अंतर्राष्ट्रीय ऑनलाइन सार्वजनिक बैठक
शनिवार 5 अप्रैल 2025, दोपहर 2 बजे से शाम 5 बजे तक, यू के ( यूनाइटेड किंगडम) समयनुसार
अमेरिका और यूरोप के बीच हुए ब्रेक का ऐतिहासिक महत्व
अमेरिका में ट्रम्प 2.0 के आगमन के बाद से घटनाओं में तेजी जारी है।
यही कारण है कि आईसीसी वर्तमान विश्व स्थिति पर केंद्रित तीसरी अंतर्राष्ट्रीय ऑनलाइन सार्वजनिक बैठक आयोजित कर रही है। यह आवश्यक है कि जो लोग विश्व को क्षयग्रस्त पूंजीवादी व्यवस्था से छुटकारा दिलाने की आवश्यकता को समझते हैं, वे ठीक से पहचानें कि मजदूर वर्ग किससे जूझ रहा है। इसलिए हम उन सभी लोगों को प्रोत्साहित करते हैं जो “इस दुनिया की सच्चाई” और पूंजीवाद पर विजय पाने के मार्ग की खोज में लगे हुए हैं कि वे इस बैठक में उपस्थित हों और बहस में हिस्सा लें।
यदि आप इसमें भाग लेना चाहते हैं, तो कृपया हमें [email protected] [1] पर लिखें।
आई सी सी
अमेरिका में सम्पन्न हुए राष्ट्रपति चुनाव में भारी बहुमत से जीते ट्रम्प, व्हाइट हाउस में पुनः विराजमान हो गये हैं. उनके समर्थकों की द्रष्टि में वह एक अपराजेय हीरो, चुनाव में धांधली, न्यायिक जाँच पड़ताल, व्यवस्था से टकराव और गोलियों का मुकाबला तथा हर बाधा पर, पार पा लेने की सामर्थ्य रखते हैं. ट्रम्प की एक चमत्कारी छवि, उनके कानों से बहता खून तथा गोली लगने के वाबजूद उनकी तनी हुई मुट्ठियाँ के साथ आसमान की और टकटकी लगा कर देखना, उन्हें इतिहास के पन्नों में दर्ज कराता है. लेकिन उनकी प्रतिक्रिया से जाग्रत प्रशंसा के पीछे, यह हमला सबसे बढ़ कर, इस चुनाव अभियान की एक शानदार अभिव्यक्ति था, जो हिंसा, घ्रणा और तर्कहीनता की नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया.चुनाव में पैसे की बरसात और अश्लीलता से लबालब,यह असाधारण अभियान,अपने निष्कर्ष के तौर पर एक अति मह्त्वाकांक्षी और अरबपति पूंजीपति की जीत उस रसातल को दर्शाती है,जिसमें पूंजीवादी डूब रहा है.
एक बुरे इन्सान में जितने भी अबगुण हो सकते हैं, वे सब ट्रम्प में विद्यमान हैं: वह एक असभ्य ,झूठा और बदनाम इन्सान है, जितना वह नस्लवादी और स्त्री विरोधी है और उससे भी अधिक घ्रणित,वह समलैंगिक भी है. पूरे चुनावी अभियान के दौरान उनके राष्ट्रपति कार्यालय में लौटने से ‘लोकतांत्रिक संस्थानों, अल्पसंख्यक, जलवायु और अंतररास्ट्रीय सम्बन्धों के खराब होने के प्रति अनवरत रूप से आगाह किया था. प्रेस ने अपने अभियान के दौरान, ”ट्रम्प के शासन में दुनियां की सासें रूक जायेंगी”,( Die Zeit) “एक अमेरिकी दुस्वप्न” (L Huminite) “दुनियां ट्रम्प से कैसे बचेगी?” “एक राजनैतिक पराजय” (El Pais) जैसे जुमले खूब उछाले थे.
इस लिए तब क्या हमें, लोक लुभावनवाद का मार्ग अवरुद्ध करने के लिए तथाकथित “छोटी बुराई“ के तौरपर हैरिस को वोट देना चाहिए ? यही सब कुछ था जिस पर पूँजीवाद भरोसा दिलाना चाहता था. महीनों तक अमेरिका के नये राष्ट्रपति ने अपने को लोकलुभावनवाद के खिलाफ विश्वव्यापी अभियान के केंद्र में पाया. “ मुस्कराती” कमला हैरिस ने लगातार अपने प्रतिद्वंदी को “ फासीवादी” करार देते हुए: अमेरिकी लोकतंत्र” की रक्षा का आव्हान किया. यहाँ तक कि ट्रम्प के पूर्व चीफ आफ स्टाफ ने भी बिना समय गंवाए उन्हें :संभावित तानाशाह” के रूप में चित्रित किया. अरबपति की इस जीत ने “पूंजीवादी जनतंत्र” के पक्ष में एक रहस्यमयी अभियान को ही बढ़ावा दिया .
कितने ही मतदाता चुनाव बूथ पर इस विचार के साथ गये:“डेमोक्रेट्स” ने हमें चार साल तक बुरे दिन दिखाए हैं लेकिन व्हाइट हॉउस में ट्रम्प का लौटना अब उतना बुरा नहीं होगा. यह वह धारणा है जिसे पूँजीपति वर्ग ने हमेशा मजदूर वर्ग के दिमाग में डाल कर उन्हें चुनाव में धकेलने की कोशिश की है. लेंकिन मरणशील पूंजीवाद में चुनाव एक छलावा है, एक गलत विकल्प है, जिसका मजदूर वर्ग के ऐतिहासिक लक्ष्यों और उन्हें प्राप्त करने के साधनों पर विचार करने के अलावा अन्य कोई कार्य नहीं है.
अमेरिका का वर्तमान चुनाव भी इस वास्तविकता का अपवाद नहीं है. ट्रम्प की इस व्यापक जीत का एकमात्र और सबसे महत्वपूर्ण कारण यह रहा कि लोग डेमोक्रेट से नफरत करते हैं. यहाँ कोई “रिपब्लिकन” लहर नहीं थी और न ट्रम्प को कोई बड़े पैमाने पर समर्थन मिला. पिछले 2020 के चुनाव की तुलना में उनके मतदाताओं की संख्या अपेक्षाक्रत स्थिर बनी हुयी है. इससे से भी ऊपर, उप राष्ट्रपति कमला हैरिस जो डेमोक्रेट्स की बदनामी का प्रतीक बनी थीं. उप-राष्ट्रिपति कमला हैरिस को इन चार वर्षों में लगभग 10 मिलियन मतदाता गवां कर हार का मुंह देखना पड़ा. इन कारणों को भी जानिये! क्योंकि इस दौरान, बाइडेन प्रशासन ने मुद्रास्फीति से लेकर मजदूर वर्ग के जीवन और कामकाजी परस्थितियों पर इतने क्रूर हमले किये, जिसमें खानापान ,पैट्रोल और आवास की कीमते असमान को छूने लगीँ. तब अतिरेक और नौकरियों में असुरक्षा की ऐसी लहर आई जिसने अन्ततः मजदूर वर्ग को बड़े पैमाने पर संघर्ष पर उतरने को प्रेरित किया. आव्रजन पर, बाइडेंन और ‘अधिक मानवीय’ नीति के वादे पर चुनी गई, हैरिस ने अमेरिका में प्रवेश के लिए शर्तों को लगातार कठोर करने के साथ मेक्सिको के बार्डर को सील कर दिया गया और प्रवासियों को शरण मांगने से भी मना कर दिया गया. अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर, बाइडेंन का बेलगाम सैन्यवाद, यूक्रेन में नरसंहार के लिए खुले हाथों से धन बहाना और इजराइली सेना के दुर्व्यवहारों के लिए आलोचना कम और खुले समर्थन ने भी मतदाताओं को नाराज कर दिया.
हैरिस की उम्मीदवारी किसी भी भ्रम को जन्म नहीं दे सकती. सर्वहारा वर्ग को पूँजीवादी सत्ता और उसके चुनावों से कोई उम्मीद नहीं है. सत्ता में पूंजीवाद का यह या वह गुट जो कारोबार का कुप्रबंधन कर रहा है, यह पूंजीवादी व्यवस्था ही है जो संकट और ऐतिहासिक दिवालियेपन में डूब रही है चाहे यह डेमोक्रेट हो अथवा रिपब्लिकन, संकट घराने गहराने पर, ये सभी मजदूर वर्ग का बेरहमी से शोषण करना तथा कष्ट फैलाना जारी रखेंगे, वे सभी पूंजीवादी राज्य की क्रूर तानाशाही को ही जारी रखेंगे और दुनियां भर में निर्दोष लोगों पर बमबारी करते रहेंगे.
अमेरिकन राज्यतंत्र के सबसे जिम्मेदार धड़े (अधिकांश मीडिया, वरिष्ठ सरकारी कर्मचारी, सैन्य कमान और रिपब्लिकन पार्टी का सबसे उग्रवादी गुट आदि) ने फिर भी ट्रम्प और उनके लोगों को रोकने के लिए पुरजोर कोशिस की. मुकदमों का सिलसला, लगभग हर क्षेत्र के विशेषज्ञों की चेतावनियों और यहाँ तक उम्मीदवारों की खिल्ली उड़ाने के मीडिया के अथक प्रयास भी उन्हें सत्ता की दौड़ में शामिल होने से रोकने के लिये पर्याप्त नहीं थे. ट्रम्प का चुनाव, चेहरे पर थप्पड़ मारने जैसा है. और यह संकेत दे रहा है कि पूंजीपति वर्ग अपने चुनावी खेल पर तेजी से नियन्त्रण खोता जा रहा है और अब तक गैरजिम्मेदार उपद्रवियों को राज्य के सर्वोच्च कार्यालयों में प्रवेश करने से रोकने में सक्षम नहीं है.
लोकलुभावनवाद के उदय की वास्तविकता कोई नयी बात नहीं है 2016 में ब्रैक्सिट के लिए वोट, उसके बाद, उसी साल ट्रम्प की आश्चर्यजनक जीत, इसका पहला और सबसे शानदार संकेत थे.लेकिन पूँजीवाद का गहराता संकट तथा स्थिति पर नियंत्रण रखने की राज्यों की निरंतर बढती कमजोरी, चाहे भू-रणनीतिक, आर्थिक,पर्यावर्णीय अथवा सामाजिक सवाल हो, सभी ने दुनियां भर में न केवल राजनैतिक अस्थिरता को मजबूत करने का काम किया है: बल्कि त्रिशंकु संसद, लोकलुभावनवाद, पूंजीवादी गुटों के बीच बढ़ता तनाव, सरकारों की बढती अस्थिरता ....ये घटनाएँ विघटन की प्रक्रिया की गवाह हैं जो अब दुनियां के सबसे शक्तिशाली राज्यों के केंद्र में कार्य कर रहा है. इस प्रवृति ने माइली जैसे पागल व्यक्ति को अर्जेन्टिना में राज्य के प्रमुख तक पहुँचने और लोकलुभावनवादियों ने यूरोप के तमाम अन्य देशों जहाँ दुनियां के सबसे अनुभवी पूंजीवादियों के देशों में भी सत्ता हथियाने में भी सफलता हासिल की है.
ट्रम्प की जीत इसी प्रक्रिया का हिस्सा है, लेकिन यह एक अतिरक्त महत्वपूर्ण कदम को भी चिन्हित करता है.यदि ट्रम्प को राज्यतंत्र के एक बड़े भाग द्वारा ख़ारिज भी कर दिया गया है जो सबसे ऊपर है. क्योंकि उनके कार्क्रम और कार्यशैली से न केवल दुनियां में अमेरिकी साम्राज्यवाद के हितों को नुकसान पहुँचने का जोखिम है, साथ ही सामाजिक समानता सुनिश्चित करने में राज्य की कठिनाइयों में बढ़ोतरी हो रही है. राज्य के कामकाज के लिए तथा राष्ट्रीय पूँजी की क्रियाशीलता के लिए सामाजिक एकजुटता का दिखाव आवश्यक है.अपने चुनाव अभियान के दौरान ट्रम्प ने भडकाऊ भाषणों की एक श्रंखला प्रस्तुत की जिससे उनके समर्थकों में प्रतिशोध की भावना फिर से भडक उठी ,यहाँ तक कि ‘लोकतान्त्रिक’ संस्थानों को भी धमकाया गया कि पूंजीपति वर्ग को वैचारिक रूप से नियंत्रित करने की सख्त आवश्यकता है. उन्होंने लगातार विरोधी और घ्रणित बयानबाजी को बढ़ावा दिया है, जिससे उनके निर्वाचित न होने पर दंगों की आशंका बढ़ गई. इस दौरान, उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि उनके शब्दों का समाज के तानेबाने पर क्या परिणाम हो सकते हैं? इस अभियान की अत्यधिक हिंसा जिसके लिए ‘डेमोक्रेट’ भी जिम्म्रदार हैं, निस्संदेह अमेरिकी समाज में विभाजन को और गहरा कर देगी और पहले से ही अत्यधिक खंडित समाज में हिंसा को और बढ़ावा दे सकती है. लेकिन ट्रम्प ने पूंजीवादी व्यवस्था में विशेषता हासिल करने वाले प्रथ्वी के सुलगते तर्क,“जीतने के लिए सब जायज है” को, अपना अमोघ हथियार को अपनाया.
ट्रम्प की 2016 में जीत आश्चर्य की बात थी. वह अपनी जीत पर स्वयं आश्चर्यचकित था. अमेरिकी पूंजीवादी सरकार उसके लिए जमीन तैयार करने और लोगों को उसमें शामिल करने में तथा अरबपति के सबसे भ्रामक निर्णयों पर ब्रेक लगाने में सक्षम थी. उदाहरण के तौर पर, जिन्हें ट्रम्प ने “देशद्रोही “ बताया, वे सामाजिक सुरक्षा प्रणाली( ओबामा केयर ) को रद्द करने या ईरान पर बमबारी को रोकने में सक्षम थे. जब कोविड की महामारी ने हमला किया तो उनके उप- राष्ट्रपति, माइक पेंस, ट्रम्प के इस विश्वास के बावजूद संकट का प्रबंध करने में सक्षम थे, जो फेफड़ों में कीटाणुनाशक इंजेक्ट करना बीमारी को ठीक करने के लिए पर्याप्त था... यह वही पेंस थे जिन्होंने सार्वजनिक रूप से इसे अस्वीकार कर दिया था. ट्रम्प ने बाइडेंन को सत्ता का हस्तांतरण सुनिश्चित करके, जबकि दंगाइयों ने कैपिटल पर मार्च किया। अब से, भले ही सेनापति ट्रम्प के प्रति बहुत शत्रुतापूर्ण हो और फिर भी उनके सबसे खराब फैसलों में देरी करने की पूरी कोशिश करेगा, नए राष्ट्रपति के लोगों ने "गद्दारों" को हटाकर खुद को तैयार कर लिया है और सभी के खिलाफ अकेले शासन करने की तैयारी कर रहे हैं। हमें पिछले जनादेश से भी अधिक अराजक जनादेश मिलने की संभावना है।
अभियान के दौरान, ट्रम्प ने खुद को एक “ शांति दूत” के रूप में प्रस्तुत किया और दावा किया कि वह 24 घंटों में यूक्रेनी संघर्ष को समाप्त कर देंगे. शांति के लिए उनकी अभिरुचि यूक्रेन के सीमा पर ही समाप्त हो जाती है, क्योंकि इसके साथ ही उन्होंने इजरायली राज्य द्वारा किये गये नरसंहारों को बिना शर्त समर्थन दिया है और ईरान के प्रति नितांत जहरीला बना हुआ है. वास्तव में यह कोई नहीं जानता कि ट्रम्प यूक्रेन, मध्य एशिया, यूरोप या नाटो के साथ कैसा बर्ताव करेंगे ( या करने में सक्षम होंगे) वह हमेशा से इतने बहुमुखी और मनमौजी रहे हैं.
दूसरी ओर, ट्रम्प की वापसी से दुनियां में अस्थिरता और अराजकता में एक अभूतपूर्व तेजी आएगी. मध्यपूर्व में नेतन्याहू पहले से ही कल्पना करते हैं: ट्रम्प की जीत के साथ, गाज़ा में संघर्ष शुरू होने के बाद से उनके हाथ पहले के किसी भी समय की तुलना में अधिक स्वतंत्र हैं. इजरायल पूरे क्षेत्र में और अधिक बर्बरता फैला कर अपने रणनीतिक लक्षों (हिजबुल्ला, हमास का विनाश, ईरान के साथ युद्ध आदि को और अधिक सीधे तरीके से हासिल करने की इच्छा पाल सकता है.
यूक्रेंन में, बाईडेन के नपेतुले समर्थन की नीति के बाद संघर्ष के और भी अधिक नाटकीय मोड़ लेने का खतरा है. मध्यपूर्व के विपरीत, यूक्रेन में अमेरिका ने, रूस- चीन के बीच गठजोड़ को तोड़ने की बड़ी सावधानीपूर्वक रणनीति तैयार की है इसके साथ ही आसपास के यूरोपीय राज्यों के नाटो के साथ सम्बन्धों को मजबूत करने की सावधानीपूर्वक तैयार की गयी रणनीति का हिस्सा है. ट्रम्प इस रणनीति पर सवाल उठा सकते हैं और अमेरिकी नेत्रत्व को कमजोर कर सकते हैं. ट्रम्प चाहे कीव छोड़ने का निर्णय अथवा, पुतिन को ‘दण्डित करना, यह नरसंहार अनिवार्य रूप से बढ़ेगा और सम्भवतया,यूक्रेन से परे भी फैल जायेगा.
लेकिन यह चीन ही है जो अमेरिकी साम्राज्यवाद पर अपना पूरा ध्यान केन्द्रित किये हुए है. संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच संघर्ष विश्व स्थिति का केंद्र विन्दु बना हुआ है तथा नये राष्ट्रपति अपने उकसावों को कई गुना बढ़ा सकते हैं, तथा चीन को कड़ी प्रतिक्रिया देने को मजबूर कर सकते हैं. उदाहरण के तौर पर, संयुक्त राज्य अमेरिका के जापानी और कोरियाई सहयोगियों पर दबाव डाल कर, पहले से ही वक्त अपनी चिताओं को वक्त कर सकते हैं. और यह सब बढ़ते,व्यापार युद्धों और संरक्षणवाद की प्रष्ठभूमि में विद्यमान है जिसकी पहले से ही वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी परिणामों की दुनियां के प्रमुख वित्तीय संस्थानों द्वारा पहले से ही निंदा की जा रही है.
इसलिए ट्रम्प की अनिश्चतता ही व्यक्ति को अपने बारे में सोचने के की प्रवृति को काफी हद तक मजबूत कर सकती है जिसे बड़ी और छोटी सभी शक्तियों को भारी भ्रम और बढी हुई अराजकता के माहौल में अपना कार्ड खेलने के लिए अमेरिकी पुलिसकर्मी को पीछे हटने का फायदा उठाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है, यहाँ तक कि अमेरिका के सहयोगी पहले से ही अधिक खुले तौर पर आर्थिक और सैन्य, दोनों तरह के राष्ट्रीय समाधानों का समर्थन करके वाशिंगटन से दूरी बनाने की कोशिश कर रहे हैं. जैसे ही ट्रम्प की जीत की पुष्टि हुई, फ़्रांस के राष्ट्रपति ने यूरोपीय संघ के राज्यों से संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के सामने अपने हितों की रक्षा करने का आव्हान किया.
आर्थिक संकट के ऐसे समय में जब सर्वहारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने संघर्ष की भावना को पुन: प्राप्त कर रहा है और धीरे-धीरे अपनी वर्ग पहचान को फिर से खोज रहा है, अमेरिकी पूंजीपति वर्ग की नजर में ट्रम्प का गुट स्पष्ट रूप से पूँजी की आवश्यकतायों के अनुरूप, मजदूर वर्ग पर हमले कर उनके वर्ग संघर्ष को रोकने में असमर्थ है. हड़ताली मजदूरों के खिलाफ उनकी खुली धमकियों और उनके धुर मजदूर विरोधी दुर्दांत सहयोगी एलन मस्क के साथ उनकी दु;स्वप्न साझेदारी के के बीच, संयुक्त राज्य अमेरिका में हालिया हमलों ((बोईंग, गोदी मजदूर, होटल व् कार कर्मियों की हड़तालों ) के दौरान अरबपति के व्यापक बयान इस बात का संकेत देते हैं. सरकारी कर्मचारियों, जिन्हें वह अपना दुश्मन मानते हैं, उनमें से 400,000 को बर्खास्त कर उनसे बदला लेने का ट्रम्प का वादा भी चुनाव बाद परेशानी का कारण बन गया है.
लेकिन यह सोचना गलत होगा कि ट्रम्प की व्हाइट हॉउस में वापसी से वर्ग संघर्ष को बढ़ावामिलेगा. इसके विपरीत, यह एक वास्तविक झटके के रूप में आएगा.जातीय समूहों के बीच, शहरी निवासियों के बीच, स्नातकों औए गैर-स्नातकों के बीच विभाजन की नीति, चुनाव अभियान से उत्पन्न सभी हिंसा और नफरत और जिसका ट्रम्प ने भरपूर प्रयोग किया, काले लोगों, प्रवासियों के, समलैंगिकों या ट्रांस्जेंन्दरों के खिलाफ लोग, ईसाई धार्मिक कट्टरपंथी तथा अन्य षड्यंत्रकारी सिद्धान्तकारों के सभी तर्कहीन प्रलाप, संक्षेप में विघटन की पूरी गडबडी, मह्नतकश लोगों पर और भी अधिक भारी पडेगी और यहाँ तक कि लोकलुभावनवाद या इसके विरोधी गुटों के पक्ष में गहरे विभाजन और यहाँ तक कि हिंसक राजनैतिक टकराव पैदा करेगा.
ट्रम्प प्रशासन निस्संदेह विभाजन का जहर पैदा करने और मजदूरों के संघर्षों को पटरी से उतारने के लिए पूंजीपति वर्ग के वामपंथी गुटों पर भरोसा करने में सक्षम होगा, जिसकी शुरुआत समाजवादियों’ से होगी. क्लिंटन, बाईडेन और हैरिस दोनों के लिए प्रचार करने के बाद, बर्नी सेंडर्स ने बिना पलक झपकाए डेमोक्रेट्स पर “ मजदूर को छोडने “ का आरोप लगाया जैसे कि 19 वीं शताब्दी में अक्सर सत्ता में रही सैन्यवादी, सर्वहारा – हत्यारी पार्टी के पास मजदूर वर्ग के लिए करने के लिए कुछ भी नहीं था. जैसे ही वह प्रतिनिधि सभा के लिए फिर से चुनी गयी, वामपंथी डेमोक्रेट ओकासियो ने मजदूर वर्ग को “समुदायों” में बाँटने का हर संभव प्रयास करने वादा किया: “हमारा अभियान सिर्फ वोट जीतने के बारे में नहीं,यह इस बारे में है कि हमें मजबूत समुदाय बनाने का साधन दे रहा है.”
लेकिन मजदूर वर्ग में इन नई वाधाओं के बावजूद लड़ने की शक्ति है, जबकि यह अभियान पूरे जोरों पर था, और लोकलुभावन लोगों के हाथों में खेलने के लिए कुख्यात आरोपों के बावजूद, मजदूरों ने मितव्यता और अतिरेक के खिलाफ संघर्ष जारी रखा.यूनियनों द्वारा पैदा किये गये अलगाव, बड़े पैमाने पर डेमोक्रेटिक प्रचार, और विभाजन के भार के बावजूद, उन्होंने सिद्ध किया कि संघर्ष ही पूंजीवाद के संकट का एकमात्र उत्तर है. सबसे महत्वपूर्ण बात है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में मजदूर अकेले नहीं हैं, ये हड़तालें अंतरराष्ट्रीय जुझारूपन और तीव्र प्रतिक्रिया के सन्दर्भ का हिस्सा हैं जो 2022 की गर्मियों से चल रही हैं, जब दशकों के इस्तीफे के बाद ब्रिटेन में वर्ग ने गुस्से में चीखते हुए, “बहुत हो गया” का नारा लगाया जो प्रतिध्वनित होते हुए पूरे मजदूर वर्ग में गूंजता रहेगा.
एक बार फिर, "बस, बहुत हो गया" यही भावना थी जो 13 दिसंबर 2024 और 13 जनवरी 2025 को ब्रुसेल्स में हुई कार्रवाई के दौरान व्यक्त की गई थी, जो 'मितव्ययिता योजनाओं' के खिलाफ थी, जो एक नई संघीय सरकार के गठन के लिए वार्ता की मेज पर हैं, जो अब छह महीने से चल रही है। पहले ये योजनाएँ मीडिया 'लीक' के ज़रिए उजागर होती थीं; आज ये कोई सार्वजनिक रहस्य नहीं रह गई हैं। यूनियनें "पिछले 80 सालों के सबसे कठोर उपायों" की बात करती हैं। योजनाबद्ध हमले मज़दूर वर्ग के सभी वर्गों को प्रभावित करेंगे। जबकि निजी कंपनियों में श्रमिकों को बड़े पैमाने पर नौकरी से निकाला जाएगा (2024 तक 27,000) और स्वचालित वेतन सूचकांक पर हमला होगा, नई राष्ट्रीय सरकार बेरोजगारी लाभ और पेंशन सहित सामाजिक सुरक्षा खर्च को भी खत्म करना चाहती है। सबसे बढ़कर, यह कुल सार्वजनिक कार्यबल में दो प्रतिशत की कटौती करना चाहता है, तथा सभी श्रमिकों के लिए काम को और भी अधिक अनिश्चित और लचीला बनाना चाहता है।
अभियान के पहले दिन, लगभग 10,000 प्रदर्शनकारियों के साथ, मुख्य रूप से ट्रेड यूनियन प्रतिनिधि ही जुटे थे (और मुख्य रूप से वाल्लून क्षेत्र से), 14 जनवरी को यह परिदृश्य बहुत अलग रूप में सामने आया। यूनियनों द्वारा मूलतः प्रस्तावित 5,000 से 10,000 प्रदर्शनकारियों की बजाय, देश के विभिन्न क्षेत्रों और बढ़ती संख्या में विभिन्न क्षेत्रों से 30,000 से अधिक श्रमिक अंततः प्रदर्शन में शामिल हुए। लेकिन फ्लेमिश क्षेत्र में 47,000 शिक्षक हड़ताल पर चले गए, जो ऐतिहासिक रूप से बड़ी संख्या थी। रेलवे, सार्वजनिक परिवहन, रीसाइक्लिंग, डाक सेवाओं और कई अन्य सार्वजनिक सेवाओं में भी काम ठप रहा। 13 फरवरी को अभियान का एक नया दिन घोषित किया गया, जिसका नारा अब “सार्वजनिक सेवाओं और क्रय शक्ति के लिए” होगा।
लेकिन अभियान के इन दो दिनों से पहले भी नवंबर में एक और रैली हुई थी, जिसमें अनुमान से कहीं अधिक संख्या में श्रमिक जुटे थे। 7 नवंबर को स्वास्थ्य एवं कल्याण कर्मियों के प्रदर्शन में भी उपस्थिति अपेक्षा से तीन गुना अधिक थी: 30,000 से अधिक श्रमिक. इसके अलावा, 26 नवंबर को फ्रेंच भाषी शिक्षा कर्मियों (वालोनिया और ब्रुसेल्स क्षेत्र) द्वारा रोलाण्ड लाहाया के खिलाफ व्यापक रूप से समर्थित हड़ताल भी हुई। वालून शिक्षा संघ के महासचिव सीएससी-एनसिग्नमेंट ने इसे "युद्ध की घोषणा" कहा। "शिक्षण हाँ, रक्तपात नहीं!" नारे के तहत, हड़तालियों ने सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण रूप से पहले से नियुक्त वालोनी सरकार द्वारा शिक्षा में घोषित कटौती को अस्वीकार कर दिया, एक ऐसा उपाय जो स्थायी नियुक्तियों को खतरे में डालता है, कर्मचारियों की पेंशन पर इसका महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। 27 और 28 जनवरी को दो दिन, हड़ताल और प्रदर्शन होंगे। और शिक्षा संघ इन दबावों के बावजूद अनिश्चितकालीन हड़ताल की घोषणा करने पर विचार कर रहा है।
ये प्रदर्शन, हड़तालें, विरोध दुनिया भर में बढ़ते जुझारूपन की पुष्टि करते हैं, जिसके बारे में हमने हाल के वर्षों में अपने लेखकों में कई बार रिपोर्ट की है। साम्राज्यवादी तनाव और बढ़ती अराजकता, विश्व वाणिज्य का विखंडन, बढ़ती मुद्रास्फीति और ऊर्जा लागत आर्थिक संकट के अभूतपूर्व रूप से गंभीर होने के कई संकेत हैं। इस प्रकार सभी देशों में पूंजीपति वर्ग आर्थिक संकट के दुष्परिणामों को मजदूरों पर थोपने की कोशिश कर रहा है। बेल्जियम इसका अपवाद नहीं है।
पूंजीपति वर्ग अच्छी तरह जानता है कि इन योजनाओं से वर्ग के बड़े हिस्से में प्रतिक्रिया भड़केगी, और न केवल सार्वजनिक सेवा क्षेत्र में। वह इस बात से अवगत है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर श्रमिक वर्ग ने पहले ही दिखा दिया है कि वह दशकों से चले आ रहे पतनोन्मुख संघर्षों पर काबू पा चुका है। यही कारण है कि पूंजीपति वर्ग अच्छी तरह से तैयार रहने तथा अपेक्षित प्रतिरोध को अवशोषित करने और मोड़ने के लिए आवश्यक बलों को तैनात करने को महत्व देता है।
यूनियनों ने देखा कि श्रमिकों के बीच चिंता और असंतोष हर सप्ताह बढ़ रहा है, तथा वे असंतोष को "अनियंत्रित" कार्यों में प्रकट होने से रोकने के लिए निष्क्रिय न रहे। रविवार 8 दिसंबर 2024 को, एन वर्मोर्गन (एसीवी यूनियन की अध्यक्ष) ने टेलीविजन पर घोषणा की कि संयुक्त यूनियनों ने आगामी समय में हर महीने 13 तारीख को एक अभियान दिवस आयोजित करने का निर्णय लिया है। इसके बाद दिसंबर और जनवरी में अभियान दिवस मनाए गए, जहां यूनियन ने लामबंदी को कुछ वर्गों (विशेष रूप से शिक्षा) और कुछ मांगों (शिक्षा में पेंशन सुधार) तक सीमित रखने की कोशिश की। यूनियनें स्थापित रणनीति अपना रही हैं: कई दिनों तक कार्रवाई करने से विभिन्न सेक्टरों और क्षेत्रों का अलगाव और विभाजन अंततः लड़ने की इच्छा को समाप्त कर देगा।
हालाँकि, 13 जनवरी की लामबंदी की ताकत और गतिशीलता ऐसी थी कि यह अन्य सेक्टरों और सभी क्षेत्रों में फैल गयी और स्वयं यूनियनों को भी आश्चर्यचकित कर दिया। दरअसल, गुस्सा साफ तौर पर दर्शाता है कि यह सिर्फ एक विशेष उपाय या घोषित 'सुधार' से कहीं आगे की बात है। यह अधिक सामान्य असंतोष और आक्रोश की अभिव्यक्ति है, तथा बढ़ती जीवन-यापन लागत, बिगड़ती कार्य स्थितियां, नौकरी की असुरक्षा और गरीबी के मद्देनजर जुझारूपन की वापसी की वास्तविकता है।
वर्षों से, हमें बताया जाता रहा है कि पूंजीवाद ही एकमात्र सम्भव व्यवस्था है और लोकतंत्र सर्वोत्तम तथा सर्वाधिक परिपूर्ण राजनीतिक संस्था है। इन रहस्योद्धाटन का कोई अन्य उद्देश्य नहीं है, सिवाय इसके कि वे मजदूर वर्ग को विघटित कर दें, मजदूरों को अलग-थलग कर दें और उन्हें शक्तिहीन बना दें, तथा उन्हें उनके वर्ग की ताकत और एकजुटता से अलग कर दें। हालांकि, मितव्ययिता के लिए ‘प्रति-भार’ के रूप में कार्य करने के लिए मतपेटी पर निर्भर रहने की लगातार अपीलों के बावजूद, तथा लोकलुभावनवादियों के शर्मनाक विमर्श के खिलाफ ‘लोकतंत्र की रक्षा’ करने के आह्वान के बावजूद, श्रमिक संघर्ष के मार्ग को पुनः खोज रहे हैं, तथा अपने वर्ग धरातल में एक साथ लड़ने की आवश्यकता को समझ रहे हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि वर्ग संघर्षों के विकास की यह गतिशीलता एक युद्ध और सैन्य खर्च में निरंतर वृद्धि के संदर्भ में हो रही है, जिसका भुगतान मजदूर वर्ग को करना होगा।
हमारे जीवन स्तर पर हो रहे हमलों को वास्तव में रोकने के लिए, संघर्ष को सभी श्रमिकों को एकजुट होकर व्यापकतम संभव आधार पर विकसित किया जाना चाहिए, चाहे वे किसी भी कंपनी, संस्थान, सेक्टरों या क्षेत्र में काम करते हों। सभी श्रमिक एक ही नाव में सवार हैं। ये सभी समूह अलग-अलग आंदोलन नहीं हैं, बल्कि एक सामूहिक पुकार हैं: हम श्रमिकों का शहर हैं - नीली कॉलर वाले और सफेद कॉलर वाले, संघबद्ध और गैर-संघबद्ध, आप्रवासी और मूल निवासी," जैसा कि मार्च 2023 में लॉस एंजिल्स में एक हड़ताली शिक्षक ने कहा था। बेल्जियम में हो रही हड़तालें पूरी तरह से उस आंदोलन का हिस्सा हैं जो पिछले तीन वर्षों से अन्य देशों, विशेषकर ब्रिटेन, अमेरिका और फ्रांस में हो रहा है।
लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि बेल्जियम की तरह अन्य जगहों पर भी मजदूर वर्ग अपनी कुछ कमजोरियों पर काबू पा सके जो हाल के संघर्षों में सामने आई हैं:
बेल्जियम में, पूंजीपति वर्ग और उसकी यूनियनें विभाजन का जहर फैलाना कभी बंद नहीं करतीं: सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच, तथा भाषाई अवरोध के दोनों ओर के श्रमिकों के बीच। यह पारंपरिक रूप से कठिन बाधा है, लेकिन असंभव नहीं है जैसा कि हमने 23 अप्रैल 2023 को देखा जब फ्रेंच-भाषी और डच-भाषी शिक्षकों ने ब्रुसेल्स में एकजुट होकर प्रदर्शन किया। 1983 और 1986 की हड़तालों ने सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों वालोनिया, ब्रुक्सेल्स और फ़्लैंडर्स के क्षेत्रों से लाखों श्रमिक एक जुट हुए। यदि हमें पूंजीपति वर्ग द्वारा बिछाए गए जालों के विरुद्ध स्वयं को तैयार करना है तो अतीत के संघर्षों से सबक लेना पहले से कहीं अधिक आवश्यक है।
हमारी ताकत एकता है, संघर्ष में एकजुटता है! अलग-अलग लड़ना नहीं बल्कि संघर्ष को एक ही आंदोलन में एकजुट करना; हड़ताल पर जाना और संघर्ष में अन्य श्रमिकों के साथ शामिल होने के लिए बड़े पैमाने पर प्रतिनिधिमंडल भेजना; संघर्ष की आवश्यकताओं पर एक साथ चर्चा करने के लिए आम सभाओं का आयोजन करना; आम मांगों के इर्द-गिर्द एकजुट होना। एकजुटता, विस्तार और एकता की यही गतिशीलता है जिसने पूरे इतिहास में पूंजीपति वर्ग को हमेशा हिलाकर रख दिया है।
हम यहाँ कोरोंना वायरस के संकट पर आई. सी. सी. के वक्तव्य को एक “डिजिटल लीफलैट” के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं, क्योंकि लौकडाउन की स्थिति से यह स्पष्ट है कि इसे बड़ी संख्या में छाप कर वितिरत नहीं किया जा सकता.हम अपने सभी पाठकों से कह रहे हैं कि वे इस लीफलैट को अधिक से अधिक संख्या में वितरित करने के लिए उपलब्ध सभी साधनों, सोशल मीदिया आदि इंटरनेट के सभी माध्यमों आदि का प्रयोग करें. हम उनसे यह भी उम्मीद करते हैं कि वे इस पर्चे पर होने वाली बहसों, प्रतिक्रियाओं तथा प्रस्तुत आलेख पर अपने विचारों से भी अवगत कराएँ. सर्वहारा क्रांति के लिए संघर्ष में जुटे साथियों के यह इस लिए लिये भी आवश्यक है कि वे एकजुटता अभिव्यक्त करे और एक दूसरे के साथ संपर्क स्थापित करें. हम कुछ समय के लिए भौतिक तौर पर अलग थलग हो सकते हैं, लेकिन हम तब भी राजनैतिक रूप में एक साथ होंगे.
नित रोज हजारों लोगों की जानें जारही है, अस्पतालों ने महामारी के सामने घुटने टेक दिए हे: यहाँ नौजवानों और बीमार बुजर्गों के बीच एक डरावना परिद्रश्य उपस्थित हो गया है, स्वास्थ्य कर्मी थके हुए, वायरस से ग्रसित और उनमें से कितने ही विषाणु से लड़ते हुए अपने प्राण निछावर कर चुके हें. सरकारें “ विषाणु से युद्ध “ तथा “राष्ट्रीय आर्थिक हितों कि सुरक्षा” के नाम पर गलाकाट प्रतियोगिता में उलझी हुई हें. स्वतंत्र रूप से गिरते हुए वित्तीय बाजार अति यथार्थवादी तरीके से डकैतियों में संलग्न हैं, जहाँ सरकारें मास्कों की लूट खसोट में लगी हुई हें . दसों लाखों मजदूरों को बेरोजगारी के नर्क में धकेल दिया गया है ,सरकारों और उसके मीडिया द्वारा तूफानी झूठों के सहारे आज की दुनियां द्वारा भविष्य की डरावनी तस्वीर प्रस्तुत की जा रही है.यह महामारी स्पेन के १९१७-१८ के फ्लयू के पश्चात स्वास्थ्य के क्षेत्र में भयंकर तबाही का मंजर प्रस्तुत करती है;, यद्धपि उस समय के बाद, विज्ञानं ने अद्भुत तरक्की की है.फिर ये आपदा क्यों ? हम आज यहाँ क्यों पहुंचे?
हमें बताया गया है कि वर्तमान वाइरस अन्य विषाणुओं से अलग है कि यह अन्य के मुकाबले अधिक संक्रामक है, यह कहीं अधिक घातक और और विनासक है. सम्भवतया यह सच हो, लेकिन यह विपदा के स्तर को बयाँ नही करते. इस समूचे गृह पर मची अफरा तफरी , सैकड़ों हजार मौतों के लिए सिर्फ और सिर्फ पूंजीवाद ही जिम्मेदार है. यहाँ उत्पादन मानव की जरूरतों के नहीं लिए बल्कि मुनाफा कमाने, स्थाई तौर पर मूल्य वृद्धि को प्रभावी बनाने के लिए, मजदूर वर्ग के भयंकर शोषण , शोषित वर्ग के जीवन की स्थितियों पर लगातार हिसक हमले, राजकीय संस्थानों के बीच पागलपन की हद तक होड की कीमत पर किया जाता है . पूंजीवादी व्यवस्था के इसी बुनियादी चरित्र ने समूची मानवता को वर्तमान आपदा के कुए में धकेला है .
पूंजीवाद की आपराधिक लापरवाही
वर्तमान समाज को संचालित करने वाला पूंजीपति वर्ग अपने राज्य व मीडिया के साथ मिल कर अपने निहित स्वार्थों की चादर में लपेट कर हमारे सामने प्रस्तुत करता है कि इस महामारी के विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं किया जा सकता था.यह उसी स्तर का झूठ है जो जलवायु परिवर्तन के विषय में झूठ बोला गया था. वैज्ञानिक लम्बे समय से कोविद १९ जैसी महामारी के बारे में चेतावनी दे रहे थे. लेकिन सरकारों ने उनकी अनसुनी कर दी. उन्होंने तो सी. आई .ए. द्वारा तैयार की गई उस रिपोर्ट को भी सुनाने से इंकार कर दिया ( “ कल की दुनियां कैसी होगी”) जिसमें वर्तमान महामारी के अभिलक्षणों कि परिशुद्धता के बारे में चौकाने वाले तथ्यों का विवरण पस्तुत किया था. पूंजीवाद की सेवारत राज्य ने इस भांति इस और से आँखें क्यों मूँद लीं? बहुत ही साधारण कारण है: जितना जल्दी संभव हो उतनी ही जल्दी मुनाफा पैदा करने के लिए निवेश. मानवता के भविष्य के लिए निवेश से उन्हें कोई लाभ नहीं मिलता, बल्कि उलटे मूल्य सूचकांक को ह्तोत्साहित ही करता है. यह निवेश राष्ट्रीय पून्जीवादी राष्ट्रों को साम्रज्य्वादी रन क्षेत्र में एक दूसरे के ऊपर प्रभुत्व स्थापित करने में सक्रिय भूमिका निभाता है. सैनिकं क्षेत्र में शोध कार्य में पागलपन की हद किये जाने वाली धनराशि को यदि स्वास्थ्य व मानव कल्याण में खर्च किया गया होता तो इस प्रकार कि महामारियां कभी सर नही उठातीं, लेकिन पूर्व घोषित महामारियों के खिलाफ कदम उठाने के बजाय सरकारों ने तकनीकी और मानव संसाधनक्षेत्र के क्षेत्र में किये जाने शोध कार्य पर हमले एक दिन भी नहीं रोके, वे nनिरंतर जारी रखे.
आज उच्च स्तर पर विकसित देशों के ह्रदय में भी लोग मक्खियों की भांति मर रहे हैं. इसका मुख्य कारण है कि इन देशों की सरकारों ने रोगों के विषय में की जाने वाले शोध कार्यों के लिए आवंटित बजट पर निरंतर कैंची चलाई है. इस प्रकार डोनाल्ड ट्रम्प ने २०१८ में महामारी के खिलाफ लड़ने के लिए प्रशिद्ध विशेषज्ञों को ले का गठित की गयी ‘राष्ट्रीय सुरक्षा समिति’ की एक विशेष इकाई को ही भंग कर दिया. ट्रम्प का यह व्यवहार एक विद्रूप ही कहा जायेगा क्योंकि हर देश की सरकार सब कुछ ऐसा ही कर रही है .इस प्रकार कोरोना वाइरस के विषय में किये जाने वाले शोध कार्यों को विगत १५ वर्ष पहले ही तिलांजली इस लिए देदी गई ही थी कि इसके लिए विकसित किये जाने वाले टीके का “मूल्य प्रभावशाली “ नहीं माना गया था.
इसी भांति, यह देखना भी नितांत घ्रणास्पद लगता है कि दक्षिण और बाम दोनों ब्रांड के पूंजीवाद के नेता और राजनीतिज्ञ अस्पतालों के सरावोर हो जाने, और भयंकर परस्थितियों में भी स्वास्थ्य कर्मियों को काम करने के लिए वाध्य किये जाने का रोना रोते हें, जबकि बीते ५० सालों से सरकारे व्यवस्थागत तरीके से सिर्फ मुनाफे के नियम कानूनों को लड़ने का काम कर रही है. वे हरेक जगह स्वास्थ्य सेवाओं में कटौती करने, अस्पतालों में मरीजों के लिए शैय्या ( बैड्स) कम करने. और स्वास्थ्य कर्मियों पर काम का अतिरक्त बोझ डालने में संलग्न पाए जाते हें . और हम स्वास्थ्य कर्मियों को दिए जाने वाले मास्क, सुरक्षा केलिए वस्त्र, संक्रमणरोधी जैल एवं जाँच उपकरणों आदि के बारे में क्या कहें? बीते कुछ सालों से धनराशि बचाने की गरज से इन जरूरी साधनों का भंडारण ही खत्म कर दिया. पिछले कुछ महीनों से कोविद १९ के आकस्मिक रूप से तेजी से फैलने के बारे में सोचते भी नहीn थे, नवम्बर २०१९ के बाद से वे अपनी आपराधिक गैर जिम्मेदारी पर पर्दा डालने के लिए मास्कों को वाइरस से बचाव के लिए अनुपयोगी होने का दावा कर रहे थे .
और , दुनियां के अफ्रीका व लैटिन अमरीका जैसे पिछड़े क्षेत्रों के कालानुक्रम के बारे में क्या कहें? अफ्रीका और लैटिन अमरीका की एक करोड़ आवादी के पास मात्र ५० वैन्तीलेटर उप्ल्बव्ध हैं.जिन लोगों के पास पीने भर के लिए पानी उपलब्ध नहीं है , उनके बीच लगातार हाथ धोते रहने के सलाह देते हुए पर्चे बांटे जा रहे हें! हर और से एक ही व्यथित चीख सुनाई दे रही है , “ महामारी के इस आपातकाल में हमारे पास कुछ भी नहीं है”.
पूंजीवाद,प्रत्येक का सभी के खिलाफ युद्ध है .
विश्व स्तर पर सभी देशों के बीच गला काट स्पर्धा ने वायरस को रोकने के लिए न्यूनतम सहयोग का मार्ग भी अविरुद्ध कर दिया है.जब इसकी शुरूआत ही हुई थी,तब चीनी पूंजीपतियों ने अपने आर्थिक हितों की सुरक्षा और अपनी प्रतिष्ठा को बचाने के लिए, स्थिति की गहनता पर पर्दा डालना ही अधिक आवश्यक समझा. राज्य खतरे की घंटी बजाने वाले डाक्टर को प्रताड़ित करने में भी नहीं हिचका, और अंत में उसे मर जाने दिया. यहाँ तक पूंजीपतियों द्वारा उपकरणों की कमी के समय सहयोग के लिए बनाये गये अन्तर्राष्ट्रीय नियमों के दिखावे को भी धता बता दी गई, विश्व स्वास्थ संगठन अपने दिशा निर्देशों को लागू करने में असमर्थ रहा जबकि यूरोपे यूनियन समय रहते कोई ठोस कदम उठाने में असफल रहा. इस विभाजनकारी नजरिये के कारण महामारी के फैलने पर नियंत्रण कर पाने में असफलता ने एक भयंकर अव्यवस्था को तीब्र करने में सहयोग ही किया. “प्रत्येक व्यक्ति सिर्फ अपने लिए” के गतिज और व्यापक रूप से बढ़ती हुई होड, सत्ताधारी वर्ग की प्रतिक्रिया का प्रमुख लक्षण बन गया. हर राज्य अनुमानों के मुताबिक उपकरणों कि छीना झपटी में संलग्न है; युद्ध जैसी कार्यवाही खतरा का उठाते हुए उपकरणों की चोरी तक की जारही है. स्वीडन की और जाने वाले जहाज से बीच में ही पूरा माल लूट लिया गया, इटली को भेजे जाने वाले मास्क और वैन्तीलेटर को चैक गणतन्त्र ने कस्टम नाके पर ही जब्त कर लिया.जर्मनी द्वारा कनाडा को भेजे गये मास्क बीच में ही गायब हो गये. यह है दुनियां के “ महान जनतंत्रो “ का असली चेहरा है: चोर और लुटेरों का कुरूप चेहरा.
शोषितों पर अभूतपूर्व हमले
इटली के आन्दोलानरत मजदूर चीख चीख कर बता रहे हैं “ पूंजीपतियों के लिए हमारी जान से मुनाफा अधिक प्यारा है.” प्रत्येक देश के पूंजीपति अपने राष्ट्रीय उत्पादन को हर कीमत पर जारी रखने के लिए जनता के लिए उठाये जाने वाले सुरक्षात्मक उपायों को लम्बे समय तक टालते रहे.यह लगातार बढती मौतों के आंकडे ही थे जिससे भय भीत हो कर ही लाक डाउन किया राष्ट्रीय हितों की रक्षा के नाम पर लडे गये युद्धों ने सिद्ध कर दिया है कि सत्ताधारी वर्ग मजदूरों की जिन्दगी से कितनी घ्रणा करता है.नहीं! हमारे शाषक हमारे जीवन की परवाह नहीं करते! जहाँ तक पूंजीवाद का प्रश्न है, विशेषतया वायरस उनके लिए “लाभदायिक “ है जब “अनुत्पादक” बने बीमार और बूढ़े मजदूरों को कारखानों से बाहर का रास्ता दिखाने का बहाना मिल जाता है . वायरस को फैलते जाने देना और “झुन्ड की प्रतिरक्षा “ प्रणाली पर प्राकृतिक तौर पर हमले होने देना वास्तव में बौरिस जानसन और अन्य नेतातों की प्राथमिक इच्छा थी. प्रत्येक देश में अर्तव्यवस्था के अवव्यव्स्थित हो जाने तथा कुछ अन्य देशों में सामाजिक अव्यवस्था व बढती हुई मत्यु दर के प्रति गैर जिम्मेदारी पूर्ण रवैये के कारnण, समाज में उठते हुए गुस्से के तूफान ने ही लाकडाउन के काम को सर्वोच्च सूची में लाकर रख दिया. आधिक क्या कहें ? जहाँ आधी से अधिक मानवता उलझी हो , वहां एकांतवास के साधन मजाक बन गये हैं , हर रोज रेलगाड़ियों, बसों, पाइपों, कारखानों तथा सुपर बाजारों में हजारों की भीड़ देखी जा सकती है , ऐसे समय जब महामारी अपने उफान पर है, मजदूरों के उभरते असंतोष को ठंडा करने के लिए क्षेत्र दर क्षेत्र , कारखाने दर कारखाने कुछ – कुछ मजदूरों को काम पर वापस भेज कर लाकडाउन को जल्दी से जल्दी खत्म करने पर पूंजीवाद सघनता से विचार कर रहा है.
पूंजीवाद, शोषण की और अधिक क्रूरतम परस्थितियों के साथ मजदूर वर्ग पर लगातार नये हमले करने तैयारी में लगा है. महामारी ने लाखो मजदूरों को बेरोजगारी के गर्त में धकेल दिया है; अमेरिका में तो पिछले तीन सप्ताह में ही दस लाख मजदूर बेरोजगार हो गये हें. उनमें से बहुतेरे, जो अनिमित, अनिश्चित अथवा अस्थाई रूप से कार्यरत थे, उन्हें किसी प्रकार की आमदनी नहीं होगी. अन्य कुछ, जिनके पास जिन्दा रहने लायक कुछ सामाजिक लाभ के साधन उपलब्ध हें वे आगामी दिनों में मकानों का किराया और दवा आदि का दाम चुकाने में समस्या का सामना करना पड़ेगा.पहले से ही घुन्घले हुए, विश्व मंदी की प्रक्रिया की गति तीव्र होने;खाद्यानों की कीमतों में अनाप शनाप वृद्धि ; रोजगारों की निंतर बढती अनिश्चितिता के कारण आर्थिक विध्वंश की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. सभी राज्य, “वायरस के विरुद्ध युद्ध में राष्ट्रीय एकता “ नाम पर “ लचीलेपन” के साधन अपना रहे हैं.
पूँजीवाद जिस राष्ट्रीय हित की बात करता है, वह हमारा हित नहीं है. यह वही राष्ट्रीय आर्थिक सुरक्षा है,यह वही घनीभूत प्रतिस्पर्धा है जो, भूत में, शोषितों के जीवन की स्थिति पर हमले तेज करने के लिए बजट में कटौतिया करने को वाध्य किया. आज यह फिर उसी झूठ को दोहराएगा जब कहेगा कि इस महामारी के कारण गहराते आर्थिक संकट का मुकावला करने के लिए गरीब लोग अपने पेट पर बंधी पट्टी को और कसलें;और अधिक शोषण व गरीबी को स्वीकार कर लें. यह महामारी पर्यावरण के विनाश, ऋतू परिवर्तन के प्रदूषण, साम्राज्यवादी युद्धों और कत्लेआम में वृद्धि, मानवता के एक बड़े भाग को निर्दयता पूर्वक गरीबी में धकेले जाने, जनता के बड़े हिस्से को शरणार्थी बना देना और धार्मिक कट्टरपन तथा पोपूलिस्ट सिद्धांत का विकास के साथ, पूंजीवादी उत्पादन पद्धति के पतनशील चरित्र की अभिव्यक्ति है. See our text “Theses on the decomposition of capitalism” on our internet site: https://en.internationalism.org/ir/107_decomposition [2]). यह व्यवस्था मानवता को जिस अव्यवस्था, दुःख ,बर्बरता, विध्वंश और हत्याओं की ओर धकेल रही है, यह बताता है कि पूंजीवाद एक गहरे अंत की ओर बढ़ रहा है जो इसके अंत का सूचक है .
सिर्फ सर्वहारा ही बदल सकता है इस दुनियां को.
कुछ सरकारें और मीडिया की दलील है कि दुनियां बिलकुल वैसी नहीं रहेगी जैसी इस वायरस के फैलने से पहले थी, उनका मानना है कि आपदा के पश्चात जो सबक मिलेंगे उनके अनुसार अंत में सरकारें मानवीयता की ओर बढ़ेंगी और पूंजीवाद और अधिक व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत होगा.हमने २००८ की मंदी के बाद भी इसी टेक के साथ सुना था:अपने दिलों पर हाथ रख कर सरकारों और नेताओं ने “लुटेरी वित्तीय व्यवस्था के खिलाफ युद्ध” छेड़ने की घोषणा करते हुए बचन दिया था कि जनता द्वारा की गई कुर्वानियों की मांग है कि हम इस इस संकट पर पार पायेंगे और और एक बेहतर जीवन मिलेगा. आप सिर्फ देखेंगे कि विश्व में बढती हुई असमानता इस बात की शिनाख्त करती है कि पूंजीवाद में “सुधार “ के ये वायदे हमारे जीवन स्तर में आरही निरन्तर नई गिरावट को निगल जाने के लिए पूंजीवाद का एक बड़ा झूठ है.
पूंजीवाद अपने थोथे आर्थिक नियमों के सहारे nन इस दुनियां और न मानवीय जीवन व सामाजिक आवश्यकताओं को बदल सकता है: पूंजीवाद एक शोषणकारी व्यवस्था है; जिसमें सत्ताधारी अल्पमत बहुमत के श्रम को निचोड़ कर अपना मुनाफा और अन्य सुविधाए पैदा करता है. एक नये भविष्य की कुंजी, एक नई दुनियां के वादों, शोषण व राष्ट्रों रहित एक सच्ची इंसानी दुनियाँ मजदूर वर्ग के बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अटूट भाईचारे और उसके संघर्ष में निहित है.
वर्तमान में स्वास्थ्यकर्मियों पर लादी गये असहनीय स्थिति के खिलाफ उनके बीच उठ रहे असंतोष के फलस्वरूप हमारे वर्ग के बीच एक आपसी भाईचारे की एक स्व्यन्स्फूर्ती लहर उठ रही है, उसे पटरी से उतारने के लिए सरकारों और नेताओं द्वारा अपने दरवाजों व गौखों में तालियाँ पीटने का नाटक नाटक किया जा रहा है.वास्तव में यह उत्साहवर्धन कर्मचारियो के ह्रदय में एक नया जोश पैदा करेगा जो बड़े जोश और त्याग की भावना के साथ विकट परिस्तिथियों में भी मरीजों के देख और इनका इलाज कर रहे हें. लेकिन हमारे शोशित वर्ग के लोगों का भाईचारा मात्र पांच मिनट के लिए शाबाशी पर ही खत्म नहीं हो जाना चाहिए. इसका अर्थ यह है, प्रथमतया, बिना किसी रंगभेद के सभी सरकारों की निंदा की जानी चाहिए.अर्थात, मास्क और अन्य सुरक्षा उपकरणों की मांग की जानी चाहिए.और सम्भव हुआ तो वे हडताल पर भी जा सकते हैं.अर्थात,जब तक स्वास्थ्यकर्मियों को आवश्यक सामग्री उपलब्ध नहीं करा दी , कब तक अपने उघडे चेहरों के साथ म्रत्यु की और धकेले जाते हैं और ये शोषित यदि वे अस्पताल में नहीं हैं, तो वे काम नहीं करेंगे.
आज, जब लाकडाउन खत्म नहीं हो जाता तबतक हम इस हत्यारी व्यवस्था के विरुद्ध कोई बड़ा आन्दोलन नही छेड़ सकते.और न हम बड़े संघर्षों, हड़ताल व प्रदशनों के माध्यम से रोष और भाईचारे की भावना व्यक्त करने के लिए साथ- साथ खड़े हो सकते हैं. क्योंकि लाक डाउन के अलावा इसके अन्य भी कई कारण हैं.क्योंकि हमारा वर्ग अपनी वास्तविक शक्ति जिसका इतिहास में कितनी ही बार प्रदर्शन कर चुका है, को पुनर्जीवित करने का प्रयाश कर रहा है. लेकिन आज सताधारी वर्ग और उसकी विध्वंसकारी व्यवस्था के खिलाफ आन्दोलन विकसित करने लिए संघर्ष में अपने शक्ति को एकजुट करने की क्षमता को भूल सा गया है.
जो हड़तालें इटली के ऑटोमोबाइल क्षेत्र, फ़्रांस के सुपर मार्किट, न्यूयार्क के अस्पताल व उत्तरी फ़्रांस में हुईं, बिना मास्कों, दस्तानों और साबुन के घोर निराशा में डूबे सुरक्षाकर्मी अपने एकमात्र शोषnणकर्ता के खिलाफ झुंडों में इकट्ठे हो गये और “ संक्रमित लोगों “ का इलाज करने से मना कर दिया. आज उनकी चेतना बिखरी और उनकी शक्ति समूचे वर्ग से अलग थलग हो सकती है. लेकिन इसके बावजूद, वे प्रदर्शित करते हैं कि मजदूर किसी भी प्रकार की अनिवार्यता, और जो हमारा शोषण करते हैं उनकी आपराधिक गैरजिम्मेवारी को बर्दास्त नहीं करेंगे.
वर्ग संघर्ष का यह वही परिप्रेक्ष है जिसके लिए हमें तैयारी करनी है. क्योंकि कोविद १९ के पश्चात् वैश्विक आर्थिक मंदी व विकराल बेरोगारी होगी, “ नये सुधारों “ के नाम पर सिर्फ और कुर्बानी देने का अलावा और कुछ नहीं होगा. सो! हमें अभी से संघर्ष की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए. कैसे? जितना सम्भव हो सके हमें विभिन्न इंटरनेट चैनल, फोन, आदि पर विचार विमर्श शुरू कर देना चाहिए. हमें समझ लेना होगा कि सबसे बड़ी आफत कोविद १९ नहीं है बल्कि पूंजीवाद है, और विपदा का हल रैलियों में हत्यारों के पीछे खड़ा होना नहीं वरन उसके मुकाबले खड़ा होंना होगा.. हमें अपनी आशाओं की खोज इस य उस नेता के वादों में नही, बल्कि संघर्षों के बीच मजदूर वर्ग की एकता खोजनी होगी. हमेंजान लेना होगा कि पूंजीवादी बर्वरता का विकल्प सिर्फ विशव सर्वहारा क्रांति ही है.
भविष्य वर्ग संघर्ष में निहित है.
इन्टरनेशनल कमुनिस्ट करंट 10.4.20
अमेरिका और अन्य पश्चिमी शक्तियों का जल्दबाजी और हडबडी में अफगानिस्तान से पीछे हट जाना, पूंजीवाद द्वारा समाज को कुछ न दे पाने व बढती बर्बरता की स्पष्ट अभिव्यक्ति के अलावा और कुछ नहीं. २०२१ की गर्मियों से पहले से ही परस्पर जुडी घटनाओं की तेजी यह प्रदर्शित करती है कि ग्रह पहले से ही आग की चपेट में है : संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के पश्चिमी तट से लेकर साइबेरिया तक गर्मी की लहरों और बेकाबू आग का प्रकोप,बाढ़ और कोविद – १९ की महामारी की भयंकर तबाही के कारण चौपट हुई अर्थ व्यवस्था.यह सब “ विगत ३० सालों में हुई सड़ांध का रह्स्योद्घाटन है.(1) मार्क्सवादियों के रूप में हमारीd भूमिका, सिर्फ इस बढती हुई अराजकता के बारे में टिप्पणी करने की ही नहीं, बल्कि पूँजीवाद के ऐतिहासिक संकट में निहित,इसकी जड़ों तक पहुंच,उसका विश्लेषण करने की है .साथ ही मजदूर वर्ग तथा समूची मानवता के प्रति द्रष्टिकोण प्रस्तुत करने की भी.
तालिबान को सभ्यता के दुश्मन, मानवाधिकारों विशेषरूप से महिलाओं के अधिकारों के लिए खतरे के रूप में प्रस्तुत किया जाता है. वे निश्व्हित रूप से क्रूर हैं,और ऐसी द्रष्टि से प्रेरित हैं जो मध्य युग के सबसे बुरे पहलुओं से जोडती है. हालाँकि,वे उस समय के दुर्लभ अपवाद नहीं हैं जिसमें हम रह रहे हैं. वे प्रत्क्रियावादी व्यवस्था- पतनशील पूँजीवाद का उत्पाद हैं. विशेषरूप से,उनका उदय पूँजीवाद के अंतिम चरण -विघटन की अभिव्यक्ति है.
सत्तर के दशक के उत्तरार्ध में अमेरिकी और रूसी साम्राज्यवादी शक्तियों के बीच शीत युद्ध में तेजी देखी गई, जिसमें अमेरिका ने पश्चिमी यूरोप में मिसाइलें तैनात करदीं और रूस को हथियारों की दौड़ में शामिल होने के लिए मजबूर किया जो इस मद में कम से कम खर्च कर सकता था.हालाँकि, पश्चिमी धड़े का मध्य पूर्व का एक खम्भा – ईरान, अराजकता के दलदल में पहले ही गिर चुका था. जब पूंजीपत वर्ग की विद्वान मंडली द्वारा व्यवस्था को बनाये रखने के सभी प्रयास असफल हो गये तब पादरी वर्ग के सबसे पिछड़े तत्वों ने सत्ता पर कब्जा करने के लिए इस अराजकता का भरपूर लाभ उठाया. नई सत्ता पश्चिम से तो टूट गयी लेकिन उसने रूसी धड़े में शामिल होने से भी इंकार कर दिया.ईरान की लम्बी सीमा रूस के साथ जुडी हुई है और उसने यू. एस. एस. आर. को घेरने की पश्चिम की रणनीति के रूप में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में काम किया.इस क्षेत्र में अब यह एक ढीली तोप बन गई. इस नयी अव्यवस्था ने यू. एस. एस. आर. को अफगानिस्तान पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया.जब पश्चिम ने रूस समर्थक शासन को उखाड फेंकने की कोशिश की जिसे वह १९७८ में ही काबुल मे स्थापित करने में सफल रहा था.अफगानिस्तान पर कब्जा करके रूस को यह उम्मीद थी कि वह बाद के चरण में हिन्द महासागर तक पहुंच कर यह लक्ष्य भी हासिल करने कामयाव होगा .
हमने अब अफगानिस्तान में सैन्य बर्बरता का भयंकर विस्फोट का देखा. यू. एस. एस. आर. ने मुजाहिदीन (“स्वतंत्रता सेनानी”) और सामान्यरूप से समूची आबादी पर अपनी पूरी शक्ति लगादी.दूसरी तरफ अमेरिकी गुट ने मुजाहिदीन को सशस्त्र, वित्त पोषित और रूस का विरोध करने वाले अफगान सरदारों को सैन्य प्रशिक्षण से लैस किया. इनमें कई इस्लामिक कट्टरपंथी और दुनियां भर के जिहादियों की भारी संख्या में आमद भी शामिल थी. इन “ स्वतंत्रता सैनानियों” को अमरिका और उसके अन्य सहयोगियों द्वारा आतंक और युद्ध की सभी कलाओं में पारंगत किया गया.आजादी के इस युद्ध में ५००,००० से २० लाख निरपराध लोगों की जानें गयीं और देश तबाह हो गया.यह इस्लामिक आतंकवाद के एक अधिक वैश्विक रूप का जन्म स्थान भी था,जो अल कायदा और बिन लादेन के उदय के कारण विशिष्ट बना.
उसी समय अमेरिका ने इराक को ईरान के खिलाफ आठ वर्षीय युद्ध में धकेल दिया,जिसमें लगभग १४ लाख लोग मारे गये.जबकि थके- हारे रूस ने अफ्गानिस्तान में युद्ध समाप्त कर दिया और इस युद्ध का १९८९ में रूसी ब्लाक के पतन में जोरदार योगदान रहा तथा ईरान और इराक को कुन्डलीमार युद्ध में धकेल दिया. इस क्षेत्र की गतिशीलता ने प्रदर्शित किया कि ईरान का “दुष्ट राज्य” में परिवर्तन, प्रमुख संकेतों में से एक था पूंजीवाद के गहरे अन्तर्विरोध, ग्रह के विभिन्न क्षेत्रों में अपने अधिकारों को लागू करने की प्रमुख राज्यों की क्षमता को कमजोर करने में लगे थे.इस प्रव्रति के पीछे कुछ और गहरे राज भी हैं : विश्व मजदूर वर्ग पर
व्यवस्था के संकट समाधान थोपने में शासक वर्ग की अक्षमता –एक और विश्व युद्ध जिसने संघर्षों की एक श्रंखला में पूंजीवाद की ओर से स्वयं को बलिदान करने की अनिक्षा जताई. १९६८ औए ८० के दशक के उत्तरार्ध के बीच, हालाँकि मजदूर वर्ग, व्यवस्था के एक क्रांतिकारी विकल्प को सामने रखने में सक्षम नहीं था, संक्षेप में.दो प्रमुख वर्गों के बीच गतिरोध ने पूँजीवाद के अंतिम चरण में प्रवेश को निर्धारित किया, दो ब्लाकों की प्रणाली के अंत तक,साम्राज्यवादी स्तर पर, विघटन के चरण की विशेषता “ हर व्यक्ति सिर्फ अपने लिए “ की और तेजी से कदम में प्रदर्शित हुई.
१९९० के दशक में रूस के अफगानिस्तान से चले जाने के बाद विजयी सरदारों द्वारा देश के खंडहरों के नियंत्रण के लिए पश्चिमी देशों द्वारा दिए गये सभी हथियारों तथा ज्ञान का उपयोग करते हुए एक दूसरे पर हमला बोल दिया.थोक में नर संहार, विनाश और सामूहिक बलात्कार ने युद्ध द्वारा छोडी गई सामूहिकता को नष्ट कर दिया.
इस युद्ध का सामाजिक प्रभाव अफगानिस्तान तक ही सीमित नही था. हेरोइन की लत का प्लेग, जो १९८० के दशक के बाद से दुनियां भर में दुःख और मृत्यु ले कर आया था, युद्ध के प्रत्यक्ष परणामों में से एक था.पश्चिम ने तालिबान के विरोध को युद्ध पोषण के लिए अफीम की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया.
इस भांति, तालिबान की निर्मम कट्टरता दशकों की बर्बरता की उपज थी. पाकिस्तान द्वारा उसके दरवाजे पर किसी प्रकार के आदेश को लागू करने की कोशिश करने के लिए उसके साथ भी छेड़खानी की गई थी.
वर्ष २००१ में अमेरिकी आक्रमण, अल- कायदा और तालिबान से छूटकारा पाने के बहाने, २००३ में इराक पर आक्रमण के साथ,अमेरिकी साम्राज्यवाद द्वारा उसके पतन के परिणामों का सामना करने वाले अपने अधिकार को लागू करना था. इसने अपने सदस्यों में से एक पर हमले के जवाब में कार्यवाही करने के लिए अन्य शक्तियों, विशेषरूप से यूरोपीय लोगों का सहयोग प्राप्त करने की कोशिश की.इस ओर ब्रिटेन के आलावा सभी शक्तियाँ अनुत्साही थी.वास्तव में जर्मनी ने पहले ही ९० के दशक की शुरूआत में क्रोशिया के अलगाव का समर्थन करके एक नया “स्वतंत्र” रास्ता तय कर लिया था, जिसने बदले में बाल्कन के भयानक नर संहार को उकसाया. अगले दो दशकों में, अमेरिका के प्रतिद्वंदी औरभी उत्साहित हो गये क्योंकि उन्होंने देखा कि अमेरिका अफगानिस्तान,इराक और सीरया में अजेय युद्धों में उलझा हुआ है .संयुक्त राज्य अमेरिका की एकमात्र शेष महाशक्ति के रूप में अपने प्रभुत्व का दावा करने का प्रयास अमेरिका के साम्राज्यवादी” नेत्रत्व “ की वास्तविक गिरावट को अधिक से अधिक प्रकट करेगा और यह शेष ग्रह पर एक अखंड व्यवस्था थोपने में सफल होने से कहीं दूर, संयुक्त राज्य अमेरिका अब अराजकता और अस्थिरता का मुख्य वाहक बन गया है जो पूंजीवाद के सड़ांध को चिन्हित करता है.
अमेररिका का अफगानिस्तान से पीछे हटने की नीति, वास्तविक राजनीत का स्प्ष्ट उदाहरण है. रूस और चीन को रोकने और कमजोर करने के अपने प्रयाशों को मजबूत करने के लिए अपने संसाधनों को केन्द्रित करने के लिए अमेरिका को अपने मंहगे औरदुर्बल युद्धों से खुद को मुक्त करना होगा. बाइडेन प्रशासन ने खुद को ट्रम्प की तुलना में अमेरिकी महत्वाकांक्षाओं की खोज में कम सनकी नहीं दिखाया है.
साथ ही अमेरिकी वापसी की शर्तों को गम्भीर झटका लगा है. लम्बी अवधि में प्रशासन शायद चीन के डर पर भरोसा कर रहा है कि वह जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों को “ पूर्व की ओर धुरी” के साथ सहयोग करने के लिए मजबूर करे, जिसका उद्देश्य दक्षिण चीन सागर और अन्य क्षेत्रों को शामिल करना है .
इससे ये अर्थ निकालना गलत होगा कि अमेरिका मध्य पूर्व और मध्य एशिया से दूर चला गया है. बाइडेन ने स्पष्ट कर दिया है कि अमेरिकाआतंकवादी खतरों ( दूसरे शब्दों में , हवाई हमलों के माध्यम से ) के सम्बन्ध में सम्पूर्ण क्षितिज के ऊपर ( ओवर द होरिज़न )की नीति अपनाएगा. इसका मतलब यह है कि यह दुनियां भर में अपने सैन्य ठिकानों,अपने नौसेना और वायु सेना का प्रयोग इन क्षेत्रों में, यदि वे अमेरिका को खतरे में डालते हैं तो उन राज्यों को नष्ट करने के लिए के लिए करेगा. यह खतरा अफ्रीका में बढती हुई अराजक स्थिति से भी सम्बंधित है ,जहाँ सोमालिया जैसे असफल राज्यों को इथोपिया द्वारा शामिल किया जा सकता है क्योंकि यह ग्रहयुद्ध में तबाह हो गया है ,इसके पडौसियों ने दोनों पक्षों का समर्थन किया है. यह सूची लम्बी होगी क्योंकि नाइजीरिया चाड और अन्य जगहों पर इस्लामी आतंकवादी समूहों को तालिबान की जीत से अपने अभियानों को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.
यदि अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी, चीन के उदय और विश्व शक्तियों के रूप में रूस के पुनर्स्थान से उत्पन्न खतरे पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता से प्रेरित है, तो इसकी सीमायें स्पष्ट प्रतीत होती हैं , यहाँ तक कि चीनी और रूसी साम्राज्यवाद को भी अफगानिस्तान में एक रास्ता प्रदान करना.चीन पहले से ही अफगानिस्तान में अपनी नयी सिल्क रोड परियोजना पर बड़े पैमाने पर निवेश कर चुका है और दोनों राज्यों ने तालिबान के साथ राजनयिक सम्बन्ध शुरू कर दिए हैं. लेकिन इन राज्यों में से कोई भी एक तेजी से विरोधाभासी विश्व विकार से ऊपर नहीं उठ सकता है. अफ्रीका, मध्य पूर्व ( लेबनान का सबसे हालिया पतन) मध्य एशिया और सुदूर पूर्व (विशेष रूप से म्यामांर) में फैली अस्थिरता की लहर चीन और रूस के लिए उतना ही खतरा है जितना कि अमेरिका से.वे पूरी तरह जानते हैं कि अफगानिस्तान के पास कोई वास्तविक कार्यशील राज्य नहीं है और तालिबान एक का निर्माण नही कर पायेगा. नई सरकार को सरदारों से खतरा सर्व विदित है .उत्तरी गठबंधन के कुछ हिस्सों ने पहले ही कहा है कि वे सरकार को स्वीकार नहीं करेंगे और आइएस, जो अफगानिस्तान में भी शामिल रहा है,तालिबान को धर्म त्यागी मानता है. क्योंकि वे काफ़िरपश्चिम के सौदेबाजी करने के लिए तैयार हैं .अफगानिस्तान के पुराने शासक वर्ग के हिस्से तालिबान के साथ काम करने की कोशिश कर सकते हैं और कई विदेशी सरकारें चैनल खोल रही हैं, लेकिन यह इसलिए है कि काउंटी के फिर से युद्धवाद और अराजकता के पूरे क्षेत्र में फ़ैल जाने के डर से , उतरने से डरते हैं .
तालिबान द्वारा समर्थन न करने की स्थिति में भी, तालिबान की जीत, चीन में सक्रिय उइगर इस्लामिक आतंकवादियों को प्रोत्साहित कर सकती है. रूसी साम्राज्यवाद अफगानिस्तान में उलझने की कडवी कीमत जानता है और यह देख सकता है कि तालिबान की जीत, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और ताजकिस्तान में कट्टरपंथी समूहों को एक नया प्रोत्साहन प्रदान करेगी, जो दोनों के देशों की बीच एक बफर बनाते हैं. वह इन राज्यों और अन्य स्थानों पर अपने सैन्य प्रभाव को मजबूत करने के लिए इस खतरे का लाभ उठाएगा, लेकिन यह देख सकता है कि अमेरिकी युद्ध मशीन की ताकत भी इस तरह के विद्रोह को कुचल नहीं सकती, बाद वाले को अन्य राज्यों का पर्याप्त समर्थन मिलता है.
संयुक्त राज्य तालिबान को हराने और वहां एक जुट राज्य स्थापित करने में असमर्थ था.वह अपमानित होने के पूरे ज्ञान के साथ वहां से पीछे हटा.लेकिन इसके मद्दे नजर उसने अस्थिरता का टाइम बम छोड़ दिया है. रूस और चीन को अब इस अराजकता को रोकना होगा.कोई भी विचार कि पूंजीवाद इस क्षेत्र में स्थिरता और भविष्य का कोई रूप ला सकता है,एक शुद्ध भ्रम है .
अमेरिक , ब्रिटेन, और अन्य सभी शक्तियों ने पिछले ४० सालों में अफगानिस्तान की आबादी पर थोपे गये आतंक और विनाश पर पर्दा डालने के लिए तालिबान के हौसले का इस्तेमाल किया है. अमेरिका समर्थित मुजाहिदीन ने रूसियों की तरह ही हत्या, बलात्कार, दमन,अनाचार और लूटपाट की है.तालिबान के साथ मिल कर उन्होंने रूसियों द्वारा नियंत्रित शहरी केन्द्रों में आतंकी अभियान छेडे. हालाँकि यह सावधानीपूर्वक पश्चिम की नजर से ओझल रखा गया. अफगानिस्तान में पिछले २० सालों से ऐसा ही हो रहा है. पश्चिमी मीडिया नें तालिबान की भयंकर क्रूरता को उजागर किया गया है.जबकि “लोकतान्त्रिक” सरकार और उसके समर्थकों द्वारा किये गये नरसंहार, हत्याएं, बलात्कार और यातनाओं की खबरें निंदनीय रूप से कालीन के नीचे दबा दी गईं.किसी भी तरह से ”लोकतान्त्रिक,” “ मानवाधिकारों” से प्यार करने वाले अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा समर्थित सरकार के गोले, बम औए गोलियों से युवा, बूढ़े, महिलाओं औरपुरूषों के टुकड़े-टुकड़े कर फेंक देना उल्लेख के लायक नहीं. वास्तव में तालिबान द्वारा किये गये आतंक की विस्तृत रूप से रिपोर्ट नहीं की गयी है. इन अमानवीय घटनाओं को मात्र “ समाचारों” के रूप में ही देखा जाता है जब तक कि यह युद्ध को सही ठहराने में मदद न कर सके.
अफगानिस्तान की समूची आबादी और विशेषकर महिलाओं पर किये गए अत्याचारों की यूरोप की संसदों में अमेरिका और ब्रिटेन के राजनेताओं की प्रतिध्वनि गूंजती रही. उन्हीं नेताओं ने आव्रजन क़ानून लागू किये हैं, जिसके कारण हजारों हताश शरणार्थी, जिनमे बहुत से अफगानी भी शामिल हैं, ने अपने जीवन को जोखिम में डालने लिए भूमध्य सागर या चैनल को पर करने का प्रयास किया है. हाल के वर्षों में भूमध्य सागर में डूबे हजारों लोगों के लिए रोने वाला तक पैदा नहीं ? जो इन शरणार्थियों के लिए किंचित मात्र भी चिंतित दिखे? तुर्की या जॉर्डन( यूरोपीय संघ और ब्रिटेन द्वारा वित्त पोषित )या लीबिया के गुलाम बाजारों में बेच दिए जाने वाले यातना ग्रहों की तुलना में थोडा बेहतर रहने को मजबूर है? पूंजीवादी मुखपत्र जो तालिबान की अमानवीयता और दरिन्दिगी की आलोचना करते हैं, वही शर्णार्थियो की आवाजाही को रोकने के लिए पूर्वी यूरोप के चारों और स्टील और कंक्रीट की दीवार के निर्माण को प्रोत्साह दे रहे हैं. पाखंड की बदबू लगभग भारी है.
युद्ध, महामारी,आर्थिक संकट और जलवायु परिवर्तन का द्रश्य वास्तव में अत्यंत भयावह है. यही कारण है कि शासक वर्ग अपने मीडिया को इनसे भर देता है ताकि इस सडती सामाजिक व्यवस्था की कडवी सच्चाई से डरने के लिए सर्वहारा वर्ग को वश में में किया जा सके.वे चाहते हैं कि हम बच्चो की तरह बनें जो शासक वर्ग और उनके राज्य की स्कर्ट को पकड़े हुए हैं. पिछले ३० वर्षों में अपने हितों की रक्षा करने के संघर्ष में सर्वहारा वर्ग को जो कठिनाइयाँ हुई हैं, वह इस भय को और पकड़ लेती हैं. यह विचार कि सर्वहारा वर्ग ही वह शक्ति है जो एक भविष्य, पूरी तरह से एक नया समाज प्रदान करने में सक्षम है, बेतुका लग सकता है. लेकिन सर्वहारा वर्ग ही क्रांतिकारी वर्ग है और तीन दशकों के पीछे हटने से भी मिटाया नहीं जा सका, भले ही पीछे हटने की लम्बी और गहरी, अंतर्राष्ट्रीय मजदूर वर्ग के लिए अपनी आर्थिक स्थितियों पर बढ़ते हमलों का विरोध करने की क्षमता में विश्वास हासिल करने के लिए कठिन बनादे. लेकिन इन संघर्षों के माध्यम से मजदूर वर्ग अपनी ताकत को फिर से विकसित कर सकता है जैसा कि रोजा लक्समबर्ग ने कहा था कि सर्वहारा वर्ग ही एक मात्र वर्ग है जो हार के अनुभव के माध्यम से अपने चेतना को विकसित करता है. इस बात की गारंटी नहीं है कि सर्वहारा शेष मानवता को भविष्य प्रदान करने की अपनी ऐतिहासिक जिम्म्मेदारी को निभाने में सक्षम होगा. यह निश्चित रूप से नहीं होगा कि सर्वहारा वर्ग और उसके क्रांतिकारी अल्पसंख्यक हमारे वर्ग शत्रु द्वारा प्रचारित निराशा और कुचलने वाले वातावरण के आगे झुक जाते हैं. सर्वहारा वर्ग अपनी क्रांतिकारी भूमिका तभी निभा सकता है जब वह पूंजीवाद के विघटन की वास्तविकता को चेहरे पर देख कर उनकी आर्थिक और सामाजिक परस्थितियों पर हमलों को स्वीकार न करने और इनकार करके अलगाव और लाचारी को एकजुटता, संगठन और बढती वर्ग चेतना में बदल दे.
आई.सी.सी. २२ अगस्त २०२१
[1] [3] https://en.internationalism.org/content/17042/report-pandemic-and-development-decomposition [4]
समूचा विश्व जब कोविद १९ नामक दैत्य से जूझ रहा था, तब हम आई सी सी के साथियों के ऊपर एक वज्रपात हुआ. २० मार्च २०२० को हमारे प्रिय साथी कामरेड किशन ने हमसे अंतिम विदाइ ली. कामरेड किशन के यूं चले जाने से इंडियन सैक्शन को ही नहीं पूरी आई सी सी की भारी क्षति हुई है. हमें हमेशा ही उनकी कमी खलेगी. कामरेड किशन ने आई सी सी को सुद्रढ़ बनाने में एक महत्वपूर्ण योग्दान दिया है . वे अपने जीवन की अंतिम साँस तक उच्चतम भावना के साथ लड़ाकू योद्धा बने रहे.
किशन का जन्म भारत के पश्चिम बंगाल प्रान्त के एक सुदूर गाँव में हुआ था. उन्होंने १९६०के दशक में, विश्वविद्यालय ऐसे समय प्रवेश लिया था, जब कुछ समय पहले ही फ़्रांस में ९० लाख मजदूरों ने हडताल के साथ विश्व मंच पर पुन: दस्तक दी थी, इसके पश्चात इटली में गरम ऋतू ,१९७० में पोलेंड के मजदूरों का संघर्ष, विश्व पटल पर घटित इन घटनाओं का अर्थ था, प्रति क्रांति के युग का अंत. १९६० का दशक, विशेषकर वियतनाम युद्ध और नस्लवाद के खिलाफ दुनियां भर के विश्वविद्यालयों में विरोध का दौर था. इन आंदोलनों में भाग लेने वाले युवा क्रांतिकारी परिवर्तन की इच्छा के प्रति बेहद ईमानदार थे किन्तु जीवन में तात्कालिक परिवर्तन के भ्रम के साथ वे निम्न पूंजीवादी क्षेत्रों में ही संलग्न रहे. हालाँकि, १९६८ से पहले और बाद में, दोनों पूंजीवादी वाम संगठन को किशन जब नौजवानों को एकजुट करने में तो लगे थे, लेकिन उनकी रूचि युवा चेतना को मजदूर वर्ग के प्रति कुंद करना भर थी. इस वैश्विक स्थिति में किशन नक्सलवादी आन्दोलन में शामिल हो गये. १९६३-६५ के दौरान उन्होंने उत्तर बंगाल के विश्वविद्यालय से भौतिकी में प्रथम श्रेणी में मास्टर्स डिग्री प्राप्त की. किशन अपने स्नातक छात्र जीवन में ही नक्सलवादी आन्दोलन के प्रति आकर्षित युवा पीढी का हिस्सा बन गये. धीरे- धीरे नक्सलवाद माओवाद का पर्याय बन गया. एक युवा छात्र के रूप में किशन आन्दोलन की इतनी गहराई तक डूबते चले गये कि उन्होंने अपने शोध कार्य को भी तिलांजली दे दी और आन्दोलन की गतिविधियों में पूरी तरह संलग्न हो गये. आठ साल की कैद के पश्चात उन्हें १९७८ में रिहा किया गया. इन आठ सालों में जेल में उन्हें इतनी अकथनीय यातनाएं दी जो उन्हें जीवन की अंतिम साँसों तक सालती रहीं. एक छोटी सी काल कोठरी में रहना, अपर्याप्त और कभी - कभी न खाए जाने योग्य भोजन दिए जाने के कारण वह क्षय रोग के शिकार हो गये. फेंफडों का यह सक्रमण उनके जीवन का अटूट हिस्सा बन गया. जो आखिर में किशन को साथ ले कर ही गया. जेल जीवन के दौरान किशन ने विशेषतया मार्क्सवाद का गहन अध्ययन किया. जिससे उन्हें अन्य साथियों के साथ मार्क्सवाद पर विचार विमर्श करते समय बड़ी मदद मिली.
किशन उन बहुत कम लोगों में से एक थे ,जो पूंजीवादी की वामपंथी विचारधारा की दूषित धारा माओवाद में गहराई तक दुबकी लगाने के बावजूद भी इससे अपने को पूरी तरह अलग कर लेने तथा कम्युनिस्ट वाम की परम्परा से जोड़ कर सर्वहारा वर्ग के लिए अपना जीवन समर्पित करने में सक्षम थे. इस विच्छेद के लिए अपरहार्य रूप से यह आवश्यक था कि स्पष्टीकरण के लिए १९८०,१९९० के दशक में आई सी सी के साथ धैर्य के साथ विचार विमर्श मे हिस्सेदारी करें. वर्ष १९८९ में भारत में आई सी सी के न्युक्लीयस का गठन स्पष्टीकरण के लिए एक उत्प्रेरक, गतिवान कदम था. किशन जब आई सी से के संपर्क में आये तब उन्हें विदित हुआ कि कम्युनिष्टों का वास्तविक इतिहास अभी शेष है. जब उन्हें आई. सी. सी. के सैद्धांतिक विविधता के गहन अध्ययन से अहसास हुआ कि माओवाद एक पूंजीवादी विचारधारा, एक प्रतिक्रांतिकारी धारा के आलावा और कुछ नहीं, किशन आश्चर्यचकित थे. “ माओवाद का मजदूर वर्ग के संघर्ष , उसकी चेतना और न उसके क्रांतिकारी संगठन से कोई लेना –देना नहीं. इसका न तो मार्क्सवाद से कोई सरोकार नहीं.यह न कोई आंतरिक प्रवृति है और न कोई सर्वहारा की विचारधारा में कोई विकास. इसके विपरीत,माओवाद का मार्क्सवाद से कोई लेनादेना नहीं बल्कि इसको समग्र रूप में झुठलाना भर है. इसका एकमात्र कार्य क्रांतिकारी सिद्धांत को दफन करना तथा सर्वहारा वर्ग की चेतना को भ्रमित कर इसको इन्तहा दर्जे की मूर्खता और संकीर्णतावादी राष्ट्रवादी विचारवादी में बदलना है. “सिद्धान्तत “माओवाद पूँजीवाद के क्रांतिविरोधी पतनशीलता के साम्राज्यवादी युद्धों के दौर में एक घ्रणित सड़े गले पूंजीवादी विचार के अलावा और कुछ नहीं.” [1] [5] माओवाद की इस गहन पड़ताल ने कामरेड किशन के ऊपर गहरा प्रभाव डाला. अपने विगत को आलोचनात्मक राजननैतिक द्रष्टिकोंण से विवेचना करने में सक्षम कामरेड किशन को अब एक वास्तविक क्रांतिकारी संगठन का लडाका बनना आवश्यक था
जबकम्युनिष्ट इंटरनेशनल पहले से पतनशील हो चुका था,और विशेषरूप से रूस और जर्मनी में क्रांतियों की अति महत्वपूर्ण क्रांतिकारी संघर्षों की लहर पूरी तरह पराजित हो चुकी थी,तब १९२५ में भारत में कम्युनिष्ट पार्टी का का गठन हुआ था . कम्युनिस्ट पार्टी का लक्ष्य भी अन्य तमाम राष्ट्र्वादी आंदोलनों से जुडा उपनेशविरोधी, ब्रिटिश विरोधी आन्दोलन ही था. भाकपा पर राष्ट्रवाद और देशभक्ति पर गहरा प्रभाव था. भारत का मजदूर, वामपंथी कम्युनिज्म की परम्परा और उसकी निरन्तरता की कमी से ग्रस्त था. यह आई. सी.सी. के लिए भारत में कम्युनिस्ट वाम की ऐतिहासिक विरासत को बेहतर बनाने के दायित्व को रेखांकित करता है.
कामरेड किशन अपने गहन अध्ययन और निरंतर चर्चा का मार्ग पर चले हुए भारत में आई. सी. सी. के योद्धा बन गये. आई. सी. सी. के प्रति निष्ठा और विश्व सर्वहाराके संघर्षों ने उन्हें एक सच्चे अंतर्राष्ट्रीयतावादी सर्वहारा रूप में चिन्हित किया. उन्होंने सदैव ही आई. सी. सी. के सिद्धातों में गहरी निष्ठां के साथ वचाव किया. वे अपने निरंतर योगदान के माध्यम से आई. सी. सी. की अंतर्राष्ट्रीय व भारत के सैक्शन स्तर की बहसों में बड़ी द्रढ़ता के साथ भाग लेते थे . का. किशन ने आई. सी. सी. के जीवन में कई स्तरों पर महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने उन बुकशापों की खोज में देश भर में कई यात्रायें की जहाँ आई. सी. सी के साहित्य को बेचा जा सकता हो. उन्होंने जब भी जहाँ भी संभव हो सका कितने ही चर्चा केन्द्रों व् सार्वजनिक सभाओं में भाग लिया. आई . सी. सी. के साहित्य की बिकवाली में किशन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने विभिन्न आई. सी. सी की अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ- साथ क्षेत्रीय सम्मेलनों में भी सक्रिय भूमिका निभाई.किशन के बहुमूल्य और सुविचारित योगदानों ने राजनैतिक स्पष्टीकरण की प्रक्रिया में जबर्दस्त इजाफा किया. हमारे संगठन पर होने वाले सभी हमलों और बदनामियों से मजबूती के साथ बचाव करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है .
कामरेड किशन में जीवन में आने वाले अनेकानेक उतार चढ़ावों पर पार पाने की असीम क्षमता थी. आई.सी.सी. की राजनीति और उनके आशावादी रवैये ने उन्हें कठिन परस्थितियों में भी लम्बे समय तक खड़े रहने में सहायता की. श्रद्धांजलि के इस छोटे से आलेख में, मजदूर वर्ग की मुक्ति के लिए किये उनके राजनैतिक संघर्ष का मूल्यांकन करना अत्यंत ही कठिन है. हमें उनके विषय में यह बताना नहीं भूलना चाहिए कि वे जमीन से जुड़े गजब के मेहमाननवाज थे. विदेशों अथवा देश के विभिन्न भागों से आये आई.सी.सी. के साथियों ने उनके उदार एवं प्रेमपूर्वक आथित्य का अनुभव किया. हम उन्हें क्रन्तिकारी सलाम अर्पित करते हुए उनके परिवार के प्रति एकजुटता व्यक्त करते हैं. आई.सी.सी . उनकी बेटी और उनकी अर्धांगिनी के साथ अपनी पूरी सहानुभूति और एकजुटता के साथ खडी है.
आई. सी. सी., अक्टूबर २०२०.
. https://en.internationalism.org/ir/094_china_part3.html#_ftnref4 [6]
अप्रैल के प्रारंभ से ही कोविद-१९ने, ग्रह के चारों कोनों में पैर पसार लिए हैं. नवम्बर २०२० से महामारी ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हालत बेहद खराब कर रखे हैं . यदि यूरोप में स्थिति स्थिर लगती है तो, दूसरी ओर प्रदूषण के विकराल रूप धारण कर लेने के कारण अमेरिका में महामारी उलटे पांव लौट आई है, तथा लैटिन अमरीका और भारतीय उपमहाद्वीप के लोग भीषण यातना झेल रहे हैं. चीन जैसे देश जिनका चीनी टीके से बृहद रूप में इलाज किया जा रहा है, वे विशाल रूप से संक्रमित हो रहे हैं.[1] स्थिति इतनी गम्भीर हैं कि चीन के अधिकारीयों के बीच तक टीके की कम “क्षमता “ की बात की जा रही है. विश्व स्तर पर कोविद अब तक लगभग ३० लाख २० हजार प्राणियों की भेट ले चुका है. निसंदेह, यह संख्या,चीन और अन्य देशों द्वारा सार्वजनिक तौर पर दिए गये आंकड़ो से कहीं अधिक है.
यदि वाइरस के विषय में किये गये एक वर्ष के शोध से विदित तथ्यों पर चर्चा करें , तो हम पायेंगे : यह वाइरस कैसे फैलता है और इससे कैसे लडा जा सकता है? अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सीमित सीमा तक ही इसे रोक देने के लिए उपयुक्त,सघन उपाय किये जाने में सभी सरकारों और पूंजीपतियों ने परले दर्जे की लापरवाही बरती. सभी राज्य, आपसी होड़ की म्रग मरीचिका का के बशीभूत हो कर, वैक्सीन नीति के बारे में कोई सामूहिक नीति पर कोई न्यूनतम आपसी सहयोग तक स्थापित करने में असफल रहे .
आपसी सहयोग के अभाव के कारण सभी राज्यों को अल्पकालिक उपायों का सहारा लेना पड़ा जिसमें लौक डाउन थोपने, फिर थोड़े समय बाद हटा लेने, फिर लगाने और हटा लेने,मिनी लौक डाउन, राज्य की ओर से तमाम चेतावनियां,कर्फ्यू लागू करना और उठाना आदि शामिल हैं. दशकों से संकट के समय थोपी गयी बजट में तमाम कटौतियों के पश्चात, महामारी के खिलाफ लड़ने के लिए उपयुक्त और भरपूर साधनों के मरीअभाव तथा पूर्वाधिकृत “अर्थव्यवस्था” अपने प्रतिद्वंदियों द्वारा पीछे धकेल दिए जाने की जोखिमों के कारण पूंजीवादी राज्यों ने प्रतिदिन होने वाली मौतों की चिंता छोड़,अस्पतालों और कब्रिस्तानों में फैली अराजकता से ( कमोवेश ) बचने के लिए अपने स्वास्थ्य साधनों को समायोजित करना जारी रखा, और इसे ही प्रभुत्वशाली वर्ग “वाइरस के साथ जीना सीखने “ की बात करता है . परिणाम! यदिसाथ किसी राज्य ने अपने देश की जनता को तेजी के साथ टीकाकरण करना शुरू साथकर दिया, फिरभी, टीके के प्रति और अधिक प्रतिरोधी कोविद- १९ के अन्य रूप में अन्य स्थानों पर तेजी से फ़ैल रहा है .
परन्तु इस भयानक तबाही में,भारत और ब्राजील के बुरे द्रश्य महाविपत्ति की गवाही देते हैं. ब्राजील के एक वैज्ञानिक के शब्दों में ( ब्राजील में महामारी नियंत्रण से बाहर है): हर जगह नये नये श्मशान ग्रह बनाये जा रहे हैं, शवों को बसों से ढोया जा रहा है, बीमारी रोजाना लाखों लोगों को ग्रसित कर रही है, शीघ्र ही, इस मामले में अमेरिका के डरावने रिकार्ड को पीछे धकेलते हुये,मृतकों की संख्या पांच लाख को पार कर जायेगी. अस्पताल ठसाठस भरे हुए हैं , पीड़ित,अस्पतालों में बिस्तरों के अभाव में स्ट्रेचरों पर ही दम तोड़ रहे हैं, और यह सब अमेजन राज्य के सबसे बड़े शहर मानौस से आने वाले वाइरस के नये संस्करण का आगाज है, जहां समूह प्रतिरक्षा की म्रग मरीचिका में समय नष्ट किया गया था. उसी समय ब्राजील में दूसरी लहर प्रवेश कर गयी.देश के राष्ट्रपति बोल्सोनारो ने वाइरस को एक छोटा फ़्लू ( ग्रिपेंजिन्हा) होने का बहाना किया था,उसने विपत्ति में फंसी सरकार को मौज मस्ती के मूड में सरकारके मंत्रियों को कमीज बदलने की भांति बदलता रहा, तथा लगातार दोहराता रहा, ” काम पर वापस जाना और शिकायत बंद करना आवश्यक है.”
ब्राजील में अमेजन से पशुओं की तस्करी और जंगल की अंधाधुंध कटाई ने लोगों को वाइरस के सम्पर्क में ला दिया जो आज तक एक आवरण के नीचे रहने को अभिशप्त हैं. मानोस के शोधकर्ता, जीव विज्ञानी, लुकास फर्रान्ते ने कहा , “ यह अमेजन है, जहाँ वुहान में हमारे द्वारा देखे गये वाइरस से भी अधिक विनाशकारी वाइरस के प्रकट होने का जोखिम है.”[2] इन पिछले वर्षों में अमेजन के जंगलों के विनाश ने विध्वन्श्कारी आयाम ले लिया है और इससे लाभान्वित होने वाले पूंजीपति, इसे रोकने के लिए तैयार नहीं है.
लेकिन दो सप्ताहों के बीच कोविद से सम्बंधित खबरों के मामले में, भारत प्रथम स्थान पर पहुंच गया है. वह देश जो दूनियाँ में सबसे अधिक आबादी वाला देश है, इस देश की स्वास्थ आपदा के बारे में शब्द खोजना मुश्किल है.आर्थिक तौर पर विकसित होने के बावजूद महामारी के मद्दे नजर यहाँ स्वास्थ सेवाएं अविकसित थीं; स्वास्थ्य सेवाएं भारत सरकार की प्राथमिकता नहीं रहीं.मसीहाई अहंकार से ओतप्रोत बोल्सोनारो की भांति भारत के प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी`ने शेखी बघारते हुए कहा. “ हमने वाइरस को हरा दिया है, “और दावा किया की, “ भारत ने दुनियां में एक मिसाल कायम की है.” अपने साम्राज्यवादी अहं का दम्भ हरते हुए चीन आदि अन्य देशों की भांति देश में वैकसीन के निर्माण और लोगों को लगाये जाने का दम्भ भरा. हालाँकि टीके के निर्यात पर रोक लगादी है.
जनवरी के बाद से ही, बड़ी द्रढ़ता से हिन्दू कट्टरपन्थ से संचालित सरकार ने जान बूझ कर देश के कौने- कौने से आने वालीं धार्मिक तीर्थ यात्रा की ( हरिद्वार के कुम्भ मेला )अपार भीड़ को यहाँ आने के लिए प्रोत्साहित किया. अप्रैल के पहले दो सप्ताह में ही बिना मास्क लगाये, आवश्यक दूरी बनाये रखने के नियम का बिना ध्यान रखते हुए, परीक्षण और तापमान निरीक्षण के बिना, लगभग बीस लाख अस्सी हजार यात्री कुम्भ मेले में पहुंचे और गंगा के पानी में डूबकी लगाई. यह पानी धार्मिक कर्म कांड के अंतर्गत शवों के गंगा में विसर्जन के कारण अत्यधिक प्रदूषित “असली वाइरस बम) हो चुका था, और हमें चुनावी अभियान के दौरान होने वाली सभाओं में होने वाली विशाल भीड़ को नहीं भूल जाना चाहिए .
इस प्रकार के अहंकार और अवमानना के घटाटोप को उजागर होने में देर नहीं लगी. प्रति दिन वाइरस के कारण होने वाली मौतें ४००० और संक्रमित होने का आंकड़ा ४०लाख को भी पार कर गया. और ये “आंकड़ा वास्तविक संख्या से कम ही है “ प्रैस ने, ओक्सीजन की कमी के कारण, लोगों द्वारा अस्पतालों में बिस्तरों पर कब्जा कर लेने के कारण पर, हथठेलों , मोटर साइकिलो, कारो और जमीन पर ही दम तोड़ने वाले लोगों के भयावह और चिन्ताजनक द्रश्यों की पुष्टि की है.
यह, उस देश की जनता के प्रति फर्ज अदायगी की भोंडी अभिव्यक्ति है,जो अपने आप को ब्राजील के समान आर्थिक दिग्गज होना प्रस्तुत करता है . इसके बजाय हम उन परिवारों की तस्वीर भी देखते हैं जो, दाह संस्कार करने के लिए उचित स्थान खोजने के लिए श्मशानों के चक्कर लगा रहे हैं. अपने मृतक परिजनों को अंतिम समय सम्मान पूर्वक श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए सैकड़ों मीटर लम्बी लाइनों में घंटों से खड़े इन्तजार कर रहे हैं, और हालत ये हैं कि हर श्मशान के आस पास लाशों के ढेर लगे हें . ब्राजील के समान अन्य सभी स्थानों पर समाज का सबसे वंचित तबका, सर्वहारा और अन्य शोषित, पीड़ित समूह ही इस लापरवाही और उसके कारण कष्टों का जोखिम उठाते हैं .
और सोचने वाली बात ये है कि (दक्षिण अफ्रीका) के साथ इन दोनों देशों को , चीन के समान विकास की क्षमता रखने वाले देशों में वर्गीक्रत किया है[3], और एक शास्वत व गतिशील पूँजीवादी हिस्से के रूप में प्रस्तुत किया गया है .
मानव जाति के सामने खतरा पैदा करने वाले कोविद- १९, अन्य महामारियां तथा अन्य विपत्तियाँ केवल उत्पाद ही नहीं वल्कि ग्रह स्तर पर सामाजिक पतनशीलता के शक्तिशाली और त्वरक कारक भी हैं .मोदी का भारत और बोल्सोनारो का ब्राजील,भले ही लोकलुभावन नारों से संचालित होते हों, लेकिन उनके मूर्खतापूर्ण और तर्कहीन निर्णय, सिर्फ गतिरोध की दो उच्चतम अभिव्यक्तियां, मानवता के लिए पूंजीवादी गतिरोध का प्रतिनिधत्व करते हैं.
गलत न समझें : मोदी, बोल्सोनारो, ट्रम्प और अन्य लोकलुभावन नारों की उत्पत्ति के शक्तिशाली प्रतिनिधि अनिश्चित औए संकीर्ण प्रशासन और (अभिजात्य विरोधी ) भाषणों के कारण राष्ट्रीय पूँजी के कट्टर रक्षक बने हुए है: सोया का आयात करने वाले देशो द्वारा प्रोत्साहित, अमेजन के जंगल का क्रूर शोषण औए लूट के साथ ही खनिजों की खुदाई के कारण, विश्व पूँजी की आवश्यकताओं के प्रतीक बने हुए हैं.जहाँ तक मोदी के भारत का सवाल है, “संरक्षित” कृषि की समाप्ति के लिए क़ानून बनाया गया है,ताकि वहां पूँजी की आवश्यकताओं को पूरा कने करने लिए ग्रामीण क्षेत्रो को और भी अधिक खोला जा सके.[4]
जैसा की हमने अपनी जुलाई २०२० की “ कोविद १९ की महामारी और पूंजीवाद की पतनशीलता की अवधि “ की रिपोट में कहा है : “ कोविद महामारी ( .......) पूंजीवादी व्यवस्था के सामान्यीकृत सडांध का प्रतीक, अराजकता की श्रंखला को एक साथ रखते हुए निस्संदेह , पतनशीलता की समूची अवधि के प्रतीक बन गये हैं.और भी ;
यदि, महामारी के प्रकट होने से विश्व मेंसर्वहारा का संघर्ष ठहर गया है तो इसने पूंजीवाद के अराजक चरित्र पर प्रतिबिम्ब को नही बदला है . महामारी, सर्वहारा क्रांति की आवश्यकता का एक और प्रमाण है. लेकिन यह ऐतिहासिक परिणाम सबसे पहले और हर चीज से पहले मजदूर वर्ग की क्षमता पर निर्भर करता है, जो एकमात्र क्रांतिकारी शक्ति है, जो अपने बारे में,अपने अस्तित्व की और अपनी क्रांतिकारी क्षमताओं की चेतना को फिर से खोजतीहै, क्योंकि अकेले सर्वहारा वर्ग ही, अपने हितों और वर्ग स्वायतता की रक्षा के लिए संघर्ष के इर्द गिर्द संगठित होता है और उसका यह संघर्ष. पूँजी के कानूनी और घातक जुए को उतार फेकने और एक नये समाज को जन्म देने की क्षमता रखता है.
इनिगो, ६ मई २०२१.
[1] चीन और रूस ने अफ्रीकी और लैटिन अमरीकी देशों को अपनेसाम्राजवादी अंत के लिए टीकों के साथ बाढ़ के स्थिति का लाभ उठाया है .
[2] “ अमेजन: एक नई महामारी का प्रस्थान बिंदु” फ़्रांस संस्क्रति( १९ अप्रैल २०२१)
[3] अफ्रीका और विशेष रूप सेसे अफ्रीका लिए देखें’
https:// en .internationalism.org/ content/ covid-19-africa-vain.hopes…
[4] https: // en internationalism.org/ content/16997/lessons-Indian- farmers move…
आई सी सी द्वारा प्रस्तुत यह एक अंतरराष्ट्रीय इस्तहार है जिसे कई भाषाओँ में तैयार किया जा रहा है. जो भी इस पर्चे से सहमत हैं , हम उन सभी को प्रोत्साहित करते हैं कि वे इसे ऑनलाइन या कागज पर वितरित करें (पीडीएफ संस्करण का लिंक ).
यूरोप युद्ध में प्रवेश कर चुका है. 1939-45 के द्वितीय विश्व नरसंहार के बाद यह पहली बार नहीं है. 1990 के दशक की शुरुआत में, युद्ध ने पूर्व यूगोस्लाविया को तबाह कर दिया था, जिसमें 140,000 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया, नागरिकों के विशाल नरसंहार के साथ, जुलाई 1995 में सेरेब्रेनिका में "जातीय सफाई" के नाम पर, जहां 8,000 पुरुषों और किशोरों की निर्मम हत्या कर दी गई थी. यूक्रेन के खिलाफ रूसी सेनाओं के हमले के साथ शुरू हुआ यह युद्ध फिलहाल उतना घातक नहीं है, लेकिन अभी तक कोई नहीं जानता कि यह कितने पीड़ितों की जान निगल लेगा. अब तक, यह पूर्व-यूगोस्लाविया में युद्ध की तुलना में बहुत बड़ा है. आज, यह मिलिशिया या छोटे राज्य नहीं हैं जो एक दूसरे से लड़ रहे हैं. वर्तमान युद्ध यूरोप के दो सबसे बड़े राज्यों के बीच है,जिनकी आबादी क्रमशः 150 मिलियन और 45 मिलियन है, और विशाल सेनाओं को तैनात किया जा रहा है: रूस में 700,000 सैनिक और यूक्रेन में 250,000 से अधिक तैनात है.
इसके अतिरक्त ,यदि ये महाशक्तियाँ पहले से ही पूर्व यूगोस्लाविया में टकराव में शामिल, तो यह अप्रत्यक्ष रूप से या संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में "हस्तक्षेप बलों" द्वारा भाग लिया गया था. आज, केवल यूक्रेन ही रूस का सामना नहीं कर रहा है, बल्कि नाटो सहित सभी पश्चिमी देशों ने, हालांकि वे सीधे लड़ाई में शामिल नहीं हैं, इस देश के खिलाफ महत्वपूर्ण आर्थिक प्रतिबंध उसी समय थोप दिए थे जब उन्होंने यूक्रेन के लिए हथियार भेजना शुरू कर दिया था.
इस प्रकार, जो युद्ध अभी शुरू हुआ है, वह यूरोप के लिये ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण नाटकीय घटना है. यह पहले ही दोनों पक्षों के सैनिकों और नागरिकों के बीच हजारों लोगों की जान ले चुका है. इसने सैकड़ों हजारों शरणार्थियों को सड़कों पर फेंक दिया है. यह ऊर्जा और अनाज की कीमतों में और वृद्धि का कारण बनेगा, जिससे शीत और भूख बढ़ेगी, जबकि दुनिया के अधिकांश देशों में, शोषित, सबसे गरीब, ने पहले ही मुद्रास्फीति के सामने अपने जीवन की स्थिति को ध्वस्त होते देखा है. हमेशा की तरह, यह वह वर्ग है जो अधिकांश सामाजिक धन का उत्पादन करता है, मजदूर वर्ग, जो दुनिया के आकाओं के युद्ध जैसे कार्यों के लिए सबसे अधिक कीमत चुकाएगा.
इस युद्ध,और त्रासदी को पिछले दो वर्षों की पूरी दुनिया की स्थिति से अलग नहीं किया जा सकता है: महामारी, आर्थिक संकट का बिगड़ना, पारिस्थितिक तबाही का गुण,यह बर्बरता में डूबती दुनिया की स्पष्ट अभिव्यक्ति है.
युद्ध प्रचार का झूठ
हर युद्ध के साथ- साथ झूठ के बड़े पैमाने पर अभियान चलते हैं. जनता से, विशेषकर शोषित वर्ग से, उनसे जो भीषण बलिदान मांगे जाते हैं, उन्हें स्वीकार करने के लिए, सामने भेजे जाने वालों के लिए अपने प्राणों की आहुति, उनकी माताओं, उनके साथियों, उनके बच्चों का शोक, नागरिक आबादी का आतंक, अभाव और शोषण का बिगड़ना, उनके सिर में शासक वर्ग की विचारधारा से भरना आवश्यक है.
पुतिन के झूठ कच्चे हैं, और सोवियत शासन के उन झूठों को प्रतिबिंबित करते हैं जिसमें उन्होंने केजीबी राजनीतिक पुलिस और जासूसी संगठन में एक अधिकारी के रूप में अपना करियर शुरू किया था. वह "नरसंहार" के शिकार डोनबास के लोगों की मदद करने के लिए एक "विशेष सैन्य अभियान" आयोजित करने का दावा करता है, और वह "युद्ध" शब्द का उपयोग करने के लिए प्रतिबंधों के दर्द पर मीडिया को मना करता है. उनके अनुसार, वह यूक्रेन को "नाजी शासन" से मुक्त करना चाहते हैं जो उस पर शासन करता है. यह सच है कि पूर्व की रूसी-भाषी आबादी को यूक्रेनी राष्ट्रवादी मिलिशिया द्वारा सताया जा रहा है, जो अक्सर नाजी शासन के लिए उदासीन होता है, लेकिन कोई नरसंहार नहीं होता.
आमतौर पर,पश्चिमी सरकारों और उनके मीडिया के झूठ और अधिक सूक्ष्म होते हैं. हमेशा नहीं: संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगी, जिनमें "लोकतांत्रिक" यूनाइटेड किंगडम, स्पेन, इटली और ... यूक्रेन (!) ने ऐसा झूठ गढा जिसमें दुनिया को बताया गया कि २००३ में इराक में हस्तक्षेप के बहाने सद्दाम के हाथों “बड़े स्तर पर हथियारों का विनाश’ जिस हस्तक्षेप परिणाम स्वरुप, कई लाख लोगों की जानें गयीं , इराक की आबादी के करीब लाख इराकियों को शरणार्थी बनना पड़ा और गठबंधन सैनिकों के बीच कई दसियों हज़ार मारे गए.
आज, जनवादी नेता और पश्चिम का मीडिया हमें पढ़ा रहा है कि वर्तमान यूक्रेन युद्ध “ क्रूर शैतान” पुतिन और “मासूम छोटे बच्चे “ ज़ेलेंस्की के बीच लड़ाई है. हम बहुत पहले से ही भलीभांति जानते हैं कि पुतिन एक सनकी अपराधी है. ज़ेलेन्सकी को पुतिन जैसा कोई आपराधिक रिकार्ड न होने और राजनीति में प्रवेश करने से पहले, एक लोकप्रिय हास्य अभिनेता (परिणामस्वरूप टैक्स हैवन में एक बड़े भाग्य के साथ) होने से लाभ मिलता है. लेकिन अब उनकी हास्य प्रतिभा ने , यानी यूक्रेनी पूंजीपति वर्ग और कुलीन वर्गों के हितों के लिए, अब उन्हें ब्रियो के साथ युद्ध सरदार की अपनी नई भूमिका में प्रवेश करने की अनुमति दी है, एक ऐसी भूमिका जिसमें 18 से 60 के बीच पुरुषों को उनके परिवारों के साथ विदेश में शरण लेने की कोशिश करने से मना करना और यूक्रेनियन को 'द फादरलैंड' के लिए मारने का आह्वान करना शामिल है , क्योंकि शासन करने वाली पार्टियों का रंग कुछ भी हो, उनके भाषणों का लहजा कुछ भी हो, सभी राष्ट्रीय राज्य शोषक वर्ग, राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग के हितों के सबसे ऊपर, शोषितों के खिलाफ और अन्य राष्ट्रीय पूंजीपतियों से प्रतिस्पर्धा के खिलाफ हैं.
सभी युद्ध प्रचार में, प्रत्येक राज्य खुद को "आक्रामकता के शिकार" के रूप में प्रस्तुत करता है जिसे "आक्रामक" के खिलाफ खुद का बचाव करना चाहिए. लेकिन चूंकि सभी राज्य वास्तव में लुटेरे हैं, इसलिए यह पूछना व्यर्थ है कि हिसाब-किताब के निपटारे में सबसे पहले किस लुटेरे ने गोली चलाई? आज, पुतिन और रूस ने पहले गोली चलाई है, लेकिन अतीत में, नाटो, अमेरिकी संरक्षण के तहत, कई देशों को अपने रैंक में एकीकृत कर चुका है, जो पूर्वी ब्लॉक और सोवियत संघ के पतन से पहले रूस पर हावी थे. युद्ध की शुरुआत करके, लुटेरे पुतिन का लक्ष्य अपने देश की कुछ पिछली शक्ति को पुनः प्राप्त करना है, विशेष रूप से यूक्रेन को नाटो में शामिल होने से रोककर.
वास्तव में, 20वीं शताब्दी की शुरुआत के बाद से, स्थायी युद्ध, इससे होने वाली सभी भयानक पीड़ाओं के साथ, पूंजीवादी व्यवस्था का अविभाज्य अंग हो गया है, कंपनियों और राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा पर आधारित एक प्रणाली, जहां वाणिज्यिक युद्ध सशस्त्र युद्ध की ओर ले जाता है, जहां इसके आर्थिक अंतर्विरोधों का बिगड़ना,इसके संकट का,और अधिक युद्ध जैसे संघर्षों को जन्म देना है. लाभ और उत्पादकों के घोर शोषण पर आधारित एक प्रणाली, जिसमें श्रमिकों को खून के साथ-साथ पसीने से भी भुगतान करने के लिए मजबूर किया जाता है.
2015 के बाद से, वैश्विक सैन्य खर्च तेजी से बढ़ रहा है. इस युद्ध ने इस प्रक्रिया को बेरहमी से तेज कर दिया है. इस घातक सर्पिल के प्रतीक के रूप में: जर्मनी ने यूक्रेन को हथियार पहुंचाना शुरू कर दिया है, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार ऐतिहासिक है; पहली बार, यूरोपीय संघ यूक्रेन को हथियारों की खरीद और डिलीवरी के लिए भी वित्तपोषण कर रहा है; और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपने दृढ़ संकल्प और विनाशकारी क्षमताओं को साबित करने के लिए परमाणु हथियारों का उपयोग करने की खुलेआम धमकी दी है,
हम युद्ध को कैसे समाप्त कर सकते हैं?
कोई भी सटीक भविष्यवाणी नहीं कर सकता कि वर्तमान युद्ध कैसे विकसित होगा, भले ही रूस के पास यूक्रेन की तुलना में अधिक मजबूत सेना है. आज दुनिया भर में और रूस में ही रूस के हस्तक्षेप के खिलाफ कई प्रदर्शन हो रहे हैं. लेकिन इन प्रदर्शनों से शत्रुता समाप्त नहीं होगी. इतिहास ने दिखाया है कि पूंजीवादी युद्ध को खत्म करने वाली एकमात्र ताकत शोषित वर्ग, सर्वहारा वर्ग ही, बुर्जुआ वर्ग का सीधा दुश्मन है. यह मामला था जब अक्टूबर 1917 में रूस के श्रमिकों ने बुर्जुआ राज्य को उखाड़ फेंका और नवंबर 1918 में जर्मनी के श्रमिकों और सैनिकों ने विद्रोह कर दिया, जिससे उनकी सरकार को युद्धविराम पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर होना पड़ा. यदि पुतिन, यूक्रेन के खिलाफ मारे जाने के लिए सैकड़ों हजारों सैनिकों को भेजने में सक्षम थे,अगर कई यूक्रेनियन आज "पितृभूमि की रक्षा" के लिए अपनी जान देने के लिए तैयार हैं, तो इसका मुख्य कारण यह है कि दुनिया के इस हिस्से में मजदूर वर्ग का विशेष रूप से कमजोर होनाहै . 1989 में "समाजवादी" या "मजदूर वर्ग" होने का दावा करने वाले शासनों के पतन ने विश्व मजदूर वर्ग के लिए एक बहुत ही क्रूर आघात का सामना किया. इस प्रहार ने उन श्रमिकों को प्रभावित किया जिन्होंने 1968 से और 1970 के दशक के दौरान फ्रांस, इटली और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों में कड़ा संघर्ष किया था, लेकिन इससे भी अधिक तथाकथित "समाजवादी" देशों में, जैसे कि पोलैंड में जो बड़े पैमाने पर लड़े थे और अगस्त 1980 में बड़े दृढ़ संकल्प के साथ, सरकार को दमन को त्यागने और उनकी मांगों को पूरा करने के लिए मजबूर किया.
"शांति के लिए" हम यह प्रदर्शन करके ,यह एक देश को दूसरे के खिलाफ समर्थन करने का विकल्प चुनकर, युद्ध के पीड़ितों, नागरिक आबादी और दोनों पक्षों के सैनिकों, वर्दी में सर्वहारा को तोप के चारे में तब्दील कर, वे सभी जो हमें शांति और लोगों के बीच "अच्छे संबंधों" के भ्रम से लुभाते है, वे सभी पार्टियां जो इस या उस राष्ट्रीय ध्वज के पीछे रैली करने का आह्वान करती हैं, वास्तविक एकजुटता नहीं ला सकते हैं. वास्तविक एकजुटता के लिए हमें सभी पूंजीवादी राज्यों की निंदा करनी होगी और एकमात्र एकजुटता जिसका वास्तविक प्रभाव हो सकता है, वह है दुनिया में हर जगह बड़े पैमाने पर और जागरूक श्रमिकों के संघर्षों का विकास और विशेष रूप से, इन संघर्षों को इस तथ्य के प्रति सचेत होना चाहिए कि युद्धों के लिए जिम्मेदार, मानवता को खतरे में डालने वाली बर्बर व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के लिए एक तैयारी का गठन करते होगा.
आज 1848 के कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो में सामने आए मजदूर आंदोलन के पुराने नारे पहले से कहीं ज्यादा एजेंडे में हैं: मजदूरों की कोई पितृभूमि नहीं होती! सभी देशों के मजदूरों, एक हो जाओ!
अन्तर्राष्ट्रीय सर्वहारा वर्ग के वर्ग संघर्ष के विकास के लिए !
अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट करंट, 28.2.22
ईमेल : [email protected] [8]
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सार्वजनिक सभाएँ
आओ और इस पर्चे के विचारों पर चर्चा आईसीसी द्वारा अगले दो सप्ताह में ऑनलाइन सार्वजनिक सभाओं में से एक में करें। अंग्रेजी में: 5 मार्च को सुबह 11 बजे और 6 मार्च को शाम 6 बजे (यूके समय)। विवरण के लिए हमारे ईमेल पर लिखें।
रूब्रिक:
यूक्रेन में साम्राज्यवादी संघर्ष
"अब बहुत हो गया है"। यह रोना ब्रिटेन में पिछले कुछ हफ्तों में एक हड़ताल से दूसरी हड़ताल में बदल गया है। 1979 में "विंटर ऑफ डिसकंटेंट" का जिक्र करते हुए "द समर ऑफ डिसकंटेंट" नामक इस विशाल आंदोलन ने प्रत्येक दिन अधिक से अधिक क्षेत्रों में श्रमिकों को शामिल किया है: रेलवे, लंदन अंडरग्राउंड, ब्रिटिश टेलीकॉम, पोस्ट ऑफिस, द फेलिक्सस्टो (ब्रिटेन के दक्षिण पूर्व में एक प्रमुख बंदरगाह) में डॉकवर्कर्स, देश के विभिन्न हिस्सों में श्रमिकों और बस चालकों, सफाई कर्मचारी और जो अमेज़ॅन आदि में हैं। आज यह परिवहन कर्मचारी हैं, कल यह स्वास्थ्य कार्यकर्ता और शिक्षक भी हो सकते हैं।
तमाम पत्रकार और टिप्पणीकार इसे ब्रिटेन में दशकों से चली आ रही सबसे बड़ी मजदूर वर्ग की कार्रवाई बता रहे हैं; केवल 1979 के विशाल हड़तालो ने एक बड़ा और अधिक व्यापक आंदोलन उत्पन्न किया था । ब्रिटेन जैसे बड़े देश में इस पैमाने पर कार्रवाई न केवल स्थानीय स्तर पर महत्वपूर्ण है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय महत्व की घटना है, हर देश के शोषितों के लिए एक संदेश है।
सभी शोषित लोगों के जीवन स्तर पर हमलों का जवाब , वर्ग संघर्ष ही है
दशक दर दशक, अन्य विकसित देशों की तरह, ब्रिटेन मे एक के बाद एक सरकारों ने जिनका मकसद, राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा और लाभ में सुधार के लिए उन स्थितियों को अधिक असुरक्षित और लचीला बनाने के लिए, साथ रहने और काम करने की स्थितियों पर लगातार हमला करना है: ये हमले हाल के वर्षों में इस स्तर पर पहुंच गए हैं कि ब्रिटेन में शिशु मृत्यु दर में "2014 के बाद से अभूतपूर्व वृद्धि हुई है" (मेडिकल जर्नल बीजेएम ओपन [1] के अनुसार)।
यही कारण है कि मुद्रास्फीति में मौजूदा उछाल एक वास्तविक सुनामी है। जुलाई में 10.1% साल-दर-साल मूल्य वृद्धि के साथ, अक्टूबर में 13% अपेक्षित, जनवरी में 18% की बढोतरी विनाशकारी है। एनएचएस ने चेतावनी दी है कि "कई लोगों को अपने घरों को गर्म करने में सक्षम होने के लिए, या इसके बजाय ठंड और नम में रहने के लिए भोजन छोड़ने के बीच चयन करने के लिए मजबूर किया जा सकता है"। 1 अप्रैल को गैस और बिजली की कीमतों में 54% और 1 अक्टूबर को 78% की वृद्धि के साथ, स्थिति प्रभावी रूप से अस्थिर है।
आज ब्रिटिश कामगारों की लामबंदी की सीमा अंततः उन हमलों के लिए एक मैच है, जिनका वे सामना कर रहे हैं, जब हाल के दशकों में, थैचर वर्षों की असफलताओं से पीड़ित, उनके पास जवाब देने की ताकत नहीं थी।
अतीत में, ब्रिटिश श्रमिक दुनिया में सबसे अधिक जुझारू रहे हैं। 1979 की "विंटर ऑफ डिसकंटेंट", दर्ज की गई हड़ताल के दिनों के आधार पर, फ्रांस में मई 1968 के बाद किसी भी देश में सबसे बड़ा आंदोलन था, यहां तक कि इटली में 1969 के "हॉट ऑटम" से भी अधिक। थैचर सरकार ने श्रमिकों को कड़वी हार की एक श्रृंखला देकर, विशेष रूप से 1985 में खनिकों की हड़ताल के दौरान, स्थायी रूप से अपनी विशाल युद्ध क्षमता को दबाने में कामयाबी हासिल की। इस हार ने ब्रिटेन में श्रमिकों की लड़ाई में लंबे समय तक गिरावट के साथ एक महत्वपूर्ण मोड़ को चिह्नित किया। ; इसने दुनिया भर में श्रमिकों की जुझारूपन की सामान्य गिरावट की भी शुरुआत की। पांच साल बाद, 1990 में, यूएसएसआर के पतन के साथ, धोखे से "समाजवादी" शासन के रूप में वर्णित किया गया, और "साम्यवाद की मृत्यु" और "पूंजीवाद की निश्चित विजय" की घोषणा कोई कम झूठी नहीं, एक नॉक-आउट पंच दुनिया भर के श्रमिकों पर उतरा था। तब से, एक दृष्टिकोण से वंचित, उनका आत्मविश्वास और वर्गीय पहचान मिट गई, ब्रिटेन में श्रमिकों को, कहीं और की तुलना में अधिक गंभीर रूप से, वास्तव में वापस लड़ने में सक्षम हुए बिना, लगातार सरकारों के हमलों का सामना करना पड़ा है।
लेकिन, बुर्जुआ वर्ग के हमलों के सामने, गुस्सा बढ़ता जा रहा है और आज, ब्रिटेन में मजदूर वर्ग दिखा रहा है कि वह एक बार फिर अपनी गरिमा के लिए लड़ने के लिए तैयार है, उन बलिदानों को अस्वीकार करने के लिए जो लगातार पूंजी द्वारा मांगे जाते हैं। इसके अलावा, यह एक अंतरराष्ट्रीय गतिशीलता का संकेत है: पिछली सर्दियों में, स्पेन और अमेरिका में हमले शुरू हो गए थे; इस गर्मी में, जर्मनी और बेल्जियम ने भी वाकआउट का अनुभव किया; और अब, टिप्पणीकार आने वाले महीनों में फ्रांस और इटली में "एक विस्फोटक सामाजिक स्थिति" की भविष्यवाणी कर रहे हैं। यह भविष्यवाणी करना संभव नहीं है कि निकट भविष्य में श्रमिकों की जुझारूपन बड़े पैमाने पर कहाँ और कब फिर से उभरेगी, लेकिन एक बात निश्चित है: ब्रिटेन में वर्तमान श्रमिकों की लामबंदी का पैमाना एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है। निष्क्रियता और समर्पण के दिन बीत चुके हैं। मजदूरों की नई पीढ़ी सिर उठा रही है।
साम्राज्यवादी युद्ध के खिलाफ वर्ग संघर्ष
इस आंदोलन का महत्व सिर्फ इतना नहीं है कि यह निष्क्रियता की लंबी अवधि का अंत कर रहा है। ये संघर्ष ऐसे समय में विकसित हो रहे हैं जब दुनिया बड़े पैमाने पर साम्राज्यवादी युद्ध का सामना कर रही है, एक ऐसा युद्ध जो रूस को यूक्रेन के खिलाफ जमीन पर खड़ा कर देता है, लेकिन जिसका वैश्विक प्रभाव है, विशेष रूप से, नाटो के सदस्य देशों की लामबंदी। हथियारों, आर्थिक, राजनयिक और वैचारिक स्तरों पर भी प्रतिबद्धता। पश्चिमी देशों में, सरकारें "स्वतंत्रता और लोकतंत्र की रक्षा" के लिए बलिदानों का आह्वान कर रही हैं। ठोस शब्दों में, इसका मतलब यह है कि इन देशों के सर्वहारा वर्ग को "यूक्रेन के साथ अपनी एकजुटता दिखाने", वास्तव में यूक्रेनी पूंजीपति वर्ग और पश्चिमी देशों के शासक वर्ग के लिए अपनी कमर कसनी होगी ।
सरकारों ने बेशर्मी से ग्लोबल वार्मिंग की तबाही और ऊर्जा और भोजन की कमी के जोखिम ("संयुक्त राष्ट्र महासचिव के अनुसार अब तक का सबसे खराब खाद्य संकट") का उपयोग करके अपने आर्थिक हमलों को उचित ठहराया है। वे "संयम" का आह्वान करते हैं और "बहुतायत" के अंत की घोषणा करते हैं (फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रोन के अन्यायपूर्ण शब्दों का उपयोग करने के लिए)। लेकिन साथ ही वे अपनी युद्ध अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहे हैं: 2021 में वैश्विक सैन्य खर्च 2,113 अरब डॉलर तक पहुंच गया! जबकि ब्रिटेन सैन्य खर्च में शीर्ष पांच देशो में से एक है, 1945 के बाद पहली बार! यूक्रेन में युद्ध केआरंभ के बाद से, दुनिया के हर देश ने जर्मनी सहित अपनी हथियारों की दौड़ में तेजी लाई है।
सरकारें अब "मुद्रास्फीति से लड़ने के लिए बलिदान" का आह्वान कर रही हैं। यह एक भयावह मजाक है जब की वे युद्ध पर अपने खर्च को बढ़ाकर इसे और खराब कर रहे हैं। पूंजीवाद और उसके प्रतिस्पर्धी राष्ट्रीय पूंजीपति इसी भविष्य वादा कर रहे हैं: अधिक युद्ध, अधिक शोषण, अधिक विनाश, अधिक दुख।
इसके अलावा, ब्रिटेन में मजदूरों की हड़तालें इसी ओर इशारा करती हैं, भले ही मजदूर हमेशा इसके बारे में पूरी तरह से जागरूक न हों: शासक वर्ग के हितों के लिए अधिक से अधिक बलिदान करने से इनकार करना, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए बलिदान करने से इनकार करना और युद्ध के प्रयास के लिए, इस प्रणाली के तर्क को स्वीकार करने से इनकार करना जो मानवता को तबाही की ओर ले जाता है और अंततः, इसके विनाश की ओर ले जाता है। विकल्प स्पष्ट हैं: समाजवाद या मानवता का विनाश।
बुर्जुआजियो के जाल से बचने की जरूरत
मजदूर वर्ग को इस स्टैंड को लेने की क्षमता और भी अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि ब्रिटेन में मजदूर वर्ग को हाल के वर्षों में लोकलुभावन विचारधारा से कुचल दिया गया है, जो शोषितों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करता है, उन्हें 'मूल' और 'विदेशियों' में विभाजित करता है, अश्वेतों और गोरों, पुरुषों और महिलाओं, को यह विश्वास दिलाने के लिए कि ब्रेक्सिट में द्वीपीय वापसी उनकी समस्याओं का समाधान हो सकती है।
लेकिन बुर्जुआ वर्ग ने मजदूर वर्ग के संघर्षों के रास्ते में और भी बहुत घातक और खतरनाक जाल बिछाए हैं।
वर्तमान हड़तालों के विशाल बहुमत को ट्रेड यूनियनों द्वारा बुलाया गया है, जो संघर्ष को संगठित करने और शोषितों की रक्षा के लिए खुद को सबसे प्रभावी निकाय के रूप में प्रस्तुत करते हैं। हाँ,यूनियनें सबसे प्रभावी हैं, लेकिन केवल पूंजीपति वर्ग की रक्षा करने और मजदूर वर्ग की हार को व्यवस्थित करने में।
यह याद रखने के लिए पर्याप्त है कि मार्च 1984 में थैचर की जीत किस हद तक संभव हुई, इस तोडफोड के लिए युनिअनो को धन्यवाद। मार्च 1984 में, जब कोयला उद्योग में अचानक 20,000 नौकरियों में कटौती की घोषणा की गई, खनिकों की प्रतिक्रिया तत्काल थी: हड़ताल के पहले दिन, 184 में से 100 गड्ढों को बंद कर दिया गया था। लेकिन जल्दी ही यूनियनों के मजबूत जाल ने हड़तालियों को घेरा। रेल कर्मचारियों और नाविकों की यूनियनों ने हड़ताल को सांकेतिक समर्थन दिया। शक्तिशाली डॉकर्स यूनियन ने हड़ताल की कार्रवाई के लिए देर से कॉल करने तक ही अपने को सीमित कर दिया गया था। टीयूसी (ट्रेड यूनियनों की राष्ट्रीय कांग्रेस) ने हड़ताल का समर्थन करने से इनकार कर दिया। इलेक्ट्रिशियन और स्टील वर्कर्स यूनियनों ने इसका विरोध किया। संक्षेप में, यूनियनों ने एक आम संघर्ष की किसी भी संभावना को सक्रिय रूप से तबाह कर दिया। लेकिन इन सबसे ऊपर, खनिकों के संघ, NUM (नेशनल यूनियन ऑफ माइनवर्कर्स) ने कोकिंग डिपो से कोयले की आवाजाही को खनिको द्वारा रोकने के प्रयास को पुलिस के साथ मिलकर इस घिनौने काम को पूरा किया (यह अधिक समय तक चला, एक साल से भी ज्यादा!) इस तोड़फोड़ के लिए यूनियन का धन्यवाद, पुलिस के साथ मिलकर निष्फल और अंतहीन संघर्षों को तीव्र हिंसा के साथ हड़ताल का दमन किया गया। यह हार पूरे मजदूर वर्ग की हार होगी।
यदि आज, यूके में, ये वही यूनियनें एक कट्टरपंथी भाषा का उपयोग करती हैं और विभिन्न क्षेत्रों के बीच एकजुटता की वकालत करने का दिखावा करती हैं, यहां तक कि एक आम हड़ताल के खतरे को भी दिखा रही हैं, ऐसा इसलिए है क्योंकि यह दिखाने की कोशिश की वे मजदूर वर्ग की चिंताओं के लिए जीवित हैं और वे चाहते हैं मजदूरों के गुस्से, उनकी जुझारूता और उनकी भावना कि हमें एक साथ लड़ना है, की जिम्मेदारी लें, ताकि वे इस गतिशील संघर्ष को बेहतर ढंग से दिशा बदलने और कुंद करने में सक्षम हों। वास्तव में, जमीनी स्तर पर, सभी के लिए उच्च मजदूरी के एकात्मक नारे के पीछे, वे हड़तालों की अलग से योजना बना रहे हैं; विभिन्न क्षेत्रों को बंद कर दिया गया है और निगमवादी वार्ता में अलग कर दिया गया है; सबसे बढ़कर, वे विभिन्न क्षेत्रों के श्रमिकों के बीच किसी भी वास्तविक चर्चा से बचने के लिए बहुत सावधानी बरतते हैं। कहीं भी कोई वास्तविक क्रॉस-इंडस्ट्री जनरल असेंबली नहीं है। तो मूर्ख मत बनो, जब बोरिस जॉनसन को बदलने के लिए सबसे आगे दौड़ने वाली लिज़ ट्रस कहती हैं कि अगर वह प्रधान मंत्री बनती हैं तो वह "ब्रिटेन को उग्रवादी ट्रेड यूनियनवादियों की फिरौती स्वीकार नहीं होगी"। वह बस अपने आदर्श, मार्गरेट थैचर के नक्शेकदम पर चल रही है; वह मजदूरों के सबसे जुझारू प्रतिनिधियों के रूप में यूनियनों को पेश करके उन्हें विश्वसनीयता दे रही है ताकि बेहतर ढंग से, एक साथ, मजदूर वर्ग को हराने के लिए नेतृत्व कर सकें।
फ्रांस, 2019 में, संघर्ष के उदय और पीढ़ियों के बीच एकजुटता के प्रकोप का सामना करते हुए, यूनियनों ने पहले से ही "संघर्षों के अभिसरण" की वकालत करके एक ही चाल का इस्तेमाल किया था, एक एकात्मक आंदोलन के लिए एक विकल्प, जहां मार्च करते प्रदर्शनकरिओ को गलियो, सेक्टर और कंपनी द्वारा समूहीकृत किया गया।
ब्रिटेन में, अन्य जगहों की तरह, मजदूर वर्ग अपनी ताकतों को संतुलित कर, जो हमें हमारे रहने और काम करने की परिस्थितियों पर लगातार हमलों का विरोध करने में सक्षम बनाएगी, जो कि कल और भी अधिक हिंसक हो सकती है हमें जहां भी हो, बहस के लिए एक साथ आना चाहिए। और संघर्ष के उन तरीकों को सामने रखा, जिन्होंने मजदूर वर्ग को मजबूत बनाया है और इतिहास के कुछ खास पलों में पूंजीपति वर्ग और उसकी व्यवस्था को हिलाकर रख दिया, जैसा की:
- "हमारी" फैक्ट्री, "हमारी" कंपनी, "हमारी" गतिविधि के क्षेत्र, "हमारा" शहर, "हमारा" क्षेत्र, "हमारा" देश से परे समर्थन और एकजुटता की खोज करना;
- श्रमिक संघर्षों का स्वायत्त संगठन, विशेष रूप से आम सभाओं के माध्यम से, और यूनियनों द्वारा संघर्ष के नियंत्रण को रोकना, श्रमिक संघर्षों के संगठन में विशेषकर "तथाकथित विशेषज्ञ"; द्वारा किया गया।
- पिछले संघर्षों से लिए जाने वाले सकारात्मक सबक पर संघर्ष की सामान्य जरूरतों पर व्यापक संभव चर्चा विकसित करना - हार सहित, क्योंकि हार होगी, लेकिन सबसे बड़ी हार उन पर प्रतिक्रिया किए बिना हमलों को झेलना है; संघर्ष में प्रवेश शोषित मजदूर वर्ग की पहली जीत है।
यदि ब्रिटेन में व्यापक हड़तालों की वापसी विश्व सर्वहारा वर्ग की लड़ाई की वापसी का प्रतीक है, तो भी यहमहत्वपूर्ण है कि 1985 में अपनी हार का संकेत देने वाली कमजोरियों को दूर किया जाए: ट्रेड यूनियनों में निगमवाद और भ्रम। संघर्ष की स्वायत्तता, उसकी एकता और एकजुटता कल के संघर्षों की तैयारी में अपरिहार्य मानदंड हैं!
और उसके लिए हमें खुद को उसी वर्ग के सदस्यों के रूप में पहचानना होगा, एक ऐसा वर्ग जिसका संघर्ष एकजुटता से एकजुट है: मजदूर वर्ग। आज के संघर्ष न केवल इसलिए अपरिहार्य हैं क्योंकि मजदूर वर्ग हमलों के खिलाफ अपना बचाव कर रहा है, बल्कि इसलिए भी कि वे दुनिया भर में वर्ग पहचान की बहाली का रास्ता बताते हैं, इस पूंजीवादी व्यवस्था को उखाड़ फेंकने की तैयारी के लिए, जो हमें केवल सभी प्रकार की दरिद्रता और तबाही ही दे सकती है।
पूंजीवाद के भीतर कोई समाधान नहीं है: न तो ग्रह के विनाश के लिए, न युद्धों के लिए, न बेरोजगारी के लिए, न ही अनिश्चितता के लिए, न ही गरीबी के लिए। दुनिया के सभी उत्पीड़ित और शोषितों द्वारा समर्थित विश्व सर्वहारा वर्ग का संघर्ष ही विकल्प का रास्ता खोल सकता है।
ब्रिटेन में बड़े पैमाने पर हड़ताल दुनियाभर के सर्वहारा वर्ग के लिए कार्रवाई का आह्वान है
अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट करंट, 27 अगस्त 2022
[1] bmjopen.bmj.com
रूब्रिक:
आईसीसी का अंतर्राष्ट्रीय पर्चा
अंतर्राष्ट्रीय पत्रक
‹ सितंबर 2022
यूक्रेन- युद्ध के बारे में अंतर्राष्ट्रीय बामपंथी कम्युनिस्ट समूहों का संयुक्त बयान
मजदूरों का कोई एक देश नहीं होता !
सभी साम्राज्यवादी शक्तियाँ मुर्दाबाद!
पूंजीवादी बर्बरता के स्थान पर: समाजवाद!
यूक्रेन में युद्ध, अंतर्राष्ट्रीय वर्गीय एकता के प्रतीक, बड़े और छोटे मजदूर वर्ग के हितों के लिए नहीं बल्कि सभी विभिन्न साम्राज्यवादी शक्तियों के परस्पर स्वार्थों की पूर्ती के लिए लडा जा रहा है. यह युद्ध, अमेरिका, रूस यूरोपीय राज्यों के प्रभारियों द्वारा अपने निहित सैन्य व् आर्थिक हितों के लिए खुले या गुप्त रूप से लड़ा जाने वाला सामरिक क्षेत्रों पर एक युद्ध है, जिसमें शतरंज की बिसात बना यूक्रेन का शासक वर्ग किसी तरह से विश्व साम्राज्यवादी मोहरे के लिए काम नही कर रहा.
इस युद्ध का वास्तविक शिकार, यूक्रेनी राज्य नहीं बल्कि, चाहे बलि की गई महिलाओं और बच्चों के रूपमें, भूखे शरणार्थियों अथवा किसी भी सेना की तोप के चारे के रूप में दिन पर दिन विकराल रूप लेती तबाही में मजदूर वर्ग ही होगा.
पूंजीपति वर्ग और उसकी मुनाफे पर टिकी उत्पादन प्रणाली, अपने प्रतिस्पर्धी राष्ट्रीय विभाजनों को दूर नहीं कर सकती जो अंततोगत्वा साम्राज्यवादी युद्ध की ओर ले जाती हैं. पूंजीवादी व्यवस्था समाज को अधिक बर्बरता में डूबने से नहीं बचा सकती.
अपने हिस्से के लिए दुनिया का मजदूर वर्ग बिगड़ती मजदूरी और जीवन स्तर के खिलाफ अपने संघर्ष को विकसित करने से नहीं बच सकता. नवीनतम युद्ध, 1945 के बाद से यूरोप में सबसे बड़ा यह युद्ध , यदि मजदूर वर्ग का संघर्ष पूंजीपति वर्ग को उखाड़ फेंकने और मजदूर वर्ग की राजनीतिक शक्ति, सर्वहारा वर्ग की तानाशाही द्वारा उसके प्रतिस्थापन की ओर नहीं ले जाता है तो दुनिया के लिए पूंजीवाद के भविष्य की चेतावनी देता है
युद्ध विभिन्न साम्राज्यवादी शक्तियों का लक्ष्य और झूठ है.
रूसी साम्राज्यवाद, 1989 में मिले भारी झटके की भरपाई के लिए उलट देना चाहता है और फिर से एक विश्व शक्ति बनना चाहता है. अमेरिका अपनी महाशक्ति का दर्जा और विश्व नेतृत्व को बनाए रखना चाहता है. यूरोपीय शक्तियों को रूसी विस्तार का डर है लेकिन अमेरिका के कुचले हुए वर्चस्व से भी. यूक्रेन खुद को सबसे मजबूत साम्राज्यवादी ताकतवर व्यक्ति के साथ सहयोग करना चाहता है.
आइये, हम इसकी मीमांसा करते हैं: इस युद्ध में अपने वास्तविक उद्देश्यों को सही ठहराने के लिए अमेरिका और पश्चिमी शक्तियों के पास सबसे ठोस झूठ है, और सबसे बड़ी मीडिया झूठ मशीन है. वे दुनियां को बताते हैं कि वे क्रेमलिन की निरंकुशता के खिलाफ लोकतंत्र की रक्षा करते हुए, पुतिन की क्रूरता के सामने मानवाधिकारों को कायम रखना तथा छोटे संप्रभु राज्यों के खिलाफ रूसी आक्रमण का प्रतिरोध कर रहे हैं.
मजबूत साम्राज्यवादी गैंगस्टरों के पास आमतौर पर बेहतर युद्ध प्रचार तन्त्र होता है, बड़े से बड़ा झूठ बोल कर वे अपने दुश्मनों को भड़का सकते हैं और पहले फायरिंग कर सकते हैं. लेकिन हाल ही में मध्य पूर्व में सीरिया, इराक और अफगानिस्तान में इन शक्तियों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन को याद रखें, वहां कैसे अमेरिकी वायु शक्ति ने हाल ही में मोसुल शहर को मटियामेट कर दिया, कैसे गठबंधन शक्तियों ने झूठे बहाने से इराकी आबादी को तलवार के घाट उतार डाला कि सद्दाम हुसैन के पास सामूहिक विनाश के हथियार थे. पिछली सदी में नागरिकों के खिलाफ इन लोकतंत्रों के अनगिनत अपराधों को याद करें,चाहे वह वियतनाम में 1960 के दशक के दौरान, कोरिया में 1950 के दशक के दौरान, हिरोशिमा, ड्रेसडेन या हैम्बर्ग में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हो. यूक्रेनी आबादी के खिलाफ रूसी आक्रोश अनिवार्य रूप से उसी साम्राज्यवादी नाटक की किताब से लिया गया है.
पूंजीवाद ने मानवता को स्थायी साम्राज्यवादी युद्ध के युग में पहुंचा दिया है. इसे युद्ध को “रोकने के लिए कहना” एक भ्रम है. युद्ध के समय पूंजीवाद में 'शांति' केवल एक अंतराल’ हो सकता है.
पूंजीवाद जितने अधिक गहरे संकट में डूबता जाएग, उतना ही अधिक सैन्य विनाश, प्रदूषण और विपत्तियों की बढ़ती तबाही को साथ लाएगा. क्रांतिकारी बदलाव के लिए पूंजीवाद सड़ चुका है।
मजदूर वर्ग एक सोता हुआ शेर है .
पूंजीवादी व्यवस्था, अधिक से अधिक युद्ध की वह प्रणाली है, जिसमें उसकी सभी भयंकरताओं को वर्तमान में अपने शासन के लिए कोई महत्वपूर्ण वर्ग विरोध नहीं मिलता है, इतना कि सर्वहारा वर्ग को अपनी श्रम शक्ति के बिगड़ते शोषण का सामना करना पड़ता है, और साम्राज्यवाद इसके बलिदान के लिए इसे युद्ध की घाटी में धकेल देता है.
अपने वर्गीय हितों की रक्षा के विकास के साथ-साथ क्रांतिकारी दस्ते की अपरिहार्य भूमिका से प्रेरित, पूंजीपति वर्ग पूरी तरह से, एक वर्ग के रूप में एकजुट होने की क्षमता को राजनीतिक तंत्र को उखाड़ फेंकने के लिए इसकी वर्ग चेतना, मजदूर वर्ग की एक और बड़ी क्षमता को छुपाता है, जैसा कि उसने 1917 में रूस में किया था और उस समय जर्मनी और अन्य जगहों पर ऐसा करने की धमकी दी थी, यानी युद्ध की ओर ले जाने वाली व्यवस्था को उखाड़ फेंकना. वास्तव में अक्टूबर क्रांति और इसने अन्य साम्राज्यवादी शक्तियों में जो विद्रोह पैदा किए, वे न केवल युद्ध के विरोध का बल्कि पूंजीपति वर्ग की शक्ति पर हमले का भी एक ज्वलंत उदाहरण हैं.
हम आज भी ऐसे क्रांतिकारी दौर से बहुत दूर हैं. इसी तरह, सर्वहारा वर्ग के संघर्ष की परिस्थितियाँ पहले साम्राज्यवादी नरसंहार के समय मौजूद परिस्थितियों से भिन्न है. दूसरी ओर, साम्राज्यवादी युद्ध के सामने, सर्वहारा अंतर्राष्ट्रीयवाद के मूल सिद्धांत और क्रांतिकारी संगठनों का कर्तव्य है कि वे सर्वहारा वर्ग के भीतर, जब आवश्यक हो, वर्तमान के खिलाफ, इन सिद्धांतों की पूरी तरह से रक्षा करें.
साम्राज्यवादी युद्ध के खिलाफ, अंतर्राष्ट्रीयतावाद के लिए संघर्ष की परम्परा के लिए, संघर्ष जारी है.
स्विटज़रलैंड के ज़िमरवाल्ड और किएनथल के गाँव, प्रथम विश्व युद्ध के खिलाफ दोनों पक्षों के समाजवादियों के मिलन के कारण प्रसिद्ध हो गए,ताकि कसाई को समाप्त करने और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टियों के देशभक्ति का राग अलापने वाले नेताओं की निंदा करने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष शुरू किया जा सके.इन बैठकों में ब्रेमेन वाम और डच वामपंथियों द्वारा समर्थित बोल्शेविक साम्राज्यवादी युद्ध के खिलाफ जिन अंतर्राष्ट्रीयवाद के आवश्यक सिद्धांतों को सामने लाये, जो आज भी मान्य हैं:
किसी भी साम्राज्यवादी खेमे का समर्थन नहीं; सभी शांतिवादी भ्रमों से इनकार; और यह मान्यता कि केवल मजदूर वर्ग और उसका क्रांतिकारी संघर्ष ही उस व्यवस्था का अंत कर सकता है जो श्रम शक्ति के शोषण पर आधारित है और स्थायी रूप से साम्राज्यवादी युद्ध उत्पन्न करती है.
1930 और 1940 के दशक में यह केवल राजनीतिक धारा थी, जो प्रथम विश्व युद्ध के विरुद्ध बोल्शेविकों द्वारा विकसित अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांतों के लिए दृढ़ता पूर्वक निर्णय था, जो अब कम्युनिस्ट वामपंथ कहा जाता है. इटालियन वामपंथी और डच वामपंथियों ने द्वितीय साम्राज्यवादी विश्व युद्ध में दोनों पक्षों का सक्रिय रूप से विरोध किया, नरसंहार के लिए फासीवादी और फासीवाद-विरोधी दोनों तथा अन्य धाराओं के विपरीत, जिसमें ट्रॉट्स्कीवाद सहित सर्वहारा क्रांति का दावा किया गया था, के औचित्य को खारिज कर दिया गया . ऐसा करते हुए इन कम्युनिस्ट वामपंथियों ने संघर्ष में स्तालिनवादी रूस के साम्राज्यवाद का समर्थन करने से इनकार कर दिया था.
आज, यूरोप में साम्राज्यवादी संघर्ष के तेज होने का सामना करते हुए, कम्युनिस्ट वामपंथ की विरासत पर आधारित राजनीतिक संगठन लगातार सर्वहारा अंतर्राष्ट्रीयतावाद के झंडे को पकड़े हुए हैं, और मजदूर वर्ग के सिद्धांतों का बचाव करने वालों के लिए एक संदर्भ बिंदु प्रदान करते हैं.
यही कारण है कि आज कम्युनिस्ट वामपंथ के संगठनों और समूहों ने, संख्या में कम और प्रसिद्ध ना होते हुए भी, इस आम बयान को जारी करने,और दो विश्व युद्धों की बर्बरता के खिलाफ बनाए गए अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांतों को जितना संभव हो उतना व्यापक रूप से प्रसारित करने का निर्णय किया है.
यूक्रेन में साम्राज्यवादी नरसंहार में किसी पक्ष का समर्थन नहीं.
शांतिवाद एक भ्रमजाल है: पूंजीवाद केवल अंतहीन युद्धों के माध्यम से ही जीवित रह सकता है.
पूंजीवादी व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के लिए शोषण के खिलाफ अपने वर्ग संघर्ष के माध्यम से केवल मजदूर वर्ग ही साम्राज्यवादी युद्ध को समाप्त कर सकता है.
दुनियाभर के मजदूरों एक हो !
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International Communist Current
Instituto Onorato Damen
Internationalist Voice
International Communist Perspective
6 April 2022
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सभी देशों में, सभी क्षेत्रों में, मजदूर वर्ग अपने रहन-सहन और काम करने की स्थिति में असहनीय गिरावट का सामना कर रहा है। सभी सरकारें, चाहे दक्षिणपंथी हों या वामपंथी, पारंपरिक हों या लोकवादी, एक के बाद एक हमले कर रही हैं, क्योंकि विश्व आर्थिक संकट बद से बदतर होता जा रहा है।
एक दमनकारी स्वास्थ्य संकट से उत्पन्न भय के बावजूद, मजदूर वर्ग प्रतिक्रिया देने लगा है। हाल के महीनों में, संयुक्त राज्य अमेरिका में, ईरान में, इटली में, कोरिया में, स्पेन, फ्रांस और ब्रिटेन में, संघर्ष छिड़ गए हैं। ये बड़े पैमाने पर आंदोलन नहीं हैं: हड़ताल और प्रदर्शन अभी भी कमजोर और बिखरे हुए हैं। फिर भी, शासक वर्ग व्यापक, उग्र असंतोष के प्रति सचेत, उन पर सतर्क नजर रख रहा है।
हमें शासक वर्ग के हमलों का सामना कैसे करना चाहिए? क्या हमें अपने “संस्थान या क्षेत्र” में अलग-थलग और विभाजित रहना है ? यह शक्तिहीनता की गारंटी है। तो हम एक संयुक्त, बड़े पैमाने पर संघर्ष कैसे विकसित कर सकते हैं?
अत्यंत क्रूर अधोगति जीवन और कामकाजी परिस्थितियो की ओर
कीमतें बढ़ रही हैं, विशेष रूप से बुनियादी आवश्यकताओं के लिए: भोजन, ऊर्जा, परिवहन... 2021 में मुद्रास्फीति 2008 के वित्तीय संकट के बाद की तुलना में पहले से ही अधिक थी। संयुक्त राज्य अमेरिका में, यह 6.8% तक पहुंच गई, जो 40 वर्षों में सबसे अधिक है। यूरोप में, हाल के महीनों में, ऊर्जा लागत में 26% की वृद्धि हुई है! इन आंकड़ों के पीछे, ठोस वास्तविकता यह है कि अधिक से अधिक लोग खुद को खिलाने, आवास खोजने, गर्म रहने, यात्रा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। दुनिया भर में, खाद्य कीमतों में 28% की वृद्धि हुई है, जो सीधे तौर पर सबसे गरीब देशों में कुपोषण से पीड़ित एक अरब से अधिक लोगों, खासकर अफ्रीका और एशिया में सबसे अधिक लोगों के लिए खतरा है।
गहराते आर्थिक संकट राज्यों के बीच तेजी से कड़वी प्रतिस्पर्धा की ओर ले जाता है। मुनाफे को बनाए रखने के लिए, उत्तर हमेशा एक ही होता है, हर जगह, सभी क्षेत्रों में, निजी और साथ ही सार्वजनिक: कर्मचारियों को कम करना, गति बढ़ाना, बजट में कटौती करना, जिसमें श्रमिकों के स्वास्थ्य और सुरक्षा पर खर्च करना शामिल है। जनवरी में, फ्रांस में, चौंकाने वाली कामकाजी परिस्थितियों के विरोध में शिक्षकों की भीड़ सड़कों पर आ गई। कर्मचारियों और सामग्री की कमी के कारण वे दैनिक पूंजीवादी नरक में जी रहे हैं। प्रदर्शनों में उनके बैनरों पर एक बहुत ही उचित नारा था: "हमारे साथ जो हो रहा है वह कोविड से पहले वापस आ गया है!"
स्वास्थ्य कर्मियों पर जो ज़ुल्म ढाया जा रहा है, वह साफ तौर पर दिखाता है। महामारी ने केवल दवाओं, देखभाल कर्मियों, नर्सों, बिस्तरों, मास्क, सुरक्षात्मक कपड़े, ऑक्सीजन की कमी पर प्रकाश डाला है ... सब कुछ! महामारी की शुरुआत के बाद से अस्पतालों में व्याप्त अराजकता और शातिर कटौती के परिणाम सभी सरकारों, सभी देशों में, दशकों तक रहेंगे। उस बिंदु तक जहां विश्व स्वास्थ्य संगठन अपनी नवीनतम रिपोर्ट में खतरे की घंटी बजाने के लिए बाध्य था: “आधे से अधिक जरूरतों को पूरा नहीं किया जा रहा है। दुनिया भर में 900,000 दाइयों और 60 लाख नर्सों की कमी है ... यह पहले से मौजूद कमी महामारी और अधिक काम करने वाले कर्मचारियों पर दबाव से बढ़ गई है। कई गरीब देशों में, आबादी का एक बड़ा हिस्सा टीकों का उपयोग करने में सक्षम नहीं है, इसका सीधा कारण यह है कि पूंजीवाद लाभ की तलाश पर आधारित है।
मजदूर वर्ग सिर्फ औद्योगिक श्रमिकों से नहीं बना है: इसमें सभी मजदूरी मजदूर, अंशकालिक और अनिश्चित श्रमिक,
बेरोजगार, कई छात्र, सेवानिवृत्त श्रमिक भी शामिल हैं .
तो, हाँ, "हमारे साथ जो हो रहा है वह कोविड से पहले की बात है!"। महामारी एक मरते हुए पूंजीवाद की उपज है जिसका दुर्गम संकट इसे और भी बदतर बना रहा है। यह प्रणाली न केवल एक महामारी के सामने अपनी शक्तिहीनता और अव्यवस्था दिखा रही है, जिसने पहले ही 10 मिलियन लोगों की जान ले ली है, विशेष रूप से शोषित और गरीबों के बीच, बल्कि यह हमारे जीवन और कामकाजी परिस्थितियों की अधोगति, अनिश्चित नौकरियों,गरीब श्रमिको पर दवाब और अतिरेक को बढ़ाना जारी रखेगी। अपने अंतर्विरोधों के बोझ तले, यह अंतहीन साम्राज्यवादी युद्धों में फंसता रहेगा, नई पारिस्थितिक तबाही को भड़काएगा - ये सभी आगे अराजकता, संघर्ष और इससे भी बदतर महामारियों को भड़काएंगे। शोषण की इस व्यवस्था में मानवता को दुख और गरीबी की पेशकश करने के अलावा कुछ नहीं है।
केवल मजदूर वर्ग का संघर्ष ही एक और दृष्टिकोण का वाहक है, वह है साम्यवाद का: बिना वर्ग, राष्ट्रों के बिना, युद्धों के बिना एक समाज, जहां सभी प्रकार के उत्पीड़न को समाप्त कर दिया जाएगा। विश्व साम्यवादी क्रांति ही एक मात्र दृष्टिकोण है
बढ़ रहा गुस्सा और जुझारूपन
2020 में, दुनिया भर में, एक प्रमुख पर्दाफाश हुआ: बार-बार लॉक-डाउन, आपातकालीन अस्पताल में भर्ती और लाखों मौतें। 2019 के दौरान हमने कई देशों में मजदूरों के जुझारूपन के पुनरुत्थान के बाद, विशेष रूप से फ्रांस में पेंशन 'सुधारों' के खिलाफ श्रमिको के संघर्ष को क्रूर रूप से रोक दिया। लेकिन आज एक बार फिर गुस्सा बढ़ रहा है और लड़ाई की भावना जोर पकड़ रही है:
संयुक्त राज्य अमेरिका में, केलॉग्स, जॉन डीरे, पेप्सीको जैसे औद्योगिक समूहों, बल्कि हमलों की एक श्रृंखला स्वास्थ्य क्षेत्र और निजी क्लीनिकों पर भी प्रभावित हुई है, जैसा कि न्यूयॉर्क में हुआ;
ईरान में, इस गर्मी में, तेल क्षेत्र में 70 से अधिक साइटों के कर्मचारी कम वेतन और उच्च जीवन यापन की लागत के खिलाफ हड़ताल पर आ गए। ऐसा पिछले 42 सालों में नहीं देखा!
दक्षिण कोरिया में, अनिश्चित नौकरियों और असमान मजदूरी के खिलाफ, यूनियनों को अधिक सामाजिक लाभ के लिए एक आम हड़ताल का आयोजन करना पड़ा;
इटली में, छंटनी और न्यूनतम वेतन के दमन के खिलाफ कई दिनों तक कार्रवाई की गई है;
जर्मनी में, सार्वजनिक सेवा यूनियनों ने वेतन वृद्धि प्राप्त करने के लिए बढ़ती हड़तालों के खतरे को महसूस किया और के लामबंदी लिए बाध्य होना पड़ा;
स्पेन में, कैडिज़ में, धातु श्रमिकों ने औसतन 200 यूरो प्रति माह की कटौती के खिलाफ लामबंद किया। कैटेलोनिया में कर्मचारियों ने असहनीय अस्थायी काम के खिलाफ प्रदर्शन किया (300,000 से अधिक राज्य कर्मचारियों के पास अनिश्चित नौकरियां हैं)। मालोर्का में रेलवे, वेस्टास, यूनिकाजा में, एलिकांटे के धातु श्रमिकों , विभिन्न अस्पतालों में, सभी अतिरेक के खिलाफ संघर्ष हुए;
फ्रांस में, परिवहन, पुनर्चक्रण, शिक्षा में हड़तालों या प्रदर्शनों द्वारा उसी तरह का असंतोष व्यक्त किया गया है;
वही ब्रिटेन में जहां हमने विश्वविद्यालयों में, सार्वजनिक परिवहन, स्वास्थ्य और अन्य क्षेत्रों में, रीसाइक्लिंग श्रमिकों द्वारा हड़तालें और अन्य कार्रवाइयां देखी हैं।
भविष्य में संघर्षों के लिए तैयार रहें
ये सभी संघर्ष महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे दिखाते हैं कि मजदूर वर्ग उन सभी बलिदानों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है जो पूंजीपति उस पर थोपने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन हमें अपने वर्ग की कमजोरियों को भी पहचानना होगा। इन सभी कार्यों को उन यूनियनों द्वारा नियंत्रित किया गया है जो हर जगह श्रमिकों को विभाजित और अलग-थलग कर देती हैं, संघर्षों को रोकने और तोड़फोड़ करने की माँग करती हैं। कैडिज़ में, यूनियनों ने "काडिज़ को बचाने" के लिए एक "नागरिक आंदोलन", स्थानीयता में श्रमिकों को फंसाने की कोशिश की, जैसे कि मजदूर वर्ग के हित क्षेत्रीय या राष्ट्रीय चिंताओं की रक्षा में निहित हैं, न कि अपने वर्ग, भाइयों और बहनों, सभी क्षेत्रों और सीमाओं के साथ जुड़ने में। मजदूरों के लिए खुद को संगठित करना, संघर्षों पर नियंत्रण रखना, संप्रभु आम सभाओं में एक साथ आना और यूनियनों द्वारा लगाए गए विभाजनों के खिलाफ लड़ना भी मुश्किल हो गया है।
एक और खतरा मजदूर वर्ग के सामने उन आंदोलनों से जुड़कर वर्गहित मांगों की रक्षा करना छोड़ रहा है जिनका अपने हितों और संघर्ष के तरीकों से कोई लेना-देना नहीं है। हमने इसे "येलो वेस्ट" फ्रांस में या, हाल ही में, चीन के साथ देखा, जब हाउसिंग दिग्गज एवरग्रांडे (चीन के बड़े पैमाने पर ऋण का एक शानदार प्रतीक) का पतन हुआ, जिससे मुख्य रूप से बर्बाद छोटे संपत्ति के मालिक भड़के और विरोध प्रकट किया। कजाकिस्तान में, ऊर्जा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर हमले अंत में बिना किसी परिप्रेक्ष्य के, संघर्ष “जनान्दोलन” की पटरी पर उतर गए और सत्ता के लिए होड़ में बुर्जुआ गुटों के बीच संघर्षों में फंस गए। हर बार जब श्रमिक "लोगों" में "नागरिक" के रूप में खुद को हल्का करते हैं, यह मानते हुए कि पूंजीवादी राज्य "चीजों को बदल देगा, वे खुद को शक्तिहीन करते हैं।
सी पी ई के खिलाफ आंदोलन: भविष्य के संघर्षों के लिए एक प्रेरणा
2006 में, फ्रांस में, बुर्जुआ वर्ग को एक बड़े संघर्ष का आभास होने पर अपने हमले को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसने अन्य क्षेत्रों में विस्तार करने की धमकी दी।
उस समय, छात्र, जिनमें से कई अंशकालिक कार्यकर्ता थे, एक 'सुधार' के खिलाफ उठे, जिसे कॉन्ट्राट प्रीमियर एम्बाउचे (प्रथम रोजगार अनुबंध) या सीपीई के रूप में जाना जाता है, जो कम भुगतान और अत्यधिक शोषण वाली नौकरियों के द्वार खोल रहा है। उन्होंने अलगाव, विभाजन, विभागीय मांगों को खारिज कर दिया।
यूनियनों के खिलाफ, उन्होंने सभी श्रेणियों के श्रमिकों और सेवानिवृत्त लोगों के लिए अपनी आम सभाएं खोल दीं। वे समझते थे कि युवाओं के लिए अनिश्चित नौकरियों के खिलाफ लड़ाई, हर किसी के लिए नौकरी की असुरक्षा के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक है।
श्रेणियों और पीढ़ियों के बीच एकजुटता प्राप्त करते हुए, यह आंदोलन,एक प्रदर्शन के बाद दूसरे प्रदर्शन में व्यापक होता गया। यह एकता की ओर गतिशील था जिसने पूंजीपति वर्ग को डरा दिया और उसे सीपीई वापस लेने के लिए मजबूर किया।
संघर्ष को तैयार करने के लिए, जहां कहीं भी हम कर सकते हैं, पिछले संघर्षों के बारे में चर्चा करने और उन संघर्षों से सबक लेकर हमें एकजुट होना चाहिए। संघर्षो के उन तरीकों को सामने रखना महत्वपूर्ण है जो मजदूर वर्ग की ताकत को व्यक्त करते हैं, और जिसने इतिहास के कुछ क्षणों में पूंजीपति वर्ग और उसकी व्यवस्था को हिलाकर रख दिया था:
"मेरे" क्षेत्र, शहर, प्रदेश या देश से परे, समर्थन और एकजुटता को खोजना होगा;
संघर्षों की जरूरतों के बारे में, चाहे वह किसी भी फर्म, क्षेत्र या देश में क्यों न हो, संभव व्यापक चर्चा करनी चाहिए;
संघर्ष का संगठन स्वायत्त, सबसे बढ़कर सामान्य सभाओं के माध्यम से, जो यूनियनों या अन्य बुर्जुआ अंगो के नियंत्रण में ना हो।
भविष्य के एकजुट और स्वायत्त संघर्ष के लिए तैयार रहें!
अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट करंट, जनवरी 2022
हम यह पर्चा उन सभी देशों में दे रहे हैं जहां हमारे जुझारू बल मौजूद हैं। जो लोग इस लेख की सामग्री से सहमत हैं, वे इसे संलग्न पीडीएफ से डाउनलोड कर सकते हैं और इसे यथासंभव वितरित कर सकते हैं। मार्च के पहले सप्ताह के अंत में हम अंग्रेजी में ऑनलाइन जनसभाएं आयोजित कर रहे हैं जहां हम व्यवस्था के संकट, वर्ग संघर्ष और क्रांतिकारियों की भूमिका पर चर्चा करेंगे। यदि आप चर्चा में शामिल होना चाहते हैं, तो हमें [email protected] [8] पर लिखें या www.internationalism.org [10] पर हमारी वेबसाइट का अनुसरण करें।
रूब्रिक:
आईसीसी का अंतर्राष्ट्रीय पर्चा
आई सी सी द्वारा ९ नवम्बर २०२१ को प्रस्तुत .
संयुक्त राज्य अमेरिका में आज मजदूरों की अगुआई में हुई हड़तालों की श्रंखला ने देश के बड़े हिस्से को हिला कर रख दिया है. महामारी के दौरान,केलाक्स,जान डीरे,पैप्सिको तथा ऐसे औद्योगिक मालिकों द्वारा मजदूरों पर लादी गये काम की असहनीय स्थितियां, शारीरिक और मनोंवैज्ञानिक थकान, लाभ में अनाप शनाप वृद्धि के खिलाफ “ स्ट्राइक टोबर” नामक आन्दोलन ने हजारों श्रमिकों को लामबंद किया. इन ह्ड़तालों ने हालत ऐसे प्रस्तुत किये कि न्यूयार्क के स्वास्थ्य क्षेत्र और निजी क्लीनिकों में हुयी हड़तालों की सही गिनती करना मुश्किल है क्योंकि संघीय सरकार उन हड़तालों की गिनती करती है जिनमें एक हजार से अधिक कर्मचारी भाग लेते हैं . ऐसा देश जो वैश्विक पूँजीवाद की मरणशीलता का केंद्र बना हुआ है वहां मजदूर वर्ग अपने जुझारूपन के सक्रिय रूप को प्रर्दर्शित कर रहा है, यह तथ्य इस सच्चाई का प्रतीक है कि मजदूर वर्ग पराजित नहीं हुआ है.
लगभग दो वर्षों से, कोविद -१९ की महामारी के प्रकोप के कारण बार –बार लाक डाउन,आपातस्थिति में अस्पतालों में भर्ती होने और दुनियां में हुयी लाखों मौतों के कारण मजदूर वर्ग पर मुसीबतों का पहाड़ ही टूट पडा. मुनाफे की बढती मांगों के तहत बोझ से भरी स्वास्थ्य सेवाओं में गिरावट के कारण समूची दुनियां का मजदूर पूंजीपति वर्ग की आम लापरवाही का शिकार हुआ. दिन – प्रतिदिन के जीवन के दवाबों और कल के भय ने मजदूरों को की कतारों में पहले से ही एक मजबूत अभेद भावना को मजबूत किया है जिसने उसे अपने ही खोल में वापस जाने की प्रवृति को बल मिला है. २०१९ के दौरान और २०२० के प्राम्भ में कई देशों में व्यक्त की गई संघर्ष के पुनरुद्धार के बाद, सामाजिक टकराव अचानक रुक गया. यदि फ़्रांस में पेंशन सुधार के खिलाफ आन्दोलन ने सामाजिक संघर्षों में एक नई गतिशीलता दिखाई दी थी, तो कोविद-१९ महामारी एक शक्तिशाली गला घोंटने वाली सिद्ध हुई .
किन्तु महामारी के बीच भी, विभिन्न स्थानों पर मजदूर वर्ग के क्षेत्रों में छिटपुट संघर्ष जारी रहे , इटली व् फ़्रांस में, विशेषरूप से स्वास्थ्य की देखभाल, परिवहन और व्यापार के क्षेत्रों में पूंजीपति वर्ग के बढ़ते हुए शोषण और कुटिलता तथा काम काज की असहनीय परस्थितियों के विरुद्ध प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए मजदूर वर्ग अपनी जुझारू क्षमता का प्रदर्शन करने में सफल रहा. हालांकि, घातक वाइरस के कारण थोपे गये लाक डाउन और पूंजीपति वर्ग द्वारा फैलाये गये आतंक के माहौल ने इन संघर्षों को जारी रखने और एक वास्तविक विकल्प प्रस्तुत करने से रोक दिया.
इससे भी बदतर, नारकीय और स्वास्थ्य के लिए खतरनाक परस्थितियों के प्रति असन्तोष की अभिव्यक्तियों, मजदूरों द्वारा बिना मास्क पहने सुरक्षा के काम पर जाने से इनकार, पूंजीपति वर्ग ने मजदूर वर्ग की इन मांगों को स्वार्थी, गैर जिम्मेदाराना, औए इससे भी बढ़ कर सामाजिक और आर्थिक एकता में तथा जनता के समक्ष स्वास्थ्य संकट के समय जारी रास्ट्रीय संघर्ष में विघ्न डालने का दोषी ठहराया.
सालों के बाद, जिसमें अमेरिकी आबादी,एक सर्व शक्तिमान राज्य के अंगूठे के नीचे रही है. डोनाल्ड ट्रम्प का पूर्ण रोजगार का चैंपियन बनाने का लोक लुभावन झूठ, और जोबिडेन के “ नए रूजवेल्ट “ के डेमोक्रेटिक मकडजाल से, तंग आकर हजारों मजदूर धीरे - धीरे अपनी खोई हुयी सामूहिक शक्ति को बटोरने में लगे हैं. वे खुलेतौर पर घ्रणित “ दो स्तरीय वेतन प्रणाली “ (१ ) को खारिज कर रहे हैं, इस प्रकार वे पीढ़ियों के बीच एकजुटता प्रदर्शन करते हुए,अधिकांश अनुभवी, “सुरक्षित“औरअधिक अनिश्चित व् विकट परिस्थितियों में काम करने वाले नौजवान साथियों के साथ संघर्ष कर रहे हैं .
भले ही इन हड़तालों ( जिन्होंने पूंजीपति वर्ग को इस लामबंदी को संयुक्त राज्य में ” यूनियनों के “ महान पुनर्द्धार” के रूप में प्रस्तुत करने की अनुमति दी है ) जिनकी यूनियनों द्वारा अच्छी तरह से निगरानी की जाती है, उनमें हमने हस्ताक्षरित समझौतों पर विभिन्न संघों द्वारा सवाल उठाने के संकेत देखे हैं. यह विरोध प्रारंभिक है और मजदूर वर्ग अभी भी पूंजीवादी राज्य के इन पहरेदारों के साथ सीधे और सचेत टकराव से दूर है. फिर भी यह लड़ाकूपन का एक बहुत ही वास्तविक संकेत है .
कुछ लोग यह सोच सकते हैं कि अमेरिका में ये संघर्ष इस नियम को सिद्ध करने वाले अपवाद हैं: कि वे नहीं हैं जो हाल के हफ्तों और महीनों में जो संघर्ष उभरे हैं:
यदि आप पूंजीवादी अर्थशास्त्रियों को सुनें तो वे बतायेंगे, वर्तमान मुद्रा स्फीति जो बुनियादी वस्तुओं और ऊर्जा की कीमतों को बढ़ा रही है, इस प्रकार अमेरिका, फ़्रांस, संयुक्त राष्ट्र अथवा जर्मनी क्रय शक्ति को समाप्त कर रही है, जो केवल “आर्थिक सुधार” का चक्रीय उत्पाद है.
आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार, मुद्रा स्फीति में वृद्धि “विशिष्ट पहलुओं” से जुडी हुई है, जैसे कि समुद्री या सड़क परिवहन में अडचनें, औद्योगिक उत्पादन में “अतिताप” के लिए विशेषरूप से ईंधन और गैस की कीमतों में वृद्धि . इस द्रष्टि से यह बीतता हुआ क्षण है जबकि आर्थिक उत्पादन की पूरी प्रक्रिया अपने संतुलन को पुन: प्राप्त कर लेती है. यह सब कुछ हमें आश्वस्त करने के लिए और एक “ आवश्यक” मुद्रास्फीति की प्रक्रिया को सही ठहराने के लिए किया जाता है, जिसके फिर भी चलते रहने की सम्भावना है .
महामारी के आर्थिक और सामाजिक प्रभाव से निपटने और उसकी व्यापकता से बचने के लिए ‘ हैलीकोप्टर” धन के सहारे सैकड़ों अरब डालर,यूरो येन,या युआन बिना लागत की चिंता किये महीनों तक मुद्रित कर डाले हैं. इस अराजकता ने न केवल मुद्राओं के मूल्य को कमजोर किया है और एक पुरानी मुद्रा स्फीति की प्रक्रिया को आगे बढाया है . इसकी मार मजदूर वर्ग पर सबसे अधिक पड़ी है, जिसकी कीमत उसे चुकानी पड़ेगी.
इस हमले के खिलाफ,भले ही,अभी तक प्रत्यक्ष और व्यापक प्रतिक्रिया न हुई हो, मुद्रा स्फीति के विकास और संघर्षों के एकीकरण के शक्तिशाली कारक के रूप में काम कर सकती है : बुनियादी आवश्यकताओं, गैस, रोटी , बिजली आदि की कीमतों में वृद्धि न केवल सीधे हो सकती है. इन हमलों के शिकार चाहे वे सार्वजनिक क्षेत्र में काम करने वाले हों अथवा निजी क्षेत्र में बेरोजगार हों या सेवानिवृत, सभी मजदूर होंगे. सभी का जीवन स्तर को नीचे धकेला जायेगा.भूख और ठण्ड भविष्य के सामाजिक आंदोलनों को गति प्रदान करने वाले प्रमुख तत्व होंगे, जिसमें पूँजीवाद के प्रमुख देश भी शामिल होंगे.
दुनिया की सभी सरकारें बड़ी साबधानी से आगे बढ़ रही हैं. हालांकि उन्होंने अभी सादगी कार्यक्रम लागू नहीं किया है, लेकिन इसके विपरीत उन्होंने अर्थव्यवस्था में लाखों और लाखों डालर, येन, युआन का व्यापक रूप से इंजेक्शन लगाया है तथा अर्थव्यवस्था में विनियोग किये हैं . वे जानते हैं कि गतिविधि को पुनर्जीवित करना नितांत आवश्यक है. और एक सामाजिक बम टिकटिक कर रहा है .
यध्यपि सरकारों का मत था कि वे सभी कोविद से सम्बन्धित सहायता उपायों को जल्दी से समाप्त कर देंगे और खातों को शीघ्र से शीघ्र “सामान्य” कर लेंगे. इस प्रकार बिडेन ने (सामाजिक आपदा से बचने के लिए ) हस्तक्षेप कर एक “ऐतिहासिक योजना” प्रस्तुत की जो ”लाखों रोजगार पैदा करने वाली अर्थ व्यवस्था के विकास के लिये हमारे देश और हमारे लोगों में निवेश करें”.(२) इससे आपको लगता होगा कि आप सपना देख रहे हैं ! स्पेन में भी यही सच है, जहां समाजवादी पैद्रोसान्चेज २४८ बिलियन यूरो के पूरे सामाजिक खर्चे की विशाल योजना को लागू कर रहा है. पूंजीपति वर्ग के एक हिस्से की इस नाराजगी को नहीं जानता कि बिलों का भुगतान कैसे किया जाएगा. फ़्रांस में भी २०२२ के राष्ट्रपति चुनाव के लिए तमाम हंगामे और चुनावी बयानबाजी के पीछे सरकार लाखों कर दाताओं के लिए “ऊर्जा वाउचर” और “मुद्रास्फीति भत्ता “ के साथ सामाजिक असंतोष का अनुमान लगाने की कोशिश कर रही है .
लेकिन सर्वहारा वर्ग की प्रतिक्रिया करने की क्षमता को पहचानने और उजागर करने से उत्साह और भ्रम पैदा नहीं होना चाहिए कि मजदूरों के संघर्ष के लिए एक शाही रास्ता खुल रहा है। मजदूर वर्ग की खुद को एक शोषित वर्ग के रूप में पहचानने और अपनी क्रांतिकारी भूमिका के बारे में जागरूक होने की कठिनाई के कारण, महत्वपूर्ण संघर्षों का रास्ता जो क्रांतिकारी काल का रास्ता खोलता है, वह अभी भी बहुत लंबा है।
इन स्थितियों में टकराव नाजुक, खराव संगठित स्थिति, बड़े पैमाने पर यूनियनों द्वारा नियंत्रित, उन राज्य मशीनरी द्वारा संघर्षों को तोड़फोड़ करने में महारत हासिल है और जो निगमवाद और विभाजन को बढाते हैं.
उदहारण के लिए, इटली में, प्रारम्भिक मांगों और पिछ्ले संघर्षों की लड़ाई में यूनियनों और इटली के वामपंथियों द्वारा एक खतरनाक गतिरोध की ओर मोड़ दिया गया है. इटली की सरकार ने सभी मजदूरों पर “ स्वास्थ्य पास के खिलाफ यूरोप में पहली सामूहिक औद्योगिक हड़ताल “ का सडा हुआ नारा थोप दिया है .
इसी तरह, जबकि कुछ क्षेत्र संकट, बंद होने, पुनर्गठन औए बढ़े हुये कार्य दरों से प्रभावित हैं. अन्य क्षेत्रों में जनशक्ति की कमी और एक बार उछाल का सामना करना पड रहा है ( यूरोप में माल परिवहन में हजारों ड्राइवरों की कमी है). इस स्थिति में वर्ग के भीतर वर्गीय मांगों के माध्यम से विभाजन का खतरा होता है , इनका शोषण करने या आन्दोलन करने में यूनियनों को संकोच नहीं होगा .
आइये हम, पूँजी के धुर दक्षिण पंथियों तथा “ फासीवादियों “ द्वारा प्रदर्शनों में हिंसा फ़ैलाने के खिलाफ तथा पूंजी के “ वाम पंथियों “ द्वारा “जलवायुसंरक्षण के लिए चलाये जा रहे “ नागरिक मोर्चे के पक्ष में खड़े होने का आव्हान करते हैं . यह सर्वहारा वर्ग की सुदूर वामपंथी प्रवचनों के प्रति संवेदनशीलता की एक और अभिव्यक्ति है, जो संघर्ष को गैर -सर्वहारा विशेष रूप से अंतर -वर्ग के क्षेत्र में ले जाने के लिए किसी भी साधन का उपयोग करने में सक्षम है.
इसी तरह, मुद्रा स्फीति संघर्षों के एकीकरण के कारक के रूप में कार्य कर सकती है,कर और पैट्रोल की कीमतों में वृद्धि, निम्न –पूंजीपति वर्ग को भी प्रभावित करती है. जैसे फ़्रांस में “पीले रंगबनियान” जैसे अंतर- वर्गवादी आन्दोलन के उद्धव को जन्म दिया. वर्तमान सन्दर्भ,वास्तव में “लोकप्रिय” विद्र्हों की घटना के अनुकूल है, जिसमें सर्वहारा की मांगें छोटे मालिकों के बाँझ और प्रतिक्रियावादी पूर्वाग्रहों में दबी रहती है जो संकट से बुरी तरह प्रभावित होते हैं. उदाहरण के लिए चीन का मामला लेलें जहाँ आकंठ कर्ज में डूबी अचल सम्पत्ति की दिग्गज कम्पनी एवरग्रांडे चीन की वास्तविकता का प्रतीक है, लेकिन उन छोटे मालिकों जिनकी बचत या सम्पत्ति लूट ली गई है, के विरोध की ओर जाता है.
अंतर् वर्गीय संघर्ष, एक वास्तविक जाल है और मजदूर वर्ग को अपनी मांगों, अपनी स्वायत्तता,अपने स्वयं के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष पर जोर देने की अनुमति नहीं देते है .महामारी से बढी हुई पूँजीवाद की सडांध मजदूर् वर्ग पर भारी पडती है और रहेगी. जो अभी भी बड़ी कठिनाइयों का सामना कर रहा है.
काम पर गैर हाजिरी, इस्तीफे की जंजीर, बहुत कम वेतन पर काम पर लौटने से इनकार, हाल के दिनों में बढना बंद नहीं हुआ है .लेकिन ये व्यक्तिगत प्रतिक्रियाएं हैं जो वर्गीय साथियों के साथ सामूहिक संघर्ष के माध्यम से पूंजीवादी शोषण से बचने के लिए एक (भ्रम पूर्ण ) प्रयास का अधिक प्रतिविम्ब है. उदहारण के लिए, अस्पतालों या रेस्तरांओं में कर्मचारियों की कमी के लिए उन्हें सीधे “जिम्मेदार” बनाना, “ इस्तीफा देने वाले “ मजदूरों को बदनाम करने में पूंजीपति वर्ग इस कमजोरी का लाभ उठाने में संकोच नहीं करता. दूसरे शब्दों में, मजदूरों को रेंकों में विभाजित करना है.
इन तमाम कठिनाइयों तथा संकटों के बावजूद , इस अंतिम अवधि ने एक रास्ता प्रशस्त किया है और यह स्पष्ट रूप से पुष्टि करता है कि मजदूर वर्ग अपनी जमीन पर खुद को स्थापित करने में सक्षम है .
वर्ग चेतना का विकास जुझारूपन के नवीनीकरण पर निर्भर करता है और यह अब भी नुकसान से भरा लम्बा रास्ता है . क्रांतिकारियों को इन संघर्षों का समर्थन करना चाहिए, लेकिन उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी उनके विस्तार के लिए,उनके राजनीतिकरण के लिए यथासंभव संघर्ष करना है जो क्रांतिकारी परिप्रेक्ष को जीवित रखने के लिए आवश्यक है . इसका अर्थ यह है कि पूंजीपति वर्ग द्वारा उनके लिए बिछाए गये तमाम जालों और भ्रमों की द्रढ़ता के साथ निदा करके उनकी सीमाओं और कमजोरियों को पहचानने में समर्थ होना है, जो कहीं से भी आया हो और उन्हें धमकी देता हो.
स्टापियो, ३ नवम्बर २०२१
[१] नये रंगरूटों के लिए क्म्वेतन की एक प्रणाली , तथाकथित “ दादा खंड “ जिस पर की ट्रेड यूनियनों ने दोनों हाथों से हस्ताक्षर किये.
[२]यह कार्यक्रम, जो राजकीय पूँजीवाद की विशिष्टता है, का उद्देश्य अमेरिकी पूँजीवाद का आधुनिकरण करना है ताकि अपनी प्रतिस्पर्धियों, विशेष रूप से चीन का बेहतर तरीके से सामना कर सके.
रुब्रिक.
आई. सी. सी. द्वारा ७ अप्रैल २०२२ को प्रेषित.
ऐतिहासिक सड़ते पूँजीवाद के पालने- युक्रेन के द्वार पर, बन्दूकों की गडगडाहट और बमों के धमाकों को गूंजने के लिए फिर से एक रात लग गई. अभूतपूर्व पैमाने पर छिड़े और क्रूरताओं की सभी सीमाओं को लांघ, इस युद्ध ने पूरे -पूरे शहरों को पूरी तरह तबाह कर दिया है, जिसमें पित्रभूमि की बलि वेदी पर असंख्य मानव जीवन को झोंकते हुए लाखों महिलाओं बच्चों और बूढों को सर्दी से जमी हुए सडकों पर फेंक दिया गया. खार्किव, सुमी औरइरपिन पूरी तरह खंडहरों में तब्दील हो चुके हैं.मारीपोल का औद्योगिक बन्दरगाह पूरी तरह धराशायी हो चुका है, इस संघर्ष में कम से कम, शायद इससे भी अधिक लोगों की जान गई है. इस युद्ध की तबाही और भयावहता ग्रोज्नी, फालुजा,तथा अलेप्पो की भयानक तस्वीरों की याद दिलाती है. लेकिन जहां इस तरह की तबाही और भयावहता तक पहुँचने में महीनों और कभी- कभी सालों लग गए, वहाँ यूक्रेन में कोई “ हत्याओं में वृद्धि “ नहीं हुई : मुश्किल से वहां एक महीने में ही लडाकू लोगों ने अपनी सारी शक्तियों को नर संहार में झोक दिया और यूरोप के सबसे बड़े देशों में से एक को तबाह कर दिया .
युद्ध ,पतनशील पूँजीवाद की सच्चाई के लिए एक डरावना क्षण है: शासक वर्ग का कालदोष से मुक्त एक विशेष तबका अपनी मौत की मशीनों का प्रदर्शन करके, पूंजीपति वर्ग सभ्यता, शांति और करुणा के पाखंडी मुखौटे को अचानक हटा देता है, जिसे वह असहनीय अहंकार के साथ पहनने का दिखावा करता है. अपने सामूहिक हत्यारे के असली चेहरे को छिपाने के लिए प्रचार की एक उग्र धारा बहा रहा है. बुचा और अन्य छोड़े गये इलाकों की तरह, इन गरीब रूसी बच्चों, १९,२० साल की उम्र के सिपाहियों को हत्यारों में बदल कर उन किशोरों के मासूम चेहरों को साथ किसी भी डरावनी द्रष्टि से ओझल नही किया जा सकता. हमारी नाराजी का वाजिब कारण है, जब ज़ेलेंस्की, "जनता का सेवक", “देश छोड़ने की मनाही” और 18 से 60 वर्ष के सभी पुरुषों की "सामान्य लामबंदी" का आदेश देकर बेशर्मी से पूरी आबादी को बंधक बना लेता है. बमवारी वाले अस्पतालों से, भयभीत और भूखे नागरिकों से,संक्षिप्त विवरणों के आधार पर ही फांसी की सजाओं से, किंडरगार्टन में दफन लाशों से और अनाथों के हृदय विदारक रोने से कोई कैसे भयभीत नहीं हो सकता है?
यूक्रेन में युद्ध,पूंजीवाद की अराजकता और बर्बरता में डूबने का एक घिनौना रूप है. हमारी आंखों के सामने एक भयावह तस्वीर उभर रही है: पिछले दो वर्षों से, कोविड महामारी ने इस प्रक्रिया को काफी तेज कर दिया है, जिसका यह स्वयं राक्षसी उत्पाद है। (1) आईपीसीसी प्रलय और अपरिवर्तनीय जलवायु परिवर्तन की भविष्यवाणी कर रहा है, जिससे वैश्विक स्तर पर मानवता और जैव विविधता को और खतरा है. प्रमुख राजनीतिक संकट कई गुना बढ़ रहे हैं, जैसा कि हमने संयुक्त राज्य में ट्रम्प की हार के बाद देखा; आतंकवाद का भूत समाज पर मंडरा रहा है, साथ ही, परमाणु युद्ध की जोखिम को इस युद्ध ने फिर से सामने ला कर खड़ा कर दिया है. इन सभी घटनाओं का एक साथ होना और जमा होना कोई दुर्भाग्यपूर्ण संयोग नहीं है; इसके विपरीत, यह इतिहास के दरबार में जानलेवा पूंजीवाद की ज़िंदा गवाह है.
यदि रूसी सेना ने सीमा पार कर ली है, तो यह निश्चित रूप से पश्चिम द्वारा घेर लिए गये” रूसी लोगों की रक्षा करने के लिए नहीं है, न ही रूसी भाषी यूक्रेनियन की "मदद" करने के लिए जो कि कीव सरकार के "नाज़ीकरण" के शिकार हैं. यूक्रेन पर बमों की बारिश एक "पागल निरंकुश" के "प्रलाप" का उत्पाद है, क्योंकि प्रेस हर बार दोहराता है कि नरसंहार को सही ठहराना आवश्यक है (2) और इस तथ्य को छुपाने के लिए कि यह संघर्ष, सभी की तरह अन्य, सबसे पहले, एक पतनशील और सैन्यीकृत पूंजीवादी समाज की अभिव्यक्ति है जिसके पास मानवता को देने के लिए इसके विनाश के अलावा कुछ शेष नहीं बचा है!
वे अपनी सीमाओं पर,हत्याओं, विनाश,अराजकता और अस्थिरता की परवाह नहीं करते: पुतिन और उनके गुट के लिए रूस और उनकी राजधानी में, उनके पारम्परिक क्षेत्र में पश्चिमी शक्तियों के प्रभाव के कारण कमजोर हुई उसकी हैसियत और हितों की रक्षा करना आवश्यक है .रूसी पूंजीपति अपने को “नाटो के पीड़ित“ देश के रूप में पेश कर सकता है.लेकिन पुतिन ने कभी भी धरती को जला डालने, नरसंहार के लिए क्रूरतम अभियान चलाने और अपने रास्ते में जो कुछ भी आये रूसी आवादी सहित, नष्ट करने में अपनी आक्रमक विफलताओं का सामना करने में संकोच नही किया, और बोल रहा है कि वह जो कुछ भी कर रहा है, वह रूस की रक्षा के लिए कर रहा है.
यूक्रेन में जेलेंस्की के दल, तथा सभी अन्य भ्रष्ट नेताओं और कुलीन वर्गों के दलों समेत किसी से कुछ भी उम्मीद नहीं की जा सकती. पूर्व मशखरा जेलेंस्की अब यूक्रेनी पूंजीपति वर्ग के हितों के लिए एक बेईमान चापलूसी करने वाले के रूप में अपनी भूमिका निभा रहा है. वह गहन राष्ट्रवादी अभियान के माध्यम से, वह आबादी को, कभी-कभी बल द्वारा, और भाड़े के सैनिकों और बंदूकधारियों के एक पूरे झुण्ड की भर्ती करने में सफल रहा है, जिन्हें "राष्ट्र के नायकों" के पद पर पदोन्नत किया गया है. ज़ेलेंस्की अब पश्चिमी राजधानियों का दौरा कर रहा है, वहां वह सभी सांसदों को संबोधित करते हुए अधिक से अधिक हथियारों और गोला-बारूद की डिलीवरी की भीख माँग रहा है, जहां तक "वीर यूक्रेनी प्रतिरोध" का सवाल है, यह वही करता है जो दुनियां की सभी सेनाएं करती हैं: यह नरसंहार करता है, लूटता है और कैदियों को पीटने या यहां तक कि फांसी देने में भी संकोच नहीं करता.
रूसी सेना द्वारा पथभ्रष्ट की गई सभी लोकतांत्रिक शक्तियाँ, रूसी सेना द्वार किये “युद्ध अपराधों “ के बारे में क्रोधित होने का दिखावा करती हैं . क्या गजब का पाखण्ड! पूरे इतिहास में,उन्होंने दुनियां के चारों कौनों में लाशों और विध्वंश के खंडहरों को खड़ा करना बंद नहीं किया है. “रूसी नरपिचाश “ द्वारा पीड़ित आबादी के भाग्य पर रोते हुए, पश्चिमी शक्तियां युद्ध के लिए अन्त्रिक्षयानिकी हथियार भारी मात्रा में मुहैया कराती है, प्रशिक्षण प्रदान करती हैं और यूक्रेनी सेना के हमलों और बमबारी के लिए सभी आवश्यक खुफिया जानकारी प्रदान करती हैं, जिसमें “नव-नाजी आज़ोव” रेजिमेंट भी शामिल हैं.
इससे भी आगे, अमेरिकी पूंजीपति वर्ग ने अपनी उत्तेजनाओं को बढ़ाकर, मास्को को एक युद्ध में धकेलने के लिए हर संभव प्रयास किया है जो पहले से ही खो गया था. अमेरिका के लिए, मुख्य बात यह है कि रूस का खून बहाया जाए और अमेरिकी सत्ता के मुख्य लक्ष्य चीन के आधिपत्य के ढोंग को तोड़ने के लिए स्वतंत्र हाथ रखा जाए, यह युद्ध संयुक्त राज्य अमेरिका को "न्यू सिल्क रोड" की महान चीनी साम्राज्यवादी परियोजना को रोकने और विफल करने की भी अनुमति देता है. अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए, "महान अमेरिकी लोकतंत्र" ने पूरी तरह से तर्कहीन और बर्बर सैन्य साहसिक कार्य को प्रोत्साहित करने में संकोच नहीं किया, और इसके परिणामस्वरूप पश्चिमी यूरोप के आसपास के क्षेत्र में अस्थिरता और अराजकता बढ़ रही है.
सर्वहारा वर्ग को एक पक्ष को दूसरे के विरुद्ध नहीं चुनना चाहिए! उसके पास बचाव के लिए कोई मातृभूमि नहीं है और उसे हर जगह राष्ट्रवाद और बुर्जुआ वर्ग के अंधराष्ट्रवादी उन्माद से लड़ना होगा! इसे युद्ध के खिलाफ अपने हथियारों और तरीकों से लड़ना होगा!
युद्ध के खिलाफ लड़ने के लिए हमें पूंजीवाद के खिलाफ लड़ना होगा
आज, यूक्रेन में ६०से अधिक वर्षों में स्टालिनवाद द्वारा कुचले गये सर्वहारा को एक बड़ी हार का सामना करना पड़ा है और उसे खुद को राष्ट्रवाद के सायरन से बहकाने की कोशिश की जा रही है. रूस में, भले ही सर्वहारा वर्ग ने खुद को थोड़ा अधिक मितभाषी दिखाया हो, अपने पूंजीपति वर्ग के जंगी आवेगों पर अंकुश लगाने में उसकी अक्षमता बताती है कि सत्ताधारी गुट बिना किसी श्रमिकों की प्रतिक्रियाओं से डरे 200,000 सैनिकों को मोर्चे पर भेजने में सक्षम क्यों था. ?
मुख्य पूंजीवादी शक्तियों में, पश्चिमी यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में, आज सर्वहारा वर्ग के पास न तो ताकत है और न ही राजनीतिक क्षमता है कि वह अपनी अंतरराष्ट्रीय एकजुटता और सभी देशों में पूंजीपति वर्ग के खिलाफ संघर्ष के माध्यम से सीधे इस संघर्ष का विरोध कर सके. फिलहाल यह भाईचारे की स्थिति में नहीं है और न, नरसंहार को रोकने के लिए बड़े पैमाने पर संघर्ष करने की स्थिति में .
हालाँकि, अपने परिचारक प्रदर्शनों के साथ प्रचार के वर्तमान ज्वार ने इसे यूक्रेनी समर्थक राष्ट्रवाद की रक्षा के मृत अंत में या शांतिवाद के झूठे विकल्प में ले जाने का जोखिम उठाया, पश्चिमी देशों का सर्वहारा वर्ग, वर्ग संघर्षों के अपने अनुभव और शीनिगन्स के साथ पूंजीपति वर्ग, अभी भी पूंजीवादी व्यवस्था के मृत्यु चक्र का मुख्य मारक बना हुआ है. पश्चिमी पूंजीपति वर्ग यूक्रेन में सीधे हस्तक्षेप न करने के लिए सावधान रहा है क्योंकि वह जानता है कि मजदूर वर्ग सैन्य टकराव में शामिल हजारों सैनिकों के दैनिक बलिदान को स्वीकार नहीं करेगा.
यद्यपि, इस युद्ध से भटका और अभी भी कमजोर हुआ ,पश्चिमी देशों का मजदूर वर्ग रूसी अर्थव्यवस्था के खिलाफ प्रतिबंधों और सैन्य बजट में भारी वृद्धि से उत्पन्न नए बलिदानों के लिए अपने प्रतिरोध को विकसित करने की क्षमता रखता है: सरपट दौड़ती मुद्रास्फीति, बढ़ती लागत रोजमर्रा की जिंदगी के अधिकांश उत्पादों और इसके रहने और काम करने की स्थिति के खिलाफ अन्य सभी हमलों में तेजी लाने के लिए सर्वहारा वर्ग पहले से ही पूंजीपति वर्ग द्वारा मांगे गए सभी बलिदानों का विरोध कर सकता है और करना चाहिए. अपने संघर्षों के माध्यम से ही सर्वहारा वर्ग शासक वर्ग के खिलाफ शक्ति संतुलन बनाने में सक्षम होगा और इस तरह अपनी जानलेवा बाजू को रोक सकेगा! मजदूर वर्ग के लिए, लम्बे समय में, सभी धन का उत्पादक,समाज में एकमात्र ताकत है जो पूंजीवाद को उखाड़ फेंकने का रास्ता अपनाकर युद्ध को समाप्त करने में सक्षम है.
इसके अलावा, यह इतिहास ने हमें दिखाया है जब 1917 में रूस में और अगले वर्ष जर्मनी में सर्वहारा वर्ग ने एक विशाल क्रांतिकारी लहर में युद्ध को समाप्त कर दिया और उससे पहले, जैसे-जैसे विश्व युद्ध छिड़ा, क्रांतिकारी सर्वहारा अन्तर्राष्ट्रीयतावाद के प्राथमिक सिद्धांत की अडिग रक्षा करते हुए अपने पदों पर डटे रहे. अब यह क्रान्तिकारियों की ज़िम्मेदारी है कि वे मज़दूर आन्दोलन के अनुभव को आगे बढ़ाएँ. युद्ध की स्थिति में, उनकी पहली जिम्मेदारी एक स्वर से बोलना, अंतर्राष्ट्रीयता के झंडे को मजबूती से लहराना है, केवल वही जो पूंजीपति वर्ग को फिर कांपने की स्थिति में ला खडा कर सकता है!
आई.सी.सी.. 4.4.22
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1) चीन में, महामारी एक मजबूत वापसी कर रही है (जैसा कि विशेष रूप से शंघाई में दिखाया गया है)। यह दुनिया के बाकी हिस्सों में भी नियंत्रण में रहने से बहुत दूर है.
2) बेशक, यह सच है कि हिटलर से असद तक, हुसैन, मिलोसेविक, गद्दाफी या किम जोंग-उन के माध्यम से, दुश्मन वर्ग के "नेता" अक्सर गंभीर मनोवैज्ञानिक विकारों से पीड़ित होते हैं.
शनिवार से, इजराइल और गाजा निवासियों के ऊपर हुई आग और स्टील की वारिश की बाढ़ आ गई है. एक ओर, हमास, दूसरी तरफ इजराइली सेना के बीच फंसे नागरिकों के ऊपर बमबारी की जा रही है, गोलिया से भूना जा रहा है, जिसमें हजारों लोग अपनी जान गँवा चुके हैं. तमाम लोग बंधक बनाये गये हैं सो अलग.
दुनियां भर का पूंजीपति वर्ग, लोगों के सामने सिर्फ अपना-अपना पक्ष सुनाने, इजराइली उत्पीडन के खिलाफ, फिलस्तीनी प्रतिरोध तथा फिलिस्तीनी आतंकवाद पर इजराइली प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए गुहार लगा रहा है. इनमें से प्रत्येक, युद्ध को उचित ठहराने के लिए दूसरे को बर्वर बता कर उसकी निंदा करता है. इजराइली राज्य दशकों से फिलिस्तीनी लोगों पर नाकेबंदी, उत्पीडन, चौकियों से घेराबन्दी और अपमान के साथ अत्याचार कर रहा है, इसलिए बदला लेना वैध्य होगा. फिलिस्तीनी सन्गठन भी चाकू और बमबारी से निदोष लोगों की हत्या कर रहे हैं. प्रत्येक पक्ष एक दूसरे का खून बहाने का आव्हान कर रहा है. यह घातक तर्क ही युद्ध को उचित ठहराने का तर्क है. यह हमारे शोषक और उनके राज्य हैं जो हमेशा अपने हितों के लिए अवैध्य, निर्दयी युद्ध लड़ते हैं, और हम शोषित वर्ग, हमेशा अपनी जान देकर इसकी कीमत चुकाते हैं.
इसमें हम सर्वहाराओं के लिए चुनने का कोई पक्ष नहीं, हमारी कोई मात्रभूमि नहीं है, रक्षा के लिए हमारा कोई राष्ट्र नहीं है! सीमा के दोनों ओर हम वर्ग भाई हैं! हमारा न फिलिस्तीन न इजराइल!
बीसवीं सदी युद्धों की सदी थी, मानव इतिहास में सबसे क्रूर युद्ध इसी सदी में लडे गये, लेकिन उनमें से किसी ने भी मजदूरों के हितों की पूर्ती नहीं की. उतरार्ध, को हमेशा अपने शोषकों के हितों के लिए “ पित्रभूमि,” “सभ्यता”, “लोकतंत्र” यहाँ तक कि “समाजवादी पित्रभूमि “ (कुछ के रूप में) की रक्षा के नाम पर मारे जाने को शहीद हो जाना कहा जाता था. (स्तालिन और गुलाके सोवियत संघ को ऐसे ही प्रस्तुत किया गया.)
आज मध्य पूर्व में एक नया युद्ध छिड़ गया है. दोनों तरफ से, सत्तारूढ़ गुट,चाहे वे यहूदी हों अथवा इजराइली, शोषितों से “मात्रभूमि की रक्षा” करने का आव्हान कर रहे हैं. जहाँ, इजराइल में यहूदी श्रमिकों का यहूदी पूंजीपतियों द्वारा शोषण किया जाता है, वहीँ फिलिस्तीनी मजदूरों का यहूदी पूंजीपतियों या अरब पूंजीपतियों द्वारा लूटा जाता है . (और अक्सर यहूदीपूंजीपतियों की तुलना में बहुत अधिक क्रूरता से, फिलिस्तीनी कम्पनियों में, श्रम क़ानून अभी भी पूर्व ओटोमन साम्राज्य के ही लागू हैं)
यहूदी मजदूरों ने 1948 के बाद पांच युद्धों में पूंजीपति वर्ग के युद्ध के पागलपन की भारी कीमत चुकाई है. जैसे ही वे विश्व युद्ध से तबाह यूरोप के याताना ग्रहों और यहूदी बस्तियों से बाहर आये, उन लोगों के दादा-दादी जो आज त्साह्ल (इजराइल के रक्षा बल) की बर्दी पहन कर इजराइल और अर्ब देशों की बीच युद्ध में शामिल हो गये है, फिर से उनके माता- पिता ने उनकी कीमत 67,,73, और 82 के युद्धों में खून से चुकाई. ये सैनिक भयानक जानवर नहीं हैं जिनका एकमात्र विचार फिलिस्तीनी बच्चों को मारना है. वे युवा सिपाही हैं, जिनमें अधिकतर मजदूरों की ही संतानें हैं, जो भय या घ्रणा से मर रहे हैं, जिन्हें पुलिस के रूप में कार्य करने के लिए मजबूर किया जाता है और जिनके सिर अरबों की “बर्बरता” के बारे में प्रचार से भरे हुए हैं.
फिलिस्तीनी मजदूर पहले से ही भयानक युद्ध की भयानक कीमत चुका चुके हैं, 1948 में अपने नेताओं द्वारा छेड़े गये युद्ध के कारण उन्हें अपने घरों से निकाल दिया गया था, नतीजतन, उन्हें अपना अधिकाँश जीवन यातना ग्रहों में बिताया है, जहाँ उन्हें किशोरों के रूप में गफा फतह, पीएएलपी या हमास मिलिशिया में भर्ती किया गया था. फिलिस्तेनियों का सबसे बड़ा नरसंहार इजराइल की सेनाओं द्वारा नहीं किया गया था, बल्कि उन देशों द्वारा किया गया था जहाँ वे तैनात थे, जैसे कि जार्डन लेबनान: सितम्बर 1970 (ब्लैक सितम्बर) में “लिटिल किंग” हुसैन ने उन्हें सामोहिक रूप से संहार कर दिया था. उनकी उस स्थिति में ही सामूहिक हत्या की गई थी जब उन्होंने जान बचाने के लिए इजराइल में शरण ली थी, सितम्बर 1982 में, अरब मिलिशिया ( माना जाता है कि ईसाई और इजराइल से संबद्ध) ने बैरुत में सबरा और शतील शिविरों में उनका नरसंहार किया.
आज, “ फिलिस्तीनी मात्रभूमि “के नाम पर, अरब मजदूरों को एक बार फिर इजरायलियों के खिलाफ लामबंद किया जा रहा है, जिनमें अधिकांश इजराइली मजदूर हैं, जैसा की “ वादा की भूमि की “ रक्षा के लिए बाद वाले को मारने के लिए कहा जा रहा है.
राष्ट्रवादी प्रचार, दोनों ओर से घ्रणित रूप से बह रहा है, जो दिमाग को सुन्न करने वाला प्रचार मनुष्यों को क्रूर जानवरों में बदलने के लिए बनाया गया है, इजराइली और अरब पूंजीपति आधी सदी से भी अधिक समय से इसे भड़का रहे हैं. इजराइली और अरब श्रमिकों से लगातार कहा जा रहा है कि उन्हें पूर्वजों की भूमि की रक्षा करनी होगी. पूर्व के लिए, समाज के व्यवस्थित सैन्यीकरण के लिए उन्हें “अच्छे सनिकों “ में बदलने के लिए घेरने का मनोविकार विकसित किया गया है. उत्तरार्ध के लिए, घर खोजने के लिए इजराइल के साथ युद्ध करने की इच्छा अंतरनिहित थी. ऐसा करने के लिए, अरब देशों के नेताओं, जहां वे शरणार्थी थे, ने उन्हें दशकों तक यातना शिविरों में असहनीय जीवन स्थितियों में रखा.
राष्ट्रवाद, पूंजीपति वर्ग द्वारा आविष्कृत सबसे बुरी और घ्रणित विचारधाराओं में से एक है. यह वह विचारधरा है जो इसे शोषकों और शोषितों के बीच के विरोध छिपाने, उन सभी को एक झंडे के नीचे एकजुट करने की अनुमति देती है, जिसके लिए शोषितों को शाशक वर्ग के हितों की सेवा और विशेषाधिकारों की रक्षा में होम दिया जायेगा.
सबसे बढ़ कर, इस युद्ध में धार्मिक प्रचार का जहर मिलाया गया है, जो सबसे अधिक विक्षिप्ति और कट्टरता का उन्माद पैदा करता है. यह यहूदियों को अपना खून से सुलेमान के मन्दिर की दीवार रोती हुई दीवार की रक्षा करने के लिए कहा जाता है. मुसलमानों को उमर की मस्जिद और इस्लाम के पवित्र स्थानों के लिए अपनी जान देने को कहा जाता है. आज इजराइल और फिलस्तीन में जो कुछ हो रहा है वह स्पष्ट रूप से यह पुष्टि करता है कि धर्म” लोगों के लिए अफीम है,” जैसा कि 19 वीं सदी के क्रांतिकारियों ने कहा था. धर्म का उद्द्येश्य शोषितों पीड़ितों को सांत्वना है, जिनके लिए जीवन नरक है, उनसे कहा जाता है कि उन्हें अपनी म्रत्यु के बाद खुशियाँ मिलेंगी, बशर्ते वे जानते हों कि उनका उद्धार कैसे अर्जित किया जायेगा. और मुक्ति का आदान- प्रदान बलिदान, समर्पण यहाँ तक कि” “पवित्र युद्ध” की सेवा में अपना जीवन अर्पित करने के लिए कहा जाता है.
वास्तविकता यह है कि, 21वीं सदी के आरम्भ में भी, पुरातनता और मध्य युग से जुडी विचारधाराएँ और अंधविश्वास अभी भी मनुष्यों को अपना जीवन का बलिदान देने के लिए व्यापक रूप से प्रयोग किये जाते हैं, यह उस बर्बरता की स्थिति के बारे में बतलाता है जिसमें मध्य पूर्व भी शामिल है. दुनियां के कई अन्य भाग इस अंधविस्वास में डूबे हुए हैं.
शोषित लोग आज हजारों की तादात में अपनी जान गंवा रहे हैं. यह यूरोप का ही पूंजीपति वर्ग था, जिसमें विशेष रूप से, ब्रिटिश पूंजीपति वर्ग ने 1917 की अपनी “ बालफोर घोषणा” के साथ, विभाजित करने और जीतने के लिए, फिलिस्तीन में एक यहूदी घर के निर्माण की अनुमति दी, इस प्रकार ज़योनीद्वाद के अंधराष्ट्रवादी यूटोपिया को बढ़ावा दिया, ये वही पूंजीपति थे जिन्होंने विश्व युद्ध के बाद, जिसे उन्होंने हाल ही में जीता था, शिविरों को छोड़ने अथवा अपने मूल क्षेत्र से दूर भटकने के बाद हजारों मध्य यूरोपीय यहूदियों को फिलिस्तीन ले जाने की व्यवस्था की थी .इसका मतलब ये था कि उन्हें घर ले जाने की आवश्यकता नहीं थी.
यह वही पूंजीपति वर्ग था, जो पहले ब्रिटिश और फ्रांसीसी, फिर अमेरिकन पूंजीपति वर्ग, जिन्होंने शीत युद्ध के दौरान इस क्षेत्र में पश्चिमी गुट की भूमिका देने के लिए इजराइल राज्य को हथियारों से लैस किया था, जबकि सोवित संघ, अपनी ओर से, अपने अरब सहयोगियों को यथासंभव सशस्त्र किया. इन महान “प्रायोजकों “के बिना 1956, 67, 73, और 82 के युद्ध नहीं हो सकते थे.
आज, लेबनान, ईरान और संभवतया रूस के पूंजीपति हमास को हथियार दे रहे हैं और उसे लड़ने के लिए आगे धकिया रहे हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका ने हाल ही में भूमध्य सागर में अपना सबसे बड़ा विमान वाहक पोत भेजा है और इजराइल को नये हथियारों की आपूर्ति की घोषणा की है. यथार्थ में, इस युद्ध और इन नर संहारों में सभी प्रमुख शक्तियाँ प्रत्यक्ष रूप से भाग ले रही हैं.
इस नये युद्ध से पूरे मध्य पूर्व में अराजकता फैलने का खतरा बढ़ गया है. दुनियां के इस कोने को शोक में डुबाने वाला यह अनगिनत खूनी टकराव नहीं है. हत्याओं के विशाल पैमाने से पता चलता है कि बर्बरता एक नये स्तर पर पहुंच गयी है: एक उतसव में नृत्य कर रहे युवाओं को मशीनगनों से उड़ा दिया गया, महिलाओं और बच्चों को सडक पर बेरहमी से कुचल डाला गया जिसका लक्ष्य, पूंजीवाद की इच्छा को पूरा करने के अलावा कोई अन्य उद्दयेश नहीं था. अंधे प्रतिशोध के लिए, पूरी आबादी को खत्म करने लिए बमों का जाल बिछाया गया, गाज़ा में दो मिलियन लोगों को पानी, गैस, भोजन सब कुछ से वंचित कर दिया गया. इन सभी अत्याचारों, इन सभी अपराधों के लिए कोई सच्चा तर्क नहीं है! दोनों पक्ष अत्यंत भयावह और अतार्किक जानलेवा रोष में डूबे हुए हैं.
लेकिन, इससे भी अधिक गम्भीर बात यह है: यह भानुमती का पिटारा फिर कभी बंद नहीं होगा. इराक,अफगानिस्तान, सीरिया और लीबिया की तरह, कोई पीछे नहीं हटेगा, कोई “शान्ति की ओर वापसी” नहीं होगी. पूँजीवाद मानवता के बड़े हिस्से को युद्ध, म्रत्यु और समाज के विघटन में घसीट रहा है. यूक्रेन मे युद्ध लगभग दो वर्षों से चल रहा है और अंतहीन नरसंहार में फंसा हुआ है. नागोर्नो-काराबाख में भी नरसंहार चल रहा है और पूर्वी यूगोस्लाविया के राष्ट्रों के बीच पहले से ही एक नये युद्ध का खतरा मडरा रहा है.
पूंजीवाद युद्ध है.
सभी देशों के मजदूरों को किसी न किसी पूंजीवादी खेमे का पक्ष लेने से इंकार कर देना चाहिए. विशेष रूप से, उन्हें उन वामपंथी और अति वामपंथी पार्टियों की बयानबाजी से मूर्ख बनने से इंकार कर देना चाहिए जो मजदूर वर्ग का होने का दावा करते हैं और जो श्रमिकों को उनसे अपने अधिकार की तलाश में एक “मात्रभूमि :फिलिस्तीनी जनता के साथ एकजुटता दिखाने के लिए कहती हैं. फिलिस्तीनी मात्रभूमि, कभी भी शोषक वर्ग की सेवा में, पुलिस और जेलों के साथ इसी जनता पर अत्याचर करने वाले एक बुर्जुआ राज्य के अलावा और कुछ नहीं होगा. सबसे उन्नत पूंजीवादी दशों के मजदूरों की एकजुटता, “फिलिस्तीनों” के पास नहीं जाती, जैसे कि वह “इजराइलियों” के पास नहीं जाती है, जिनके बीच शोषक और शोषित हैं. यह इजराइल और फिलिस्तीनी के श्रमिकों औए बेरोजगारों को जाता है (जो, इसके अलावा, पहले से ही अपने शोषकों के खिलाफ संघर्ष नेतृत्व कर चुके हैं, भले ही उनका ब्रेन- व्वास किया गया हो), ठीक उसी तरह जैसे यह दुनियां के अन्य सभी देशों के श्रमिकों को जाता है. वे, जो सबसे अच्छी एकजुटता पेश कर सकते हैं, वह निश्चित रूप से उनके राष्ट्रवादी भ्रमों को प्रोत्साहित करना नहीं है.
इस एकजुटता का अर्थ है, सबसे पहले, सभी युद्धों के लिए जिम्मेदार पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ अपनी लड़ाई को विकसित करना,अपने स्वयं के पूंजीपति वर्ग के खिलाफ भी. श्रमिक वर्ग को वैश्विक स्तर पर पूँजीवाद को उखाड़ फेंक कर शांति हासिल करनी होगी, और आज इसका अर्थ है, एक वर्ग के इलाके में अपने संघर्षों को एक दुर्जेय संकट में एक प्रणाली द्वारा उस पर लगाये जा रहे कठोर आर्थिक हमलों के खिलाफ, अपने संघर्षों को विकसित करना होगा.
राष्ट्रवाद के खिलाफ, उन युद्धों के खिलाफ जिनमें आपके तुम्हें घसीटना चाहते हैं:
सभी देशों के मजदूरों एक हो जाओ!
आईसीसी 9 अक्टूबर 2023
इंटरनेशनलिस्ट कम्युनिस्ट टेंडेंसी ने हाल ही में नो वॉर बट द क्लास वॉर कमेटियों (एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू) के साथ अपने अनुभव पर एक बयान प्रकाशित किया है, जिसे उन्होंने यूक्रेन में युद्ध की शुरुआत में शुरू किया था[1]। जैसा कि वे कहते हैं, "राजनीतिक ढांचे के वास्तविक वर्ग आधार को उजागर करने के लिए साम्राज्यवादी युद्ध जैसा कुछ नहीं है, और यूक्रेन पर आक्रमण ने निश्चित रूप से ऐसा किया है", यह समझाते हुए कि स्टालिनवादियों, ट्रॉट्स्कीवादियों ने एक बार फिर दिखाया है कि वे पूँजीकी शिविर से संबंधित हैं - चाहे यूक्रेन की स्वतंत्रता का समर्थन करके, या यूक्रेन के 'डी-नाज़ीफिकेशन' के बारे में रूसी प्रचार के लिए रैली करके, वामपंथी खुले तौर पर मजदूर वर्ग से पूंजीवादी युद्ध में एक पक्ष या दूसरे का समर्थन करने का आह्वान कर रहे हैं जो गहनता को व्यक्त करता है ग्रह पर सबसे बड़े साम्राज्यवादी शार्क के बीच प्रतिद्वंद्विता और इस प्रकार पूरी मानवता के लिए विनाशकारी परिणामों का खतरा है। आईसीटी यह भी नोट करता है कि अराजकतावादी आंदोलन उन लोगों के बीच गहराई से विभाजित हो गया है जो यूक्रेन की रक्षा के लिए आह्वान करते हैं और जिन्होंने दोनों शिविरों को खारिज करने की अंतर्राष्ट्रीयवादी स्थिति बनाए रखी है। इसके विपरीत, आईसीटी का कहना है कि "दुनिया भर में कम्युनिस्ट वामपंथी मजदूर वर्ग के अंतरराष्ट्रीय हितों के पीछे मजबूती से खड़े रहे हैं और इस युद्ध की निंदा की है।"
अब तक तो सब ठीक है। लेकिन हम तब गहराई से भिन्न होते हैं जब वे तर्क देते हैं कि "हमारी ओर से, आईसीटी ने अन्य अंतर्राष्ट्रीयवादियों के साथ काम करने की कोशिश करके अंतर्राष्ट्रीयतावादी स्थिति को एक स्तर आगे ले लिया है जो संगठित नहीं होने पर विश्व श्रमिक वर्ग के लिए खतरों को देख सकते हैं। यही कारण है कि पूंजीवाद हर जगह श्रमिकों के लिए क्या तैयारी कर रहा है, इस पर प्रतिक्रिया देने के लिए हम दुनिया भर में स्थानीय स्तर पर समितियां विकसित करने की पहल में शामिल हुए हैं।
विवाद की आवश्यकता
हमारे विचार में, नो वॉर बट क्लास वॉर समितियों के गठन के लिए आईसीटी का आह्वान अंतर्राष्ट्रीयता में एक "कदम आगे" या अंतर्राष्ट्रीयवादी कम्युनिस्ट ताकतों के एक ठोस पुनर्समूहन की दिशा में एक कदम है। हमने पहले ही इस पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करते हुए कई लेख लिखे हैं, लेकिन आईसीटी ने उनमें से किसी का भी जवाब नहीं दिया है, आईसीटी के बयान में एक रवैया उचित है जो इस बात पर जोर देता है कि वे "वही पुराने विवाद" में शामिल नहीं होना चाहते हैं। उन लोगों के साथ जिनके बारे में वे सोचते हैं कि उन्होंने अपनी स्थिति को गलत समझा है। लेकिन कम्युनिस्ट वामपंथ की परंपरा, जो मार्क्स और लेनिन से विरासत में मिली है और बिलान के पन्नों में जारी है, यह मान्यता है कि राजनीतिक स्पष्टीकरण की किसी भी प्रक्रिया के लिए सर्वहारा तत्वों के बीच विवाद अपरिहार्य है। और वास्तव में, आईसीटी कथन में एक छिपा हुआ विवाद है, मुख्य रूप से आईसीसी के साथ - लेकिन अपने स्वभाव से ऐसे छिपे हुए विवाद, जो विशिष्ट संगठनों और उनके लिखित बयानों का जिक्र करने से बचते हैं, कभी भी स्थिति का वास्तविक और ईमानदार टकराव नहीं कर सकते हैं।
NWBCW पर अपने बयान में, ICT का दावा है कि उसकी पहल 1915 के ज़िमरवाल्ड सम्मेलन द्वारा शुरू की गई प्रक्रिया में वामपंथी धारा के दृष्टिकोण के साथ निरंतरता में है, पहले से ही "NWBCW और 'रियल' लेख में इसी तरह का दावा किया गया है 1915 का अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो': "हम मानते हैं कि NWBCW पहल ज़िमरवाल्ड लेफ्ट के सिद्धांतों के अनुरूप है"।[2]
लेकिन ज़िम्मरवाल्ड वामपंथियों और सबसे ऊपर लेनिन की गतिविधियों की विशेषता क्रांतिकारी ताकतों को ख़त्म करने के उद्देश्य से एक निरंतर विवादास्पद थी। ज़िमरवाल्ड ने युद्ध के विरोध में श्रमिक आंदोलन में विभिन्न प्रवृत्तियों को एक साथ लाया, और कई सवालों पर काफी मतभेद थे; वामपंथियों को पूरी तरह से पता था कि युद्ध के खिलाफ एक आम स्थिति, जैसा कि ज़िमरवाल्ड घोषणापत्र में व्यक्त किया गया था, पर्याप्त नहीं थी। इस कारण से, ज़िमरवाल्ड वामपंथियों ने ज़िमरवाल्ड और किएंथल सम्मेलनों में अन्य धाराओं के साथ अपने मतभेदों को नहीं छिपाया, बल्कि साम्राज्यवादी युद्ध के खिलाफ अपनी लड़ाई में सुसंगत न होने के लिए इन धाराओं की खुले तौर पर आलोचना की। इस बहस में और इसके माध्यम से लेनिन और उनके आसपास के लोगों ने एक ऐसा केंद्र बनाया जो कम्युनिस्ट इंटरनेशनल का भ्रूण बन गया।
NWBCW पहल की हमारी पिछली आलोचनाएँ
जैसा कि पाठक यूक्रेन में युद्ध के जवाब में कम्युनिस्ट वामपंथ की संयुक्त घोषणा के लिए आईसीसी के आह्वान के संबंध में आईसीटी के साथ हमारे पत्राचार के प्रकाशन से देख सकते हैं, की आईसीटी द्वारा हस्ताक्षर करने से इनकार करने और NWBCW को एक प्रकार के "प्रतिद्वंद्वी" के रूप में बढ़ावा देने के बारे में इस परियोजना ने इस महत्वपूर्ण क्षण में एक साथ कार्य करने की कम्युनिस्ट वामपंथ की क्षमता को गंभीर रूप से कमजोर कर दिया। 1980 के दशक की शुरुआत में कम्युनिस्ट वामपंथ के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के टूटने के बाद पहली बार इसने अपनी सेनाओं के एक साथ आने की संभावना को ख़त्म कर दिया। आईसीटी ने इस पत्राचार को बंद करने का निर्णय लिया[3]।
हमने 1990 के दशक में अराजकतावादी परिवेश में एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू के वास्तविक इतिहास का पता लगाने वाला एक लेख भी प्रकाशित किया है[4]। इसका मतलब यह था कि इन समूहों में सभी प्रकार के भ्रम थे, लेकिन हमारे विचार में उन्होंने कुछ वास्तविक्ता व्यक्त की - मध्य पूर्व और बाल्कन में युद्धों के खिलाफ बड़े पैमाने पर लामबंदी की आलोचना करने वाले एक छोटे से अल्पसंख्यक की प्रतिक्रिया, लामबंदी जो स्पष्ट रूप से वामपंथी और शांतिवादी धरातल पर थी । इस कारण से, हमने महसूस किया कि कम्युनिस्ट वामपंथियों के लिए इन संरचनाओं में हस्तक्षेप करना महत्वपूर्ण था ताकि उनके भीतर स्पष्ट अंतर्राष्ट्रीयवादी पदों की रक्षा की जा सके। इसके विपरीत, यूक्रेन युद्ध के जवाब में ऐसी बहुत कम शांतिवादी और अराजकतावादी माहौल की लामबंदी हुई है, जैसा कि हम पहले ही देख चुके हैं, इस सवाल पर गहराई से विभाजित है। इस प्रकार हम विभिन्न एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू समूहों में बहुत कम देखते हैं जिन्होंने हमारे लेख के निष्कर्ष पर सवाल उठाया है: "जिन समूहों के बारे में हम कुछ जानते हैं उनसे हमें यह धारणा मिलती है कि वे मुख्य रूप से आईसीटी या उसके सहयोगियों के 'डुप्लिकेट' हैं"। हमारी राय में, यह दोहराव क्रांतिकारी राजनीतिक संगठन के कार्य और संचालन के तरीके और उन अल्पसंख्यकों के साथ इसके संबंधों के बारे में कुछ गंभीर असहमति को उजागर करता है जो खुद को सर्वहारा धरातल में रखते हैं, और वास्तव में पूरे वर्ग के साथ। यह असहमति फ़ैक्टरी समूहों और संघर्ष समूहों के बारे में पूरी बहस पर आधारित है, लेकिन हमारा इस लेख में इसे विकसित करने का इरादा नहीं है[5]।
अधिक महत्वपूर्ण - लेकिन वास्तविक आंदोलन की उत्त्पत्ति और राजनीतिक अल्पसंख्यकों के कृत्रिम आविष्कारों के बीच अंतर के सवाल से भी जुड़ा हुआ है - हमारे लेख का आग्रह है कि एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू पहल आज वर्ग संघर्ष की गतिशीलता के गलत आकलन पर आधारित है। वर्तमान परिस्थितियों में, हम यह उम्मीद नहीं कर सकते हैं कि वर्ग आंदोलन सीधे युद्ध के खिलाफ बल्कि आर्थिक संकट के प्रभाव के खिलाफ विकसित होगा - एक विश्लेषण जो हमें लगता है कि संघर्षों के अंतर्राष्ट्रीय पुनरुद्धार द्वारा काफी हद तक सत्यापित किया गया है जो ब्रिटेन में हड़ताल आंदोलन से शुरू हुआ था। 2022 की गर्मी और जो, अपरिहार्य उतार-चढ़ाव के साथ, अभी भी ख़त्म नहीं हुई है। यह आंदोलन "जीवनयापन की लागत के संकट" की सीधी प्रतिक्रिया है और हालांकि इसमें व्यवस्था के गतिरोध और युद्ध की ओर इसके ड्राइव के गहरे और अधिक व्यापक सवाल के बीज शामिल हैं, हम अभी भी उस बिंदु से बहुत दूर हैं। यह विचार कि एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू समितियाँ कुछ अर्थों में युद्ध के प्रति प्रत्यक्ष वर्ग प्रतिक्रिया के लिए शुरुआती बिंदु हो सकती हैं, केवल वर्तमान संघर्षों की गतिशीलता की गलत व्याख्या को जन्म दे सकती हैं। यह एक सक्रिय नीति का द्वार खोलता है, जो बदले में, पूंजी के वामपंथ की "अभी कुछ करो" स्थिति से खुद को अलग करने में सक्षम नहीं होगी। आईसीटी का बयान इस बात पर जोर देता है कि इसकी पहल सभी राजनीतिक से ऊपर है और यह सक्रियता और तात्कालिकता का विरोध करती है, और उनका दावा है कि पोर्टलैंड और रोम में एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू समूहों द्वारा खुले तौर पर लिया गया सक्रिय निर्देश पहल की वास्तविक प्रकृति की गलतफहमी पर आधारित है। . बयान के अनुसार, “जिन लोगों ने यह समझे बिना कि यह वास्तव में क्या था, एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू पर हस्ताक्षर किए, या बल्कि, जिन्होंने इसे अपनी पिछली कट्टरपंथी सुधारवादी गतिविधि के विस्तार के रूप में देखा। यह पोर्टलैंड और रोम दोनों में हुआ जहां कुछ तत्वों ने एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू को एक ऐसे वर्ग को तुरंत संगठित करने के रूप में देखा जो अभी भी चार दशकों के पीछे हटने से उबर रहा था, और जो मुद्रास्फीति के खिलाफ लड़ाई में अपने पैर जमाना शुरू ही कर रहा था। उनके तत्कालवादी और अति-सक्रिय दृष्टिकोण के कारण ही उन समितियों का अंत हुआ।'' हमारे लिए, इसके विपरीत, इन स्थानीय समूहों ने आईसीटी से बेहतर समझा कि एक पहल जो युद्ध के खिलाफ किसी भी वास्तविक आंदोलन की अनुपस्थिति में शुरू की गई है - यहां तक कि छोटे अल्पसंख्यकों के बीच भी - केवल शून्य से एक आंदोलन बनाने के प्रयासों में गिर सकती है .
एक नया "संयुक्त मोर्चा"?
हमने उल्लेख किया है कि कम्युनिस्ट वामपंथ का इतालवी गुट, जिसने बिलान को प्रकाशित किया था, ने सर्वहारा राजनीतिक संगठनों के बीच कठोर सार्वजनिक बहस की आवश्यकता पर जोर दिया था। यह पुनर्समूहन के प्रति उनके सैद्धांतिक दृष्टिकोण का एक केंद्रीय पहलू था, विशेष रूप से उस समय के ट्रॉट्स्कीवादियों और पूर्व-ट्रॉट्स्कीवादियों के संलयन और पुनर्समूहन का सहारा लेने के अवसरवादी प्रयासों का विरोध करना जो मौलिक सिद्धांतों के आसपास गंभीर बहस पर आधारित नहीं थे। हमारे विचार में, NWBCW पहल एक प्रकार के "फ्रंटिस्ट" तर्क पर आधारित है जो केवल असैद्धांतिक और यहां तक कि विनाशकारी गठबंधनों को जन्म दे सकता है।
बयान में स्वीकार किया गया है कि खुले तौर पर कुछ वामपंथी समूहों ने संघर्ष में एक पक्ष या दूसरे के लिए अपने आवश्यक समर्थन को छिपाने के लिए "युद्ध नहीं बल्कि वर्ग युद्ध" के नारे का अपहरण कर लिया है। आईसीटी का कहना है कि वे ऐसे "झूठे झंडे" अभियानों को नहीं रोक सकते। लेकिन यदि आप पेरिस एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू समिति की उद्घाटन बैठक पर हमारा लेख पढ़ें[6], तो आप पाएंगे कि न केवल प्रतिभागियों का एक बड़ा हिस्सा एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू बैनर के तहत खुले तौर पर वामपंथी "कार्रवाई" की वकालत कर रहा था, बल्कि यह भी कि एक ट्रॉट्स्कीवादी समूह जो यूक्रेन के आत्मनिर्णय के अधिकार की रक्षा करने वाले मैटियेर एट रेवोल्यूशन को वास्तव में बैठक में आमंत्रित किया गया था। इसी तरह, ऐसा लगता है कि रोम एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू समूह इटली में आईसीटी के सहयोगी (जो बैटलग्लिया कोमुनिस्टा प्रकाशित करता है) और एक विशुद्ध वामपंथी समूह के बीच गठबंधन पर आधारित है।[7]
हमें यह जोड़ना चाहिए कि पेरिस बैठक का प्रेसीडियम दो तत्वों से बना था, जिन्हें 2000 के दशक की शुरुआत में ऐसी सामग्री प्रकाशित करने के लिए आईसीसी से निष्कासित कर दिया गया था, जो हमारे साथियों को राज्य के दमन के लिए उजागर करती है - एक गतिविधि जिसे हमने मुखबिर के रूप में निंदा की है। इनमें से एक तत्व कम्युनिस्ट वामपंथ के अंतर्राष्ट्रीय समूह का सदस्य है, एक ऐसा समूह जो न केवल राजनीतिक परजीवीवाद की एक विशिष्ट अभिव्यक्ति है, बल्कि जिसकी स्थापना इस पुलिस जैसे व्यवहार के आधार पर की गई थी और इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीयवादी कम्युनिस्ट शिविर इसकी कोई जगह नहीं होनी चाहिए। दूसरा तत्व अब वास्तव में फ्रांस में आईसीटी का प्रतिनिधि है। जब आईसीटी ने संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया, तो उन्होंने तर्क दिया कि कम्युनिस्ट वामपंथ की इसकी परिभाषा बहुत संकीर्ण थी, मुख्यतः क्योंकि इसमें आईसीसी द्वारा परजीवी के रूप में परिभाषित समूहों को शामिल नहीं किया गया था। वास्तव में, यह बहुत स्पष्ट रूप से दिखाया गया है कि आईसीटी सार्वजनिक रूप से आईसीसी के बजाय आईजीसीएल जैसे परजीवी समूहों के साथ जुड़े रहना पसंद करेगा, और एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू समितियों के माध्यम से इसकी वर्तमान नीति का ऐसे समूहों को मौका देने के अलावा कोई अन्य परिणाम नहीं हो सकता है। सम्मानजनकता का प्रमाण पत्र और आईसीसी को अछूत बनाने के उनके लंबे समय से चले आ रहे प्रयास को मजबूत करने के लिए - सही व्यवहार के स्पष्ट सिद्धांतों की रक्षा के कारण, जिसका उन्होंने बार-बार उल्लंघन किया है।
कुछ मामलों में, जैसे कि ग्लासगो में, NWBCW समूह अराजकतावादी कम्युनिस्ट समूह जैसे अराजकतावादी समूहों के साथ अस्थायी गठबंधन पर आधारित प्रतीत होते हैं, जिन्होंने यूक्रेन युद्ध पर अंतर्राष्ट्रीयवादी रुख अपनाया है, लेकिन जो ऐसे समूहों से जुड़े हुए हैं जो बुर्जुआ इलाके में हैं (उदाहरण के लिए यूके में प्लान सी)। और हाल ही में एसीजी ने दिखाया है कि वह आईसीसी जैसे अंतर्राष्ट्रीयवादी संगठन के साथ चर्चा करने के बजाय ऐसे वामपंथियों के साथ जुड़ना पसंद करेगा, जिसे उसने सीडब्ल्यूओ के किसी भी विरोध के बिना लंदन में हाल की बैठक से बाहर कर दिया था।[8] इसका मतलब यह नहीं है कि हमारा लक्ष्य वास्तव में अंतर्राष्ट्रीयवादी अराजकतावादियों के साथ चर्चा करना नहीं है, और रूस में केआरएएस के मामले में, जिनके पास साम्राज्यवादी युद्धों का विरोध करने का एक सिद्ध रिकॉर्ड है, हमने उनसे किसी भी तरह से संयुक्त घोषणा का समर्थन करने के लिए कहा। लेकिन एसीजी मामला इस बात का एक और उदाहरण है कि कैसे एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू पहल संयुक्त मोर्चे की अवसरवादी नीति को याद दिलाती है, जिसमें कम्युनिस्ट इंटरनेशनल ने सामाजिक लोकतंत्र के गद्दारों के साथ काम करने की इच्छा व्यक्त की थी। यह मजदूर वर्ग में कम्युनिस्ट प्रभाव को मजबूत करने की एक रणनीति थी लेकिन इसका वास्तविक परिणाम सीआई और उसकी पार्टियों के पतन को तेज करना था।
20 के दशक की शुरुआत में, इतालवी कम्युनिस्ट वामपंथी सीआई की इस अवसरवादी नीति के कठोर आलोचक थे। इसने सीआई की मूल स्थिति का पालन करना जारी रखा, जो यह थी कि सामाजिक लोकतांत्रिक पार्टियाँ, साम्राज्यवादी युद्ध का समर्थन करने और सर्वहारा क्रांति का सक्रिय रूप से विरोध करने के माध्यम से, पूंजी की पार्टियाँ बन गई थीं। यह सच है कि संयुक्त मोर्चा रणनीति की उनकी आलोचना में अस्पष्टता बरकरार रही - "नीचे से संयुक्त मोर्चा" का विचार, इस धारणा पर आधारित था कि ट्रेड यूनियन अभी भी सर्वहारा संगठन थे और यह इस स्तर पर कम्युनिस्ट और सामाजिक लोकतांत्रिक कार्यकर्ता एक साथ संघर्ष कर सकते हैं।
NWBCW बयान के निष्कर्ष में, ICT दावा करता है कि क्रांतिकारी आंदोलन में NWBCW समितियों के लिए: इटली में 1945 में इंटरनेशनलिस्ट कम्युनिस्ट पार्टी (PCInt) द्वारा शुरू की गई संयुक्त सर्वहारा मोर्चा की अपील एक ऐतिहासिक मिसाल है। यह अपील सामग्री में मौलिक रूप से अंतर्राष्ट्रीयतावादी है, लेकिन यह "संयुक्त सर्वहारा मोर्चा" की बात क्यों करता है? और निम्नलिखित मांग का क्या मतलब है: “वर्तमान समय एक संयुक्त सर्वहारा मोर्चे के गठन की मांग करता है, यानी, उन सभी की एकता, जो युद्ध के खिलाफ हैं, चाहे फासीवादी हों या लोकतांत्रिक।
सभी सर्वहारा और गैर-पार्टी राजनीतिक संरचनाओं के कार्यकर्ता! हमारे कार्यकर्ताओं से जुड़ें, युद्ध की घटनाओं के आलोक में वर्ग समस्याओं पर चर्चा करें और हर कारखाने, हर केंद्र में संयुक्त मोर्चे की समितियां बनाएं जो सर्वहारा वर्ग के संघर्ष को उसके वास्तविक वर्ग धरातल में वापस लाने में सक्षम हों।
ये "सर्वहारा और गैर-पार्टी संरचनाएँ" कौन थीं? क्या यह वास्तव में पूर्व श्रमिक दलों के कार्यकर्ताओं से पीसीइंट(PCInt) के जुझारुओं के साथ संयुक्त राजनीतिक गतिविधि में शामिल होने की अपील थी?
केवल एक साल पहले, PCInt ने सोशलिस्ट पार्टी, स्टालिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी और बुर्जुआ वामपंथ के अन्य संगठनों की आंदोलन समितियों को स्पष्ट रूप से संबोधित करते हुए अपनी आंदोलन समिति की एक "अपील" प्रकाशित की थी, जिसमें कारखानों में संयुक्त कार्रवाई का आह्वान किया गया था। हमने इंटरनेशनल रिव्यू 32 में इसका एक लेख प्रकाशित किया। इंटरनेशनल रिव्यू 34 में हमारी अपील, आलोचनाओं का जवाब देते हुए पीसीइंट से एक पत्र प्रकाशित किया। इस पत्र में उन्होंने लिखा:
“क्या यह वास्तव में एक त्रुटि थी? हाँ यह थी; हम इसे स्वीकार करते हैं. यह 1921-23 में तीसरे इंटरनेशनल के खिलाफ इटली के सीपी द्वारा बचाव किए गए ' संयुक्त मोर्चे के आधार पर ' की रणनीति को लागू करने का इतालवी वामपंथियों का आखिरी प्रयास था। इस प्रकार, हम इसे 'निष्क्रिय पाप' के रूप में वर्गीकृत करते हैं क्योंकि हमारे साथियों ने बाद में इसे राजनीतिक और सैद्धांतिक रूप से इतनी स्पष्टता के साथ समाप्त कर दिया कि आज हम इस बिंदु पर किसी के भी खिलाफ अच्छी तरह से सशस्त्र हैं।
जिस पर हमने उत्तर दिया:
"अगर स्टालिनवादी और सामाजिक लोकतांत्रिक कसाइयों के साथ संयुक्त मोर्चे का प्रस्ताव सिर्फ एक 'मामूली' पाप है तो 1945 में पीसी इंट ने वास्तव में गंभीर गलती करने के लिए और क्या किया होगा... सरकार में शामिल होने के लिए? लेकिन बीसी हमें आश्वस्त करता है: कि उसने आईसीसी की प्रतीक्षा किए बिना काफी समय पहले इन त्रुटियों को ठीक कर लिया है और उसने कभी भी उन्हें छिपाने की कोशिश नहीं की है। संभवतः, लेकिन 1977 में जब हमने अपने प्रेस में युद्ध काल में पीसी इंट की त्रुटियों को उजागर किया, तो बैटलग्लिया ने एक आक्रोशपूर्ण पत्र के साथ उत्तर दिया कि गलतियाँ हुई थीं लेकिन यह दावा किया गया कि वे उन साथियों की गलती थीं जो 1952 में पीसी इंटरनैजियोनेल की स्थापना केलिए चले गए थे।
तो 1944 की अपील आख़िरकार "नीचे से संयुक्त मोर्चा' रणनीति को लागू करने का अंतिम प्रयास नहीं था। 1945 में "संयुक्त सर्वहारा मोर्चा" के आह्वान से पता चला कि PCInt ने "इसे राजनीतिक और सैद्धांतिक रूप से समाप्त नहीं किया था"। और 1921-23 की 'नीचे से संयुक्त मोर्चा' रणनीति अभी भी आईसीटी के अवसरवादी युद्ध नहीं बल्कि वर्ग युद्ध 'आंदोलन' के लिए प्रेरणा है।
इसलिए युद्ध नहीं बल्कि वर्ग युद्ध के बारे में आईसीटी एक बिंदु पर सही है: यह 1945 में पीसीइंट द्वारा 'संयुक्त सर्वहारा मोर्चा' के अवसरवादी आह्वान की निरंतरता में है। लेकिन इस रणनीति के बाद से यह गर्व करने योग्य निरंतरता नहीं है। कम्युनिस्ट वामपंथ के अंतर्राष्ट्रीयवाद और वामपंथ, परजीविता और अराजकतावादी दलदल के दिखावटी अंतर्राष्ट्रीयवाद के बीच मौजूद वर्ग रेखा को सक्रिय रूप से अस्पष्ट करता है। इसके अलावा NWBCW का उद्देश्य कम्युनिस्ट वामपंथ के आम वक्तव्य के अकर्मण्य अंतर्राष्ट्रीयवाद का एक विशेष विकल्प बनना था, इस प्रकार क्रांतिकारी ताकतों को न केवल वामपंथ आदि के प्रति अवसरवादिता द्वारा, बल्कि कम्युनिस्ट वामपंथ के अन्य प्रामाणिक समूहों के प्रति संप्रदायवाद द्वारा भी कमजोर किया गया।
आई.सी.सी.
[1] युद्ध नहीं बल्कि वर्ग युद्ध की पहल, Revolutionary Perspectives 22
[2] https://www.leftcom.org/en/articles/2022-07-22/nwbcw-and-the-real-ininter [11]...
[3] यूक्रेन में युद्ध पर कम्युनिस्ट वामपंथ के समूहों के संयुक्त वक्तव्य पर पत्राचार
[4] युद्ध नहीं बल्कि वर्ग युद्ध समूहों के इतिहास पर
[5] उदाहरण के लिए इंटरनेशनल रिव्यू 13 में इंटरनेशनलिस्ट कम्युनिस्ट पार्टी (बैटाग्लिया कोमुनिस्टा) का उत्तर देखें; खुले संघर्ष की अवधि के बाहर सर्वहारा वर्ग का संगठन (श्रमिक समूह, नाभिक, मंडल, समितियाँ) | इंटरनेशनल रिव्यू 21 में इंटरनेशनल कम्युनिस्ट करंट (internationalism.org); World Revolution26 "फ़ैक्टरी समूह और आईसीसी हस्तक्षेप" भी
[6] एक समिति जो अपने प्रतिभागियों को एक गतिरोध की ओर ले जाती है, World Revolution 395
[7] रोम कमेटी के भाग्य पर बट्टाग्लिया कोमुनिस्टा के एक लेख यह बयान जिसका लिंक : सुल कॉमिटाटो डि रोमा NWBCW: अन'इंटरविस्टा है। यह सोसाइटी इनसिविले ("अनसिल सोसाइटी") नामक समूह के साथ गठबंधन के नकारात्मक परिणाम का वर्णन करता है। यह इतने अस्पष्ट तरीके से लिखा गया है कि इससे बहुत कुछ निकालना बहुत मुश्किल है। लेकिन अगर आप इस समूह की वेबसाइट देखें, तो वे पूरी तरह से वामपंथी प्रतीत होते हैं, जो फासीवाद-विरोधी पक्षपातियों और इटली की स्टालिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी की प्रशंसा करते हैं। उदाहरण के लिए देखें https://www.sitocomunista.it/canti/cantidilotta.html; [12] https://www.sitocomunista.it/resistence/resistenceindex.html; [13](https://www.sitocomunista.it/pci/pci.html [14] https://www.sitocomunista.it/resistence/resistenceindex.html [15] https:/ /www.sitocomunista.it/pci/pci.html [16]),
[8] एसीजी ने आईसीसी को अपनी सार्वजनिक बैठकों से प्रतिबंधित कर दिया, सीडब्ल्यूओ ने क्रांतिकारी संगठनों के बीच एकजुटता को धोखा दिया, World Revolution 397
रूब्रिक
इजराइल, गाजा, यूक्रेन, अजरबैजान में नरसंहार और युद्ध... पूंजीवाद मौत का बीजारोपण करता है! हम इसे कैसे रोक सकते हैं?
"डरावना", "नरसंहार", "आतंकवाद", "आतंक", "युद्ध अपराध", "मानवीय तबाही", " हत्या"... अंतर्राष्ट्रीय प्रेस के पहले पन्ने पर छपे ये शब्द गाजा में बर्बरता के पैमाने के बारे में बहुत कुछ बताते हैं।
7 अक्टूबर को, हमास ने 1,400 इज़राइलियों को मार डाला, उनके घरों में बूढ़े पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को शिकार बनाया। तब से, इज़राइल राज्य बदला ले रहा है और सामूहिक रूप से हत्या कर रहा है। गाजा पर दिन-रात बरस रहे बमों के सैलाब में अब तक 4,800 बच्चों समेत 10,000 से ज्यादा फिलिस्तीनियों की मौत हो चुकी है। खंडहर इमारतों के बीच, बचे हुए लोग पानी, बिजली, भोजन और दवाएं, हर चीज से वंचित हैं। इस समय, २५ लाख गाजावासियों को भुखमरी और महामारी के खतरे का सामना करना पड़ रहा है, उनमें से 400,000 गाजा शहर में कैदी हैं, और हर दिन सैकड़ों लोग गिरते मिसाइलों से टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं, टैंकों से कुचले जाते हैं, गोलियों से मारे जाते हैं।
गाजा में हर जगह मौत है, जैसे यूक्रेन में है। आइए रूसी सेना द्वारा मारियुपोल के विनाश को न भूलें, लोगों के पलायन, खाई युद्ध जो लोगों को जिंदा दफन कर देता है। आज तक, माना जाता है कि लगभग 500,000 लोग मारे गए हैं। हर तरफ आधा-आधा. मातृभूमि की रक्षा के नाम पर रूसियों और यूक्रेनियों की एक पूरी पीढ़ी को अब राष्ट्रीय हित की वेदी पर बलिदान किया जा रहा है। अभी और भी आना बाकी है: सितंबर के अंत में, नागोर्नो-काराबाख में, 100,000 लोगों को अज़रबैजानी सेना और नरसंहार के खतरे के कारण भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। यमन में, जिस संघर्ष के बारे में कोई बात नहीं करता, उसने 200,000 से अधिक पीड़ितों की जान ले ली है और 2.3 मिलियन बच्चों को कुपोषण का शिकार बना दिया है। इथियोपिया, म्यांमार, हैती, सीरिया, अफगानिस्तान, माली, नाइजर, बुर्किना फासो, सोमालिया, कांगो, मोज़ाम्बिक में युद्ध की वही भयावहता चल रही है... और सर्बिया और कोसोवो के बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है।
इस सारी बर्बरता का जिम्मेदार कौन है? युद्ध कितनी दूर तक फैल सकता है? और, सबसे बढ़कर, कौन सी ताकत इसका विरोध कर सकती है?
सभी राज्य युद्ध अपराधी हैं
लेखन के समय, सभी राष्ट्र इज़राइल से अपने आक्रमण को "संयमित" करने या "निलंबित" करने का आह्वान कर रहे हैं। रूस युद्धविराम की मांग कर रहा है, क्योंकि उसने डेढ़ साल पहले यूक्रेन पर उसी तीव्रता से हमला किया था और उसी "आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई" के नाम पर 1999 में चेचन्या में 300,000 नागरिकों का नरसंहार किया था। चीन का कहना है कि वह शांति चाहता है, लेकिन वह उइघुर आबादी को खत्म कर रहा है और ताइवान के निवासियों को और भी बड़ी आग की धमकी दे रहा है। सऊदी अरब और उसके अरब सहयोगी इज़रायली हमले को ख़त्म करना चाहते हैं जबकि साथ में यमन आबादी की तबाही भी। कुर्दों को नेस्तनाबूद करने का सपना देख रहा तुर्की गाजा पर हमले का विरोध करता है. जहां तक प्रमुख लोकतंत्रों की बात है, "इजरायल के अपनी रक्षा के अधिकार" का समर्थन करने के बाद, वे अब "मानवीय संघर्ष विराम" और "अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान" का आह्वान कर रहे हैं, जिन्होंने 1914 से उल्लेखनीय नियमितता के साथ सामूहिक वध में अपनी विशेषज्ञता का प्रदर्शन किया है।
यह इज़राइल राज्य का प्राथमिक तर्क है: "गाजा का विनाश वैध है": हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बम और ड्रेसडेन और हैम्बर्ग के कालीन-बमबारी के बारे में भी यही कहा गया था। संयुक्त राज्य अमेरिका ने अफगानिस्तान और इराक में उन्हीं तर्कों और उन्हीं तरीकों से युद्ध लड़ा, जैसे आज इजराइल! सभी राज्य युद्ध अपराधी हैं! बड़े या छोटे, प्रभुत्वशाली या शक्तिशाली, जाहिरी तौर पर युद्धोन्मादी या उदारवादी, ये सभी वास्तव में विश्व पटल में साम्राज्यवादी युद्ध में भाग ले रहे हैं, और ये सभी मजदूर वर्ग को तोप का चारा मानते हैं।
ये पाखंडी और धोखेबाज आवाज़ें हैं जो अब हमें शांति और उनके समाधान के लिए उनके अभियान पर विश्वास करने पर मजबूर कर देंगी: इज़राइल और फ़िलिस्तीन को दो स्वतंत्र और स्वायत्त राज्यों के रूप में मान्यता देना। फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण, हमास और फ़तह पूर्वाभास दे रहे हैं कि यह राज्य कैसा होगा: अन्य सभी की तरह, यह श्रमिकों का शोषण करेगा; अन्य सभी की तरह, यह जनता का दमन करेगा; अन्य सभी की तरह, यह युद्ध में जायेगा। ग्रह पर पहले से ही 195 "स्वतंत्र और स्वायत्त" राज्य हैं: कुल मिलाकर, वे "रक्षा" पर प्रति वर्ष 2,000 अरब डॉलर से अधिक खर्च करते हैं! और 2024 तक, ये बजट विस्फोट के लिए तैयार हैं।
वर्तमान युद्ध: एक झुलसी हुई पृथ्वी नीति
तो संयुक्त राष्ट्र ने यह घोषणा अभी क्यों की है: "हमें तत्काल मानवीय युद्धविराम की आवश्यकता है। तीस दिन हो गए हैं। बहुत हो गया। अब इसे रोकना होगा"? जाहिर है, फिलिस्तीन के सहयोगी इजरायली हमले का अंत चाहते हैं। जहां तक इजरायल के सहयोगियों की बात है, वे "महान लोकतंत्र" जो "अंतर्राष्ट्रीय कानून" का सम्मान करने का दावा करते हैं, वे बिना कुछ कहे इजरायली सेना को वह करने नहीं दे सकते जो वह चाहती है। आईडीएफ के नरसंहार भी दृश्यमान हैं। खासकर तब जब से "लोकतंत्र" यूक्रेन को "रूसी आक्रामकता" और उसके "युद्ध अपराधों" के खिलाफ सैन्य सहायता प्रदान कर रहे हैं। दोनों "आक्रामकताओं" की बर्बरता को बहुत अधिक समान दिखने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
लेकिन इससे भी गहरा कारण है: हर कोई अराजकता के प्रसार को सीमित करने की कोशिश कर रहा है, क्योंकि हर कोई प्रभावित हो सकता है, अगर यह संघर्ष बहुत दूर तक फैलता है तो हर किसी के पास खोने के लिए कुछ न कुछ है। हमास के हमले और इज़राइल की प्रतिक्रिया में एक बात समान है: झुलसी हुई पृथ्वी नीति। कल का आतंकवादी नरसंहार और आज का कालीन बम विस्फोट कोई वास्तविक और स्थायी जीत नहीं दिला सकता। यह युद्ध मध्य पूर्व को अस्थिरता और टकराव के युग में धकेल रहा है।
यदि इज़राइल ने गाजा को नष्ट करना और उसके निवासियों को मलबे के नीचे दबाना जारी रखा, तो वेस्ट बैंक में भी आग लगने का जोखिम है, कि हिजबुल्लाह लेबनान को युद्ध में खींच लेगा, और ईरान भी इसमें शामिल हो जाएगा। पूरे क्षेत्र में अराजकता फैलने से न केवल अमेरिकी प्रभाव को झटका लगेगा, बल्कि चीन की वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को भी झटका लगेगा, जिसका कीमती सिल्क रोड इस क्षेत्र से होकर गुजरता है।
तीसरे विश्व युद्ध का खतरा हर किसी की जुबान पर है. पत्रकार टेलीविजन पर खुलेआम इस पर बहस कर रहे हैं. वास्तव में, वर्तमान स्थिति कहीं अधिक खतरनाक है। वहाँ कोई दो गुट नहीं हैं, बड़े करीने से व्यवस्थित और अनुशासित, एक-दूसरे का सामना कर रहे हैं, जैसा कि 1914-18 और 1939-45 में, या पूरे शीत युद्ध के दौरान हुआ था। जबकि चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच आर्थिक और युद्ध जैसी प्रतिस्पर्धा तेजी से क्रूर और दमनकारी है, अन्य देश इन दोनों दिग्गजों में से किसी एक या दूसरे के आदेशों के आगे नहीं झुक रहे हैं; वे अव्यवस्था, अप्रत्याशितता और शोर-शराबे में अपना खेल खेल रहे हैं। चीन की सलाह के विरुद्ध रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया। अमेरिकी सलाह के खिलाफ इजराइल गाजा को कुचल रहा है. ये दो संघर्ष उस खतरे का प्रतीक हैं जो पूरी मानवता को मौत के खतरे में डालता है: ऐसे युद्धों का बढ़ना जिनका एकमात्र उद्देश्य प्रतिद्वंद्वी को अस्थिर करना या नष्ट करना है; तर्कहीन और शून्यवादी मांगों की एक अंतहीन श्रृंखला; हर आदमी अपने लिए, अनियंत्रित अराजकता का पर्याय।
तीसरे विश्व युद्ध के लिए, पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका और पूर्वी एशिया के सर्वहाराओं को पितृभूमि के नाम पर अपने जीवन का बलिदान देने, हथियार उठाने और ध्वज और राष्ट्रीय हितों के लिए एक-दूसरे को मारने के लिए तैयार रहना होगा, जो कि है आज बिल्कुल भी ऐसा नहीं है। लेकिन जो विकास की प्रक्रिया में है, उसे इस समर्थन, जनता की भागीदारी की आवश्यकता नहीं है। 2000 के दशक की शुरुआत से, ग्रह का व्यापक हिस्सा हिंसा और अराजकता में डूब गया है: अफगानिस्तान, इराक, सीरिया, लीबिया, लेबनान, यूक्रेन, इज़राइल और फिलिस्तीन... यह अवसाद धीरे-धीरे, देश दर देश, क्षेत्र दर क्षेत्र में फैल रहा है। पूंजीवाद के लिए यही एकमात्र संभावित भविष्य है, शोषण की यह पतनशील और सड़ती हुई व्यवस्था।
युद्ध को समाप्त करने के लिए पूंजीवाद को उखाड़ फेंकना होगा
तो हम क्या कर सकते हैं? प्रत्येक देश के श्रमिकों को कथित संभावित शांति के बारे में, "अंतर्राष्ट्रीय समुदाय", संयुक्त राष्ट्र या चोरों के किसी अन्य अड्डे से किसी समाधान के बारे में कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। पूंजीवाद युद्ध है. 1914 के बाद से, यह व्यावहारिक रूप से कभी नहीं रुका है, दुनिया के एक हिस्से को प्रभावित करता है और फिर दूसरे को। हमारे सामने आने वाले ऐतिहासिक काल में यह घातक गतिशील प्रसार और वृद्धि, जिसमें अथाह बढ़ती बर्बरता देखी जाएगी।
इसलिए प्रत्येक देश के श्रमिकों को बहकावे में आने से इनकार करना चाहिए, उन्हें पूर्व में, मध्य पूर्व में और हर जगह किसी न किसी बुर्जुआ खेमे का पक्ष लेने से इनकार करना चाहिए। उन्हें उस बयानबाजी से मूर्ख बनने से इनकार करना चाहिए जो उन्हें "हमले के अधीन यूक्रेनी लोगों", "खतरे में रूस", "शहीद फिलिस्तीनी जनता", "आतंकित इजरायलियों" के साथ "एकजुटता" दिखाने के लिए कहता है... सभी युद्धों में, सीमाओं के दोनों ओर, राज्य हमेशा लोगों को यह विश्वास दिलाता है कि अच्छाई और बुराई, बर्बरता और सभ्यता के बीच संघर्ष है। वास्तव में, ये सभी युद्ध हमेशा प्रतिस्पर्धी देशों के बीच, प्रतिद्वंद्वी पूंजीपतियों के बीच टकराव होते हैं। वे हमेशा ऐसे संघर्ष होते हैं जिनमें शोषित अपने शोषकों के लाभ के लिए मर जाते हैं।
इसलिए श्रमिकों की एकजुटता "फिलिस्तीनियों" को नहीं मिलती है, क्योंकि यह "इजरायलियों", "यूक्रेनी", या "रूसियों" को नहीं जाती है, क्योंकि इन सभी राष्ट्रीयताओं के बीच शोषक और शोषित हैं। यह इजराइल और फिलिस्तीन, रूस और यूक्रेन के श्रमिकों और बेरोजगारों को जाता है, जैसे यह दुनिया के हर देश के श्रमिकों को जाता है। यह "शांति के लिए" प्रदर्शन करके नहीं है, यह दूसरे के खिलाफ एक पक्ष का समर्थन करने का चयन करके नहीं है कि हम युद्ध के पीड़ितों, नागरिक आबादी और दोनों पक्षों के सैनिकों, वर्दी में चारे में तब्दील सर्वहाराओं, प्रेरित और कट्टर बाल-सैनिकों के साथ वास्तविक एकजुटता दिखा सकते हैं। सभी पूंजीवादी राज्यों, वे सभी पार्टियाँ जो हमें इस या उस राष्ट्रीय ध्वज के पीछे एकजुट होने का आह्वान करती हैं, इस या उस युद्ध का कारण बनती हैं; वे सभी जो हमें शांति और लोगों के बीच "अच्छे संबंधों" के भ्रम से भ्रमित करते है, की निंदा करना ही एकमात्र एकजुटता हैं।
इस एकजुटता का मतलब सबसे पहले पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ हमारी लड़ाई को विकसित करना है जो सभी युद्धों के लिए जिम्मेदार है, राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग और उनके राज्य के खिलाफ लड़ाई।
इतिहास गवाह है कि वह शोषित वर्ग ही एकमात्र शक्ति है जो पूंजीवादी युद्ध को समाप्त कर सकती है , सर्वहारा वर्ग, बुर्जुआ वर्ग का प्रत्यक्ष शत्रु है। यह वह मामला था जब अक्टूबर 1917 में रूस के श्रमिकों ने बुर्जुआ राज्य को उखाड़ फेंका और नवंबर 1918 में जर्मनी के श्रमिकों और सैनिकों ने विद्रोह कर दिया: सर्वहारा वर्ग के संघर्ष के इन महान आंदोलनों ने सरकारों को युद्धविराम पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया। इसी ने प्रथम विश्व युद्ध का अंत किया: क्रांतिकारी सर्वहारा वर्ग की ताकत! मजदूर वर्ग को विश्व स्तर पर पूंजीवाद को उखाड़ फेंककर हर जगह वास्तविक और निश्चित शांति हासिल करनी होगी।
यह लंबी राह हमारे सामने है। आज, इसका मतलब एक दुर्जेय संकट में फंसी व्यवस्था द्वारा हम पर किए जा रहे लगातार कठोर आर्थिक हमलों के खिलाफ, एक वर्ग पटल में संघर्ष विकसित करना है। क्योंकि हमारे रहने और काम करने की स्थिति में गिरावट को अस्वीकार करके, बजट को संतुलित करने, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की प्रतिस्पर्धात्मकता या युद्ध के प्रयासों के नाम पर किए गए सतत बलिदानों को अस्वीकार करके, हम पूंजीवाद के अन्दर : मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण के खिलाफ खड़े होना शुरू कर रहे हैं:
इन संघर्षों में, हम एक साथ खड़े होते हैं, हम अपनी एकजुटता विकसित करते हैं, हम बहस करते हैं और जब हम एकजुट और संगठित होते हैं तो हमें अपनी ताकत का एहसास होता है। अपने वर्ग संघर्षों में, सर्वहारा अपने भीतर एक ऐसी दुनिया लेकर चलता है जो पूंजीवाद के बिल्कुल विपरीत है: एक ओर, आपसी विनाश के बिंदु तक आर्थिक और युद्ध जैसी प्रतिस्पर्धा में लगे राष्ट्रों में विभाजन; दूसरी ओर, दुनिया के सभी शोषितों की एक संभावित एकता। सर्वहारा वर्ग ने इस लंबी राह पर चलना शुरू कर दिया है, इस दौरान कुछ कदम उठे: 2022 में यूनाइटेड किंगडम में "असंतोष की गर्मी", 2023 की शुरुआत में फ्रांस में पेंशन सुधार के खिलाफ सामाजिक आंदोलन, हाल के सप्ताहों में संयुक्त राज्य अमेरिका में स्वास्थ्य और ऑटोमोबाइल क्षेत्र में ऐतिहासिक हड़ताल। यह अंतर्राष्ट्रीय गतिशीलता श्रमिकों की जुझारूपन की ऐतिहासिक वापसी, रहने और काम करने की स्थिति में स्थायी गिरावट को स्वीकार करने से इनकार करने और संघर्ष में श्रमिकों के रूप में क्षेत्रों और पीढ़ियों के बीच एकजुटता दिखाने की प्रवृत्ति को चिह्नित करती है। भविष्य में, आंदोलनों को आर्थिक संकट और युद्ध के बीच, मांगे गए बलिदानों और हथियारों के बजट और नीतियों के विकास के बीच, उन सभी संकटों के बीच संबंध बनाना होगा जो अप्रचलित वैश्विक पूंजीवाद अपने साथ लेकर आता है, आर्थिक, युद्ध और जलवायु के बीच संकट जो एक दूसरे पर निर्भर करते हैं।
राष्ट्रवाद के ख़िलाफ़, उन युद्धों के ख़िलाफ़ जिनमें हमारे शोषक हमें घसीटना चाहते हैं, श्रमिक आंदोलन के पुराने नारे जो 1848 के कम्युनिस्ट घोषणापत्र में दिखाई दिए थे, आज पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं:
“मजदूरों “ की कोई मातृभूमि नहीं है!
सभी देशों के मजदूरों, एक हो जाओ!”
अंतर्राष्ट्रीय सर्वहारा वर्ग के वर्ग संघर्ष के विकास के लिए!
अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट करंट, 7 नवंबर 2023
रूब्रिक:
मध्यपूर्व में हालिया साम्राज्यवादी खून-खराबा, 1917 के पश्चात, एक सदी से भी अधिक समय से विश्व पूँजीवाद की विशेषता रहे, लगभग स्थायी युद्ध, नवीनतम कड़ी है.
करोड़ों रक्षाहीन नागरिकों का कत्लेआम, जाति संहार, शहरों का विध्वंश, यहाँ तक पूरे देश को मलबे में बदल डालना, आने वाले काल में और अधिक और बदतर अत्याचारों के वादे के अलावा कुछ नहीं है.
वर्तमान नर संहार के लिए विभिन्न प्रतिद्वंदी बड़ी या छोटी साम्राज्यवादी शक्तियों द्वारा प्रस्तावित औचत्य या ‘समाधान’, एक राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग दूसरे के विरुद्ध, इससे पहले के सभी खून-खराबे की भांति, शोषित, मजदूर वर्ग को शांत करने के लिए, इन्हें बांटने और उनके बीच के भाईचारे की हत्या के लिए तैयार करना,एक बड़े धोखे के समान है.
आज इजराइल और गाज़ा निवासियों पर आग और इस्पात की वर्षा हो रही है. एक ओर हमास, इयसे छलनी कर डाले, तमाम लोग बंधक बना लिए गए हैं. हजारों लोग पहले ही मारे जा चुके हैं.
पूरी दुनिया में, पूंजीपति वर्ग हमें, इजराइली उत्पीड़न के खिलाफ, फिलिस्तीनी प्रतिरोध के लिए, अथवा फ़िलिस्तीनी आतंकवाद पर इज़राइली प्रतिक्रिया के लिए, अपना- अपना पक्ष चुनने के लिए बुला रहा है. या फ़िलिस्तीनी आतंकवाद, प्रत्येक युद्ध को उचित ठहराने के लिए दूसरे की बर्बरता की निंदा करता है. इज़राइली राज्य, दशकों से नाकाबंदी, उत्पीड़न, चौकियोंसे से घेराबंदी और अपमान के साथ फ़िलिस्तीनी लोगों पर अत्याचार कर रहा है. फ़िलिस्तीनी संगठन,चाकू व बमबारी से निर्दोष लोगों की हत्या कर रहा है. प्रत्येक पक्ष, दूसरे का खून बहाने का आह्वान कर रहा है.
यह घातक तर्क ही साम्राज्यवादी युद्ध का तर्क है! यह हमारे शोषक और उनके राज्य हैं जो हमेशा अपने हितों की रक्षा के लिए निर्दयी युद्ध लड़ते रहते हैं. और यह हम हैं, मजदूर वर्ग, शोषित वर्ग, जो हमेशा अपनी जान देकर इसकी कीमत चुकाते हैं.
हम सर्वहाराओं के लिए चुनने के लिए कोई पक्ष नहीं है, हमारी कोई मातृभूमि नहीं है, रक्षा के लिए कोई राष्ट्र नहीं है! सीमा के दोनों ओर हम एक ही वर्ग के हैं! न इजराइल, न फ़िलिस्तीन!
केवल एकजुट अंतर्राष्ट्रीय सर्वहारा वर्ग ही इन बढ़ते नरसंहारों और उनके पीछे छिपे साम्राज्यवादी हितों को ख़त्म कर सकता है. ज़िम्मरवाल्ड में वामपंथ के मुट्ठी भर कम्युनिस्टों द्वारा तैयार किया गया यह अनोखा, अंतर्राष्ट्रीयवादी समाधान अक्टूबर 1917 में रूस में अपनाया. जब क्रांतिकारी मजदूर वर्ग के संघर्ष ने पूंजीवादी शासन को उखाड़ फेंका और अपनी राजनीतिक वर्ग शक्ति स्थापित कर अपने उदाहरण से अक्टूबर ने एक व्यापक, अंतर्राष्ट्रीय क्रांतिकारी आंदोलन को प्रेरित किया जिसने प्रथम विश्व युद्ध को समाप्त करने के लिए मजबूर किया.
कम्युनिस्ट वामपंथ ही वह एकमात्र राजनीतिक धारा जो इस क्रांतिकारी लहर की हार से बच गई है और जिसने अंतर्राष्ट्रीयतावादी सिद्धांत की क्रांतिकारी रक्षा को बनाए रखा है, तीस के दशक में, इसने स्पेनिश युद्ध और चीन-जापानी युद्ध के दौरान इस मौलिक श्रमिक वर्ग लाइन को संरक्षित किया, जबकि स्टालिनवादियों, ट्रॉट्स्कीवादियों या अराजकतावादियों जैसी अन्य राजनीतिक धाराओ ने अपने साम्राज्यवादी शिविर को चुना जिसने इन संघर्षों को और भडकाया जिसे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कम्युनिस्ट वामपंथ ने अपना अंतर्राष्ट्रीयवाद बनाए रखा, जबकि इन अन्य धाराओं ने साम्राज्यवादी नरसंहार में भाग लिया, जिसे 'फासीवाद और फासीवाद-विरोध' और 'सोवियत' संघ की रक्षा के बीच लड़ाई के रूप में तैयार किया गया था.
आज कम्युनिस्ट वामपंथ की अल्प संगठित उग्रवादी ताकतें अभी भी इस अंतर्राष्ट्रीयतावादी कट्टरपन का पालन कर रही हैं, लेकिन उनके अल्प संसाधन कई अलग-अलग समूहों में विखंडन और परस्पर शत्रुतापूर्ण, सांप्रदायिक भावना के कारण और भी कमजोर हो गए हैं.
इसीलिए, साम्राज्यवादी बर्बरता में बढ़ती गिरावट के सामने, इन असमान ताकतों को सभी साम्राज्यवादी शक्तियों के खिलाफ, शोषकों के पीछे राष्ट्रीय रक्षा के आह्वान के खिलाफ, 'शांति' के लिए पाखंडी दलीलों के खिलाफ और सर्वहारा वर्ग के संघर्ष, जो साम्यवादी क्रांति की ओर ले जाता है, के लिए एक आम घोषणा करनी होगी.
दुनियाभर के मजदूरों एक हो.
अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट करंट.
अंतर्राष्ट्रीय वॉईस.
यह अपील क्यों?
यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के पश्चात्, सिर्फ 20 महीने से पहले, आईसीसी द्वारा कम्युनिष्ट वामपंथी गुटों के लिए एक साझा बयान का प्रस्ताव किया था, जिन गुटों ने आईसीसी के अलावा, इस्टिटुटो ओनोराटो डेमन, इंटरनेशनलिस्ट वॉयस, इंटरनेशनल कम्युनिस्ट परस्पेक्टिव (दक्षिण कोरिया) ने बाद में कम्युनिष्ट वामपंथ गुटों ने दो चर्चा बुलेटिन तैयार किये हैं, उनके संबंधित पदों और पर बहस की गई है, और आमतौर पर सार्वजनिक सभाएं आयोजित की गयी हैं.
हालांकि, अन्य कम्युनिष्ट वामपंथी गुटों के इस प्रस्तावित बयान के अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांतों से सहमत होते हुए भी, इस पर हस्ताक्षर करने से इंकार पर दिया ( या बिलकुल भी उत्तर नहीं दिया ). आमतौर पर इस सिद्धांत का बचाव करने की अधिक आवश्यकता को देखते हुए, आज हम इन गुटों से (नीचे सूचीबद्ध) इस अपील पर पुनर्विचार करने और हस्ताक्षर करने का आग्रह करते हैं. यूक्रेन पर आम बयान पर, हस्ताक्षर करने खिलाफ एक तर्क यह था कि गुटों के बीच, इसकी अनुमति देने के लिए अन्य मतभेद बहुत अधिक थे और जिनसे इंकार नहीं किया जा सकता है, चाहे वे विश्लेषण, सैद्धांतिक प्रश्न, राजनैतिक दल की अवधारणा, यहाँ तक कि लड़ाकुओं की सदयस्ता की शर्तों से जुड़े सवाल ही क्यों न हों. लेकिन सर्वहारा अंतर्राष्ट्रीयतवाद का सबसे आवश्यक बुनियादी सिद्धांत, वर्ग की क्रांतिकारी सीमा, जो क्रांतिकारी राजनैतिक सन्गठन को अलग पहचान देती है, कहीं अधिक महत्वपूर्ण है. और इस प्रश्न पर एक आम बयान पर यह अर्थ नहीं कि अन्य मतभेदों को भुला दिया गया है. इसके विपरीत चर्चा बुलेटिन यह दर्शाते हैं कि उन पर बहस के लिए एक मंच संभव और आवश्यक है.
एक और अन्य तर्क यह था कि मजदूर वर्ग में अंन्तर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष से अधिक व्यावहारिक आवश्यकता थी, जो केवल कम्युनिष्ट वामपंथ तक सीमित अपील से अधिक व्यापक था. नि:संदेह, सभी अन्तर्राष्ट्रीय लड़ाके कम्युनिष्ट संगठन मजदूर वर्ग में अधिक प्रभाव चाहते हैं लेकिन यदि कम्युनिष्ट वामपंथ अन्तर्राष्ट्रीय संगठन, साम्राज्यवादी संघर्ष के महत्वपूर्ण क्षणों में व्यवहारिक रूप से अपने मूल सिद्धांत पर एक साथ काम करने में भी संक्षम नहीं हैं तो उनसे सर्वहारा के व्यापक वर्गों द्वारा गंभीरता से लिए जाने की उम्मीद कैसे की जा सकती है?[1]
वर्तमान, फिलिस्तीन-इजराइल संघर्ष, पहले के सभी से कहीं अधिक भयानक और परिवर्तनशील युद्ध, यूक्रेन में साम्राज्यवादी युद्ध के दोबारा उभरने के दो साल से भी कम समय के बाद उभर रहा है तथा कई अन्य साम्राज्यवादी संघर्षों के साथ जो हाल ही में फिर से शुरू हुए हैं (सर्बिया/कोसोवो, अजरबैजान/आर्मेनियाँ, और ताइवान को ले कर अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव) का मतलब है कि एक आम अंतर्राष्ट्रीय बयान पहले से भी अधिक दबाव डालता है.
इसलिए, हम सीधे और सार्वजनिक रूप से निम्नलिखित गुटों से ऊपर छपे साम्रज्य्वादी युद्ध के खिलाफ बयान पर सह-हस्ताक्षर करने की इच्छा दिखाने की आकांक्षा रखते हैं जिसे यदि आवश्यक हो तो इसके सामान्य अंतर्राष्ट्रीयतावादी उद्द्येश्य के अनुसार संशोधित या पुनः तैयार किया जा सकता है.
आईसीटी (अंतर्राष्ट्रीयवादी कम्युनिस्ट प्रवृत्ति)
पीसीआई (प्रोग्रामा कोमुनिस्टा )
पीसीआई ( इल पार्टिटो कोमुनिस्टा )
पीसीआई ( ले प्रोलेटेयर , इल कोमुनिस्टा )
आईओडी ( इस्टिट्यूटो ओनोराटो डेमन)
[1] कम्युनिस्ट वामपंथ के बाहर के अन्य समूह जो इस अपील में बचाव किए गए अंतर्राष्ट्रीयवादी पदों से सहमत हैं, वे इस अपील के लिए अपने समर्थन की घोषणा कर सकते हैं और इसे वितरित कर सकते हैं.
भारत के पूर्वी प्रान्त ओड़िसा के बालासोर शहर में तीन रेल गाड़ियों के आपस में टकरा जाने के कारण हुई भीषण ट्रेन दुर्घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. 2 जून 2023 को दो यात्री ट्रेनें, कोरोमंडल एक्सप्रेस और बेंगलुरू – हावड़ा सुपर- फ़ास्ट, एक्स्प्रेस बह्नागा रेलवे स्टेशन के पास एक मालगाड़ी से हुई शुरूआती टक्कर आपस में टकरा गईं. दिल को दहला देने वाले इस हादसे पर भारत सरकार ने एक बयान में बताया कि टक्कर में कम से कम 280 लोगों की जानें गईं और लगभग 1000 लोग बुरी तरह घायल हुए, साथ ही सरकारी प्रवक्ता ने यह भी कहा कुछ लोगों की मौत को गुप्त रखा जायेगा. आमजन, सरकार द्वारा, तमाम अन्य मामलों के बारे में जनता को दी जाने वाली सूचनाओं की भांति, इस बयान पर भी भरोसा नहीं कर रहे हैं. मिली जानकारी के अनुसार शालीमार – चेन्नई एक्सप्रेस लगभग 2500 यात्रियों को ले जा रही थी. इंजिन के पीछे वाले अनारक्षित डिब्बा जो दक्षिणके राज्यों में अपने कार्यस्थ्लों को लौट रहे, अधिकतर मजदूर यात्रियों से खचाखच भरा था, इसमें मृतकों की संख्या कहीं अधिक होने की आशंका जताई जा रही है. यह लगभग तीन दशकों की देश की सबसे भीषण दुर्घटना है. “पूंजीवादी सड़ांध के दवाब में अवर्णीय आपदायें और पीडाएं पहले से कहीं अधिक बढ़ रहीं हैं. जो 2020 के दशक की शुरूआत में स्पष्ट रूप तेज हो गयी हैं” [1]”
“डिजिटल इण्डिया का” धोखा
यह दुर्घटना उस समय हुई जब भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी देश के विशाल नेटवर्क और अन्य बुनियादी ढांचे के आधुनीकरण में उनकी सरकार के बड़े पैमाने पर निवेश के हिस्से के रूप में एक नयी हाई स्पीड ट्रेन, वन्दे भारत एक्सप्रेस का उद्घाटन करने वाले थे.ओड़िसा की इस ट्रेन दुर्घटना ने डिजिटल इण्डिया का गुब्बारा फोड़ दिया. भारतीय रेलवे ने ही कुछ साल पहले “ ऑटोमैटिक सिग्नल प्रणाली “और इलेक्ट्रिक प्रणाली” का महिमा मंडन किया था.अब उस पद्धति की पोल खुल गई. पिछले साल रेल मंत्रालय ने एक भव्य समारोह में स्वचालित ट्रेन सुरक्षा( ए टी पी ) प्रणाली या “कवच प्रणाली” का शुभारम्भ किया था. उसमें यह दावा किया गया था कि दुर्घटनाओं से बचने के लिए यह एक “शर्तिया” उपाय है. इस ताजा आपदा ने पूँजीवादी झूठ को तार-तार कर दिया. दुर्घटना के पश्चात रेल मंत्रालय के प्रवक्ता अमिताभ शर्मा ने स्वीकार किया कि हादसे वाली ट्रेनों अथवा उस रूट वाली किसी ट्रेन में “कवच सिस्टम” चालू नहीं था. फिर क्या अर्थ है आधुनिक प्रौद्योगिकी का? इसका उत्तर साफ़ है कि राज्य सुरक्षा उपायों पर खर्च करना फिजूलखर्ची समझता है. यह सभी को स्पष्ट है कि आधुनिक पूंजीवादी प्रौद्योगिकी सुरक्षा का उपाय नहीं है और यह विज्ञान और वैज्ञानिक अनुसन्धान का विकास मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए लक्षित नहीं है. बल्कि यह अधिकतम मुनाफा निचोड़ने की पूंजीवादी अनिवार्यता के अधीन है.
पूंजीवादी विशेषज्ञ, ट्रेन दुर्घटनाओं को निम्न प्रकार वर्गीकृत करते हैं : इस वर्गीकरण के अनुसार, इन हादसों के लिए ड्राइवर और सिग्नलमैन की असावधानियाँ, तकनीकी विफलता, बर्बरता, तोड़फोड़ और आतंकवाद, लेवल क्रोसिंग,का दुरूपयोग और अतिक्रमण बताये गये हैं. हाल की घटना के लिए रेलवे ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो द्वारा जांच की सिफारिश की है. इस जांच का घोषित लक्ष्य यह पता लगाना और स्थापित करना है: क्या दुर्घटना के पीछे इलेक्ट्रिक लाकिंग सिस्टम में खराबी तकनीकी थी या यह मानवीय हस्तक्षेप का परिणाम था जो संभावित आतंकवादी कनेक्शन का संकेत देता है. जांच का यह एंगिल, तोड़फोड़ का यह सिद्धांत और सीबीआई जांच सरकार को आगामी चुनाव वर्ष में रेल मंत्रालय की सुर्खियाँ फायदेमंद साबित होने वाली हैं. आगामी 2024 के चुनाव के लिए सरकार की संचार रणनीति के प्रमुख घटकों में से एक वन्दे मातरम का वह चमकदार बेडा है जो मोदी सरकार के तहत विकास का व्यापक वादा करता है.
भारतीय रेल की खस्ता हालत
आर्थिक विकास के मामले में भारत आज विश्व के लिए अनुकरणीय मॉडल बना हुआ है. दुनिया के लिए इस अनुकरणीय मॉडल का यदि हम भारतीय रेलवे के यात्रियों की सुरक्षा के लिए किये गए उपायों के परिप्रेक्ष में मूल्यांकन करें, तो तस्वीर उल्टी ही नजर आती है. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरों के आंकड़ों के अनुसार,पिछले दस वर्षों में भारत में हुई रेल दुर्घटनाओं में लगभग 26,000 लोग अपनी जाने गँवा चुके हें. हमें यह भी याद रखना चाहिए कि भारतीय रेलवे देश की जीवन रेखा है. यही रेलवे भारत की अर्थव्यवस्था के बुनियादी ढाँचे और परिवहन प्रणाली में सुधार के लिए उत्पेरक के रूप में कार्य करता है. तब सवाल है कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए इतने महत्वपूर्ण रेलवे नेटवर्क में यात्री सुरक्षा इतनी खराब क्यों है? दरअसल, रेलवे की आर्थिक कमाई उसके यात्रियों पर निर्भर करती है. रेलवे की टिकटों की कीमत दिन पर दिन बढती जा रही है, जबकि सेवा की गुणवत्ता में तेजी से गिरावट देखी जा रही है. टिकट रद्द करने का पैसा शायद ही कभी ही वापस किया जाता है. शायद ही ऐसी कोई ट्रेन होगी जहां यात्रियों ने शौचालय की दयनीय स्थिति को ले कर शिकायत न की हो.पटरियों को उन्नत करने, ट्रेनों में भीडभाड कम करने या नई ट्रेनें जोड़ने पर कम पैसा खर्च किया जाता है. देखा गया है कि एक ही ट्रेन का नाम बदल कर रेलवे के बेड़े का बड़ा रूप दिखाने का भ्रम पैदा किया जाता है. रेल विभाग ने कम लागत पर आकस्मिक अप्रश्क्षित श्रमिकों के साथ काम जारी रखने की कोशिश की है, जिससे अपर्याप्त संख्या में श्रमिकों पर काम का भार बढ़ता जा रहा है. परिणामस्वरूप, उन्हें आराम के लिए समय में कटौती करनी पड़ रही है. कभी जिस रेलवे में 22.5 लाख कर्मचारी कार्यरत थे, आज घट कर उनकी संख्या मात्र 12 लाख रह गई है.[2] रेलवे के कई स्कूल, अस्पताल, प्रिंटिंग प्रेस और अन्य कार्यालय और रेलवे से जुड़े कारखाने पूरी तरह बंद कर दिए गए है या “आउटसोर्स” कर दिए गए हैं. इसके प्रशासन में भर्ती लगभग बंद हो गई है. रेलवे के 17 जोनों में से प्रत्येक में जनरल स्टोर डिपो जिनमें 3000 से 4000 कर्मचारी कार्यरत थे, बंद कर दिए गए हैं. इस विषय पर किसी ने तनिक भी नही सोचा कि इतने कम स्टाफ से कैसे काम लिया जा सकता है. कम मजदूरों को नियोजित करने से अमानवीय दवाब बढ़ गया है.
पूंजीवादी वामपंथी राज्य से अपील करते हैं
पूंजीवादी वामपंथियो का कार्य सिर्फ घायल लोगों के लिए राज्य से मानवीय सहायता प्रदान किये जाने की मांग तक ही सीमित है. भारतीय स्तालिनवादी ( मार्क्सवादी ) ने सभी संबंधित अधिकारियों से घायलों को शीघ्र और तत्काल चिकित्सा सहायता सुनिश्चित करने और मरने वालों की संख्या में वृद्धि रोकने का आव्हान किया. वामपंथी स्वयं पूँजीवादी राज्य का अभिन्न अंग होने के कारण आमतौर पर विशेष सरकारों या राजनैतिक गुटों को समस्या का कारण मानते हैं.
मजदूर वर्ग को अपने दैनिक अनुभव से अहसास होता है कि बुर्जुआ राज्य के लिए मजदूरों के जीवन का कोई महत्व नहीं. इस लिए वामपंथी और यूनियन कार्यकर्ताओं की चेतना को संसदीय चुनावी प्रक्रिया की और मोड़ने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं. तिहरी रेल दुर्घटना में अधिकाँश पीड़ित प्रवासी श्रमिक ही थे जिनकी म्रत्यु के पश्चात् पहचान नहीं हो पायी क्योंकि वे अनारक्षित डिब्बे के यात्री थे. आज,जब संपूर्ण नागरिक समाज उथल-पुथल की स्थिति में है, व्यवस्था बदलने का दायित्व मजदूर वर्ग के कंधों पर है. ऐसी स्थिति में दुर्घटना के असली सूत्रधार पूंजीवादी राज्य की नग्न संशयवादिता को सभी के सामने नंगा किया जाना यही एक मात्र कार्य बनता है.
भारतीय मजदूर वर्ग एक अंतर्राष्ट्रीय वर्ग का हिस्सा है
सर्वहारा वर्ग सड़ांध की सभी अभिव्यक्तियों के फलस्वरूप आर्थिक संकट के दवाब के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में अपने कामकाजी और जीवनयापन करने की स्थिति पर हमलों का पूरा प्रभाव झेल रहा है.वर्तमान दुर्घटना ने स्पष्ट कर दिया है कि पूँजीवाद के भीतर किसी भी समस्या का कोई समाधान नहीं है. भारत में रेल कर्मचारियों के संघर्ष का एक गौरवमयी लम्बा इतिहास है. मजदूर वर्ग के अन्य भाग उनके अनुभवों तथा दुनियाँ के अन्य श्रमिक वर्ग के तजुर्बों से सीख ले सकते हैं. ग्रीस, एथेंस,थिस्सलुनी में सड़कों पर हुए प्रदर्शनों में हजारों लोगों ने भाग लिया, साथ में रेल कर्मचारियों ने स्वत: हड़तालें कीं और स्वास्थ्य से ले कर शिक्षा तथा अन्य क्षेत्रों के मजदूरों को संघर्ष में शामिल होने का आव्हान किया और यह जो कुछ हुआ ऐसा गत दस सालों में देखा जा रहा है. इन विरोध प्रदर्शनों में सुने गये नारों में श्रमिकों की प्रतिक्रिया थी: "यह मानवीय भूल नहीं थी, यह कोई दुर्घटना नहीं थी, यह एक अपराध था!" "हत्यारों की इस सरकार का नाश हो !" " मित्सोटाकिस अपराध मंत्री है !" भारत में होने वाले मजदूरों के संघर्ष अंरराष्ट्रीय संघर्षों का हिस्सा हैं. ये संघर्ष न केवल ग्रीस में ही नहीं देखे गये बल्कि समान दुश्मन के साथ, समान व्यवस्था से मुकाबला करने और उसे उखाड़ फेंकने के लिए ब्रिटेन, फ़्रांस और उसके बाहर भी जारी संघर्षों में देखा जाता है.
सी आई .14/6/ 23
[1] देखिये ; पूंजीवादी सड़ांध की गति मानवता के विनाश की स्पष्ट संभावना उत्पन्न करती है
[2] 22.5 लाख = 22.5 x 100,000 = 2,250,000 . 12 लाख = 12 x 100,000 = 1,200,000
यूरोप में, जब 130 साल पहले, पूंजीवादी शक्तियों के बीच तनाव बढ़ रहा था, तब फ्रेडरिक एंगेल्स ने मानवता के लिए साम्यवाद या बर्बरता के बीच दुविधा पेश की.
इस विकल्प को 1914 में शुरू हुए प्रथम विश्व युद्ध में मूर्त रूप दिया गया, जो 20 मिलियन लोगों की मृत्यु, का कारण बना, अन्य 20 मिलियन विकलांग हुए, और युद्ध की अराजकता में 50 मिलियन से अधिक मौतों के साथ स्पेन में फ्लू की महामारी फ़ैली.
1917 में रूस में क्रांति और अन्य देशों में क्रांतिकारी प्रयासों ने नरसंहार को समाप्त कर दिया और एंगेल्स द्वारा प्रस्तुत ऐतिहासिक दुविधा के दूसरे पक्ष क्रांतिकारी सर्वहारा वर्ग द्वारा विश्व स्तर पर पूंजीवाद को उखाड़ फेंकने और उसके स्थान पर एक साम्यवादी समाज की संभावना को जन्म दिया.
हालाँकि, इसके बाद:
- "साम्यवाद" के बैनर तले स्टालिनवाद द्वारा रूस में की गई क्रूर प्रति-क्रांति द्वारा इस विश्व क्रांतिकारी प्रयास को कुचला गया,
- जर्मनी में सामाजिक लोकतंत्र सर्वहारा के शुरू किये नरसंहार को नाजीवाद द्वारा पूरा किया गया.
- सोवियत संघ में सर्वहारा वर्ग की भर्ती, देश में सर्वहारा वर्ग का नरसंहार और,
- “समाजवादी पित्रभूमि” की रक्षा के लिए फासीवाद के विरोध के झंडे तले सोवियत संघ में सर्वहारा की भर्ती की गई, जिसे 1939 -45 के अबतक हुईं बर्बरता के क्षेत्र में एक और मील के पत्थर, विश्व युद्ध में झोंक दिया, युद्ध के दौरान नाजी व् स्तालिनवादी यातना शिविरों में दी जाने वाली अमानवीय यातनाओं, मित्र शक्तियों द्वारा ड्रेस्डन, हम्बर्ग तथा संयुक्त राष्ट्र अमेरिका द्वारा जापान के हीरोशिमा और नागाशाकी पर की गई अंधाधुं बममारी में 60 मिलियन लोगों की मृत्यु और पीड़ा का अन्तहीन सिलसला बन गया.
तब से, युद्ध ने हर महाद्वीप पर जान लेना बंद नहीं किया है.
सबसे पहले अमेरिका और रूसी गुटों के बीच टकराव हुआ,तबसे तथाकथित शीत युद्ध (1945-89), स्थानीय युद्धों की एक अंतहीन श्रृंखला से पूरे ग्रह पर परमाणु बमों की वर्षा का खतरा मडरा रहा है.
1989-91 में सोवियत संघ के पतन के बाद, अराजक युद्धों ने विश्व को खून से लथपथ कर दिया: इराक, यूगोस्लाविया, रवांडा, अफगानिस्तान, यमन, सीरिया, इथोपिया, सूडान ... यूक्रेन में युद्ध 1945 के बाद से सबसे गंभीर युद्ध संकट है.
युद्ध की बर्बरता के साथ-साथ पारस्परिक रूप से मजबूत करने वाली विनाशकारी ताकतों का प्रसार होता है: कोविद महामारी जो अभी भी दूर होने से दूर है और जो नई महामारियों की शुरुआत करती है; पारिस्थितिजन्य और तेजी से बढ़ रही पर्यावरणीय आपदा,जलवायु परिवर्तन के साथ मिलकर, सूखा, बाढ़, तूफान, सूनामी, आदि, और भूमि, जल, वायु और अंतरिक्ष के प्रदूषण की एक अभूतपूर्व डिग्री; बाइबिल के अनुपात के अकाल लाने वाला गंभीर खाद्य संकट तेजी से बेकाबू और घातक आपदाओं का कारण बन रही है. चालीस साल पहले, तीसरे विश्व युद्ध में मानवता के नष्ट होने का खतरा था, आज इसे विनाश की ताकतों के सरल एकत्रीकरण और घातक संयोजन से नष्ट किया जा सकता है: चाहे हम, ताप- नाभिकीय (थर्मोन्यूक्लियर) बमों की बारिश में, या प्रदूषण से, परमाणु ऊर्जा स्टेशनों से रेडियो-गतिविधि, अकाल, महामारी, और असंख्य छोटे युद्धों के नरसंहार (जहां परमाणु हथियारों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है) से मिटा दिया गया हो, अंत में यह सब समान है. इन दो रूपों के बीच एकमात्र अंतर सर्वनाश, इसमें निहित है कि एक त्वरित, जबकि दूसरा धीमा होगा, और इसके परिणामस्वरूप और भी अधिक पीड़ा होगी" [2] ( थीसिस ऑन डिकंपोज़िशन )
एंगेल्स द्वारा प्रस्तुत की गई दुविधा: साम्यवाद या मानवता का विनाश, ने अब और भी गंभीर रूप धारण कर लिया है. उक्त ऐतिहासिक क्षण और अधिक गंभीर हो गया है; और अंतर्राष्ट्रीयवादी क्रांतिकारियों को अपने वर्ग (सर्वहारा) के सामने इसकी स्पष्ट पुष्टि करने की आवश्यकता है, क्योंकि केवल सर्वहारा वर्ग ही स्थायी और अथक संघर्ष के माध्यम से कम्युनिस्ट दृष्टिकोण को प्रस्तुत कर सकता है.
साम्राज्यवादी युद्ध पूंजीवाद की जीवन शैली है.
मास मीडिया, युद्ध की वास्तविकता को झूठा और कम आंकता है. शुरुआती दौर में मीडिया 24 घंटे यूक्रेन में युद्ध के लिए समर्पित था, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, युद्ध को तुच्छ बना दिया गया, अब युद्ध, मीडिया में सुर्खियाँ भी नहीं बन रहा. इसकी गूँज, धमकी भरे बयानों से परे नहीं जा रही, "यूक्रेन को हथियार भेजने" के लिए बलिदान करने का आह्वान किया गया था, दुश्मन के खिलाफ चलाए जा रहे प्रचार अभियान, “समझौते” की फर्जी खबरों द्वारा व्यर्थ की आशाओं को परोस रहे हैं.
युद्ध को तुच्छ बनाने के लिए लाशों और धुएं की घ्रणित गंध का आदी होना, सबसे बड़ा विश्वासघात, उन गंभीर खतरों को छिपा रहा है जो मानवता को खतरे में डालते हैं, यह उन सभी खतरों के प्रति अंधा होना है जो स्थायी रूप से हमारे सिर पर मंडरा रहे हैं.
अफ्रीका ,एशिया और सेंट्रल अमेरिका के लाखों लोग युद्ध के अलावा और किसी वास्तविकता से परचित नहीं. वे पालने से लेकर कब्र तक, वे बर्बरता के समुद्र में दुबकी लगाते रहते हैं ,जहां सभी प्रकार के अत्याचार, बाल सैनिकों की भर्ती, दंडात्मक सैन्य अभियान, बंधक बनाने, पूरी आबादी का विस्थापन,अंधाधुन्ध बममारी का खतरा बढ़ता जा रहा है.
अतीत में जो युद्ध अगली पंक्तियों और कुछ लडाकों तक सीमित थे,अब 20वी और 21वीं सदी के युद्ध सम्पूर्ण युद्ध हैं जो अपने अंदर समूचे सामाजिक जीवन को घेर लेते हैं और उनके प्रभाव दुनियां भर में फैले हुए हैं. ये युद्ध सभी देशों को नीचे धकेल रहे हैं चाहे वे देश उन युद्धों में भागीदार हों अथवा जो प्रत्यक्ष रूप से विरोधी नहीं हैं. 20वीं और 21वीं सदी के युद्धों में, ग्रह पर कोई भी निवासी या स्थान उनके घातक प्रभाव से नहीं बच सकता।
अगली पंक्ति, जो जमीन पर हजारों किलोमीटर तक फैल सकती है, तथा अन्तरिक्ष के माध्यम से समुद्र और हवा में विस्तार पा सकती है, बमों, गोलीबारी,बारूदी सुरंगों और कई मामलों में “दोस्ताना आग” द्वारा जीवन को छोटा कर दिया जाता है. एक जानलेवा पागलपन द्वारा ग्रसित, उच्च रेंकों द्वारा थोपे गए आतंक के माध्यम से मजबूर और चरम स्थितयों में फंसे सभी भागीदारों को सबसे अधिक आत्मघाती, आपराधिक और विनाशकारी कार्यों के लिए मजबूर किया जाता है.
सैन्य मोर्चे की अग्रिम पंक्ति में विनाश की अति-आधुनिक मशीनों की निरंतर तैनाती के साथ “दूरस्थ युद्ध ’जो बिना रुके हजारों बम, गिराने वाले विमान, दुश्मन के ठिकानों पर हमले करने के लिए दूर से नियंत्रित ड्रोन; मोबाईल या स्थाई तोपखाना, फ़ौज दुश्मन को लगातार मार रही है.
तथाकथित फ्रंट एक स्थायी रंगमंच बन जाता है जिसमें समूची आबादी को बंधक बना लिया जाता है, जहाँ पूरा शहर समय- समय पर होने वाली बममारी से कोई भी मौत का शिकार हो सकता है. उत्पादन के क्षेत्रों में लोग बंदूक की नोंक पर काम करने को मजबूर होते हैं, पुलिस पार्टियों, ट्रेड यूनियनों और सभी संस्थानों के नियंत्रण में, “मात्रभूमि की रक्षा’ की सेवा में किया जाने वाले कार्य पूँजीवादी शोषण, नरक से भी बड़ा नरक बन जाता है, जबकि एक ही समय में वे दुश्मनों के बमों से अलग होने जोखिम उठाते हैं.
नाटकीय रूप से दिया जाने वाला भोजन गन्दा बदबूदार सूप है, जहाँ न बिजली है और न पानी और न गर्म रखने वाले यंत्र हैं. लाखों लोग का जीवन जानवरों से भी बदतर बन जाता है. जहाँ आसमान से गिरने वाले हजारों गोले मौत बरसाते हैं या भयानक पीड़ा देते हैं. जमीन पर तैनात असंख्य पुलिस, “मात्रभूमि की रक्षक” कहे जाने वाले भाड़े के राज्य सैनिकों, सशस्त्र ठगों द्वारा गिरफ्तार किये जाने का खतरा हमेशा बना रहता है. शरण लेने के लिए आपके पास सिर्फ चूहों से भरे गंदे और बदबूदार तहखाने रह जाते हैं. सम्मान, सभी से प्राथमिक एकजुटता, आपसी विश्वास तर्कसंगत विचार, और व स्थिति जिसमें पार्टिया और ट्रेड यूनियनें उत्साह के साथ भाग लेते हैं, न सिर्फ सरकार द्वारा बल्कि राष्ट्रीय संघ द्वारा फैलाये गये आतंक के माहौल में बह गए हैं. अब वहां बेतुकी अफवाहें, अत्यधिक अविश्वसनीय खबरें निरंतर प्रसारित होते हैं जिससे निदा, अंधाधुन्द संदेह, बड़े पैमाने पर तनाव और तबाही का उन्मादी माहौल पैदा होता है.
युद्ध एक ऐसी बर्बरता है जो सरकारों द्वारा जानबूझ कर नियोजित की जाती है ,जो जानबूझ कर घ्रणा, “ अन्य से भय” मनुष्य के बीच दरार और विभाजन, मौत के लिए यातना, अधीनता,सामाजिक विकास, शक्ति सम्न्धों के संस्थाकरण को एकमात्र तर्क के रूप में प्रचारित कर इसे बढाती है, यूक्रेन में जापोरिजहिंयंस परमाणु ऊर्जा संयत्र के आसपास हिंसक लड़ाई से पता चलता है कि दोनों पक्षों को चैरनोविल से भी बदतर और यूरोप की आबादी के लिए जबर्दस्त डरावने परिणामों के साथ एक रेडियोधर्मी तबाही को भडकाने के जोखिम के बारे में कोई संदेह नहीं है. गृह पर परिमाणु हथियारों का खतरा मडरा रहा है.
युद्ध की विचारधारा.
पूंजीवाद, इतिहास की सबसे पाखंडी और स्वार्थपूर्ण व्यवस्था है. न्याय, शांति, प्रगति, मानव अधिकार जैसे ऊँचे आदर्शों से सजे अपने हितों को "जनता के हित" के रूप में पेश करना ही इसकी संपूर्ण वैचारिक कला है.
सभी राज्य, इसे न्यायोचित ठहराने और अपने "नागरिकों" को मारने के लिए तैयार रहने के लिए इसे लकडभग्गा में बदलने के लिए डिज़ाइन की गई युद्ध की एक विचारधारा गढ़ते हैं, "युद्ध व्यवस्थित,संगठित, विशाल हत्या है. लेकिन सामान्य मनुष्यों में यह सुनियोजित हत्या तभी संभव है जब पहले नशे की स्थिति निर्मित हो चुकी हो. युद्ध करने वालों का यह हमेशा से आजमाया और परखा हुआ तरीका रहा है. कार्रवाई की पाशविकता को विचार और इंद्रियों की एक अनुरूप पाशविकता मिलनी चाहिए; बाद वाले को पहले वाले को तैयार करना और साथ देना चाहिए" (रोजा लक्समबर्ग, द जूनियस पैम्फलेट).
शांति, महान लोकतंत्रों के पास उनकी युद्ध विचारधारा की आधारशिला के रूप में है "शांति के लिए" प्रदर्शनों ने हमेशा साम्राज्यवादी युद्धों की तैयारी की है. 1914 की गर्मियों में और 1938-39 में लाखों लोगों ने "सद्भावना के लोगों", शोषकों और शोषितों के हाथों में नपुंसक की तरह रोते हुए "शांति के लिए" प्रदर्शन किया, जिसे "लोकतांत्रिक" पक्ष युद्ध की गतिव्रद्धि को सही ठहराने के लिए इस्तेमाल करने की तैयारी कभी बंद नहीं करता.
प्रथम विश्व युद्ध में, शांति के नाम पर वध करने के लिए, जर्मनी ने "शांति की रक्षा" में अपने सैनिकों को जुटाया था, जो "अपने ऑस्ट्रियाई सहयोगी पर साराजेवो के हमले से बिखर गया" लेकिन विरोधी पक्ष में, फ्रांस और ब्रिटेन "जर्मनी द्वारा बिखर गए.” द्वितीय विश्व युद्ध में, फ्रांस और ब्रिटेन ने हिटलर की महत्वाकांक्षाओं के सामने म्यूनिख में "शांति" का प्रयास किया, जबकि यथार्थ में उन्मादी रूप से युद्ध की तैयारी कर रहे थे, और हिटलर और स्टालिन की संयुक्त कार्रवाई से पोलैंड पर आक्रमण ने उन्हें जाने का सही बहाना दिया. युद्ध, यूक्रेन में, 24 फरवरी को आक्रमण से कुछ घंटे पहले तक पुतिन ने कहा कि वह "शांति" चाहते हैं, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका ने पुतिन की गर्मजोशी की लगातार निंदा की.
राष्ट्र, राष्ट्रीय सुरक्षा और इसके इर्द-गिर्द घूमते तमाम वैचारिक हथियार (जातिवाद, धर्म आदि) सर्वहारा वर्ग और पूरी आबादी को साम्राज्यवादी कत्लेआम में लामबंद करने के लिए हुक हैं. "शांति" के समय में पूँजीवाद, "लोगों के बीच सह-अस्तित्व" की घोषणा करता है, लेकिन साम्राज्यवादी युद्ध के साथ सब कुछ गायब हो जाता है, फिर मुखौटे उतर जाते हैं और हर कोई विदेशियों के प्रति घृणा और राष्ट्र की कट्टर रक्षा का राग अलापने लगता है.
वे सभी अपने युद्धों को "रक्षात्मक युद्धों " के रूप में प्रस्तुत करते हैं. सौ साल पहले, सैन्य बर्बरता के प्रभारी मंत्रालयों को "युद्ध मंत्रालय" कहा जाता था; आज उन्हें घोर पाखंड के साथ "रक्षा मंत्रालय" कहा जाता है. रक्षा, युद्ध का अंजीर का पत्ता है, जहां न कोई आक्रमणकारी राष्ट्र नहीं और न कोई हमले का शिकार राष्ट्र. वे सभी युद्ध की घातक मशीनरी में सक्रिय भागीदार हैं. वर्तमान युद्ध में रूस "आक्रमणकारी" के रूप में प्रकट होता है क्योंकि यह वह देश है जिसने यूक्रेन पर आक्रमण करने की पहल की है, लेकिन इससे पहले संयुक्त राज्य अमेरिका ने मैक्याविलियन तरीके से पुरानी वारसॉ संधि के कई देशों में नाटो का विस्तार किया जहां प्रत्येक कड़ी को अलग-अलग करके देखना संभव नहीं है, एक शताब्दी से भी अधिक समय से पूरी मानवता को जकड़े हुए साम्राज्यवादी टकराव की रक्तरंजित श्रखला को देखना आवश्यक है.
वे हमेशा अपने युद्धों को "स्वच्छ युद्ध" की बात करते हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार "मानवीय नियमों" का पालन करता है (या पालन करना चाहिए). " यह निरंकुश सनक और पाखंड के साथ परोसा गया एक घृणित धोखा है! पतनशील पूंजीवाद के युद्ध, दुश्मन के पूर्ण विनाश के अलावा किसी अन्य नियम से नहीं जीते हैं, और इसमें दुश्मन के विषयों को निर्मम बमबारी से आतंकित करना शामिल है. युद्ध में शक्ति का एक रिश्ता स्थापित होता है, जहां कुछ भी हो, सबसे क्रूर बलात्कार से और अपने स्वयं के "नागरिकों" के खिलाफ सबसे अंधाधुंध आतंक के लिए दुश्मन की आबादी को सजा दी जाती है. यूक्रेन पर रूस की बमबारी, इराक पर अमेरिकी बमबारी के नक्शेकदम पर चलती है, अमेरिकी जैसे अफगानिस्तान या सीरिया में रूसी सरकारें और वियतनाम से पहले; मेडागास्कर और अल्जीरिया जैसे अपने पूर्व उपनिवेशों पर फ्रांस द्वारा बमबारी; "लोकतांत्रिक के सहयोगियों" द्वारा ड्रेसडेन और हैम्बर्ग की बमबारी; और हिरोशिमा और नागासाकी की परमाणु बर्बरता, 20वीं और 21वीं सदी के युद्धों के साथ-साथ सभी पक्षों द्वारा बड़े पैमाने पर विनाश के तरीके अपनाए गए हैं, हालांकि लोकतांत्रिक पक्ष आमतौर पर इसका ध्यान उन छिपे स्तम व्यक्तियों को उप-ठेके पर देने का रखता है जिन पर दोष लगाया जाता है.
वे "सिर्फ युद्धों" की बात करने का साहस करते हैं! यूक्रेन का समर्थन करने वाले नाटो पक्ष का कहना है कि यह निरंकुशता और पुतिन के तानाशाही शासन के खिलाफ लोकतंत्र की लड़ाई है और पुतिन का कहना है कि वह यूक्रेन को नाजीवाद से मुक्त करेंगे, जो दोनों ही कोरे झूठ है. "लोकतंत्र" के पक्ष में उसके हाथ उतने ही खून से सने है जितने अनगिनत युद्धों से खून से लथपथ है जो उन्होंने सीधे (वियतनाम, यूगोस्लाविया, इराक, अफगानिस्तान) या परोक्ष रूप से (लीबिया, सीरिया, यमन) उकसाया है; समुद्र में या संयुक्त राज्य अमेरिका या यूरोप के सीमावर्ती क्षेत्रों में मारे गए हजारों प्रवासियों के खून से यूक्रेनी राज्य यूक्रेनी भाषा और संस्कृति को लागू करने के लिए आतंक का उपयोग करता है. यह रूसी बोलने के एकमात्र अपराध के लिए श्रमिकों को मारता है; यह सड़कों पर या सड़कों पर पकड़े गए किसी भी युवा को जबरन भर्ती करता है; यह अस्पतालों सहित, मानव ढाल के रूप में आबादी का उपयोग करता है; यह आबादी को आतंकित करने के लिए नव-फासीवादी गिरोहों को तैनात करता है. अपने हिस्से के लिए, पुतिन, बमबारी, बलात्कार और सारांश निष्पादन के अलावा, हजारों परिवारों को दूरदराज के स्थानों में यातना शिविरों में विस्थापित करता है; "मुक्त" प्रदेशों में आतंक फैलाता है और सेना के लिए यूक्रेन वासियों को अग्रिम पंक्ति में बूचड़खाने भेजकर भर्ती करता है.
युद्ध के वास्तविक कारण
दस हजार साल पहले आदिम साम्यवाद को तोड़ने का एक साधन आदिवासी युद्ध था ,तब से, शोषण पर आधारित उत्पादन के तरीकों के तत्वावधान में, युद्ध सबसे बुरी आपदाओं में से एक रहा है, लेकिन कुछ युद्ध इतिहास में एक प्रगतिशील भूमिका निभाने में सक्षम रहे हैं, उदाहरण के लिए, पूंजीवाद के विकास में, नए राष्ट्रों के निर्माण में, विश्व बाजार का विस्तार करने में, उत्पादक शक्तियों के विकास को प्रोत्साहित करने में युद्धों की प्रगतिवादी भूमिका रही है.
हालाँकि, प्रथम विश्व युद्ध के बाद से दुनिया पूरी तरह से पूंजीवादी शक्तियों के बीच विभाजित हो गई है, ताकि प्रत्येक राष्ट्रीय राजधानी के लिए एकमात्र रास्ता अपने प्रतिद्वंद्वियों के प्रभाव वाले क्षेत्रों बाजारों, रणनीतिक क्षेत्रों को जीतना हो. यह युद्ध और इसके साथ चलने वाली हर चीज़ (सैन्यवाद, हथियारों का विशाल संचय, राजनयिक गठजोड़) को पूंजीवाद के जीवन का स्थायी तरीका बना देता है. यह एक निरंतर साम्राज्यवादी दबाव दुनिया को जकड़ लेता है और बड़े या छोटे सभी राष्ट्रों को नीचे धकेल लेता है, चाहे उनका वैचारिक मुखौटा और बहाना कुछ भी हो, सत्ताधारी पार्टियों का झुकाव, उनकी नस्लीय संरचना या उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत कुछ भी हो. सभी राष्ट्र साम्राज्यवादी हैं. "शांतिपूर्ण और तटस्थ" राष्ट्रों का मिथक एक शुद्ध धोखा है. यदि कुछ राष्ट्र "तटस्थ" नीति अपनाते हैं, तो यह साम्राज्यवादी प्रभाव के अपने स्वयं के क्षेत्र को तराशने के लिए सबसे दृढ़ विरोधी शिविरों के बीच संघर्ष का लाभ उठाने की कोशिश करना है. जून 2022 में, स्वीडन, एक ऐसा देश जो 70 से अधिक वर्षों से आधिकारिक तौर पर तटस्थ रहा है, वह भी नाटो में शामिल हो गया है, लेकिन उसने "किसी भी आदर्श के साथ विश्वासघात नहीं किया है", उसने अपनी साम्राज्यवादी नीति को "अन्य तरीकों से" जारी रखा है.
हथियारों के निर्माण में लगे निगमों के लिए युद्ध निश्चित रूप से अच्छा व्यवसाय है, और यह अस्थायी रूप से विशेष देशों को लाभान्वित भी कर सकता है, लेकिन समग्र रूप से पूंजीवाद के लिए, यह एक आर्थिक तबाही है, एक तर्कहीन बर्बादी है, एक घटाव की ओर क्रम है जो विश्व उत्पादन पर भारी पड़ता है और जो अनिवार्य रूप से और नकारात्मक रूप से कारण बनता है. ऋणग्रस्तता, मुद्रास्फीति और पारिस्थितिक विनाश, कभी भी ऐसा नहीं है जो पूंजीवादी संचय को बढ़ा सके.
प्रत्येक राष्ट्र के अस्तित्व के लिए युद्ध एक घातक आर्थिक भार,एक अपरिहार्य आवश्यकता है. संयुक्त सोवियत संघ का पतन इस लिए हुआ क्योंकि यह संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ टकराव की पागल हथियारों की दौड़ का सामना नहीं कर सका और जो बाद में 1980 के दशक में स्टार वार्स कार्यक्रम की तैनाती के साथ चरम पर पहुंच गया. संयुक्त राज्य अमेरिका, जो द्वितीय विश्व युद्ध का महान विजेता था और 1960 के दशक के अंत तक एक शानदार आर्थिक उछाल का आनंद लिया था, उसने अपने साम्राज्यवादी आधिपत्य को बनाए रखने के लिए कई बाधाओं का सामना किया है, निश्चित रूप से ,ब्लाकों के विघटन के बाद से, जिसने एक के उद्भव का समर्थन किया है. नई साम्राज्यवादी भूखों को फिर से जगाने की गति - विशेष रूप से अपने पूर्व 'सहयोगियों' के बीच - प्रतिस्पर्धा की और हर एक अपने लिए, बल्कि उस विशाल सैन्य प्रयास के कारण भी जो अमेरिकी सेना को 80 से अधिक वर्षों के लिए करना पड़ा है और इसके महंगे सैन्य अभियान हुए हैं विश्व की अग्रणी शक्ति के रूप में अपनी स्थिति को बनाए रखने का उपक्रम करना पड़ा.
पूंजीवाद अपने जीनों में, अपने डीएनए में, सबसे अधिक तीव्र प्रतिस्पर्धा, प्रत्येक के खिलाफ सभी और हर किसी के लिए, प्रत्येक पूंजीपति के लिए, साथ ही हर देश के लिए वहन करता है. पूँजीवाद की यह " जैविक" प्रवृत्ति अपने उत्कर्ष काल में स्पष्ट रूप से प्रकट नहीं हुई क्योंकि प्रत्येक राष्ट्रीय राजधानी को अभी भी अपने प्रतिद्वंद्वियों के साथ संघर्ष में प्रवेश करने की आवश्यकता के बिना अपने विस्तार के लिए पर्याप्त क्षेत्र प्राप्त थे. 1914-89 के बीच बड़े साम्राज्यवादी गुटों के गठन से यह कमज़ोर हो गया था. इस क्रूर अनुशासन के क्रूर अंत के साथ, केन्द्र प्रसारक प्रवृत्तियाँ जानलेवा अव्यवस्था की दुनिया को आकार दे रही हैं, जहाँ विश्व वर्चस्व की वैश्विक महत्वाकांक्षाओं के साथ कोई भी साम्राज्यवाद, साथ ही क्षेत्रीय ढोंगों के साथ साम्राज्यवाद, और अधिक स्थानीय साम्राज्यवाद सभी अपनी विशाल भूखों और अपने हित का पालन करने के लिए मजबूर हैं. इस परिदृश्य में, संयुक्त राज्य अमेरिका अपनी भारी सैन्य शक्ति को लगातार तैनात करके, इसे लगातार बनाकर, और निरंतर, दृढ़ता से अस्थिर करने वाले सैन्य अभियानों को शुरू करके किसी को भी धुंधला करने से रोकने की कोशिश करता है.1990 में, सोवियत संघ रूस की समाप्ति के बाद, शांति और समृद्धि की "नई विश्व व्यवस्था" के वादे को तुरंत खाड़ी युद्ध और फिर मध्य पूर्व, इराक और अफगानिस्तान में युद्धों द्वारा विश्वास दिलाया गया, जिसने युद्ध जैसी प्रवृत्तियों को हवा दी. इस तरह की "दुनिया में सबसे लोकतांत्रिक साम्राज्यवाद", संयुक्त राज्य अमेरिका, अब युद्ध जैसी अराजकता फैलाने और विश्व की स्थिति को अस्थिर करने का मुख्य एजेंट है.
अमेरिका के नेतृत्व को चुनौती देने के लिए चीन पहले क्रम का दावेदार बनकर उभरा है. इसकी सेना, अपने आधुनिकीकरण के बावजूद, अभी भी अपने अमेरिकी प्रतिद्वंद्वी की ताकत और अनुभव हासिल करने से दूर है; इसकी युद्ध तकनीक, इसके आयुध और प्रभावी सैन्य तैनाती का आधार अभी भी सीमित और नाजुक है, जो अमेरिका से बहुत दूर है; चीन प्रशांत क्षेत्र में शत्रुतापूर्ण शक्तियों (जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, ऑस्ट्रेलिया, आदि) की एक श्रृंखला से घिरा हुआ है, जो उसके साम्राज्यवादी समुद्री विस्तार को रोकते है. इस प्रतिकूल स्थिति का सामना करते हुए, इसने एक विशाल आर्थिक-साम्राज्यवादी उद्यम, सिल्क रोड की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य दुनिया के सबसे अस्थिर क्षेत्रों से गुजरते हुए मध्य एशिया के माध्यम से एक वैश्विक उपस्थिति और भूमि विस्तार स्थापित करना है. यह एक बहुत ही अनिश्चित परिणाम के साथ एक प्रयास है जिसके लिए अपने नियंत्रण के साधनों से परे कुल और अथाह आर्थिक और सैन्य निवेश और राजनीतिक-सामाजिक लामबंदी की आवश्यकता होती है, जो अनिवार्य रूप से अपने राज्य तंत्र की राजनीतिक कठोरता पर आधारित है, स्टालिनवाद, माओवाद की एक भारी विरासत अपनी दमनकारी ताकतों का व्यवस्थित और क्रूर उपयोग, ज़बरदस्ती और एक विशाल, अति-नौकरशाही राज्य तंत्र के अधीन होना, जैसा कि सरकार की "कोविद शून्य " नीति के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों की बढ़ती संख्या में देखा गया था. यह पथभ्रष्ट अभिविन्यास और अंतर्विरोधों का संचय है जो इसके विकास को गहराई से कमजोर करता है, अंततः चीन के मिट्टी के पैर वाले कोलोसस को कमजोर कर सकता है. यह अमेरिका की क्रूर और धमकी भरी प्रतिक्रिया, जानलेवा पागलपन की डिग्री, बर्बरता और सैन्यवाद (सामाजिक जीवन के बढ़ते सैन्यीकरण सहित) में अंधी उड़ान की डिग्री को दर्शाती है, कि पूंजीवाद एक सामान्यीकृत कैंसर के लक्षण के रूप में पहुंच गया है जो सबको निगल कर दुनियाँ और अब सीधे तौर पर पृथ्वी के भविष्य और मानवता के जीवन के लिए खतरा है.
तबाही का बवंडर जो दुनिया को डराता है.
यूक्रेन में युद्ध नीले आकाश से निकला तूफान नहीं है; यह 21वीं सदी की सबसे खराब महामारी (अब तक) के बाद है, कोविड, जिसमें 15 मिलियन से अधिक लोग मारे गए हैं, और जिसका कहर चीन में कठोर लॉकडाउन के साथ जारी रहा. हालाँकि, दोनों को उत्तेजना के साथ-साथ मानवता को प्रभावित करने वाली तबाही की एक श्रृंखला के संदर्भ में देखा जाना चाहिए: पर्यावरण विनाश; जलवायु परिवर्तन और इसके अनेक परिणाम; अकाल अफ्रीका, एशिया और मध्य अमेरिका में बड़ी ताकत के साथ लौट रहा है; शरणार्थियों की अविश्वसनीय लहर, जो 2021 में विस्थापित या पलायन करने वाले 100 मिलियन लोगों के अभूतपूर्व आंकड़े तक पहुंच गई; केंद्रीय देशों में व्याप्त राजनीतिक अव्यवस्था जैसा कि हमने ब्रिटेन में सरकारों यूक्रेन में केंद्रीय देशों में व्याप्त राजनीतिक अव्यवस्था,जैसा कि हमने ब्रिटेन में सरकारों या संयुक्त राज्य अमेरिका में लोकलुभावन नारों के भार तथा सबसे दकियानूसी विचारधाराओं के उदय के साथ देखा है.
महामारी ने उन विरोधाभासों को उजागर कर दिया है जो पूंजीवाद को कमजोर करते हैं. एक सामाजिक व्यवस्था जो प्रभावशाली वैज्ञानिक प्रगति का दावा करती है, उसके पास एकांतवास की मध्ययुगीन पद्धति के अलावा कोई अन्य सहारा नहीं है, जबकि इसकी स्वास्थ्य प्रणालियाँ ध्वस्त हो गई हैं और इसकी अर्थव्यवस्था लगभग दो वर्षों से पंगु हो गई है, जिससे आसमान को छूता आर्थिक संकट बढ़ गया है. एक सामाजिक व्यवस्था जो अपने झंडे के रूप में प्रगति का दावा करती है, सबसे पिछड़ी और तर्कहीन विचारधाराओं को जन्म देती है, जो हास्यास्पद साजिश के सिद्धांतों के साथ महामारी के चारों ओर फैल गई है, उनमें से कई "महान विश्व नेताओं" के मुंह से निकली हैं.
सबसे खराब पारिस्थितिक आपदा में महामारी का सीधा कारण है जो वर्षों से मानवता को खतरे में डाल रही है. मानव आवश्यकताओं की संतुष्टि से नहीं बल्कि लाभ से प्रेरित, पूंजीवाद प्राकृतिक संसाधनों तथा मानव श्रम का शिकारी है, क्योंकि लेकिन साथ ही, यह प्राकृतिक संतुलन और प्रक्रियाओं को नष्ट करने की प्रवृत्ति रखता है, उन्हें अराजक तरीके से संशोधित करता है, एक जादूगर के प्रशिक्षु की तरह, तेजी से विनाशकारी परिणामों के साथ सभी प्रकार की तबाही को भड़काते हैं: ग्लोबल वार्मिंग, सूखा, बाढ़, आग, को बढ़ावा देने वाले ग्लेशियरों और हिमखंडों का पतन, अप्रत्याशित परिणामों के साथ पौधों और जानवरों की प्रजातियों का बड़े पैमाने पर गायब होना और मानव प्रजातियों के बहुत गायब होने की सूचना देना जिससे पूंजीवाद आगे बढ़ रहा है. पारिस्थितिक आपदा युद्ध की आवश्यकताओं से, स्वयं युद्ध संचालन से (परमाणु हथियारों का उपयोग एक स्पष्ट अभिव्यक्ति है) और विश्व आर्थिक संकट के बिगड़ने से बढ़ जाती है, जो हर राष्ट्रीय राजधानी को कई क्षेत्रों को तबाह करने के लिए एक कच्चे मॉल की हताश खोज में मजबूर करता है. 2022 की गर्मी पारिस्थितिक स्तर पर मानवता के सामने गंभीर खतरों का एक स्पष्ट उदाहरण है: औसतन और अधिकतम तापमान में वृद्धि - अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रिकॉर्ड शुरू होने के बाद से सबसे गर्म गर्मी - राइन, पोलैंड थेम्स जैसी नदियों को प्रभावित करने वाला व्यापक सूखा, विनाशकारी जंगल की आग,पाकिस्तान जैसी बाढ़ देश के सतह क्षेत्र के एक तिहाई हिस्से को प्रभावित करती है, भूस्खलन और, आपदा के इस विनाशकारी परिदृश्य के बीच, सरकारें युद्ध के प्रयास के नाम पर अपने हास्यास्पद 'पर्यावरण संरक्षण' उपायों को वापस ले लेती हैं.
1919 में कम्युनिस्ट इंटरनेशनल की पहली कांग्रेस द्वारा अपनाए गए घोषणा पत्र मे कहा: "उत्पादन के पूंजीवादी तरीके का अंतिम परिणाम अराजकता है. "वैज्ञानिक द्रष्टिकोण” के विपरीत यह सोचना कि सभी विनाश विभिन्न कारणों से पैदा हुए एक अस्थायी प्रतिमान से अधिक और कुछ नहीं, आत्म्घाती और तर्कहीन है.यह गुजरने वाली घटनाओं के योग से अधिक, प्रत्येक अलग-अलग कारणों से उत्पन्न हुई एक निरंतरता है, अंतर्विरोधों का एक संचय है, जो उन्हें एक साथ बांधने वाला आम खूनी धागा बनाता है, जो मानवता के लिए बना खतरा एक घातक बवंडर में परिवर्तित हो जाता है.
- हम पूँजीवाद के सभी अंतर्विरोधों को एक-दूसरे के साथ मिलाते हुए और विनाश और अराजकता के कारकों पर बढ़ते प्रभाव को भड़काते हुए देख रहे हैं;
- अर्थव्यवस्था न केवल संकट में डूबी है, बल्कि बढ़ती अव्यवस्था (निरंतर आपूर्ति की अड़चनें, अतिउत्पादन की स्थितियों का अभिसरण और माल और श्रम की कमी) में भी डूबी हुई है;
- अधिकांश औद्योगीकृत देश, जिन्हें समृद्धि और शांति का मरुस्थल माना जाता है, अस्थिर हो रहे हैं और स्वयं अंतरराष्ट्रीय अस्थिरता में आश्चर्यजनक वृद्धि के प्रमुख कारक बन रहे हैं.
जैसा कि हमने अपनी 9वीं कांग्रेस (1991) के घोषणापत्र में कहा था: "मानव समाज ने पिछले दो विश्व युद्धों के दौरान इतने बड़े पैमाने पर कत्लेआम नहीं देखा है. कभी भी सेवा या विनाश, मृत्यु में इतने बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक प्रगति का उपयोग नहीं किया गया है और मानव दुख और धन का ऐसा संचय कभी भी साथ-साथ नहीं हुआ, वास्तव में, इस तरह के अकाल और पीड़ा के रूप में पिछले दशकों के दौरान तीसरी दुनिया के देशों में पैदा हुआ. लेकिन ऐसा लगता है कि मानवता अभी तक गहराई तक नहीं पहुंची है. पूँजीवाद के पतन का अर्थ है व्यवस्था की मृत्यु-पीड़ा, लेकिन इस पीड़ा का अपना एक इतिहास है: आज, हम अपने अंतिम चरण में पहुँच चुके हैं, सामान्य अपघटन का चरण। मानव समाज जहाँ खड़ा है, वहीं सड़ रहा है” [3]
सर्वहारा की प्रतिक्रिया
युद्ध से समाज के सभी वर्गों में सर्वहारा ही सबसे अधिक प्रभावित होता है. “ आधुनिक युद्ध” एक विशाल औध्योगिक मशीन द्वारा छेड़ा गया है जो सर्वहारा वर्ग के शोषण की एक बड़ी तीव्रता की मांग करता है. सर्वहारा एक अन्तर्राष्ट्रीय वर्ग है जिसकी कोई मात्रभूमि नहीं, लेकिन मात्रभूमि के नाम पर लड़ा मजदूर वर्ग शोषण और दमन के लिए लडा जाने वाला युद्ध मजदूर वर्ग की हत्या है. सर्वहारा वर्गीय चेतना से लैस एक वर्ग है; युद्ध तर्कहीन टकराव, सभी जागरूक विचारों और प्रतिबिम्बों का परित्याग है. सर्वहारा वर्ग की रूचि सबसे स्पष्ट खोज में है; सत्य, जंजीरों में जकड़ा साम्राज्यवादी प्रचार के झूठ से दम तोड़ता हुआ सत्य, युद्धों में सबसे पहले शिकार होता सर्वहारा वर्ग भाषा, धर्म ,नस्ल और राष्ट्रीयता की बाधाओं से परे एक वर्ग है; युद्ध का घातक टकराव ,राष्ट्रों और आबादी के बीच अलग्गाव, विभाजन टकराव को मजबूर करता है. सर्वहारा वर्ग, भरोसे और आपसी एकजुटता का वर्ग है, युद्ध संदेह,“विदेशी”का खौफ,“ दुशमन “ की सबसे डरावनी घ्रणा है.
क्योंकि युद्ध,सर्वहारा के अस्तित्व के मूल पर हमला कर उसे विकृत करता है. सामान्यीकृत युद्ध सर्वहारा वर्ग की पूर्व हार को आवश्यक बनाता है. प्रथम विश्व युद्ध इसलिए संभव हुआ क्योंकि मजदूर वर्ग की तत्कालीन समाजवादी पार्टियाँ ने ट्रेड यूनियनों के साथ मिल कर हमारे वर्ग को धोखा दिया और दुश्मन के खिलाफ संघ के ढाँचे उनके पूंजीपतियों से जुड़ गए. लेकिन यह विस्वासघात काफी नहीं था. 1915 में, सामाजिक लोकतंत्र के बाम पंथियों ने जिम्बरवाल्ड के साथ एक समूह बनाया और विश्वक्रांति के लिए संघर्ष का झंडा बुलद किया. इसने जन संघर्षों के विकास में योगदान दिया जिसने 1917 की क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया और 1919- 23 में सर्वहारा वर्ग के हमले की विश्वव्यापी लहर; न केवल सर्वहारा अंतर्राष्ट्रीयता के सिद्धांतों की रक्षा में युद्ध के खिलाफ, बल्कि पूँजीवाद के खिलाफ मुखर हो कर शोषण की बर्बर और अमानवीय व्यवस्था को उखाड़ फेंकने की क्षमता रखता है.
1917-18 का एक अविनाशी सबक! प्रथम विश्व युद्ध कूटनीतिक बातचीत इस या उस साम्राज्यवादी शक्ति की विजय से समाप्त नहीं हुआ था.यह सर्वहारा के अन्तर्राष्ट्रीय क्रांतिकारी विद्रो द्वारा समाप्त हुआ था. इस बर्बरता को केवल सर्वहारा ही समाप्त कर सकता है.इसका वर्ग संघर्ष ही पूँजीवाद का विनाश कर सकता है.
दूसरे विश्व युद्ध का रास्ता खोलने के लिए पूंजीपति वर्ग ने सर्वहारा वर्ग की न केवल भौतिक बल्कि वैचारिक हार भी सुनिश्चित की. सर्वहारा वर्ग निर्मम आतंक के अधीन था जहाँ कहीं भी उसके क्रांतिकारी प्रयास आगे बढ़े थे; जर्मनी में नाजीवाद रूस में स्टालिनवाद के तहत, साथ ही इसे फासीवाद विरोधी झंडे और “ समाजवादी पित्रभूमि” सोवित संघ रूस की रक्षा के पीछे , वैचारिक रूप से भर्ती किया गया था. “ अपना आक्रमण शुरू करने में असमर्थ मजदूर वर्ग को दूसरे साम्राज्यवादी युद्ध में हाथपैर बाँध कर झोंक दिया गया था. प्रथम विश्व युद्ध के विपरीत,दुसरे विश्व युद्ध ने मजदूर वर्ग क्रांतिकारी तरीके से ऊपर उठने के साधन उपलब्ध नहीं कराए. इसके बजाय इसे,‘प्रतिरोध’‘फासीवाद विरोधी’ और औपनिवेशिक ‘रास्ट्रीय मुक्ति’
आन्दोलन की ‘महान जीत’ के पीछे लामबंद किया गया.( आई सी सी की पहली अन्तराष्ट्रीय कांग्रेस का घोषणा पत्र 1975 ).
1968 में वर्ग संघर्ष की ऐतिहासिक बहाली के बाद से, और इस अवध के दौरान जब दुनियां दो साम्राज्यवादी गुटों में बंटी हुई थी तब प्रमुख देशों के मजदूरों ने युद्ध द्वारा मांगे गए बलिदानों को देने पितृ भूमि की रक्षा के लिए अकेले जाने से इनकार कर दिया. यह स्थिति, 1989 के बाद से नहीं बदली है.
मंहगाई और युद्ध के खिलाफ संघर्ष
हालांकि, युद्ध के लिए केन्द्रीय देशों के सर्वहारा वर्ग की”गैर-लामबंदी” पर्याप्त नहीं है. 1989 के बाद ऐतिहासक घटनाक्रमों से एक दूसरा सबक उभरता है: युद्ध संचालन के लिए केवल निष्क्रियता, और पूंजीवादी बर्बरता के लिए सरल प्रतिरोध पर्याप्त नहीं है. इस स्तर पर बने रहने से मानवता के विनाश की दिशा में पाठ्यक्रम नहीं रुकेगा.
सर्वहारा को पूँजीवाद के विरुद्ध आम अंतरर्राष्ट्रीय हमले के राजनैतिक क्षेत्र में जाने की आवश्यकता है. केवल “मजदूर वर्ग” ही पूँजी के हमलों का जवाब देने में सक्षम होगा, और अंत में आक्रमण के इस बर्बर व्यवस्था को उखड़ फेंकेगा. धन्य है, वर्तमान ऐतिहासिक स्थिति में विशेष रूप से दाव पर क्या है, जिसके बारे में विशेष जागरूकता के नष्ट होने का खतरा जो सामाजिक विघटन पर मंडराता है; अपने वर्ग युद्ध को जारी रखने विकसित करने औए एकजुट करने का दृढ संकल्प को ; पूंजीपति वर्ग चाहे कितना ही विघठित क्यों न हो जाये,मजदूर वर्ग को अपने जाल में फंसाने की क्षमता बनाये रखता है. (सड़ांध पर थीसिस ,थीसिस 17)
विनाश, बर्बरता और तवाही के संचय की प्रष्ठभूमि, जिसकी हम निंदा करते हैं, वह पूंजीवाद का अपरिवर्तनीय आर्थिक संकट, इसके कामकाज की जड में है 1967 से पूँजीवाद एक आर्थिक संकट में फंस गया है जो पचास साल से बच नहीं पा रहा है.इसके विपरीत, जैसा कि 2018 से हो रही आर्थिक उथल- पुथल और बढती मुद्रास्फीति की वृद्धि से पता चलता है कि गरीबी,बेरोजगारी असुरक्षा और अकाल के अपने परिणामों के साथ स्थिति काफी बिगड़ रही है.
पूंजीवादी संकट इस समाज की नींब को ही प्रभावित करता है. मुद्रास्फीति,असुरक्षा बेरोजगारी नारकीय गति, मजदूरों के स्वास्थ्य,काम करने तथा रहने की बिगडती असहनीय स्थितियां मजदूर वर्ग के जीवन के निरंतर पतन की गवाही देती हैं. हालांकि, पूंजीपति वर्ग, सभी अकल्पनीय विभाजन बनाने की कोशिश करता है, कुछ को अधिक “विशेषाधिकार प्राप्त” स्थिति प्रदान करता है, मजदूरों की श्रेणियां जो हम इसकी मूर्खता में देखते हैं, एक और सम्भवतः पूँजीवाद के ऐतिहासिक परिप्रेक्षके बारे में मार्क्स द्वारा की गई भविश्यवाणी की सटीकता की पुष्टि करते हुए और जिसका अर्थशास्त्रियो और पूंजीपति वर्ग के अन्य विचारकों ने बहुत मजाक उड़ाया है.
पूँजीवाद के संकट को निर्मम रूप से बिगाड़ना वर्ग संघर्ष और वर्ग चेतना के लिए एक आवश्यक प्रेरणा है. संकट के प्रभावों के खिलाफ संघर्ष मजदूर वर्ग की ताकत और एकता के विकास का आधार है. आर्थिक संकट सीधे समाज के बुनियादी ढांचे को प्रभावित करता है; इसलिए यह समाज पर लदे सभी बर्बरता के मूल कारणों को उजागर करता है जिससे सर्वहारा वर्ग व्यवस्था को पूरी तरह नष्ट करने की आवश्यकता के प्रति सचेत हो जाता है और उसके पहलुओं को सुधारने की कोशिश नहीं करता.
पूँजीवाद के क्रूर हमलों के खिलाफ संघर्ष में और आमतौर पर अंधाधुंध तरीके से मजदूरों को प्रभावित करने वाली मंहगाई के खिलाफ, मजदूर अपनी लडाकू क्षमता विकसित करेंगे, वे स्वंय को एक ताकत के साथ एक वर्ग के रूप में पहचानने में सफल होंगे, और स्वायत्तता और समाज में एक ऐतिहासिक भूमिका निभाने लिए वर्ग संघर्ष का यह ऐतिहासिक विकास उन्हें पूँजीवाद को समाप्त करके युद्ध को समाप्त करने की क्षमता प्रदान करेगा.
अब यह परिप्रेक्ष उभरने लगा है: “ बुर्जुआ वर्ग के हमलों के के विरोध में, अब मजदूर वर्ग का गुस्सा बढ़ता जा रहा है और अब ब्रिटेन में मजदूर वर्ग दिखा रहा है कि एक बार फिर अपनी गरिमा के लिए लड़ने और पूँजी द्वारा मांग किये जाने वाले लगातार हो रहे बलिदानों को ख़ारिज करने के लिए तैयार है. यह अन्तराष्ट्रीय गतिशीलता का संकेत है. पिछली शर्दियों में, स्पेन और अमेरिका में हड़तालें दिखाई देने लगीँ; इस गर्मी में जर्मनी और बेल्जियम ने भी वाकआउट का अनुभव किया, और अब टिप्पणीकार आने वाले महीनों में फ़्रांस और इटली में “ विस्फोटक सामाजिक स्थिति “ की भविश्यवाणी कर रहे हैं. यह भविष्यवाणी करना संभव नहीं है कि निकट भविष्य में मजदूरों का जुझारूपन कब और कहाँ बड़े पैमाने पर उभरेगा, लेकिन एक बात निश्चित है: ब्रिटेन में श्रमिकों की लामबंदी का पैमाना एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है. अब निष्क्रियता और सपर्पण के दिन लद चुके हैं और मजदूरों की पीढियां अपना सर उठा रही हैं.(“ शासक वर्क वर्ग और अधिक बलिदानों की मांग करता है, मजदूर वर्ग की प्रातक्रिया संघर्ष करना है” आई सी सी , इंटरनेशनल लीफलेट. अगस्त 2022.)
हम निष्क्रियता और भटकाव के वर्षों में विराम देख रहे हैं. संकट के जवाब में मजदूरों में जुझारूपन की वापसी कम्युनिस्ट संगठनों में हस्तक्षेप से अनुप्राणित चेतना का बन सकती है. यह स्पष्ट है कि समाज के सड़ने में टूटने की प्रतेक अभिव्यक्ति मजदूरों के जुझारू प्रयाशों को धीमा करने, यहाँ तक कि उन्हें पहले पंगु बनाने का प्रबंध करती है: जैसा कि महामारी से प्रभातित फ़्रांस के 2019 के आन्दोलन में हुआ था. इसका अर्थ, संघर्षों के विकास के लिए अतिरिक्त कठिनाई है. हालाँकि, संघर्ष के अलावा और कोई रास्ता नहीं है,, संघर्ष ही पहली जीत है. विश्व सर्वहारा, अपने वर्ग शत्रु के राजनैतिक और ट्रेड यूनियन तंत्रों द्वारा तय की गई वाधाओं और फंदों से भरी एक प्रक्रिया के माध्यम से भी, कड़वी हार के साथ , अपनी वर्ग पहचान को पुन: प्राप्त करने में सक्षम होने की अपनी क्षमताओं को बरकरार रखता है और अंत में इस मरनासन्न व्यवस्था के इसके खिलाफ एक अन्तर्राष्ट्रीय आक्रमण शुरू करता है.
वाधाएं,जिन्हें वर्ग संघर्ष को पार करना है.
मजदूर आन्दोलन के ऐतिहासिक विकास क्रम में, वे देखते हैं कि इक्कीसवीं सदी का बीसवां दसक, काफी महत्वपूर्ण होगा. वे दिखाते हैं, जैसा कि अतीत की तुलना में 2020 से हमने पहले ही अधिक स्पष्ट रूप से देखा है कि पूँजीवाद की सड़ांध ने मानवता के विध्वंस के परिप्रेक्ष को प्रस्तुत किया है. विपरीत ध्रुव पर सर्वहारा वर्ग अक्सर हिचकिचाहट और कमजोरियों से भरे हुए अपने पहले कदम, साम्यवादी परिप्रेक्ष को सामने लाने की अपनी ऐतिहासिक क्षमता की ओर उठाना शुरू कर देगा. विकल्प के दोनों ध्रुवों-मानवता का विनाश या साम्यवादी क्रांति को प्रस्तुत किया जायेगा, हालाँकि, उत्तरार्ध अभी भी बहुत दूर है और खुद को मुखर करने में भारी वाधाओं का सामना कर रहा है.
1. पूंजीपति वर्ग ने रूस की क्रांति के प्रारंभिक विजय के महान झटके और 1917-23 विश्व क्रांतिकारी लहर से सबक लिया है, जिसने 1848 में कम्युनिस्ट घोषणा पत्र “ एक भूत – साम्यवाद का भूत, यूरोप को सता रहा है .... पूंजीपति वर्ग ... अपनी कब्र खोदने वाले सर्वहारा वर्ग को पैदा करता है, को व्यवहार में में उतारा है.
यह सर्वहारा के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग करता है जैसाकि 1917 (4) में रूस और 1918 में जर्मनी में या 1980 में पोलैंड में सामूहिक हड़ताल में देखा गया.
इससे ट्रेड यूनियनों और सभी राजनैतिक रंगों से बने श्रमिकों के संघर्षों के नियंत्रण , विचलन और तोड़फोड़ का विशाल तन्त्र विकसित किया है जोकि अति दक्षिण पन्थ से चरम वामपंथ तक है.
सर्वहारा वर्ग की चेतना और संघर्षो का प्रतिकार करने और बाधा डालने के उद्देश्य से निरंतर वैचारिक अभ्यं चलाने और राजनैतिक युद्धाभियासों को सवन्वित करने के लिए अपने राज्य और जनसंचार माध्यमों के सभी उपकरणों का उपयोग करता है.
2. पूँजीवाद की सड़ांध, भविष्य में विश्वास की कमी को बढाता है. यह अपने आप में सर्वहारा वर्ग के विश्वास को भी कमजोर करता है और पूँजीवाद को उखाड फेंकने में सक्षम एकमात्र वर्ग के रूप में अपनी ताकत में “ हर आदमी को अपने लिए” जन्म देता है, मजदूरों के संघर्षों के विकास और सबसे बढ़ कर उनका क्रांतिकारी राजनीतिकरण में, सामान्यीकृत प्रतिस्पर्धा, विरोधी श्रेणियों में सामाजिक विघटन , निगमवाद सभी वाधाएं हैं.
3 . इस सन्दर्भ में, सर्वहारा को अंतर – वर्गवादी संघर्षों या टुकड़े-टुकड़े लामबंदी (नारीवाद, जातिवाद विरोधे, जलवायु या पर्यावरण संम्बन्धी सवालों ....) पूंजीपतियों के गुटों के बीच टकरावों में धकेल कर सर्वहारा के संघर्षों को भटकाने का दरबाजा खोलते हैं.
4 . “समय, मजदूर वर्ग के पक्ष में नहीं है. जब तक अकेले साम्राज्यवादी युद्ध से समाज के विनाश को खतरा आसन्न था, तब तक सर्वहारा वर्ग के संघर्ष का तथ्य है कि सामाजिक विघटन मजदूर वर्ग को नियंत्रित किये बिना मानवता को नष्ट कर सकता है. क्योंकि जहाँ मजदरों के संघर्ष अर्थव्यवस्था के पतन का विरोध कर सकते हैं. लेकिन, इसके विपरीत, जो साम्राज्यवादी युद्ध जो सर्वहारा द्वारा पूंजीपति वर्ग के ( सिद्धांत ) स्वीकार कर लेने की स्थिति में मजदूर वर्ग को नियंत्रित किए बिना ही सामाजिक सड़ांध को रोकने में शक्तिहीन हो जाता है. जबकि मजदूरों के संघर्ष, आर्थिक ढांचे को विघटित होने से रोक सकते हैं, तब वे व्यवस्था के अन्दर सड़ांध को रोकने में असमर्थ हो जाते हैं. इस प्रकार , सड़ांध द्वारा पेश की गया विश्व युद्ध का खतरा कहीं दूर दिखाई दे सकता है, इसके विपरीत स्थितियां मौजूद हैं, जो आज की स्थिति नहीं है) इसके विपरीत यह स्थिति अधिक घातक है.”
( सड़ांध पर थीसिस-16 )
खतरों की इस विशालता को हमें भाग्यवाद में नहीं धकेलना चाहिए. सर्वहारा वर्ग की ताकत, उसकी कमजोरियां, उसकी कठिनाइयाँ उन वाधाओं की चेतना है जो दुश्मन या परस्थिति स्वयं उसके संघर्ष के खिलाफ खड़ा करती है.” सर्वहारा वर्ग की क्रांतियाँ ...लगातार खुद की आलोचना करती हैं, खुद को अपने रास्ते में लगातार वादा पैदा करती हैं, नये शिरे से शुरूआत करने के लिए पूर्णता की ओर लौटती हैं, वे निर्द्यता के साथ अपने पहले प्रयाशों के आधे- अधूरे उपायों, कमजोरियों और नगण्यता का उपहास उड़ाते हें. ऐसा लगता है कि वे अपने विरोधियों को केवल इसलिए गिरा देते हैं ताकि बाद वाला प्रथ्वी से ऊर्जा प्राप्त कर सके और उसके सामने फिर से पहले से अधिक विशाल बन सके ,लगातार पीछे हटे, अपने स्वयं के लक्ष्यों की अनिश्चित- विशालता जब तक कि ऐसी स्य्थिति नहीं बन जाती जो सभी को पीछे मुड़ना असंभव बना देती है,और परस्थितियाँ स्वयं पुकारती हैं: हिच रोड्स, हिच साल्टा”. ( मार्क्स: लुइ बोनापार्टका 18वां ब्रूमेर)
वामपंथी कम्युनिस्टों की प्रतिक्रिया
यूक्रेन जैसे दूरगामी युद्ध जैसी गंभीर ऐतिहासिक परस्थितियों में सर्वहारा यह देख सकता है कि कौन उसके दोस्त हें और कौन उसके दुश्मन. न केवल पुतिन, ज़ेलेंस्की या ब्राइडेन जैसी प्रमुख हस्तियाँ हैं, बल्कि अति दक्षिणपंथी वामपंथीम औरअति वामपंथी दल भी हैं जो शांतिवाद सहित एक साम्राज्यवाद खेमे के विरूद्ध दूसरे साम्राज्यवाद को सही सही, की तरह के तर्कों के साथ युद्ध का समर्थन के साथ उसका औचित्य ठहराते हैं.
एक शताब्दी से भी अधिक समय से केवल कम्युनिस्ट वामपंथ ही साम्राज्यवादी युद्ध की व्यवस्थित और लगातार विरोद्श करने में सक्षम रहा है और विश्व सर्वहारा क्रांति द्वारा पूँजीवाद के विनाश की दिशा में सर्वहारा वर्ग के वर्ग संघर्ष के विकल्प का वचाव करता रहा है.
सर्वहारा का संघर्ष उसके रक्षात्मक संघर्षो या सामूहिक हड़तालों तक ही सीमित नहीं है. इसका एक अनिवार्य, स्थाई और अविभाज्य घटक इसके कम्युनिस्ट संगठनों का संघर्ष और, अब एक सदी के लिए कम्युनिस्ट वामपथ ही ठोस रूप है. मानवता के विनाश की पूंजीवादी गतिशीलता के सामने वामपंथी कम्युनिस्टों के सभी समूहों की एकता अपरिहार्य है. जैसा कि हम अपनी पहली कांग्रेस( १९७५ ) के मैनिफैस्टो में ही पुष्टि कर चुके हैं:” संप्रदायों के एकेश्वरवाद से अपनी पीठ मोडते हुए, अन्तर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट करंट सभी देशों के कम्युनिस्टों का आव्हान करता है कि वे उनके सामने खडी उन अपार जिम्मेदारियों से अवगत हों उनसे बचने के लिए झूठे झगड़ों, और पुरानी दुनियां द्वारा उन पर थोपे गये उन भ्रामक विभाजनों पर काबू पाने के लिए उनसे दूर रहें. आई सी सी उनसे इस प्रयाश में शामिल होने का आव्हान करता है. इससे पहले कि वर्ग अपने निर्णायक संघर्षों में सलग्न हो ) हिरावल दस्ते के अन्तर्राष्ट्रीय और एकीकृत वर्ग संगठन के सबसे जागरूक अंश के रूप में कम्युनिस्टों को अपना नारा “ सभी देशों के क्रांतिकारियों एक हो”) के रूप में मार्ग प्रशस्त करें.
आई सी सी दिसम्बर 2022
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(1) 1918 में जर्मनी क्रन्तिकारी कोशिश का मुकावला करते हुए सामाजिक लोकवादी नोसके कहा कि वे प्रतिक्रांति के खून खराबा बनने के लिए तैयार हैं.
( 2 ) सड़ांध पर थीसिस-थीसिस 11
( 3 ) कम्युनिस्ट क्रांति या मानवता का विनाश
( 4 ) संयुक्त राज्य अमेरिका ,फ़्रांस , ग्रेट ब्रिटेन और जापान की संयुक्त सेनाओं ने अप्रैल 1918 से एक भयानक गृहयुद्ध में पूर्व ज़ारिस्ट सेना के अवशेषों के साथ सहयोग किया, जिसके कारण ६ मिलियन मौतें हुईं .
7 मार्च को फ़्रांस, , 8 मार्च को इटली , 11 मार्च को ब्रिटेन में आम हड़तालें और विशाल प्रदर्शनों के कारण हर तरफ गुस्सा बढ़ और चहुँ ओर फैल रहा है.
ब्रिटेन में नौ महीने से ऐतिहासिक हड़ताल की लहर चल रही है. बिना पलक झपकाए, दशकों से संयम बरतने के बाद, ब्रिटेन में सर्वहारा वर्ग अब बलिदानों को स्वीकार करने को तैयार नहीं . " बहुत हो गया अब. " फ़्रांस में, यह सेवानिवृत्ति की आयु में वृद्धि जिसने बारूद को चिंगारी लगाई, परिणामस्वरूप, वहां प्रदर्शनों ने लाखों लोगों को “न एक वर्ष अधिक, न एक यूरो कम “ के नारे के साथ सड़कों पर ला खड़ा किया है. स्पेन में , स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के पतन के खिलाफ विशाल रैलियां आयोजित की गईं और कई क्षेत्रों (सफाई, परिवहन, आईटी, आदि) में हड़तालें हुई और अखबारों ने नारा बुलंद किया, "आक्रोश _ आक्रोश दूर से आता है”. जर्मनी में , मुद्रास्फीति से पीड़ित , सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी और उनके डाक सहयोगी वेतन वृद्धि के लिए हड़ताल पर चले गये. . जर्मनी में पहले ऐसा कभी नहीं देखा गया”. ”डेनमार्क में , हड़ताल और प्रदर्शन सैन्य बजट में वृद्धि को वित्तपोषित करने के लिए सार्वजनिक अवकाश को समाप्त करने के खिलाफ आन्दोल्ट शुरू हुआ. पुर्तगाल में, शिक्षक, रेलवे कर्मचारी और स्वास्थ्य की देखभाल करने वाले कर्मचारी भी कम मजदूरी और गिरते जीवन स्तर की लागत के खिलाफ विरोध कर रहे हैं.नीदरलैंड, डेनमार्क, यूनाइटेड राज्यों, कनाडा, मैक्सिको, चीन ... समान असहनीय और अशोभनीय जीवन स्थितियों तथा: "वास्तविक कठिनाई: गर्मी, खाने, खुद की देखभाल करने, ड्राइव करने में सक्षम न होने के खिलाफ, हमला बोल रहे हैं .
मजदूर वर्ग की वापसी
इन सभी देशों में संघर्षों का एक साथ होना कोई आकस्मिक घटना नही. यह हमारे वर्ग की अंतर्रात्मा में वास्तविक परिवर्तन की पुष्टि करता है. तीस साल की घोर निराशा के बाद, अपने संघर्षों के माध्यम से हम कह रहे हैं: " इसे अब हम और बर्दास्त करने के लिए तैयार नहीं , हम लड सकते हैं और हम लड़ेंगे भी “
मजदूर वर्ग में जुझारूपन की यह वापसी, हमें एक साथ खड़े होने, संघर्ष में एकजुटता दिखाने, अपनी लड़ाई में गर्व, गरिमापूर्ण और एकजुट महसूस करने की हिम्मत और प्रेरित करती है. एक बहुत ही सरल लेकिन बेहद मूल्यवान विचार हमारे दिमाग में अंकुरित हो रहा है: हम सब एक ही नाव के सहयात्री हैं!
सफेद कोट, नीले कोट या टाई में कर्मचारी, बेरोजगार, अनिश्चित छात्र, पेंशनभोगी, सार्वजनिक और ....निजी सभी क्षेत्रों से, हम सभी खुद को शोषण की समान स्थितियों से एकजुट एक सामाजिक शक्ति के रूप में पहचानने लगे है. वही पूंजीवाद का संकट, हमारे रहने और काम करने की परिस्थितियों पर वही हमले, हम वही एक समान शोषण सहते हैं .समूचा मजदूर वर्ग इसी संघर्ष में शामिल हैं.
" फ्रांस के प्रदर्शनकारियों की आवाज को स्वर देते हुए मज़दूर एक साथ खड़े हों ", ब्रिटेन में हड़ताल करने वालों को ऊंची आवाज में कहें , " या तो हम एक साथ लड़ेंगे , या हम अंत में सड़क पर सोएंगे ".
क्या हम जीत सकते हैं ?
विगत के कुछ संघर्षों से पता चलता है कि किसी सरकार को पीछे धकेलना तथा उसके हमलों को धीमा करना संभव है.
1968 में , फ्रांस में सर्वहारा वर्ग अपने संघर्षों पर नियंत्रण करके एकजुट हो गया. छात्रों पर किये गए पुलिस दमन के विरोध में 13 मई के विशाल प्रदर्शनों के बाद, वॉकआउट और आम सभाएँ फ़ैक्टरियों में जंगल की आग की तरह फैल गईं और सभी कार्यस्थलों को अपने 9 मिलियन हडतालियों के साथ, इतिहास में अंतरराष्ट्रीय मजदूर वर्ग की इतने बड़ी हड़ताल को समाप्त करने को मजबूर होना पड़ा. मजदूरों के संघर्ष के विस्तार और एकता की इस गतिशीलता का सामना करते हुए, सरकार और यूनियनें आंदोलन को रोकने के लिए सामान्य वेतन वृद्धि पर एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए दौड़ पड़े.
पोलैंड मे 1980 में, खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि का सामना करते हुए, हड़तालियों ने विशाल आम सभाओं में एकजुट होकर, मांगों और कार्यों पर खुद को तय करके, और सबसे बढ़कर संघर्ष को आगे बढ़ाने की निरंतर चिंता करके, संघर्ष को और आगे बढ़ाया. शक्ति के इस प्रदर्शन का सामना करते हुए, केवल पोलिश पूंजीपति ही नहीं काँपते थे, बल्कि सभी देशों के पूंजीपति वर्ग भी काँपते थे.
फ्रांस में, 2006 में लामबंदी के कुछ ही हफ्तों के बाद , सरकार ने अपने " कॉन्ट्राट प्रीमियर एम्बॉचे " को वापस ले लिया। यह क्यों ? किस बात ने पूंजीपत वर्ग को इतना डरा भयभीत कर दिया कि वह इतनी जल्दी पीछे हट गया? पराधीन छात्रों ने, अनियमतीकरण और बेरोजगारी के खिलाफ लड़ाई में विश्वविद्यालयों में बड़े पैमाने पर आम सभाओं का आयोजन किया जिसमे उन्होंने , श्रमिकों, बेरोजगारों और पेंशनभोगियों को खुले रूप में एकाकार होने का नारा दिया. ये सभाएँ आन्दोलन का फेफड़ा थीं, जहाँ बहसें होती थीं और निर्णय लिए जाते थे. परिणाम: हर सप्ताहांत, प्रदर्शनों ने अधिक से अधिक क्षेत्रों को एक साथ ला खड़ा किया. वेतनभोगी और सेवानिवृत्त कर्मचारी इस नारे के तहत छात्रों में शामिल हो गए: " युवा लार्डन्स , पुराने क्राउटन, सभी एक ही सलाद में " की तर्ज पर आंदोलन को एकजुट करने की इस प्रवृत्ति का सामना करने वाले फ्रांसीसी बुर्जुआ और सरकार के पास सीपीई को वापस लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.
इन सभी आंदोलनों में आम तौर पर संघर्ष के विस्तार की गतिशीलता होती है, जिसका श्रेय स्वयं श्रमिकों को अपने नियंत्रण में लेने के लिए जाता है!
आज, चाहे हम वेतनभोगी कर्मचारी हों, बेरोजगार हों, पेंशनभोगी हों, अनिश्चित छात्र हों, हमें अभी भी अपने आप में, अपनी सामूहिक शक्ति में, अपने संघर्षों पर सीधे नियंत्रण करने का साहस करने के लिए आत्मविश्वास की कमी है. लेकिन कोई दूसरा रास्ता भी नहीं है. यूनियनों द्वारा प्रस्तावित सभी "कार्य" हार का कारण बनते हैं. धरना, प्रदर्शन, अर्थव्यवस्था को अवरूद्ध करना... इससे कोई फर्क नहीं पड़ता जब तक ये गतिविधियाँ उनके नियंत्रण में रहती हैं.यदि यूनियनें, परिस्थितियों के अनुसार अपने कार्यों के रूप को बदलते रहना हैं, तो हमेशा एक ही तत्व- क्षेत्रों को एक-दूसरे से विभाजित और अलग करना ताकि हम बहस न करें और संघर्ष का संचालन कैसे करें.
ब्रिटेन में नौ महीनों से यूनियनें क्या कर रही हैं? वे श्रमिकों की पहलकदमी को तितर-बितर कर रही हैं, हर दिन, एक अलग सेक्टर में हड़ताल कर रही हैं. हर एक अपने क क्षेत्र में, हर एक अपनी अलग पिकेट लाइन पर. कोई सामूहिक सभा नहीं, कोई सामूहिक बहस नहीं होने दे रहीं, संघर्ष में कोई वास्तविक एकता नहीं. यह रणनीति की गलती नहीं बल्कि सोची समझी साजिश है.
1984-85 में थैचर सरकार ने ब्रिटेन में मजदूर वर्ग की कमर कैसे तोड़ी? यूनियनों के गंदे काम के माध्यम से जिन्होंने अन्य क्षेत्रों में खनिकों को उनके वर्ग भाइयों और बहनों से अलग कर दिया. उन्होंने उन्हें एक लंबी और निष्फल हड़ताल में कैद कर दिया. एक वर्ष से अधिक के लिए, खनिकों ने " अर्थव्यवस्था को अवरुद्ध करने " के बैनर तले गड्ढों में दबा दिया.अकेले और शक्तिहीन, हडताली अपनी ताकत और साहस के अंत तक लडे लेकिन अंत में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा और उनकी ये हार, पूरे मजदूर वर्ग की हार थी! ब्रिटेन के मजदूर अभी तीस साल बाद सिर उठा रहे हैं, इसलिए यह हार एक महंगा सबक है जिसे विश्व सर्वहारा वर्ग को नहीं भूलना चाहिए.
केवल खुली, विशाल और स्वायत्त सामान्य सभाओं में इकट्ठा होकर, वास्तव में आंदोलन के संचालन पर निर्णय करके, हम सभी क्षेत्रों, सभी पीढ़ियों के बीच एकजुटता से आगे बढ़ते हुए, एकजुट और व्यापक संघर्ष कर सकते हैं, ऐसी सभाएँ जिनमें हम एकजुट महसूस करते हैं और अपनी सामूहिक शक्ति में विश्वास रखते हैं, जिसमें हम तेजी से एकीकृत माँगों को अपना सकते हैं. आम सभाएं जो हमारे वर्गीय भाइयों और बहनों, निकटतम कारखाने, अस्पताल, स्कूल, प्रशासन में श्रमिकों से मिलने के लिए बड़े पैमाने पर प्रतिनिधिमंडल बना सकती हैं .
संघर्ष ही असली जीत है.
"क्या हम जीत सकते हैं?" जवाब है हां, कभी-कभी अगर, और केवल अगर, हम अपने संघर्षों को अपने हाथ में लेते हैं.हम हमलों को पल भर के लिए रोक सकते हैं, सरकार को पीछे हटा सकते हैं.
लेकिन सच्चाई यह है कि वैश्विक आर्थिक संकट सर्वहारा वर्ग के पूरे वर्गों को गरीबी में धकेल देगा. बाजार और प्रतियोगिता के अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में बने रहने के लिए, हर देश में हर पूंजीपति, चाहे उसकी सरकार वामपंथी हो, दक्षिणपंथी हो या केंद्र, पारंपरिक या लोकलुभावन, रहने और काम करने की स्थिति को तेजी से असहनीय बनाने जा रहा है.
सच्चाई यह भी है कि ग्रह के चारों कोनों में युद्ध अर्थव्यवस्था के विकास के साथ, पूंजीपति वर्ग द्वारा मांगे गए "बलिदान" अधिक से अधिक असहनीय होंगे.
सच्चाई यह है कि राष्ट्रों, सभी राष्ट्रों के बीच साम्राज्यवादी टकराव विनाश और खूनी अराजकता का एक सर्पिल है जो पूरी मानवता को उसके विनाश की ओर ले जा सकता है. यूक्रेन में हर दिन मनुष्यों की एक धारा, कभी-कभी 16 या 18 साल की उम्र के लोगों को मौत के घृणित साधनों से कुचला जा रहा है, चाहे वह रूसी हो या पश्चिमी.
सच्चाई यह है कि फ्लू या ब्रोंकियोलाइटिस की साधारण महामारी अब थकी हुई स्वास्थ्य प्रणालियों को उनके घुटनों पर ला रही है.
सच्चाई यह है कि पूंजीवाद ग्रह को तबाह करना जारी रखेगा और जलवायु के साथ कहर बरपाएगा, जिससे विनाशकारी बाढ़, सूखा और आग लग जाएगी.
सच्चाई यह है कि लाखों लोग युद्ध, अकाल, जलवायु आपदा, या तीनों, केवल दूसरे देशों की कंटीली तारों की दीवारों से टकराने के लिए, या समुद्र में डूबने के लिए, पलायन करते रहेंगे.
तो सवाल उठता है: कम वेतन के खिलाफ, कामगारों की कमी के खिलाफ, इस या उस "सुधार" के खिलाफ लड़ने का क्या मतलब है? क्योंकि हमारे संघर्षों में वर्ग या शोषण के बिना, युद्ध या सीमाओं के बिना, दूसरी दुनिया की आशा उम्मीद है.
संघर्ष ही असली जीत है. संघर्ष में प्रवेश करने, अपनी एकजुटता विकसित करने का साधारण तथ्य ही जीत की गारंटी है. एक साथ लड़कर, इस्तीफा देने से इंकार करके, हम कल के संघर्षों को तैयार करते हैं और अपरिहार्य पराजयों के बावजूद हम थोड़ा-थोड़ा करके एक नई दुनिया के लिए स्थितियां बनाते हैं.
संघर्ष में हमारी एकजुटता प्रतिद्वंद्वी कंपनियों और राष्ट्रों में विभाजित इस व्यवस्था की घातक प्रतिस्पर्धा का प्रतिकार है.
पीढ़ियों के बीच हमारी एकजुटता इस प्रणाली के अ-भविष्य और विनाशकारी चक्र के विपरीत है.
हमारा संघर्ष सैन्यवाद और युद्ध की वेदी पर खुद को बलिदान करने से इनकार करने का प्रतीक है .
मजदूर वर्ग का संघर्ष तत्काल पूंजीवाद और शोषण की बुनियाद के लिए एक चुनौती है.
हर हड़ताल अपने भीतर क्रांति के बीज लिए होती है.
भविष्य वर्ग संघर्ष का है!
अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट करंट (25 फरवरी 2023)
वर्तमान और भविष्य के संघर्षों के लिए हमें फिर से संगठित होना होगा, बहस करनी होगी, सबक सीखना होगा
पूरे मजदूर वर्ग के स्वायत्त संघर्ष को तैयार करने के लिए एक साथ इकट्ठा होना चाहिए, चर्चा करनी चाहिए और अतीत के पाठों को फिर से लागू करना चाहिए. काम पर, प्रदर्शनों में, नाकेबंदी पर, धरने पर, हमें इस पर बहस और चिंतन करने की जरूरत है कि मजदूर वर्ग अपने संघर्षों को अपने हाथों में कैसे ले सकता है, कैसे वह खुद को स्वायत्त आम सभाओं में संगठित कर सकता है, कैसे एक व्यापक दायरेमें आन्दोलन का विस्तार कर सकता है?
सार्वजनिक बैठकें
इसी भावना से हम कई देशों में जनसभाओं का आयोजन कर रहे हैं. यूके में अगला 1 अप्रैल को दोपहर 3 बजे, द लुकास आर्म्स, 245ए ग्रेज़ इन रोड, लंदन WC1X 8QY में है। इस बैठक में ऑनलाइन भाग लेना भी संभव होगा - ऐसा करने के लिए यूके से [email protected] पर लिखें कहीं और, [17][email protected] [1]पर लिखें और हम लिंक भेज देंगे.। हमारी बैठकों की तारीखें और स्थान हमारी वेबसाइट: en.internationalism.org पर उपलब्ध है.
आओ और चर्चा करें!
बीते वर्ष, वैश्विक पूँजीवाद के प्रमुख देशों और दुनियां भर में मजदूरों के संघर्ष फूट पड़े हैं. हड़तालों की यह श्रंखला 2022 की गर्मियों में ब्रिटेन से शुरू हुई और तब से फ़्रांस, जर्मनी, स्पेन, नीदरलेंड, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, कोरिया तथा तमाम अन्य देशों के मजदूर संघर्ष में कूद पड़े हैं. श्रमिक वर्ग, रहन- सहन और कार्य करने की बिगडती परस्थितियों में दिन पर दिन आ रही भारी गिरावट, असमान को छूती मंहगाई, आर्थिक अस्थिरता के परिणामस्वरूप, बड़े पैमाने पर बढ़ती बेरोजगारी, पारिस्थितिकी जकडन तथा उक्रेन में बर्बर युद्ध से जुडी सैन्य बर्बरता की तीव्रता के कारण, फूटे गुस्से के खिलाफ हर जगह मजदूर वर्ग सर उठा रहा है.
तीन दशकों की इतनी लम्बी अवधि में, दुनियां के इतने सारे देशों में एक साथ संघर्ष की ऐसी लहर नहीं देखी है. पूर्वी गुट के 1989 में पतन और कथित “ साम्यवाद की म्रत्यु” के अभियानों ने विश्व स्तर पर वर्ग संघर्ष में गहरी गिरावट ला दी थी. यह प्रमुख घटना, स्तालिनवादी गुट और दुनियां की दो सबसे बड़ी शक्तियों में से एक, यूएसएसआर का विस्फोट, पूंजीवादी पतन के नये और उससे भी अधिक विनाशकारी चरण में प्रवेश की सबसे प्रभावशाली अभिव्यक्ति जो पूँजीवाद के विघटन के रूप में प्रकट हुई. [1] अपने पैरों पर खड़े समाज का सडना, सभी स्तरों पर बढती हिंसा और अराजकता, शून्यवादी और निराशाजनक वातावरण, सामाजिक परमाणुकरण की प्रव्रर्ति, इन सभी का वर्ग संघर्ष पर नकारत्मक प्रभाव पडा. इस प्रकार हमने, 1968 से शुरू होने वाली पिछली अवधि की तुलना में जुझारूपन में काफी कमजोरी देखी है. ब्रिटेन में तीन दशकों से अधिक समय से संघर्ष के लम्बे अनुभव वाले सर्वहारा वर्ग के मजदूर वर्ग में पदत्याग की प्रवृति देखी गई, वह, इस पीछे हटने की वास्तविकता को दर्शाता है. पूंजीपति वर्ग के हमलों, बेहद क्रूर “सुधारों” बड़े पैमाने पर गैर- औध्योगीकरण और जीवन स्तर में काफी गिरावट का सामना करते हुए,1985 में थैचर द्वारा खनिकों को दी गई करारी हार के बाद से देश के श्रमिकों ने कोई महत्वपूर्ण लामबंदी नहीं देखी. हालांकि, मजदूर वर्ग ने यदा-कदा जुझारूपन के संकेत दिए हैं और संघर्ष के अपने हथियारों को फिर से इस्तेमाल करने की कोशिश की है. (फ़्रांस में 2006 में कांटराट डी प्रीमियर एम्प्लोय (सीपीई) के खिलाफ, 2011 में स्पेन में इन्डिगनोज आन्दोलन, पेंशन सुधार के खिलाफ फ़्रांस में (2019 पहली लामबंदी,यह साबित करते हुए कि इसे, किसी भी तरह से इतिहास के मंच से हटाया नहीं गया है, इसकी लामबंदी काफी हद तक अनुवर्ती कार्रवाई के बिना बनी हुई है. अधिक वैश्विक आन्दोलन फिर से शुरू करने में असमर्थ है. ऐसा क्यों था? क्योंकि न केवल श्रमिकों ने पिछले कुछ वर्षों से अपनी लड़ाई की भावना खो दी बल्कि, उन्हें अपने वर्ग में वर्ग चेतना का भी गिरावट का सामना करना पड़ा है, जिसे पुनः हासिल करने के लिए उन्होंने 1970 और 1980 के दशक में बहुत संघर्ष किया था. मजदूर वर्ग का अपने संघर्षों से सबक, यूनियनों के साथ अपने टकराव, “लोकतान्त्रिक” राज्य द्वारा बिछाए गए जाल में अपना आत्मविश्वास खोना, एकजुट होने की क्षमता, सामूहिक रूप से लड़ने की क्षमता को काफी हद तक भूल गए थे. यहाँ तक कि वे काफी हद तक अपने कार्यभार को भी भूल गए थे. पूंजीपति वर्ग के विरोधी और अपने क्रांतिकारी द्रष्टिकोण रखने वाले वर्ग के रूप में पहचाना. इस तर्क के आधार पर, स्तालिनवाद की भयावहता के साथ साम्यवाद वास्तव में मृत लग रहा था और मजदूर वर्ग अब अस्तित्व मे नहीं था.
और फिर भी,कोविद-19 की वैश्विक महामारी के बाद से पूंजीवादी व्यवस्था में सड़ांध की प्रक्रिया में उल्लेखनीय सामना करना पड़ा. [2] स्थिति को और भयावह बनाने के लिए उक्रेन में युद्ध में हो रहे नरसंहार और श्रन्खलावद्ध प्रतिक्रियाओं के साथ इसने आर्थिक, सामाजिक, पारस्थितिक और राजनातिक स्तरों पर भी उकसाया है, फिर भी मजदूर वर्ग हर जगह विरोध में सर उठा रहा है, लड़ने के लिए आगे आरहा है और तथा कथित “सार्वजनिक “ भलाई के नाम पर बलिदान करने के लिए इंकार कर रहा है, पूंजीपति वर्ग के हमलों के प्रति यह एकमुश्त अधिचर्त्मिक प्रतिक्रिया,क्या यह एक संयोग है? नहीं! “ बहुत हो गया” का यह नारा, इस सन्दर्भ में पूंजीवादी व्यवस्था की व्यापक अस्थिरता स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि वर्ग की भीतर मानसिकता में वास्तविक परिवर्तन हो रहा है. जुझारूपन की ये सभी अभिव्यक्तियां एक नई स्थिति का हिस्सा हैं जो वर्ग संघर्ष के लिए खुल रही हैं. एक नया चरण जो पिछले तीन दशकों की निष्क्रियता, भटकाव को तोड़ता है.
गत वर्ष, संघर्षों का एक साथ विस्फोट कहीं भी नहीं हुआ. वे पिछले परीक्षणों के दौरान किए गये प्रयास और त्रुटी की एक श्रंखला के माध्यम से वर्ग में प्रतिबिम्ब की पूरी प्रक्रिया का उत्पाद है, जिसने पहले से ही, 2019 के अंत में, “पेंशन सुधार” के खिलाफ फ़्रांस में पहली लामबंदी के दौरान, आईसीसी ने पीढ़ियों और विभिन्न क्षेत्रों के बीच एकजुटता की मजबूत आवश्यकता की अभिव्यक्ति की पहचान की थी. इस आन्दोलन के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ-साथ फिनलेंड में भी दुनियां भर के अन्य मजदूरों के संघर्ष हुए थे, लेकिन मार्च 2020 में कोविड की महामारी के विस्फोट के कारण यह समाप्त हो गया था. इस तरह, अक्टूबर 2021 में भी हडतालें हुईं. संयुक्त राज्य अमेरिका में विभिन्न क्षेत्रों में संघर्ष शुरू हो गया, लेकिन इस बार उक्रेन में युद्ध छिड़ जाने के कारण संघर्ष की गति बाधित हो गई, जिसने शुरू में विशेषकर यूरोप में मजदूरों को पंगु बना दिया.
प्रयास और भूल तथा परिपक्वता की यह लम्बी प्रक्रिया 2022 की गर्मियों के बाद से पूँजीवाद की अस्थिरता से उत्पन्न होने वाले हमलों के सामने मजदूरों द्वारा अपने स्वयं के वर्ग क्षेत्र में एक निर्धारित प्रतिक्रिया के रूप में सामने आई. ब्रिटेन के श्रमिकों ने अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संघर्ष में एक नये युग की शुरूआत की, जिसे “क्रोध की गर्मी” कहा गया. “बहुत हो गया” का नारा यूनैत्द३ में सम्पूर्ण सर्वहारा संघर्ष के प्रतीक के रूप में स्थापित किया गया था. यह नारा कोई विशिष्ट मांग को पूरा करने को व्यक्त नहीं करता था, बल्कि शोषण की स्थितियों के खिलाफ एक विद्रोह भर व्यक्त करता था. इससे पता चला कि मजदूर अब दयनीय समझौतों को निगलने के लिए तैयार नहीं थे, बल्कि दृढ संकल्प के साथ संघर्ष जारी करने के लिए अमादा थे. ब्रिटिश श्रमिकों का आन्दोलन विशेषरूप से प्रतीकात्मक था, क्योंकि 1985 के बाद यह पहली बार है कि श्रमिक वर्ग का यह क्षेत्र केंद्र में आया है, और जैसे ही दुनियां भर में मुद्रास्फीति का संकट और गहरा गया, यूक्रेनी संघर्ष और युद्ध के कारण अर्थव्यवस्था की तीव्रता और गहराया. स्पेन, संयुक्त राज्य अमेरिका में स्वास्थ्य कार्यकर्ता भी आक्रामक हो गए, जिसके बाद नीदरलेंड में हड़तालों की लहर चल पडी, जर्मनी में परिवहन कर्मचारियों की विशाल हड़ताल, चीन में वकाया वेतन और अतिरेक के खिलाफ 100 से अधिक हड़तालें, ग्रीस में एक भयानक ट्रेन दुर्घटना के बाद हडताल और प्रदर्शन, पुर्तगाल में उच्च वेतन और बेहतर काम करने की स्थिति की मांग करने वाले शिक्षक, 10,000 सिविल सेवक उच्च वेतन की मांग कर रहे हैं, कनाडा में वेतन, और सबसे ऊपर फ़्रांस में पेंशन सुधार के खिलाफ सर्वहारा वर्ग का एक बड़ा आन्दोलन सभी का ध्यान बर्वस अपनी ओर खींचता है.
इस दीर्घावधि में, पूंजीवादी मितव्यता के विरूद्ध इस लामबंदी की अत्यंत महत्वपूर्ण प्रकृति इस तथ्य में निहित है कि, इनमें युद्ध का विरोध भी शामिल है. वास्तव में, यदि युद्ध के था खिलाफ आईसीसी ने पहले ही बता दिया था कि श्रमिकों की प्रतिक्रिया उनकी क्रय शक्ति पर हमलों के प्रतिरोध में प्रकट होगी, जो संकटों की तीव्रता और आपदाओं के बीच अंतरसम्बन्ध के परिणाम स्वरूप होगी, और यह यूक्रेनी “लोगों के वीरतापूर्ण प्रतिरोध का समर्थन के लिए बलिदानों को स्वीकार करने के लिए बुलाये जाने वाले अभियानों के विपरीत भी चलेगा. पिछले वर्ष के संघर्षों के बीज भी यही थे. चाहे, मजदूर अभी तक इस बाबत अनभिज्ञ क्यों न रहे हों; शाशक वर्ग के स्वार्थों के लिए अधिक से अधिक बलिदान देने से इनकार, राष्ट्रीय अर्थ व्यवस्था के लिए बलिदान से इनकार और युद्ध के प्रयास के लिए, इस प्रणाली के तर्क को स्वीकार करने से इनकार, जो मानवता को तेजी से विनाशकारी स्थिति की ओर धकेल रहा है.
इन संघर्षों में मजदूरों के मन में एक विचार उभरने लगा है कि “हम सभी एक नाव में हैं.” ब्रिटेन में धरना, प्रदर्शन और हडताल करने वालों ने हमें बताया कि उन्हें लगता है कि वे यूनियनों की कार्पोरेट मांगों से कहीं बड़ी चीज के लिए लड रहे हैं. “ हम सभी के लिए” बैनर, जिसके तहत 27 मार्च को जर्मनी में हडताल हुई, वर्ग में होने वाली सामान्य भावना के लिए महत्वपूर्ण है: हम सभी एक दूसरे के लिए लड़ रहे हैं.” लेकिन फ़्रांस में एक हो कर लड़ने की आवश्यकता सबसे स्पष्ट रूप से व्यक्त की गई थी. यूनियनों ने “ फ़्रांस में गतिरोध लाने लिए कथित “रणनीतिक” क्षेत्रों (जैसे ऊर्जा या कचरा संग्रहण) के पीछे प्राक्सी द्वारा हडताल “ के जाल में फंसा कर आन्दोलन को विभाजित करने और सडाने की कोशिश की. लेकिन मजदूर सामूहिक रूप से इसके झांसे में नही आये और एकजुट हो कर लड़ने के लिए प्रतिबद्ध रहे.
फ़्रांस में तेरह दिनों की लामबंदी के दौरान आईसीसी ने 150,000 से अधिक पर्चे बांटे: ब्रिटेन और अन्य स्थानों पर जो कुछ हो रहा था उसमें रूचि कभी कम नहीं हुई. कुछ प्रदर्शनकारियों के लिए, ब्रिटेन की स्थिति के साथ सम्बन्ध स्पष्ट दिखाई दे रहा था: “यह हर जगह, हर देश में समान है.” यह कोई संयोग नहीं था कि “मोबिलियर नेशनल की यूनियनों को” ब्रिटिश मजदूरों के साथ एकजुटता” के नाम पर चार्ल्स ||| (तृतीय) की पेरिस यात्रा (रद्द किये जाने ) के दौरान हड़ताल की कार्रवाई का दायित्व लेना पड़ा. फ़्रांस में सरकार के अनमनेपन के बावजूद, पूंजीपति के पीछे हटने या वास्तव में ब्रिटेन या अन्य जगहों पर बेहतर मजदूरी हासिल करने में विफलताओं के बावजूद, श्रमिकों की सबसे बड़ी जीत संघर्ष और जागरूकता ही है. निस्संदेह, उन्हें भले ही, अपनी प्रारम्भिक अवस्था में और अधिक भ्रम था, कि हम एक ही शक्ति का निर्माण करते हैं, कि हम सभी शोषित लोग हें, जो अपने- -अपने कोने में हुई, पूँजी के खिलाफ कुछ नहीं कर सकते हैं, लेकिन संघर्ष में जो एकजुट हो कर, इतिहास में सबसे बड़ी सामाजिक शक्ति बन सकते हैं.
कुछ लोगों का मत है कि मजदूरों को अभी भी संघर्षों को अपने हाथों में लेने की शक्ति और क्षमता पर भरोसा नहीं है. हर जगह यूनियनों ने आंदोलनों पर नियन्त्रण बना रखा है, विभिन्न क्षेत्रों के बीच कठोर अलगाव बनाये रखते हुए, एकता की आवश्यकता को बेहतर ढंग से निष्फल करने के लिए अधिक लडाकू भाषा बोली जा रही है .ग्रेट ब्रिटेन में मजदूर अपनी कम्पनियों की धरना लाइनों के पीछे अलग-थलग रहे, हालांकि, यूनियनों को कथित “एकात्मक” प्रदर्शनों की पैरौडी ( नकल) आयोजित करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इसी तरह, फ़्रांस में, जब श्रमिक विशाल प्रदर्शनों में एक साथ आते थे, तो यह हमेशा यूनियनों के नियंत्रण में होता था, जो श्रमिकों को अपनी कम्पनियों और क्षेत्रों के बैनर के पीछे छिपा कर रखते थे. कुल मिला कर, अधिकांश संघर्षों में कार्पोरेटी कारावास जैसी एक स्थिर स्थिति बनी रही.
ह्ड़तालों के दौरान, पूंजीपति वर्ग, विशेष रूप से इसके वामपंथी गुटों द्वारा बुर्जुआ “अधिकारों” के भ्रामक क्षेत्र पर क्रोध और आक्रोश बनाये रखने के लिए डिजायन किये गये पारस्थितिकी , नस्लवाद -विरोध,लोकतंत्र की रक्षा, गोरे- काले, नारी- पुरुष या बूढ़े -जवान के बीच भेद बनाये रख, श्रमिक आन्दोलन में भ्रम बनाये रखने के लिए अपना वैचारिक अभियान जारी रखा. फ़्रांस में पेंशन सुधर आन्दोलन के बीच, हमने “ विकास के आस-पास दोनों पर्यावरणवादी अभियानों के विकास तथा “मेगा पूल” और पुलिस दमन के खिलाफ लोकतांत्रिक अभियान को देखा. हालाँकि, श्रमिकों के अधिकांश संघर्ष वर्गक्षेत्र में बने हुए हैं, अर्थात, मुद्रास्फीति अतिरेक सरकारी मितव्यता उपायों आदि के सामने श्रमिकों की भौतिक स्थितियों की रक्षा, इन विचारधाराओं द्वारा महानतकश वर्ग के लिए उत्पन्न खतरा काफी बना हुआ है.
वर्तमान काल में, कई देशों में संघर्षो का वेग कम हो गया है, लेकिन इसका यह अर्थ यह कतई नहीं कि मजदूर निराश या पराजित हो गये हैं. ब्रिटेन में हड़तालों की लहर पूरे एक साल तक जारी रही, जबकि फ़्रांस में प्रदर्शन पांच महीने तक चले, इस तथ्य के बावजूद कि अधिकांश मजदूरों को शुरू से ही पता था कि पूंजीपति उनकी मांगों को तत्काल ही नही मान लेंगे. नीदरलेंड में सप्ताह- दर सप्ताह, फ़्रांस में माह- दर माह और ब्रिटेन में पूरे एक वर्ष तक मजदूरों ने काम करने से इनकार कर दिया. इन श्रमिकों की लामबंदी ने दिखाया कि मजदूर अपने जीवन स्तर में और गिरावट स्वीकार नहीं करने के लिए दृढ हैं. सत्ताधारी वर्ग के तमाम झूठों के बावजूद संकट थमने वाला नहीं है: आवास, हीटिंग,और भोजन की कीमतें बढना बंद नहीं होने वाली हैं, अतिरेक और असुरक्षित अनुबंध जारी रहेंगे, सरकारें अपने हमले जारी रखेंगी.
निस्संदेह, संघर्ष की यह नई गतिशीलता अभी अपनी प्रारम्भिक अवस्था में ही है, और मजदूर वर्ग के लिए, “उसकी अभी ऐतिहासिक कठिनाइयाँ कायम हैं. अपने स्वयं के संघर्षों को संगठित करने की क्षमता और इससे भी अधिक अपनी क्रांतिकारी परियोजना के बारे में जागरूक होने की क्षमता अभी भी बहुत दूर है, लेकिन पूंजीपति वर्ग द्वारा रहने और काम करने की स्थितियों पर किये गए क्रूर प्रहारों के सामने बढता जुझारूपन वह उपजाऊ जमीन है, जिस पर सर्वहारा वर्ग अपनी वर्ग पहचान को फिर से खोज सकता है, फिर से जागरूक हो सकता है: कि वह क्या है? जब श्रमिक अपनी ताकत के बारे में वह संघर्ष करता है, जब वह अपनी एकजुटता दिखाता है और अपनी एकता विकसित करता है. यह एक प्रक्रिया है, एक संघर्ष है जो वर्षों की निष्क्रियता के बाद फिर से शुरू हो रहा है, यह सम्भावना जो वर्तमान हड़तालों से चलती है.” [3] कोई नहीं जानता कि कहाँ और कब महत्वपूर्ण नये संघर्ष खड़े होंगे, लेकिन यह तय है कि मजदूर वर्ग को हर जगह संघर्ष करते रहना होगा.
हम में से लाखों लोग लड़ रहे हैं, अपने वर्ग को सामूहिक शक्ति को महसूस कर रहे हैं. जब सड़कों पर कंधे से कंधा मिला कर खड़े हैं, यह आवश्यक है. लेकिन यह किसी भी तरह पर्याप्त नहीं है. सीपीई के खिलाफ संघर्ष के दौरान 2006 में फ्रांसीसी सरकार पीछे हट गई, इसलिए नहीं कि सडकों पर अनिश्चित अनुबंधों पर अधिक छात्र और युवा लोग थे, बल्कि इसलिए कि उन्होंने संप्रभु, सभी के लिए खुली विशाल सभाओं के माध्यम से यूनियनों से आन्दोलन पर नियंत्रण ले लिया था. यह सभाएं ऐसी जगह नहीं हो रहीं थीं जहाँ मजदूर अपने ही क्षेत्र या कम्पनी तक सीमित थे, बल्कि, वे, वह जगहें थीं जहाँ से सक्रिय एकजुटता की तलाश के लिए बड़े पैमाने पर प्रतिनिधिमंडल निकटतम कम्पनियों के लिए रवाना हुए थे. आज, संघर्ष को सभी क्षेर्त्रों तक विस्तारित करने की चाह में मजदूर वर्ग की असमर्थता सक्रिय रूप से संघर्ष को हाथों में लेने में असमर्थ है. यही कारण है कि पूंजीपति वर्ग पीछे नहीं हटा है. हालाँकि, अपनी पहचान को पुन: प्राप्त करने से श्रमिक वर्ग अपने अतीत को पुन: हासिल करने में सक्षम हो गया है. फ़्रांस में मार्च में, “मई 6 और सीपीई के खिलाफ 2006 के संघर्ष का सन्दर्भ कई गुना बढ़ गया है.’ 68 में क्या हुआ था? 2006 में हमने सरकार को पीछे हटने के लिए मजबूर किया? वर्ग के अल्पसंख्यक वर्ग में, चिन्तन की प्रक्रिया चल रही है, जो पिछले वर्ष के आन्दोलन से सबक सीखने और भविष्य में संघर्षों की तैयारी करने का एक अनिवार्य साधन है, जिसे फ़्रांस में 1968 अथवा 1980 में पोलेंड के संघर्षों से भी आगे जाना होगा .
जिस प्रकार, हाल के संघर्ष पिछले कुछ समय से विकसित हो रही , भूमिगत परपक्वता की प्रणाली का परिणाम है, उसी प्रकार हाल के संघर्षों से सबक सीखने के अल्पसंख्यकों के प्रयाश आगे आने वाले संघर्षों में फलदायी होंगे .मजदूर यह पहचानें कि यूनियनों द्वारा थोपे गये संघर्षों के अलगाव को केवल तभी दूर किया जा सकता है जब वे सामान्य सभाओं और निर्वाचित हड़ताल समितियों जैसे सन्गठन के स्वायात्व रूपों को फिर से खोज लें, और यदि वे संघर्ष को सभी कार्पोरेटी विभाजनों से परे बढ़ाने की पहल करें.
ए और डी. 23 अगस्त 2023
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[1] सीएफ. " विघटन पर थीसिस [2]"; (मई 1990)", अंतर्राष्ट्रीय समीक्षा संख्या 107 (2001).
[2] देखें " अपघटन पर थीसिस का अद्यतन (2023) [18]", अंतर्राष्ट्रीय समीक्षा संख्या 170 (2023).
[3] " वर्ग संघर्ष पर रिपोर्ट 25वीं आईसीसी कांग्रेस [19]”, अंतर्राष्ट्रीय समीक्षा संख्या 170 (2023)।
"अब बहुत हो गया है!" – ब्रिटेन. "न एक वर्ष अधिक, न एक यूरो कम" – फ्रांस. "आक्रोश गहरा चलता है" – स्पेन. "हम सभी के लिए" – जर्मनी. हाल के महीनों में हड़तालों के दौरान दुनिया भर में लगे ये सभी नारे दिखाते हैं कि मौजूदा मज़दूर संघर्ष हमारे रहने और काम करने की स्थिति में सामान्य गिरावट की अस्वीकृति को कितना व्यक्त करते हैं. डेनमार्क, पुर्तगाल, नीदरलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, मैक्सिको, चीन में... वही बढ़ते असहनीय शोषण के खिलाफ वही प्रहार करता है."वास्तविक कठिनाई: गर्म करने में सक्षम नहीं होना, खाना, अपना ख्याल रखें, गाड़ी चलाओ !"
लेकिन हमारे संघर्ष इससे कहीं अधिक हैं. प्रदर्शनों में,हम कुछ तख्तियों पर यूक्रेन में युद्ध की अस्वीकृति, अधिक से आधिक हथियारों और बमों का उत्पादन करने से इनकार करते हुए, युद्ध अर्थव्यवस्था के विकास के नाम पर अपनी बेल्ट कसते हुए देखने के लिए " युद्ध के लिए कोई पैसा नहीं, हथियारों के लिए पैसा नहीं, मजदूरी के लिए पैसा, पेंशन के लिए पैसा" हम फ्रांस में प्रदर्शनों के दौरान सुन सकते थे. वे लाभ के नाम पर ग्रह को नष्ट होते देखने से भी इन्कार करते हैं.
हमारे संघर्ष ही, इस आत्म-विनाशकारी गतिशीलता के खिलाफ खड़े होने वाली एकमात्र चीज है, केवल उस मौत के खिलाफ खड़े होने की बात है जो पूंजीवाद सभी मानवता से वादा करता है. क्योंकि, अपने स्वयं के तर्क पर छोड़ दिया गया, यह पतनशील व्यवस्था मानवता के अधिक से अधिक हिस्सों को युद्ध और दुख में खींच लेगी, यह ग्रीनहाउस गैसों, तबाह जंगलों और बमों से ग्रह को नष्ट कर देगी.
पूंजीवाद मानवता को विनाश की ओर ले जा रहा है!
विश्व समाज पर शासन करने वाला पूंजीपति वर्ग, आंशिक रूप से उस वास्तविकता से अवगत है, जिसमें उस बर्बर भविष्य के बारे में जो यह सड़ी हुई व्यवस्था हमसे वादा करती है. इसे देखने के लिए आपको केवल अपने विशेषज्ञों के अध्ययन और भविष्यवाणियों को पढ़ना होगा.
जनवरी 2023 में दावोस में विश्व आर्थिक मंच में प्रस्तुत "वैश्विक जोखिम रिपोर्ट" के अनुसार: "इस दशक के पहले वर्षों ने मानव इतिहास में विशेष रूप से विघटनकारी अवधि की शुरुआत की है. कोविद -19 महामारी के बाद एक 'नए सामान्य' स्थिति की वापसी यूक्रेन में युद्ध के प्रकोप से जल्दी बाधित हो गई, भोजन और ऊर्जा के क्षेत्र में संकटों की एक नई श्रृंखला की शुरुआत हुई, 2023 के रूप में, दुनिया जोखिमों की एक श्रृंखला का सामना करती है : मुद्रास्फीति, जीवन-यापन संकट, व्यापार युद्ध , भू-राजनीतिक टकराव और परमाणु युद्ध की काली माध्यमछाया, अस्थिर ऋण का स्तर, मानव विकास में गिरावट, जलवायु परिवर्तन के बढ़ते दबाव के प्रभाव और महत्वाकांक्षाएँ . साथ में, ये आने वाले एक अद्वितीय, अनिश्चित और अशांत दशक को आकार देने के लिए अभिसरण कर रहे हैं.
हकीकत में, आने वाला दशक इतना "अनिश्चित" नहीं है जैसा कि एक ही रिपोर्ट कहती है: "अगले दशक में पर्यावरण और सामाजिक संकट, 'जीवन संकट की लागत' , जैव विविधता की विशेषता होगी, नुकसान और पारिस्थितिकी तंत्र का पतन , भू-आर्थिक टकराव बड़े पैमाने पर अनैच्छिक प्रवास , वैश्विक आर्थिक विखंडन, भू-राजनीतिक तनाव,विश्व शक्तियों के बीच बढ़ते टकराव के साथ, आर्थिक युद्ध आदर्श बन रहा है सैन्य खर्च में हाल ही में वृद्धि , हाल के दशकों में संभावित रूप से अधिक विनाशकारी पैमाने पर नई तकनीक वाले हथियारों की लक्षित तैनाती के साथ वैश्विक हथियारों की दौड़] को जन्म दे सकती है.
इस भारी सम्भावना का सामना करने में पूंजीपति वर्ग शक्तिहीन है. यह और इसकी व्यवस्था समस्या का समाधान नहीं, समस्या का कारण है. अगर, मुख्यधारा के मीडिया में, यह हमें यह विश्वास दिलाने की कोशिश करता है कि यह ग्लोबल वार्मिंग से लड़ने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है, कि "हरित" और "टिकाऊ" पूंजीवाद संभव है, तो यह अपने झूठ की सीमा को जानता है, क्योंकि, जैसा कि 'वैश्विक जोखिम रिपोर्ट' बताती है: "आज, कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड का वायुमंडलीय स्तर रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है. उत्सर्जन प्रक्षेपवक्र इस बात की बहुत कम संभावना है कि वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की वैश्विक महत्वाकांक्षा हासिल की जा सकेगी. हाल की घटनाओं ने वैज्ञानिक रूप से आवश्यक और राजनीतिक रूप से समीचीन के बीच एक विचलन को उजागर किया है."
वास्तव में, यह "विचलन" जलवायु के मुद्दे तक ही सीमित नहीं है, यह मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि पर नहीं, बल्कि लाभ और प्रतिस्पर्धा पर, प्राकृतिक संसाधनों के शिकार पर और उस वर्ग -सभी देशो के अधिकाँश सामाजिक धन का उत्पादन करने वाले सर्वहारा, दिहाड़ी मजदूर के क्रूर शोषण पर आधारित आर्थिक व्यवस्था के मूलभूत विरोधाभास को व्यक्त करता है.
क्या दूसरा भविष्य संभव है?
पूँजीवाद और पूंजीपति वर्ग समाज के दो ध्रुवों में से एक हैं, एक जो मानवता को गरीबी और युद्ध की बर्बरता और विनाश की ओर ले जाता है. दूसरा ध्रुव है, सर्वहारा वर्ग और उसका संघर्ष. पिछले एक साल से फ्रांस, ब्रिटेन और स्पेन में पनप रहे सामाजिक आंदोलनों में मजदूर, पेंशनभोगी, बेरोजगार और छात्र एक साथ डटे हुए हैं. यह सक्रिय एकजुटता, यह सामूहिक जुझारूपन, मजदूरों के संघर्ष की गहन प्रकृति का गवाह है: एक मौलिक रूप से अलग दुनिया के लिए संघर्ष, शोषण या सामाजिक वर्गों के बिना, प्रतिस्पर्धा के बिना, सीमाओं या राष्ट्रों के बिना "श्रमिक एक साथ रहते हैं", संयुक्त राष्ट्र में हडताली चिल्लाते हैं, "या तो हम एक साथ लड़ें या हम सड़क पर सोएंगे", फ्रांस में प्रदर्शनकारियों ने भी इसकी पुष्टि की. 27 मार्च को जर्मनी में जीवन स्तर पर हमले के खिलाफ हड़ताल "हम सभी के लिए" बैनर स्पष्ट रूप से उस सामान्य भावना को दर्शाता है जो श्रमिक वर्ग में बढ़ रही है: हम सभी एक ही नाव में हैं और हम सभी के लिए एक दुसरे से लड़ रहे हैं. जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस में हमले एक दूसरे से प्रेरित हैं. फ्रांस में, श्रमिक स्पष्ट रूप से ब्रिटेन में लड़ने वाले अपने वर्ग भाइयों और बहनों के साथ एकजुटता में हड़ताल पर चले गए: "हम ब्रिटिश श्रमिकों के साथ एकजुटता में हैं, जो उच्च मजदूरी के लिए हफ्तों से हड़ताल पर हैं.” अंतरराष्ट्रीय एकजुटता का यह प्रतिबिम्ब युद्ध तक और युद्ध सहित प्रतिस्पर्धी देशों में विभाजित पूंजीवादी दुनिया के ठीक विपरीत है. यह 1848 के बाद से हमारे वर्ग की रैली को याद करता है: "सर्वहारा का कोई देश नहीं है! दुनियाभर के मजदूर,एकजुट हों. "
1968
पूरी दुनिया में समाज का मिजाज बदल रहा है. दशकों की निष्क्रियता और पीछे हटने के बाद, मजदूर, वर्ग संघर्ष और आत्म-सम्मान के लिए अपना रास्ता तलाशने लगा है.1985 में थैचर द्वारा खनिकों की हार के लगभग चालीस साल बाद, 'समर ऑफ एंगर' और ब्रिटेन में हड़तालों की वापसी से यह प्रदर्शित हुआ.
लेकिन हम सभी कठिनाइयों और अपने संघर्षों की वर्तमान सीमाओं को महसूस करते हैं. आर्थिक संकट, मुद्रास्फीति, और सरकार के हमले जिसे वे "सुधार" कहते हैं, के स्टीमरोलर का सामना करते हुए, हम अभी तक अपने पक्ष में बलों का संतुलन स्थापित करने में सक्षम नहीं हैं. अक्सर अलग-अलग हड़तालों में अलग-थलग पड़ जाते हैं, बिना बैठकों या चर्चा के, सामान्य सभाओं या सामूहिक संगठनों के बिना केवल कक्क्काजुलूसों तक सीमित प्रदर्शनों से निराश होकर, हम सभी एक व्यापक, मजबूत, एकजुट आंदोलन की आकांक्षा रखते हैं. फ्रांस में प्रदर्शनों में नई 68 मई की मांग लगातार सुनी जा रही है. "सुधार" का सामना करते हुए, जो सेवानिवृत्ति की आयु को 64 तक विलंबित करता है, तख्तियों पर सबसे लोकप्रिय नारा था: "आप हमें 64 देते हैं, हम आपको 68 मई देते हैं".
1968 में, फ्रांस में सर्वहारा वर्ग संघर्ष को अपने हाथों में लेकर एकजुट हुआ. पुलिस द्वारा छात्रों पर किये दमन के विरोध में 13 मई के विशाल प्रदर्शनों के बाद, वाकआउट और आम सभाएँ फ़ैक्टरियों में जंगल की आग की तरह फैल गईं और सभी कार्यस्थलों को 9 मिलियन हडतालियों के साथ, अंतर्राष्ट्रीय इतिहास में सबसे बड़ी हड़ताल के रूप में समाप्त हुई. श्रमिकों का आंदोलन मजदूरों के संघर्ष के विस्तार और एकता की इस गतिशीलता का सामना करते हुए, सरकार और यूनियनों ने आंदोलन को रोकने के लिए एक सामान्य वेतन वृद्धि के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. जिस समय मज़दूरों के संघर्ष का यह पुन: जागरण हो रहा था, उसी समय क्रांति के विचार की जोरदार वापसी हुई, जिसकी चर्चा संघर्षरत कई मज़दूरों ने की थी.
इस पैमाने पर यह घटना समाज के जीवन में एक मूलभूत परिवर्तन का प्रमाण थी: यह उस भयानक प्रति-क्रांति का अंत था जिसने 1920 के दशक के अंत अक्टूबर 1917 में रूस में विश्व क्रांति की पहली जीत के बाद उसकी विफलता के साथ श्रमिक वर्ग को घेर लिया था. एक प्रति-क्रांति जिसने स्टालिनवाद और फासीवाद के घिनौने चेहरे का रुप
ले लिया था, जिसने अपने 60 मिलियन मृतकों के साथ द्वितीय विश्व युद्ध का द्वार खोल दिया था और फिर दो दशकों तक जारी रहा. लेकिन 1968 में फ्रांस में शुरू हुए संघर्ष के पुनरुत्थान की दुनिया के सभी हिस्सों में दशकों से अज्ञात पैमाने पर संघर्षों की एक श्रृंखला द्वारा तेजी से पुष्टि की गई थी:
- 1969 की इतालवी गर्म शरद ऋतु, जिसे 'रैम्पेंट मे' के नाम से भी जाना जाता है, जिसने मुख्य औद्योगिक केंद्रों में बड़े पैमाने पर संघर्ष और ट्रेड यूनियन नेतृत्व को स्पष्ट चुनौती दी.
- उसी वर्ष अर्जेंटीना के कोर्डोबा में मजदूरों का विद्रोह.
- 1970-71 की सर्दियों में पोलैंड के बाल्टिक सागर में मजदूरों की भारी हड़तालें.
- आगामी वर्षों में वस्तुतः सभी यूरोपीय देशों, विशेष रूप से ब्रिटेन में कई अन्य संघर्ष हुए.
- 1980 में, पोलैंड में, बढ़ती खाद्य कीमतों का सामना करते हुए, हड़तालियों ने अपने संघर्षों को अपने हाथों में लेकर, विशाल आम सभाओं में इकट्ठा होकर, खुद तय किया कि क्या मांग करनी है और क्या कार्रवाई करनी है? इस अंतरराष्ट्रीय लहर को और आगे बढ़ाया,और सबसे बढ़कर, लगातार संघर्ष को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं. मज़दूरों की इस ताकत के प्रदर्शन से न केवल पोलैंड का पूंजीपति वर्ग कांप उठा, बल्कि सभी देशों का शासक वर्ग भी काँप उठा.
दो दशकों में, 1968 से 1989 तक, श्रमिकों की एक पूरी पीढ़ी ने संघर्ष में अनुभव प्राप्त किया, इसकी कई पराजय, और कभी-कभी जीत, इस पीढ़ी को पूंजीपति वर्ग द्वारा तोड़-फोड़, विभाजन और मनोबल गिराने के लिए बिछाए गए कई जालों का सामना करने की अनुमति देती है. इसके संघर्षों से हमें अपने वर्तमान और भविष्य के संघर्षों के लिए महत्वपूर्ण सबक लेने की अनुमति मिलनी चाहिए: केवल खुली और विशाल आम सभाओं में इकट्ठा होना, स्वायत्तता से, वास्तव में आंदोलन की दिशा तय करना, बाहर और संघ के नियंत्रण के खिलाफ भी, क्या हम एक आधार रख सकते हैं एकजुट और बढ़ता संघर्ष, सभी क्षेत्रों, सभी पीढ़ियों के बीच एकजुटता के साथ किया गया. सामूहिक बैठकें जिनमें हम एकजुटता महसूस करते हैं और अपनी सामूहिक शक्ति में विश्वास रखते हैं. सामूहिक बैठकें जिसमें हम एक साथ तेजी से एकीकृत मांगों को अपना सकते हैं. सामूहिक बैठकें जिनमें हम इकट्ठा होते हैं और जिनसे हम अपने वर्ग के भाइयों और बहनों, कारखानों, अस्पतालों, स्कूलों, शॉपिंग सेंटरों, कार्यालयों के श्रमिकों से मिलने के लिए बड़े पैमाने पर प्रतिनिधिमंडलों में जा सकते हैं... जो हमारे सबसे करीब हैं.
श्रमिकों की नई पीढ़ी,जो अब मशाल उठा रही है,अतीत के संघर्षों के महान सबक को फिर से हासिल करने के लिए एकजुट होकर बहस करनी चाहिए. पुरानी पीढ़ी को चाहिए कि वह युवा पीढ़ी को अपने संघर्षों के बारे में बताए, ताकि संचित अनुभव आगे बढ़े और आने वाले संघर्षों में हथियार बन सके.
कल के बारे में क्या?
लेकिन हमें और भी आगे जाना चाहिए. मई 1968 में शुरू हुई अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष की लहर विकास में मंदी और बड़े पैमाने पर बेरोजगारी के फिर से उभरने की प्रतिक्रिया थी. आज स्थिति कहीं अधिक गंभीर है. पूंजीवाद की भयावह स्थिति मानवता के अस्तित्व को ही दांव पर लगा देती है. यदि हम इसे पलटने में सफल नहीं हुए तो धीरे-धीरे बर्बरता हावी हो जाएगी.
मई 68 की गति पूंजीपतियों के दोहरे झूठ से बिखर गई: जब 1989-91 में स्टालिनवादी शासन का पतन हुआ, तो उन्होंने दावा किया कि स्टालिनवाद के पतन का मतलब साम्यवाद की मृत्यु है शांति और समृद्धि का एक नया युग खुल रहा है. तीन दशक बाद, हम अपने अनुभव से जानते हैं कि हमें शांति और समृद्धि के बजाय युद्ध और दुख मिला है. हमें अभी भी यह समझना होगा कि स्टालिनवाद साम्यवाद का विरोधी है, यह राज्य पूंजीवाद का एक विशेष क्रूर रूप है जो 1920 के दशक की प्रति-क्रांति से उभरा है. इतिहास को मिथ्या बनाकर, स्तालिनवाद को साम्यवाद के रूप में पेश करके ( कल के सोवित संघ और आज के चीन, क्यूबा, वेनेजुएला या उत्तर कोरिया की तरह!), पूंजीपति वर्ग ने मजदूर वर्ग को यह विश्वास दिलाने में कामयाबी हासिल की, कि उसकी मुक्ति की क्रांतिकारी परियोजना केवल आपदा की ओर ले जा सकती है. जब तक "क्रांति" शब्द पर ही संदेह और अविश्वास नहीं छा गया.
लेकिन संघर्ष में हम धीरे-धीरे अपनी सामूहिक शक्ति, अपना आत्मविश्वास, अपनी एकजुटता, अपनी एकता, अपना स्व-संगठन विकसित करेंगे. संघर्ष में, हम धीरे-धीरे महसूस करेंगे कि हम, मजदूर वर्ग, एक क्षयकारी पूंजीवादी व्यवस्था द्वारा वादा किए गए दुःस्वप्न की तुलना में एक और परिप्रेक्ष्य साम्यवादी क्रांति को पेश करने में सक्षम हैं:
सर्वहारा क्रांति का परिप्रेक्ष्य हमारे मन में और हमारे संघर्षों में बढ़ रहा है।
भविष्य वर्ग संघर्ष का है!
आई सी सी २४ अप्रैल २०२३
"इंटरनेशनल ग्रुप ऑफ द कम्युनिस्ट लेफ्ट" (IGCL) फिर से मुखबिरी कर रहा है।
अपने नवीनतम बुलेटिन में, "व्यक्तिवाद के विरुद्ध और 2020 के दशक की 2.0 सर्कल भावना" शीर्षक के अंतर्गत, हम पढ़ते हैं: "... दुर्भाग्य से वीडियो मीटिंग का चलन शारीरिक मीटिंग की जगह ले रहा है। हम अलग-थलग पड़े साथियों के बीच वीडियो मीटिंग के आयोजन के खिलाफ़ नहीं हैं, खासकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, जो एक ही स्थान पर नहीं मिल सकते। दूसरी ओर, यह तथ्य कि जुझारू अब शारीरिक मीटिंग या 'आमने-सामने' मीटिंग में भाग लेने के लिए यात्रा करने या इसे अनावश्यक मानने का प्रयास नहीं करते हैं, या इसे अनावश्यक भी नहीं मानते हैं, जैसा कि कंपनियों में प्रबंधक उन्हें कहते हैं, यह मज़दूर आंदोलन की उपलब्धि और संगठन सिद्धांत के संबंध में एक कदम पीछे है।" और यह अंश एक फ़ुटनोट का संदर्भ देता है: "हम जानते हैं, उदाहरण के लिए, कि ICC अब स्थानीय बैठकें नहीं करता है, भले ही उसके एक ही शहर में कई सदस्य हों। यह 'पारस्परिक' बैठकें करता है, अलग-अलग जगहों से सदस्यों को 'एक साथ लाता है', इस प्रकार अपने साथियों से अलग हो जाता है जिनके साथ उन्हें मज़दूरों या अन्य संघर्षों की स्थिति में हस्तक्षेप करना चाहिए, लेकिन वे आराम से घर पर रहते हैं। सदस्यों को विशेष वीडियो नेटवर्क में नियुक्त करने के मानदंड केवल मनमाने और व्यक्तिगत हो सकते हैं। 1920 के दशक की शुरुआत में कम्युनिस्ट पार्टियों के ज़िनोविविस्ट बोल्शेवाइज़ेशन का एक आधुनिक रीमेक, जिसने क्षेत्रीय या स्थानीय अनुभाग द्वारा बैठकों को फ़ैक्टरी सेल के रूप में बदल दिया, और जिसकी इतालवी वामपंथियों ने कड़ी निंदा की।"
तो यहाँ हम IGCL को सार्वजनिक रूप से राज्य और दुनिया के सभी पुलिस बलों को सूचित करते हुए देखते हैं कि ICC कैसे अपनी आंतरिक बैठकों का आयोजन करता है! यही इस समूह का अस्तित्व का कारण है: ICC की निगरानी करना ताकि इसकी वेबसाइट पर हमारे संगठन और इसके जुझारुओ के बारे में यथासंभव अधिक जानकारी दी जा सके। याद दिला दें कि आईजीसीएल या इसके पूर्वज तथाकथित "आईसीसी के आंतरिक अंश" (आईएफआईसीसी)[1] ने पहले ही सार्वजनिक रूप से खुलासा कर दिया है:
- मेक्सिको में हमारे अनुभाग द्वारा अन्य देशों के जुझारुओ की उपस्थिति में आयोजित किए जाने वाले सम्मेलन की तिथि। बुर्जुआ राज्य के दमनकारी कार्य को सुविधाजनक बनाने का यह असंगत कार्य और भी अधिक घृणित है क्योंकि इसके सदस्य अच्छी तरह से जानते थे कि मेक्सिको में हमारे कुछ साथी पहले भी दमन के शिकार हो चुके हैं और कुछ को अपने मूल देशों से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
- हमारे एक साथी के असली नाम के पहले अक्षर, इस सटीकता के साथ कि वह इस या उस पाठ का लेखक है, जो उसकी "शैली" को दर्शाता है (जो पुलिस सेवाओं के लिए एक दिलचस्प संकेत है)।
- और यहां तक कि, नियमित आधार पर, हमारे आंतरिक बुलेटिनों के अंश!
लेकिन ध्यान से पढ़ने वाले पाठकों ने IGCL की कलम से निकले दो छोटे-छोटे शब्दों "हम जानते हैं" पर गौर किया होगा जो वास्तव में पुलिस की तकनीकों से सीधे प्रेरित हैं ।
"हम जानते हैं, उदाहरण के लिए, कि ICC...". वे हमें दिखाना चाहते हैं कि वे जानते हैं, कि वे जानते हैं कि ICC में क्या चल रहा है, कि वे जानते हैं क्योंकि उनके पास एक मुखबिर, एक जासूस है। ऐसा करके, वे हमारे बीच संदेह का बीज बोना चाहते हैं, अविश्वास का जहर घोलना चाहते हैं।
IGCL अपनी स्थापना के बाद से, जब भी ICC के आंतरिक जीवन के बारे में गंदी नाली से कोई 'ख़बर' निकालने में कामयाब होता है, तो वह उसे ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाकर बताता है। 2014 में, अपने दूसरे अंक में, IGCL ने हमारे बुलेटिनों के अंश प्रकाशित किए, जिसमें दावा किया गया कि वे एक "लीक" (जैसा कि उन्होंने कहा) का फायदा उठा रहे थे। चोट पर नमक छिड़कते हुए, एक फुटनोट में इसने यह भी बताया: "हमने यह सार्वजनिक रूप से प्रकट न करने का वचन दिया है कि हमें ICC के आंतरिक समाचार-पत्र कैसे और किसके द्वारा प्राप्त हुए। फिर भी, हम आपको आश्वस्त कर सकते हैं कि 'स्रोत' पुलिस या अन्य संबद्धता के किसी भी संदेह से मुक्त है"। अपने नवीनतम समाचार-पत्र में, IGCL ने अपना काम जारी रखा, फिर से एक फुटनोट में: "... ICC के आंतरिक बुलेटिन में इस विषय पर कई योगदान हैं। उन्हें एक साथ इकट्ठा करना और एक दिन उन्हें प्रकाशित करना निश्चित रूप से उपयोगी होगा"।
विक्टर सर्ज ने अपनी पुस्तक 'हर क्रांतिकारी को दमन के बारे में क्या जानना चाहिए' में स्पष्ट रूप से दिखाया है कि संदेह और बदनामी फैलाना क्रांतिकारी संगठनों को नष्ट करने के लिए बुर्जुआ राज्य का पसंदीदा हथियार है: "पार्टी में विश्वास किसी भी क्रांतिकारी शक्ति का सीमेंट है (...) कार्रवाई के दुश्मन, कायर, अच्छी तरह से स्थापित, अवसरवादी स्वेच्छा से सीवर में अपने हथियार उठाते हैं! वे क्रांतिकारियों को बदनाम करने के लिए संदेह और बदनामी का उपयोग करते हैं (...) यह बुराई - हमारे बीच संदेह - केवल इच्छाशक्ति के एक महान प्रयास से ही रोका जा सकता है"। IGCL ने ठीक उसी तरह के तरीकों का इस्तेमाल किया जैसा कि GPU, स्टालिन की राजनीतिक पुलिस ने 1930 के दशक के ट्रॉट्स्कीवादी आंदोलन को अंदर से नष्ट करने के लिए किया था।
आईसीसी इस जाल में नहीं फंसेगी।
लेकिन ऐसा करके, IGCL न केवल हमारे संगठन पर हमला कर रहा है। यह ठगों और मुखबिरों की आदतों के विकास को प्रोत्साहित करता है, इसने निंदा पर प्रतिबंध को तोड़ा है, और इसने पूरे सर्वहारा परिवेश को गैंग्रीन कर दिया है। इससे भी बदतर, IGCL ये सभी अपराध कम्युनिस्ट वामपंथ के नाम पर करता है!
इसलिए हम सभी क्रांतिकारी संगठनों, सभी अल्पसंख्यकों, सभी व्यक्तियों से जो ईमानदारी से सर्वहारा क्रांति और उसके सिद्धांतों की रक्षा करना चाहते हैं, इन मुखबिरों के कृत्यों की सार्वजनिक रूप से निंदा करने का आह्वान करते हैं।
केवल सिद्धांतों पर सबसे बड़ी राजनीतिक दृढ़ता, क्रांतिकारियों के बीच सबसे मजबूत एकजुटता, इस गंदगी के सामने एक बांध बना सकती है।
[1] आईजीसीएल का गठन 2013 में मॉन्ट्रियल के क्लासबाटालो समूह के साथ आईएफआईसीसी के विलय से हुआ था।
रूब्रिक:
आईजीसीएल द्वारा मुखबिरी का नया नाटक
स्रोत लेख: https://en.internationalism.org/content/17546/appeal-revolutionary-solid... [20]
23 अक्टूबर से 15 नवंबर तक, तीन सप्ताह से अधिक समय तक, बांग्लादेश में कपड़ा श्रमिक न्यूनतम वेतन दर में वृद्धि के लिए संघर्ष कर रहे थे। आखिरी बार ऐसी मांग पांच साल पहले उठी थी. इस बीच, सेक्टर के 4.4 मिलियन श्रमिकों में से कई के लिए स्थितियाँ गंभीर हो गई हैं, जो भोजन, घर के किराए, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल की बढ़ती कीमतों से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। कई कपड़ा श्रमिकों को गुजारा करना मुश्किल हो रहा था, वे यह सोचने पर मजबूर थे कि कैसे जीवित रहें। यह हड़ताल एक दशक से भी अधिक समय में बांग्लादेश में श्रमिकों का सबसे महत्वपूर्ण संघर्ष था।
बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में कपड़ा उद्योग के श्रमिकों का महत्वपूर्ण स्थान है। बांग्लादेश की कुल निर्यात आय में कपड़ा उद्योग की हिस्सेदारी 80 प्रतिशत है। वे उस देश के श्रमिक वर्ग के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ बिंदु हैं। लेकिन फिर भी उनकी कामकाजी और जीवनयापन की स्थिति दोनों ही बेहद दयनीय हैं।
सुरक्षा उपायों की कमी के कारण कार्यस्थल पर कई दुर्घटनाएँ होती हैं।
2012 में, ताज़रीन कपड़ा कारखानेमें आग लगने से 110 लोगों की मौत हो गई। फिर 2013 में, अब तक की सबसे खराब औद्योगिक आपदाओं में से एक, राणा प्लाजा के कुख्यात पतन में 1,135 लोग मारे गए, जिसने कपड़ा उद्योग में बेहद अपमानजनक स्थितियों पर प्रकाश डाला। इसके अलावा, नवंबर 2012 से मार्च 2018 तक, 3,875 चोटों और 1,303 मौतों के साथ 5000 घटनाएं हुईं। इसके बाद दुर्घटनाओं की संख्या कम हो गई है, लेकिन 2023 में भी सुरक्षा मानकों की अनदेखी की जा रही है, जैसा कि 1 मई को प्रदर्शित हुआ था जब एक विस्फोट के बाद गंभीर रूप से जलने के कारण 16 श्रमिकों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
लम्बे कार्य दिवस और अत्यधिक दबाव एवं तनाव।
कर्मचारी अक्सर लंबे समय तक काम करते हैं और शिफ्टों के बीच उनके पास बहुत कम समय होता है। कभी-कभी वे प्रति दिन 18 घंटे तक काम करते हैं, सुबह जल्दी पहुंचते हैं और आधी रात के बाद चले जाते हैं। श्रमिकों के पास बहुत कम कार्यस्थल होता है, वे छोटी कुर्सियों पर बैठते हैं जिससे उनकी पीठ और गर्दन पर तनाव पड़ता है, और उन्हें तंग और असुरक्षित क्षेत्रों में काम करना पड़ता है। पूरी तरह से अपर्याप्त स्वच्छता स्थितियों, खराब स्वच्छता प्रथाओं और भीड़भाड़ वाली स्थितियों के कारण उन्हें बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, आउटपुट वॉल्यूम लक्ष्य को पूरा करने में विफल रहने पर श्रमिकों पर शारीरिक रूप से पीड़ित किया जा सकता है। महिलाएँ, यानी कार्यबल का 58 प्रतिशत, अक्सर यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं।
बेहद कम मज़दूरी, जिसका असर श्रमिकों के शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।
मई 2023 में प्रकाशित एशिया फ्लोर वेज एलायंस (एएफडब्ल्यूए) की एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि बांग्लादेश में कपड़ा उद्योग में कार्यरत श्रमिक खतरनाक पोषण संबंधी कमी दर का अनुभव कर रहे हैं जो स्पष्ट रूप से कम न्यूनतम मजदूरी से जुड़ा है। बांग्लादेश इंस्टीट्यूट ऑफ लेबर स्टडीज (बीआईएलएस) के एक सर्वेक्षण के अनुसार, 43% कपड़ा श्रमिक कुपोषण से पीड़ित हैं; 78% उधार पर भोजन खरीदने के लिए मजबूर हैं; 82% कर्मचारी स्वास्थ्य देखभाल के लिए भुगतान करने में असमर्थ हैं; 85% झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं और 87% अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज सकते। इन श्रमिकों को गरीबी रेखा से ऊपर रहने के लिए प्रति माह कम से कम 23,000 टका ($209) की आवश्यकता होती है [1]।
इन भीषण कामकाजी परिस्थितियों के जवाब में श्रमिकों ने पिछले दशक में कई मौकों पर अपनी जुझारूपन का प्रदर्शन किया है:
2013 में पूरे बांग्लादेश में 200,000 से अधिक कपड़ा श्रमिकों ने उच्च मजदूरी के लिए विरोध प्रदर्शन किया, जिसके कारण सैकड़ों कारखाने बंद हो गए।
नवंबर 2014 में 140 बांग्लादेशी कपड़ा कारखानों में कपड़ा श्रमिकों की हड़ताल ने मालिकों को न्यूनतम वेतन में 77% की वृद्धि देने के लिए मजबूर किया,
दिसंबर 2016 में, ढाका के एक औद्योगिक उपनगर अशुलिया में एक हड़ताल ने तुरंत व्यापक अशांति का रूप ले लिया। कपड़ा श्रमिकों ने लगातार बढ़ती जीवनयापन लागत के जवाब में मजदूरी की मांग करने के लिए अपने कारखाने छोड़ दिए।
दिसंबर 2018 में जब श्रमिकों ने देखा कि वेतन की पेशकश बहुत कम थी, तो उनमें से हजारों लोग सड़कों पर उतर आए। जनवरी 2019 में एक सप्ताह से अधिक विरोध प्रदर्शन के परिणामस्वरूप 52 कारखानों ने परिचालन बंद कर दिया।
अप्रैल 2020 में, देशव्यापी तालाबंदी की अवहेलना करते हुए, 20,000 श्रमिकों ने अपने वेतन की मांग के लिए बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया, क्योंकि ऑर्डर की कमी के कारण कपड़ा कारखानों ने अपने कर्मचारियों को भुगतान करना बंद कर दिया था।
पिछले दशक में बांग्लादेश में अपेक्षाकृत उच्च आर्थिक विकास, कम मुद्रास्फीति और अच्छा विदेशी मुद्रा भंडार था। निर्यात 2011 में 14.66 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2019 में 33.1 बिलियन डॉलर हो गया। लेकिन नई उच्च वैश्विक कमोडिटी कीमतों, उच्च आयातित मुद्रास्फीति और आपूर्ति श्रृंखला व्यवधानों से आर्थिक दबाव आया है। बांग्लादेश में मुद्रास्फीति इस वर्ष लगभग 10 प्रतिशत तक पहुंच गई और 2022 की शुरुआत से अमेरिकी डॉलर के मुकाबले टका में लगभग 30 प्रतिशत की गिरावट आई है। इस वर्ष विदेशी भंडार लगभग 20 प्रतिशत गिर गया है, जिसने सरकार को अरबों डॉलर आईएमएफ से ऋण लेने के लिए मजबूर किया है।
इन स्थितियों के सामने, 23 अक्टूबर को, मीरपुर, नारायणगंज, अशुलिया, सावर और गाज़ीपुर में सैकड़ों कारखानों के बांग्लादेशी कर्मचारी प्रस्तावित 10,000 टका ($90) प्रति माह से अधिक जीवनयापन वेतन की मांग को लेकर हड़ताल पर आ गए। 25 प्रतिशत की प्रस्तावित बढ़ी हुई वेतन पेशकश को आक्रोश के रूप में देखा गया और राजधानी ढाका में विरोध फैल गया, सड़कों पर हजारों लोगों के साथ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन शुरू हो गया, जिससे 3500 कारखानों में से सैकड़ों में उत्पादन बंद हो गया।
23 से 29 अक्टूबर तक हड़ताल के पहले सप्ताह के बारे में लगभग कोई रिपोर्ट नहीं है, लेकिन ऐसे संकेत हैं कि श्रमिकों ने संघर्ष को अधिक कपड़ा कारखानों तक बढ़ाने की कोशिश की। लेकिन इन प्रयासों को नियोक्ताओं और दमनकारी ताकतों द्वारा बाधित किया गया। फ़ैक्टरी मालिकों ने ट्रेड यूनियनों के पदाधिकारियों और सदस्यों को डरा-धमका कर उन्हें मज़दूरों से बात करने से रोका। एक समय श्रमिकों का समूह एक कारखाने में गया जहाँ से श्रमिकों को निकलने की अनुमति नहीं थी। उन्होंने उनसे प्रदर्शन में शामिल होने का आह्वान किया. दूसरे ही क्षण हजारों श्रमिकों ने हड़ताल तोड़ने वालों को कारखाने में प्रवेश करने से रोकने का प्रयास किया। दोनों ही मामलों में उन पर औद्योगिक पुलिस द्वारा हिंसक हमले किये गये।
दो सप्ताह की हड़ताल की कार्रवाई, बड़े पैमाने पर प्रदर्शन और पुलिस के साथ अपरिहार्य झडपो के बाद, सरकार द्वारा नियुक्त अध्यक्ष, त्रिपक्षीय न्यूनतम वेतन बोर्ड (एमडब्ल्यूबी) ने मूल वेतन प्रस्ताव में सुधार करने का वादा किया। ट्रेड यूनियनों के निर्देशों के तहत, कर्मचारी बुधवार, 6 नवंबर को काम पर वापस जाने के लिए सहमत हुए। लेकिन जब उन्होंने सुना की बड़ी हुई मासिक न्यूनतम वेतन जो केवल १२,५०० टका (£90) जो 1 दिसंबर से लागू होगी, तो फिर से संघर्ष शुरू हो गया और विरोध तेज हो गया। यह प्रति माह 23,000 टका का प्रस्ताव उनके परिजनों को भुखमरी से बाहर निकलने के लिए आवश्यकता से काफी कम थी।
लेकिन अगले सप्ताह में कर्मचारी सरकार और नियोक्ताओं पर अपनी माँगें पूरी करने के लिए दबाव बनाने में सक्षम नहीं हो सके। शासक वर्ग की एकमात्र स्पष्ट प्रतिक्रिया प्रधान मंत्री शेख हसीना की ओर से आई, जिसमें श्रमिकों को धमकी दी गई कि उन्हें "पहले से प्राप्त वेतन वृद्धि के साथ काम करना होगा या अपने गांव लौट जाये "। इस तरह 15 नवंबर को हड़ताल कमोबेश उन श्रमिकों की हार के साथ समाप्त हुई, जिन्हें वह सब कुछ नहीं मिला जो उन्होंने मांगा था: यानी 300 प्रतिशत की वेतन वृद्धि। इसके बजाय उन्हें केवल 56.25 प्रतिशत वेतन वृद्धि मिली, जो उनकी दैनिक पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत कम है।
संघर्ष को विफल करने और मजदूरों को हराने के लिए शासक वर्ग ने विभिन्न उपकरणों का इस्तेमाल किया
पहले स्थान पर लगभग 20 यूनियनें, श्रमिकों की प्रत्येक स्वायत्त कार्रवाई में तोड़फोड़ कर रही हैं, जैसे कि संघर्ष को यथासंभव अधिक से अधिक कारखानों तक विस्तारित करने के प्रयास को रोकना। जब 7 नवंबर को नए वेतन प्रस्ताव की घोषणा की गई तो यूनियनों ने सबसे पहले श्रमिकों को काम पर लौटने के लिए बुलाया, भले ही उन्हें पता था कि नया वेतन प्रस्ताव पर्याप्त नहीं है।
दूसरे स्थान पर राजनीतिक विपक्ष का व्यापक अभियान, जिसने शेख हसीना की सरकार के इस्तीफे की मांग करते हुए श्रमिकों के संघर्ष को एक लोकप्रिय आंदोलन के अगुआ के रूप में प्रस्तुत किया। जाहिर तौर पर अधिकांश कर्मचारी उनकी सरकार से नफरत करते हैं, लेकिन उनकी मांगें सरकार के पतन पर केंद्रित नहीं थीं [2]।
तीसरे स्थान पर राज्य द्वारा दमन है। हड़ताल करने वाले कर्मचारियों या यहां तक कि यूनियन पदाधिकारियों को बड़े पैमाने पर गिरफ्तार किया गया, पीटा गया, परेशान किया गया और जेल में डाल दिया गया। इस हड़ताल के दौरान पांच कर्मचारी मारे गए, दर्जनों घायल हुए और अस्पताल में भर्ती हुए, और कम से कम 11,000 श्रमिकों पर आपराधिक आरोप लगाए गए। कभी-कभी डंडों से लैस गुंडे श्रमिकों के धरना-प्रदर्शन पर हमला करने के लिए कार्यस्थल में प्रवेश कर जाते हैं।
क्रांतिकारियों के रूप में हमें हड़ताल की कमजोरियों को उजागर करने से नहीं कतराना चाहिए। और फिर हमें हड़ताल के दौरान हुए बड़े पैमाने पर विनाश का सामना करना पड़ा, जहां लगभग 70 कारखानों को नुकसान हुआ, दो को जला दिया गया और कई में तोड़फोड़ की गई। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि मजदूर वर्ग ने क्या किया और लुम्पेनसर्वहारा तत्वों या यहां तक कि आपराधिक गिरोहों ने क्या किया। लेकिन यह निर्विवाद है और इसे खारिज नहीं किया जा सकता है कि, अधीरता या यहां तक कि हताशा की अभिव्यक्ति के रूप में श्रमिकों के समूहों को इमारतों या बसों पर हमला करने, कारखानों को लूटने आदि जैसे विनाशकारी कार्यों के लिए लुभाया गया है [3]। और यह प्रवृत्ति विशेष रूप से तब सामने आती है जब संघर्ष का विस्तार अपनी सीमाओं से टकराता है और समग्र रूप से वर्ग से अलग-थलग रहता है। ऐसी परिस्थितियों में अल्पसंख्यक श्रमिक अक्सर सोचते हैं कि वे अंधी हिंसा की विनाशकारी कार्रवाइयों से सफलता प्राप्त कर सकते हैं। और यह प्रवृत्ति और भी मजबूत हो जाती है क्योंकि दैनिक जीवन की स्थितियाँ अधिक भयावह होती हैं और श्रमिकों को न तो वेतन मिलता है और न ही हड़ताल के दौरान का वेतन।
लेकिन विनाश, अंधी हिंसा का एक रूप , वर्ग हिंसा के विपरीत है, क्योंकि श्रमिक वर्ग के संघर्ष का उद्देश्य सभी यादृच्छिक हिंसा को दूर करना है। मजदूर वर्ग की हिंसा में हड़ताल की रक्षा और उसका परिप्रेक्ष्य, साध्य और साधन आंतरिक रूप से जुड़े हुए हैं। किसी दिए गए लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, एकमात्र साधन जो उपयुक्त हैं वे ही हैं जो उस लक्ष्य तक पहुंचने के मार्ग की सेवा करते हैं और उसे सुदृढ़ करते हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वामपंथी संगठनों और ट्रेड यूनियन संगठनों ने बांग्लादेश में श्रमिकों के संघर्ष के साथ 'एकजुटता' का आयोजन किया है। इन कार्रवाइयों के माध्यम से बजाय श्रमिकों के बीच
वे यूनियनों के बीच अंतरराष्ट्रीय 'एकजुटता' की वकालत करके श्रमिकों को भ्रमित करने की कोशिश करते हैं; परिधान श्रमिकों के साथ एकजुटता व्यक्त करने के तरीके के रूप में उत्पादित कपड़ों के लिए अधिक भुगतान करने के लिए ब्रांडों पर दबाव डालने के लिए अभियान प्रस्तुत करना। इसके विरुद्ध मजदूर वर्ग को अपना सबक सामने लाना होगा, जो विश्व मजदूर वर्ग के संघर्षों को समृद्ध कर सके। विशेष रूप से इसे बांग्लादेश में कपड़ा श्रमिकों की हड़ताल पर जोर देना चाहिए:
यह एक अलग घटना नहीं, बल्कि विश्वव्यापी संघर्ष का हिस्सा थी और 2022 की गर्मियों के बाद से यूके, फ्रांस, अमेरिका और दुनिया के कुछ अन्य देशों में हुए श्रमिकों के संघर्ष की प्रतिक्रिया थी;
हमें सिखाया है कि 20 ट्रेड यूनियनों की भागीदारी जीत की गारंटी नहीं है। इसके विपरीत, बड़ी संख्या में यूनियनें संघर्षो में शामिल श्रमिकों को विभाजित करने और आगे संघर्षो के एकीकरण में बाधा डालने में बेहतर सक्षम हैं;
यह प्रदर्शित किया है कि श्रमिकों के अल्पसंख्यकों द्वारा पुलिस के साथ झड़प या अन्य हिंसक कार्रवाइयां, संगठित श्रमिक सभाओं के बाहर लिए गए निर्णय, हड़ताल को मजबूत नहीं करती हैं, बल्कि एक वर्ग के रूप में श्रमिकों की एकता के खिलाफ कार्य करती हैं।
[1] बांग्लादेश: कपड़ा श्रमिकों की हड़ताल उनकी जीवन स्थितियों पर कठोर प्रकाश डालती है
[2]बीएनपी की नाकाबंदी कपड़ा श्रमिकों की नाकेबंदी के साथ भी जुड़ी हुई थी, जैसा कि मंगलवार 31 अक्टूबर को हुआ जब कपड़ा श्रमिकों की नाकाबंदी के बीच विपक्षी दलों की नाकाबंदी हुई।
[3] वामपंथी प्रकाशनों के लेख श्रमिकों द्वारा किए गए विनाश की आलोचना नहीं करते हैं। वे श्रमिकों द्वारा की जाने वाली किसी भी प्रकार की हिंसा को उसकी जुझारूपनशीलता और लचीलेपन की अभिव्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
[4] अंतर्राष्ट्रीय श्रम परिसंघ; ट्रेड यूनियनों का विश्व महासंघ; जर्मन ट्रेड यूनियन Ver.di. विशेष रूप से देखें: बांग्लादेश में टेक्स्टिलरबीइटरिनन, लेबरनेट जर्मनी पर 200% से अधिक और 200% से अधिक के लिए।
रूब्रिक:
एशिया में वर्ग संघर्ष
प्रावरण पत्र
इंटरनेशनल कम्युनिस्ट करंट से:
-इंटरनेशनलिस्ट कम्युनिस्ट टेंडेंसी
-पीसीआई (प्रोग्रामा कोमुनिस्टा )
- पीसीआई (इल कोमुनिस्टा )
-पीसीआई (इल पार्टिटो कोमुनिस्टा)
-इस्टिटुटो ओनोराटो डेमन इंटरनेशनलिस्ट वॉयस + इंटरनेशनलिस्ट कम्युनिस्ट पर्सपेक्टिव, कोरिया
30 अगस्त 2024
प्रिय साथियों,
हम लोकलुभावनवाद और अति दक्षिणपंथ के खिलाफ लोकतंत्र की रक्षा में आज चल रहे विशाल अंतरराष्ट्रीय अभियान के खिलाफ कम्युनिस्ट वामपंथ की प्रस्तावित अपील संलग्न करते हैं। आज सभी कम्युनिस्ट वामपंथी समूह, अपने आपसी मतभेदों के बावजूद, एक ऐसी राजनीतिक परंपरा से आते हैं जिसने पूंजीपति वर्ग द्वारा अपनी स्थायी तानाशाही को छिपाने और मजदूर वर्ग को उसके संघर्ष के अपने क्षेत्र से भटकाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले झूठे सरकारी विकल्पों को अद्वितीय रूप से खारिज कर दिया है। इसलिए यह जरूरी है कि ये समूह आज सर्वहारा वर्ग के वास्तविक राजनीतिक हितों और संघर्ष के लिए सबसे मजबूत संभव संदर्भ बिंदु और दुश्मन वर्ग के पाखंडी झूठ के लिए एक स्पष्ट विकल्प के रूप में एक संयुक्त बयान दें।
कृपया इस पत्र और प्रस्ताव पर शीघ्र प्रतिक्रिया दें। ध्यान दें कि प्रस्तावित अपील के प्रारूप पर इसके मुख्य आधार के ढांचे के भीतर चर्चा की जा सकती है और इसमें बदलाव किया जा सकता है।
आपसे सुनने के लिए उत्सुक।
कम्युनिस्ट अभिवादन
आई सी सी
प्रस्तावित अपील
बुर्जुआ लोकतंत्र के लिए लामबंदी के अंतर्राष्ट्रीय अभियान के खिलाफ मजदूर वर्ग से कम्युनिस्ट वामपंथ की अपील
पूंजीपति वर्ग की निरंकुशता के विरुद्ध मजदूर वर्ग के अदम्य संघर्ष के लिए
बुर्जुआ लोकतंत्र के धोखे में जहरीले विकल्पों के खिलाफ
पिछले कुछ महीनों में विश्व का जनसंचार माध्यम - जिसका स्वामित्व, नियंत्रण और निर्देशन पूंजीपति वर्ग के पास है - फ्रांस, उसके बाद ब्रिटेन, शेष विश्व में वेनेजुएला, ईरान और भारत तथा अब संयुक्त राज्य अमेरिका में हो रहे चुनाव उत्सव में व्यस्त रहा है।
चुनावी उत्सव में प्रचार का मुख्य विषय पूंजीवादी शासन के लोकतांत्रिक सरकारी मुखौटे की रक्षा करना रहा है। साम्राज्यवादी युद्ध, मजदूर वर्ग की गरीबी, पर्यावरण के विनाश, शरणार्थियों के उत्पीड़न की वास्तविकता को छिपाने के लिए बनाया गया मुखौटा। यह लोकतांत्रिक अंजीर का पत्ता है जो पूंजी की तानाशाही को स्पष्ट करता है, चाहे उसकी विभिन्न पार्टियाँ - दक्षिणपंथी, वामपंथी या केंद्र - बुर्जुआ राज्य में राजनीतिक सत्ता में आती हों।
मजदूर वर्ग से एक या दूसरी पूंजीवादी सरकार, इस या उस पार्टी या नेता या दूसरी पूंजीवादी सरकार के बीच गलत चुनाव करने के लिए कहा जा रहा है, और आज अधिक से अधिक, उन लोगों के बीच चुनाव करने के लिए कहा जा रहा है जो बुर्जुआ राज्य के स्थापित लोकतांत्रिक प्रोटोकॉल का पालन करने का दिखावा करते हैं और वे जो लोकलुभावन दक्षिणपंथियों की तरह उदार लोकतांत्रिक पार्टियों के प्रति छिपी हुई अवमानना के बजाय खुली अवमानना के साथ इन प्रक्रियाओं का व्यवहार करते हैं।
हालांकि, हर कुछ वर्षों में एक दिन यह चुनने के बजाय कि कौन उनका ‘प्रतिनिधित्व’ करेगा और कौन उनका दमन करेगा, श्रमिक वर्ग को वेतन और परिस्थितियों के ऊपर अपने वर्ग हितों की रक्षा के बारे में निर्णय लेना चाहिए तथा अपनी स्वयं की राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने पर ध्यान देना चाहिए - ऐसे उद्देश्य जिन्हें लोकतंत्र पर हो-हल्ला मचाकर पटरी से उतार दिया जाता है तथा असंभव बना दिया जाता है।
चुनाव के नतीजे चाहे जो भी हों, इन और दूसरे देशों में, सैन्यवाद और गरीबी की वही पूंजीवादी तानाशाही बनी रहेगी और और भी बदतर होती जाएगी। ब्रिटेन में, एक उदाहरण लें, जहां केंद्र-वाम लेबर पार्टी ने हाल ही में एक लोकलुभावन प्रभावित टोरी सरकार की जगह ली है, नए प्रधानमंत्री ने रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध में ब्रिटिश पूंजीपति वर्ग की भागीदारी को मजबूत करने और ऐसे साम्राज्यवादी उपक्रमों के लिए भुगतान करने में मदद करने के लिए श्रमिक वर्ग के सामाजिक वेतन में मौजूदा कटौती को बनाए रखने और तेज करने में कोई समय नहीं गंवाया।
वे राजनीतिक ताकतें कौन हैं जो पूंजीपति वर्ग की ओर से बढ़ते हमलों के खिलाफ मजदूर वर्ग के वास्तविक हितों की रक्षा करती हैं? वे सामाजिक लोकतांत्रिक पार्टियों के उत्तराधिकारी नहीं हैं जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध में पूंजीपति वर्ग को अपनी आत्मा बेच दी थी और ट्रेड यूनियनों के साथ मिलकर खाइयों में करोड़ों लोगों के नरसंहार के लिए मजदूर वर्ग को संगठित किया था। न ही स्टालिनवादी 'कम्युनिस्ट' शासन के बचे हुए समर्थक जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में रूसी राष्ट्र के साम्राज्यवादी हितों के लिए करोड़ों मजदूरों की बलि दी थी। न ही ट्रॉट्स्कीवाद या आधिकारिक अराजकतावादी धारा, जिसने कुछ अपवादों के बावजूद, उस साम्राज्यवादी नरसंहार में एक या दूसरे पक्ष को आलोचनात्मक समर्थन प्रदान किया था। आज बाद की राजनीतिक ताकतों के वंशज, मजदूर वर्ग को विघटित करने में मदद करने के लिए लोकलुभावन दक्षिणपंथ के खिलाफ उदार और वामपंथी बुर्जुआ लोकतंत्र के पीछे 'आलोचनात्मक' तरीके से खड़े हो रहे हैं।
पिछले सौ सालों में केवल कम्युनिस्ट वामपंथी, जिनकी संख्या बहुत कम है, मजदूर वर्ग के स्वतंत्र संघर्ष के प्रति सच्चे रहे हैं। 1917-23 की मजदूर क्रांतिकारी लहर में अमादेओ बोर्डिगा के नेतृत्व वाली राजनीतिक धारा, जो उस समय इतालवी कम्युनिस्ट पार्टी पर हावी थी, ने फासीवादी और फासीवाद विरोधी पार्टियों के बीच झूठे विकल्प को खारिज कर दिया, जिन्होंने मजदूर वर्ग के क्रांतिकारी उभार को हिंसक रूप से कुचलने के लिए मिलकर काम किया था। 1922 के अपने पाठ "द डेमोक्रेटिक प्रिंसिपल" में बोर्डिगा ने पूंजीवादी शोषण और हत्या की सेवा में लोकतांत्रिक मिथक की प्रकृति को उजागर किया।
1930 के दशक में कम्युनिस्ट वामपंथ ने पूंजीपति वर्ग के वामपंथी और दक्षिणपंथी, फासीवादी और फासीवाद विरोधी दोनों गुटों की निंदा की, क्योंकि बाद वाले साम्राज्यवादी नरसंहार की तैयारी कर रहे थे। इसलिए जब दूसरा विश्व युद्ध आया तो केवल यही धारा थी जो अंतर्राष्ट्रीयवादी रुख को बनाए रखने में सक्षम थी, जिसमें हर देश में पूरे पूंजीपति वर्ग के खिलाफ मजदूर वर्ग द्वारा साम्राज्यवादी युद्ध को गृहयुद्ध में बदलने का आह्वान किया गया था। कम्युनिस्ट वामपंथ ने लोकतांत्रिक या फासीवादी सामूहिक नरसंहार, ऑशविट्ज़ या हिरोशिमा के अत्याचारों के बीच भयावह विकल्प को अस्वीकार कर दिया।
इसीलिए, आज, पूंजीवादी शासनों द्वारा मजदूर वर्ग को उदार लोकतंत्र या दक्षिणपंथी लोकलुभावनवाद, फासीवाद और फासीवाद-विरोध के बीच खड़ा करने के इन झूठे चुनावों के नए अभियानों के सामने, कम्युनिस्ट वामपंथ की विभिन्न अभिव्यक्तियों ने, चाहे उनके अन्य राजनीतिक मतभेद कुछ भी हों, मजदूर वर्ग से एक आम अपील करने का फैसला किया है:
- बुर्जुआ लोकतंत्र के उस धोखे का नाश हो जो पूंजी की तानाशाही और उसके साम्राज्यवादी सैन्यवाद को छुपाता है!
-पूंजीवादी लोकतंत्र और राष्ट्रीय हित की कठोरता के खिलाफ, अपने हितों की रक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय मजदूर वर्ग के संघर्ष के लिए
-मजदूर वर्ग की क्रांति के लिए पूंजीपति वर्ग को राजनीतिक शक्ति से वंचित करना, पूंजीपति वर्ग को बेदखल करना और प्रतिस्पर्धी राष्ट्र राज्यों द्वारा सर्वहारा वर्ग पर लगाए गए भ्रातृहत्या संघर्षों को समाप्त करना
भारत के संसदीय चुनाव (लोकसभा) इस साल अप्रैल से जून तक हुए। सर्वहारा वर्ग को, अन्य जगहों की तरह, इन चुनावों से कुछ भी उम्मीद नहीं थी, जिसके नतीजे से सिर्फ़ यह तय होता है कि पूंजीपति वर्ग का कौन सा हिस्सा समाज और उसके द्वारा शोषित श्रमिकों पर अपना वर्चस्व बनाए रखेगा। ये चुनाव ऐसी पृष्ठभूमि में हुए जिसमें पूंजीवाद का पतन मानवता को और अधिक अराजकता में धकेल रहा है क्योंकि इसका सामाजिक विघटन तेज़ हो रहा है, जिससे कई संकट (युद्ध, आर्थिक, सामाजिक, पारिस्थितिक, जलवायु, आदि) पैदा हो रहे हैं जो एक दूसरे से जुड़कर और मजबूत होकर और भी विनाशकारी भंवर को हवा दे रहे हैं। भारत में, अन्य जगहों की तरह, "शासक वर्ग गुटों और कुलों में अधिकाधिक विभाजित होता जा रहा है, जिनमें से प्रत्येक अपने हितों को राष्ट्रीय पूंजी की जरूरतों से ऊपर रखता है; और यह स्थिति पूंजीपति वर्ग के लिए एक एकीकृत वर्ग के रूप में कार्य करना और अपने राजनीतिक तंत्र पर समग्र नियंत्रण बनाए रखना कठिन बना रही है। पिछले दशक में लोकलुभावनवाद का उदय इस प्रवृत्ति का सबसे स्पष्ट उत्पाद है: लोकलुभावन पार्टियाँ पूंजीवाद की तर्कहीनता और "भविष्यहीनता" का प्रतीक हैं, जो सबसे बेतुके षड्यंत्र सिद्धांतों का प्रचार करती हैं और स्थापित पार्टियों के खिलाफ उनकी बढ़ती हिंसक बयानबाजी करती हैं। शासक वर्ग के अधिक "जिम्मेदार" गुट लोकलुभावनवाद के उदय के बारे में चिंतित हैं क्योंकि इसके दृष्टिकोण और नीतियाँ सीधे तौर पर बुर्जुआ राजनीति की पारंपरिक आम सहमति के साथ असंगत हैं।"[1]
भारत के चुनाव शासक वर्ग के लिए इन बढ़ती कठिनाइयों को दर्शाते और उनकी पुष्टि करते हैं। दरअसल, शुरू से ही, प्रधानमंत्री मोदी के गुट के विभिन्न जनादेशों ने भारतीय राज्य के हितों और मुट्ठी भर कुलीन वर्गों के हितों के बीच भ्रम को दर्शाया, जो मुख्य रूप से उसी क्षेत्र, गुजरात राज्य (उपमहाद्वीप के पश्चिम में) से हैं। हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रवर्तक, नरेंद्र मोदी की बयानबाजी सामरिक और मसीहाई दोनों है, और वे एक पुरानी परंपरा के वाहक बने हुए हैं जो पहले से ही गांधी द्वारा सन्निहित "भारतीय राष्ट्र" की एकात्मक और क्षेत्रीय दृष्टि के खिलाफ़ लड़ रही थी (जिनकी 1948 में इस कट्टरपंथी राजनीतिक और धार्मिक हिंदू आंदोलन के एक सदस्य द्वारा हत्या कर दी गई थी)। ट्रम्प की तरह, मोदी के अभियान का एक हिस्सा "भारत की महानता को बहाल करने" के वादे पर आधारित था[2], जो मुस्लिम और ईसाई आक्रमणकारियों द्वारा उपनिवेशित और नष्ट किए जाने से पहले हिंदू संस्कृति के कथित गौरवशाली इतिहास का जिक्र करता है। इस कथन के अनुसार, 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद भी, हिंदू आबादी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के "भ्रष्ट अभिजात वर्ग" द्वारा रोक कर रखा गया था।
मोदी का दावा है कि हिंदू सभ्यता किसी भी अन्य सभ्यता से श्रेष्ठ है और दुनिया में इसकी महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप इसका दर्जा होना चाहिए। मोदी अपने राजनीतिक भ्रम के साथ वास्तविक भाईचारा भी रखते हैं, और जिन लोगों को उनकी विचारधारा और उनकी पार्टी का समर्थन करने में रुचि थी, उनमें से कई ने अपनी जेबें भर ली हैं, जैसे कि अरबपति लक्ष्मी मित्तल, मुकेश अंबानी या गौतम अडानी, जो खुद को, उदाहरण के लिए, स्टॉक एक्सचेंज में लगभग $240 बिलियन के मूल्य वाले समूह के प्रमुख के रूप में पाते हैं, और जिनकी व्यक्तिगत संपत्ति 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद से 230% बढ़ गई है! स्वाभाविक रूप से, चुनावों ने केवल इस स्थिति की पुष्टि की, जो कि समग्र रूप से भारतीय राज्य के हितों के लिए हानिकारक है।
संसदीय चुनावों के नतीजे राजनीतिक तंत्र के स्थिरीकरण को चिह्नित करने से बहुत दूर, सरकार की बढ़ती कठिनाइयों और नाजुकता की पुष्टि करते हैं, जिसे तेजी से बदनाम किया जा रहा है। एग्जिट पोल ने मोदी की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की बड़ी जीत की भविष्यवाणी की। लेकिन हुआ इसके विपरीत: भाजपा ने 63 सीटें खो दीं। हालांकि, भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन ने अभी भी पूर्ण बहुमत (543 सीटों में से 293) हासिल की है। नतीजतन, पहली बार, मोदी को एक ऐसे गठबंधन के साथ शासन करना होगा जो लागू करने के लिए बहुत जटिल साबित हो रहा है, क्योंकि भाजपा अब तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) और जनता दल (यूनाइटेड) (जेडीयू) सहित अपने सहयोगियों पर निर्भर होगी।[3] हर-व्यक्ति-अपने-लिए, महत्वाकांक्षी नेताओं और केन्द्रापसारक ताकतों के बढ़ते वजन का मतलब होगा कि गठबंधन में भविष्य के सरकारी पदों के लिए बातचीत लंबी और बहुत कठिन होने की संभावना है। कई अत्यधिक विवादास्पद उपाय जो भाजपा करना चाहती थी, जैसे कि राज्यों द्वारा संसदीय सीटों का पुनर्वितरण, अब विस्फोटक तनाव के जोखिम के साथ बहुत मुश्किल लग रहा है। गठबंधन के भीतर सुलह का कोई भी प्रयास अनिवार्य रूप से दूसरे घटक के लिए नुकसानदेह होगा। इस प्रकार, घटकों के बीच अधिक स्वायत्तता की पुष्टि देखने का एक बड़ा जोखिम है, विशेष रूप से दक्षिणपंथी, अर्धसैनिक हिंदू राष्ट्रवादी आरएसएस संगठन यूरोप में चरम दक्षिणपंथ के हिंसक और कट्टरपंथी समूहों से प्रेरित है।[4]
इस तरह से कमजोर, 73 साल की उम्र में, प्रधानमंत्री मोदी को कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, भले ही उन्होंने "अजेयता" के मिथक का निर्माण करने की कोशिश की हो और उनकी अति महत्वाकांक्षाएं हों। भारत, दुनिया भर के अन्य प्रमुख देशों की तरह, तेजी से अस्थिर और शासन करने में कठिन होता जा रहा है।
जबकि भारतीय पूंजीपति वर्ग की बढ़ती हुई कमज़ोरियाँ उसके राजनीतिक खेल को प्रभावित कर रही हैं और उसे और अधिक कमज़ोर बना रही हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि सर्वहारा वर्ग को किसी भी तरह से फ़ायदा होने वाला है। वास्तव में, लोकतांत्रिक रहस्यवाद को मज़बूती देने के कारण, विपरीत सच है। वसंत 2024 के चुनावों को कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने "जनता की जीत और लोकतंत्र की जीत" के रूप में प्रस्तुत किया, प्रधानमंत्री मोदी ने "दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की जीत" के रूप में, राहुल गांधी ने एक असाधारण प्रयास के रूप में जिसमें "आप सभी लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए मतदान करने के लिए बाहर आए हैं" और डेक्कन क्रॉनिकल [5] ने इसे "भारतीय लोकतंत्र की लचीलापन का प्रमाण" के रूप में प्रस्तुत किया। पूरा पूंजीपति वर्ग मज़दूर वर्ग के ख़िलाफ़ इस लोकतांत्रिक रहस्यवाद को बढ़ावा देने में बहुत खुश है, जो इस विचार पर आधारित है कि लोकतंत्र प्रगतिशील है, कि यह सभी दुर्भाग्य का इलाज है, यह दावा करते हुए कि भारतीय आबादी के बहुमत की बहुत खराब जीवन स्थितियों को दूसरी सरकार चुनकर सुधारा जा सकता है। इसके अलावा, इस विचारधारा के साथ मजबूत राष्ट्रवादी प्रचार भी है। बेशक, सभी बुर्जुआ पार्टियाँ वादा करती हैं कि अगर वे चुने गए तो हालात बेहतर हो जाएँगे, लेकिन पूंजीवाद की वर्तमान ऐतिहासिक परिस्थितियों में यह पूरी तरह असंभव है। समृद्धि और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता के सभी वादे पूंजी की तानाशाही और उसके दिवालियापन को छिपाने के लिए किए गए झूठ हैं।
इसके अलावा, 8% की औसत वार्षिक आर्थिक वृद्धि दर के बावजूद, श्रमिक अभी भी शोषण और भयावह गरीबी से वर्षों से पीड़ित हैं। फिर भी सरकार मांग करती है कि श्रमिक और भी अधिक कठोर होकर अपने दाँत पीसें व और भी अधिक हमलों को स्वीकार करें। मोदी भाजपा कार्यकर्ताओं से "देश के लिए बलिदान देने" के लिए कहते हैं। वह एक धार्मिक धर्मयुद्ध भी चला रहे हैं, श्रमिकों को विभाजित कर रहे हैं और हिंदुओं, ईसाइयों, सिखों और मुसलमानों के बीच एक जातीय विभाजन को बढ़ावा दे रहे हैं। उत्तरार्द्ध को भारत के पांचवें स्तंभ के रूप में चित्रित किया जाता है। कश्मीर और जम्मू, जहां ज्यादातर मुसलमान रहते हैं, एक तरह के मार्शल लॉ के अधीन हैं। देश के बाकी हिस्सों में, मुस्लिम, जो आबादी का 15% हिस्सा हैं, हिंदू वर्चस्ववादियों द्वारा शिकार किए जाते हैं। समग्र रूप से पूंजीपति वर्ग के हितों के दृष्टिकोण से, ऐसी नीति पूरी तरह से तर्कहीन है, क्योंकि राष्ट्र की एकजुटता को मजबूत करने के बजाय, राज्य के मुख्य कार्यों में से एक, यह जानलेवा अव्यवस्था को बढ़ावा देकर इसे कमजोर करता है। इंदिरा गांधी जैसे किसी व्यक्ति के विपरीत, जिन्होंने भारत को "हिंदू राष्ट्र" बनाने की परियोजना को कभी आगे नहीं बढ़ाया, मोदी हर जगह आतंक फैलाने के लिए कई मिलिशिया पर निर्भर हैं। इसलिए, न केवल उनकी सरकार अपने वादे के अनुसार समृद्धि और विकास लाने में विफल रही, बल्कि यह और अधिक अस्थिरता भी लाती है: उनकी नीतियां समाज में दरारें ती हैं और तनाव बढ़ाती हैं। 2023 में, 23 राज्यों में 428 घटनाएँ दर्ज की गईं, जिनमें सांप्रदायिक धमकी, पवित्र गायों की रक्षा में हिंसा और हत्या शामिल हैं।[6] भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने सही कहा कि हिंदू कट्टरपंथियों द्वारा हिंसा "नई सामान्य" बन रही है। भारत एक तेजी से खतरनाक सामाजिक बारूद का ढेर बनता जा रहा है, जैसा कि सांख्यिकीय जोखिम आकलन 2023-24 ने पुष्टि की है, जिसमें खुलासा किया गया है कि भारत 166 सूचीबद्ध नरसंहारों में से पाँचवें सबसे अधिक जोखिम वाले देश के रूप में है।
इस भयावह स्थिति और बढ़ती अस्थिरता से उत्पन्न खतरों का सामना करते हुए, केवल श्रमिक ही, जो अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक वर्ग का हिस्सा हैं, कोई विकल्प प्रस्तुत करने में सक्षम हैं। पिछले पाँच वर्षों में, विभिन्न क्षेत्रों के श्रमिकों ने अपने-अपने क्षेत्रों में संघर्ष किया है: स्वास्थ्य क्षेत्र में, परिवहन में, कार उद्योग में, विभिन्न कृषि क्षेत्रों में, सार्वजनिक बैंक कर्मचारियों के बीच, साथ ही कपड़ा श्रमिकों के बीच। यहाँ तक कि भारत भर में तीन हड़तालें भी हुई हैं, जहाँ हिंदू और मुस्लिम श्रमिकों ने कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया। लेकिन भारत में श्रमिक वर्ग अलग-थलग है और उसमें पश्चिमी यूरोप या संयुक्त राज्य अमेरिका के श्रमिक वर्ग की तरह वर्ग चेतना और अनुभव का अभाव है। "हिंदू पहले" (और बाकी सब बाद में) के नारे को जोर-शोर से उछालने वाले चल रहे बुर्जुआ वैचारिक अभियान का जहर और उसके साथ होने वाला लोकतांत्रिक प्रचार इसके वर्ग पहचान की पुनः प्राप्ति में बाधा है। फिर भी, भारतीय श्रमिकों ने दिखा दिया है कि वे घृणित बुर्जुआ अभियानों के बावजूद, अपनी आय में कमी के खिलाफ लड़ने में सक्षम हैं, धर्म, जाति या जातीयता के आधार पर नहीं, बल्कि एक ऐसे वर्ग के रूप में जिसके हित हर जगह एक जैसे हैं: शोषक वर्ग के हितों के विपरीत, और जो पूंजीवादी व्यवस्था के विनाश के लिए वैश्विक स्तर पर अपने संघर्षों को विकसित करने की क्षमता रखता है।
D/WH 21 जुलाई 2024
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[1] हमारी वेबसाइट पर लेख पढ़ें: पूंजीवादी वामपंथ एक मरती हुई व्यवस्था को नहीं बचा सकता
[2] मोदी ने भले ही औपचारिक रूप से यह नारा नहीं बोला हो, लेकिन उनकी पार्टी भाजपा में यह व्यापक रूप से प्रचलित है।
[3] क्रमशः: आंध्र प्रदेश के संघीय राज्य के नए मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू और बिहार के संघीय राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टियाँ।
[4] यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ("राष्ट्रीय देशभक्त संगठन") है, जो खूनी और जानलेवा दंगों का समृद्ध रिकॉर्ड रखने वाला संगठन है
[5] अंग्रेजी भाषा का भारतीय दैनिक समाचार पत्र।
[6] नफरत की बढ़ती लहर देखें: भारत का सांप्रदायिक हिंसा और भेदभाव में वृद्धि का दशक, 6 जून, 2024।
5 अगस्त 2024 को दर्जनों छात्रों ने बांग्लादेश की भगोड़ी प्रधानमंत्री शेख हसीना के आवास की छत पर तालियाँ बजाईं। वे पाँच सप्ताह तक चले संघर्ष की जीत का जश्न मना रहे थे, जिसमें 439 लोगों की जान चली गई और आखिरकार मौजूदा सरकार को उखाड़ फेंका गया। लेकिन वास्तव में यह किस तरह की ‘जीत’ थी? क्या यह सर्वहारा वर्ग की जीत थी या पूंजीपति वर्ग की? ट्रॉट्स्कीवादी समूह रिवोल्यूशनरी कम्युनिस्ट इंटरनेशनल (RCI, पूर्व में इंटरनेशनल मार्क्सिस्ट टेंडेंसी) ने स्पष्ट रूप से दावा किया कि बांग्लादेश में क्रांति हो चुकी है और प्रदर्शन इस बिंदु पर पहुँच चुके हैं जहाँ वे “बुर्जुआ ‘लोकतंत्र’ के दिखावे की निंदा कर सकते हैं, क्रांतिकारी समितियों का एक सम्मेलन बुला सकते हैं और क्रांतिकारी जनता के नाम पर सत्ता पर कब्ज़ा कर सकते हैं [और] अगर ऐसा हुआ तो सोवियत बांग्लादेश दिन का क्रम होगा”[1]।
बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पिछले कई सालों से संकट में है। खाद्य और ईंधन की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि के कारण अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संकट ने देश पर बड़ा प्रभाव डाला है। 2024 की शुरुआत में मुद्रास्फीति लगभग 9.86% तक पहुँच गई, जो दशकों में सबसे अधिक दरों में से एक है। निजी क्षेत्र में बैंक विफलताओं के खतरनाक स्तर के कारण देश वित्तीय संकट के कगार पर है। मई 2020 से, राष्ट्रीय मुद्रा, टका, ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने मूल्य का 10% खो दिया है। सार्वजनिक ऋण 2012 में सकल घरेलू उत्पाद के 30% से बढ़कर 2022 में सकल घरेलू उत्पाद का 40% हो गया है। 2023 के अंत तक बाहरी ऋण एक सौ बिलियन डॉलर से अधिक हो जाएगा। बेरोजगारी 73 मिलियन कामकाजी आबादी के लगभग 9.5% को प्रभावित करती है...
2023 में, बांग्लादेश को दुनिया के दस सबसे भ्रष्ट देशों में स्थान दिया गया था। बांग्लादेशी समाज के सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार व्याप्त है, और व्यवसायों को महंगी और अनावश्यक लाइसेंसिंग और परमिट आवश्यकताओं के अधीन होना पड़ता है। अनुकूल न्यायालय के फैसले प्राप्त करने के लिए अक्सर अनियमित भुगतान और रिश्वत का आदान-प्रदान किया जाता है। कॉर्पोरेट भ्रष्टाचार निरोधक पोर्टल ने बांग्लादेशी पुलिस को दुनिया में सबसे कम विश्वसनीय माना है। लोगों को जबरन वसूली के एकमात्र उद्देश्य से पुलिस द्वारा धमकाया और/या गिरफ्तार किया जाता है।
शेख हसीना की 'समाजवादी' पार्टी आवामी लीग ने पुलिस के साथ मिलकर कई सालों तक जबरन वसूली, अवैध टोल वसूली, सेवाओं तक पहुँच के लिए 'मध्यस्थता' के ज़रिए सड़कों पर सत्ता का इस्तेमाल किया है, यहाँ तक कि राजनीतिक विरोधियों और पत्रकारों को डराने-धमकाने का भी काम किया है। आवामी लीग की छात्र शाखा बांग्लादेश छात्र लीग (BSL) की गैंगस्टर जैसी हरकतें कुख्यात हैं। 2009 से 2018 के बीच इसके सदस्यों ने 129 लोगों की हत्या की और हज़ारों लोगों को घायल किया। इस वर्ष के विरोध प्रदर्शनों के दौरान, उनके क्रूर व्यवहार के कारण , विशेषकर महिलाओं के प्रति, उन्हें व्यापक रूप से नफ़रत का सामना करना पड़ा। पुलिस और आवामी लीग के साथ उनके घनिष्ठ संबंधों की बदौलत वे सालों से इन अपराधों को बिना किसी दंड के अंजाम दे रहे हैं।
2009 में सत्ता में आई शेख हसीना की सरकार जल्द ही एक निरंकुश शासन में बदल गई। पिछले एक दशक में इसने नौकरशाही, सुरक्षा एजेंसियों, चुनाव अधिकारियों और न्यायपालिका सहित देश की प्रमुख संस्थाओं पर अपनी एकाधिकार जमा लिया है। शेख हसीना की सरकार ने व्यवस्थित रूप से अन्य बुर्जुआ गुटों को चुप करा दिया है। 2024 के चुनावों से पहले, सरकार ने विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के 8,000 से अधिक नेताओं और समर्थकों को गिरफ़्तार कर लिया।
लेकिन राजनीतिक विपक्ष, मीडिया, ट्रेड यूनियनों आदि की आवाज़ों के दमन ने राजनीतिक शासन की नींव को बहुत अस्थिर बना दिया है। संसद में भी 'सार्वजनिक बहस' को पूरी तरह से दबा देने से राजनीतिक खेल की नींव और भी कमज़ोर हो गई है और अंततः सभी राजनीतिक नियंत्रण पूरी तरह खत्म हो गए हैं। 2024 तक, शेख हसीना को अब सिर्फ़ वफ़ादार विपक्ष का सामना नहीं करना पड़ेगा। पूंजीपति वर्ग के अधिकांश वर्ग उसके कट्टर दुश्मन बन गए थे, जो उसे जीवन भर के लिए जेल में डालने और यहां तक कि उसकी मौत की मांग करने के लिए तैयार थे।
ये प्रदर्शन युवाओं में भारी बेरोजगारी की पृष्ठभूमि में हुए। और देश में कोई बेरोजगारी बीमा प्रणाली नहीं है, इसलिए नौकरी चाहने वालों को कोई लाभ नहीं मिलता और परिणामस्वरूप वे अत्यधिक गरीबी में रहते हैं। इस संदर्भ ने कोटा प्रणाली को, जो 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के 'स्वतंत्रता सेनानियों' के वंशजों के लिए सिविल सेवा नौकरियों का 30% आरक्षित करती है, बेरोजगारी का सामना करने वाले सभी लोगों के लिए गुस्से और हताशा का स्रोत बना दिया है।
कोटा प्रणाली के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कोई नई बात नहीं है। लेकिन इन सभी वर्षों में, विरोध प्रदर्शन विश्वविद्यालयों तक ही सीमित रहे हैं, जो पूरी तरह से कोटा प्रणाली पर केंद्रित रहे हैं। नई सिविल सेवा नौकरियों के "निष्पक्ष" वितरण के लिए छात्रों की मांगों की संकीर्णता पूरे श्रमिक वर्ग तक आंदोलन को विस्तारित करने का आधार प्रदान नहीं कर सकी, जिसमें शिक्षा के क्षेत्र में नहीं आने वाले बेरोजगार भी शामिल हैं।
छात्रों ने बेरोजगारी की इसी समस्या से जूझ रहे मजदूरों तक संघर्ष को बढ़ाने के लिए एकजुट मांगें बनाने के महत्व को नजरअंदाज कर दिया। और 2024 में, छात्रों की मांगें भी अलग नहीं थीं: मजदूरों की मांगों के आधार पर संघर्ष को मजदूरों तक बढ़ाने की कोशिश करने के बजाय, वे एक बार फिर खुद को पुलिस और राजनीतिक गिरोहों के साथ हिंसक झड़पों में फंसा हुआ पाते हैं।
यहां तक कि जब 1 जुलाई 2024 को 35 विश्वविद्यालयों के कर्मचारी, व्याख्याता और अन्य कर्मचारी नई सार्वभौमिक पेंशन योजना के खिलाफ हड़ताल पर चले गए, तब भी छात्रों ने हड़ताल पर गए 50,000 विश्वविद्यालय कर्मचारियों से समर्थन तक नहीं मांगा। हड़ताल दो सप्ताह तक चली, लेकिन उल्लेखनीय रूप से छात्रों द्वारा इसे लगभग नजरअंदाज कर दिया गया।
छात्रों और आबादी के एक हिस्से ने एक विशाल प्रदर्शन आयोजित किया जो एक विद्रोह में बदल गया जिसने शासन को खुले तौर पर चुनौती दी। अंत में, 5 अगस्त 2024 को, शेख हसीना ने सैन्य नेताओं की उपस्थिति में अपने इस्तीफे पर हस्ताक्षर किए और सेना को सत्ता सौंप दी। शासन परिवर्तन, जिसे 'क्रांति' के रूप में वर्णित किया गया था, वास्तव में एक परदे के पीछे का सैन्य तख्तापलट था जिसमें प्रदर्शनकारियों ने नागरिक बैक-अप और युद्धाभ्यास के एक बड़े समूह के रूप में काम किया।
ऊपर उद्धृत वामपंथी दावा करते हैं कि छात्र "बुर्जुआ 'लोकतंत्र' के दिखावे की निंदा करने में सक्षम थे"। जबकि आंदोलन के प्रति सरकार की क्रूर प्रतिक्रिया ने दिखाया कि एक निर्वाचित लोकतांत्रिक सरकार एक खुली तानाशाही बन गई थी, इसने इसे दूसरे बुर्जुआ गुट की थोड़ी अधिक सूक्ष्म तानाशाही से बदल दिया! और छात्र संगठन नए, अधिक 'लोकतांत्रिक' बुर्जुआ चुनावों की मांग कर रहे हैं। बस इतना ही है!
बेरोजगारी के सवाल का इस्तेमाल बुर्जुआ गुटों के बीच हिसाब बराबर करने के साधन के रूप में किया गया है, और यह और भी आसान है क्योंकि छात्रों के लिए सार्वजनिक सेवा में नौकरियों के ‘समान’ बंटवारे की मांग ही मजदूर वर्ग के लिए संघर्ष का अनुकूल क्षेत्र नहीं बनाती है। इसके विपरीत, यह एक जाल है, जो कॉर्पोरेट बंधन का जाल है। ‘क्रांतिकारी जनता’ केवल वामपंथियों की कल्पना में ही मौजूद थी।
पिछले साल हड़ताल पर गए 4.5 मिलियन कपड़ा मजदूरों की तरह, आर्थिक संकट के प्रभावों के खिलाफ मजदूरों का संघर्ष ही एकमात्र वास्तविक संभावना है। क्योंकि पूंजीवादी संकट के प्रभावों के खिलाफ संघर्ष को राजनीतिक परिप्रेक्ष्य देने में एकमात्र मजदूर वर्ग ही सक्षम है। लेकिन हमें किसी भ्रम में नहीं रहना चाहिए: बांग्लादेश में मजदूर वर्ग इतना अनुभवहीन है कि वह अपने दम पर, वामपंथी दलों और ट्रेड यूनियनों के साथ प्रमुख वर्ग द्वारा उसके लिए बिछाए गए जाल का विरोध नहीं कर सकता। सर्वहारा वर्ग के अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष के माध्यम से, विशेष रूप से यूरोप में मजदूर वर्ग के सबसे पुराने गढ़ों में, बांग्लादेश में मजदूरों को एक प्रामाणिक क्रांतिकारी संघर्ष का रास्ता मिलेगा।
डेनिस, 10 सितंबर 2024
[1] बांग्लादेशी क्रांति हमें क्या सिखाती है, Marxist. CA
Source: https://en.internationalism.org/content/17565/uprising-paved-way-another... [22]
16 नवंबर को आईसीसी ने ‘अमेरिकी चुनावों के वैश्विक प्रभाव’ विषय पर एक ऑनलाइन सार्वजनिक बैठक आयोजित की।
आईसीसी कार्यकर्ताओं के अलावा, चार महाद्वीपों और लगभग पंद्रह देशों से कई दर्जन लोगों ने चर्चा में हिस्सा लिया। अंग्रेजी, स्पेनिश और फ्रेंच में एक साथ अनुवाद की सुविधा ने सभी को चर्चा का अनुसरण करने में सक्षम बनाया, जो लगभग तीन घंटे तक चली।
जाहिर है, दुनिया भर में पूरे मजदूर वर्ग द्वारा हासिल की जाने वाली क्रांति को देखते हुए, यह छोटी संख्या महत्वहीन लग सकती है। सर्वहारा वर्ग द्वारा गहन चेतना और स्व-संगठन का एक विशाल नेटवर्क विकसित करने से पहले हमें अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है। इस तरह की अंतर्राष्ट्रीय बैठक वास्तव में उसी रास्ते पर आगे बढ़ने का एक साधन है। फिलहाल, क्रांतिकारी अल्पसंख्यक अभी भी बहुत छोटे हैं, एक शहर में मुट्ठी भर, दूसरे में एक व्यक्ति। विभिन्न देशों से एकत्रित होकर चर्चा करना, तर्कों पर काम करना और तुलना करना, तथा इस प्रकार विश्व की स्थिति को बेहतर ढंग से समझना, प्रत्येक व्यक्ति के अलगाव को तोड़ने, संबंध बनाने तथा सर्वहारा क्रांतिकारी संघर्ष की वैश्विक प्रकृति को महसूस करने का एक बहुमूल्य अवसर है। यह हमारे वर्ग द्वारा एक अंतर्राष्ट्रीय मोहरा बनाने के प्रयास में भाग लेने के बारे में है। इस प्रकार की बैठक एक मील का पत्थर है जो विश्व स्तर पर क्रांतिकारियों के आवश्यक संगठन का पूर्वाभास कराती है। क्रांतिकारी ताकतों का यह पुनर्गठन एक लंबी प्रक्रिया है, जिसके लिए सचेत और निरंतर प्रयास की आवश्यकता होती है। यह भविष्य की तैयारी के लिए, आने वाले निर्णायक क्रांतिकारी टकरावों के लिए खुद को संगठित करने के लिए महत्वपूर्ण शर्तों में से एक है।
हमारी बैठक में भारी संख्या में लोगों का शामिल होना, विश्व की अग्रणी शक्ति के प्रमुख के रूप में डोनाल्ड ट्रम्प के चुनाव से उत्पन्न चिंता, यहां तक कि बेचैनी को भी प्रकट करता है।
सभी वक्ताओं ने, आईसीसी के साथ, इस बात पर जोर दिया कि इस राष्ट्रपति की जीत - जो खुले तौर पर नस्लवादी, मर्दवादी, घृणा से भरा, प्रतिशोधी है, और जो एक तर्कहीन आर्थिक और युद्ध नीति की वकालत करता है - दुनिया को तबाह करने वाले सभी संकटों को बढ़ा देगी और सभी अनिश्चितताओं और अराजकता को बढ़ा देगी।
इस सामान्य स्थिति से, चर्चा के दौरान कई प्रश्न और बारीकियां, साथ ही असहमतियां भी उभरीं:
क्या ट्रम्प की जीत अमेरिकी पूंजीपति वर्ग की ओर से जानबूझकर अपनाई गई नीति का नतीजा है? क्या ट्रम्प अमेरिकी पूंजीपति वर्ग के हितों के लिए सबसे अच्छा कार्ड है? क्या ईरान, यूक्रेन और चीन के संबंध में उनके साम्राज्यवादी निर्णय तीसरे विश्व युद्ध की ओर एक कदम हैं? क्या टैरिफ बढ़ाने की उनकी संरक्षणवादी नीति युद्ध की ओर ले जाने वाली पहेली का एक हिस्सा है? क्या मज़दूर वर्ग, ख़ास तौर पर सिविल सेवकों पर क्रूर हमला करने की उनकी योजनाएँ, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को इस युद्ध के लिए तैयार करने के लिए ज़रूरी बलिदानों से जुड़ी हैं?
या, इसके विपरीत, जैसा कि आईसीसी और अन्य प्रतिभागियों ने तर्क दिया, क्या विश्व की अग्रणी शक्ति के शीर्ष पर ट्रम्प का आगमन राष्ट्रीय पूंजीपतियों की ओर से अपने सबसे रूढ़िवादी और तर्कहीन तबकों को सत्ता हासिल करने से रोकने में बढ़ती कठिनाई का प्रमाण है? क्या पूंजीपति वर्ग के भीतर गुटबाजी युद्ध चल रहा है, जैसे समाज का अमेरिकी/आप्रवासी, पुरुष/महिला, वैध/अवैध में विखंडन, जिसे ट्रम्प परिवार बढ़ा रहा है, क्या यह अमेरिकी समाज में अव्यवस्था और अराजकता की प्रवृत्ति का संकेत नहीं है? क्या ट्रम्प जो व्यापार युद्ध चाहते हैं, वह 1920 और 30 के दशक के संरक्षणवादी उपायों पर लौटकर, जिसने उस समय हर देश को बर्बाद कर दिया था, अमेरिकी पूंजी के हितों के दृष्टिकोण से उनकी नीति की तर्कहीनता को नहीं दर्शाता है? इसी अर्थ में, क्या नए अमेरिकी प्रशासन की साम्राज्यवादी नीति के बारे में बढ़ती अनिश्चितता सभी देशों के बीच युद्ध के तनाव को और मजबूत नहीं कर रही है, तथा अस्थिर और परिवर्तनशील गठबंधनों की ओर, प्रत्येक व्यक्ति के अपने हित की ओर, अदूरदर्शी राजनीति की ओर, युद्धों के प्रकोप की ओर, जो केवल झुलसती धरती को जन्म देते हैं, को और अधिक नहीं बढ़ा रही है?
आईसीसी के लिए इन सभी प्रश्नों का उत्तर देने का अर्थ है उस ऐतिहासिक काल पर गहराई से नज़र डालना जिससे हम गुज़र रहे हैं: विघटन, पूंजीवादी पतन का अंतिम चरण।क्योंकि, मूल रूप से, ट्रम्प की जीत ऐसी चीज नहीं है जिसे अलग से देखा जाए, अलग से विश्लेषण किया जाए और तत्काल अवधि में कैद किया जाए। यह एक संपूर्ण वैश्विक स्थिति, एक ऐतिहासिक गतिशीलता का फल है, जो पूंजीवाद को अपने पैरों पर खड़ा हुआ देखती है।संयुक्त राज्य अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की जीत हो या अर्जेंटीना में जेवियर माइली की, मध्य पूर्व में इजरायल की निराशाजनक नीतियां हों या यूक्रेन में रूस की, लैटिन अमेरिका के बड़े हिस्से पर ड्रग माफियाओं का शिकंजा, अफ्रीका में आतंकवादी समूहों या मध्य एशिया में सरदारों का शिकंजा, रूढ़िवाद, षडयंत्र सिद्धांतकारों और सपाट पृथ्वीवादियों का उदय, समाज के कुछ वर्गों से हिंसा का विस्फोट - ये सभी, जो एक-दूसरे से असंबद्ध प्रतीत होते हैं, वास्तव में विघटन में पूंजीवाद की एक ही मौलिक गतिशीलता की अभिव्यक्ति हैं।
हम इस विषय और इन सभी सवालों पर बाद में एक लेख में अपनी प्रतिक्रिया विकसित करने के लिए वापस आएंगे[1]।
चर्चा का दूसरा भाग, जो वर्ग संघर्ष की वर्तमान स्थिति को समझने पर केंद्रित था, उसी गतिशीलता पर आधारित था।यहां भी बहस खुली, स्पष्ट और भाईचारे वाली थी, और कई प्रश्न पूछे गए, तथा कई बारीकियां और असहमतियां सामने आईं।
क्या ट्रम्प की जीत का अर्थ यह है कि सर्वहारा वर्ग पराजित हो गया है, या कम से कम यह कि वह भी नस्लवाद और लोकलुभावनवाद से ग्रस्त हो गया है? या, दूसरी ओर, क्या श्रमिकों द्वारा डेमोक्रेटिक पार्टी को अस्वीकार करने से इस बुर्जुआ पार्टी की वास्तविक प्रकृति के बारे में जागरूकता पैदा होती है? क्या ट्रम्प का तानाशाह के रूप में सामने आना श्रमिक वर्ग के गुस्से और प्रतिक्रिया को प्रोत्साहित कर सकता है? या फिर लोकतंत्र की रक्षा का अभियान सर्वहारा वर्ग के लिए मौत का जाल बन जाएगा? क्या ट्रम्प, मस्क और उनके गिरोह द्वारा अत्यंत क्रूर तरीके से किए गए जीवन और कार्य स्थितियों की बदतर स्थिति वर्ग संघर्ष को भड़काएगी? या क्या ये बलिदान विदेशियों, अवैध अप्रवासियों आदि जैसे बलि के बकरों की खोज को मजबूत करेंगे?
ये सभी विरोधाभासी प्रश्न आश्चर्यजनक नहीं हैं। स्थिति अत्यंत जटिल है, इसे संपूर्णता और सुसंगतता में समझना कठिन है। और चर्चा के पहले भाग की तरह, जिस चीज की कमी है, वह है दिशा-निर्देश, प्रत्येक प्रश्न पर अलग-अलग, एक-दूसरे से अलग-अलग नहीं, बल्कि समग्र रूप से और अंतर्राष्ट्रीय तथा ऐतिहासिक संदर्भ में विचार करने की दिशा-निर्देश।वैश्विक पूंजीवाद की सामान्य और गहन गतिशीलता का सचेत और व्यवस्थित रूप से उल्लेख किए बिना दुनिया के बारे में सोचना असंभव है: यह व्यवस्था क्षय की ओर जा रही है (इससे निकलने वाली तमाम घृणित दुर्गंध के साथ), लेकिन सर्वहारा वर्ग पराजित नहीं हुआ है; वास्तव में, 2022 के बाद से और यूनाइटेड किंगडम में गुस्से की गर्मियों के बाद से, यह अपना सिर उठा रहा है, संघर्ष के रास्ते और अपने ऐतिहासिक लक्ष्यों की ओर वापस लौट रहा है।
हम यहां अपनी प्रतिक्रिया को और आगे नहीं बढ़ा सकते; हम अपने प्रेस में और अपनी अगली बैठकों में इस पर वापस आएंगे[2]।
यह बहस तो बस शुरुआत है। हम अपने सभी पाठकों को प्रोत्साहित करते हैं कि वे हमारे वर्ग द्वारा किए जा रहे इस प्रयास में, क्रांतिकारियों के बीच होने वाली बहसों में, स्पष्टीकरण की सामूहिक प्रक्रिया में भाग लें।अलग-थलग मत रहो! सर्वहारा वर्ग को अपने अल्पसंख्यकों की जरूरत है ताकि वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संबंध बना सकें, खुद को संगठित कर सकें, बहस कर सकें, स्थितियों की तुलना कर सकें, तर्क-वितर्क कर सकें, दुनिया के विकास को यथासंभव गहराई से समझ सकें।
आईसीसी आपको अपनी विभिन्न बैठकों में भाग लेने के लिए आमंत्रित करता है: ऑनलाइन और अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक बैठकें, कुछ कस्बों और शहरों में ‘आमने-सामने’ सार्वजनिक बैठकें, और ड्रॉप-इन सत्र। मिलने और बहस करने के इन सभी अवसरों की घोषणा नियमित रूप से हमारी वेबसाइट पर की जाती है।
इन बैठकों के अतिरिक्त, हम आपको हमें पत्र लिखने, हमारे लेखों पर प्रतिक्रिया देने, प्रश्न पूछने या अपनी असहमति व्यक्त करने के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं।
और हमारे प्रेस के कॉलम खुले हैं, वे वर्ग के हैं। हम लेखों के लिए आपके सुझावों का स्वागत करते हैं।
बहस एक परम आवश्यकता है। हम एक दूसरे से बहुत दूर हैं, अलग-थलग हैं, अक्सर हमारे आस-पास विकसित हो रहे विचारों से असहमत हैं। अगर हमें भविष्य के लिए तैयार होना है तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक साथ इकट्ठा होना बहुत ज़रूरी है। सभी क्रांतिकारी अल्पसंख्यकों की यह ज़िम्मेदारी है।
आई सी सी
लिंक
[1] mailto:[email protected]
[2] https://en.internationalism.org/ir/107_decomposition
[3] https://en.internationalism.org/content/17056/behind-decline-us-imperialism-decline-world-capitalism#_ftnref1
[4] https://en.internationalism.org/content/17042/report-pandemic-and-development-decomposition
[5] https://en.internationalism.org/content/16926/homage-our-comrade-kishan#_ftnref1
[6] https://en.internationalism.org/ir/094_china_part3.html#_ftnref4
[7] https://world.internationalism.org
[8] mailto:[email protected]
[9] https://hi.internationalism.org/files/hi/hindi-leaflet.pdf
[10] http://www.internationalism.org
[11] https://www.leftcom.org/en/articles/2022-07-22/nwbcw-and-the-real-ininter
[12] https://www.sitocomunista.it/canti/cantidilotta.html;
[13] https://www.sitocomunista.it/resistence/resistenceindex.html;
[14] https://www.sitocomunista.it/pci/pci.html
[15] https://www.sitocomunista.it/resistence/resistenceindex.html
[16] http://www.sitocomunista.it/pci/pci.html
[17] mailto:[email protected]%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%20%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%96%E0%A5%87%E0%A4%82%20%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82%20%E0%A4%94%E0%A4%B0,%20
[18] https://en.internationalism.org/content/17377/update-theses-decomposition-2023
[19] https://en.internationalism.org/content/17362/report-class-struggle-25th-icc-congress
[20] https://en.internationalism.org/content/17546/appeal-revolutionary-solidarity-and-defence-proletarian-principles
[21] https://en.internationalism.org/content/17572/appeal-communist-left-working-class-against-international-campaign-mobilise-bourgeois
[22] https://en.internationalism.org/content/17565/uprising-paved-way-another-bourgeois-regime