस स्थिति के बारे में गहराई से चिंतित हैं, और इसके लिए कुछ करना चाहते हैं.

यूथ फ़ॉर क्लाइमेट, ,ऐक्सटेंसन रिबेलियन ,ग्रीन पार्टियों और वाम दलों तथा संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शनों ने इस लहर को तेजी से आगे बढ़ाने का काम किया है. बेशक, ट्रम्प, बोल्सोनारो या फराज की पसंद लगातार ग्रेटा और "इको-योद्धाओं" को पछाड़ देती है. उनका दावा है कि जलवायु परिवर्तन एक छलावा है और प्रदूषण पर अंकुश लगाने के उपाय ऑटोमोबाइल और जीवाश्म ईंधन जैसे क्षेत्रों में सबसे ऊपर हैं। वे पूंजीवादी लाभ के नायाब रक्षक हैं. लेकिन मैर्केल, मैक्रॉन, कॉर्बिन, अलेक्जेंड्रिया ओकासियो-कोर्टेज़ और अन्य लोगों के बारे में क्या कहें; जिन्होंने जलवायु विरोधके तारीफों के पुल बाधे हें : क्या वे वर्तमान व्यवस्था का कोई कम हिस्सा हैं?

लेकिन जो लोग वर्तमान में अपने नेतृत्व का अनुशरण कर रहे हैं, उन्हें खुद से पूछना चाहिए: वर्तमान व्यवस्था का प्रबंधन और बचाव करने वालों द्वारा इन विरोधों को व्यापक रूप से समर्थन क्यों दिया जा रहा है? ग्रेटा को संसदों, सरकारों, संयुक्त राष्ट्र से बात करने के लिए क्यों आमंत्रित किया जाता है?

वर्तमान प्रतिरोध में हिस्सा लेने वाले कई लोग इस बात से सहमत होंगे कि जलवायु विनाश की जड़ें वर्तमान व्यवस्था में निहित हैं और यह व्यवस्था पूंजीवाद है . लेकिन विरोध प्रदर्शनों के पीछे के संगठन, और राजनेता जो अपने पाखंडियों का समर्थन करते हैं, उन नीतियों का बचाव करते हैं जो पूंजीवाद की वास्तविक प्रकृति को छिपाते हैं.

मुख्य कार्यक्रमों में से एक पर विचार करें जो इन राजनेताओं के बीच अधिक कट्टरपंथी हैं: तथाकथित "न्यू ग्रीन डील" यह हमें मौजूदा राज्यों द्वारा उठाए जाने वाले उपायों का एक पैकेज प्रदान करता है, जिससे "गैर-प्रदूषणकारी" उद्योगों को विकसित करने के लिए बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश की मांग की जाती है, जो कि एक अच्छा लाभ देने में सक्षम होने के लिए माना जाता है. दूसरे शब्दों में: यह पूरी तरह से पूंजीवादी व्यवस्था की सीमाओं के भीतर बना हुआ है। 1930 के दशक के न्यू डील की तरह, इसका उद्देश्य अपनी ज़रूरत के समय में पूंजीवाद को बचाना है, इसे परवर्तित करना नहीं.

पूंजीवादी व्यवस्था क्या है ?

पूंजीवाद, चाहे निजी नौकरशाहों के बजाय राज्य के नौकरशाहों द्वारा ही क्यों न nसंचालित हो, वह कितना ही हरा -भरा क्यों nन दिखे,n अपनी मौत नही मरेगा .

जलवायु परिवर्तन और पूँजीवाद के परस्पर सम्बन्धों को समझने के लिए हमें पूँजीवाद के बुनियादी नियमों के बारे में जान लेना आवश्यक है. श्रम और पूंजी के सम्बन्धों में बंधी पूंजीवादी व्यवस्था, मुनाफा निचोड़ने के लिए, बाजार में बेचने के लिए उत्पादन, उजरती श्रम के शोषण पर आधरित वर्गों के बीच पूंजी एक विश्वव्यापी संबंध है. अपने मालों की खपत के लिए बाहरी बाज़ार की खोज और विश्व मंडी पर अपने वर्चस्व के लिए राष्ट्रों के बीच गला काट प्रतिस्पर्धा तेज होती जाती है; और यह प्रतियोगिता मांग करती है कि प्रत्येक राष्ट्र विस्तार करे या मरे। एक पूंजीवाद जो अब ग्रह के आखिरी कोने में घुसने की क्षमता नहीं रखता और बिना सीमा के विकास नहीं कर सकता, वह अब जीवित नहीं रह सकता. उसी प्रकार, पूंजीवाद पारिस्थितिकी संकट में विश्व स्तर पर सहयोग करने में पूरी तरह से असमर्थ है, क्योंकि अब तक जलवायु पर आयोजित तमाम शिखर सम्मेलनऔर प्रोटोकॉल की घोर विफलता से पहले ही यह सिद्ध हो चुका है.

पूंजीवाद के विकास के पहले दिन से ही यह त्रिकाल सत्य है कि प्रकृति को उजाड़ने की जड़ में है पूंजीवाद, और लाभ के लिए शिकार, जिसका मानव की ज़रूरत से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन पूंजीवाद का इतिहास बताता है कि यह पिछले सौ वर्षों में प्रगति का पहिया रोक देने का कारक बन गया है और एक गहन ऐतिहासिक संकट में पड़ गया है. जैसा कि इसका आर्थिक आधार, असीमित उत्पादन के लिये मजबूर, अति उत्पादन की और धकेल देता है और स्थाई बन जाता है. जैसा कि २० वीं सदी विश्व युद्धों "शीत युद्ध" ने प्रदर्शन किया है, पतन की यह प्रक्रिया पूंजी की गति को पूर्ण से विध्वंस की प्रक्रिया को और तेज कर सकती है. प्रकृति के वैश्विक विध्वंस से पहले से ही स्पष्ट है कि , पूंजीवाद पहले से ही अपने लगातार साम्राज्यवादी टकरावों और युद्धों के माध्यम से मानवता का विनाश करने की धमकी दे रहा है , जो आज उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व से लेकर पाकिस्तान और भारत तक पूरे ग्रह पर जारी है. इस तरह के संघर्ष केवल पारिस्थितिकी संकट से तेज हो सकते हैं क्योंकि राष्ट्र राज्य घटते संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, जबकि अधिक से अधिक घातक हथियारों का उत्पादन करने की दौड़ - और सबसे ऊपर, उनका उपयोग करने के लिए - केवल ग्रह को और अधिक प्रदूषित कर सकते हैं. पूंजीवादी तबाही का यह अपवित्र संयोजन पहले से ही ग्रह के कुछ हिस्सों को निर्जन बना रहा है और लाखों लोगों को शरणार्थी बनने के लिए मजबूर कर रहा है.

साम्यवाद की आवश्यकता और संभावना

वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था, आर्थिक संकट, पारिस्थितिकी संकट, या युद्ध की ओर बढ़ते कदम को नहीं रोक सकती.,

अतएव, यह मांग सरासर एक धोखा है कि दुनिया की सरकारें "एक साथ अपना काम करें" और “ग्रह को बचाने के लिए कुछ करें.” वर्तमान में सभी समूहों द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शनों में इस मांग को आगे रखा जाए। वर्तमान व्यवस्था के विनाश और एक नये समाज के निर्माण में ही मानवता की एकमात्र आशा निहित है। हम सब इसे साम्यवाद कहते हैं: एक ऐसा विश्व व्यापी मानव समुदाय जिसमें राष्ट्र राज्य कोई अस्तित्व नहीं, जहाँ श्रम का शोषण नहीं, बाजारों और धन विहीन सामाजिक व्यवस्था, जहां योजनाबद्ध और मानव की जरूरत को पूरा करने के एकमात्र उद्देश्य के साथ वैश्विक स्तर पर योजनाबद्ध उत्पादन. यह डंके की चोट पर कहा जा सकता है कि जो हम चीन, उत्तर कोरिया या क्यूबा, या पहले सोवियत संघ जैसे देशों में देखते हैं वहां राज्य द्वारा संचालित पूंजीवादी समाज के अलावा कुछ भी नहीं.

प्रामाणिक साम्यवाद ही मानवता और शेष प्रकृति के बीच एक नया संबंध स्थापित करने का एकमात्र आधार है. और यह कतई एक यूटोपिया नहीं है. यह इस लिए संभव है क्योंकि पूंजीवाद ने अपनी भौतिक बुनियाद, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास, जिसे इस प्रणाली के तहत उनकी विकृतियों से मुक्त किया जा सकता है, और सभी उत्पादक गतिविधि की वैश्विक निर्भरता, जिसे पूंजीवादी प्रतिस्पर्धा और राष्ट्रीय विरोधी से मुक्त किया जा सकता है ,पर रखी है.

लेकिन यह सब संभव है क्योंकि पूंजीवाद एक ऐसे वर्ग के गठन पर आधारित है जिसके पास खोने के लिए अपनी जंजीरों के अलावा और कुछ नहीं है, अंतर्राष्ट्रीय मजदूर वर्ग, सभी देशों का सर्वहारा वर्ग एक ऐसा वर्ग है जो शोषण का विरोध करने और इसे उखाड़ फेंकने में रुचि रखता है. यह एक ऐसा वर्ग है, जिसमें न केवल उन लोगों को शामिल किया जाता है, जिनका काम पर शोषण किया जाता है, बल्कि वे जो श्रम बाजार में एक स्थान पाने के लिए अध्ययन करते हैं और जिन्हें पूंजी काम से बाहर और कूड़े ढेर पर फेंक देती है।

नागरिकों का विरोध या मजदूरों का संघर्ष ?

यहाँ विशेष रूप से कहा जाना चाहिए कि कि जलवायु प्रतिरोध प्रदर्शनों के पीछे की विचारधारा हमें इस व्यवस्था के खिलाफ लड़ने के साधनों को प्राप्त करने से रोकने के लिए कार्य करती है. उदहारण के तौर पर; हमे यह भी बताया जाता है कि दुनिया में गडबडी इस लिए भी है कि "पुरानी पीढ़ी" को बहुत अधिक उपभोग करने की आदत है। लेकिन पीढ़ियों के बारे में बात करना "सामान्य रूप से" इस तथ्य को अस्पष्ट करता है कि, कल और आज, तथा समस्या समाज को दो वर्गों - एक, पूंजीवादी वर्ग या पूंजीपति वर्ग, जिसके पास सारी शक्तियाँ है, और एक बहुत बड़ा वर्ग जिसे देशों की सबसे "लोकतांत्रिक" स्थिति में भी, निर्णय की सभी शक्ति से शोषित और वंचित किया गया गया है, में बाँटने के लिए सिर्फ पूंजीवाद ही जिम्मेवार है.यह पूंजी का अवैयक्तिक तंत्र ही है जिसने हमें nव्यक्तियों के व्यक्तिगत व्यवहार या पिछली पीढ़ी के लालच के कारण, वर्तमान गन्दगी में धकेला है .

वही बात उन सभी "लोगों" या "नागरिकों" के बारे में भी सच है जिन्हें दुनिया को बचाने के लिए सक्षम बताया जाता है. ये अर्थहीन श्रेणियां हैं जो विरोधी वर्गों के हितों पर पर्दा डालती हें. एक वर्ग द्वारा दूसरे के शोषण पर टिकी व्यवस्था से मुक्ति का मार्ग सिर्फ वर्ग संघर्ष को पुनर्जीवित करना ही है .यह मार्ग मजदूरों द्वारा सभी सरकारों द्वारा पैदा कि गईं जीवित और कामकाजी परिस्थितियों पर सभी राज्यों और नौकरशाहों के हमलों तथा “आर्थिक संकट” के खिलाफ अपने सबसे बुनियादी हितों का बचाव करते हुए शुरू होता है. मालिक वर्ग मजदूरो पर किये जाने वाले हमलों को पर्यावरण की रक्षा के नाम पर अधिक से अधिक उचित बताता है . यह मज़दूर वर्ग के लिए यही एकमात्र आधार है जिसके द्वारा वह मजदूर वर्ग को एक विलुप्त प्रजाति बताये जाने वाले सभी झूठों के खिलाफ अपने अस्तित्व की भावना विकसित कर सकता है. और यही वह एकमात्र आधार है जिसके माध्यम से आर्थिक संकट, युद्ध और पारिस्थितिकी (जलवायु) आपदा के बीच कडी और इस सत्य को स्थापित करने की केवल एक विश्व व्यापी क्रांति उन्हें दूर कर सकती है और आर्थिक व राजनैतिक आयामों में वर्ग संघर्ष की ज्योति जलाई जा सकती है .

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, सैकड़ों हजार लोगों ने शांति प्रदर्शनों का आयोजन किया था .उन्हें "लोकतांत्रिक" शासक वर्गों द्वारा प्रोत्साहित किया गया था, जिन्होंने यह भ्रम फैलाया कि आपके पास एक शांतिपूर्ण पूंजीवाद हो सकता है. आज भी यह भ्रम दूर-दूर तक फैलाया जा रहा है कि आपके पास एक हरा-भरा पूंजीवाद हो सकता है। एक बार फिर सभी अच्छे और सच्चे लोगों द्वारा शांतिवाद की अपील के साथ, इस तथ्य को छिपाने की कोशिश की जा रही है कि केवल वर्ग संघर्ष वास्तव में युद्ध का विरोध कर सकता है. इसका गवाह है 1917-18 का दौर, जब रूसी और जर्मन क्रांतियों के विस्तार ने शासकों को विश्व युद्ध को तेजी से खत्म करने के लिए वाध्य किया. शांति की अपीलों ने कभी भी युद्धों को नहीं रोका है, और जलवायु आपदा से रक्षा के लिए झूठे समाधान हेतु वर्तमान पारिस्थितिकी अभियान, इसके वास्तविक समाधान के लिए एक बाधा के रूप में समझा जाना चाहिए.

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