कड़की की नीतियों का जवाब - वर्ग संघर्ष

इस वक्त ग्रीस में भारी जनाक्रोश भड़क रहा है और वहाँ के सामाजिक हालात विस्फोटक हैं। ग्रीस का शासक वर्ग वर्किंग क्लास पर खूब कहर बरपा कर रही है। हर पीढी, हर क्षेत्र व हर वर्ग पर इसकी भारी बुरी मार पड रही है। निजी क्षेत्र के मजदूर, सरकारी मजदूर, बेरोजगार, पेंशनभोगी, अस्थाई-ठेके पर काम करने वाले छात्र... किसी को भी इसने नहीं बक्शा है....

दक्षिण कोरिया के शासक वर्ग ने ‘प्रजातन्त्र’ का नकाब उतारा

हमें कोरिया से अभी-अभी खबर मिली है कि कोरिया की सोस्लिस्ट वर्कर्स लीग (Sanoryun) के 8 जुझारू दक्षिण कोरिया के ‘राष्ट्रीय सुरक्षा कानून’1 के तहत गिरफ्तार कर लिए गए हैं ऒर ऊन्हे 27 जनवरी को सजा सुनाई जानी है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह एक राजनीतिक मुकद्दमा है, ऒर यह, शासक वर्ग जिसे ‘न्याय’ कहता है, उसका एक मजाक है। इस हकीकत के तीन सबूत हैं:

यूनियन नियंत्रण से बाहर संघर्ष की कोशिश

हाल ही के कार्रवाई दिवस पर हममें से हजारों ने मुजाहिरे व हडतालें की। सरकार फिर भी पीछे नहीं हटी। एक जनआंदोलन ही उसे पीछे हटने को मज़बूर कर सकता है। यह सोच उभरी हैं अनिश्चितकालीन, आम, पुननिरीक्षित होती हडतालों तथा अर्थव्यवस्था को ठप्प करने के मुद्दे पर विचार विमर्श के बाद....

राष्ट मंडल खेल और मजदूरों के शोषण की हकीकत

दिल्ली के राष्ट मंडल खेल स्थल पर खिलाडियों के ठहरने व अन्य सुविधाओ की खस्ता हालत को लेकर मीडिया मे बहुत बडा कांड बानाया जा रहा .....लेकिन यह कांड खेल स्थल पर निर्माण कार्यो में लगे मजदूरों द्वारा झेले जा रहे हालातों के सामने कुछ भी नहीं ...

लंदन में छात्र मजदूर प्रर्दशन

नीचे जो पर्चा दिया जा रहा है वह सोमवार 15 नवम्बर को वाम पक्ष के संगठनों के संरक्षण में किंग्स कालेज में हुयी सभा के दौरान बांटा गया था ..... आई सी सी के टुलोज सेक्शन, जो कि प्रदर्शनों के दौरान हुयी सभाओं व समितियों में काफी सक्रिय था, का एक कॉमरेड मीटिंग में बोल पाया और फ्रांसीसी यनियनों की रणनीति की आलोचना के बावजूद उसने बडे पैमाने पर तारीफ हासिल की......

ओवामा प्रशासन की विदेश नीति - दोस्ती का मुक्का

अमेरिकी साम्राज्यवाद दुनियां भर में तथाकथित दोस्तों और दुश्मनों से समान रूप से उत्तरोतर समस्याओं से धिरता चला जा रहा है। बुश प्रशासन की “अकेला चलो’’ की नीति के बाद, 18 महीने पहले हुये ओवामा के चुनाव से यह अनुमान था कि अंतर्राष्ट्रीय अखाडे में वह दाँव पेच के लिये ठोस घरातल स्थापित करने के लिये समय का जुगाड कर लेगा।

कश्मीर - राष्ट्रवादी टकरावों के बावजूद्, साढ़े चार लाख मजदूरों द्वारा स्थापित अपना वर्ग अस्तित्व

कई दशकों से जम्मू और कश्मीर में पूंजीपति वर्ग के दो परस्पर विरोधी गिरोह एक ओर “राष्ट्रीय एकता’’ के नाम पर तो दूसरी ओर, कश्मीर की “आजादी”’ के नाम पर शोषित अवाम का खून बहाने में व्यस्त हैं। इसने “गुलाबों की इस घाटी” को मौत, तबाही, कंगाली और अफरातफरी की घाटी में बदल दिया है। सैकडों, हजार लोग हिंसक रूप से उखड फेंके गये तथा कश्मीर से भागने को मज़बूर किये गये, या तो कश्मीरी हिंदुओं के खिलाफ निर्देशित जातीय शुद्धीकरण की प्रक्रिया द्वारा अथवा जीविका की तलाश में कश्मीर से पलायन को मजबूर आतंकित मुस्लिम के रुप में। अलगाववादियों और भारतीय राज्य ने हमेशा ही मजदूरों के अस्तित्व और उसके संघर्षों को इस भ्रमजाल के जरिये नकारने की कोशिश की कि कश्मीर में इन खूनी गिरोहों द्वारा लडे जाने वाला संघर्ष ही एकमात्र संधर्ष है।

आईसीसी की पान एशियन कांफ्रेंस

फरबरी 2010 के मध्य आईसीसी ने अपने एशियन सेक्शनों की एक कांफ्रेंस आयोजित की।......कांफ्रेंस में फिलिपीन्स, टर्की तथा भारत में आईसीसी के सेक्शनों ने हिस्सा लिया। हमें आस्ट्रेलिया के एक इन्टरनेशनलिस्ट ग्रुप के प्रतिनिधि तथा भारतीय सेक्शन के कई हमदर्दों का स्वागत करके खुशी हुई। यद्यपि शामिल साथियों की संख्या कोई बहुत बडी नहीं थी, फिर भी यह एशिया में कम्युनिस्टों और अंतरराष्ट्रीयतावादियों की अब तक की संभवतया सबसे बडी सभाओं में से थी।....जैसे कुछ साथियों ने व्यक्त किया, पान एशियन कांफ्रेंस में आईसीसी की एक लधु कांग्रेस का रुप दिखाई दिया।....

कोलकता में जूट मज़दूरों का संघर्षः यूनियनी तोड़फोड़ का शिकार

कोलकता और उसके आसपास दिसम्बर 2009 से लगभग 2,50,000 जूट मिल मज़दूर बेहतर वेतन, बडी संख्या में ठेका मज़दूरों को स्थायी किये जाने, सेवानिवृत्ति की सुविधायें तथा अपने जीवन एवं काम करने की परिस्थितियों से सम्बन्धित अन्य प्रश्नों को ले कर हदताल पर थे ...

कड़की की “औषधि’’ के खिलाफ: वर्ग संघर्ष!

ग्रीस में गुस्सा उबाल पर है और सामाजिक स्थिति विस्फोटक। ठीक इस वक्त, ग्रीस सरकार मज़दूर वर्ग पर ताबडतोड हमलों की वौछार कर रही है। मज़दूर वर्ग की सभी पीढियों, सभी भागों को बुरी तरह कुचला जा रहा है। मज़दूर चाहे निजी क्षे़त्र के हों अथवा सार्वजनिक क्षेत्र के, बेरोजगार हों या पेंशनभोगी, चाहे वे अस्थायी संविदा पर काम करने वाले विद्यार्थी ही क्यों न हों, किसी को भी नहीं बख्शा जा रहा है। मज़दूर वर्ग भयंकर गरीबी के खतरे की चपेट में है...

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