नर संहार मुर्दाबाद,किसी भी साम्राज्यवादी खेमे को समर्थन नहीं! शांतिवाद एक भ्रमजाल! सर्वहारा अंतर्राष्ट्रीयतावाद जिन्दाबाद!!

मध्यपूर्व में हालिया साम्राज्यवादी खून-खराबा, 1917 के पश्चात, एक सदी से भी अधिक समय से विश्व पूँजीवाद की विशेषता रहे, लगभग स्थायी युद्ध, नवीनतम कड़ी है.     

करोड़ों रक्षाहीन नागरिकों का कत्लेआम, जाति संहार, शहरों का विध्वंश, यहाँ तक पूरे देश को मलबे में बदल डालना, आने वाले काल में और अधिक और बदतर अत्याचारों के वादे के  अलावा कुछ नहीं है.

न तो इजराइल और न ही फिलिस्तीन!   मजदूर की कोई मात्रभूमि नहीं होती!! 

शनिवार से, इजराइल और गाजा निवासियों के ऊपर हुई आग और स्टील की वारिश की बाढ़ आ गई है. एक ओर, हमास, दूसरी तरफ इजराइली सेना के बीच फंसे नागरिकों के ऊपर बमबारी की जा रही है, गोलिया से भूना जा रहा है, जिसमें हजारों लोग अपनी जान गँवा चुके हैं. तमाम लोग बंधक बनाये गये हैं सो अलग.

संघर्ष हमारे सामने है !

बीते वर्ष, वैश्विक पूँजीवाद के प्रमुख देशों  और दुनियां भर में मजदूरों के संघर्ष फूट पड़े हैं.  हड़तालों की यह श्रंखला 2022 की गर्मियों में ब्रिटेन से शुरू हुई और तब से फ़्रांस, जर्मनी, स्पेन, नीदरलेंड, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, कोरिया तथा तमाम अन्य देशों के मजदूर संघर्ष में कूद पड़े हैं.

आईसीटी और नो वॉर बट द क्लास वॉर पहल: एक अवसरवादी धोखा जो कम्युनिस्ट वामपंथ को कमजोर करता है।

इंटरनेशनलिस्ट कम्युनिस्ट टेंडेंसी ने हाल ही में नो वॉर बट द क्लास वॉर कमेटियों (एनडब्ल्यूबीसीडब्ल्यू) के साथ अपने अनुभव पर एक बयान प्रकाशित किया है, जिसे उन्होंने यूक्रेन में युद्ध की शुरुआत में शुरू किया था[1]। जैसा कि वे कहते हैं, "राजनीतिक ढांचे के वास्तविक वर्ग आधार को उजागर करने के लिए साम्राज्यवादी युद्ध जैसा कुछ नहीं है, और यूक्रेन पर आक्रमण ने निश्चित रूप से ऐसा किया है", यह समझाते हुए कि स्टालिनवादियों, ट्रॉट्स्कीवादियों ने एक बार फिर दिखाया है कि वे पूँजीकी शिविर से संबंधित हैं  - चाहे यूक्रेन की स्वतंत्रता का समर्थन करके, या यूक्रेन के 'डी-नाज़ीफिकेशन' के बारे में रूसी प्रचार के

पूंजीपति वर्ग अपनी व्यवस्था की विफलताओं पर पर्दा डालने की कोशिश करता है!

भारत के पूर्वी प्रान्त ओड़िसा के बालासोर शहर में तीन रेल गाड़ियों के आपस में टकरा जाने के कारण हुई भीषण ट्रेन दुर्घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. 2 जून 2023 को दो यात्री ट्रेनें, कोरोमंडल एक्सप्रेस और बेंगलुरू – हावड़ा सुपर- फ़ास्ट, एक्स्प्रेस बह्नागा रेलवे स्टेशन के पास एक मालगाड़ी से हुई शुरूआती टक्कर आपस में टकरा गईं. दिल को दहला देने वाले इस हादसे पर भारत सरकार ने एक बयान में बताया कि टक्कर में कम से कम 280 लोगों की जानें गईं और लगभग 1000 लोग बुरी तरह घायल हुए, साथ ही सरकारी प्रवक्ता ने यह भी कहा कुछ लोगों की मौत को गुप्त रखा जायेगा. आमजन, सरकार द्वारा, तमाम अन्य मामलों के बारे में जनता को दी जाने वाली सूचनाओं की भांति, इस  बयान पर भी  भरोसा नहीं कर रहे हैं. मिली जानकारी के अनुसार शालीमार – चेन्नई एक्सप्रेस लगभग 2500 यात्रियों को ले जा रही थी. इंजिन के पीछे वाले अनारक्षित डिब्बा जो दक्षिणके राज्यों में अपने कार्यस्थ्लों को लौट रहे, अधिकतर मजदूर यात्रियों से खचाखच भरा था, इसमें मृतकों की संख्या कहीं अधिक होने की आशंका जताई जा रही है. यह लगभग तीन दशकों की देश की सबसे भीषण दुर्घटना है. “पूंजीवादी सड़ांध के दवाब में अवर्णीय आपदायें और पीडाएं पहले से कहीं अधिक बढ़ रहीं हैं. जो 2020 के दशक की  शुरूआत में स्पष्ट रूप तेज हो गयी हैं” [1]”

हमें 1968 से भी आगे जाना है!

"अब बहुत हो गया है!" – ब्रिटेन.  "न एक वर्ष अधिक, न एक यूरो कम" – फ्रांस.  "आक्रोश गहरा चलता है" – स्पेन. "हम सभी के लिए" – जर्मनी. हाल के महीनों में हड़तालों के दौरान दुनिया भर में लगे ये सभी नारे दिखाते हैं कि मौजूदा मज़दूर संघर्ष हमारे रहने और काम करने की स्थिति में सामान्य गिरावट की अस्वीकृति को कितना व्यक्त करते हैं. डेनमार्क, पुर्तगाल, नीदरलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, मैक्सिको, चीन में... वही बढ़ते असहनीय शोषण के खिलाफ वही प्रहार करता है."वास्तविक कठिनाई: गर्म करने में सक्षम नहीं होना, खाना, अपना ख्याल रखें, गाड़ी चलाओ !"

पूंजीवाद, मानवता को विनाश की ओर ले जाता है……. केवल सर्वहारा वर्ग की विश्व क्रांति ही, इसका अंत कर सकती है.

यूरोप में, जब 130 साल पहले, पूंजीवादी शक्तियों के बीच तनाव बढ़ रहा था, तब फ्रेडरिक एंगेल्स ने मानवता के लिए साम्यवाद या बर्बरता के बीच दुविधा पेश की.

इस विकल्प को 1914 में शुरू हुए प्रथम विश्व युद्ध में मूर्त रूप दिया गया, जो 20 मिलियन लोगों की मृत्यु, का कारण बना, अन्य 20 मिलियन विकलांग हुए, और युद्ध की अराजकता में 50 मिलियन से अधिक मौतों के साथ स्पेन में फ्लू की महामारी फ़ैली.

यूके,फ्रांस,स्पेन,जर्मनी,मैक्सिको,चीन:हर जगह एक ही सवाल: संघर्ष को कैसे विकसित किया जाए? सरकारों को कैसे गिराएं?

7 मार्च को फ़्रांस, , 8 मार्च को इटली , 11 मार्च को ब्रिटेन में आम हड़तालें और विशाल प्रदर्शनों  के कारण हर तरफ गुस्सा बढ़  और चहुँ  ओर फैल रहा है.

ब्रिटेन में गुस्से की गर्मी : शासक वर्ग मांगता है और कुर्बानी, मजदूर वर्ग की प्रतिक्रिया है लड़ने की!

"अब बहुत हो गया है"। यह रोना ब्रिटेन में पिछले कुछ हफ्तों में एक हड़ताल से दूसरी हड़ताल में बदल गया है। 1979 में "विंटर ऑफ डिसकंटेंट" का जिक्र करते हुए "द समर ऑफ डिसकंटेंट" नामक इस विशाल आंदोलन ने प्रत्येक दिन अधिक से अधिक क्षेत्रों में श्रमिकों को शामिल किया है: रेलवे, लंदन अंडरग्राउंड, ब्रिटिश टेलीकॉम, पोस्ट ऑफिस, द फेलिक्सस्टो (ब्रिटेन के दक्षिण पूर्व में एक प्रमुख बंदरगाह) में डॉकवर्कर्स, देश के विभिन्न हिस्सों में श्रमिकों और बस चालकों, सफाई कर्मचारी और जो अमेज़ॅन आदि में हैं। आज यह परिवहन कर्मचारी हैं, कल यह स्वास्थ्य कार्यकर्ता और शिक्षक भी हो सकते हैं।

साम्राज्यवादी युद्ध के खिलाफ – वर्ग संघर्ष !

 ऐतिहासिक सड़ते पूँजीवाद के पालने- युक्रेन के द्वार पर, बन्दूकों की गडगडाहट और बमों के धमाकों को गूंजने के लिए फिर से एक रात लग गई. अभूतपूर्व पैमाने पर छिड़े और क्रूरताओं की सभी सीमाओं को लांघ, इस युद्ध ने पूरे -पूरे शहरों  को पूरी  तरह तबाह  कर दिया है, जिसमें पित्रभूमि की बलि वेदी पर असंख्य मानव जीवन को झोंकते हुए लाखों महिलाओं बच्चों और बूढों को सर्दी से जमी हुए सडकों पर फेंक दिया गया. खार्किव, सुमी औरइरपिन पूरी तरह खंडहरों में तब्दील हो चुके हैं.मारीपोल का औद्योगिक बन्दरगाह पूरी तरह धराशायी हो चुका है, इस संघर्ष में  कम से कम, शायद  इससे भी अधिक लोगों की जान गई है. इस युद्ध की तबाही और भयावहता ग्रोज्नी, फालुजा,तथा अलेप्पो की भयानक तस्वीरों  की याद दिलाती है. लेकिन जहां इस तरह की तबाही और भयावहता तक पहुँचने में महीनों और कभी- कभी सालों  लग गए, वहाँ  यूक्रेन में कोई “ हत्याओं में वृद्धि “ नहीं हुई : मुश्किल से वहां एक महीने में ही  लडाकू लोगों ने अपनी सारी शक्तियों को नर संहार में झोक दिया और यूरोप के सबसे बड़े देशों में से एक को तबाह कर  दिया . 

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