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14. विश्‍व सर्वहारा की पहली महान क्रांतिकारी लहर

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पहले विश्‍व युद्ध ने पूँजीवाद के पतनशीलता की अवस्‍था में प्रवेश को सूचित करने के साथ ही यह भी दिखा दिया कि सर्वहारा इंकलाब के लिए वस्‍तुगत हालात परिपक्‍व हो चुके हैं। युद्ध की प्रतिक्रिया में उभरी जो क्रांतिकारी लहर सारे रूस और यूरोपभर में गरजती रही, जिसने दोनों अमेरिका में अपनी छाप छोड़ी और चीन में प्रतिध्‍वनि पाई, वह इस प्रकार विश्‍व सर्वहारा द्वारा पूँजीवाद के विनाश का अपना ऐतिहासिक कार्यभार पूरा करने का पहला प्रयास बनी। 1917 और 1923 के बीच अपने संघर्ष के शिखर पर, सर्वहारा ने रूस में सत्ता हासिल की, जर्मनी में जनविद्रोह किये और इटली, हंगरी तथा आस्‍ट्रीया को उनकी नीवों तक हिला दिया। क्रांतिकारी लहर ने अपने आपको, बेशक थोड़ी कम मजबूती से, स्‍पेन, इंगलैंड, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका में भी कटु संघर्षों में व्‍यक्‍त किया। अर्न्‍तराष्‍ट्रीय स्‍तर पर मज़दूर  वर्ग की हारों के एक लम्‍बे सिलसिले के बाद, 1927 में चीन में शंघाई तथा कैंटन के मज़दूर  विद्रोह के कुचले जाने ने, अंत में क्रांतिकारी लहर की दुखद असफलता को सूचित किया। इसलिए रूस के अक्‍तूबर 1917 के इंकलाब को वर्ग के इस विशाल आंदोलन की एक अति महत्‍वपूर्ण अभिव्‍य‍‍‍क्ति के रूप में ही समझा जा सकता है, न कि ऐसे ''बुर्जुआ'', ''राज्‍य पूँजीवादी'', ''दोहरे'' अथवा ''स्थायी इंकलाब'' के रूप में जो सर्वहारा को किसी तरह से उन  ''बुर्जुआ जनवादी'' कार्यभारों को पूरा करने को बाध्‍य करता है जिन्‍हें पूरा करने में खुद पूँजीपति वरग असक्षम था।

1919 में तीसरे इंटरनेशनल (कम्‍युनिस्‍ट इंटरनेशनल) की रचना, जिसने दूसरे इंटरनेशनल की उन पार्टियों से अपने को अलग कर लिया साम्राज्यवादी जंग में जिनकी भागीदारी ने उनके बुर्जुआ कैम्‍प में गमन को सूचित किया था, भी समान रूप से इस क्रांतिकारी लहर का हिस्‍सा थी। दूसरे इंटरनेशनल से टूटे क्रांतिकारी वाम का अभिन्‍न अंग, बोलशेविक पार्टी ने ''साम्राज्यवादी जंग को गृहयुद्ध में बदल दो'',  ''पूँजीवादी राज्य का नाश करो'', "सारी सत्ता सोवियतों को दो" के नारों में व्‍यक्‍त स्‍पष्‍ट राजनीतिक पोजीशनें लेकर, और तीसरे इंटरनेशनल की रचना में निर्णायक भाग लेकर क्रांतिकारी प्रक्रिया में बुनियादी योगदान दिया, और वह उस वक्‍त विश्‍व सर्वहारा का वास्‍तविक अगुवा दस्‍ता थी।

यद्यपि रूस में इंकलाब का और तीसरे इंटरनेशनल, दोनों का अध:पतन मौलिक रूप से दूसरे देशों में क्रांतिकारी प्रयास के कुचले जाने तथा क्रांतिकारी लहर के आम समापन का परिणाम था, ‍िफ‍र भी अध:पतन की इस प्रक्रिया तथा सर्वहारा की अर्न्‍तराष्‍ट्रीय हारों में बोलशेविक पार्टी द्वारा अदा रोल को समझना भी उतना ही जरूरी है, क्‍योंकि बाकी पार्टियों की कमजोरी के कारण वह तीसरे इन्‍टरनेशनल का मार्गदर्शक आलोक थी। उदाहरण के लिए, क्रोंसडेट विद्रोह को कुचलने ‍‍तथा तीसरे इन्‍टरनेशनल के वाम के विरोध के बावजूद ''यूनियनों को जीतने'', ''क्रांतिकारी संसदवाद'' और ''संयुक्‍त मोर्चें'' की नीतियों की अपनी वकालत के कारण, क्रांतिकारी लहर को खत्‍म करने में बोलशेविकों का प्रभाव और जिम्‍मेदारी भी उस लहर के शुरुआती विकास में उनके योगदान से कम नहीं।

स्‍वयं रूस में प्रतिक्रांति न सिर्फ 'बाहर' से ब‍‍‍ल्‍कि 'अन्‍दर' से और खासकर उन राजनैतिक ढ़ॉंचों के जरिये आई जिन्‍हें बोलशेविक पार्टी ने स्‍थापित किया था और जिनके साथ वह घनिष्‍ठ रूप से जुड़ गयी थी। अक्‍तूबर 1917 में रूस में सर्वहारा की, तथा एक नए ऐतिहासिक दौर के समक्ष समान्‍यत: मज़दूर आंदोलन की अपरिपक्‍वता के मद्देनज़र जो स्‍वभाविक गलतियॉं थी वे तब से प्रतिक्रांति के लिए एक आड़, एक वैचारिक राजनीतिक सफाई बन गई, और उन्‍होंने उसमें एक महत्‍वपूर्ण कारक का काम किया। फिर भी रूस में युद्धोत्तर क्रांतिकारी लहर तथा क्रांति के पतन, तीसरे इंटरनेशनल तथा बोलशेविक पार्टी के अध:पतन और एक समय बाद उस द्वारा अदा प्रतिक्रांतिकारी रोल, इन सब को तभी समझा जा सकता है अगर इस लहर को तथा तीसरे इन्‍टरनेशनल को, रूस में उनकी अभि‍व्‍य‍‍क्ति समेत, सर्वहारा आन्‍दोलन की सच्‍ची अभिव्‍य‍‍‍क्तियाँ माना जाए। दूसरी हर व्‍याख्‍या सिर्फ उलझन की ओर ही ले जा सकती है और इन उलझावों की रक्षा करती धाराओं को वास्‍तव में अपने क्रांतिकारी कार्यभार पूरे करने से रोकेगी।

वर्ग के इन तजरूबों का अगर कोई 'भौतिक' लाभ नहीं भी बचा, उनके चरित्र की सिर्फ इस समझदारी से शुरू करके ही उनसे वास्‍तविक और महत्‍वपूर्ण सैद्धांतिक फायदे उठाये जा सकते हैं। खासकर, मज़दूर वर्ग द्वारा (1871 के पेरिस कम्‍यून में प्रतिबिम्बित क्षणिक और निर्भीक प्रयास और बाबेरिया तथा हंगरी के 1919 के निष्फल अनुभवों के सिवा) राजनैतिक ताकत छीनने के एकमात्र ऐतिहासिक उदाहरण के रूप में, अक्‍तूबर 1917 की क्रांति ने क्रांतिकारी संघर्ष की दो अति महत्‍वपूर्ण समस्‍याओं - क्रांति की विषयवस्‍तु और क्रांतिकारियों के संगठन की प्रकृति - को समझने के लिए कई सारे बेशकीमती सबक छोड़े हैं।

 

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