यूके,फ्रांस,स्पेन,जर्मनी,मैक्सिको,चीन:हर जगह एक ही सवाल: संघर्ष को कैसे विकसित किया जाए? सरकारों को कैसे गिराएं?

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7 मार्च को फ़्रांस, , 8 मार्च को इटली , 11 मार्च को ब्रिटेन में आम हड़तालें और विशाल प्रदर्शनों  के कारण हर तरफ गुस्सा बढ़  और चहुँ  ओर फैल रहा है.

ब्रिटेन में नौ महीने से ऐतिहासिक हड़ताल की लहर चल रही है. बिना पलक झपकाए, दशकों से संयम बरतने के बाद, ब्रिटेन में सर्वहारा वर्ग अब बलिदानों को स्वीकार करने को तैयार नहीं . " बहुत हो गया अब. " फ़्रांस में, यह सेवानिवृत्ति की आयु में वृद्धि  जिसने बारूद को चिंगारी लगाई,  परिणामस्वरूप,      वहां प्रदर्शनों ने लाखों लोगों को  “न एक वर्ष अधिक, न एक यूरो कम “  के नारे के साथ सड़कों पर ला खड़ा किया है. स्पेन में , स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के पतन के खिलाफ विशाल रैलियां आयोजित की गईं और कई क्षेत्रों (सफाई, परिवहन, आईटी, आदि) में हड़तालें हुई और अखबारों ने  नारा बुलंद किया,  "आक्रोश _ आक्रोश दूर से आता है”.  जर्मनी में , मुद्रास्फीति से पीड़ित , सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी और उनके डाक सहयोगी वेतन वृद्धि के लिए हड़ताल पर चले गये. . जर्मनी में पहले  ऐसा  कभी नहीं देखा गया”. ”डेनमार्क में , हड़ताल और प्रदर्शन सैन्य बजट में वृद्धि को वित्तपोषित करने के लिए सार्वजनिक अवकाश को समाप्त करने के खिलाफ आन्दोल्ट शुरू हुआ. पुर्तगाल में, शिक्षक, रेलवे कर्मचारी और स्वास्थ्य की  देखभाल करने वाले कर्मचारी भी कम मजदूरी और गिरते जीवन स्तर की  लागत के खिलाफ विरोध कर रहे हैं.नीदरलैंड, डेनमार्क, यूनाइटेड राज्यों, कनाडा, मैक्सिको, चीन ... समान असहनीय और अशोभनीय जीवन स्थितियों तथा: "वास्तविक कठिनाई: गर्मी, खाने, खुद की देखभाल करने, ड्राइव करने में सक्षम न होने के खिलाफ,  हमला बोल रहे हैं .

मजदूर वर्ग की वापसी

इन सभी देशों में संघर्षों का एक साथ होना कोई आकस्मिक घटना नही. यह हमारे वर्ग की अंतर्रात्मा में     वास्तविक परिवर्तन की पुष्टि करता है. तीस साल की घोर निराशा के बाद, अपने संघर्षों के माध्यम से हम कह रहे हैं: " इसे अब  हम और बर्दास्त करने के लिए  तैयार  नहीं , हम लड सकते हैं और हम  लड़ेंगे भी “

मजदूर वर्ग में  जुझारूपन की यह वापसी, हमें एक साथ खड़े होने, संघर्ष में एकजुटता दिखाने, अपनी लड़ाई में गर्व, गरिमापूर्ण और एकजुट महसूस करने की हिम्मत और प्रेरित करती है. एक बहुत ही सरल लेकिन बेहद मूल्यवान विचार हमारे दिमाग में अंकुरित हो रहा है: हम सब एक ही नाव के  सहयात्री  हैं!

सफेद कोट, नीले कोट या टाई में कर्मचारी, बेरोजगार, अनिश्चित छात्र, पेंशनभोगी, सार्वजनिक और ....निजी सभी क्षेत्रों से, हम सभी खुद को शोषण की समान स्थितियों से एकजुट एक सामाजिक शक्ति के रूप में पहचानने लगे है. वही पूंजीवाद का संकट, हमारे रहने और काम करने की परिस्थितियों पर वही हमले, हम वही एक समान शोषण सहते हैं .समूचा मजदूर वर्ग  इसी संघर्ष में शामिल हैं.

" फ्रांस के प्रदर्शनकारियों की आवाज को स्वर देते हुए  मज़दूर एक साथ खड़े हों ", ब्रिटेन में हड़ताल करने वालों को ऊंची  आवाज में कहें , " या तो हम एक साथ लड़ेंगे , या हम अंत में सड़क पर सोएंगे ".

 क्या हम जीत सकते हैं  ?

विगत के कुछ संघर्षों से पता चलता है कि किसी सरकार को पीछे धकेलना तथा उसके हमलों को धीमा करना संभव है.

1968 में , फ्रांस में सर्वहारा वर्ग अपने संघर्षों पर नियंत्रण करके एकजुट हो गया. छात्रों  पर किये गए    पुलिस दमन के विरोध में 13 मई के विशाल प्रदर्शनों के बाद, वॉकआउट और आम सभाएँ फ़ैक्टरियों में जंगल की आग की तरह फैल गईं और सभी कार्यस्थलों को अपने 9 मिलियन हडतालियों के साथ, इतिहास में अंतरराष्ट्रीय मजदूर वर्ग की इतने बड़ी  हड़ताल को समाप्त करने को  मजबूर होना पड़ा. मजदूरों के संघर्ष के विस्तार और एकता की इस गतिशीलता का सामना करते हुए, सरकार और यूनियनें आंदोलन को रोकने के लिए सामान्य वेतन वृद्धि पर एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए दौड़ पड़े.

पोलैंड मे 1980 में, खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि का सामना करते हुए, हड़तालियों ने विशाल आम सभाओं में एकजुट होकर, मांगों और कार्यों पर खुद को तय करके, और सबसे बढ़कर संघर्ष को आगे बढ़ाने की निरंतर चिंता करके, संघर्ष को और आगे बढ़ाया. शक्ति के इस प्रदर्शन का सामना करते हुए, केवल पोलिश पूंजीपति ही नहीं काँपते थे, बल्कि सभी देशों के पूंजीपति वर्ग भी काँपते थे.

 फ्रांस में, 2006 में  लामबंदी के कुछ ही हफ्तों के बाद , सरकार ने अपने " कॉन्ट्राट प्रीमियर एम्बॉचे " को वापस ले लिया। यह क्यों ? किस बात ने पूंजीपत वर्ग को इतना डरा भयभीत कर  दिया कि वह इतनी जल्दी पीछे हट गया? पराधीन छात्रों ने, अनियमतीकरण और बेरोजगारी के खिलाफ लड़ाई में  विश्वविद्यालयों में बड़े पैमाने पर आम सभाओं का आयोजन किया जिसमे उन्होंने , श्रमिकों, बेरोजगारों और पेंशनभोगियों को  खुले रूप में एकाकार होने का  नारा दिया. ये सभाएँ आन्दोलन का फेफड़ा थीं, जहाँ बहसें होती थीं और निर्णय लिए जाते थे. परिणाम: हर सप्ताहांत, प्रदर्शनों ने अधिक से अधिक क्षेत्रों को एक साथ ला खड़ा  किया. वेतनभोगी और सेवानिवृत्त कर्मचारी इस नारे के तहत छात्रों में शामिल हो गए: " युवा लार्डन्स , पुराने क्राउटन, सभी एक ही सलाद में " की तर्ज पर  आंदोलन को एकजुट करने की  इस प्रवृत्ति का सामना करने वाले फ्रांसीसी बुर्जुआ और सरकार के पास सीपीई को वापस लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.

इन सभी आंदोलनों में आम तौर पर संघर्ष के विस्तार की गतिशीलता होती है, जिसका श्रेय स्वयं श्रमिकों को अपने नियंत्रण में लेने के लिए जाता है!

आज, चाहे हम वेतनभोगी कर्मचारी हों, बेरोजगार हों, पेंशनभोगी हों, अनिश्चित छात्र हों, हमें अभी भी अपने आप में, अपनी सामूहिक शक्ति में, अपने संघर्षों पर सीधे नियंत्रण करने का साहस करने के लिए आत्मविश्वास की कमी है. लेकिन कोई दूसरा रास्ता भी नहीं है. यूनियनों द्वारा प्रस्तावित सभी "कार्य" हार का कारण बनते हैं. धरना, प्रदर्शन, अर्थव्यवस्था को अवरूद्ध करना... इससे कोई फर्क नहीं पड़ता जब तक ये गतिविधियाँ उनके नियंत्रण में रहती हैं.यदि यूनियनें, परिस्थितियों के अनुसार अपने कार्यों के रूप को बदलते रहना हैं, तो हमेशा एक ही तत्व- क्षेत्रों को एक-दूसरे से विभाजित और अलग करना ताकि हम बहस न करें और संघर्ष का संचालन कैसे करें.

ब्रिटेन में नौ महीनों से यूनियनें क्या कर रही हैं? वे श्रमिकों की पहलकदमी  को तितर-बितर कर रही हैं, हर दिन, एक अलग सेक्टर में  हड़ताल कर रही हैं. हर एक अपने क क्षेत्र  में, हर एक अपनी अलग पिकेट लाइन पर. कोई सामूहिक सभा नहीं, कोई सामूहिक बहस नहीं होने दे रहीं, संघर्ष में कोई वास्तविक एकता नहीं. यह रणनीति की गलती नहीं बल्कि सोची समझी साजिश है.

1984-85 में थैचर सरकार ने ब्रिटेन में मजदूर वर्ग की कमर कैसे तोड़ी? यूनियनों के गंदे काम के माध्यम से जिन्होंने अन्य क्षेत्रों में खनिकों को उनके वर्ग भाइयों और बहनों से अलग कर दिया. उन्होंने उन्हें एक लंबी और निष्फल हड़ताल में कैद कर दिया. एक वर्ष से अधिक के लिए, खनिकों ने " अर्थव्यवस्था को अवरुद्ध करने " के बैनर तले गड्ढों में दबा  दिया.अकेले और शक्तिहीन, हडताली अपनी ताकत और साहस के अंत तक लडे लेकिन अंत में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा और उनकी ये  हार, पूरे मजदूर वर्ग की हार थी! ब्रिटेन के मजदूर अभी तीस साल बाद सिर उठा रहे हैं, इसलिए यह हार एक महंगा सबक है जिसे विश्व सर्वहारा वर्ग को नहीं भूलना चाहिए.

केवल खुली, विशाल और स्वायत्त सामान्य सभाओं में इकट्ठा होकर, वास्तव में आंदोलन के संचालन पर निर्णय करके, हम सभी क्षेत्रों, सभी पीढ़ियों के बीच एकजुटता से आगे बढ़ते हुए, एकजुट और व्यापक संघर्ष कर सकते हैं, ऐसी सभाएँ जिनमें हम एकजुट महसूस करते हैं और अपनी सामूहिक शक्ति में विश्वास रखते हैं, जिसमें हम तेजी से एकीकृत माँगों को अपना सकते हैं. आम सभाएं जो हमारे वर्गीय  भाइयों और बहनों, निकटतम कारखाने, अस्पताल, स्कूल, प्रशासन में श्रमिकों से मिलने के लिए बड़े पैमाने पर प्रतिनिधिमंडल बना सकती हैं .

 संघर्ष ही असली जीत है.

"क्या हम जीत सकते हैं?" जवाब है हां, कभी-कभी अगर, और केवल अगर, हम अपने संघर्षों को अपने हाथ में लेते हैं.हम हमलों को पल भर के लिए रोक सकते हैं, सरकार को पीछे हटा सकते हैं.

लेकिन सच्चाई यह है कि वैश्विक आर्थिक संकट सर्वहारा वर्ग के पूरे वर्गों को गरीबी में धकेल देगा. बाजार और प्रतियोगिता के अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में बने रहने के लिए, हर देश में हर पूंजीपति, चाहे उसकी सरकार वामपंथी हो, दक्षिणपंथी हो या केंद्र, पारंपरिक या लोकलुभावन, रहने और काम करने की स्थिति को तेजी से असहनीय बनाने जा रहा है.

सच्चाई यह भी है कि ग्रह के चारों कोनों में युद्ध अर्थव्यवस्था के विकास के साथ, पूंजीपति वर्ग द्वारा मांगे गए "बलिदान" अधिक से अधिक असहनीय होंगे.

सच्चाई यह है कि राष्ट्रों, सभी राष्ट्रों के बीच साम्राज्यवादी टकराव विनाश और खूनी अराजकता का एक सर्पिल है जो पूरी मानवता को उसके विनाश की ओर ले जा सकता है. यूक्रेन में हर दिन मनुष्यों की एक धारा, कभी-कभी 16 या 18 साल की उम्र के लोगों को मौत के घृणित साधनों से कुचला जा रहा है, चाहे वह रूसी हो या पश्चिमी.

सच्चाई यह है कि फ्लू या ब्रोंकियोलाइटिस की साधारण महामारी अब थकी हुई स्वास्थ्य प्रणालियों को उनके घुटनों पर ला रही है.

सच्चाई यह है कि पूंजीवाद ग्रह को तबाह करना जारी रखेगा और जलवायु के साथ कहर बरपाएगा, जिससे विनाशकारी बाढ़, सूखा और आग लग जाएगी.

सच्चाई यह है कि लाखों लोग युद्ध, अकाल, जलवायु आपदा, या तीनों, केवल दूसरे देशों की कंटीली तारों की दीवारों से टकराने के लिए, या समुद्र में डूबने के लिए, पलायन करते रहेंगे.

तो सवाल उठता है: कम वेतन के खिलाफ, कामगारों की कमी के खिलाफ, इस या उस "सुधार" के खिलाफ लड़ने का क्या मतलब है? क्योंकि हमारे संघर्षों में वर्ग या शोषण के बिना, युद्ध या सीमाओं के बिना, दूसरी दुनिया की आशा उम्मीद है.

संघर्ष ही असली जीत है. संघर्ष में प्रवेश करने, अपनी एकजुटता विकसित करने का साधारण तथ्य ही जीत की गारंटी है. एक साथ लड़कर, इस्तीफा देने से इंकार करके, हम कल के संघर्षों को तैयार करते हैं और अपरिहार्य पराजयों के बावजूद हम थोड़ा-थोड़ा करके एक नई दुनिया के लिए स्थितियां बनाते हैं.

संघर्ष में हमारी एकजुटता प्रतिद्वंद्वी कंपनियों और राष्ट्रों में विभाजित इस व्यवस्था की घातक प्रतिस्पर्धा का प्रतिकार है.

पीढ़ियों के बीच हमारी एकजुटता इस प्रणाली के अ-भविष्य और विनाशकारी चक्र के विपरीत है.

हमारा संघर्ष सैन्यवाद और युद्ध की वेदी पर खुद को बलिदान करने से इनकार करने का प्रतीक है .

मजदूर वर्ग का संघर्ष तत्काल पूंजीवाद और शोषण की बुनियाद के लिए एक चुनौती है.

हर हड़ताल अपने भीतर क्रांति के बीज लिए होती है.

भविष्य वर्ग संघर्ष का है!

अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट करंट (25 फरवरी 2023)

 वर्तमान और भविष्य के संघर्षों के लिए हमें फिर से संगठित होना होगा, बहस करनी होगी, सबक सीखना होगा

पूरे मजदूर वर्ग के स्वायत्त संघर्ष को तैयार करने के लिए एक साथ इकट्ठा होना चाहिए, चर्चा करनी चाहिए और अतीत के पाठों को फिर से लागू करना चाहिए. काम पर, प्रदर्शनों में, नाकेबंदी पर, धरने पर, हमें इस पर बहस और चिंतन करने की जरूरत है कि मजदूर वर्ग अपने संघर्षों को अपने हाथों में कैसे ले सकता है, कैसे वह खुद को स्वायत्त आम सभाओं में संगठित कर सकता है, कैसे एक व्यापक दायरेमें आन्दोलन का विस्तार कर सकता है?

सार्वजनिक बैठकें

इसी भावना से हम कई देशों में जनसभाओं का आयोजन कर रहे हैं. यूके में अगला 1 अप्रैल को दोपहर 3 बजे, द लुकास आर्म्स, 245ए ग्रेज़ इन रोड, लंदन WC1X 8QY में है। इस बैठक में ऑनलाइन भाग लेना भी संभव होगा - ऐसा करने के लिए यूके से [email protected] पर लिखें कहीं और, [email protected] पर लिखें और हम लिंक भेज देंगे.। हमारी बैठकों की तारीखें और स्थान हमारी वेबसाइट: en.internationalism.org पर उपलब्ध है.

आओ और चर्चा करें!