पूंजीपति वर्ग अपनी व्यवस्था की विफलताओं पर पर्दा डालने की कोशिश करता है!

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भारत के पूर्वी प्रान्त ओड़िसा के बालासोर शहर में तीन रेल गाड़ियों के आपस में टकरा जाने के कारण हुई भीषण ट्रेन दुर्घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. 2 जून 2023 को दो यात्री ट्रेनें, कोरोमंडल एक्सप्रेस और बेंगलुरू – हावड़ा सुपर- फ़ास्ट, एक्स्प्रेस बह्नागा रेलवे स्टेशन के पास एक मालगाड़ी से हुई शुरूआती टक्कर आपस में टकरा गईं. दिल को दहला देने वाले इस हादसे पर भारत सरकार ने एक बयान में बताया कि टक्कर में कम से कम 280 लोगों की जानें गईं और लगभग 1000 लोग बुरी तरह घायल हुए, साथ ही सरकारी प्रवक्ता ने यह भी कहा कुछ लोगों की मौत को गुप्त रखा जायेगा. आमजन, सरकार द्वारा, तमाम अन्य मामलों के बारे में जनता को दी जाने वाली सूचनाओं की भांति, इस  बयान पर भी  भरोसा नहीं कर रहे हैं. मिली जानकारी के अनुसार शालीमार – चेन्नई एक्सप्रेस लगभग 2500 यात्रियों को ले जा रही थी. इंजिन के पीछे वाले अनारक्षित डिब्बा जो दक्षिणके राज्यों में अपने कार्यस्थ्लों को लौट रहे, अधिकतर मजदूर यात्रियों से खचाखच भरा था, इसमें मृतकों की संख्या कहीं अधिक होने की आशंका जताई जा रही है. यह लगभग तीन दशकों की देश की सबसे भीषण दुर्घटना है. “पूंजीवादी सड़ांध के दवाब में अवर्णीय आपदायें और पीडाएं पहले से कहीं अधिक बढ़ रहीं हैं. जो 2020 के दशक की  शुरूआत में स्पष्ट रूप तेज हो गयी हैं” [1]”

 डिजिटल इण्डिया काधोखा

यह दुर्घटना उस समय हुई जब भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी देश के विशाल नेटवर्क और अन्य बुनियादी ढांचे के आधुनीकरण में उनकी सरकार के बड़े पैमाने पर निवेश के हिस्से के रूप में एक नयी हाई स्पीड ट्रेन, वन्दे भारत एक्सप्रेस का उद्घाटन  करने वाले थे.ओड़िसा की इस ट्रेन दुर्घटना ने डिजिटल इण्डिया का गुब्बारा फोड़ दिया. भारतीय रेलवे ने ही कुछ साल पहले “ ऑटोमैटिक सिग्नल प्रणाली “और इलेक्ट्रिक प्रणाली” का महिमा मंडन किया था.अब उस पद्धति की पोल खुल गई. पिछले साल रेल मंत्रालय ने एक भव्य समारोह में स्वचालित ट्रेन सुरक्षा( ए टी पी ) प्रणाली या “कवच प्रणाली” का शुभारम्भ किया था. उसमें यह दावा किया गया था कि दुर्घटनाओं से बचने के लिए यह एक “शर्तिया” उपाय है. इस ताजा आपदा ने पूँजीवादी झूठ को तार-तार कर दिया. दुर्घटना के पश्चात रेल मंत्रालय के प्रवक्ता अमिताभ शर्मा ने स्वीकार किया कि हादसे वाली ट्रेनों अथवा उस रूट वाली किसी ट्रेन में “कवच सिस्टम” चालू नहीं था. फिर क्या अर्थ है आधुनिक प्रौद्योगिकी का? इसका उत्तर साफ़ है कि राज्य  सुरक्षा उपायों पर खर्च करना फिजूलखर्ची समझता है. यह सभी को स्पष्ट है कि आधुनिक पूंजीवादी प्रौद्योगिकी सुरक्षा का उपाय नहीं है और यह विज्ञान और वैज्ञानिक अनुसन्धान का विकास मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए लक्षित नहीं है. बल्कि यह अधिकतम मुनाफा निचोड़ने की पूंजीवादी अनिवार्यता के अधीन है.

पूंजीवादी विशेषज्ञ, ट्रेन दुर्घटनाओं को निम्न प्रकार वर्गीकृत करते हैं : इस वर्गीकरण के अनुसार, इन हादसों के लिए ड्राइवर और सिग्नलमैन की असावधानियाँ, तकनीकी विफलता, बर्बरता, तोड़फोड़ और आतंकवाद, लेवल क्रोसिंग,का दुरूपयोग और अतिक्रमण बताये गये हैं. हाल की घटना के लिए रेलवे ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो द्वारा जांच की सिफारिश की है. इस जांच का घोषित लक्ष्य यह पता लगाना और स्थापित करना है: क्या दुर्घटना के पीछे इलेक्ट्रिक लाकिंग सिस्टम में खराबी तकनीकी थी या यह मानवीय हस्तक्षेप का परिणाम था जो संभावित आतंकवादी कनेक्शन का संकेत देता है. जांच का यह एंगिल, तोड़फोड़ का यह सिद्धांत और सीबीआई जांच सरकार को आगामी चुनाव वर्ष में रेल मंत्रालय की सुर्खियाँ फायदेमंद साबित होने वाली हैं. आगामी  2024 के चुनाव के लिए सरकार की संचार रणनीति के प्रमुख घटकों में से एक वन्दे मातरम का वह चमकदार बेडा है जो मोदी सरकार के तहत विकास का व्यापक वादा करता है.

भारतीय रेल की खस्ता हालत

आर्थिक विकास के मामले में भारत आज विश्व के लिए अनुकरणीय मॉडल बना हुआ है. दुनिया के लिए इस अनुकरणीय मॉडल का यदि हम भारतीय रेलवे के यात्रियों की सुरक्षा के लिए किये गए उपायों के परिप्रेक्ष में मूल्यांकन करें, तो तस्वीर उल्टी ही नजर आती है. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरों के आंकड़ों के अनुसार,पिछले दस वर्षों में भारत में हुई रेल दुर्घटनाओं में लगभग 26,000 लोग अपनी जाने गँवा चुके हें. हमें यह भी याद रखना चाहिए कि भारतीय रेलवे देश की जीवन रेखा है. यही रेलवे  भारत की अर्थव्यवस्था के बुनियादी ढाँचे और परिवहन प्रणाली में सुधार के लिए उत्पेरक के रूप में कार्य करता है. तब सवाल है कि राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए इतने महत्वपूर्ण रेलवे नेटवर्क में यात्री सुरक्षा इतनी खराब क्यों है? दरअसल, रेलवे की आर्थिक कमाई उसके यात्रियों पर निर्भर करती है. रेलवे की टिकटों की कीमत दिन पर दिन बढती जा रही है, जबकि सेवा की गुणवत्ता में तेजी से गिरावट देखी जा रही है. टिकट रद्द करने का पैसा शायद ही कभी ही वापस किया जाता है. शायद ही ऐसी कोई ट्रेन होगी जहां यात्रियों ने शौचालय की दयनीय स्थिति को ले कर शिकायत न की हो.पटरियों को उन्नत करने, ट्रेनों में भीडभाड कम करने या नई ट्रेनें जोड़ने पर कम पैसा खर्च किया जाता है. देखा गया है कि एक ही ट्रेन का नाम बदल कर रेलवे के बेड़े का बड़ा रूप दिखाने का भ्रम पैदा किया जाता है. रेल विभाग ने कम लागत पर आकस्मिक अप्रश्क्षित श्रमिकों के साथ काम जारी रखने की कोशिश की है, जिससे अपर्याप्त संख्या में श्रमिकों पर काम का भार बढ़ता जा रहा है. परिणामस्वरूप, उन्हें आराम के लिए समय में कटौती करनी पड़ रही है. कभी जिस  रेलवे में 22.5 लाख कर्मचारी कार्यरत थे, आज घट कर उनकी संख्या मात्र 12 लाख रह गई है.[2] रेलवे के कई स्कूल, अस्पताल, प्रिंटिंग प्रेस और अन्य कार्यालय और रेलवे से जुड़े कारखाने पूरी तरह बंद कर दिए गए है या “आउटसोर्स” कर दिए गए हैं. इसके प्रशासन में भर्ती लगभग बंद हो गई है. रेलवे के 17 जोनों में से प्रत्येक में जनरल स्टोर डिपो जिनमें 3000 से 4000 कर्मचारी कार्यरत थे, बंद कर दिए गए हैं. इस विषय पर किसी ने तनिक भी नही सोचा कि इतने कम स्टाफ से कैसे काम लिया जा सकता है. कम मजदूरों को नियोजित  करने से अमानवीय दवाब बढ़ गया है.       

पूंजीवादी वामपंथी राज्य से अपील करते हैं

पूंजीवादी वामपंथियो का कार्य सिर्फ घायल लोगों के लिए राज्य से मानवीय सहायता प्रदान किये जाने की मांग तक ही सीमित है. भारतीय स्तालिनवादी ( मार्क्सवादी ) ने सभी संबंधित अधिकारियों से घायलों को शीघ्र और तत्काल चिकित्सा सहायता सुनिश्चित करने और मरने वालों की  संख्या में वृद्धि रोकने का आव्हान किया. वामपंथी स्वयं पूँजीवादी राज्य का अभिन्न अंग होने के कारण आमतौर पर विशेष सरकारों या राजनैतिक गुटों को समस्या का कारण मानते हैं.

मजदूर वर्ग को अपने दैनिक अनुभव से अहसास होता है कि बुर्जुआ राज्य के लिए मजदूरों के जीवन का कोई महत्व नहीं. इस लिए वामपंथी और यूनियन कार्यकर्ताओं की चेतना को संसदीय चुनावी प्रक्रिया की और मोड़ने के लिए हर संभव प्रयास  करते हैं. तिहरी रेल दुर्घटना में अधिकाँश पीड़ित      प्रवासी श्रमिक ही थे जिनकी म्रत्यु के पश्चात् पहचान नहीं हो पायी क्योंकि वे अनारक्षित डिब्बे के यात्री थे. आज,जब संपूर्ण नागरिक समाज उथल-पुथल की स्थिति में है, व्यवस्था बदलने का दायित्व  मजदूर वर्ग के कंधों पर है. ऐसी स्थिति में दुर्घटना के असली सूत्रधार पूंजीवादी राज्य की नग्न संशयवादिता को सभी के सामने नंगा किया जाना यही एक मात्र कार्य बनता है.  

भारतीय मजदूर वर्ग एक अंतर्राष्ट्रीय वर्ग का हिस्सा है

सर्वहारा वर्ग सड़ांध की सभी अभिव्यक्तियों के फलस्वरूप आर्थिक संकट के दवाब के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में अपने कामकाजी और जीवनयापन करने की स्थिति पर हमलों का पूरा प्रभाव झेल रहा है.वर्तमान दुर्घटना ने स्पष्ट कर दिया है कि पूँजीवाद के भीतर किसी  भी समस्या का कोई समाधान नहीं है. भारत में रेल कर्मचारियों के संघर्ष का एक गौरवमयी लम्बा इतिहास है. मजदूर वर्ग के अन्य भाग उनके अनुभवों तथा दुनियाँ के अन्य श्रमिक वर्ग के तजुर्बों से सीख ले सकते हैं. ग्रीस, एथेंस,थिस्सलुनी में सड़कों पर हुए प्रदर्शनों में हजारों लोगों ने भाग लिया, साथ में रेल कर्मचारियों ने स्वत: हड़तालें कीं और स्वास्थ्य से ले कर शिक्षा तथा अन्य क्षेत्रों के मजदूरों को संघर्ष में शामिल होने का आव्हान किया और यह जो कुछ हुआ ऐसा गत दस सालों में देखा जा रहा है. इन विरोध प्रदर्शनों में सुने गये नारों में श्रमिकों की प्रतिक्रिया थी: "यह मानवीय भूल नहीं थी, यह कोई दुर्घटना नहीं थी, यह एक अपराध था!" "हत्यारों की इस सरकार का नाश हो !" " मित्सोटाकिस अपराध मंत्री है !"  भारत में होने वाले मजदूरों के संघर्ष अंरराष्ट्रीय संघर्षों का हिस्सा हैं. ये संघर्ष न केवल ग्रीस में ही नहीं देखे गये बल्कि समान दुश्मन के साथ, समान व्यवस्था से मुकाबला करने और उसे  उखाड़ फेंकने के लिए ब्रिटेन, फ़्रांस और उसके बाहर भी जारी संघर्षों में देखा जाता है.         

सी आई .14/6/ 23


[1]  देखिये ; पूंजीवादी सड़ांध की गति मानवता के विनाश की स्पष्ट संभावना उत्पन्न करती है                 

[2]  22.5 लाख = 22.5 x 100,000 = 2,250,000 . 12 लाख = 12 x 100,000 = 1,200,000