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वे सभी पार्टियॉं और संगठन पूँजी के ऐजेन्ट हैं, जो आलोचनात्मक अथवा सशर्त रूप से ही सही, कुछ खास बुर्जुआ राज्यों और गुटों का कुछ अन्यों के खिलाफ बचाव करते हैं (बेशक 'समाजवाद', 'जनवाद', 'फासीवाद विरोध', 'राष्ट्रीय आजादी', 'छोटी बुराई', अथवा 'संयुक्त मोर्चे' के नाम पर); तथा जो बुर्जुआ चुनावी तिकड़मों, यूनियनों की मज़दूर विरोधी गतिविधियों और सेल्फ मेनेजमेन्ट के छलावों में किसी प्रकार का हिस्सा लेते हैं। ''समाजवादी'' अथवा ''कम्युनिस्ट पार्टियों'' की खासकर यही स्थिति है। पहलों ने, पहले विश्वयुद्ध के दौरान राष्ट्रीय प्रतिरक्षा में हिस्सा लेकर समस्त सर्वहारा चरित्र पूर्ण रूप से खो दिया, युद्ध के बाद उन्होंने अपने आपको क्रांतिकारी मज़दूरों के पक्के जल्लादों के रूप में प्रकट किया। अन्तरराष्ट्रीयतावाद, जो समाजावादियों से उनके अलग होने का आधार रहा था, को त्यागने के बाद दूसरे (कम्युनिस्ट) भी पूँजी के कैम्प में चले गये। ''एक देश में समाजवाद'' के सिद्धांत को स्वीकार करके, जो बुर्जुआ कैम्प में उनके निर्णयक गमन का सूचक था, और िफर दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अपने राष्ट्रीय पूँजीपतियों की पुन: सशस्त्र होने की कोशिशों, ''पापुलर मोर्चों'', ''प्रतिरोध'' और युद्ध के बाद ''राष्ट्रीय पुन:निर्माण'' में हिस्सा लेकर, कम्युनिस्ट पार्टियों ने अपने आपको राष्ट्रीय पूँजी के वफादार नौकरों और प्रतिक्रांति के शुद्धतम अवतारों के रूप में प्रकट किया।
तमम माओवादी, ट्राटस्कीवादी, अथवा आधिकारिक अराजकतावादी धाराएँ जो या तो सीधे इन पार्टियों से आती हैं या उनकी अनेक पोजीशनों (तथाकथित "समाजवादी" देशों, ''फासीवाद विरोधी'' गठजोड़ो का पक्ष) का बचाव करती हैं, वे भी उसी कैम्प से सम्बन्ध रखती है जिससे ये पार्टियाँ : यानी पूँजी का कैम्प। उनके असर का कम होना या उन द्वारा गरमा-गरम भाषा के प्रयोग के तथ्य उनके प्रोग्राम के पूँजीवादी चरित्र को नहीं बदलते, लेकिन वे उन्हें वाम की बड़ी पार्टियों के दलालों और स्थन्नापंनों के रूप में काम करने की इजाजत जरूर देते है।