लंदन में छात्र मजदूर प्रर्दशन

नीचे जो पर्चा दिया जा रहा है वह सोमवार 15 नवम्बर को वाम पक्ष के संगठनों के संरक्षण में किंग्स कालेज में हुयी सभा के दौरान बांटा गया था ..... आई सी सी के टुलोज सेक्शन, जो कि प्रदर्शनों के दौरान हुयी सभाओं व समितियों में काफी सक्रिय था, का एक कॉमरेड मीटिंग में बोल पाया और फ्रांसीसी यनियनों की रणनीति की आलोचना के बावजूद उसने बडे पैमाने पर तारीफ हासिल की......

ओवामा प्रशासन की विदेश नीति - दोस्ती का मुक्का

अमेरिकी साम्राज्यवाद दुनियां भर में तथाकथित दोस्तों और दुश्मनों से समान रूप से उत्तरोतर समस्याओं से धिरता चला जा रहा है। बुश प्रशासन की “अकेला चलो’’ की नीति के बाद, 18 महीने पहले हुये ओवामा के चुनाव से यह अनुमान था कि अंतर्राष्ट्रीय अखाडे में वह दाँव पेच के लिये ठोस घरातल स्थापित करने के लिये समय का जुगाड कर लेगा।

कश्मीर - राष्ट्रवादी टकरावों के बावजूद्, साढ़े चार लाख मजदूरों द्वारा स्थापित अपना वर्ग अस्तित्व

कई दशकों से जम्मू और कश्मीर में पूंजीपति वर्ग के दो परस्पर विरोधी गिरोह एक ओर “राष्ट्रीय एकता’’ के नाम पर तो दूसरी ओर, कश्मीर की “आजादी”’ के नाम पर शोषित अवाम का खून बहाने में व्यस्त हैं। इसने “गुलाबों की इस घाटी” को मौत, तबाही, कंगाली और अफरातफरी की घाटी में बदल दिया है। सैकडों, हजार लोग हिंसक रूप से उखड फेंके गये तथा कश्मीर से भागने को मज़बूर किये गये, या तो कश्मीरी हिंदुओं के खिलाफ निर्देशित जातीय शुद्धीकरण की प्रक्रिया द्वारा अथवा जीविका की तलाश में कश्मीर से पलायन को मजबूर आतंकित मुस्लिम के रुप में। अलगाववादियों और भारतीय राज्य ने हमेशा ही मजदूरों के अस्तित्व और उसके संघर्षों को इस भ्रमजाल के जरिये नकारने की कोशिश की कि कश्मीर में इन खूनी गिरोहों द्वारा लडे जाने वाला संघर्ष ही एकमात्र संधर्ष है।

आईसीसी की पान एशियन कांफ्रेंस

फरबरी 2010 के मध्य आईसीसी ने अपने एशियन सेक्शनों की एक कांफ्रेंस आयोजित की।......कांफ्रेंस में फिलिपीन्स, टर्की तथा भारत में आईसीसी के सेक्शनों ने हिस्सा लिया। हमें आस्ट्रेलिया के एक इन्टरनेशनलिस्ट ग्रुप के प्रतिनिधि तथा भारतीय सेक्शन के कई हमदर्दों का स्वागत करके खुशी हुई। यद्यपि शामिल साथियों की संख्या कोई बहुत बडी नहीं थी, फिर भी यह एशिया में कम्युनिस्टों और अंतरराष्ट्रीयतावादियों की अब तक की संभवतया सबसे बडी सभाओं में से थी।....जैसे कुछ साथियों ने व्यक्त किया, पान एशियन कांफ्रेंस में आईसीसी की एक लधु कांग्रेस का रुप दिखाई दिया।....

कोलकता में जूट मज़दूरों का संघर्षः यूनियनी तोड़फोड़ का शिकार

कोलकता और उसके आसपास दिसम्बर 2009 से लगभग 2,50,000 जूट मिल मज़दूर बेहतर वेतन, बडी संख्या में ठेका मज़दूरों को स्थायी किये जाने, सेवानिवृत्ति की सुविधायें तथा अपने जीवन एवं काम करने की परिस्थितियों से सम्बन्धित अन्य प्रश्नों को ले कर हदताल पर थे ...

कड़की की “औषधि’’ के खिलाफ: वर्ग संघर्ष!

ग्रीस में गुस्सा उबाल पर है और सामाजिक स्थिति विस्फोटक। ठीक इस वक्त, ग्रीस सरकार मज़दूर वर्ग पर ताबडतोड हमलों की वौछार कर रही है। मज़दूर वर्ग की सभी पीढियों, सभी भागों को बुरी तरह कुचला जा रहा है। मज़दूर चाहे निजी क्षे़त्र के हों अथवा सार्वजनिक क्षेत्र के, बेरोजगार हों या पेंशनभोगी, चाहे वे अस्थायी संविदा पर काम करने वाले विद्यार्थी ही क्यों न हों, किसी को भी नहीं बख्शा जा रहा है। मज़दूर वर्ग भयंकर गरीबी के खतरे की चपेट में है...

गुडगाँव के ऑटो मज़दूरों का आंदोलन

03 अक्तूबर 2009 से रीको ऑटो फैक्ट्री गुड़गाँव के मजदूर अपनी माँगों को लेकर हड़ताल पर थे। 18 अक्तूबर 2009 रविवार की शाम मजदूरों की हड़ताल तुड़वाने फैक्ट्री के सुरक्षागार्ड व मालिकों ने भाड़े के गुण्डों को बुलाकर हड़ताली मजदूरों पर कातिलाना हमला किया जिसमें सुरक्षा में लगी पुलिस फायरिंग में गोली लगने से एक मजदूर की मौत हो गई

आई सी सी की पान एशियन कांन्फ्रेन्स में प्रस्तुत भारत में वर्ग संघर्ष पर रिपोर्ट

क्योंकि भारत का मजदूर वर्ग अंतरराष्ट्रीय मजदूर वर्ग का एक महत्वपूर्ण दस्ता है, अतएव यहां के मजदूर वर्ग के वर्ग संघर्ष की परस्थितियां और समस्याऐं मूलरूप से अंतरराष्ट्रीय मजदूर वर्ग के वर्ग संघर्ष से अलग नहीं हो सकती। अंतरराष्ट्रीय वर्ग संघर्ष के हालात, समस्याऐं परेशानियां, तथा उसके परिप्रेक्ष पर अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस में विस्तार से चर्चा की जा चुकी प्रस्तावित इस रिपोर्ट का लक्ष्य विश्व के ढांचे में भारत में वर्ग संघर्ष के विकास का विश्लेषण करना भर है। …

आईसीसी का प्‍लेटफार्म

अभी तक ज्ञात सर्वाधिक लम्‍बे और गहरे प्रतिक्रांति काल के बाद सर्वहारा एक बार ‍िफर वर्ग संघर्ष की राह पा रहा है। यह संघर्ष पहले ही वर्ग द्वारा आज तक लड़े गये संघर्षो में सर्वा‍‍घिक व्‍यापक है। यह छठे दशक के मध्‍य से विकसित हो रहे व्‍यवस्‍था के तीव्र संकट और पुरानी हारों से अपने पूर्वजों की बजाय कम दबी मज़दूरों की नई पीढियों के उदय का नतीजा है। फ्रांस की 1968 की घटनाओं के समय से दुनियॉं भर (इटली, अर्जेन्टीना, ब्रिटेन, पोलैंड, स्‍वीडन, मिश्र, चीन, पुर्तगाल, अमेरिका, भारत और जपान से लेकर स्‍पेन तक के) के मज़दूर संघर्ष पूँजीपति वर्ग के लिए दु:स्‍वप्‍न बन गये हैं। मज़दूर वर्ग के इतिहास मंच पर पुन: प्रकटन ने प्रतिक्रांति द्वारा उत्‍पन्‍न अथवा संभव बनी उन सब विचारधाराओं का नि‍‍‍‍‍‍श्‍चत रूप से खण्‍डन कर दिया है जिन्‍होंने सर्वहारा के क्रांतिकारी चरित्र को नकारने की कोशिश की। वर्ग संघर्ष के वर्तमान पुन: उभार ने ठोस रूप से यह सिद्ध कर दिया है कि सर्वहारा ही हमारे युग का एकमात्र क्रांतिकारी वर्ग है।

1929 – 2008 पूँजीवाद दिवालिया है!

1929 – 2008 पूँजीवाद दिवालिया है! एक बेहतर दुनिया - कम्युनिज्म- संभव है! राजनेताओं तथा अर्थशास्त्रियों के पास अब स्थिति की संगीनता ब्यान करने के लिए शब्द नहीं हैं: "अंधी खायी का कगार” , "आर्थिक पर्ल हार्बर”, "एक आर्थिक सुनामी”, "वित्तीय व्यवस्थाका 9/11” ....केवल टाईटैनिक के डूबने का जिक्र बाकी है. आखिर क्या हो रहा है? अनावरत होते आर्थिक तुफान के समक्ष अनेक कष्टदायक सवाल उठ रहे हैं. क्या हम 1929 जैसे एक और आर्थिक पतन में से गुज़र रहे हैं? यह सब कैसे हुआ? हम अपने बचाव के लिए क्या कर सकते हैं? और यह कैसी दुनिया है जिस में हम जी रहे हैं?

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