कोविद १९ महामारी: पूंजीवादी बर्बरता का विकराल रूप या विश्व सर्वहारा क्रांति

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हम यहाँ कोरोंना वायरस के संकट पर आई. सी. सी. के वक्तव्य को एक डिजिटल लीफलैट के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं, क्योंकि लौकडाउन की स्थिति से यह स्पष्ट है कि इसे बड़ी संख्या में छाप कर वितिरत नहीं किया जा सकता.हम अपने सभी पाठकों से कह रहे हैं कि वे इस लीफलैट को अधिक से अधिक संख्या में वितरित करने के लिए उपलब्ध सभी साधनों, सोशल मीदिया आदि इंटरनेट के सभी माध्यमों आदि का प्रयोग करें. हम उनसे यह भी उम्मीद करते हैं कि वे इस पर्चे पर होने वाली बहसों, प्रतिक्रियाओं तथा प्रस्तुत आलेख पर अपने विचारों से भी अवगत कराएँ. सर्वहारा क्रांति के लिए संघर्ष में जुटे साथियों के यह इस लिए लिये भी आवश्यक है कि वे एकजुटता अभिव्यक्त करे और एक दूसरे के साथ संपर्क स्थापित करें. हम कुछ समय के लिए भौतिक तौर पर अलग थलग हो सकते हैं, लेकिन हम तब भी राजनैतिक रूप में एक साथ होंगे.

नित रोज हजारों लोगों की जानें जारही है, अस्पतालों ने महामारी के सामने घुटने टेक दिए हे: यहाँ नौजवानों और बीमार बुजर्गों के बीच एक डरावना परिद्रश्य उपस्थित हो गया है, स्वास्थ्य कर्मी थके हुए, वायरस से ग्रसित और उनमें से कितने ही विषाणु से लड़ते हुए अपने प्राण निछावर कर चुके हें. सरकारें “ विषाणु से युद्ध “ तथा “राष्ट्रीय आर्थिक हितों कि सुरक्षा” के नाम पर गलाकाट प्रतियोगिता में उलझी हुई हें. स्वतंत्र रूप से गिरते हुए वित्तीय बाजार अति यथार्थवादी तरीके से डकैतियों में संलग्न हैं, जहाँ सरकारें मास्कों की लूट खसोट में लगी हुई हें . दसों लाखों मजदूरों को बेरोजगारी के नर्क में धकेल दिया गया है ,सरकारों और उसके मीडिया द्वारा तूफानी झूठों के सहारे आज की दुनियां द्वारा भविष्य की डरावनी तस्वीर प्रस्तुत की जा रही है.यह महामारी स्पेन के १९१७-१८ के फ्लयू के पश्चात स्वास्थ्य के क्षेत्र में भयंकर तबाही का मंजर प्रस्तुत करती है;, यद्धपि उस समय के बाद, विज्ञानं ने अद्भुत तरक्की की है.फिर ये आपदा क्यों ? हम आज यहाँ क्यों पहुंचे?

हमें बताया गया है कि वर्तमान वाइरस अन्य विषाणुओं से अलग है कि यह अन्य के मुकाबले अधिक संक्रामक है, यह कहीं अधिक घातक और और विनासक है. सम्भवतया यह सच हो, लेकिन यह विपदा के स्तर को बयाँ नही करते. इस समूचे गृह पर मची अफरा तफरी , सैकड़ों हजार मौतों के लिए सिर्फ और सिर्फ पूंजीवाद ही जिम्मेदार है. यहाँ उत्पादन मानव की जरूरतों के नहीं लिए बल्कि मुनाफा कमाने, स्थाई तौर पर मूल्य वृद्धि को प्रभावी बनाने के लिए, मजदूर वर्ग के भयंकर शोषण , शोषित वर्ग के जीवन की स्थितियों पर लगातार हिसक हमले, राजकीय संस्थानों के बीच पागलपन की हद तक होड की कीमत पर किया जाता है . पूंजीवादी व्यवस्था के इसी बुनियादी चरित्र ने समूची मानवता को वर्तमान आपदा के कुए में धकेला है .

पूंजीवाद की आपराधिक लापरवाही

वर्तमान समाज को संचालित करने वाला पूंजीपति वर्ग अपने राज्य व मीडिया के साथ मिल कर अपने निहित स्वार्थों की चादर में लपेट कर हमारे सामने प्रस्तुत करता है कि इस महामारी के विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं किया जा सकता था.यह उसी स्तर का झूठ है जो जलवायु परिवर्तन के विषय में झूठ बोला गया था. वैज्ञानिक लम्बे समय से कोविद १९ जैसी महामारी के बारे में चेतावनी दे रहे थे. लेकिन सरकारों ने उनकी अनसुनी कर दी. उन्होंने तो सी. आई .ए. द्वारा तैयार की गई उस रिपोर्ट को भी सुनाने से इंकार कर दिया ( “ कल की दुनियां कैसी होगी”) जिसमें वर्तमान महामारी के अभिलक्षणों कि परिशुद्धता के बारे में चौकाने वाले तथ्यों का विवरण पस्तुत किया था. पूंजीवाद की सेवारत राज्य ने इस भांति इस और से आँखें क्यों मूँद लीं? बहुत ही साधारण कारण है: जितना जल्दी संभव हो उतनी ही जल्दी मुनाफा पैदा करने के लिए निवेश. मानवता के भविष्य के लिए निवेश से उन्हें कोई लाभ नहीं मिलता, बल्कि उलटे मूल्य सूचकांक को ह्तोत्साहित ही करता है. यह निवेश राष्ट्रीय पून्जीवादी राष्ट्रों को साम्रज्य्वादी रन क्षेत्र में एक दूसरे के ऊपर प्रभुत्व स्थापित करने में सक्रिय भूमिका निभाता है. सैनिकं क्षेत्र में शोध कार्य में पागलपन की हद किये जाने वाली धनराशि को यदि स्वास्थ्य व मानव कल्याण में खर्च किया गया होता तो इस प्रकार कि महामारियां कभी सर नही उठातीं, लेकिन पूर्व घोषित महामारियों के खिलाफ कदम उठाने के बजाय सरकारों ने तकनीकी और मानव संसाधनक्षेत्र के क्षेत्र में किये जाने शोध कार्य पर हमले एक दिन भी नहीं रोके, वे nनिरंतर जारी रखे.

आज उच्च स्तर पर विकसित देशों के ह्रदय में भी लोग मक्खियों की भांति मर रहे हैं. इसका मुख्य कारण है कि इन देशों की सरकारों ने रोगों के विषय में की जाने वाले शोध कार्यों के लिए आवंटित बजट पर निरंतर कैंची चलाई है. इस प्रकार डोनाल्ड ट्रम्प ने २०१८ में महामारी के खिलाफ लड़ने के लिए प्रशिद्ध विशेषज्ञों को ले का गठित की गयी ‘राष्ट्रीय सुरक्षा समिति’ की एक विशेष इकाई को ही भंग कर दिया. ट्रम्प का यह व्यवहार एक विद्रूप ही कहा जायेगा क्योंकि हर देश की सरकार सब कुछ ऐसा ही कर रही है .इस प्रकार कोरोना वाइरस के विषय में किये जाने वाले शोध कार्यों को विगत १५ वर्ष पहले ही तिलांजली इस लिए देदी गई ही थी कि इसके लिए विकसित किये जाने वाले टीके का “मूल्य प्रभावशाली “ नहीं माना गया था.

इसी भांति, यह देखना भी नितांत घ्रणास्पद लगता है कि दक्षिण और बाम दोनों ब्रांड के पूंजीवाद के नेता और राजनीतिज्ञ अस्पतालों के सरावोर हो जाने, और भयंकर परस्थितियों में भी स्वास्थ्य कर्मियों को काम करने के लिए वाध्य किये जाने का रोना रोते हें, जबकि बीते ५० सालों से सरकारे व्यवस्थागत तरीके से सिर्फ मुनाफे के नियम कानूनों को लड़ने का काम कर रही है. वे हरेक जगह स्वास्थ्य सेवाओं में कटौती करने, अस्पतालों में मरीजों के लिए शैय्या ( बैड्स) कम करने. और स्वास्थ्य कर्मियों पर काम का अतिरक्त बोझ डालने में संलग्न पाए जाते हें . और हम स्वास्थ्य कर्मियों को दिए जाने वाले मास्क, सुरक्षा केलिए वस्त्र, संक्रमणरोधी जैल एवं जाँच उपकरणों आदि के बारे में क्या कहें? बीते कुछ सालों से धनराशि बचाने की गरज से इन जरूरी साधनों का भंडारण ही खत्म कर दिया. पिछले कुछ महीनों से कोविद १९ के आकस्मिक रूप से तेजी से फैलने के बारे में सोचते भी नहीn थे, नवम्बर २०१९ के बाद से वे अपनी आपराधिक गैर जिम्मेदारी पर पर्दा डालने के लिए मास्कों को वाइरस से बचाव के लिए अनुपयोगी होने का दावा कर रहे थे .

और , दुनियां के अफ्रीका व लैटिन अमरीका जैसे पिछड़े क्षेत्रों के कालानुक्रम के बारे में क्या कहें? अफ्रीका और लैटिन अमरीका की एक करोड़ आवादी के पास मात्र ५० वैन्तीलेटर उप्ल्बव्ध हैं.जिन लोगों के पास पीने भर के लिए पानी उपलब्ध नहीं है , उनके बीच लगातार हाथ धोते रहने के सलाह देते हुए पर्चे बांटे जा रहे हें! हर और से एक ही व्यथित चीख सुनाई दे रही है , “ महामारी के इस आपातकाल में हमारे पास कुछ भी नहीं है”.

पूंजीवाद,प्रत्येक का सभी के खिलाफ युद्ध है .

विश्व स्तर पर सभी देशों के बीच गला काट स्पर्धा ने वायरस को रोकने के लिए न्यूनतम सहयोग का मार्ग भी अविरुद्ध कर दिया है.जब इसकी शुरूआत ही हुई थी,तब चीनी पूंजीपतियों ने अपने आर्थिक हितों की सुरक्षा और अपनी प्रतिष्ठा को बचाने के लिए, स्थिति की गहनता पर पर्दा डालना ही अधिक आवश्यक समझा. राज्य खतरे की घंटी बजाने वाले डाक्टर को प्रताड़ित करने में भी नहीं हिचका, और अंत में उसे मर जाने दिया. यहाँ तक पूंजीपतियों द्वारा उपकरणों की कमी के समय सहयोग के लिए बनाये गये अन्तर्राष्ट्रीय नियमों के दिखावे को भी धता बता दी गई, विश्व स्वास्थ संगठन अपने दिशा निर्देशों को लागू करने में असमर्थ रहा जबकि यूरोपे यूनियन समय रहते कोई ठोस कदम उठाने में असफल रहा. इस विभाजनकारी नजरिये के कारण महामारी के फैलने पर नियंत्रण कर पाने में असफलता ने एक भयंकर अव्यवस्था को तीब्र करने में सहयोग ही किया. “प्रत्येक व्यक्ति सिर्फ अपने लिए” के गतिज और व्यापक रूप से बढ़ती हुई होड, सत्ताधारी वर्ग की प्रतिक्रिया का प्रमुख लक्षण बन गया. हर राज्य अनुमानों के मुताबिक उपकरणों कि छीना झपटी में संलग्न है; युद्ध जैसी कार्यवाही खतरा का उठाते हुए उपकरणों की चोरी तक की जारही है. स्वीडन की और जाने वाले जहाज से बीच में ही पूरा माल लूट लिया गया, इटली को भेजे जाने वाले मास्क और वैन्तीलेटर को चैक गणतन्त्र ने कस्टम नाके पर ही जब्त कर लिया.जर्मनी द्वारा कनाडा को भेजे गये मास्क बीच में ही गायब हो गये. यह है दुनियां के “ महान जनतंत्रो “ का असली चेहरा है: चोर और लुटेरों का कुरूप चेहरा.

शोषितों पर अभूतपूर्व हमले

इटली के आन्दोलानरत मजदूर चीख चीख कर बता रहे हैं “ पूंजीपतियों के लिए हमारी जान से मुनाफा अधिक प्यारा है.” प्रत्येक देश के पूंजीपति अपने राष्ट्रीय उत्पादन को हर कीमत पर जारी रखने के लिए जनता के लिए उठाये जाने वाले सुरक्षात्मक उपायों को लम्बे समय तक टालते रहे.यह लगातार बढती मौतों के आंकडे ही थे जिससे भय भीत हो कर ही लाक डाउन किया राष्ट्रीय हितों की रक्षा के नाम पर लडे गये युद्धों ने सिद्ध कर दिया है कि सत्ताधारी वर्ग मजदूरों की जिन्दगी से कितनी घ्रणा करता है.नहीं! हमारे शाषक हमारे जीवन की परवाह नहीं करते! जहाँ तक पूंजीवाद का प्रश्न है, विशेषतया वायरस उनके लिए “लाभदायिक “ है जब “अनुत्पादक” बने बीमार और बूढ़े मजदूरों को कारखानों से बाहर का रास्ता दिखाने का बहाना मिल जाता है . वायरस को फैलते जाने देना और “झुन्ड की प्रतिरक्षा “ प्रणाली पर प्राकृतिक तौर पर हमले होने देना वास्तव में बौरिस जानसन और अन्य नेतातों की प्राथमिक इच्छा थी. प्रत्येक देश में अर्तव्यवस्था के अवव्यव्स्थित हो जाने तथा कुछ अन्य देशों में सामाजिक अव्यवस्था व बढती हुई मत्यु दर के प्रति गैर जिम्मेदारी पूर्ण रवैये के कारnण, समाज में उठते हुए गुस्से के तूफान ने ही लाकडाउन के काम को सर्वोच्च सूची में लाकर रख दिया. आधिक क्या कहें ? जहाँ आधी से अधिक मानवता उलझी हो , वहां एकांतवास के साधन मजाक बन गये हैं , हर रोज रेलगाड़ियों, बसों, पाइपों, कारखानों तथा सुपर बाजारों में हजारों की भीड़ देखी जा सकती है , ऐसे समय जब महामारी अपने उफान पर है, मजदूरों के उभरते असंतोष को ठंडा करने के लिए क्षेत्र दर क्षेत्र , कारखाने दर कारखाने कुछ – कुछ मजदूरों को काम पर वापस भेज कर लाकडाउन को जल्दी से जल्दी खत्म करने पर पूंजीवाद सघनता से विचार कर रहा है.

पूंजीवाद, शोषण की और अधिक क्रूरतम परस्थितियों के साथ मजदूर वर्ग पर लगातार नये हमले करने तैयारी में लगा है. महामारी ने लाखो मजदूरों को बेरोजगारी के गर्त में धकेल दिया है; अमेरिका में तो पिछले तीन सप्ताह में ही दस लाख मजदूर बेरोजगार हो गये हें. उनमें से बहुतेरे, जो अनिमित, अनिश्चित अथवा अस्थाई रूप से कार्यरत थे, उन्हें किसी प्रकार की आमदनी नहीं होगी. अन्य कुछ, जिनके पास जिन्दा रहने लायक कुछ सामाजिक लाभ के साधन उपलब्ध हें वे आगामी दिनों में मकानों का किराया और दवा आदि का दाम चुकाने में समस्या का सामना करना पड़ेगा.पहले से ही घुन्घले हुए, विश्व मंदी की प्रक्रिया की गति तीव्र होने;खाद्यानों की कीमतों में अनाप शनाप वृद्धि ; रोजगारों की निंतर बढती अनिश्चितिता के कारण आर्थिक विध्वंश की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. सभी राज्य, “वायरस के विरुद्ध युद्ध में राष्ट्रीय एकता “ नाम पर “ लचीलेपन” के साधन अपना रहे हैं.

पूँजीवाद जिस राष्ट्रीय हित की बात करता है, वह हमारा हित नहीं है. यह वही राष्ट्रीय आर्थिक सुरक्षा है,यह वही घनीभूत प्रतिस्पर्धा है जो, भूत में, शोषितों के जीवन की स्थिति पर हमले तेज करने के लिए बजट में कटौतिया करने को वाध्य किया. आज यह फिर उसी झूठ को दोहराएगा जब कहेगा कि इस महामारी के कारण गहराते आर्थिक संकट का मुकावला करने के लिए गरीब लोग अपने पेट पर बंधी पट्टी को और कसलें;और अधिक शोषण व गरीबी को स्वीकार कर लें. यह महामारी पर्यावरण के विनाश, ऋतू परिवर्तन के प्रदूषण, साम्राज्यवादी युद्धों और कत्लेआम में वृद्धि, मानवता के एक बड़े भाग को निर्दयता पूर्वक गरीबी में धकेले जाने, जनता के बड़े हिस्से को शरणार्थी बना देना और धार्मिक कट्टरपन तथा पोपूलिस्ट सिद्धांत का विकास के साथ, पूंजीवादी उत्पादन पद्धति के पतनशील चरित्र की अभिव्यक्ति है. See our text “Theses on the decomposition of capitalism” on our internet site: https://en.internationalism.org/ir/107_decomposition). यह व्यवस्था मानवता को जिस अव्यवस्था, दुःख ,बर्बरता, विध्वंश और हत्याओं की ओर धकेल रही है, यह बताता है कि पूंजीवाद एक गहरे अंत की ओर बढ़ रहा है जो इसके अंत का सूचक है .

सिर्फ सर्वहारा ही बदल सकता है इस दुनियां को.

कुछ सरकारें और मीडिया की दलील है कि दुनियां बिलकुल वैसी नहीं रहेगी जैसी इस वायरस के फैलने से पहले थी, उनका मानना है कि आपदा के पश्चात जो सबक मिलेंगे उनके अनुसार अंत में सरकारें मानवीयता की ओर बढ़ेंगी और पूंजीवाद और अधिक व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत होगा.हमने २००८ की मंदी के बाद भी इसी टेक के साथ सुना था:अपने दिलों पर हाथ रख कर सरकारों और नेताओं ने “लुटेरी वित्तीय व्यवस्था के खिलाफ युद्ध” छेड़ने की घोषणा करते हुए बचन दिया था कि जनता द्वारा की गई कुर्वानियों की मांग है कि हम इस इस संकट पर पार पायेंगे और और एक बेहतर जीवन मिलेगा. आप सिर्फ देखेंगे कि विश्व में बढती हुई असमानता इस बात की शिनाख्त करती है कि पूंजीवाद में “सुधार “ के ये वायदे हमारे जीवन स्तर में आरही निरन्तर नई गिरावट को निगल जाने के लिए पूंजीवाद का एक बड़ा झूठ है.

पूंजीवाद अपने थोथे आर्थिक नियमों के सहारे nन इस दुनियां और न मानवीय जीवन व सामाजिक आवश्यकताओं को बदल सकता है: पूंजीवाद एक शोषणकारी व्यवस्था है; जिसमें सत्ताधारी अल्पमत बहुमत के श्रम को निचोड़ कर अपना मुनाफा और अन्य सुविधाए पैदा करता है. एक नये भविष्य की कुंजी, एक नई दुनियां के वादों, शोषण व राष्ट्रों रहित एक सच्ची इंसानी दुनियाँ मजदूर वर्ग के बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अटूट भाईचारे और उसके संघर्ष में निहित है.

वर्तमान में स्वास्थ्यकर्मियों पर लादी गये असहनीय स्थिति के खिलाफ उनके बीच उठ रहे असंतोष के फलस्वरूप हमारे वर्ग के बीच एक आपसी भाईचारे की एक स्व्यन्स्फूर्ती लहर उठ रही है, उसे पटरी से उतारने के लिए सरकारों और नेताओं द्वारा अपने दरवाजों व गौखों में तालियाँ पीटने का नाटक नाटक किया जा रहा है.वास्तव में यह उत्साहवर्धन कर्मचारियो के ह्रदय में एक नया जोश पैदा करेगा जो बड़े जोश और त्याग की भावना के साथ विकट परिस्तिथियों में भी मरीजों के देख और इनका इलाज कर रहे हें. लेकिन हमारे शोशित वर्ग के लोगों का भाईचारा मात्र पांच मिनट के लिए शाबाशी पर ही खत्म नहीं हो जाना चाहिए. इसका अर्थ यह है, प्रथमतया, बिना किसी रंगभेद के सभी सरकारों की निंदा की जानी चाहिए.अर्थात, मास्क और अन्य सुरक्षा उपकरणों की मांग की जानी चाहिए.और सम्भव हुआ तो वे हडताल पर भी जा सकते हैं.अर्थात,जब तक स्वास्थ्यकर्मियों को आवश्यक सामग्री उपलब्ध नहीं करा दी , कब तक अपने उघडे चेहरों के साथ म्रत्यु की और धकेले जाते हैं और ये शोषित यदि वे अस्पताल में नहीं हैं, तो वे काम नहीं करेंगे.

आज, जब लाकडाउन खत्म नहीं हो जाता तबतक हम इस हत्यारी व्यवस्था के विरुद्ध कोई बड़ा आन्दोलन नही छेड़ सकते.और न हम बड़े संघर्षों, हड़ताल व प्रदशनों के माध्यम से रोष और भाईचारे की भावना व्यक्त करने के लिए साथ- साथ खड़े हो सकते हैं. क्योंकि लाक डाउन के अलावा इसके अन्य भी कई कारण हैं.क्योंकि हमारा वर्ग अपनी वास्तविक शक्ति जिसका इतिहास में कितनी ही बार प्रदर्शन कर चुका है, को पुनर्जीवित करने का प्रयाश कर रहा है. लेकिन आज सताधारी वर्ग और उसकी विध्वंसकारी व्यवस्था के खिलाफ आन्दोलन विकसित करने लिए संघर्ष में अपने शक्ति को एकजुट करने की क्षमता को भूल सा गया है.

जो हड़तालें इटली के ऑटोमोबाइल क्षेत्र, फ़्रांस के सुपर मार्किट, न्यूयार्क के अस्पताल व उत्तरी फ़्रांस में हुईं, बिना मास्कों, दस्तानों और साबुन के घोर निराशा में डूबे सुरक्षाकर्मी अपने एकमात्र शोषnणकर्ता के खिलाफ झुंडों में इकट्ठे हो गये और “ संक्रमित लोगों “ का इलाज करने से मना कर दिया. आज उनकी चेतना बिखरी और उनकी शक्ति समूचे वर्ग से अलग थलग हो सकती है. लेकिन इसके बावजूद, वे प्रदर्शित करते हैं कि मजदूर किसी भी प्रकार की अनिवार्यता, और जो हमारा शोषण करते हैं उनकी आपराधिक गैरजिम्मेवारी को बर्दास्त नहीं करेंगे.

वर्ग संघर्ष का यह वही परिप्रेक्ष है जिसके लिए हमें तैयारी करनी है. क्योंकि कोविद १९ के पश्चात् वैश्विक आर्थिक मंदी व विकराल बेरोगारी होगी, “ नये सुधारों “ के नाम पर सिर्फ और कुर्बानी देने का अलावा और कुछ नहीं होगा. सो! हमें अभी से संघर्ष की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए. कैसे? जितना सम्भव हो सके हमें विभिन्न इंटरनेट चैनल, फोन, आदि पर विचार विमर्श शुरू कर देना चाहिए. हमें समझ लेना होगा कि सबसे बड़ी आफत कोविद १९ नहीं है बल्कि पूंजीवाद है, और विपदा का हल रैलियों में हत्यारों के पीछे खड़ा होना नहीं वरन उसके मुकाबले खड़ा होंना होगा.. हमें अपनी आशाओं की खोज इस य उस नेता के वादों में नही, बल्कि संघर्षों के बीच मजदूर वर्ग की एकता खोजनी होगी. हमेंजान लेना होगा कि पूंजीवादी बर्वरता का विकल्प सिर्फ विशव सर्वहारा क्रांति ही है.

भविष्य वर्ग संघर्ष में निहित है.

इन्टरनेशनल कमुनिस्ट करंट 10.4.20