पूंजीवाद, मानवता को विनाश की ओर ले जाता है……. केवल सर्वहारा वर्ग की विश्व क्रांति ही, इसका अंत कर सकती है.

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यूरोप में, जब 130 साल पहले, पूंजीवादी शक्तियों के बीच तनाव बढ़ रहा था, तब फ्रेडरिक एंगेल्स ने मानवता के लिए साम्यवाद या बर्बरता के बीच दुविधा पेश की.

इस विकल्प को 1914 में शुरू हुए प्रथम विश्व युद्ध में मूर्त रूप दिया गया, जो 20 मिलियन लोगों की मृत्यु, का कारण बना, अन्य 20 मिलियन विकलांग हुए, और युद्ध की अराजकता में 50 मिलियन से अधिक मौतों के साथ स्पेन में फ्लू की महामारी फ़ैली.

1917 में रूस में क्रांति और अन्य देशों में क्रांतिकारी प्रयासों ने नरसंहार को समाप्त कर दिया और एंगेल्स द्वारा प्रस्तुत ऐतिहासिक दुविधा के दूसरे पक्ष क्रांतिकारी सर्वहारा वर्ग द्वारा विश्व स्तर पर पूंजीवाद को उखाड़ फेंकने  और उसके स्थान पर एक साम्यवादी समाज की संभावना को जन्म दिया.

 हालाँकि, इसके बाद:

-  "साम्यवाद" के बैनर तले स्टालिनवाद द्वारा रूस में की गई क्रूर प्रति-क्रांति द्वारा इस विश्व क्रांतिकारी प्रयास को कुचला गया,

- जर्मनी में सामाजिक लोकतंत्र सर्वहारा के शुरू किये नरसंहार को नाजीवाद द्वारा  पूरा किया गया. 

- सोवियत संघ में सर्वहारा वर्ग की भर्ती, देश में सर्वहारा वर्ग का नरसंहार और,

- “समाजवादी पित्रभूमि” की रक्षा के लिए फासीवाद के विरोध के झंडे तले सोवियत संघ में सर्वहारा की भर्ती की गई, जिसे 1939 -45 के अबतक हुईं बर्बरता के क्षेत्र में एक और मील के पत्थर, विश्व युद्ध में झोंक दिया, युद्ध के दौरान नाजी व् स्तालिनवादी यातना शिविरों में दी जाने वाली अमानवीय यातनाओं, मित्र शक्तियों द्वारा ड्रेस्डन, हम्बर्ग तथा संयुक्त राष्ट्र अमेरिका द्वारा जापान के हीरोशिमा और नागाशाकी पर की गई अंधाधुं बममारी में 60 मिलियन लोगों की मृत्यु और पीड़ा का अन्तहीन सिलसला बन गया.  

 तब से, युद्ध ने हर महाद्वीप पर जान लेना बंद नहीं किया है.

सबसे पहले अमेरिका और रूसी गुटों के बीच टकराव हुआ,तबसे तथाकथित शीत युद्ध (1945-89), स्थानीय युद्धों की एक अंतहीन श्रृंखला से  पूरे ग्रह पर परमाणु बमों की वर्षा का खतरा मडरा रहा है.

1989-91 में सोवियत संघ के पतन के बाद, अराजक युद्धों ने विश्व को खून से लथपथ कर दिया: इराक, यूगोस्लाविया, रवांडा, अफगानिस्तान, यमन, सीरिया, इथोपिया, सूडान ... यूक्रेन में युद्ध 1945 के बाद से सबसे गंभीर युद्ध संकट है.

युद्ध की बर्बरता के साथ-साथ पारस्परिक रूप से मजबूत करने वाली विनाशकारी ताकतों का प्रसार होता है: कोविद महामारी जो अभी भी दूर होने से दूर है और जो नई महामारियों की शुरुआत करती है; पारिस्थितिजन्य और तेजी से बढ़ रही पर्यावरणीय आपदा,जलवायु परिवर्तन के साथ मिलकर, सूखा, बाढ़, तूफान, सूनामी, आदि, और भूमि, जल, वायु और अंतरिक्ष के प्रदूषण की एक अभूतपूर्व डिग्री; बाइबिल के अनुपात के अकाल लाने वाला गंभीर खाद्य संकट तेजी से बेकाबू और घातक आपदाओं का कारण बन रही है. चालीस साल पहले, तीसरे विश्व युद्ध में मानवता के नष्ट होने का खतरा था, आज इसे विनाश की ताकतों के सरल एकत्रीकरण और घातक संयोजन से नष्ट किया जा सकता है: चाहे हम, ताप- नाभिकीय  (थर्मोन्यूक्लियर) बमों की बारिश में, या प्रदूषण से, परमाणु ऊर्जा स्टेशनों से रेडियो-गतिविधि, अकाल, महामारी, और असंख्य छोटे युद्धों के नरसंहार (जहां परमाणु हथियारों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है) से मिटा दिया गया हो, अंत में यह सब समान है. इन दो रूपों के बीच एकमात्र अंतर सर्वनाश, इसमें निहित है कि एक त्वरित, जबकि दूसरा धीमा होगा, और इसके परिणामस्वरूप और भी अधिक पीड़ा होगी" [2] ( थीसिस ऑन डिकंपोज़िशन )

एंगेल्स द्वारा प्रस्तुत की गई दुविधा: साम्यवाद या मानवता का विनाश, ने अब और भी गंभीर रूप धारण कर लिया है. उक्त ऐतिहासिक क्षण और अधिक गंभीर हो गया है; और अंतर्राष्ट्रीयवादी क्रांतिकारियों को अपने  वर्ग (सर्वहारा) के सामने  इसकी स्पष्ट  पुष्टि करने की आवश्यकता है, क्योंकि केवल सर्वहारा  वर्ग ही स्थायी और अथक संघर्ष के माध्यम से कम्युनिस्ट दृष्टिकोण को प्रस्तुत कर सकता है.

साम्राज्यवादी युद्ध पूंजीवाद की जीवन शैली है.

मास मीडिया, युद्ध की वास्तविकता को झूठा और कम आंकता है. शुरुआती दौर में मीडिया 24 घंटे यूक्रेन में युद्ध के लिए समर्पित था, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, युद्ध को तुच्छ बना दिया गया, अब युद्ध, मीडिया में सुर्खियाँ भी नहीं बन रहा. इसकी गूँज, धमकी भरे बयानों से परे नहीं जा रही, "यूक्रेन को हथियार भेजने" के लिए बलिदान करने का आह्वान किया गया था, दुश्मन के खिलाफ चलाए जा रहे प्रचार अभियान, “समझौते” की फर्जी खबरों द्वारा व्यर्थ की आशाओं को परोस रहे हैं. 

युद्ध को तुच्छ बनाने के लिए लाशों और धुएं की घ्रणित गंध का आदी होना, सबसे बड़ा विश्वासघात, उन गंभीर खतरों को छिपा रहा है जो मानवता को खतरे में डालते हैं, यह उन सभी खतरों के प्रति अंधा होना है जो स्थायी रूप से हमारे सिर पर मंडरा रहे हैं.

अफ्रीका ,एशिया और सेंट्रल अमेरिका के लाखों लोग युद्ध के अलावा और किसी वास्तविकता से परचित नहीं. वे पालने से लेकर कब्र तक, वे बर्बरता के समुद्र में दुबकी लगाते रहते हैं ,जहां सभी प्रकार के अत्याचार, बाल सैनिकों की भर्ती, दंडात्मक सैन्य अभियान, बंधक बनाने, पूरी आबादी का विस्थापन,अंधाधुन्ध बममारी का खतरा बढ़ता जा रहा है.

अतीत में जो युद्ध अगली पंक्तियों और कुछ लडाकों तक सीमित थे,अब 20वी और 21वीं सदी के युद्ध सम्पूर्ण युद्ध हैं जो अपने अंदर समूचे सामाजिक जीवन को घेर लेते हैं और उनके प्रभाव दुनियां भर में फैले हुए हैं. ये युद्ध सभी देशों को नीचे धकेल रहे हैं चाहे वे देश उन युद्धों में  भागीदार हों अथवा जो प्रत्यक्ष रूप से विरोधी नहीं हैं. 20वीं और 21वीं सदी के युद्धों में, ग्रह पर कोई भी निवासी या स्थान उनके घातक प्रभाव से नहीं बच  सकता। 

अगली पंक्ति, जो जमीन पर हजारों किलोमीटर तक फैल सकती है, तथा अन्तरिक्ष के माध्यम से समुद्र और हवा में विस्तार पा सकती है, बमों, गोलीबारी,बारूदी सुरंगों और कई मामलों में “दोस्ताना आग” द्वारा जीवन को छोटा कर दिया जाता है. एक जानलेवा पागलपन द्वारा ग्रसित, उच्च रेंकों द्वारा  थोपे गए आतंक के माध्यम से मजबूर और चरम स्थितयों में फंसे सभी भागीदारों को सबसे अधिक आत्मघाती, आपराधिक और विनाशकारी कार्यों के लिए मजबूर किया जाता है.       

सैन्य मोर्चे  की अग्रिम पंक्ति में विनाश की अति-आधुनिक मशीनों की  निरंतर तैनाती के साथ “दूरस्थ युद्ध ’जो बिना रुके हजारों बम, गिराने वाले विमान, दुश्मन के ठिकानों पर हमले करने के लिए दूर से नियंत्रित ड्रोन; मोबाईल या स्थाई तोपखाना, फ़ौज  दुश्मन को लगातार मार रही है.

तथाकथित फ्रंट एक स्थायी रंगमंच बन जाता है जिसमें समूची आबादी को बंधक बना लिया जाता है, जहाँ पूरा शहर समय- समय पर होने  वाली बममारी से कोई भी मौत का शिकार हो सकता है. उत्पादन के क्षेत्रों में लोग बंदूक की नोंक पर काम करने को मजबूर होते हैं, पुलिस पार्टियों, ट्रेड यूनियनों और सभी संस्थानों के नियंत्रण में, “मात्रभूमि की रक्षा’ की सेवा में किया जाने वाले कार्य पूँजीवादी शोषण, नरक से भी  बड़ा नरक बन जाता है, जबकि एक ही समय में वे दुश्मनों के बमों से अलग होने जोखिम उठाते हैं.            

नाटकीय रूप से दिया जाने वाला भोजन गन्दा बदबूदार सूप है, जहाँ न बिजली है और न पानी और न गर्म रखने वाले यंत्र हैं. लाखों लोग का जीवन जानवरों से भी बदतर बन जाता है. जहाँ आसमान से गिरने वाले हजारों गोले मौत बरसाते हैं या भयानक पीड़ा देते हैं. जमीन पर तैनात असंख्य पुलिस, “मात्रभूमि की रक्षक” कहे जाने वाले भाड़े के राज्य सैनिकों, सशस्त्र  ठगों  द्वारा  गिरफ्तार किये जाने का खतरा हमेशा बना रहता है. शरण लेने के लिए आपके पास  सिर्फ चूहों से भरे  गंदे और बदबूदार तहखाने रह जाते हैं. सम्मान, सभी से प्राथमिक एकजुटता, आपसी विश्वास तर्कसंगत विचार, और व स्थिति  जिसमें पार्टिया और  ट्रेड यूनियनें उत्साह के साथ  भाग लेते हैं, न सिर्फ सरकार द्वारा बल्कि राष्ट्रीय संघ द्वारा फैलाये गये आतंक के माहौल में बह गए हैं. अब वहां बेतुकी अफवाहें, अत्यधिक अविश्वसनीय खबरें निरंतर प्रसारित होते हैं जिससे निदा, अंधाधुन्द संदेह, बड़े पैमाने पर तनाव और तबाही का उन्मादी माहौल पैदा होता है.         

युद्ध एक ऐसी बर्बरता है जो सरकारों द्वारा जानबूझ कर नियोजित की जाती है ,जो जानबूझ कर घ्रणा, “ अन्य से भय” मनुष्य के बीच दरार और विभाजन, मौत के लिए यातना, अधीनता,सामाजिक  विकास, शक्ति सम्न्धों के संस्थाकरण को एकमात्र तर्क के रूप में प्रचारित कर इसे बढाती है, यूक्रेन में जापोरिजहिंयंस परमाणु ऊर्जा संयत्र के आसपास हिंसक लड़ाई से पता चलता है कि दोनों पक्षों को चैरनोविल से भी बदतर और यूरोप की आबादी के लिए जबर्दस्त डरावने परिणामों के साथ एक  रेडियोधर्मी तबाही को भडकाने के जोखिम के बारे में कोई संदेह नहीं है. गृह पर परिमाणु हथियारों का खतरा  मडरा  रहा है.        

युद्ध की विचारधारा.

पूंजीवाद, इतिहास की सबसे पाखंडी और स्वार्थपूर्ण व्यवस्था है. न्याय, शांति, प्रगति, मानव अधिकार जैसे ऊँचे आदर्शों से सजे अपने हितों को "जनता के हित" के रूप में पेश करना ही इसकी संपूर्ण वैचारिक कला है.

सभी राज्य, इसे न्यायोचित ठहराने और अपने "नागरिकों" को मारने के लिए तैयार रहने के लिए इसे  लकडभग्गा में बदलने के लिए डिज़ाइन की गई युद्ध की एक विचारधारा गढ़ते हैं, "युद्ध व्यवस्थित,संगठित, विशाल हत्या है. लेकिन सामान्य मनुष्यों में यह सुनियोजित हत्या तभी संभव है जब पहले नशे की स्थिति निर्मित हो चुकी हो. युद्ध करने वालों का यह हमेशा से आजमाया और परखा हुआ तरीका रहा है. कार्रवाई की पाशविकता को विचार और इंद्रियों की एक अनुरूप पाशविकता मिलनी चाहिए; बाद वाले को पहले वाले को तैयार करना और साथ देना चाहिए" (रोजा लक्समबर्ग, द जूनियस पैम्फलेट).

शांति, महान लोकतंत्रों के पास उनकी युद्ध विचारधारा की आधारशिला के रूप में है "शांति के लिए" प्रदर्शनों ने हमेशा साम्राज्यवादी युद्धों की तैयारी की है. 1914 की गर्मियों में और 1938-39 में लाखों लोगों ने "सद्भावना के लोगों", शोषकों और शोषितों के हाथों में नपुंसक की तरह रोते हुए "शांति के लिए" प्रदर्शन किया, जिसे "लोकतांत्रिक" पक्ष युद्ध की गतिव्रद्धि को सही ठहराने के लिए इस्तेमाल करने की तैयारी कभी बंद नहीं करता.

प्रथम विश्व युद्ध में, शांति के  नाम पर वध करने के लिए, जर्मनी ने "शांति की रक्षा" में अपने सैनिकों को जुटाया था, जो "अपने ऑस्ट्रियाई सहयोगी पर साराजेवो के हमले से बिखर गया" लेकिन विरोधी पक्ष में, फ्रांस और ब्रिटेन "जर्मनी द्वारा बिखर गए.”  द्वितीय विश्व युद्ध में, फ्रांस और ब्रिटेन ने हिटलर की महत्वाकांक्षाओं के सामने म्यूनिख में "शांति" का प्रयास किया, जबकि यथार्थ में उन्मादी रूप से युद्ध की तैयारी कर रहे थे, और हिटलर और स्टालिन की संयुक्त कार्रवाई से पोलैंड पर आक्रमण ने उन्हें जाने का सही बहाना दिया. युद्ध, यूक्रेन में, 24 फरवरी को आक्रमण से कुछ घंटे पहले तक पुतिन ने कहा कि वह "शांति" चाहते हैं, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका ने पुतिन की गर्मजोशी की लगातार निंदा की.

राष्ट्र, राष्ट्रीय सुरक्षा और इसके इर्द-गिर्द घूमते तमाम वैचारिक हथियार (जातिवाद, धर्म आदि) सर्वहारा वर्ग और पूरी आबादी को साम्राज्यवादी कत्लेआम में लामबंद करने के लिए हुक हैं. "शांति" के समय में पूँजीवाद, "लोगों के बीच सह-अस्तित्व" की घोषणा करता है, लेकिन साम्राज्यवादी युद्ध के साथ सब कुछ गायब हो जाता है, फिर मुखौटे उतर जाते हैं और हर कोई विदेशियों के प्रति घृणा और राष्ट्र की कट्टर रक्षा का राग अलापने लगता है.

वे सभी अपने युद्धों को "रक्षात्मक युद्धों " के रूप में प्रस्तुत करते हैं. सौ साल पहले, सैन्य बर्बरता के प्रभारी मंत्रालयों को "युद्ध मंत्रालय" कहा जाता था; आज उन्हें घोर पाखंड के साथ "रक्षा मंत्रालय" कहा जाता है. रक्षा, युद्ध का अंजीर का पत्ता है, जहां न कोई आक्रमणकारी राष्ट्र नहीं और न कोई हमले का शिकार राष्ट्र. वे सभी युद्ध की घातक मशीनरी में सक्रिय भागीदार हैं. वर्तमान युद्ध में रूस "आक्रमणकारी" के रूप में प्रकट होता है क्योंकि यह वह देश है जिसने यूक्रेन पर आक्रमण करने की पहल की है, लेकिन इससे पहले संयुक्त राज्य अमेरिका ने मैक्याविलियन तरीके से पुरानी वारसॉ संधि के कई देशों में नाटो का विस्तार किया जहां प्रत्येक कड़ी को अलग-अलग करके देखना संभव नहीं है, एक शताब्दी से भी अधिक समय से पूरी मानवता को जकड़े हुए साम्राज्यवादी टकराव की रक्तरंजित श्रखला को देखना आवश्यक है.

वे हमेशा अपने युद्धों को "स्वच्छ युद्ध" की बात करते हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार "मानवीय नियमों" का पालन करता है (या पालन करना चाहिए). " यह निरंकुश सनक और पाखंड के साथ परोसा गया एक घृणित धोखा है! पतनशील पूंजीवाद के युद्ध, दुश्मन के पूर्ण विनाश के अलावा किसी अन्य नियम से नहीं जीते हैं, और इसमें दुश्मन के विषयों को निर्मम बमबारी से आतंकित करना शामिल है. युद्ध में शक्ति का एक रिश्ता स्थापित होता है, जहां कुछ भी हो, सबसे क्रूर बलात्कार से और अपने स्वयं के "नागरिकों" के खिलाफ सबसे अंधाधुंध आतंक के लिए दुश्मन की आबादी को सजा दी जाती है. यूक्रेन पर रूस की बमबारी, इराक पर अमेरिकी बमबारी के नक्शेकदम पर चलती है, अमेरिकी जैसे अफगानिस्तान या सीरिया में रूसी सरकारें और वियतनाम से पहले; मेडागास्कर और अल्जीरिया जैसे अपने पूर्व उपनिवेशों पर फ्रांस द्वारा बमबारी; "लोकतांत्रिक के सहयोगियों" द्वारा ड्रेसडेन और हैम्बर्ग की बमबारी; और हिरोशिमा और नागासाकी की परमाणु बर्बरता, 20वीं और 21वीं सदी के युद्धों के साथ-साथ सभी पक्षों द्वारा बड़े पैमाने पर विनाश के तरीके अपनाए गए हैं, हालांकि लोकतांत्रिक पक्ष आमतौर पर इसका ध्यान उन छिपे स्तम व्यक्तियों को उप-ठेके पर देने का रखता है जिन पर दोष लगाया जाता है.

वे "सिर्फ युद्धों" की बात करने का साहस करते हैं! यूक्रेन का समर्थन करने वाले नाटो पक्ष का कहना है कि यह निरंकुशता और पुतिन के तानाशाही शासन के खिलाफ लोकतंत्र की लड़ाई है और पुतिन का कहना है कि वह यूक्रेन को नाजीवाद से मुक्त करेंगे, जो दोनों ही कोरे  झूठ है. "लोकतंत्र" के पक्ष में उसके हाथ उतने  ही खून से सने है जितने अनगिनत युद्धों से खून से लथपथ है जो उन्होंने सीधे (वियतनाम, यूगोस्लाविया, इराक, अफगानिस्तान) या परोक्ष रूप से (लीबिया, सीरिया, यमन) उकसाया है; समुद्र में या संयुक्त राज्य अमेरिका या यूरोप के सीमावर्ती क्षेत्रों में मारे गए हजारों प्रवासियों के खून से यूक्रेनी राज्य यूक्रेनी भाषा और संस्कृति को लागू करने के लिए आतंक का उपयोग करता है. यह रूसी बोलने के एकमात्र अपराध के लिए श्रमिकों को मारता है; यह सड़कों पर या सड़कों पर पकड़े गए किसी भी युवा को जबरन भर्ती करता है; यह अस्पतालों सहित, मानव ढाल के रूप में आबादी का उपयोग करता है; यह आबादी को आतंकित करने के लिए नव-फासीवादी गिरोहों को तैनात करता है. अपने हिस्से के लिए, पुतिन, बमबारी, बलात्कार और सारांश निष्पादन के अलावा, हजारों परिवारों को दूरदराज के स्थानों में यातना शिविरों में विस्थापित करता है; "मुक्त" प्रदेशों में आतंक फैलाता है और सेना के लिए यूक्रेन वासियों को अग्रिम पंक्ति में बूचड़खाने भेजकर भर्ती करता है.

युद्ध के वास्तविक कारण

दस हजार साल पहले आदिम साम्यवाद को तोड़ने का एक साधन आदिवासी युद्ध था ,तब से, शोषण पर आधारित उत्पादन के तरीकों के तत्वावधान में, युद्ध सबसे बुरी आपदाओं में से एक रहा है, लेकिन कुछ युद्ध इतिहास में एक प्रगतिशील भूमिका निभाने में सक्षम रहे हैं, उदाहरण के लिए, पूंजीवाद के विकास में, नए राष्ट्रों के निर्माण में, विश्व बाजार का विस्तार करने में, उत्पादक शक्तियों के विकास को प्रोत्साहित करने में युद्धों की प्रगतिवादी भूमिका रही है. 

हालाँकि, प्रथम विश्व युद्ध के बाद से  दुनिया पूरी तरह से पूंजीवादी शक्तियों के बीच विभाजित हो गई है, ताकि प्रत्येक राष्ट्रीय राजधानी के लिए एकमात्र रास्ता अपने प्रतिद्वंद्वियों के प्रभाव वाले क्षेत्रों बाजारों, रणनीतिक क्षेत्रों को जीतना हो. यह युद्ध और इसके साथ चलने वाली हर चीज़ (सैन्यवाद, हथियारों का विशाल संचय, राजनयिक गठजोड़) को पूंजीवाद के जीवन का स्थायी तरीका बना देता है.  यह एक निरंतर साम्राज्यवादी दबाव दुनिया को जकड़ लेता है और बड़े या छोटे सभी राष्ट्रों को नीचे धकेल लेता है, चाहे उनका वैचारिक मुखौटा और बहाना कुछ भी हो, सत्ताधारी पार्टियों का झुकाव, उनकी नस्लीय संरचना या उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत कुछ भी हो. सभी राष्ट्र साम्राज्यवादी हैं.  "शांतिपूर्ण और तटस्थ" राष्ट्रों का मिथक एक शुद्ध धोखा है. यदि कुछ राष्ट्र "तटस्थ" नीति अपनाते हैं, तो यह साम्राज्यवादी प्रभाव के अपने स्वयं के क्षेत्र को तराशने के लिए सबसे दृढ़ विरोधी शिविरों के बीच संघर्ष का लाभ उठाने की कोशिश करना है. जून 2022 में, स्वीडन, एक ऐसा देश जो 70 से अधिक वर्षों से आधिकारिक तौर पर तटस्थ रहा है, वह भी  नाटो में शामिल हो गया है, लेकिन उसने "किसी भी आदर्श के साथ विश्वासघात नहीं किया है", उसने अपनी साम्राज्यवादी नीति को "अन्य तरीकों से" जारी रखा है.

हथियारों के निर्माण में लगे निगमों के लिए युद्ध निश्चित रूप से अच्छा व्यवसाय है, और यह अस्थायी रूप से विशेष देशों को लाभान्वित भी कर सकता है, लेकिन समग्र रूप से पूंजीवाद के लिए, यह एक आर्थिक तबाही है, एक तर्कहीन बर्बादी है, एक घटाव की ओर क्रम है जो विश्व उत्पादन पर भारी पड़ता है और जो अनिवार्य रूप से और नकारात्मक रूप से कारण बनता है. ऋणग्रस्तता, मुद्रास्फीति और पारिस्थितिक विनाश, कभी भी ऐसा नहीं है जो पूंजीवादी संचय को बढ़ा सके.

प्रत्येक राष्ट्र के अस्तित्व के लिए युद्ध एक घातक आर्थिक भार,एक अपरिहार्य आवश्यकता है. संयुक्त    सोवियत संघ का पतन इस लिए हुआ क्योंकि यह संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ टकराव की पागल हथियारों की दौड़ का सामना नहीं कर सका और जो बाद में 1980 के दशक में स्टार वार्स कार्यक्रम की तैनाती के साथ चरम पर पहुंच गया. संयुक्त राज्य अमेरिका, जो द्वितीय विश्व युद्ध का महान विजेता था और 1960 के दशक के अंत तक एक शानदार आर्थिक उछाल का आनंद लिया था,  उसने अपने साम्राज्यवादी आधिपत्य को बनाए रखने के लिए कई बाधाओं का सामना किया है, निश्चित रूप से ,ब्लाकों के विघटन के बाद से, जिसने एक के उद्भव का समर्थन किया है. नई साम्राज्यवादी भूखों को फिर से जगाने की गति - विशेष रूप से अपने पूर्व 'सहयोगियों' के बीच - प्रतिस्पर्धा की और हर एक अपने लिए, बल्कि उस विशाल सैन्य प्रयास के कारण भी जो अमेरिकी सेना को 80 से अधिक वर्षों के लिए करना पड़ा है और इसके महंगे सैन्य अभियान हुए हैं विश्व की अग्रणी शक्ति के रूप में अपनी स्थिति को बनाए रखने का उपक्रम करना पड़ा.

पूंजीवाद अपने जीनों में, अपने डीएनए में, सबसे अधिक तीव्र प्रतिस्पर्धा, प्रत्येक के खिलाफ सभी और हर किसी के लिए, प्रत्येक पूंजीपति के लिए, साथ ही हर देश के लिए वहन करता है. पूँजीवाद की यह " जैविक" प्रवृत्ति अपने उत्कर्ष काल में स्पष्ट रूप से प्रकट नहीं हुई क्योंकि प्रत्येक राष्ट्रीय राजधानी को अभी भी अपने प्रतिद्वंद्वियों के साथ संघर्ष में प्रवेश करने की आवश्यकता के बिना अपने विस्तार के लिए पर्याप्त क्षेत्र प्राप्त थे. 1914-89 के बीच बड़े साम्राज्यवादी गुटों के गठन से यह कमज़ोर हो गया था. इस क्रूर अनुशासन के क्रूर अंत के साथ, केन्द्र प्रसारक प्रवृत्तियाँ जानलेवा अव्यवस्था की दुनिया को आकार दे रही हैं, जहाँ विश्व वर्चस्व की वैश्विक महत्वाकांक्षाओं के साथ कोई भी साम्राज्यवाद, साथ ही क्षेत्रीय ढोंगों के साथ साम्राज्यवाद, और अधिक स्थानीय साम्राज्यवाद सभी अपनी विशाल भूखों और अपने  हित का पालन करने के लिए मजबूर हैं. इस परिदृश्य में, संयुक्त राज्य अमेरिका अपनी भारी सैन्य शक्ति को लगातार तैनात करके, इसे लगातार बनाकर, और निरंतर, दृढ़ता से अस्थिर करने वाले सैन्य अभियानों को शुरू करके किसी को भी धुंधला करने से रोकने की कोशिश करता है.1990 में, सोवियत संघ रूस की समाप्ति के बाद, शांति और समृद्धि की "नई विश्व व्यवस्था" के वादे को तुरंत खाड़ी युद्ध और फिर मध्य पूर्व, इराक और अफगानिस्तान में युद्धों द्वारा विश्वास दिलाया गया, जिसने युद्ध जैसी प्रवृत्तियों को हवा दी. इस तरह की "दुनिया में सबसे लोकतांत्रिक साम्राज्यवाद", संयुक्त राज्य अमेरिका, अब युद्ध जैसी अराजकता फैलाने और विश्व की स्थिति को अस्थिर करने का मुख्य एजेंट है.

अमेरिका के नेतृत्व को चुनौती देने के लिए चीन पहले क्रम का दावेदार बनकर उभरा है. इसकी सेना, अपने आधुनिकीकरण के बावजूद, अभी भी अपने अमेरिकी प्रतिद्वंद्वी की ताकत और अनुभव हासिल करने से दूर है;  इसकी युद्ध तकनीक, इसके आयुध और प्रभावी सैन्य तैनाती का आधार अभी भी सीमित और नाजुक है, जो अमेरिका से बहुत दूर है; चीन प्रशांत क्षेत्र में शत्रुतापूर्ण शक्तियों (जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, ऑस्ट्रेलिया, आदि) की एक श्रृंखला से घिरा हुआ है, जो उसके साम्राज्यवादी समुद्री विस्तार को रोकते है. इस प्रतिकूल स्थिति का सामना करते हुए, इसने एक विशाल आर्थिक-साम्राज्यवादी उद्यम, सिल्क रोड की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य दुनिया के सबसे अस्थिर क्षेत्रों से गुजरते हुए  मध्य एशिया के माध्यम से एक वैश्विक उपस्थिति और भूमि विस्तार स्थापित करना है. यह एक बहुत ही अनिश्चित परिणाम के साथ एक प्रयास है जिसके लिए अपने नियंत्रण के साधनों से परे कुल और अथाह आर्थिक और सैन्य निवेश और राजनीतिक-सामाजिक लामबंदी की आवश्यकता होती है, जो अनिवार्य रूप से अपने राज्य तंत्र की राजनीतिक कठोरता पर आधारित है, स्टालिनवाद,  माओवाद की एक भारी विरासत अपनी दमनकारी ताकतों का व्यवस्थित और क्रूर उपयोग, ज़बरदस्ती और एक विशाल, अति-नौकरशाही राज्य तंत्र के अधीन होना, जैसा कि सरकार की "कोविद शून्य " नीति के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों की बढ़ती संख्या में देखा गया था. यह पथभ्रष्ट अभिविन्यास और अंतर्विरोधों का संचय है जो इसके विकास को गहराई से कमजोर करता है,  अंततः चीन के मिट्टी के पैर वाले कोलोसस को कमजोर कर सकता है. यह अमेरिका की क्रूर और धमकी भरी प्रतिक्रिया, जानलेवा पागलपन की डिग्री, बर्बरता और सैन्यवाद (सामाजिक जीवन के बढ़ते सैन्यीकरण सहित) में अंधी उड़ान की डिग्री को दर्शाती है, कि पूंजीवाद एक सामान्यीकृत कैंसर के लक्षण के रूप में पहुंच गया है जो सबको निगल कर दुनियाँ और अब सीधे तौर पर पृथ्वी के भविष्य और मानवता के जीवन के लिए खतरा है. 

तबाही का बवंडर जो दुनिया को डराता है.

यूक्रेन में युद्ध नीले आकाश से निकला तूफान नहीं है; यह 21वीं सदी की सबसे खराब महामारी (अब तक) के बाद है, कोविड, जिसमें 15 मिलियन से अधिक लोग मारे गए हैं, और जिसका कहर चीन में कठोर लॉकडाउन के साथ जारी रहा. हालाँकि, दोनों को उत्तेजना के साथ-साथ मानवता को प्रभावित करने वाली तबाही की एक श्रृंखला के संदर्भ में देखा जाना चाहिए: पर्यावरण विनाश; जलवायु परिवर्तन और इसके अनेक परिणाम; अकाल अफ्रीका, एशिया और मध्य अमेरिका में बड़ी ताकत के साथ लौट रहा है; शरणार्थियों की अविश्वसनीय लहर, जो 2021 में विस्थापित या पलायन करने वाले 100 मिलियन लोगों के अभूतपूर्व आंकड़े तक पहुंच गई; केंद्रीय देशों में व्याप्त राजनीतिक अव्यवस्था जैसा कि हमने ब्रिटेन में सरकारों यूक्रेन में केंद्रीय देशों में व्याप्त राजनीतिक अव्यवस्था,जैसा कि हमने ब्रिटेन में सरकारों या संयुक्त राज्य अमेरिका में लोकलुभावन नारों के भार  तथा सबसे दकियानूसी विचारधाराओं के उदय के साथ देखा है.    

महामारी ने उन विरोधाभासों को उजागर कर दिया है जो पूंजीवाद को कमजोर करते हैं. एक सामाजिक व्यवस्था जो प्रभावशाली वैज्ञानिक प्रगति का दावा करती है, उसके पास एकांतवास   की मध्ययुगीन पद्धति के अलावा कोई अन्य सहारा नहीं है, जबकि इसकी स्वास्थ्य प्रणालियाँ ध्वस्त हो गई हैं और इसकी अर्थव्यवस्था लगभग दो वर्षों से पंगु हो गई है, जिससे आसमान को  छूता आर्थिक संकट बढ़ गया है. एक सामाजिक व्यवस्था जो अपने झंडे के रूप में प्रगति का दावा करती है, सबसे पिछड़ी और तर्कहीन विचारधाराओं को जन्म देती है, जो हास्यास्पद साजिश के सिद्धांतों के साथ महामारी के चारों ओर फैल गई है, उनमें से कई "महान विश्व नेताओं" के मुंह से निकली हैं.

सबसे खराब पारिस्थितिक आपदा में महामारी का सीधा कारण है जो वर्षों से मानवता को खतरे में डाल रही है. मानव आवश्यकताओं की संतुष्टि से नहीं बल्कि लाभ से प्रेरित, पूंजीवाद प्राकृतिक संसाधनों तथा मानव श्रम  का शिकारी है, क्योंकि लेकिन साथ ही, यह प्राकृतिक संतुलन और प्रक्रियाओं को नष्ट करने की प्रवृत्ति रखता है, उन्हें अराजक तरीके से संशोधित करता है, एक जादूगर के प्रशिक्षु की तरह, तेजी से विनाशकारी परिणामों के साथ सभी प्रकार की तबाही को भड़काते हैं: ग्लोबल वार्मिंग, सूखा, बाढ़, आग, को बढ़ावा देने वाले  ग्लेशियरों और हिमखंडों का पतन, अप्रत्याशित परिणामों के साथ पौधों और जानवरों की प्रजातियों का बड़े पैमाने पर गायब होना और मानव प्रजातियों के बहुत गायब होने की सूचना देना जिससे पूंजीवाद आगे बढ़ रहा है. पारिस्थितिक आपदा युद्ध की आवश्यकताओं से, स्वयं युद्ध संचालन से (परमाणु हथियारों का उपयोग एक स्पष्ट अभिव्यक्ति है) और विश्व आर्थिक संकट के बिगड़ने से बढ़ जाती है, जो हर राष्ट्रीय राजधानी को कई क्षेत्रों को तबाह करने के लिए एक कच्चे मॉल की हताश खोज में मजबूर करता है. 2022 की गर्मी पारिस्थितिक स्तर पर मानवता के सामने गंभीर खतरों का एक स्पष्ट उदाहरण है: औसतन  और अधिकतम तापमान में वृद्धि - अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रिकॉर्ड शुरू होने के बाद से सबसे गर्म गर्मी - राइन, पोलैंड थेम्स जैसी नदियों को प्रभावित करने वाला व्यापक सूखा, विनाशकारी जंगल की आग,पाकिस्तान जैसी बाढ़ देश के सतह क्षेत्र के एक तिहाई हिस्से को प्रभावित करती है, भूस्खलन और, आपदा के इस विनाशकारी परिदृश्य के बीच, सरकारें युद्ध के प्रयास के नाम पर अपने हास्यास्पद 'पर्यावरण संरक्षण' उपायों को वापस ले लेती हैं.

1919 में कम्युनिस्ट इंटरनेशनल की पहली कांग्रेस द्वारा अपनाए गए घोषणा पत्र मे कहा: "उत्पादन के पूंजीवादी तरीके का अंतिम परिणाम अराजकता है. "वैज्ञानिक द्रष्टिकोण” के विपरीत  यह सोचना कि सभी विनाश विभिन्न कारणों से पैदा हुए एक अस्थायी प्रतिमान से अधिक और कुछ नहीं, आत्म्घाती और तर्कहीन है.यह गुजरने वाली घटनाओं के योग से अधिक, प्रत्येक अलग-अलग कारणों से उत्पन्न हुई एक निरंतरता है, अंतर्विरोधों का एक संचय है, जो उन्हें एक साथ बांधने वाला आम खूनी धागा बनाता है, जो मानवता के लिए बना खतरा एक घातक बवंडर में परिवर्तित हो जाता है.

-   हम पूँजीवाद के सभी अंतर्विरोधों को एक-दूसरे के साथ मिलाते हुए और विनाश और अराजकता के कारकों पर बढ़ते प्रभाव को भड़काते हुए देख रहे हैं;

-  अर्थव्यवस्था न केवल संकट में डूबी है, बल्कि बढ़ती अव्यवस्था (निरंतर आपूर्ति की अड़चनें, अतिउत्पादन की स्थितियों का अभिसरण और माल और श्रम की कमी) में भी डूबी हुई है;

- अधिकांश औद्योगीकृत देश, जिन्हें समृद्धि और शांति का मरुस्थल माना जाता है, अस्थिर हो रहे हैं और स्वयं अंतरराष्ट्रीय अस्थिरता में आश्चर्यजनक वृद्धि के प्रमुख कारक बन रहे हैं.

जैसा कि हमने अपनी 9वीं कांग्रेस (1991) के घोषणापत्र में कहा था: "मानव समाज ने पिछले दो विश्व युद्धों के दौरान इतने बड़े पैमाने पर कत्लेआम नहीं देखा है. कभी भी सेवा या विनाश, मृत्यु में इतने बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक प्रगति का उपयोग नहीं किया गया है और मानव दुख और धन का ऐसा संचय कभी भी साथ-साथ नहीं हुआ, वास्तव में, इस तरह के अकाल और पीड़ा के रूप में पिछले दशकों के दौरान तीसरी दुनिया के देशों में पैदा हुआ. लेकिन ऐसा लगता है कि मानवता अभी तक गहराई तक नहीं पहुंची है. पूँजीवाद के पतन का अर्थ है व्यवस्था की मृत्यु-पीड़ा, लेकिन इस पीड़ा का अपना एक इतिहास है: आज, हम अपने अंतिम चरण में पहुँच चुके हैं, सामान्य अपघटन का चरण। मानव समाज जहाँ खड़ा है, वहीं सड़ रहा है” [3]

सर्वहारा की प्रतिक्रिया

युद्ध से समाज के सभी वर्गों में सर्वहारा ही  सबसे अधिक प्रभावित होता है. “ आधुनिक युद्ध” एक विशाल औध्योगिक मशीन द्वारा छेड़ा गया है जो सर्वहारा वर्ग के शोषण की एक बड़ी तीव्रता की मांग करता है. सर्वहारा एक अन्तर्राष्ट्रीय वर्ग है जिसकी कोई मात्रभूमि नहीं, लेकिन मात्रभूमि के नाम पर लड़ा  मजदूर वर्ग शोषण और दमन  के लिए लडा जाने वाला युद्ध मजदूर वर्ग की हत्या है. सर्वहारा  वर्गीय चेतना से लैस एक वर्ग है; युद्ध तर्कहीन टकराव, सभी जागरूक विचारों और प्रतिबिम्बों का परित्याग है. सर्वहारा वर्ग की रूचि सबसे स्पष्ट खोज में है; सत्य, जंजीरों में जकड़ा साम्राज्यवादी प्रचार के झूठ से दम तोड़ता हुआ सत्य, युद्धों में सबसे पहले शिकार होता सर्वहारा वर्ग  भाषा, धर्म ,नस्ल  और राष्ट्रीयता की बाधाओं से परे एक वर्ग है; युद्ध का घातक टकराव ,राष्ट्रों और आबादी के बीच अलग्गाव, विभाजन टकराव को मजबूर करता है. सर्वहारा वर्ग, भरोसे और आपसी एकजुटता का वर्ग है, युद्ध संदेह,“विदेशी”का खौफ,“ दुशमन “ की सबसे डरावनी घ्रणा है.

क्योंकि युद्ध,सर्वहारा के अस्तित्व के मूल पर हमला कर उसे विकृत करता है. सामान्यीकृत युद्ध  सर्वहारा वर्ग की पूर्व हार को आवश्यक बनाता है. प्रथम विश्व युद्ध इसलिए संभव हुआ क्योंकि मजदूर वर्ग की तत्कालीन समाजवादी पार्टियाँ  ने ट्रेड यूनियनों  के साथ मिल कर हमारे वर्ग को धोखा दिया और  दुश्मन  के खिलाफ  संघ के ढाँचे उनके पूंजीपतियों से जुड़ गए. लेकिन यह विस्वासघात काफी नहीं था. 1915 में, सामाजिक लोकतंत्र के बाम पंथियों ने जिम्बरवाल्ड के साथ एक समूह बनाया और विश्वक्रांति के लिए संघर्ष का झंडा बुलद किया. इसने जन संघर्षों के विकास में योगदान दिया जिसने 1917 की क्रांति  का मार्ग प्रशस्त किया और 1919- 23 में  सर्वहारा वर्ग के हमले की विश्वव्यापी लहर; न केवल सर्वहारा अंतर्राष्ट्रीयता के सिद्धांतों  की रक्षा  में युद्ध के खिलाफ, बल्कि पूँजीवाद के खिलाफ मुखर हो कर शोषण की बर्बर  और अमानवीय  व्यवस्था को उखाड़ फेंकने की क्षमता रखता है.                         

1917-18 का एक अविनाशी सबक! प्रथम विश्व युद्ध कूटनीतिक बातचीत इस या उस साम्राज्यवादी शक्ति की विजय से समाप्त नहीं हुआ था.यह सर्वहारा के अन्तर्राष्ट्रीय क्रांतिकारी विद्रो द्वारा समाप्त हुआ था. इस बर्बरता को केवल सर्वहारा ही समाप्त कर सकता है.इसका वर्ग संघर्ष ही  पूँजीवाद का विनाश कर सकता है.

दूसरे विश्व युद्ध का रास्ता खोलने के लिए पूंजीपति वर्ग ने सर्वहारा वर्ग की न केवल भौतिक बल्कि वैचारिक हार भी सुनिश्चित की. सर्वहारा वर्ग निर्मम आतंक के अधीन था जहाँ कहीं भी उसके क्रांतिकारी प्रयास  आगे बढ़े थे; जर्मनी में नाजीवाद  रूस में स्टालिनवाद के तहत, साथ ही इसे फासीवाद विरोधी झंडे और “ समाजवादी पित्रभूमि” सोवित संघ रूस की रक्षा के पीछे , वैचारिक रूप से भर्ती किया गया था. “ अपना आक्रमण शुरू करने में असमर्थ मजदूर वर्ग को दूसरे साम्राज्यवादी युद्ध में हाथपैर बाँध कर झोंक दिया गया था. प्रथम विश्व युद्ध के विपरीत,दुसरे विश्व युद्ध ने मजदूर वर्ग क्रांतिकारी तरीके से ऊपर उठने के साधन  उपलब्ध नहीं कराए. इसके बजाय इसे,‘प्रतिरोध’‘फासीवाद विरोधी’ और औपनिवेशिक ‘रास्ट्रीय मुक्ति’      

आन्दोलन की ‘महान जीत’ के पीछे लामबंद किया गया.( आई सी सी की पहली अन्तराष्ट्रीय कांग्रेस का घोषणा पत्र 1975 ).

1968 में वर्ग संघर्ष की ऐतिहासिक बहाली के बाद से, और इस अवध के दौरान जब दुनियां दो साम्राज्यवादी गुटों में बंटी हुई थी तब प्रमुख देशों के मजदूरों ने युद्ध द्वारा मांगे गए बलिदानों को देने पितृ भूमि की रक्षा के लिए अकेले जाने से इनकार कर दिया. यह स्थिति, 1989 के बाद से नहीं बदली है.  

मंहगाई और युद्ध के खिलाफ संघर्ष  

हालांकि, युद्ध के लिए केन्द्रीय देशों के सर्वहारा वर्ग की”गैर-लामबंदी” पर्याप्त नहीं है. 1989 के बाद ऐतिहासक घटनाक्रमों से एक दूसरा सबक उभरता है: युद्ध संचालन के लिए केवल निष्क्रियता, और पूंजीवादी बर्बरता के लिए सरल प्रतिरोध पर्याप्त नहीं है. इस स्तर पर बने रहने से मानवता के विनाश की दिशा में पाठ्यक्रम नहीं रुकेगा.

सर्वहारा को पूँजीवाद के विरुद्ध आम अंतरर्राष्ट्रीय हमले के राजनैतिक क्षेत्र में जाने की आवश्यकता है. केवल “मजदूर वर्ग” ही  पूँजी के हमलों का जवाब देने में सक्षम होगा, और अंत में आक्रमण के इस बर्बर व्यवस्था को उखड़ फेंकेगा. धन्य है, वर्तमान ऐतिहासिक स्थिति में विशेष रूप से दाव पर क्या है, जिसके बारे में विशेष जागरूकता के नष्ट  होने का खतरा जो सामाजिक  विघटन पर मंडराता है; अपने वर्ग युद्ध को जारी रखने  विकसित करने औए एकजुट करने  का दृढ संकल्प को ; पूंजीपति वर्ग चाहे कितना ही विघठित क्यों न हो जाये,मजदूर वर्ग को अपने जाल में फंसाने की  क्षमता  बनाये रखता है. (सड़ांध पर थीसिस ,थीसिस 17)           

विनाश, बर्बरता और तवाही के संचय की प्रष्ठभूमि, जिसकी हम निंदा करते हैं, वह पूंजीवाद का अपरिवर्तनीय आर्थिक संकट, इसके कामकाज की जड में है  1967 से पूँजीवाद एक आर्थिक संकट में  फंस गया है जो पचास साल से बच नहीं पा रहा है.इसके विपरीत, जैसा कि 2018  से हो रही आर्थिक उथल- पुथल और बढती मुद्रास्फीति की वृद्धि से पता चलता है कि गरीबी,बेरोजगारी असुरक्षा और अकाल के अपने परिणामों के साथ स्थिति काफी बिगड़ रही है.   

पूंजीवादी संकट इस समाज की नींब को ही प्रभावित करता है.  मुद्रास्फीति,असुरक्षा बेरोजगारी नारकीय गति, मजदूरों के स्वास्थ्य,काम करने तथा रहने की बिगडती असहनीय स्थितियां मजदूर वर्ग के जीवन के निरंतर पतन की गवाही देती हैं. हालांकि, पूंजीपति वर्ग, सभी अकल्पनीय विभाजन बनाने की कोशिश करता है, कुछ को अधिक              “विशेषाधिकार प्राप्त” स्थिति प्रदान करता है, मजदूरों की श्रेणियां  जो हम इसकी मूर्खता में देखते हैं, एक और सम्भवतः पूँजीवाद के ऐतिहासिक परिप्रेक्षके बारे में मार्क्स द्वारा की गई भविश्यवाणी की सटीकता की पुष्टि करते हुए और जिसका अर्थशास्त्रियो और पूंजीपति वर्ग के अन्य विचारकों ने बहुत मजाक उड़ाया है.      

पूँजीवाद के संकट को निर्मम रूप से बिगाड़ना वर्ग संघर्ष और वर्ग चेतना के लिए एक आवश्यक प्रेरणा है. संकट के प्रभावों के खिलाफ संघर्ष मजदूर वर्ग की ताकत और एकता के विकास का आधार है. आर्थिक संकट सीधे समाज के बुनियादी ढांचे को प्रभावित करता है; इसलिए यह समाज पर लदे सभी बर्बरता के मूल कारणों को उजागर करता है जिससे सर्वहारा वर्ग व्यवस्था को पूरी तरह नष्ट करने की आवश्यकता के प्रति सचेत हो जाता है और उसके पहलुओं को सुधारने की कोशिश नहीं करता.

पूँजीवाद के क्रूर हमलों के खिलाफ संघर्ष में और आमतौर पर अंधाधुंध तरीके से मजदूरों को प्रभावित करने वाली मंहगाई के खिलाफ, मजदूर अपनी लडाकू क्षमता विकसित करेंगे, वे स्वंय को एक ताकत के साथ एक वर्ग के रूप में पहचानने में सफल होंगे, और स्वायत्तता और समाज में एक ऐतिहासिक भूमिका निभाने लिए वर्ग संघर्ष का यह ऐतिहासिक विकास उन्हें पूँजीवाद को समाप्त करके युद्ध को समाप्त करने की क्षमता प्रदान करेगा.  

अब यह परिप्रेक्ष उभरने लगा है: “ बुर्जुआ वर्ग के हमलों के के विरोध में, अब मजदूर  वर्ग का गुस्सा  बढ़ता जा रहा है और अब ब्रिटेन में मजदूर वर्ग दिखा रहा है कि एक बार फिर अपनी गरिमा के लिए लड़ने और पूँजी द्वारा मांग  किये जाने  वाले लगातार हो रहे बलिदानों को ख़ारिज करने के लिए तैयार है. यह अन्तराष्ट्रीय गतिशीलता का संकेत है. पिछली  शर्दियों में, स्पेन और अमेरिका में हड़तालें दिखाई देने लगीँ; इस गर्मी में जर्मनी और बेल्जियम ने भी वाकआउट का अनुभव किया, और अब टिप्पणीकार  आने वाले महीनों में फ़्रांस और इटली में “ विस्फोटक सामाजिक स्थिति “ की भविश्यवाणी कर रहे हैं. यह भविष्यवाणी करना संभव नहीं है कि निकट भविष्य में  मजदूरों का जुझारूपन कब और कहाँ बड़े पैमाने पर उभरेगा, लेकिन एक बात निश्चित है: ब्रिटेन में  श्रमिकों की लामबंदी का पैमाना एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है. अब निष्क्रियता और सपर्पण के दिन लद चुके हैं और मजदूरों की पीढियां अपना सर उठा रही हैं.(“ शासक वर्क वर्ग और अधिक बलिदानों की मांग करता है, मजदूर वर्ग की प्रातक्रिया  संघर्ष करना  है” आई सी सी , इंटरनेशनल लीफलेट. अगस्त 2022.)     

हम  निष्क्रियता और भटकाव के वर्षों में विराम देख रहे हैं. संकट के जवाब में मजदूरों में जुझारूपन  की वापसी कम्युनिस्ट संगठनों में हस्तक्षेप से  अनुप्राणित चेतना का  बन सकती है. यह स्पष्ट है कि समाज के सड़ने में टूटने की प्रतेक अभिव्यक्ति मजदूरों के जुझारू प्रयाशों को धीमा करने, यहाँ तक कि उन्हें पहले पंगु बनाने का प्रबंध करती है: जैसा कि महामारी से  प्रभातित फ़्रांस के 2019  के आन्दोलन में हुआ था. इसका अर्थ, संघर्षों के विकास के लिए अतिरिक्त कठिनाई है. हालाँकि, संघर्ष के अलावा और कोई रास्ता नहीं है,, संघर्ष ही पहली जीत है. विश्व सर्वहारा, अपने वर्ग शत्रु के राजनैतिक  और ट्रेड यूनियन तंत्रों द्वारा तय की गई वाधाओं और फंदों से भरी एक प्रक्रिया के माध्यम से भी, कड़वी हार के साथ , अपनी वर्ग पहचान को पुन: प्राप्त करने में सक्षम होने की अपनी क्षमताओं को बरकरार रखता है और अंत में इस मरनासन्न व्यवस्था के इसके खिलाफ एक अन्तर्राष्ट्रीय आक्रमण शुरू करता है.         

वाधाएं,जिन्हें वर्ग संघर्ष को पार करना है.

मजदूर आन्दोलन के ऐतिहासिक विकास क्रम में, वे देखते हैं कि इक्कीसवीं सदी का बीसवां दसक, काफी महत्वपूर्ण होगा. वे दिखाते हैं, जैसा कि अतीत की तुलना में 2020 से हमने पहले ही  अधिक  स्पष्ट रूप से  देखा है कि पूँजीवाद की सड़ांध ने मानवता के विध्वंस के परिप्रेक्ष को प्रस्तुत किया है. विपरीत ध्रुव पर सर्वहारा वर्ग अक्सर हिचकिचाहट और कमजोरियों से  भरे हुए अपने पहले कदम, साम्यवादी परिप्रेक्ष को सामने  लाने की  अपनी  ऐतिहासिक क्षमता की ओर उठाना शुरू कर देगा. विकल्प के दोनों ध्रुवों-मानवता का विनाश या साम्यवादी क्रांति को प्रस्तुत किया जायेगा, हालाँकि, उत्तरार्ध अभी भी बहुत दूर है और खुद को मुखर करने में भारी वाधाओं का सामना कर रहा है.   

1.  पूंजीपति वर्ग ने रूस की क्रांति के प्रारंभिक विजय के महान झटके और  1917-23 विश्व क्रांतिकारी लहर से सबक लिया है, जिसने 1848  में कम्युनिस्ट घोषणा पत्र “ एक भूत – साम्यवाद का भूत, यूरोप को सता रहा है  .... पूंजीपति वर्ग ... अपनी कब्र खोदने वाले सर्वहारा वर्ग को पैदा करता है, को  व्यवहार में  में उतारा है.

यह सर्वहारा के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग करता है जैसाकि 1917 (4) में रूस और 1918  में जर्मनी में या 1980 में पोलैंड में सामूहिक हड़ताल में देखा गया.

इससे ट्रेड यूनियनों और सभी राजनैतिक रंगों से बने  श्रमिकों के संघर्षों के नियंत्रण , विचलन और तोड़फोड़ का विशाल तन्त्र विकसित किया है जोकि अति दक्षिण पन्थ  से चरम वामपंथ तक है.  

सर्वहारा वर्ग की चेतना और संघर्षो का प्रतिकार  करने और बाधा डालने के उद्देश्य से निरंतर वैचारिक अभ्यं चलाने और राजनैतिक युद्धाभियासों को सवन्वित करने के लिए अपने राज्य और जनसंचार माध्यमों के सभी उपकरणों का उपयोग करता है.

2.  पूँजीवाद की सड़ांध, भविष्य में विश्वास की कमी को बढाता है. यह अपने आप में सर्वहारा वर्ग के  विश्वास को भी कमजोर करता है और पूँजीवाद को उखाड फेंकने में सक्षम एकमात्र वर्ग के रूप में अपनी ताकत में “ हर आदमी को अपने लिए” जन्म देता है, मजदूरों के संघर्षों के विकास  और सबसे बढ़  कर उनका क्रांतिकारी राजनीतिकरण में, सामान्यीकृत प्रतिस्पर्धा, विरोधी श्रेणियों में सामाजिक  विघटन , निगमवाद सभी वाधाएं हैं.

3 .  इस सन्दर्भ में, सर्वहारा को अंतर – वर्गवादी संघर्षों या टुकड़े-टुकड़े लामबंदी (नारीवाद, जातिवाद विरोधे, जलवायु या पर्यावरण संम्बन्धी सवालों ....) पूंजीपतियों के गुटों के बीच टकरावों में धकेल कर सर्वहारा के संघर्षों को भटकाने का दरबाजा खोलते हैं.

4 . “समय, मजदूर वर्ग के पक्ष में नहीं है. जब तक अकेले साम्राज्यवादी युद्ध से समाज के विनाश को  खतरा आसन्न था, तब तक सर्वहारा वर्ग के संघर्ष का तथ्य है कि सामाजिक विघटन मजदूर वर्ग को नियंत्रित किये बिना मानवता को नष्ट कर सकता है. क्योंकि जहाँ मजदरों  के संघर्ष अर्थव्यवस्था के पतन का विरोध कर सकते हैं. लेकिन, इसके विपरीत, जो साम्राज्यवादी युद्ध जो सर्वहारा द्वारा पूंजीपति वर्ग के ( सिद्धांत ) स्वीकार कर लेने की स्थिति में मजदूर वर्ग को नियंत्रित किए बिना ही सामाजिक सड़ांध को रोकने में शक्तिहीन हो जाता है. जबकि मजदूरों के संघर्ष, आर्थिक ढांचे को विघटित होने से रोक सकते हैं, तब वे व्यवस्था के अन्दर सड़ांध को रोकने में असमर्थ हो जाते हैं. इस प्रकार , सड़ांध द्वारा पेश की गया विश्व युद्ध का खतरा कहीं दूर दिखाई दे सकता है, इसके विपरीत स्थितियां मौजूद हैं, जो आज की स्थिति नहीं है) इसके विपरीत यह स्थिति अधिक घातक है.”

( सड़ांध पर थीसिस-16 )                                                                         

खतरों की इस विशालता को हमें भाग्यवाद में नहीं धकेलना चाहिए. सर्वहारा वर्ग की ताकत, उसकी कमजोरियां, उसकी कठिनाइयाँ उन वाधाओं की चेतना है जो दुश्मन या परस्थिति स्वयं उसके संघर्ष के खिलाफ खड़ा करती है.” सर्वहारा वर्ग की क्रांतियाँ ...लगातार खुद की आलोचना करती हैं, खुद को अपने रास्ते में लगातार वादा पैदा करती हैं, नये शिरे से शुरूआत करने के लिए पूर्णता की ओर लौटती हैं, वे निर्द्यता के साथ अपने पहले प्रयाशों के आधे- अधूरे उपायों, कमजोरियों और नगण्यता का उपहास उड़ाते हें. ऐसा लगता है कि वे अपने विरोधियों को केवल इसलिए गिरा देते हैं ताकि बाद वाला प्रथ्वी  से ऊर्जा प्राप्त कर सके और उसके सामने फिर से पहले से अधिक विशाल बन सके ,लगातार पीछे हटे, अपने स्वयं के लक्ष्यों की अनिश्चित- विशालता जब तक कि ऐसी स्य्थिति नहीं बन जाती जो सभी को पीछे मुड़ना असंभव बना देती है,और परस्थितियाँ स्वयं पुकारती हैं: हिच रोड्स, हिच साल्टा”. ( मार्क्स: लुइ बोनापार्टका 18वां ब्रूमेर)   

वामपंथी कम्युनिस्टों की प्रतिक्रिया

यूक्रेन जैसे दूरगामी युद्ध जैसी गंभीर ऐतिहासिक परस्थितियों में सर्वहारा यह देख सकता है कि कौन उसके दोस्त हें और कौन उसके दुश्मन. न केवल पुतिन, ज़ेलेंस्की या ब्राइडेन जैसी प्रमुख हस्तियाँ हैं, बल्कि अति दक्षिणपंथी वामपंथीम औरअति वामपंथी दल भी हैं जो शांतिवाद सहित एक साम्राज्यवाद खेमे के विरूद्ध दूसरे साम्राज्यवाद को सही सही, की तरह के तर्कों के साथ युद्ध का समर्थन  के साथ उसका औचित्य ठहराते हैं.

एक शताब्दी से भी अधिक समय से केवल कम्युनिस्ट वामपंथ ही साम्राज्यवादी युद्ध की व्यवस्थित और लगातार विरोद्श करने में सक्षम रहा है और विश्व सर्वहारा क्रांति द्वारा पूँजीवाद के विनाश की दिशा में सर्वहारा वर्ग के वर्ग संघर्ष के विकल्प का वचाव करता रहा है.

सर्वहारा का संघर्ष उसके रक्षात्मक संघर्षो या सामूहिक हड़तालों तक ही सीमित नहीं है. इसका एक अनिवार्य, स्थाई और अविभाज्य घटक इसके कम्युनिस्ट संगठनों का संघर्ष और, अब एक सदी के लिए कम्युनिस्ट वामपथ ही ठोस रूप है. मानवता के विनाश की पूंजीवादी गतिशीलता के सामने वामपंथी कम्युनिस्टों के सभी समूहों की एकता अपरिहार्य है. जैसा कि हम अपनी पहली कांग्रेस( १९७५ ) के मैनिफैस्टो में  ही पुष्टि कर चुके हैं:” संप्रदायों के एकेश्वरवाद से अपनी पीठ मोडते हुए, अन्तर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट करंट सभी देशों के कम्युनिस्टों का आव्हान करता है कि वे उनके सामने खडी उन अपार जिम्मेदारियों से अवगत हों उनसे बचने के लिए  झूठे झगड़ों, और पुरानी दुनियां द्वारा उन पर थोपे गये उन भ्रामक विभाजनों पर काबू पाने के लिए उनसे दूर रहें. आई सी सी उनसे इस प्रयाश में शामिल होने का आव्हान करता है. इससे पहले कि वर्ग अपने निर्णायक संघर्षों में सलग्न हो ) हिरावल  दस्ते के अन्तर्राष्ट्रीय और एकीकृत वर्ग संगठन के सबसे जागरूक अंश के रूप में कम्युनिस्टों को अपना नारा “ सभी देशों के क्रांतिकारियों एक हो”) के रूप में  मार्ग प्रशस्त करें.

 आई सी सी दिसम्बर 2022            

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(1)  1918 में जर्मनी क्रन्तिकारी कोशिश का मुकावला करते हुए  सामाजिक लोकवादी नोसके  कहा कि वे प्रतिक्रांति  के खून खराबा बनने  के लिए तैयार हैं.  

( 2 ) सड़ांध पर थीसिस-थीसिस 11

( 3 ) कम्युनिस्ट क्रांति या मानवता का विनाश

( 4  ) संयुक्त राज्य अमेरिका ,फ़्रांस , ग्रेट ब्रिटेन और  जापान की संयुक्त सेनाओं  ने अप्रैल 1918  से एक भयानक      गृहयुद्ध में पूर्व ज़ारिस्ट  सेना के अवशेषों के साथ सहयोग किया, जिसके कारण ६ मिलियन मौतें हुईं .