कोविद -१९ से लड़ने में एक साल की लापरवाही: पूँजीवाद हत्यारा है !

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अप्रैल के प्रारंभ से ही कोविद-१९ने,  ग्रह के चारों कोनों में पैर पसार लिए हैं.  नवम्बर २०२० से महामारी ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हालत बेहद खराब कर रखे हैं . यदि यूरोप में स्थिति  स्थिर लगती है तो, दूसरी ओर प्रदूषण के विकराल रूप धारण कर लेने के कारण अमेरिका में महामारी उलटे पांव लौट आई है, तथा लैटिन अमरीका और भारतीय उपमहाद्वीप के लोग भीषण यातना झेल रहे हैं. चीन जैसे  देश  जिनका चीनी टीके से बृहद रूप में इलाज  किया जा रहा है, वे विशाल रूप से  संक्रमित हो रहे हैं.[1] स्थिति इतनी गम्भीर हैं कि चीन के अधिकारीयों के बीच तक टीके की कम “क्षमता “ की बात की जा रही है. विश्व स्तर पर कोविद अब तक लगभग ३० लाख २० हजार प्राणियों की भेट ले  चुका है. निसंदेह, यह संख्या,चीन और अन्य देशों द्वारा सार्वजनिक  तौर पर दिए गये आंकड़ो से कहीं अधिक है.

यदि वाइरस के विषय में किये गये एक वर्ष के  शोध से  विदित तथ्यों पर  चर्चा करें , तो हम पायेंगे : यह वाइरस कैसे फैलता है और इससे कैसे लडा जा सकता है? अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सीमित सीमा तक ही इसे रोक देने के लिए उपयुक्त,सघन उपाय किये जाने में सभी सरकारों और पूंजीपतियों ने परले दर्जे की लापरवाही बरती.  सभी राज्य, आपसी होड़ की म्रग मरीचिका का के बशीभूत हो कर, वैक्सीन  नीति के बारे में कोई सामूहिक नीति पर कोई  न्यूनतम आपसी सहयोग तक स्थापित  करने में असफल रहे .

आपसी सहयोग के अभाव के कारण सभी राज्यों को अल्पकालिक उपायों का सहारा लेना पड़ा जिसमें  लौक डाउन थोपने,  फिर थोड़े समय बाद हटा लेने,  फिर लगाने और हटा लेने,मिनी लौक डाउन, राज्य की ओर  से तमाम चेतावनियां,कर्फ्यू लागू करना और उठाना आदि शामिल हैं. दशकों से संकट के समय थोपी गयी बजट में तमाम कटौतियों के पश्चात, महामारी के खिलाफ लड़ने के  लिए उपयुक्त और भरपूर साधनों के मरीअभाव तथा पूर्वाधिकृत “अर्थव्यवस्था” अपने प्रतिद्वंदियों द्वारा पीछे धकेल दिए जाने की  जोखिमों के कारण पूंजीवादी राज्यों ने प्रतिदिन होने वाली मौतों की चिंता छोड़,अस्पतालों और कब्रिस्तानों में फैली अराजकता से ( कमोवेश ) बचने के लिए अपने स्वास्थ्य साधनों को समायोजित करना जारी रखा, और इसे ही प्रभुत्वशाली वर्ग “वाइरस के साथ जीना सीखने “ की बात करता है . परिणाम! यदिसाथ किसी राज्य ने अपने देश की जनता को तेजी के साथ टीकाकरण करना शुरू साथकर दिया, फिरभी, टीके के प्रति और अधिक प्रतिरोधी   कोविद- १९ के  अन्य रूप में अन्य स्थानों पर तेजी से फ़ैल रहा है .

भारत, ब्राजील ..... नई द्रष्टि

 परन्तु इस भयानक तबाही में,भारत और ब्राजील के बुरे द्रश्य महाविपत्ति की गवाही देते हैं. ब्राजील के एक वैज्ञानिक के शब्दों में ( ब्राजील में महामारी नियंत्रण से बाहर है): हर जगह नये नये श्मशान  ग्रह बनाये जा रहे हैं, शवों को बसों से ढोया जा रहा है, बीमारी रोजाना लाखों लोगों को ग्रसित कर रही है, शीघ्र ही,  इस मामले में अमेरिका के डरावने रिकार्ड को पीछे धकेलते हुये,मृतकों की संख्या पांच लाख को पार कर जायेगी. अस्पताल ठसाठस भरे हुए हैं , पीड़ित,अस्पतालों में बिस्तरों के अभाव में स्ट्रेचरों पर ही दम तोड़ रहे हैं, और यह सब अमेजन राज्य के सबसे बड़े शहर मानौस से आने वाले वाइरस के नये संस्करण का आगाज है, जहां समूह प्रतिरक्षा की म्रग मरीचिका में समय नष्ट किया गया था. उसी समय ब्राजील में दूसरी लहर प्रवेश कर गयी.देश के राष्ट्रपति बोल्सोनारो ने वाइरस को एक  छोटा फ़्लू ( ग्रिपेंजिन्हा)  होने का बहाना किया था,उसने विपत्ति में फंसी सरकार को मौज मस्ती के मूड में सरकारके मंत्रियों को कमीज बदलने की भांति बदलता रहा, तथा लगातार दोहराता रहा, ” काम पर वापस जाना और शिकायत बंद करना आवश्यक है.” 

ब्राजील में अमेजन से पशुओं की तस्करी और जंगल की अंधाधुंध कटाई ने लोगों को वाइरस के सम्पर्क में ला दिया जो आज तक एक आवरण के नीचे रहने को अभिशप्त हैं. मानोस के शोधकर्ता,  जीव विज्ञानी,  लुकास फर्रान्ते ने कहा , “ यह अमेजन है, जहाँ वुहान में हमारे द्वारा देखे गये वाइरस से भी अधिक विनाशकारी वाइरस के प्रकट होने का जोखिम है.”[2] इन पिछले वर्षों में अमेजन के जंगलों के विनाश ने  विध्वन्श्कारी आयाम ले लिया है और इससे लाभान्वित होने वाले पूंजीपति, इसे रोकने के लिए तैयार नहीं है.

लेकिन दो सप्ताहों के बीच कोविद से सम्बंधित खबरों के मामले में,  भारत प्रथम स्थान पर पहुंच गया है. वह देश जो दूनियाँ में सबसे अधिक आबादी वाला देश है, इस देश की स्वास्थ आपदा के बारे में शब्द खोजना मुश्किल है.आर्थिक तौर पर विकसित होने के बावजूद महामारी के मद्दे नजर यहाँ स्वास्थ सेवाएं अविकसित थीं; स्वास्थ्य सेवाएं भारत सरकार की प्राथमिकता नहीं रहीं.मसीहाई अहंकार से ओतप्रोत बोल्सोनारो की भांति भारत के प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी`ने शेखी बघारते हुए कहा. “ हमने  वाइरस को हरा  दिया है,  “और दावा किया की, “  भारत ने दुनियां में एक मिसाल कायम की है.”  अपने साम्राज्यवादी अहं का दम्भ हरते हुए चीन आदि अन्य देशों की भांति देश में वैकसीन के  निर्माण और लोगों को लगाये जाने का दम्भ भरा.  हालाँकि टीके के निर्यात पर रोक लगादी है.

जनवरी के बाद से ही,  बड़ी द्रढ़ता से हिन्दू कट्टरपन्थ से संचालित सरकार ने जान बूझ  कर देश के कौने-  कौने से आने वालीं धार्मिक तीर्थ यात्रा की (  हरिद्वार के कुम्भ मेला )अपार भीड़ को  यहाँ आने के लिए प्रोत्साहित किया. अप्रैल के पहले दो सप्ताह में ही बिना मास्क लगाये, आवश्यक दूरी बनाये रखने के नियम  का बिना ध्यान रखते हुए, परीक्षण और तापमान निरीक्षण के  बिना, लगभग बीस लाख अस्सी हजार  यात्री कुम्भ मेले में पहुंचे और गंगा के पानी में डूबकी लगाई. यह पानी धार्मिक कर्म कांड के अंतर्गत शवों के गंगा में विसर्जन के कारण अत्यधिक प्रदूषित “असली वाइरस बम) हो चुका था, और हमें चुनावी अभियान के दौरान होने वाली सभाओं में होने वाली विशाल भीड़ को नहीं भूल जाना चाहिए .

इस प्रकार के अहंकार और अवमानना के घटाटोप को उजागर होने में देर नहीं लगी. प्रति दिन वाइरस के कारण होने वाली मौतें ४००० और संक्रमित होने का आंकड़ा ४०लाख को भी पार कर गया. और ये “आंकड़ा   वास्तविक  संख्या से कम ही है “  प्रैस ने, ओक्सीजन की कमी के कारण,  लोगों द्वारा अस्पतालों में बिस्तरों पर कब्जा कर लेने के  कारण पर, हथठेलों , मोटर साइकिलो, कारो और जमीन पर ही दम तोड़ने वाले  लोगों  के भयावह और चिन्ताजनक द्रश्यों की पुष्टि की है.

यह, उस देश की जनता के प्रति फर्ज अदायगी की भोंडी अभिव्यक्ति  है,जो अपने आप को  ब्राजील के समान आर्थिक दिग्गज होना प्रस्तुत करता है . इसके बजाय हम उन परिवारों की तस्वीर भी देखते हैं जो, दाह संस्कार करने के लिए उचित स्थान खोजने के लिए श्मशानों के चक्कर लगा रहे हैं. अपने  मृतक परिजनों को अंतिम समय सम्मान पूर्वक श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए सैकड़ों मीटर लम्बी लाइनों में घंटों से खड़े इन्तजार कर रहे हैं, और हालत ये हैं कि हर  श्मशान के आस पास लाशों के ढेर लगे हें . ब्राजील के समान अन्य सभी स्थानों पर समाज का सबसे वंचित तबका, सर्वहारा और अन्य शोषित, पीड़ित समूह ही इस लापरवाही और उसके कारण कष्टों का जोखिम उठाते हैं .
और सोचने वाली बात ये है कि  (दक्षिण अफ्रीका) के साथ इन दोनों देशों को , चीन के समान विकास की क्षमता रखने वाले देशों में वर्गीक्रत किया है[3], और एक शास्वत व गतिशील पूँजीवादी  हिस्से  के रूप में प्रस्तुत किया गया है .

पतनशीलता में डूबा पूंजीवाद

मानव जाति  के सामने खतरा पैदा करने वाले कोविद- १९, अन्य महामारियां तथा अन्य विपत्तियाँ  केवल उत्पाद ही नहीं वल्कि ग्रह स्तर पर सामाजिक पतनशीलता के शक्तिशाली और त्वरक कारक भी हैं .मोदी का भारत और बोल्सोनारो का ब्राजील,भले ही लोकलुभावन नारों से संचालित होते हों, लेकिन उनके   मूर्खतापूर्ण और तर्कहीन निर्णय, सिर्फ गतिरोध की दो उच्चतम अभिव्यक्तियां, मानवता के लिए पूंजीवादी गतिरोध का प्रतिनिधत्व करते हैं.

गलत न समझें : मोदी, बोल्सोनारो, ट्रम्प और अन्य लोकलुभावन नारों की उत्पत्ति के शक्तिशाली प्रतिनिधि अनिश्चित औए संकीर्ण प्रशासन और (अभिजात्य विरोधी ) भाषणों के कारण राष्ट्रीय पूँजी के कट्टर रक्षक बने हुए है: सोया का आयात करने वाले देशो द्वारा प्रोत्साहित, अमेजन के जंगल का क्रूर शोषण औए लूट के   साथ ही खनिजों की खुदाई के कारण, विश्व पूँजी की  आवश्यकताओं के प्रतीक बने हुए हैं.जहाँ तक मोदी के भारत का सवाल है, “संरक्षित”  कृषि की समाप्ति के लिए क़ानून बनाया गया है,ताकि वहां पूँजी की आवश्यकताओं को पूरा कने करने लिए ग्रामीण क्षेत्रो को और भी अधिक खोला जा सके.[4]

जैसा की हमने अपनी जुलाई २०२० की “ कोविद १९ की महामारी और  पूंजीवाद की पतनशीलता की अवधि “ की रिपोट में कहा है : “ कोविद महामारी ( .......)   पूंजीवादी व्यवस्था के  सामान्यीकृत सडांध का  प्रतीक, अराजकता की श्रंखला को एक साथ रखते  हुए निस्संदेह , पतनशीलता की समूची अवधि के प्रतीक बन गये हैं.और भी ;

  • १९६७ में शुरू हुए दीर्घकालीन आर्थिक संकट के परिणाम स्वरुप, मितव्यता के उपायों के संचय और गहनता, नव पूंजीपति वर्ग द्वारा महामारी से लड़ने के लिए एक अपर्याप्त और अराजक प्रक्रिया प्रारंभ की गयी जिसके बदले में पूंजीपति वर्ग ने एक विशेष समय के लिए उत्पादन को रोक कर बदले में सत्ताधारी वर्ग को  आर्थिक संकट  में वृद्धि करने के लिए उपकृत किया ;
  • महामारी की उत्पत्ति स्पष्ट रूप से अति उत्पादन के पुराने पूंजीवादी संकट के लगातार  पर्यावरण के विनाश में निहित है ;
  •  विशेष रूप से पूर्व सहयोगियों के बीच, साम्राज्यवादी शक्तियों की आपसी प्रतिद्वन्दता के कारण महामारी के प्रति विश्व पूंजीवाद ने महामारी को एक  भूमंडलीय  उपद्रव में बदल दिया ;
  • स्वास्थ्य के प्रति सत्ताधारी वर्ग की अक्षम प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप  प्रत्येक राष्ट्र के भीतर , पूंजीपति वर्ग और उसके राज्य के नियंत्रण की हानि की  प्रव्रति को उजागर किया है;
  • शासक वर्ग और उसके राज्य की राजनैतिक और सामाजिक क्षमता में गिरावट,  एक आश्चर्यजनक  तरीके से वैचारिक पतन के साथ हुई है : सबसे अधिक शक्तिशाली  पूंजीवादी राष्ट्रों के नेता अपनी योग्यता को सही ठहराने के लिए हास्यास्पद झूठ  और अन्धविश्वासी बकवास कर रहे हैं;
  • इस प्रकार कोविद- १९ ने पूंजीवाद के सभी सैद्धांतिक स्तरों – आर्थिक, साम्राज्यवादी,राजनैतिक,  वैचारिक  और सामाजिक (.........) पतनशीलता के प्रभाव से पहले की तुलना में  एक स्पष्ट तरीके से एक साथ लाया है, और सबसे ऊपर, वर्तमान स्वास्थ्य आपदा पूंजीपति वर्ग की अपनी व्यवस्था पर  नियंत्रण  पर बढती हुई हानि (.......)  तथा  मानव समाज  के सम्पूर्ण परिप्रेक्ष  में लगातार गिरावट   को प्रकट करता  है. आत्म विनाश की मौलिक  प्रवृति जो पूंजीवादी पतन के सभी कालखंडों की सामान्य  विशेषता है , ने  पतनशीलता  के काल में  अपने प्रभाव क्षेत्र को बदल दिया है जिसमें  विश्व युद्ध से विश्व अव्यवस्था को अपनाया है जो,  केवल  समाज और मानवता के लिए  पूंजीवादी  खतरे को और  बढाता है.”

यदि, महामारी  के प्रकट होने से  विश्व मेंसर्वहारा का संघर्ष ठहर गया है  तो इसने पूंजीवाद के अराजक चरित्र पर प्रतिबिम्ब को नही  बदला है . महामारी, सर्वहारा क्रांति की आवश्यकता का एक और प्रमाण है. लेकिन यह ऐतिहासिक परिणाम सबसे पहले और हर चीज से पहले मजदूर वर्ग की क्षमता पर निर्भर करता है, जो एकमात्र क्रांतिकारी शक्ति है,  जो अपने बारे में,अपने अस्तित्व की और अपनी क्रांतिकारी क्षमताओं की चेतना को  फिर से खोजतीहै, क्योंकि अकेले सर्वहारा वर्ग ही,  अपने हितों और वर्ग स्वायतता की रक्षा के लिए संघर्ष के इर्द गिर्द संगठित होता है और उसका यह संघर्ष. पूँजी के कानूनी और घातक  जुए को उतार फेकने और एक नये समाज  को जन्म देने की क्षमता रखता है.

इनिगो, ६ मई २०२१.

 

[1] चीन और रूस ने अफ्रीकी और लैटिन अमरीकी देशों को अपनेसाम्राजवादी अंत के लिए टीकों के साथ  बाढ़ के स्थिति  का लाभ उठाया है .

[2] “ अमेजन:  एक नई महामारी का प्रस्थान बिंदु”  फ़्रांस संस्क्रति( १९ अप्रैल २०२१)

[3] अफ्रीका और विशेष रूप सेसे अफ्रीका लिए देखें’

https:// en .internationalism.org/ content/ covid-19-africa-vain.hopes…

[4] https: // en internationalism.org/ content/16997/lessons-Indian- farmers move…