संयुक्त राज्य अमेरिका,ईरान, इटली, कोरिया के संघर्ष….. न महामारी और न ही आर्थिक संकट, सर्वहारा के लडाकूपन को तोड़ पाए !

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आई सी सी द्वारा ९ नवम्बर २०२१ को प्रस्तुत .

संयुक्त राज्य अमेरिका में आज मजदूरों की अगुआई में हुई हड़तालों की श्रंखला ने देश के बड़े हिस्से को  हिला कर रख दिया है. महामारी के दौरान,केलाक्स,जान डीरे,पैप्सिको तथा ऐसे औद्योगिक  मालिकों द्वारा  मजदूरों पर लादी गये काम की असहनीय स्थितियां, शारीरिक और मनोंवैज्ञानिक थकान, लाभ में  अनाप शनाप वृद्धि  के खिलाफ “ स्ट्राइक टोबर” नामक  आन्दोलन ने हजारों  श्रमिकों को लामबंद किया.  इन ह्ड़तालों ने हालत ऐसे  प्रस्तुत किये कि न्यूयार्क के स्वास्थ्य क्षेत्र और निजी क्लीनिकों में हुयी हड़तालों की सही गिनती करना मुश्किल है क्योंकि संघीय सरकार उन हड़तालों की गिनती करती है जिनमें एक हजार से अधिक कर्मचारी भाग लेते हैं . ऐसा देश  जो वैश्विक पूँजीवाद की मरणशीलता का केंद्र बना हुआ है वहां मजदूर  वर्ग अपने जुझारूपन के सक्रिय रूप को प्रर्दर्शित कर रहा है, यह तथ्य इस सच्चाई का प्रतीक है कि मजदूर वर्ग पराजित नहीं हुआ है.

लगभग  दो वर्षों से, कोविद -१९ की  महामारी के प्रकोप  के कारण बार –बार लाक डाउन,आपातस्थिति में अस्पतालों में भर्ती होने और दुनियां में हुयी लाखों मौतों के कारण मजदूर वर्ग पर मुसीबतों  का पहाड़ ही टूट पडा. मुनाफे की बढती मांगों के तहत बोझ से भरी स्वास्थ्य सेवाओं में गिरावट के कारण समूची  दुनियां का मजदूर पूंजीपति वर्ग की आम लापरवाही का शिकार हुआ. दिन – प्रतिदिन के जीवन के दवाबों  और कल के भय  ने मजदूरों को की कतारों में पहले से ही एक मजबूत अभेद भावना को मजबूत किया है  जिसने उसे अपने ही खोल में वापस जाने की प्रवृति को बल मिला है. २०१९ के दौरान और २०२० के प्राम्भ में  कई देशों में व्यक्त की गई संघर्ष के पुनरुद्धार के बाद, सामाजिक टकराव अचानक  रुक गया. यदि फ़्रांस में पेंशन सुधार के खिलाफ आन्दोलन ने सामाजिक संघर्षों में एक नई गतिशीलता दिखाई दी थी,  तो कोविद-१९ महामारी एक शक्तिशाली गला घोंटने वाली सिद्ध हुई .

किन्तु महामारी के बीच भी,  विभिन्न स्थानों पर मजदूर वर्ग के क्षेत्रों में  छिटपुट संघर्ष जारी रहे , इटली व् फ़्रांस में, विशेषरूप से स्वास्थ्य की देखभाल, परिवहन और व्यापार के क्षेत्रों में पूंजीपति वर्ग के बढ़ते हुए शोषण और कुटिलता तथा काम काज की असहनीय परस्थितियों के विरुद्ध  प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए  मजदूर वर्ग अपनी जुझारू क्षमता का प्रदर्शन  करने में सफल रहा. हालांकि, घातक वाइरस के कारण थोपे गये लाक डाउन और पूंजीपति वर्ग द्वारा फैलाये गये आतंक के माहौल ने  इन संघर्षों को जारी रखने और एक वास्तविक विकल्प प्रस्तुत करने से रोक दिया.

इससे भी बदतर, नारकीय और स्वास्थ्य के लिए खतरनाक परस्थितियों के प्रति असन्तोष की अभिव्यक्तियों, मजदूरों द्वारा बिना मास्क पहने सुरक्षा के काम पर जाने से इनकार, पूंजीपति वर्ग ने मजदूर वर्ग  की इन मांगों को स्वार्थी, गैर जिम्मेदाराना, औए इससे भी बढ़ कर सामाजिक और आर्थिक एकता में तथा  जनता के समक्ष स्वास्थ्य संकट के  समय जारी रास्ट्रीय संघर्ष  में विघ्न डालने का दोषी ठहराया.

मजदूरों के जुझारूपन का एक नाजुक लेकिन वास्तविक  जागरण.

सालों के बाद, जिसमें अमेरिकी आबादी,एक सर्व शक्तिमान राज्य के अंगूठे के नीचे रही है.  डोनाल्ड ट्रम्प का पूर्ण रोजगार का चैंपियन बनाने का लोक लुभावन झूठ, और जोबिडेन के “ नए  रूजवेल्ट “ के डेमोक्रेटिक मकडजाल से, तंग आकर हजारों मजदूर धीरे -  धीरे अपनी खोई हुयी सामूहिक शक्ति को बटोरने में लगे  हैं. वे खुलेतौर पर घ्रणित “ दो  स्तरीय वेतन प्रणाली “ (१ ) को खारिज कर रहे हैं, इस प्रकार वे पीढ़ियों के बीच एकजुटता प्रदर्शन करते हुए,अधिकांश अनुभवी, “सुरक्षित“औरअधिक अनिश्चित व् विकट परिस्थितियों में काम करने वाले नौजवान साथियों के साथ संघर्ष कर रहे हैं .

भले ही इन हड़तालों ( जिन्होंने पूंजीपति वर्ग को इस लामबंदी को संयुक्त राज्य में ” यूनियनों के “ महान  पुनर्द्धार” के रूप में प्रस्तुत करने की अनुमति दी है )  जिनकी  यूनियनों द्वारा अच्छी तरह से निगरानी की जाती है, उनमें हमने हस्ताक्षरित समझौतों पर विभिन्न संघों द्वारा सवाल उठाने के संकेत देखे हैं. यह विरोध  प्रारंभिक है और मजदूर वर्ग अभी भी पूंजीवादी राज्य के इन पहरेदारों के साथ सीधे और सचेत टकराव से दूर है. फिर भी यह लड़ाकूपन का एक बहुत ही वास्तविक संकेत है .

कुछ लोग यह सोच सकते हैं कि अमेरिका में ये संघर्ष इस नियम को सिद्ध करने वाले अपवाद हैं: कि वे नहीं हैं जो हाल के हफ्तों और महीनों में जो संघर्ष उभरे हैं:

  • ईरान में, इस गर्मी में, कम मजदूरी और उच्च  जीवन लागत के खिलाफ तेल क्षेत्र में हड़तालों के दौरान ७० से अधिक साइटों के मजदूरों ने आंदोलनों में भाग लिया ;
  • कोरिया में सामाजिक लाभ के लिए, अनिश्चतता और असमानता मजदूरों  के खिलाफ, अक्टूबर में यूनियनों द्वारा एक हड़ताल का आयोजन किया जाना था;
  • इटली में पिछले सितम्बर और अक्टूबर में अतिरेक के खिलाफ हड़ताल के लिए कई दिनों की कार्यवाही के लिए आव्हान किये गये,और वे इतालवी जनरल कन्फेडरेशन आफ लेबर, और नियोक्ताओं के बीच कोविद से मुक्ति पाने लिए एक  “सामाजिक समझौते” और संक्षेप में आसान बर्खास्तगी और न्यूनतम वेतन की समाप्ति  के लिए एक चर्चा के खिलाफ़ भी थे.
  • जर्मनी मे, सार्वजनिक सेवा संघ यूनियन (Vereinte Diensleistungsgewerkschaft) वेतन वृद्धि  प्राप्त करने के प्रयास में हड़ताल की धमकी देने के लिए वाध्य महसूस करता है;
  • ब्रिटेन में हड़ताल चल रही हैं, या इंकार करने वाले विश्व  विद्यालय,परिवहन कर्मचारियों और अन्य द्वारा  इंकार किया गया है .

मंहगाई से बिगड़ेगी जीवन स्थिति.

यदि आप पूंजीवादी अर्थशास्त्रियों को सुनें तो वे बतायेंगे, वर्तमान मुद्रा स्फीति जो बुनियादी वस्तुओं और ऊर्जा की कीमतों को बढ़ा रही है, इस प्रकार अमेरिका, फ़्रांस, संयुक्त राष्ट्र अथवा जर्मनी क्रय शक्ति को समाप्त कर रही है, जो केवल “आर्थिक सुधार” का चक्रीय उत्पाद है.

आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार, मुद्रा स्फीति में वृद्धि “विशिष्ट पहलुओं” से जुडी हुई है,  जैसे कि समुद्री या सड़क परिवहन में अडचनें, औद्योगिक  उत्पादन में “अतिताप” के लिए विशेषरूप से ईंधन और गैस की  कीमतों में वृद्धि . इस द्रष्टि से यह बीतता हुआ क्षण है जबकि आर्थिक उत्पादन की पूरी प्रक्रिया अपने संतुलन को पुन: प्राप्त कर लेती है.  यह सब कुछ हमें आश्वस्त करने के लिए और एक  “ आवश्यक” मुद्रास्फीति की प्रक्रिया को  सही ठहराने के लिए किया जाता है, जिसके फिर भी चलते रहने की सम्भावना है .

महामारी के आर्थिक और सामाजिक प्रभाव से निपटने और उसकी व्यापकता से बचने के लिए ‘ हैलीकोप्टर” धन के सहारे सैकड़ों अरब डालर,यूरो येन,या युआन  बिना लागत की चिंता किये महीनों तक मुद्रित कर डाले हैं.  इस अराजकता ने न केवल मुद्राओं के मूल्य को कमजोर किया है और एक पुरानी मुद्रा स्फीति की प्रक्रिया को आगे बढाया है . इसकी मार मजदूर वर्ग पर  सबसे अधिक पड़ी है, जिसकी कीमत उसे चुकानी पड़ेगी.

इस हमले के खिलाफ,भले ही,अभी तक प्रत्यक्ष और व्यापक प्रतिक्रिया न हुई हो, मुद्रा स्फीति के विकास और संघर्षों के एकीकरण के शक्तिशाली कारक के रूप में काम कर सकती है : बुनियादी आवश्यकताओं, गैस, रोटी , बिजली आदि की कीमतों में वृद्धि न केवल सीधे हो सकती है. इन हमलों के शिकार चाहे  वे सार्वजनिक क्षेत्र में  काम करने वाले हों अथवा निजी क्षेत्र में बेरोजगार हों या सेवानिवृत, सभी मजदूर होंगे. सभी का जीवन स्तर को नीचे धकेला जायेगा.भूख और ठण्ड भविष्य के सामाजिक आंदोलनों को गति प्रदान करने वाले प्रमुख तत्व होंगे, जिसमें पूँजीवाद के प्रमुख देश भी शामिल होंगे.  

दुनिया की सभी सरकारें बड़ी साबधानी से आगे बढ़ रही हैं. हालांकि उन्होंने अभी सादगी कार्यक्रम लागू नहीं किया है, लेकिन इसके विपरीत उन्होंने अर्थव्यवस्था में लाखों और लाखों डालर, येन, युआन का व्यापक रूप से इंजेक्शन लगाया है तथा अर्थव्यवस्था में विनियोग किये हैं . वे जानते हैं  कि गतिविधि को  पुनर्जीवित करना नितांत आवश्यक है. और एक सामाजिक बम टिकटिक कर रहा है .

यध्यपि  सरकारों का  मत था कि वे सभी कोविद से सम्बन्धित सहायता उपायों को जल्दी से समाप्त कर  देंगे और खातों को शीघ्र से शीघ्र “सामान्य” कर लेंगे. इस प्रकार बिडेन ने (सामाजिक आपदा  से बचने के लिए ) हस्तक्षेप कर  एक “ऐतिहासिक योजना” प्रस्तुत  की जो ”लाखों रोजगार  पैदा  करने वाली अर्थ व्यवस्था के विकास के लिये हमारे देश और हमारे लोगों में  निवेश करें”.(२) इससे आपको  लगता होगा कि आप सपना देख रहे हैं ! स्पेन में भी यही सच है, जहां समाजवादी पैद्रोसान्चेज २४८ बिलियन यूरो के पूरे सामाजिक खर्चे की विशाल योजना को लागू कर रहा है. पूंजीपति वर्ग के एक  हिस्से  की इस  नाराजगी को नहीं जानता कि  बिलों का भुगतान कैसे किया जाएगा. फ़्रांस में भी २०२२ के राष्ट्रपति चुनाव के लिए तमाम हंगामे और चुनावी  बयानबाजी के पीछे  सरकार लाखों कर दाताओं के लिए “ऊर्जा वाउचर” और “मुद्रास्फीति भत्ता “ के साथ सामाजिक असंतोष का अनुमान लगाने की कोशिश कर रही है .

समस्या पर पार पाने में प्रमुख कठिनाइयाँ और नुकसान

लेकिन सर्वहारा वर्ग की प्रतिक्रिया करने की क्षमता को पहचानने और उजागर करने से उत्साह और भ्रम पैदा नहीं होना चाहिए कि मजदूरों के संघर्ष के लिए एक शाही रास्ता खुल रहा है। मजदूर वर्ग की खुद को एक शोषित वर्ग के रूप में पहचानने और अपनी क्रांतिकारी भूमिका के बारे में जागरूक होने की कठिनाई के कारण, महत्वपूर्ण संघर्षों का रास्ता जो क्रांतिकारी काल का रास्ता खोलता है, वह अभी भी बहुत लंबा है।

इन स्थितियों में टकराव नाजुक, खराव संगठित स्थिति, बड़े पैमाने पर यूनियनों द्वारा नियंत्रित,  उन  राज्य मशीनरी द्वारा संघर्षों को  तोड़फोड़ करने में महारत हासिल है और जो निगमवाद और विभाजन को बढाते हैं.

उदहारण के लिए, इटली में, प्रारम्भिक मांगों और पिछ्ले संघर्षों की लड़ाई में यूनियनों  और इटली के वामपंथियों द्वारा एक खतरनाक गतिरोध की ओर मोड़ दिया गया है. इटली की सरकार ने सभी मजदूरों  पर  “ स्वास्थ्य पास के खिलाफ यूरोप में पहली सामूहिक औद्योगिक हड़ताल “ का सडा हुआ नारा  थोप  दिया है . 

इसी तरह, जबकि कुछ क्षेत्र संकट, बंद होने, पुनर्गठन औए बढ़े  हुये कार्य दरों से प्रभावित हैं. अन्य क्षेत्रों में  जनशक्ति की कमी और  एक बार  उछाल का सामना करना पड रहा है (  यूरोप में माल परिवहन में   हजारों  ड्राइवरों की कमी है). इस स्थिति में वर्ग के भीतर वर्गीय मांगों के माध्यम से विभाजन का खतरा होता है , इनका शोषण करने या आन्दोलन करने में यूनियनों को संकोच नहीं होगा .

आइये हम,  पूँजी के धुर दक्षिण पंथियों तथा “ फासीवादियों “ द्वारा प्रदर्शनों  में हिंसा फ़ैलाने  के खिलाफ  तथा पूंजी के “ वाम पंथियों “ द्वारा “जलवायुसंरक्षण के लिए चलाये जा रहे “ नागरिक मोर्चे के पक्ष में खड़े होने का आव्हान करते हैं . यह सर्वहारा वर्ग की सुदूर वामपंथी  प्रवचनों के प्रति संवेदनशीलता की एक और अभिव्यक्ति है, जो संघर्ष को गैर -सर्वहारा विशेष रूप से अंतर -वर्ग के क्षेत्र में ले जाने के लिए किसी भी साधन का उपयोग करने में सक्षम है.

 इसी तरह, मुद्रा स्फीति संघर्षों के एकीकरण के कारक के रूप में कार्य कर सकती है,कर और पैट्रोल  की  कीमतों में वृद्धि, निम्न –पूंजीपति वर्ग  को भी प्रभावित करती है. जैसे  फ़्रांस में “पीले रंगबनियान” जैसे  अंतर-  वर्गवादी आन्दोलन के उद्धव को जन्म दिया. वर्तमान सन्दर्भ,वास्तव में “लोकप्रिय” विद्र्हों की घटना के अनुकूल है, जिसमें सर्वहारा की मांगें छोटे मालिकों के  बाँझ और  प्रतिक्रियावादी पूर्वाग्रहों में दबी रहती है  जो संकट से बुरी तरह प्रभावित होते हैं. उदाहरण के लिए चीन का मामला लेलें जहाँ आकंठ कर्ज में डूबी अचल सम्पत्ति की दिग्गज कम्पनी एवरग्रांडे चीन की वास्तविकता का  प्रतीक है,  लेकिन उन छोटे  मालिकों जिनकी बचत या सम्पत्ति लूट ली गई  है, के विरोध की ओर जाता है.

अंतर् वर्गीय संघर्ष, एक वास्तविक जाल है और मजदूर वर्ग को अपनी मांगों, अपनी स्वायत्तता,अपने स्वयं के  ऐतिहासिक परिप्रेक्ष पर जोर देने की अनुमति नहीं देते है .महामारी से बढी हुई पूँजीवाद की सडांध मजदूर् वर्ग पर भारी पडती है और रहेगी. जो अभी भी बड़ी कठिनाइयों का सामना कर रहा है.  

समूचे सर्वहारा वर्ग का संगठित संघर्ष ही एक द्रष्टिकोण प्रस्तुत कर सकता है .

काम पर गैर हाजिरी, इस्तीफे की जंजीर, बहुत कम वेतन पर काम पर लौटने से इनकार, हाल के दिनों में बढना बंद नहीं हुआ है .लेकिन ये व्यक्तिगत प्रतिक्रियाएं हैं जो वर्गीय साथियों के साथ सामूहिक संघर्ष के माध्यम से पूंजीवादी शोषण से बचने के लिए एक (भ्रम पूर्ण ) प्रयास का अधिक प्रतिविम्ब है. उदहारण के लिए, अस्पतालों या रेस्तरांओं  में कर्मचारियों की कमी के लिए उन्हें सीधे “जिम्मेदार” बनाना,   “ इस्तीफा देने वाले “  मजदूरों को बदनाम करने में पूंजीपति वर्ग इस कमजोरी का लाभ उठाने में संकोच नहीं करता. दूसरे शब्दों में, मजदूरों को  रेंकों में विभाजित करना है.

 इन तमाम  कठिनाइयों तथा संकटों के बावजूद , इस अंतिम अवधि  ने एक रास्ता प्रशस्त किया है और यह स्पष्ट रूप से पुष्टि करता है कि मजदूर वर्ग अपनी जमीन पर खुद को स्थापित करने में सक्षम है .

वर्ग चेतना का विकास जुझारूपन के नवीनीकरण पर निर्भर करता है और यह अब भी नुकसान से भरा लम्बा रास्ता है . क्रांतिकारियों को इन संघर्षों का समर्थन करना चाहिए, लेकिन उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी उनके विस्तार के लिए,उनके राजनीतिकरण  के लिए यथासंभव संघर्ष करना है जो  क्रांतिकारी परिप्रेक्ष को जीवित रखने के लिए आवश्यक है . इसका अर्थ यह है कि पूंजीपति वर्ग  द्वारा उनके लिए बिछाए गये तमाम जालों और भ्रमों की द्रढ़ता के साथ निदा करके उनकी सीमाओं और कमजोरियों को पहचानने  में समर्थ होना है,   जो कहीं से भी आया हो और उन्हें धमकी देता हो.

स्टापियो, ३ नवम्बर २०२१

[१] नये  रंगरूटों के लिए  क्म्वेतन की एक प्रणाली , तथाकथित “ दादा खंड “ जिस पर की ट्रेड यूनियनों ने दोनों हाथों से हस्ताक्षर किये.

[२]यह कार्यक्रम, जो राजकीय पूँजीवाद की विशिष्टता है,  का उद्देश्य अमेरिकी पूँजीवाद का आधुनिकरण करना है ताकि अपनी  प्रतिस्पर्धियों, विशेष रूप से चीन का बेहतर तरीके से सामना कर सके.

रुब्रिक.