चीन में सरकार द्वारा त्यानआनमेन चौक पर शोषित आबादी का नरसंहार

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मजदूरों का कोई देश नहीं होता।                            दुनिया के मजदूरों एक हो।

चीनी पूँजी द्वारा बर्बर कत्‍लेआम

मजदूर साथियों,

चीनी पूँजीपति वर्ग के सत्ताधारी धड़े द्वारा राज्‍य पूँजीवादी के शोषण-उत्‍पीड़न के खिलाफ संघर्षरत छात्रों-मजदूरों के बहशियाना कत्‍लेआम ने समूची दुनिया के शोषितों को झकझोर कर रख दिया है। इस घटना ने चीनी शासक वर्ग का नकाब नोच फेंका है तथा नीचे छीपे घिनौने शोषणकारी चेहरे को उजागर कर दिया है। इसने उस बात को अन्तिम रूप से सिद्ध कर दिया है जो हम कम्‍युनिस्‍ट पिछले 50 से भी अधिक सालों से दोहराते आए है : कि अर्थव्यवस्‍था पर सरकार का कंट्रोल या राष्‍ट्रीयकरण समाजवाद नहीं होता, यह पूँजीवादी लूट का ही एक रूप, राज्‍य पूँजीवादी रूप है, कि इन उपायों की प्रेरक स्‍तालिनवादी, त्रात्‍सकीवादी, माओवादी-तेंगवादी तथा अन्‍य धाराएँ पूँजीपति वर्ग के ही धड़े हैं, कि उनका मजदूर वर्ग तथा उसकी मुक्ति की लड़ाई से वास्‍ता बस पूँजी के पहरेदारी के रूप में है।

मजदूर वर्ग, दूसरे शोषित तबको के अनियन्त्रित विस्‍फोट तथा उनका बहशी दमन सिर्फ चीन तक सीमित नहीं। पूँजी द्वारा अपने शोषण तथा दमन को एक नई तेजी, एक बढ्ती उग्रता देने के खिलाफ आज भड़क रहे आन्‍दोंलनों से शासक वर्ग पूरी दुनिया में इसी बर्बरता से पेश आ रहा है। ब्राजील, वेनजुएला, दक्षिणी कोरिया, जोरड़न, अरजन्‍टीना आदि में पूँजी द्वारा मजदूरों-महेनतकशों पर आम-फहम हमले, सभी वस्‍तुओं की कीमतों में कई-कई गुणों बढ़ोतरी की घोषणा के खिलाफ फूटे आन्‍दोलन तथा उनका बर्बर दमन इसके अन्‍य हालिया उदाहरण हैं।

पूँजीवादी अर्थव्‍यवस्‍थाओं का सड़न

विश्‍व पूँजीवादी व्‍यवस्‍था अपने तीखे होते अंतर्विरोधों के कारण पिछले 20 सालों से एक बार फिर लगातार संकट की दलदल में धँसती गई है। विश्‍व पूँजी को संकट से उभारने के लिए शासकवर्ग रंग-बिरंगी नीतियों का सहारा लेता रहा है। एक अरसे तक विश्‍व पूँजी ने राज्‍य पूँजीवादी उपायों, राष्‍ट्रीयकरण आदि, जिसे समाजवाद के नाम से प्रचारित किया गया, को सहारा बनाया। लेकिन इन उपायों के बावजूद संकट और उग्र तथा बेकाबू होता गया, आसमान छूते सरकारी कर्ज, बढ़ती बेरोजगारी, आर्थिक ठहराव। तब पूँजी ने पासा बदला। खुलेपन, अर्थव्‍यवस्‍था का पुनरगठन तथा निजीकरण को नए रामबाणों के रूप में पेश किया गया। चीन में तेग ने, वही जल्‍लाद जो अब चीनी जनता के कत्‍लेआम का संचालक है, सारी दुनिया के शासकों की प्रशंसा पाते हुए उन्‍हें लागू किया। लेकिन नीतियों की इन सारी उल्‍टफेर के बावजूद विश्‍व पूँजीवादी अर्थव्‍वस्‍था, अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, ब्राजील, मैक्‍सीको, चीन, भारत आदि समेत,  ध्‍वंस के कगार पर पहुंच गई है। पूँजी की सभी नीतियाँ दिवालिया हो गई हैं।

अपने आर्थिक-सामाजिक ढांचे की सड़न से छटपटाती पूँजी के सामने एक ही लकीर, एक ही रास्‍ता, जो अन्‍य नीतियों का भी महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा था, उभरा है – मजदूर वर्ग तथा अन्‍य शोषित तबकों की जीवन अवस्‍थाओं पर अटल रूप से उग्र होते हमले।

पूँजी के हमले तथा सामाजिक विस्‍फोट

कीमतों में आमफहम, सुनियोजित बढ़ोतरी, बढ़ती बेरोजगारी, सामाजिक सुविधओं में कटोती मजदूर वर्ग तथा अन्‍य शोषित तबकों को पूँजी के खिलाफ निरन्‍तर बढ़ते संघर्षों की राह डाल रहे हैं। सामाजिक आर्थिक सड़न से उत्‍पन्‍न भविष्‍य की अनिश्चितता अन्‍य मेहनतकश तबकों को गहरी बेचैनी तथा गुस्‍से से भर रही है। विभिन्‍न तत्‍वों का मेल एक विस्‍फोटक सामाजिक हालात को जन्‍म दे रहा है। वेनेजुएला, बराजील, अरजन्‍टीना, जोरड़न आदि में सामाजिक विस्‍फोट, जिनका नाभिक था मजदूर वर्ग, तथा पौलेण्‍ड, दक्षिणी कोरिया, फ्रांस, ब्रिटेन, भारत आदि में मजदूर संघर्ष इसी विश्‍वव्‍यापी-स्थिति का परिणाम हैं। इसी का परिणाम है चीनी विस्‍फोटन।

किसी स्‍पष्‍ट परिदृश्‍य की कमी के कारण ये उभार् ना सिर्फ पूँजी की गुटीय लड़ाई में मोहरे बन जाते हैं बल्कि इनमें उभरे जुझारुओं को, उनकी दिशाहीनता के कारण, जज्‍ब करके पूँजी सामाजिक कंट्रोल के नए औजार गढ़ने का प्रत्‍यन करती है -पैलेण्‍ड में सालिडैरटी, रुस, चीन, लातिनी अमेरिका में जनवादी मिथकों का नवीनीकरण। लेकिन पूँजी का कोई भी गुट ‘जनवादी’ अथवा ‘तानाशाही’, भ्रष्‍ट अथवा ‘पाक-साफ’, मजदूर वर्ग के शोषण-दमन में अपने विरोधी गुट के पीछे नहीं। फ्रांस सरकार द्वारा हड़ताली रेलवे मजदूर के खिलाफ सेना का प्रयोग, भारतीय पूँजी द्वारा हड़ताली डीटीसी मजदूरों का बर्बर दमन इसके गवाह हैं।

चीन की घटनाओं ने एक बार फिर यह बात साफ कर दी है कि वे सब आन्‍दोलन जिनमें, अपनी भारी सक्रियता के बावजूद, मजदूर वर्ग अपने वर्ग परिप्रेक्ष्‍य को नहीं उभार पाता, अन्‍धीगली में फँसकर पराजय तथा हताशा का शिकार बन जाते हैं।

मजदूर वर्ग ही राह दरसा सकता है

पूँजीवादी उत्‍पादन प्रणाली में अपनी स्थिति के कारण न केवल मजदूर वर्ग ही पूँजी के मर्म पर चोट कर सकता है बल्कि वही पूँजी के खिलाफ एक स्‍पष्‍ट रास्‍ता रखता है। समाज के अन्‍य शोषित उत्‍पीडि़त तबकों का असंतोष तथा उनका संघर्ष मजदूर वर्ग के रास्‍ते, उसके वर्ग परिदृश्‍य के गिर्द एकजुट होकर ही कोई सार्थक भूमिका अदा कर सकता है।

देश, धर्म, जाति के बन्धन तोड़, यूनियनी-वामपंथी मिथकों-प्रपंचों को भेद, अपने वर्ग-धरातल से, अपनी वर्गीय माँगों के लिए लड़ता हुआ मजदूर वर्ग ही पूँजी के हमलों को पीछे धकेल सकता है तथा अपने वर्ग परिदृश्‍य को समाज के बीच स्‍थापित कर सकता है। अपने इस वर्ग परिदृश्‍य के आधार पर ही वह पूँजी को एक जबरदस्‍त चुनौती पेश कर सकता है तथा अन्‍त में पूँजीवादी सम्‍बन्‍धों के विश्‍वव्‍यापी विनाश के जरिए मानवजाति को शोषण, राजनीतिक उत्‍पीडन, बर्बरता से निजात दिला सकता है। तथा खुशहाली और आजादी की उसकी आकांक्षाओं को पूरा कर सकता है।

1. पूँजीवाद चीनी माडल हो या रूसी; भारतीय माडल हो या अमेरिकी, मजदूरों का शोषक है।

2. ‘जनवादी’ हों या ‘तानाशाही’ – पूँजी के सभी गुट मजदूरों के दुश्‍मन हैं।

3. पूँजी के खिलाफ संघर्ष में मजदूरों का हथियार है उनकी एकता।

4. इस हथियार का प्रयोग ही पूँजी के दमनकारी पंजे को छिन्‍न-भिन्‍न कर सकता है।

          

कम्‍युनिस्‍ट इंटरनेशनलिस्‍ट 13 जून 1989, सम्‍पर्क -- पोस्‍ट बाक्‍स नं 25, एनआईटी, फरीदाबाद, हरियाणा

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