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वर्गों संघर्ष के दौरान हस्तक्षेप कैसे करें ?

पग चिन्ह

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  • कम्युनिस्ट इंटरनेशनलिस्ट - 2011

चर्चा:
यहाँ हम उन साथियों के बीच हुई वार्ता को प्रकाशित कर रहे हैं जो अमेरिका में वेरीजोन के हड़ताली मजदूरों के बीच  हस्तक्षेप में लगे हुए थे, जिनमें से कुछ आईसीसी के जुझारु थे और कुछ हमदर्द। उन्होंने वितरित किये जाने वाले पर्चे में क्या लिखा जाये संबन्धी विचारों के शुरुआती आदान-प्रदान से लेकर पर्चे के वास्तविक वितरण, हड़ताली मज़दूरों के साथ अनेक विचार-विमर्शों और हस्तक्षेप के बाद के चिंतन, जिसे हम यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं, तक निकट आपसी सहयोग से काम किया। हम सामूहिक प्रकृति के इस काम के महत्व पर समुचित जोर नहीं दे सकते। यह हमदर्दों के लिए महत्वपूर्ण है जो    खुली बहसों की उपज सामुहिक ढांचे के साथ वर्ग संघर्ष में वास्तविक हस्तक्षेप का व्यावहारिक तजुर्बा हासिल कर रहे हैं। यह आईसीसी के लिए महत्वपूर्ण है कि वह राजनीतिक दिशा खोज रहे युवा, और जो अब इतने युवा भी नहीं हैं, तत्वों एवम ग्रुपों की नई पीढ़ी को सुनना और उनकी अंतर्दृष्टि से विभिन्न मुद्दों को नए व रचनात्मक तरीकों से देखना सीखना जारी रखे।

कामरेड एच: जब हम यूनियनों को ख़ारिज करते हैं, तब हमारी बात यूनियनों पर बुर्जुआ दक्षिणपंथ के हमलों जैसी लग सकती है। जिन लोगों ने वाम द्वारा यूनियनों पर हमलों को पहले नहीं सुना हो उनके लिए भेद करना मुश्किल हो सकता है। वास्तव में, बहुधा हम भी वही चीज़ें कह देते हैं जो दक्षिणपंथी  कहते हैं (यूनियने बस आपके चन्दे के पैसे लेती हैं; पर आपके लिए कुछ करती नहीं; वे सिरफ अपने हित आगे बढ़ाती हैं)। तो अमेरिका में वर्ग शक्तियों के संतुलन को देखते हुए हम यूनियनों पर अपने हमलों को अपने हस्तक्षेप में वह प्रधानता नहीं दे सकते, और कम-से-कम हम इसे अपने हस्तक्षेप का केन्द्रबिन्दू नही बना सकते, इसके बजाय हम वर्ग मांगों के विकास पर अपना ध्यान केंद्रित करें। हाँ, यूनियने संघर्षों में तोड़फोड़  करेंगी, लेकिन शायद संघर्ष के दौरान ही श्रमिकों को यह जानना होगा। शायद यूनियनों की अति भारी निन्दा उनके समर्थन की प्रवृति को ही मजबूत करेगी। श्रमिक अभी यूनियनों और अपने बीच अंतर करने में विफल हैं। जब वे यूनियनों पर हमलों को सुनते है, उन्हें लगता है उन पर ही हमला हो रहा है। शायद अमेरिका में मजदूरों द्वारा अपने संघर्षों को स्वयं के नियंत्रण में लेने का एक फौरी रुझान नहीं है? इस अर्थ में, विस्कॉन्सिन शायद एक सच्चा अपवाद था और हमने देखा यूनियनों ने कैसे जल्दी ही वहाँ पर नियंत्रण पा लिया। शायद अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि मजदूर वास्तव में संघर्ष करने की कोशिश कर रहे हैं, शायद हमें संघर्षों के संकल्प का निर्माण करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, बजाय यूनियनों की निंदा के? इसका मतलब यूनियनों को खुली छूट देना नहीं है; लेकिन यह नहीं लगना चाहिए कि यूनियनों को नष्ट करना हमारा मुख्य लक्ष्य है।

कामरेड ए: मुझे व्यक्तिगत रूप यह समझने में कठिनाई हो रही है कि वास्तव में किस तरीके से हस्तक्षेप करें ताकि जहाँ एक तरफ वर्ग-चेतना को सहयोग और बढ़ावा मिले और दूसरी तरफ यूनियनों पर सीधे हमलों, जिन्हें मज़दूर अभी समझ नही पाते, से बचा जा सके। मैं यह भी नहीं जानता कि मजदूर यह जाने बिना कि यह सब यूनियनी नियंत्रण से बाहर क्यों करना करना जरूरी है, ऊपर वर्णित करने से कैसे सहमत हो सकते हैं। मैं हमेशा स्वयं को अपने कार्यस्थल पर इस पहेली के रूबरू पाता हूँ जहां कई सहकर्मी हमारे विचारों और प्रस्तावों के साथ सहमत होते हैं, लेकिन फिर अंत में हमेशा की तरह कुछ इस तरह कहते हैं: चलो चलें और यूनियन को यह सुझाऐं... अंततः, श्रमिकों को यह लगना चाहिए कि वे यह सब यूनियनों के बिना कर सकते है। मुझे लगता है कि मज़दूर वरग ने अभी शक्तिहीनता की इस भावना पर पार नहीं पाया है और वर्ग पहचान की अविकसित भावना को विकसित नहीं किया है। और यह, जैसा कि हम जानते हैं,  केवल संघर्ष के माध्यम से ही होता है। मैं सोचता हूँ कि शायद परचे का असर कुछ और ही होता अगर पह्ले तीन पैराग्राफ या तो होते ही नहीं या उन्हें अंत में, मौजूदा हालात में मज़दूर क्या कर सकते हैं इसकी व्याख्या के बाद लिखा गया होता।

कामरेड एच: ये सभी चिंताएँ और भावनाऐं जायज हैं। मुझे अक्सर लगता है, हमारे हस्तक्षेप का सार निम्नांकित है : मजदूरों के लिए आवश्यक है कि वे एक साथ आएँ ताकि वह सवयं तय कर सकें कि वे क्या करें। कुछ बहुत सामान्य बातों, 'क्या नहीं करें' संबंधी बहुत सारी बातों और इतिहास के चन्द सबकों के आलावा, हम वास्तव में सिद्धांततः श्रमिकों को नहीं बता सकते वे क्या करें और कैसे लडें। यह वास्तव में समूची वाम कम्युनिस्ट उलझन है। श्रमिको को खुद रास्ता खोजना होगा। इस लिए हमारे हस्तक्षेप अक्सर काफी नकारात्मकता लग सकते हैं, मसलन, "हम नहीं जानते कि वास्तव में जवाब क्या है, लेकिन यह यकीनन यूनियनों के पास नहीं है, तुम लोग क्यों नहीं जाते और, जब यूनियन न देख रही हो, चर्चा करते कि क्या करें।" इस बीच लगता है कि यूनियनों के पास ठोस जवाब है, ये भ्रम हैं यह केवल धीरे धीरे ही पता चलता है। श्रमिकों के बीच यूनियनों का बोलबाला खत्म होने में अनुभव और समय कि जरुरत है। अभी, पूंजीपति वर्ग के तत्वों द्वारा यूनियनों को नष्ट करने के बेतुके प्रयास यूनियनों को मजबूत ही करते हैं। यूनियनें पीडित होने का खेल खेलने में सक्षम हैं। यह यूनियनों की कटु निन्दा करते हस्तक्षेप के लिए उचित समय नहीं है। यूरोप में और अन्यत्र कहानी अलग हो सकती है। मैं 'ए' की हाताशा सुनता हूँ कि मज़दूर हमारी कुछ बुनियादी अवधारणाओं के साथ सहमति रखते लगते हैं, इसके बावज़ूद वे सोचते हैं कि वे उन्हें यूनियन के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं। यह वैसे ही है कि जब आपके पास समाज के खिलाफ शिकायतों की एक सूची हो और कोई अधिक चतुर व्यक्ति आपको कहे कि चलो अपने संसद सदस्य को लिखो। जैसे वे आप द्वारा पेश रूपरेखा की मौलिक भिन्नता को नहीं समझ पा रहे हों। असल, में वे नहीं समझ पाते। यह केवल अनुभव है जो उन्हें सिखायेगा। हम वास्तव मे अधिक दूरदर्शी और खुले तत्वों के बीच में केवल संदेह का एक बीज्, अलग प्रतिमान का एक दाना भर रोपने की आशा कर सकते हैं ताकि आगामी संघर्षों की जमीन तैयार की जा सके। हम संघर्ष की वापिसी की अभी बहुत प्रारंभिक अवस्था में हैं, एक वापिसी जो केवल बहुत धीरे- धीरे अपना वर्ग धरातल पा रही है।

कामरेड जे: मैं हस्तक्षेप के लिए आपके सहयोग की बहुत प्रसंशा करता हूँ। मुझे लगता है मैंने बहुत कुछ सीखा है और मैं भी चर्चा के खुलेपन से आश्चर्यचकित था और अन्य मजदूरों द्वारा दिखाई एकजुटता से प्रोत्साहित। इसके साथ ही मैं कामरेड एच की बात से पूरी तरह सहमत हूँ। फिलहाल, मजदूर अभी भी "यूनियने उनके लिए संघर्षरत हैं" के संदर्भ में सोच रहे हैं। मुझे लगता है कि दस साल का झूठा प्राचार उस सब को धीरे धीरे नष्ट कर सकता है जो अधिकतर श्रमिकों ने पिछली हड़ताल से सीखा था,  खासकर जब वर्ग का विशाल हिस्सा संघर्ष नहीं कर रहा हो। और देखी गई एकजुटता की सराहना के बावजूद, श्रमिक वर्ग अभी भी अपने बचाव के अपने तमाम प्रयासों को लेकर भयभीत तथा रुढिवादी है।  और जब तक संघर्ष अधिक आवृति से नहीं होते, इसकी शायद संभावना नहीं कि हम बहुत लोगों को यूनियनों संबंधी अपनी पोजिशनों का कायल कर पाएँ। पर शायद मज़दूरों को हम कायल कर सकते हैं कि:

क) संकट स्थाई है और कहीं जाने वाला नहीं और निकट भविष्य में और संघर्ष होंगे,

ख) हर मजदूर इन संघर्षों में सक्रिय भूमिका निभाने के काबिल है और उसे सक्रिय भूमिका निभानी  चाहिए और चर्चा करनी चाहिए कि वास्तव में मांगें क्या हैं और उनके लिए कैसे संघर्ष करें,

ग) अन्य मजदूर आपके संघर्ष में रुचि रखते हैं और आपकी मदद करना चाहते हैं इसलिए आप उनके साथ भी चर्चा करें,

घ) यूनियन जो कर रही है वह लंबे समय तक काम नहीं करेगा और इस संघर्ष के साथ हमे जो करना चाहिए वह है इस संबंधी चर्चा करना, नए तरीके से सोचना, अन्य मज़दूरों से इसकी चर्चा करना और अन्य मज़दूरों के संघर्षों पर चर्चा करना ताकि एक प्रकार की वर्ग पहचान का निर्माण हो सके,  

ड) यह, यह या वह बास नहीं, बल्कि समूची पूँजीवादी व्यवस्था है जो ना केवल वेरीजोन (या अन्य) मज़दूरों बल्कि समस्त मज़दूर वर्ग पर हमले कर रही है और हमें एक वर्ग के रूप में प्रतिरोध करना और लड़ना होगा.।

कामरेड ए: यहाँ बहुत सारी बातें है जिन्हें हम श्रमिकों से कह सकते हैं और कामरेड जे ने यहाँ उनमें से कुछ की चर्चा की है। लेकिन मैं मानता हूँ कि जब हम हडताली मज़दूरों में, किसी रैली में या अन्यत्र हस्तक्षेप करें तो हमें यूनियनों को ख़ारिज करने को अपना मुख्य विषय नहीं बनाना चाहिए। मुझे नहीं लगता कि हमें अपनी पोजीशनों को छुपाना चाहिए या उन संबंधी झूठ बोलना चाहिए, लेकिन यह हमारे मुंह से निकलने वाला पहला वाक्य भी नहीं होना चाहिए। यह पर्चे की पहली लाइन नहीं होनी चाहिए। मुझे लगता है कि हमारे प्रेस की बात अलग है। वहां पाठक अलग हैं। जब हम हडताल में हस्तक्षेप करते हैं तो हम श्रमिकों के बीच जा रहे होते हैं। पर जब कोई अखबार खरीदता है या वेबपेज पर जाने के लिए समय निकालता है, तो वे हमारी पोजीशनों बाबत अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए शुरुआत करते हैं। सिद्धांत रूप में, हमारे प्रकाशन सदैव वर्ग के अधिक उन्नत तत्वों द्वारा पढे जाएँगे, जबकि पर्चों का वितरण बहुत व्यापक है। मैं जे. से सहमत हूँ कि इस स्तर पर यह शायद अधिक महत्वपूर्ण है कि संकट के सवाल पर हस्तक्षेप करें, मार्क्सवाद का नजरिया पेशा करें जो कहता है कि पूंजीवाद के भीतर इस संकट का कोई समाधान नहीं है; मजदूर यूनियनों के दायरे में जो कर रहे हैं, वह बुर्जुआ विकल्पों से आगे नहीं जाता, जो वास्तव में कोई विकल्प नहीं हैं। श्रमिकों को देखने की आवश्यकता है कि सुधार संभव नहीं है, पूंजीपति वर्ग के किसी भी गुट के पास जवाब नहीं है। मजदूर वर्ग की अपनी स्वतंत्र कार्रवाई के बिना भविष्य अंधकारमय है। सिद्धांत रूप में, इसका फल होना चाहिए मजदूर वर्ग के संघर्ष पर यूनियन के वर्चस्व पर सवाल उठना।

आईसीसी, 9 सितंबर 2011

 

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