कामरेड किशन को श्रद्धांजलि

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समूचा विश्व जब कोविद १९ नामक दैत्य  से जूझ रहा था, तब हम आई सी सी के साथियों के ऊपर एक वज्रपात हुआ. २० मार्च २०२० को हमारे प्रिय साथी कामरेड किशन ने हमसे अंतिम विदाइ ली. कामरेड किशन के  यूं चले जाने से इंडियन सैक्शन को ही नहीं पूरी आई सी सी की भारी क्षति हुई है.  हमें  हमेशा  ही उनकी कमी खलेगी. कामरेड किशन ने आई सी सी को सुद्रढ़ बनाने में एक महत्वपूर्ण  योग्दान दिया है . वे अपने जीवन की अंतिम साँस तक उच्चतम  भावना के साथ लड़ाकू योद्धा बने रहे.

किशन का जन्म भारत के पश्चिम बंगाल प्रान्त के एक सुदूर गाँव में हुआ था. उन्होंने १९६०के दशक में, विश्वविद्यालय ऐसे समय प्रवेश लिया था, जब कुछ समय पहले ही फ़्रांस में ९० लाख मजदूरों ने  हडताल के  साथ विश्व मंच पर पुन: दस्तक दी थी, इसके पश्चात इटली में गरम ऋतू ,१९७० में पोलेंड के  मजदूरों का संघर्ष, विश्व पटल पर घटित इन घटनाओं का अर्थ था, प्रति क्रांति के युग का अंत. १९६० का दशक, विशेषकर  वियतनाम युद्ध और नस्लवाद के खिलाफ दुनियां भर के  विश्वविद्यालयों में विरोध का दौर था. इन आंदोलनों में भाग लेने वाले युवा क्रांतिकारी परिवर्तन की इच्छा के प्रति बेहद  ईमानदार थे किन्तु जीवन में तात्कालिक परिवर्तन के भ्रम के साथ वे निम्न पूंजीवादी क्षेत्रों में ही संलग्न रहे. हालाँकि, १९६८ से पहले और बाद में, दोनों पूंजीवादी वाम संगठन को किशन जब नौजवानों को एकजुट करने में तो लगे थे, लेकिन उनकी रूचि युवा चेतना को मजदूर वर्ग के प्रति  कुंद करना भर थी. इस वैश्विक  स्थिति में किशन नक्सलवादी  आन्दोलन में शामिल हो गये. १९६३-६५ के दौरान उन्होंने उत्तर बंगाल  के  विश्वविद्यालय से भौतिकी में प्रथम  श्रेणी में मास्टर्स डिग्री प्राप्त की.  किशन अपने स्नातक छात्र जीवन में ही नक्सलवादी आन्दोलन के प्रति आकर्षित युवा पीढी का हिस्सा बन गये.  धीरे- धीरे नक्सलवाद माओवाद का पर्याय  बन गया. एक युवा  छात्र के रूप में  किशन आन्दोलन की इतनी गहराई तक डूबते चले गये कि उन्होंने अपने शोध कार्य  को भी तिलांजली दे दी और आन्दोलन की गतिविधियों में पूरी तरह संलग्न हो गये. आठ साल की कैद के पश्चात उन्हें १९७८ में रिहा किया गया.  इन आठ सालों में जेल में उन्हें इतनी अकथनीय यातनाएं दी जो उन्हें जीवन की अंतिम साँसों तक सालती रहीं. एक छोटी सी काल कोठरी  में रहना, अपर्याप्त और कभी  - कभी  न खाए जाने योग्य भोजन दिए जाने के कारण वह क्षय रोग के शिकार हो गये. फेंफडों का यह सक्रमण  उनके जीवन का अटूट हिस्सा बन गया.  जो आखिर में किशन को साथ ले कर ही गया. जेल जीवन के दौरान किशन ने विशेषतया मार्क्सवाद का गहन अध्ययन किया. जिससे उन्हें अन्य साथियों के साथ मार्क्सवाद पर विचार विमर्श करते समय बड़ी मदद मिली.

किशन उन बहुत कम लोगों में से एक थे ,जो पूंजीवादी की  वामपंथी विचारधारा की दूषित धारा माओवाद में गहराई तक दुबकी लगाने के बावजूद भी इससे अपने को पूरी तरह  अलग कर लेने तथा कम्युनिस्ट वाम की परम्परा से जोड़ कर सर्वहारा वर्ग के लिए अपना जीवन समर्पित करने में सक्षम थे. इस विच्छेद के लिए अपरहार्य रूप से  यह आवश्यक था कि  स्पष्टीकरण के लिए  १९८०,१९९० के दशक में आई सी सी के साथ धैर्य के साथ  विचार विमर्श मे हिस्सेदारी करें. वर्ष १९८९ में भारत में आई सी सी के न्युक्लीयस का गठन स्पष्टीकरण के लिए  एक उत्प्रेरक, गतिवान कदम था. किशन जब आई सी से के संपर्क में आये तब उन्हें विदित हुआ कि कम्युनिष्टों का वास्तविक इतिहास अभी शेष है. जब उन्हें आई. सी. सी. के सैद्धांतिक  विविधता के गहन अध्ययन से अहसास हुआ कि माओवाद एक पूंजीवादी विचारधारा, एक प्रतिक्रांतिकारी धारा के आलावा और कुछ  नहीं, किशन आश्चर्यचकित थे.  “ माओवाद का मजदूर वर्ग के संघर्ष , उसकी चेतना और न उसके क्रांतिकारी संगठन से कोई लेना –देना नहीं. इसका न तो मार्क्सवाद से कोई सरोकार नहीं.यह न कोई आंतरिक प्रवृति है और न कोई सर्वहारा की विचारधारा में कोई  विकास. इसके विपरीत,माओवाद का मार्क्सवाद से कोई लेनादेना नहीं बल्कि इसको समग्र रूप में  झुठलाना भर है. इसका एकमात्र कार्य क्रांतिकारी सिद्धांत को दफन करना तथा सर्वहारा वर्ग की चेतना को भ्रमित कर इसको इन्तहा दर्जे की मूर्खता और संकीर्णतावादी राष्ट्रवादी विचारवादी में बदलना है. सिद्धान्ततमाओवाद पूँजीवाद के  क्रांतिविरोधी पतनशीलता के  साम्राज्यवादी युद्धों के दौर में एक घ्रणित सड़े गले  पूंजीवादी विचार के अलावा  और कुछ नहीं. [1] माओवाद की इस गहन पड़ताल ने कामरेड  किशन के ऊपर गहरा  प्रभाव  डाला. अपने विगत को आलोचनात्मक राजननैतिक  द्रष्टिकोंण से विवेचना करने में सक्षम कामरेड  किशन को अब एक  वास्तविक क्रांतिकारी संगठन का लडाका  बनना आवश्यक था 

जबकम्युनिष्ट इंटरनेशनल पहले से पतनशील हो चुका था,और विशेषरूप से रूस और जर्मनी में क्रांतियों की  अति महत्वपूर्ण क्रांतिकारी संघर्षों की लहर पूरी तरह पराजित हो चुकी थी,तब १९२५ में भारत में  कम्युनिष्ट पार्टी का का गठन हुआ था . कम्युनिस्ट पार्टी का लक्ष्य भी अन्य तमाम राष्ट्र्वादी आंदोलनों  से जुडा उपनेशविरोधी, ब्रिटिश विरोधी आन्दोलन ही था. भाकपा पर राष्ट्रवाद और  देशभक्ति  पर गहरा  प्रभाव था. भारत का मजदूर, वामपंथी कम्युनिज्म की परम्परा और उसकी निरन्तरता की कमी से ग्रस्त था. यह आई. सी.सी. के लिए भारत में कम्युनिस्ट वाम की ऐतिहासिक विरासत को बेहतर बनाने के दायित्व को रेखांकित करता है.

कामरेड  किशन अपने गहन अध्ययन और निरंतर चर्चा का मार्ग पर चले हुए भारत में आई. सी. सी. के योद्धा बन गये. आई. सी. सी. के प्रति  निष्ठा और विश्व सर्वहाराके संघर्षों  ने उन्हें एक सच्चे अंतर्राष्ट्रीयतावादी  सर्वहारा  रूप में चिन्हित  किया. उन्होंने सदैव ही आई. सी. सी. के सिद्धातों  में  गहरी निष्ठां  के साथ वचाव किया. वे अपने  निरंतर योगदान के माध्यम से आई. सी. सी.  की अंतर्राष्ट्रीय व  भारत के सैक्शन स्तर की बहसों में बड़ी द्रढ़ता के साथ भाग लेते थे . का. किशन   ने आई. सी. सी. के जीवन में  कई स्तरों पर महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने उन बुकशापों की खोज में देश भर में कई यात्रायें की जहाँ आई. सी. सी के साहित्य को बेचा जा सकता हो. उन्होंने जब भी जहाँ भी संभव हो  सका कितने ही चर्चा केन्द्रों व् सार्वजनिक सभाओं में भाग लिया. आई . सी. सी. के साहित्य की बिकवाली में  किशन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने विभिन्न आई. सी. सी की अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ- साथ क्षेत्रीय  सम्मेलनों में भी  सक्रिय भूमिका निभाई.किशन के बहुमूल्य और सुविचारित योगदानों ने राजनैतिक स्पष्टीकरण की प्रक्रिया में जबर्दस्त इजाफा किया. हमारे संगठन पर होने वाले सभी हमलों और बदनामियों से मजबूती के साथ बचाव करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान  रहा है .

कामरेड किशन में जीवन में आने वाले अनेकानेक उतार चढ़ावों  पर पार पाने की असीम क्षमता थी. आई.सी.सी. की राजनीति और उनके आशावादी रवैये ने उन्हें कठिन परस्थितियों में भी लम्बे समय तक खड़े रहने में सहायता की. श्रद्धांजलि के इस छोटे से आलेख में,  मजदूर वर्ग की मुक्ति के लिए किये उनके राजनैतिक संघर्ष का मूल्यांकन करना अत्यंत ही कठिन है. हमें उनके विषय में यह बताना नहीं भूलना चाहिए कि वे जमीन से जुड़े गजब के मेहमाननवाज थे. विदेशों अथवा देश के विभिन्न भागों से आये              आई.सी.सी. के  साथियों ने उनके उदार एवं  प्रेमपूर्वक आथित्य का अनुभव किया. हम उन्हें  क्रन्तिकारी  सलाम अर्पित करते हुए उनके परिवार के प्रति एकजुटता व्यक्त करते हैं. आई.सी.सी . उनकी  बेटी और उनकी अर्धांगिनी के साथ अपनी पूरी सहानुभूति और एकजुटता के साथ खडी है.

आई. सी. सी.,  अक्टूबर २०२०.


[1] हमारी वेबसाइट पर 'माओवाद, पतनशील पूंजीवाद की राक्षसी संतान' लेख देखें

https://en.internationalism.org/ir/094_china_part3.html#_ftnref4