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नीचे प्रकाशित परचा मजदूर वरग के एक अल्पमत द्वारा अपने संघर्ष को अपने हाथ में लेने की कोशिश को दिखाता है। यह परचा गारे दा लेएस्ट (पेरिस का एक रेलवे स्टेशन) की अंतर व्यवसायक आम सभा के कुछ व्यक्तिगत सहभागियों द्वारा निकाला गया था। और भी अनेक उदाहरण हैं। टूर्स या रेनंस में मज़दूरों ने अंतर व्यवसायक आम सभाओं में भाग लिया है। फ्रांस में सब जगह सीएनटी-एअईटी (अनार्को सिंडिकेल) ने लोकप्रिय तथा सवायत्शासी सभाओं के लिए पहल की है।
आज फ्रांस में जब आंदोलन खतम हो रहा है, यह मीटिंगे बहुधा संघर्ष समूहों जेसी बन गई हैं जो अलग-अलग पेशे के जूझारू मजदूरों को एक जगह आने व आगे आने वाले संघर्ष के लिए तैयार होने की जगह प्रदान दरते हैं। "मजदूरों की मुक्ति खुद मजदूरों का काम होगी" (कार्ल मार्क्स)।
गारे दा लेएस्ट की आम सभा के कुछ व्यक्ति समूहों का पर्चा
सभी मज़दूरों के नाम
गारे दा लेएस्ट के रेल मजदूरों तथा कुछ अध्यापकों की 18 सितंबर की पहल पर, हम करीब 100 लोग जो (रेलवे, शिक्षा, डाक, फार्म उत्पाद ओर कंप्यूटर क्षेत्रों के) वेतनभोगी कामगार हैं, रिटायर हैं, बेरोजगार हैं, छात्र हैं, कागजों वा बिना कागजो के मजदूर हैं, यूनियन व गैर-यूनियनीकृत हैं, 28 सितंबर व 5 अक्तूबर को मिले। मुद्दा था पेंशन तथा शासक वर्ग द्वार हम पर किये जा रहे व्यापक हमलों तथा उन्हें वापिस लेने के लिए सरकार को मज़बूर करने के परिपेक्ष्य के बारे मे विचार करना।
हाल ही के कार्रवाई दिवस पर हममें से हजारों ने मुजाहिरे व हडतालें की। सरकार फिर भी पीछे नहीं हटी। एक जनआंदोलन ही उसे पीछे हटने को मज़बूर कर सकता है। यह सोच उभरी हैं अनिश्चितकालीन, आम, पुननिरीक्षित होती हडतालों तथा अर्थव्यवस्था को ठप्प करने के मुद्दे पर विचार विमर्श के बाद....
हम यह तय कर सकते हैं कि आंदोलन की शक्ल कैसी होगी। इसका निर्माण हमें अपने कार्य-स्थलों पर हडताल समितिओं द्वारा तथा अड़ोस-पड़ोस में आम सभाओ द्वारा करना होगा। हमें मजदूर तबके के बडे से बडे संभव समूह को संगठित करना ही होगा जिसे देश के स्तर पर चुने हुए व वापस बुलाए जा सकने वाले नुमाइंदे समन्वित करेंगे। हमे अपनी लड़ाई का रुप तथा अपनी मांगें तय करनी होगी... यह काम हम किसी को नहीं करने दे सकते।
यूनियन नेताओं को, चेरेक (CFDT), थाइबोल्ट (CGT) ओर साइ को, हमारे नाम पर फैसले लेने देना हमें फिर एक नई हार की तरफ ले जाएगा। चेरेक इस बात का हिमायती है की 42 साल तक अंशदान देने वाले को ही पेंशन मिले। हमे थाइबोल्ट पर भी यकीन नहीं है क्योंकि वह कानून वापसी की माँग नहीं करता। ओर हम यह कतई नहीं भूल सकते कि 2009 में जब हम में से हजारो को लेआफ दे दिया गया था और हम सवंय सघंर्ष कर रहे थे तो वह सरकोजी के साथ शैंपेन पी रहा था। हमे तथाकथित रेडिकल्स पर भी यकीन नहीं है। अपना रेडिकलपन दिखाने के लिए मैइली (FO) प्रादर्शनों में ऑबरी से हाथ मिलाता है, जबकि वह पीएस (समाजवादी पारटी) के साथ 42 साल की पैशन योजना के पक्ष मे वोट देता है। जहां तक दक्षिणी एकजुटता, सीएनटी अथवा धुरवाम (LO, NPA) का सवाल है, उनके पास यूनियनों को मजबूत बनाने के सिवाए हमारे लिए कुछ भी नहीं है। कहना यह है कि हमें उन लोगों के पीछे एकजुट करना जो हमारी हार का समझौता करते हैं।
अगर वो आज नवीकरणीय हडतालों के पक्षधर हैं तो इसीलिए कि चीज़ों को अपने नियंत्रण से निकलने से रोका जा सके। हमारे संघर्षों को नियंत्रित करना ही उन्हें समझौता मेज पर जाने का हक देता है.... क्यों? ताकि, जैसा कि सीएफटीसी में शामिल सात यूनियन संगठनों द्वारा हस्ताक्षरित तथा सालिडेरिटी को दिए गए पत्र मे कहा गया है. "यूनियन संगठनों के नज़रिये को पेश करना ताकि उन सभी सही तथा प्रभावी कदमों को परिभाषित किया जा सके जो पैंशनों पर खर्च को साझा करके, पैंशन व्यवस्था के स्थायित्व की गरंटी दे सके"। क्या कोई यकीन कर सकता है कि उन लोगों से कोई सरोकार रखा जा सकता है जिन्होंने हमारी पैंशन पर 1993 से हमला किया है, जिन्होने हमारे जीवनोपार्जन व काम के हालातों का सुनियोजित विनाशा किया है?
सरकार को व शासक वर्ग को मात्र एक ही एकजुटता पीछे हटने को मजबूर कर सकती है, वह है पब्लिक तथा प्राइवेट सेक्टर को, कार्यरत्त तथा बेरोजगारों को, रिटायर मज़दूरों तथा नौजवानों को, स्थानीय तथा प्रवासी मज़दूरों को, यूनियन तथा गैर-यूनियन मज़दूरों को साझी सभाओं मे एकीकृत करता एक आधारभूत आंदोलन जो अपने संघर्षों का नियंत्रण अपने हाथ में ले सके। हम समझते हैं कि पैंशन कानून की वापसी हमारी न्यूनतम माँग है। पर यह काफी नहीं है। हजारों बुजुर्ग मज़दूरों से पहले ही 700 यूरो महीने पर गुजर करने की अपेक्षा की जा रही है। जबकि लाखों नौजवान, रोजगार की कमी के कारण, आरएसए पर फाकाकशी कर रह हैं। हममें से लाखों के सामने पहले ही ये सवाल मुंह बाए खडे हैं : क्या हमें खाने को मिलेगा या नहीं, घर होगा या नहीं, बीमारी में दवा मिलेगी या नहीं? यह सब हम नहीं चाहते।
हाँ, पैंशनों पर हमले पर्वत की परत भर हैं। जबसे संकट शुरू हुआ है, शासक वर्ग, राज्य की मदद से, जन सेवांओं में से लाखों नौकरियों की कटोती करके लाखों मजदूरों को सडकों पर फेंक चुका है। और यह शुरुआत भर है। संकट जारी है और आने वाले समय में हम पर हमले अधिकधिक निष्ठुर होने वाले हैं।
इस हालत से निबटने के लिए हम वामपंथी पारटियों (PS, PCF, PG ...) पर यकीन नहीं कर सकते। ये सब बुर्जुआज़ी के मामलों के वफादार मैनेजर भर हैं और कभी भी प्राइवेट उधोग और वित्त संपदा पर या बडे भूस्वामित्व पर सवाल नहीं उठाते। और स्पेन में, तथा यूनान में, सत्ताधारी वाम ही है जो मजदूरों के खिलाफ पूँजी के हमले को संगठित कर रहा है। अपनी पैंशनों, स्वास्थय, शिक्षा, यातायात के साधनों के बचाव के लिए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि हमे भूखा ना मरना पडे, मज़दूरों को अपने द्वारा पैदा दौलत को अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए वापिस लेना होगा।
इस संघर्ष में हमे अपने किन्ही व्यक्तिगतगत हितों के लिए नहीं लडना है बलि्क लडना है पूरी मजदूर आबादी के हितों के लिए जिसमे शामिल हैं छोटे किसान, मछुआरे, कारीगर तथा छोटे दुकानदार जिन्हें पूँजीवाद के संकट ने गरीबी मे धकेल दिया है। हमें संघर्षो मे उनका अगुआ बनकर उनको राह दिखानी है ताकि पूँजीवाद के साथ बेहतरी से संघर्ष किया जा सके।
चाहे कार्यरत्त हों या बेरोजगार, अस्थाई नौकरी वाले हों या 'बिना पेपर' वाले, और हम चाहे किसी भी देश के हों, हम सब मजदूर एक ही नाव मे हैं।
आइए अंतर व्यवसायक आम सभा में विचार करें। मेटरो रिपब्लिक भवन में 12 अक्तूबर को शाम 6 बजे व 13 अक्तूबर को शाम 5 बजे।
गारे दा लेएस्ट की अंतर व्यवसायक आम सभा के स्थाई व अस्थाई मजदूर।
8 अक्टूबर 2010