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न तो इजराइल और न ही फिलिस्तीन!   मजदूर की कोई मात्रभूमि नहीं होती!! 

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  • कम्युनिस्ट इंटरनेशनलिस्ट – 2020s का दशक
  • कम्युनिस्ट इंटरनेशनलिस्ट – 2023

शनिवार से, इजराइल और गाजा निवासियों के ऊपर हुई आग और स्टील की वारिश की बाढ़ आ गई है. एक ओर, हमास, दूसरी तरफ इजराइली सेना के बीच फंसे नागरिकों के ऊपर बमबारी की जा रही है, गोलिया से भूना जा रहा है, जिसमें हजारों लोग अपनी जान गँवा चुके हैं. तमाम लोग बंधक बनाये गये हैं सो अलग.

दुनियां भर का पूंजीपति वर्ग, लोगों के सामने सिर्फ अपना-अपना पक्ष सुनाने, इजराइली उत्पीडन के खिलाफ, फिलस्तीनी प्रतिरोध तथा फिलिस्तीनी आतंकवाद पर इजराइली प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए गुहार लगा रहा है. इनमें से प्रत्येक, युद्ध को उचित ठहराने के लिए दूसरे को बर्वर बता कर उसकी निंदा करता है. इजराइली राज्य दशकों से फिलिस्तीनी लोगों पर नाकेबंदी, उत्पीडन, चौकियों से घेराबन्दी और अपमान के साथ अत्याचार कर रहा है, इसलिए बदला लेना वैध्य होगा. फिलिस्तीनी सन्गठन भी चाकू और बमबारी से निदोष लोगों की हत्या कर रहे हैं. प्रत्येक पक्ष एक दूसरे का खून बहाने का आव्हान कर रहा है. यह घातक तर्क ही युद्ध को उचित ठहराने का तर्क है. यह हमारे शोषक और उनके राज्य हैं जो हमेशा अपने हितों के लिए अवैध्य, निर्दयी युद्ध लड़ते हैं, और हम शोषित वर्ग, हमेशा अपनी जान देकर इसकी कीमत चुकाते हैं.

इसमें हम सर्वहाराओं के लिए चुनने का कोई पक्ष नहीं, हमारी कोई मात्रभूमि नहीं है, रक्षा के लिए हमारा कोई राष्ट्र नहीं है! सीमा के दोनों ओर हम वर्ग भाई हैं! हमारा न फिलिस्तीन न इजराइल! 

मध्य पूर्व में युद्ध का कोई अंत नहीं

बीसवीं सदी युद्धों की सदी थी, मानव इतिहास में सबसे क्रूर युद्ध इसी सदी में लडे गये, लेकिन उनमें से किसी ने भी मजदूरों के हितों की पूर्ती नहीं की. उतरार्ध, को हमेशा अपने शोषकों के हितों के लिए “ पित्रभूमि,” “सभ्यता”, “लोकतंत्र” यहाँ तक कि “समाजवादी पित्रभूमि “ (कुछ के रूप में)  की रक्षा के नाम पर मारे जाने को शहीद हो जाना कहा जाता था. (स्तालिन और गुलाके सोवियत संघ को ऐसे ही प्रस्तुत किया गया.)

आज मध्य पूर्व में एक नया युद्ध छिड़ गया है. दोनों तरफ से, सत्तारूढ़ गुट,चाहे वे यहूदी हों  अथवा इजराइली, शोषितों से “मात्रभूमि की रक्षा” करने का आव्हान कर रहे हैं. जहाँ, इजराइल में यहूदी श्रमिकों का यहूदी पूंजीपतियों द्वारा शोषण किया जाता है, वहीँ फिलिस्तीनी मजदूरों का यहूदी पूंजीपतियों या अरब पूंजीपतियों द्वारा लूटा जाता है .  (और अक्सर यहूदीपूंजीपतियों  की तुलना में बहुत अधिक क्रूरता से, फिलिस्तीनी कम्पनियों में, श्रम क़ानून अभी भी पूर्व ओटोमन साम्राज्य के ही लागू हैं)

 यहूदी मजदूरों ने 1948 के बाद पांच युद्धों में पूंजीपति वर्ग के युद्ध के पागलपन की भारी कीमत चुकाई है. जैसे ही वे विश्व युद्ध से तबाह यूरोप के याताना ग्रहों और यहूदी बस्तियों से बाहर आये, उन लोगों के दादा-दादी जो आज त्साह्ल (इजराइल के रक्षा बल) की बर्दी पहन कर इजराइल और अर्ब देशों की बीच युद्ध में शामिल हो गये है, फिर से उनके माता- पिता ने उनकी कीमत 67,,73, और 82 के युद्धों में खून से चुकाई. ये सैनिक भयानक जानवर नहीं हैं जिनका एकमात्र विचार फिलिस्तीनी बच्चों को मारना है. वे युवा सिपाही हैं, जिनमें अधिकतर मजदूरों की ही संतानें हैं, जो भय या घ्रणा से मर रहे हैं, जिन्हें पुलिस के रूप में कार्य करने के लिए मजबूर किया जाता है और जिनके सिर अरबों  की “बर्बरता” के बारे में प्रचार से भरे हुए हैं.      

फिलिस्तीनी मजदूर पहले से ही भयानक युद्ध की भयानक कीमत चुका चुके हैं, 1948 में  अपने नेताओं द्वारा छेड़े गये युद्ध के कारण उन्हें अपने घरों से निकाल दिया गया था,  नतीजतन, उन्हें अपना अधिकाँश जीवन यातना ग्रहों में बिताया है, जहाँ उन्हें किशोरों के रूप में गफा फतह, पीएएलपी या हमास मिलिशिया में भर्ती किया गया था. फिलिस्तेनियों का सबसे बड़ा नरसंहार इजराइल की सेनाओं द्वारा नहीं किया गया था, बल्कि उन देशों द्वारा किया गया था जहाँ वे तैनात थे, जैसे कि जार्डन लेबनान: सितम्बर 1970 (ब्लैक सितम्बर) में “लिटिल किंग” हुसैन ने उन्हें सामोहिक रूप से संहार कर दिया था. उनकी उस स्थिति में ही सामूहिक हत्या की गई थी जब उन्होंने जान बचाने के लिए इजराइल में शरण ली थी, सितम्बर 1982 में, अरब मिलिशिया ( माना जाता है कि ईसाई और इजराइल से संबद्ध) ने बैरुत में सबरा और शतील शिविरों में उनका नरसंहार किया. 

 राष्ट्रवाद और धर्म, शोषितों के लिए जहर

आज, “ फिलिस्तीनी मात्रभूमि “के नाम पर, अरब मजदूरों को एक बार फिर इजरायलियों के खिलाफ लामबंद किया जा रहा है, जिनमें अधिकांश इजराइली मजदूर हैं, जैसा की “ वादा की भूमि की “ रक्षा के लिए बाद वाले को मारने के लिए कहा जा रहा है. 

राष्ट्रवादी प्रचार, दोनों ओर से घ्रणित रूप से बह रहा है, जो दिमाग को सुन्न करने वाला प्रचार मनुष्यों को क्रूर जानवरों में बदलने के लिए बनाया गया है, इजराइली और अरब पूंजीपति आधी सदी से भी अधिक समय से इसे भड़का रहे हैं. इजराइली और अरब श्रमिकों  से लगातार कहा जा रहा है कि उन्हें पूर्वजों की भूमि की रक्षा करनी होगी. पूर्व के लिए, समाज के व्यवस्थित सैन्यीकरण के लिए उन्हें “अच्छे सनिकों “ में बदलने के लिए घेरने का मनोविकार विकसित किया गया है. उत्तरार्ध के लिए, घर खोजने के लिए इजराइल के साथ युद्ध करने की इच्छा अंतरनिहित थी. ऐसा करने के लिए, अरब देशों के नेताओं, जहां वे शरणार्थी थे, ने उन्हें दशकों तक यातना शिविरों में असहनीय जीवन स्थितियों में रखा.      

राष्ट्रवाद, पूंजीपति वर्ग द्वारा आविष्कृत सबसे बुरी और घ्रणित विचारधाराओं में से एक है. यह वह विचारधरा है जो इसे शोषकों और शोषितों के बीच के विरोध छिपाने, उन सभी को एक झंडे के नीचे एकजुट करने की अनुमति देती है, जिसके लिए शोषितों को शाशक वर्ग के हितों की सेवा और विशेषाधिकारों की रक्षा में होम दिया जायेगा.

सबसे बढ़ कर, इस युद्ध में धार्मिक प्रचार का जहर मिलाया गया है, जो सबसे अधिक विक्षिप्ति और कट्टरता का उन्माद पैदा करता है. यह यहूदियों को अपना खून से सुलेमान के मन्दिर की दीवार रोती हुई दीवार की रक्षा करने के लिए कहा जाता है. मुसलमानों को उमर की मस्जिद और इस्लाम के पवित्र स्थानों के लिए अपनी जान देने को कहा जाता है. आज इजराइल और फिलस्तीन में जो कुछ हो रहा है वह स्पष्ट रूप से यह पुष्टि करता है कि धर्म” लोगों के लिए अफीम है,” जैसा कि 19 वीं सदी के क्रांतिकारियों ने कहा था. धर्म का उद्द्येश्य शोषितों पीड़ितों को सांत्वना है, जिनके लिए जीवन नरक है, उनसे कहा जाता है कि उन्हें अपनी म्रत्यु के बाद खुशियाँ मिलेंगी, बशर्ते वे जानते हों कि उनका उद्धार कैसे अर्जित किया जायेगा. और मुक्ति का आदान- प्रदान बलिदान, समर्पण यहाँ तक कि” “पवित्र युद्ध” की सेवा में अपना जीवन अर्पित करने के लिए कहा जाता है.      

वास्तविकता यह है कि, 21वीं सदी के आरम्भ में भी, पुरातनता और मध्य युग से जुडी विचारधाराएँ और अंधविश्वास अभी भी मनुष्यों को अपना जीवन का बलिदान देने के लिए व्यापक रूप से प्रयोग किये जाते हैं, यह उस बर्बरता की स्थिति के बारे में बतलाता है जिसमें मध्य पूर्व भी शामिल है. दुनियां के कई अन्य भाग इस अंधविस्वास में डूबे हुए हैं. 

युद्ध के लिए महान शक्तियां जिम्मेदार हैं.

शोषित लोग आज हजारों की तादात में अपनी जान गंवा रहे हैं. यह यूरोप का ही पूंजीपति वर्ग था, जिसमें विशेष रूप से, ब्रिटिश पूंजीपति वर्ग ने 1917 की अपनी “ बालफोर घोषणा”  के साथ, विभाजित करने और जीतने के लिए, फिलिस्तीन में एक यहूदी घर के निर्माण की अनुमति दी, इस प्रकार ज़योनीद्वाद के अंधराष्ट्रवादी यूटोपिया को बढ़ावा दिया, ये वही पूंजीपति थे जिन्होंने विश्व युद्ध के बाद, जिसे उन्होंने हाल ही में जीता था, शिविरों को छोड़ने अथवा अपने मूल क्षेत्र से दूर भटकने के बाद हजारों मध्य यूरोपीय यहूदियों को फिलिस्तीन ले जाने की व्यवस्था की थी .इसका मतलब ये था कि उन्हें घर ले जाने की आवश्यकता नहीं थी.      

यह वही पूंजीपति वर्ग था, जो पहले ब्रिटिश और फ्रांसीसी, फिर अमेरिकन पूंजीपति वर्ग, जिन्होंने शीत युद्ध के दौरान इस क्षेत्र में पश्चिमी गुट की भूमिका देने के लिए इजराइल राज्य को हथियारों से लैस किया था, जबकि सोवित संघ, अपनी ओर से, अपने अरब सहयोगियों को यथासंभव सशस्त्र किया. इन महान “प्रायोजकों “के बिना 1956, 67, 73, और 82 के युद्ध नहीं हो सकते थे.

आज, लेबनान, ईरान और संभवतया रूस के पूंजीपति हमास को हथियार दे रहे हैं और उसे लड़ने के लिए आगे धकिया रहे हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका ने हाल ही में भूमध्य सागर में अपना सबसे बड़ा विमान वाहक पोत भेजा है और इजराइल को नये हथियारों की आपूर्ति की घोषणा की है. यथार्थ में, इस युद्ध और इन नर संहारों में सभी प्रमुख शक्तियाँ प्रत्यक्ष रूप से भाग ले रही हैं.          

इस नये युद्ध से पूरे मध्य पूर्व में अराजकता फैलने का खतरा बढ़ गया है. दुनियां के इस कोने को शोक में डुबाने वाला यह अनगिनत खूनी टकराव नहीं है. हत्याओं के विशाल पैमाने से पता चलता है कि बर्बरता एक नये स्तर पर पहुंच गयी है: एक उतसव में नृत्य कर रहे युवाओं को मशीनगनों से उड़ा दिया गया, महिलाओं और बच्चों को सडक पर बेरहमी से कुचल डाला गया जिसका लक्ष्य, पूंजीवाद की इच्छा को पूरा करने के अलावा कोई अन्य उद्दयेश नहीं था. अंधे प्रतिशोध के लिए, पूरी आबादी को खत्म करने लिए बमों का जाल बिछाया गया, गाज़ा में दो मिलियन लोगों को पानी, गैस, भोजन सब कुछ से वंचित कर दिया गया. इन सभी अत्याचारों, इन सभी अपराधों के लिए कोई सच्चा तर्क नहीं है! दोनों पक्ष अत्यंत भयावह और अतार्किक जानलेवा रोष में डूबे हुए हैं. 

लेकिन, इससे भी अधिक गम्भीर बात यह है: यह भानुमती का पिटारा फिर कभी बंद नहीं होगा. इराक,अफगानिस्तान, सीरिया और लीबिया की तरह, कोई पीछे नहीं हटेगा, कोई  “शान्ति  की ओर वापसी” नहीं होगी. पूँजीवाद मानवता के बड़े हिस्से को युद्ध, म्रत्यु और समाज के विघटन में घसीट रहा है. यूक्रेन मे युद्ध लगभग दो वर्षों से चल रहा है और अंतहीन नरसंहार में फंसा हुआ है. नागोर्नो-काराबाख में भी नरसंहार चल रहा है और पूर्वी यूगोस्लाविया के राष्ट्रों के बीच पहले से ही एक नये युद्ध का खतरा मडरा रहा है.

पूंजीवाद युद्ध है.

युद्ध को खत्म करने के लिए पूँजीवाद को उखाड़ फेंकना होगा.

सभी देशों के मजदूरों को किसी न किसी पूंजीवादी खेमे का पक्ष लेने से इंकार कर देना चाहिए. विशेष रूप से, उन्हें उन वामपंथी और अति वामपंथी पार्टियों की बयानबाजी से मूर्ख बनने से इंकार कर देना चाहिए जो मजदूर वर्ग का होने का दावा करते हैं और जो श्रमिकों को उनसे अपने अधिकार की तलाश में एक “मात्रभूमि :फिलिस्तीनी जनता के साथ एकजुटता दिखाने के लिए कहती हैं. फिलिस्तीनी मात्रभूमि, कभी भी शोषक वर्ग की सेवा में, पुलिस और जेलों के साथ इसी जनता पर अत्याचर करने वाले एक बुर्जुआ राज्य के अलावा और कुछ नहीं होगा. सबसे उन्नत पूंजीवादी दशों के मजदूरों की एकजुटता, “फिलिस्तीनों” के पास नहीं जाती, जैसे कि वह “इजराइलियों” के पास नहीं जाती है, जिनके बीच शोषक और शोषित हैं. यह इजराइल और फिलिस्तीनी के श्रमिकों औए बेरोजगारों को जाता है (जो, इसके अलावा, पहले से ही अपने शोषकों के खिलाफ संघर्ष नेतृत्व कर चुके हैं, भले ही उनका ब्रेन- व्वास किया गया हो), ठीक उसी तरह जैसे यह दुनियां के अन्य सभी देशों के श्रमिकों को जाता है. वे, जो सबसे अच्छी एकजुटता पेश कर सकते हैं, वह निश्चित रूप से उनके राष्ट्रवादी भ्रमों को प्रोत्साहित करना नहीं है.        

इस एकजुटता का अर्थ है, सबसे पहले, सभी युद्धों के लिए जिम्मेदार पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ अपनी लड़ाई को विकसित करना,अपने स्वयं के पूंजीपति वर्ग के खिलाफ भी. श्रमिक वर्ग को वैश्विक स्तर पर पूँजीवाद को उखाड़ फेंक कर शांति हासिल करनी होगी, और आज इसका अर्थ है, एक वर्ग के इलाके में अपने संघर्षों को एक दुर्जेय संकट में एक प्रणाली द्वारा उस पर लगाये जा रहे कठोर आर्थिक हमलों के खिलाफ, अपने संघर्षों को विकसित करना होगा.

राष्ट्रवाद के खिलाफ, उन युद्धों के खिलाफ जिनमें आपके तुम्हें घसीटना चाहते हैं:

सभी देशों के मजदूरों एक हो जाओ! 

आईसीसी  9  अक्टूबर 2023

बुक चंक्रमण लिंक के लिए न तो इजराइल और न ही फिलिस्तीन!   मजदूर की कोई मात्रभूमि नहीं होती!! 

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