चीन में प्रतिरोधों का सरकारी दमन से सामना

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जेंग्चेंग का सिंतंग क्षेत्र, जो चीन के दक्षिणी गुअंग्जौ प्रान्त में है, 60 से अधिक अंतरराष्ट्रीय ब्रांडों  के लिए 26 करोड़ जोड़े जींस का वार्षिक उत्पादन करता है, यह चीन के जींस उत्पादन का 60% और  दुनिया  के  उत्पादन का एक तिहाई  है। विश्व की जींस की राजधानी के रूप विख्यात यह पिछले ३० वर्षों के चीनी आर्थिक विकास का प्रतीक है। जून 2011 के माह में, एक 20 वर्षीय गर्भवती के साथ पुलिस के सलूक के खिलाफ हजारों मजदूरों द्वारा गुस्साए प्रदर्शन और पुलिस के साथ मुठभेडें हुईं, यह 'आर्थिक चमत्कार' के गढ़ में मजदूरों द्वारा भोगी सच्चाई है।

मजदूरों ने सरकारी इमारतों पर हमला किया, पुलिस के वाहनों को उलट दिया और पुलिस से मुठभेडें हुयी। चीनी सरकार ने प्रदर्शानों के खिलाफ 6000 अर्ध सैनिक पुलिस को सशस्त्र वाहनों के साथ भेजा, जिन्होंने 10,000 मजदूरों पर आँसू गैस द्वारा हमला किया।  

पिछले साल होंडा में हड़ताल फैलने के बाद, कंपनी ने वेतन में अहम बढोत्तरी को स्वीकार किया। मजदूरों के, जिनमें से बहुत से देहातों से आए प्रवासी थे, हालिया प्रदर्शनों के रुबरु, सरकार ने दंगाइयों को चिन्हित करने वाले हर किसी को निवास का अधिकार देने की पेशकश की। चीनी शहरों में जिनके पास आवासीय मकान की रजिस्ट्री नहीं होती उन्हें स्वास्थ्य सुविधाओं, शिक्षा और अन्य सामाजिक लाभों से बंचित कर दिया जाता है।

जिन्चेंग में विरोध के ये दिन कोई अलग थलग घटना नहीं। एक सप्ताह पहले "सिचुआन प्रवासी पुलिस के साथ टकराए और गुअन्ग्ज़्हौ से लगभग 210 मील की दूरी पर, चोज्होऊ में, उन्होंने  पुलिस वाहनों को उलट दिया। यह तब हुआ जब अपना पिछले दो माह का वेतन मांगते एक मज़दूर पर सिरेमिक्स फेक़्टरी, जहां वह काम कर चुका था, के अधिकारी ने हमला किया" (लॉस एंजिल्स टाइम्स, 13/6/11)।     

जैसा कि फाइनेंशियल टाइम्स(17/6/11) ने लिखा "हालाँकि इस तरह के प्रदर्शनों का होना चीन में अपेक्षाकृत आम बात हैं, दोनों ही मामलों में पुलिस और गुस्साए नागरिकों के बीच गतिरोध जल्द ही हिंसा में बदल गया"।

बुर्जुआ प्रेस ने इस तथ्य को चिन्हांकित किया है कि इन टकरावों में प्रवासी मजदूर  शामिल थे। चीन में 15 करोड़ 30 लाख प्रवासी श्रमिक अपने गृहनगर से बाहर रहते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों को छोड़कर  वे निर्माण स्थलों, कारखानों, रेस्तरां और नई परियोजनाओं पर, जब वे आती हैं, काम के लिए जाते हैं। उनमें से साठ प्रतिशत 30 साल से कम आयु के हैं और, सर्वेक्षणों में पूछताछ के दौरान, पुराने श्रमिकों की तुलना में युवा मजदूर अधिक यह कहने वाले हैं कि वे सामूहिक कार्रवाई में भाग लेंगे। अब शहरी क्षेत्रों में काम कर रहे श्रमिक ग्रामीण इलाकों की ओर लौटने का बहुधा कोई इरादा नहीं रखते, मसलन बहुत कम को खेती का कोई अनुभव है।

अपने मूल स्थान से उनके लगाव की मात्रा का सबूत यह है कि युवा मजदूर  "अपने घर ग्राम को कम पैसे भेजते  हैं। राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो ने पाया  कि 2009 में युवा प्रवासियों ने अपनी आय का करीब 37.2 प्रतिशत अपने गांव को भेजा, जबकि अधिक उमर वाले प्रवासियों ने 51.1 प्रतिशत  भेजा।  (28/6/11 रायटर) 

चीनी पूंजीवाद की प्रतिक्रिया 

चाहे हड़ताल हों या अन्य विरोध, उनसे निपटते वक्त "स्थानीय और राष्ट्रीय दोनों स्तर पर चीन सरकार की पहली  वृति बल प्रयोग की है। दमन थोड़ी देर के लिए काम कर सकता है। लेकिन अगर अंतर्निहित कारणों को संबोधित नहीं किया जाता तो, चीन मे विस्फोट  का जोखिम है" (19/6/11 एफटी)। मतलब यह नहीं है कि चीन  दमन का रास्ता छोडने जा रहा है।

ब्लूमबर्ग (6/3/11) ने रिपोर्ट दी है कि "जबकि सरकार ने बढ़ती सामाजिक अशांति के नियंत्रण हेतु देश के चारों ओर सुरक्षा बलों को तैनात किया है, 2010 में चीन ने अपने सशस्त्र बलों  से अधिक अपने आंतरिक पुलिस बल पर खर्च किया, और इस वर्ष भी ऐसा ही करने की योजना है।" लेख आगे लिखता है "सार्वजनिक सुरक्षा खर्च में भारी उछाल तब आया है जब तथाकथित  जन घटनाएँ, हड़तालों से दंगो और प्रदर्शनों तक सब कुछ, वृद्धि पर हैं। 2010 में कम से कम 1,80,000 ऐसी घटनाएँ हुईं, जो 2006 से दोगुनी हैं" ऐसा कहना है  बीजिंग स्थित तिसिंघुआ विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र के प्रोफेसर  सन लिपिंग का। चीनी शासक वर्ग की चिंता एक हद तक 'जन घटनाओं' के प्रसार से है, पर इस "धारणा में भी चीन की  कम्युनिस्ट पार्टी के लिए गहरा खतरा है कि स्थानीय विरोध एक व्यापक राष्ट्रीय जुडाव हासिल कर रहे है"(19/6/11 एफटी) 

इसका मतलब यह नहीं है कि चीनी बुर्जुआज़ी 'अशांति के अंतर्निहित कारणों ' से निपट सकता है। बुनियादी रुप से, विरोध प्रदर्शनों और हड़तालों  की जड़ में हैं वे परिस्थितियाँ जिसमें श्रमिक जीते और काम करते हैं। इन परिस्थितियों को थोपे बिना चीन का आर्थिक विकास संभव न होता।

चीनी पूँजीवाद, लाखों श्रमिकों के लिए सार्थक भौतिक सुधार उपलब्ध नहीं करा सकता और इसी लिए वह एक 'विस्फोट' का खतरा लिए है। लेकिन वह जानता है कि  उसे दमन के अलावा भी किसी चीज़ की जरुरत है। जैसे ब्लूमबर्ग के लेख ने नोट किया "झोउ योंगकांग, जो कम्युनिस्ट पार्टी की सत्तारूढ़ पोलित ब्यूरो  की स्थायी समिति, जो  देश के सुरक्षा बलों को देखती है,  के सदस्य हैं ने पार्टी  के मुखपत्र  पीपुल्स डेली  मे 21 फ़रवरी  2011 के लेख में कहा कि सरकार को चाहिए कि वह  ''सामाजिक संघर्षों और विवादों को अंकुरित होते ही शांत कर दे"।

सामान्यत चीनी बुर्जुआज़ी के पास संघर्ष को उनकी प्रारंभिक  अवस्था में  शांत करने के साधनों का अभाव है। सरकारी यूनियनें गैरलचीली हैं, उन्हें व्यापक रूप से संदेह की नज़र से देखा जाता है और वे ठीक ही राज्य के हिस्से के रूप में जानी जाती हैं। जो  'स्वतंत्र' यूनियनें अस्तित्व में हैं वे  बहुत सीमित पैमाने पर  हैं। इस लिए यह एक दिलचस्प बात है कि हान डॉग्फान, एक कार्यकर्ता  जिसने 1989 में त्याननमेन चौक पर प्रादर्शनों के दौरान एक यूनियन की स्थापना की थी, अपने विचार संशोधित कर रहा है ।

गार्जियन (26/6/11) के लेख में वह कहता है कि हाल के प्रदर्शन और बेहतर मजदूरी और काम की बेहतर परिस्थितियों की मांगें दर्शाती हैं कि "उन मांगों को  मुखरित कर सकने वाली किसी सच्ची ट्रेड यूनियन के  बिना, मजदूरों के पास सड़कों पर उतरने के सिवाय बहुत कम विकल्प हैं"। वह सोचता है कि "सक्रियतावाद के इस नए युग ने चीन की सरकारी ट्रेड यूनियन, अखिल चीन ट्रेड यूनियन्स फेडरेशन, को मजबूर कर दिया है कि वह अपनी भूमिका का पुनर्मूल्यांकन करे और मजदूरों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक सच्चा संगठन बनने की राह खोजे"।  चीनी शासक वर्ग निश्चित रूप से  चाहता है कि सरकारी यूनियनों का श्रमिक वर्ग  पर अधिक प्रभाव हो, लेकिन श्रमिकों के लिए यूनियनी संगठन का कोई रूप नही है जो उनकी जरूरतों को पूरा कर सके। श्रमिक वर्ग के लिए मसला एक तरह की यूनियन की दूसरे से अदला-बदली का नही, बल्कि है अति प्रभावी सामूहिक कार्यावाही के लिए साधनो की खोज का। यह तथ्य  कि हड़तालें और प्रदर्शन इतनी जल्दी पुलिस के साथ टकराव में बदल जाते हैं, उन सबूतों में से एक है जो मज़दूरों को दिखाता है कि उनके संघर्षों के लिए जरुरी है अंतत: एक ऐसी ताकत का निर्माण  जो चीनी पूँजीवादी राज्य का विनाश कर सके।

कार, 1 जुलाई 2011