अमेरिका में ट्रम्प की बड़ी जीत : पूंजीवाद के विघटन की ओर एक लम्बा कदम

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अमेरिका में सम्पन्न हुए राष्ट्रपति चुनाव में भारी बहुमत से जीते ट्रम्प, व्हाइट हाउस में पुनः विराजमान हो गये हैं. उनके समर्थकों की द्रष्टि में वह एक अपराजेय हीरो, चुनाव में धांधली, न्यायिक जाँच पड़ताल, व्यवस्था से टकराव और गोलियों का मुकाबला तथा हर बाधा पर, पार पा लेने  की सामर्थ्य रखते हैं. ट्रम्प की एक चमत्कारी छवि, उनके कानों से बहता खून तथा गोली लगने के वाबजूद उनकी तनी हुई मुट्ठियाँ के साथ आसमान की और टकटकी लगा कर देखना, उन्हें इतिहास के पन्नों में दर्ज कराता है. लेकिन उनकी प्रतिक्रिया से जाग्रत प्रशंसा के पीछे, यह हमला सबसे बढ़ कर, इस चुनाव अभियान की एक शानदार अभिव्यक्ति था, जो हिंसा, घ्रणा और तर्कहीनता की नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया.चुनाव में पैसे की बरसात और अश्लीलता से लबालब,यह असाधारण अभियान,अपने निष्कर्ष के तौर पर एक अति मह्त्वाकांक्षी और अरबपति पूंजीपति की जीत उस रसातल को दर्शाती है,जिसमें पूंजीवादी डूब रहा है.

लोक लुभावन को वोट करें! नहीं, पूंजीवाद को उखाड़ फेंकना है!

एक बुरे इन्सान में जितने भी अबगुण हो सकते हैं, वे सब ट्रम्प में विद्यमान हैं: वह एक असभ्य ,झूठा और बदनाम इन्सान है, जितना वह नस्लवादी और स्त्री विरोधी है और उससे भी अधिक घ्रणित,वह समलैंगिक भी है. पूरे चुनावी अभियान के दौरान उनके राष्ट्रपति कार्यालय में लौटने से ‘लोकतांत्रिक संस्थानों, अल्पसंख्यक, जलवायु और अंतररास्ट्रीय सम्बन्धों  के खराब होने के प्रति अनवरत रूप से  आगाह किया था. प्रेस ने अपने अभियान के दौरान, ”ट्रम्प के शासन में दुनियां की सासें रूक जायेंगी”,( Die Zeit) “एक अमेरिकी दुस्वप्न” (L Huminite) “दुनियां ट्रम्प से कैसे बचेगी?” “एक राजनैतिक पराजय” (El Pais) जैसे जुमले खूब उछाले थे.  

इस लिए तब क्या हमें, लोक लुभावनवाद का मार्ग अवरुद्ध करने के लिए तथाकथित “छोटी बुराई“ के तौरपर हैरिस  को वोट देना चाहिए ? यही सब कुछ था जिस पर पूँजीवाद भरोसा दिलाना चाहता था. महीनों तक अमेरिका के नये राष्ट्रपति ने अपने को लोकलुभावनवाद के खिलाफ विश्वव्यापी अभियान के केंद्र में पाया. “ मुस्कराती” कमला हैरिस ने लगातार अपने प्रतिद्वंदी को “ फासीवादी” करार देते हुए:  अमेरिकी लोकतंत्र” की रक्षा का आव्हान किया. यहाँ तक कि ट्रम्प के पूर्व चीफ आफ स्टाफ ने भी बिना समय गंवाए उन्हें :संभावित तानाशाह” के रूप में चित्रित किया. अरबपति की इस जीत ने  “पूंजीवादी जनतंत्र” के पक्ष में एक रहस्यमयी अभियान को ही बढ़ावा दिया .  

कितने ही मतदाता चुनाव बूथ पर इस विचार के साथ गये:“डेमोक्रेट्स” ने हमें चार साल तक बुरे दिन दिखाए हैं लेकिन व्हाइट हॉउस में ट्रम्प का लौटना अब उतना बुरा नहीं होगा. यह वह धारणा है जिसे पूँजीपति वर्ग ने हमेशा मजदूर वर्ग के दिमाग में डाल कर उन्हें चुनाव में धकेलने की कोशिश की है. लेंकिन मरणशील पूंजीवाद में चुनाव एक छलावा है, एक गलत विकल्प है, जिसका मजदूर वर्ग के ऐतिहासिक लक्ष्यों और उन्हें प्राप्त करने के साधनों पर विचार करने के अलावा अन्य कोई कार्य नहीं है. 

अमेरिका का वर्तमान चुनाव भी इस वास्तविकता का अपवाद नहीं है. ट्रम्प की इस व्यापक जीत का एकमात्र और सबसे महत्वपूर्ण कारण यह रहा कि लोग डेमोक्रेट से नफरत करते हैं. यहाँ कोई “रिपब्लिकन” लहर नहीं थी और न ट्रम्प को कोई बड़े पैमाने पर समर्थन मिला. पिछले 2020 के चुनाव की तुलना में उनके मतदाताओं की संख्या अपेक्षाक्रत स्थिर बनी हुयी है. इससे से भी ऊपर, उप राष्ट्रपति कमला हैरिस जो डेमोक्रेट्स की बदनामी का प्रतीक बनी थीं. उप-राष्ट्रिपति कमला हैरिस को इन चार वर्षों में  लगभग 10 मिलियन मतदाता गवां कर हार का मुंह देखना पड़ा. इन कारणों को भी जानिये! क्योंकि इस दौरान, बाइडेन  प्रशासन ने मुद्रास्फीति से लेकर मजदूर वर्ग के जीवन और कामकाजी परस्थितियों पर इतने क्रूर हमले किये, जिसमें खानापान ,पैट्रोल और आवास की कीमते असमान को छूने लगीँ. तब अतिरेक और नौकरियों में असुरक्षा की ऐसी लहर आई जिसने अन्ततः मजदूर वर्ग को बड़े पैमाने पर संघर्ष पर उतरने को प्रेरित किया. आव्रजन पर, बाइडेंन और ‘अधिक मानवीय’ नीति  के वादे पर चुनी गई, हैरिस ने अमेरिका में प्रवेश के लिए शर्तों को लगातार कठोर करने के साथ मेक्सिको के बार्डर को सील कर दिया गया और प्रवासियों को शरण मांगने से भी मना कर दिया गया. अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर, बाइडेंन का बेलगाम सैन्यवाद, यूक्रेन में नरसंहार के लिए खुले हाथों से धन बहाना और इजराइली सेना के दुर्व्यवहारों के लिए आलोचना कम और  खुले समर्थन ने भी मतदाताओं को नाराज कर दिया.                                                                                            

हैरिस की उम्मीदवारी किसी भी भ्रम को जन्म नहीं दे सकती. सर्वहारा वर्ग को पूँजीवादी सत्ता  और उसके चुनावों से कोई उम्मीद नहीं है. सत्ता में पूंजीवाद का यह या वह गुट जो कारोबार का कुप्रबंधन कर रहा है, यह पूंजीवादी व्यवस्था ही है जो संकट और ऐतिहासिक दिवालियेपन में डूब रही है चाहे  यह डेमोक्रेट हो अथवा रिपब्लिकन, संकट घराने गहराने पर, ये सभी मजदूर वर्ग का बेरहमी से शोषण करना तथा  कष्ट फैलाना जारी रखेंगे, वे सभी पूंजीवादी राज्य की क्रूर तानाशाही को ही जारी रखेंगे और दुनियां भर में निर्दोष लोगों पर बमबारी करते रहेंगे.

ट्रम्प, पूंजीवाद के सड़ांध की अभिव्यक्ति

अमेरिकन राज्यतंत्र के सबसे जिम्मेदार धड़े (अधिकांश मीडिया, वरिष्ठ सरकारी कर्मचारी, सैन्य कमान और रिपब्लिकन पार्टी का सबसे उग्रवादी गुट आदि) ने फिर भी ट्रम्प और उनके लोगों को रोकने के लिए पुरजोर कोशिस की. मुकदमों का सिलसला, लगभग हर क्षेत्र के विशेषज्ञों की चेतावनियों और यहाँ तक उम्मीदवारों की खिल्ली उड़ाने के मीडिया के अथक प्रयास भी उन्हें सत्ता की दौड़ में शामिल होने से रोकने के लिये पर्याप्त नहीं थे. ट्रम्प का चुनाव, चेहरे पर थप्पड़ मारने जैसा है. और यह संकेत दे रहा है कि पूंजीपति वर्ग अपने चुनावी खेल पर तेजी से नियन्त्रण खोता जा रहा है और अब तक गैरजिम्मेदार उपद्रवियों  को राज्य के सर्वोच्च कार्यालयों में प्रवेश करने से रोकने में सक्षम नहीं है.

लोकलुभावनवाद के उदय की वास्तविकता कोई नयी बात नहीं है 2016 में ब्रैक्सिट के लिए वोट, उसके बाद, उसी साल ट्रम्प की आश्चर्यजनक जीत, इसका पहला और सबसे शानदार संकेत थे.लेकिन पूँजीवाद का गहराता संकट तथा स्थिति पर नियंत्रण रखने की राज्यों की निरंतर बढती कमजोरी, चाहे भू-रणनीतिक, आर्थिक,पर्यावर्णीय अथवा सामाजिक सवाल हो,  सभी ने दुनियां भर में न केवल राजनैतिक अस्थिरता को मजबूत करने का काम किया है:  बल्कि त्रिशंकु संसद, लोकलुभावनवाद, पूंजीवादी गुटों के बीच बढ़ता तनाव, सरकारों की बढती अस्थिरता ....ये घटनाएँ विघटन की प्रक्रिया की गवाह हैं जो अब दुनियां के सबसे शक्तिशाली राज्यों के केंद्र में कार्य कर रहा है. इस प्रवृति ने माइली  जैसे पागल व्यक्ति को अर्जेन्टिना में राज्य के प्रमुख तक पहुँचने और लोकलुभावनवादियों ने यूरोप के तमाम अन्य देशों जहाँ दुनियां के सबसे अनुभवी पूंजीवादियों के देशों में भी सत्ता हथियाने में भी सफलता हासिल की है.

ट्रम्प की जीत इसी प्रक्रिया का हिस्सा है, लेकिन यह एक अतिरक्त महत्वपूर्ण कदम को भी चिन्हित करता है.यदि ट्रम्प को राज्यतंत्र के एक बड़े भाग द्वारा ख़ारिज भी कर दिया गया है जो सबसे ऊपर है. क्योंकि उनके कार्क्रम और कार्यशैली से न केवल दुनियां में अमेरिकी साम्राज्यवाद के हितों को नुकसान पहुँचने का जोखिम है, साथ ही सामाजिक समानता सुनिश्चित करने में राज्य की कठिनाइयों में बढ़ोतरी हो रही है. राज्य के कामकाज के लिए  तथा राष्ट्रीय पूँजी की क्रियाशीलता के लिए सामाजिक एकजुटता का दिखाव आवश्यक है.अपने चुनाव अभियान के दौरान  ट्रम्प ने भडकाऊ भाषणों की एक श्रंखला प्रस्तुत की जिससे उनके समर्थकों में प्रतिशोध की भावना फिर से भडक उठी ,यहाँ तक कि ‘लोकतान्त्रिक’ संस्थानों को भी धमकाया गया कि पूंजीपति वर्ग को वैचारिक रूप से नियंत्रित करने की सख्त आवश्यकता है. उन्होंने लगातार विरोधी और घ्रणित बयानबाजी को बढ़ावा दिया है, जिससे उनके निर्वाचित न होने पर दंगों की आशंका बढ़ गई. इस दौरान, उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि उनके शब्दों का समाज के तानेबाने पर क्या परिणाम हो सकते हैं? इस अभियान की अत्यधिक हिंसा जिसके लिए ‘डेमोक्रेट’ भी जिम्म्रदार हैं, निस्संदेह अमेरिकी समाज में  विभाजन को और गहरा कर देगी और पहले से ही अत्यधिक खंडित समाज में हिंसा को और बढ़ावा दे सकती है. लेकिन ट्रम्प ने पूंजीवादी व्यवस्था में विशेषता हासिल करने वाले प्रथ्वी के सुलगते तर्क,“जीतने के लिए सब जायज है” को, अपना अमोघ हथियार  को  अपनाया. 

ट्रम्प की 2016 में  जीत आश्चर्य की बात थी.  वह अपनी जीत पर स्वयं आश्चर्यचकित था. अमेरिकी पूंजीवादी सरकार उसके लिए जमीन तैयार करने और लोगों को उसमें शामिल करने में तथा अरबपति के सबसे भ्रामक निर्णयों पर ब्रेक लगाने में सक्षम थी. उदाहरण के तौर पर, जिन्हें ट्रम्प ने “देशद्रोही “ बताया, वे सामाजिक सुरक्षा  प्रणाली( ओबामा केयर ) को रद्द करने या ईरान पर बमबारी को रोकने में सक्षम थे. जब  कोविड की महामारी ने हमला किया तो उनके उप- राष्ट्रपति, माइक पेंस, ट्रम्प के इस विश्वास के बावजूद संकट का प्रबंध करने में सक्षम थे, जो फेफड़ों में कीटाणुनाशक इंजेक्ट करना बीमारी को ठीक करने के लिए पर्याप्त था... यह वही पेंस थे जिन्होंने सार्वजनिक रूप से इसे अस्वीकार कर दिया था. ट्रम्प ने  बाइडेंन को सत्ता का हस्तांतरण सुनिश्चित करके, जबकि दंगाइयों ने कैपिटल पर मार्च किया। अब से, भले ही सेनापति ट्रम्प के प्रति बहुत शत्रुतापूर्ण हो और फिर भी उनके सबसे खराब फैसलों में देरी करने की पूरी कोशिश करेगा, नए राष्ट्रपति के लोगों ने "गद्दारों" को हटाकर खुद को तैयार कर लिया है और सभी के खिलाफ अकेले शासन करने की तैयारी कर रहे हैं। हमें पिछले जनादेश से भी अधिक अराजक जनादेश मिलने की संभावना है।

अराजक दुनियां की ओर तेजी से बढ़ता कदम

अभियान के दौरान, ट्रम्प ने  खुद को एक “ शांति दूत” के रूप में प्रस्तुत किया और दावा किया कि वह 24 घंटों में यूक्रेनी संघर्ष को समाप्त कर देंगे. शांति के लिए उनकी अभिरुचि यूक्रेन के सीमा पर ही समाप्त हो जाती है, क्योंकि इसके साथ ही  उन्होंने इजरायली राज्य द्वारा किये गये नरसंहारों को बिना शर्त समर्थन दिया है और ईरान के प्रति नितांत जहरीला बना हुआ है. वास्तव में यह कोई नहीं जानता कि ट्रम्प यूक्रेन, मध्य एशिया, यूरोप या नाटो के साथ कैसा बर्ताव करेंगे ( या करने में सक्षम होंगे) वह हमेशा से इतने बहुमुखी और मनमौजी रहे हैं.

दूसरी ओर, ट्रम्प की वापसी से दुनियां में अस्थिरता और अराजकता में एक अभूतपूर्व तेजी आएगी. मध्यपूर्व में नेतन्याहू पहले से ही कल्पना करते हैं: ट्रम्प की जीत के साथ, गाज़ा में संघर्ष शुरू होने के बाद से उनके हाथ पहले के किसी भी समय की तुलना में अधिक स्वतंत्र हैं. इजरायल पूरे क्षेत्र में और अधिक बर्बरता फैला कर अपने रणनीतिक लक्षों  (हिजबुल्ला, हमास का विनाश, ईरान के साथ युद्ध आदि को और अधिक सीधे तरीके से हासिल करने की इच्छा पाल सकता है.

यूक्रेंन में, बाईडेन के नपेतुले समर्थन की नीति के बाद संघर्ष के और भी अधिक नाटकीय मोड़ लेने का खतरा है. मध्यपूर्व के विपरीत, यूक्रेन में अमेरिका ने, रूस- चीन के बीच गठजोड़ को तोड़ने की बड़ी सावधानीपूर्वक रणनीति तैयार की है इसके साथ ही आसपास के यूरोपीय राज्यों के नाटो के साथ सम्बन्धों को मजबूत करने की सावधानीपूर्वक तैयार की गयी रणनीति का हिस्सा है. ट्रम्प इस रणनीति पर सवाल उठा सकते हैं और अमेरिकी नेत्रत्व को कमजोर कर सकते हैं. ट्रम्प चाहे कीव छोड़ने का निर्णय अथवा, पुतिन को ‘दण्डित करना, यह नरसंहार अनिवार्य रूप से बढ़ेगा और सम्भवतया,यूक्रेन से परे भी फैल जायेगा.    

लेकिन यह चीन ही है जो अमेरिकी साम्राज्यवाद पर अपना पूरा ध्यान केन्द्रित किये हुए है. संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच संघर्ष विश्व स्थिति का केंद्र विन्दु बना हुआ है तथा नये राष्ट्रपति अपने उकसावों को कई गुना बढ़ा सकते हैं, तथा चीन को कड़ी प्रतिक्रिया देने को मजबूर कर सकते हैं. उदाहरण के तौर पर, संयुक्त राज्य अमेरिका के जापानी और कोरियाई सहयोगियों पर दबाव डाल कर, पहले से ही वक्त अपनी चिताओं को वक्त कर सकते हैं. और यह सब बढ़ते,व्यापार युद्धों और संरक्षणवाद की प्रष्ठभूमि में विद्यमान है जिसकी पहले से ही वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी परिणामों की दुनियां के प्रमुख वित्तीय संस्थानों द्वारा पहले से ही निंदा की जा रही है.

इसलिए ट्रम्प की अनिश्चतता ही व्यक्ति को अपने बारे में सोचने के की प्रवृति को काफी हद तक मजबूत कर सकती है जिसे बड़ी और छोटी सभी शक्तियों को भारी भ्रम और बढी हुई अराजकता के माहौल में अपना कार्ड खेलने के लिए अमेरिकी पुलिसकर्मी को पीछे हटने का फायदा उठाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है, यहाँ तक कि अमेरिका के सहयोगी पहले से ही अधिक खुले तौर पर आर्थिक और सैन्य, दोनों तरह के राष्ट्रीय समाधानों का समर्थन करके वाशिंगटन से दूरी बनाने की कोशिश कर रहे हैं. जैसे ही ट्रम्प की जीत की पुष्टि हुई, फ़्रांस के राष्ट्रपति ने यूरोपीय संघ के राज्यों से संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के सामने अपने हितों की रक्षा करने का आव्हान किया.            

मजदूरों के सामने एक और अतिरक्त बाधा

आर्थिक संकट के ऐसे समय में जब सर्वहारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने संघर्ष की भावना को पुन: प्राप्त कर रहा है और धीरे-धीरे अपनी वर्ग पहचान को फिर से खोज  रहा है, अमेरिकी पूंजीपति वर्ग की नजर में ट्रम्प का गुट स्पष्ट रूप से पूँजी की आवश्यकतायों के अनुरूप, मजदूर वर्ग पर हमले कर उनके वर्ग संघर्ष को रोकने में असमर्थ है. हड़ताली मजदूरों के खिलाफ उनकी खुली धमकियों और उनके धुर मजदूर विरोधी दुर्दांत सहयोगी एलन मस्क के साथ उनकी दु;स्वप्न साझेदारी के के बीच, संयुक्त राज्य अमेरिका में हालिया हमलों ((बोईंग, गोदी मजदूर, होटल व् कार कर्मियों की हड़तालों ) के दौरान अरबपति के व्यापक बयान इस बात का संकेत देते हैं. सरकारी कर्मचारियों, जिन्हें वह अपना दुश्मन मानते हैं, उनमें से 400,000 को बर्खास्त कर उनसे बदला लेने का ट्रम्प का वादा भी चुनाव बाद परेशानी का कारण बन गया है.

लेकिन यह सोचना गलत होगा कि ट्रम्प की व्हाइट हॉउस में वापसी से वर्ग संघर्ष को बढ़ावामिलेगा. इसके विपरीत, यह एक वास्तविक झटके के रूप में आएगा.जातीय समूहों के बीच, शहरी निवासियों के बीच, स्नातकों औए गैर-स्नातकों के बीच विभाजन की नीति, चुनाव अभियान से उत्पन्न सभी हिंसा और नफरत और जिसका ट्रम्प ने भरपूर प्रयोग किया, काले लोगों, प्रवासियों के, समलैंगिकों या ट्रांस्जेंन्दरों के खिलाफ लोग, ईसाई धार्मिक कट्टरपंथी  तथा अन्य षड्यंत्रकारी सिद्धान्तकारों के सभी तर्कहीन प्रलाप, संक्षेप में विघटन की पूरी गडबडी, मह्नतकश लोगों पर और भी अधिक भारी पडेगी और यहाँ तक कि लोकलुभावनवाद या इसके विरोधी गुटों के पक्ष में गहरे विभाजन और यहाँ तक कि हिंसक राजनैतिक टकराव पैदा करेगा.      

ट्रम्प प्रशासन निस्संदेह विभाजन का जहर पैदा करने और मजदूरों के संघर्षों को पटरी से उतारने के लिए पूंजीपति वर्ग के वामपंथी गुटों पर भरोसा करने में सक्षम होगा, जिसकी शुरुआत समाजवादियों’ से होगी. क्लिंटन, बाईडेन और हैरिस दोनों के लिए प्रचार करने के बाद, बर्नी सेंडर्स  ने बिना पलक झपकाए डेमोक्रेट्स पर “ मजदूर को छोडने “ का आरोप लगाया जैसे कि 19 वीं शताब्दी में अक्सर सत्ता में रही  सैन्यवादी, सर्वहारा – हत्यारी पार्टी के पास मजदूर वर्ग के लिए करने के लिए कुछ भी नहीं था. जैसे ही वह प्रतिनिधि सभा के लिए फिर से चुनी गयी, वामपंथी डेमोक्रेट ओकासियो ने मजदूर वर्ग को “समुदायों” में बाँटने  का हर संभव प्रयास करने वादा किया: “हमारा अभियान सिर्फ वोट जीतने के बारे में नहीं,यह इस बारे में है कि हमें मजबूत समुदाय बनाने का साधन दे रहा है.” 

लेकिन मजदूर वर्ग में इन नई वाधाओं के बावजूद लड़ने की शक्ति है, जबकि यह अभियान पूरे जोरों पर था, और लोकलुभावन लोगों के हाथों में खेलने के लिए कुख्यात आरोपों के बावजूद,  मजदूरों ने मितव्यता और अतिरेक के खिलाफ संघर्ष जारी रखा.यूनियनों द्वारा पैदा किये गये अलगाव, बड़े पैमाने पर डेमोक्रेटिक प्रचार, और विभाजन के भार के बावजूद, उन्होंने सिद्ध किया कि संघर्ष ही पूंजीवाद के संकट का एकमात्र उत्तर है. सबसे महत्वपूर्ण बात है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में मजदूर अकेले नहीं हैं, ये हड़तालें अंतरराष्ट्रीय जुझारूपन और तीव्र प्रतिक्रिया के सन्दर्भ का हिस्सा हैं जो 2022 की गर्मियों से चल रही हैं, जब दशकों के इस्तीफे के बाद ब्रिटेन में वर्ग ने गुस्से में चीखते हुए, “बहुत हो गया” का नारा लगाया जो प्रतिध्वनित होते हुए पूरे मजदूर वर्ग में गूंजता रहेगा.