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भारत - पाकिस्तान में टकराव : पूंजीवाद का मतलब - युद्ध और अराजकता !     

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 कश्मीर में कुछ हफ्ते पहले, गत 7 मई को हुए एक हमले में 28 लोग मारे गये , जिसके जवाब में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी क्षेत्र में प्रारंभिक हमला किया, जाहिर तौरपर, जिसका लक्ष्य हमले को अंजाम देने वाले आरोपी संगठनों के ठिकानों को नष्ट करना था. आगामी तीन दिनों में भारत और पाकिस्तान के बीच जवाबी हमलों और बमबारी की नई लहरों का सिलसिला देखा गया` जो दशकों में दोनों देशों के बीच तीव्र टकराव को दर्शाता है. जिसके परिणाम स्वरुप विश्व की एक बड़ी आबादी में पीड़ा के साथ खलबली मच गई. पहले ही युक्रेन में तबाही ( जिसमे में लगभग दस लाख सैनिक मारे गये और घायल हुए ) , गाज़ा में भयानक नरसंहार और सूडान में 9 मिलियन से अधिक विस्थापित, यमन, कांगो, सीरिया आदि में अनगिनत संघर्ष, जिनमें अगला संघर्ष पिछले से अधिक भयावह और बर्बर था . यह नया विस्फोट, युद्ध और नरसंहार की दुनियां में एक और अध्याय जुड़ गया. 

वर्तमान सैनिक टकराव और भी अधिक विनाशकारी है क्योंकि इसमें दो अति आबादी वाले , अति सैन्यीकृत राष्ट्र ( भारत में 1.2 मिलियन सैनिक और पाकिस्तान में 500,000 सैनिक ) शामिल हैं , और इन दोनों के पास परमाणु हथियारों सहित घातक शस्त्रागार हैं . यह टकराव एक ऐसे क्षेत्र में जन्म ले रहा है जो रणनीतिक तौर पर नितांत महत्वपूर्ण है, और जहाँ संयुक्त राष्ट्र अमेरिका अपने मुख्य प्रतिद्वन्दी चीन के “ पंख कतरने” की कोशिश कर रहा है. लेकिन इस संघर्ष में निहित “ विस्फोटक आवेश “ से भी अधिक खतरनाक वह सन्दर्भ है जिसमे साम्राज्यवादी अराजकता में तेजी, युद्धोन्माद और तर्कहीनता का उदय,और हर व्यक्ति अपने लिए “ जैसी घातकी प्रवृत्तियो में तेजी से वृद्धि हो रही है . 

हर आदमी अपने लिए, की बढती प्रवृत्ति से टकराव में विस्फोटक रूप से घनीभूत 

भारत और पकिस्तान के बीच टकरावों का लम्बा इतिहास है जो ब्रिटिश भारत के विघटन से जुडा है, जब दोनों राज्य एक खूनी संघर्ष में पैदा हुए थे.( 1947-48 का युद्ध जिसमे लाखों लोग विस्थापित हुए और एक मिलियन लोग मारे गये). तभी से झड़पों और युद्धों का सिलसिला अनवरत जारी है: 1965 में जब पाकिस्तान का भारत से कश्मीर की आज़ादी के लिए युद्ध ,1971 में भारत का पूर्वी पाकिस्तान ( अब बांगला देश ) की आजादी के लिए दबाव, 1999 में कारगिल युद्ध, 2001 में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी समूह द्वारा भारतीय संसद पर हमला, आदि इन टकरावों की एक लम्बी श्रंखला है . 

शुरूआत में टकराव, शीतयुद्ध के दौर में विरोधी साम्राज्यवादी गुटों ,पश्चिमी गुटऔर सोवित यूनियन के प्रभुत्व वाले गुट द्वारा लगाये गये लौह अनुशासन के ढांचे के भीतर हुआ. हालाँकि, 1990 के दशक से , हमने इस गुट के अनुशासन को टूटते हुए देखा है , जिसमें प्रत्येक राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग दूसरे राष्ट्रीय पूंजीपतियों के साथ अपने संघर्षों के बूते हल कर रहा है, और तेजी से खूनी और तर्कहीन और सम्भावित रूप से खतरनाक संघर्षों का सहारा ले रहा है. यह भारत और पाकिस्तान के बीच वर्तमान संघर्ष के बारे में विशेष रूप से सच है: 

-1990 के दशक के शुरूआती काल से ही भारत और पाकिस्तान अपने परमाणु शस्त्रागार का विकास कर रहे हैं, तथा अब दोनों देशों के पास लगभग 170 परमाणु हथियार हैं।   

- 21 वीं सदी में सांप्रदायिक और धार्मिक तनाव बढ़ गये हैं. कट्टर पंथी पाकिस्तानी इस्लामिक समूहों द्वारा भारतीय नागरिकों और सैनिकों के खिलाफ किये गये नरसंहारों में वृद्धि हुई है. (भारत में 2001, कश्मीर में 2019 और 2025 ). मोदी की राष्ट्रवादी और लोकलुभावनवादी भारत सरकार ने कश्मीर की संवैधानिक स्वायत्तता को रद्द कर दिया और इसे केंद्र सरकार के सीधे अधिकार में रख दिया. इसके परिणाम स्वरुप कश्मीरियों का भयंकर दमन हुआ और भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर भारी दबाव पड़ा है .  

- हाल की झड़पों में, पिछले संघर्षों के विपरीत, जो मुख्य रूप से कश्मीर के विवादित क्षेत्र तक ही सीमित थे , भारत की जवाबी कारवाही ने पाकिस्तान के मध्य में तीन हवाई ठिकानों ( रावलपिन्डी के पास नूर खान, मुरीद और रफीकी) को निशाना बनाया . कश्मीर में सक्रिय इस्लामी मिलिशिया को पनाह देने वाले क्षेत्रों पर पिछली बमबारी के विपरीत , इस बार उन्होंने ड्रोन , लड़ाकू जेट और क्रूज मिशाइलों का उपयोग करके पाकिस्तानी मुख्यालय और परमाणु प्रतिक्रिया नियन्त्रण केंद्र ( नूर खान ) को निशाना बनाया. 

विध्वंस के इस भयानक स्तर तक वृद्धि का खतरा इसलिए स्पष्ट है, जैसा कि इस क्षत्र के एक जाने माने रणनीति- कार ने इंगित किया है : “ जब सेनाएं, नये अतिरिक्त रूप से विस्तार लिए नये हथियारों के शस्त्रागार के साथ हमला करती है तब विध्वंस का खतरा मडराने की आशंका बढ़ जाती है. यद्यपि , संकट की जानकारी के भरोसेमंद सूचना के अभाव में, गलत अनुमान व् गलत फहमी के खतरे के कारण , भारतीय और पाकिस्तानी नेताओं के विवेक, किसी खतरनाक हिंसा का कारण बन सकती है . 

वर्तमान दौर में, पूंजीवाद की तीव्र होती सड़ांध के फलस्वरूप युद्ध तेज गति से अतार्किक और बर्बर होता जा रहा है, जैसा कि मोदी सरकार द्वारा प्राकृतिक संसाधनों को युद्ध के हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की मंशा से स्पष्ट होता है: ‘भारत ने सिंधु नदी संधि को एकतरफा तौर पर निलंबित करने का अभूतपूर्व कदम उठाया है। यह संधि 1960 में विश्व बैंक द्वारा पाकिस्तान में जलविद्युत, सिंचाई और कृषि के लिए आवश्यक जल प्रवाह के प्रबंधन के लिए की गई थी। यह संधि दोनों देशों के बीच कई युद्धों और सैन्य संघर्षों को झेल चुकी है, लेकिन अब ऐसा नहीं है।’ 

अंत में , सभी पक्षों ने बिना किसी आर्थिक या रणनीतिक उपलब्धी अथवा फायदा पाए, कुछ कुछ खोया ही है, जबकि गैजिम्मेदार पूंजीवादी गुट मजबूत हुए हैं: इस युद्ध ने पाकिस्तान के उन जनरलों को मजबूत किया है, जो सैन्य जीत की बात करते हैं और भारत के प्रति तेजी से आक्रामक प्रतिक्रिया का आह्वान करते हैं, जबकि किसी भी विरोध आंदोलन को क्रूरता से दबाया जा रहा है. भारत के बारे में भी सच्चाई यही है, जहाँ मोदी पाकिस्तान के साथ संघर्ष का इस्तेमाल राष्ट्रवादी उन्माद और मुस्लिम विरोधी प्रचार को पुनर्जीवित करने के लिए कर रहे है . स्थिति कोई अनोखी नही है . यह वही स्थिति है जिसे हम रूस में पुतिन अथवा इजराइल में अहंकारवादी भ्रमों के शिकार नेतन्याहू गुट में देखते हैं . 

यद्यपि भारत सरकार ने ( चीन द्वारा हथियारों से बेहतर तरीके से लैस किये गये ) पाकिस्तान का कमतर करके मूल्यांकन अथवा पाकिस्तान , चीन और अमेरिका के सामने अपनी सैन्य शक्तियों के प्रदर्शन, एक अनुमान मात्र था. क्या हम बिना किसी संदेह के भविष्यवाणी कर सकते हें कि क्या यह साम्राज्यवाद के महत्वाकांक्षाओं को खेल को घनीभूत करने और संयुक्त राष्ट्र प्रसाशन द्वारा एक भुरभुरे युद्ध विराम ( जिसका भारत द्वारा खंडन किया गया ) के लिए की गई “ पहलकदमी” डूबते पूंजीवाद में हावी युद्ध और अराजकता के रुझान को नहीं समझ पायेगा. यह भारत और पाकिस्तान के सत्ताधारी दुष्ट ही नही जो साम्राज्यवादी नरसंहार को घनीभूत करने के लिए जिम्मेदार हें: बल्कि नरसंहार का मुख्य मुख्य कारण, सडती पूंजीवादी “ व्यवस्था” है 

राष्ट्रवादी आन्दोलन का र्विरोध करें! 

पूंजीपति मजदूरों को भारतीय और पाकिस्तानी पूंजीपति मजदूर वर्ग को ‘कुचली जाने वाली मात्रभूमि के सम्मान ‘ की रक्षा के लिए राष्ट्रीय झंडों के साथ आगे आने का आव्हान कर रहे हैं. कैसा आपराधिक पाखंड ! 

यूक्रेन में , युद्ध में लूटी गई भूमि के लिए सभी विद्राही चंद अभागे किलोमीटर के लिए सैकड़ो हजार इंसानों की बलि दे रहे हैं . मध्य पूर्व में , सभी युद्धरत गुट आतंक का इस्तेमाल करके खंडहर बन चुके क्षेत्र को तबाह कर रहे हैं और सबसे बर्बर तरीकों से लोगों का नरसंहार कर रहे हैं . 

पाकिस्तान में ही, आंतरिक संघर्षों और भीषण बाढ़ के कारण पूरे क्षेत्र निर्जन हो रहे हैं, जबकि जातीय, धार्मिक संघर्ष भारत को टुकड़े-टुकड़े कर रहे हैं . चूंकि पूंजीवाद अपने स्वयं के अंतर्विरोधों के प्रभाव में ,अनिवार्य रूप से अराजकता में डूब रहा है , इसलिए दुनिया भर के शोषक वर्ग के सभी हिस्सों के पास अपनी घिनौनी और बर्बरता का प्राक्रतिक संसाधनों को साम्राज्यवादी महत्वाकान्क्षाओं के लिए सर्वहारा की बलि देने के अलावा और कुछ नहीं बचा है. और भारत और पाकिस्तान की परमाणु शक्तियों के बीच टकराव की संभावना के साथ -साथ ईरान के परमाणु कार्यक्रम या जापोरिया परमाणु ऊर्जा स्टेशन पर बमबारी के खतरों के साथ एक बड़ी परमाणु दुर्घटना का जोखिम और भी अधिक विकल्प बन जाता है. 

केवल एक ही विकल्प है : सर्वहारा का अंतर्राष्ट्रीयता का विकास , अपने वर्ग भाइयों और बहनों के खिलाफ लड़ने से इंकार करना. दुनियां के सभी मजदूरों का हित एक ही है. हम युद्ध के मुख्य शिकार हैं जिन्हें तोप के चारे के रूप में मोर्चे पर भेजा जाता है या बंधकों के रूप में थकावट की हद तक शोषण किया जाता है ताकि दुनियां भर में बढ़ते हथियारों के निर्माण के लिए भुगतान किया जा सके.

 

सर्वहारा के पास अभी युद्धों को रोकने की ताकत नहीं है लेकिन वहअपने जीवन की स्थितियों पर पूंजीवादी हमलों के खिलाफ अपने संघर्षों के माध्यम से इसे हासिल कर सकता है. इस तरह का संघर्ष कई देशों में हो रहा और इन संघर्षों में, मजदूर खुद को एक ही वर्ग के रूप में पहचानते हैं. उन्हें धीरे-धीरे अहसास होता है कि उनके सभी दुश्मन एक ही हैं: चाहे शोषक का रंग , धर्म या राष्ट्रीयता कुछ भी हो.

 

वेलेरियो 31मई 2025

 

 

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