अफगानिस्तान: अमेरिकी साम्राज्यवाद के पतन के पीछे ; विश्व पूंजीवाद का पतन

अमेरिका और अन्य पश्चिमी शक्तियों का जल्दबाजी और हडबडी में अफगानिस्तान से पीछे हट जाना,  पूंजीवाद द्वारा समाज को कुछ न दे पाने व बढती बर्बरता की स्पष्ट अभिव्यक्ति के अलावा और कुछ नहीं.

कोविद -१९ से लड़ने में एक साल की लापरवाही: पूँजीवाद हत्यारा है !

अप्रैल के प्रारंभ से ही कोविद-१९ने,  ग्रह के चारों कोनों में पैर पसार लिए हैं.  नवम्बर २०२० से महामारी ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हालत बेहद खराब कर रखे हैं . यदि यूरोप में स्थिति  स्थिर लगती है तो, दूसरी ओर प्रदूषण के विकराल रूप धारण कर लेने के कारण अमेरिका में महामारी उलटे पांव लौट आई है, तथा लैटिन अमरीका और भारतीय उपमहाद्वीप के लोग भीषण यातना झेल रहे हैं.

कामरेड किशन को श्रद्धांजलि

समूचा विश्व जब कोविद १९ नामक दैत्य  से जूझ रहा था, तब हम आई सी सी के साथियों के ऊपर एक वज्रपात हुआ. २० मार्च २०२० को हमारे प्रिय साथी कामरेड किशन ने हमसे अंतिम विदाइ ली. कामरेड किशन के  यूं चले जाने से इंडियन सैक्शन को ही नहीं पूरी आई सी सी की भारी क्षति हुई है.  हमें  हमेशा  ही उनकी कमी खलेगी. कामरेड किशन ने आई सी सी को सुद्रढ़ बनाने में एक महत्वपूर्ण  योग्दान दिया है . वे अपने जीवन की अंतिम साँस तक उच्चतम  भावना के साथ लड़ाकू योद्धा बने रहे

कोविद १९ महामारी: पूंजीवादी बर्बरता का विकराल रूप या विश्व सर्वहारा क्रांति

म यहाँ कोरोंना वायरस के संकट पर आई. सी. सी. के वक्तव्य को एक डिजिटल लीफलैट के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं, क्योंकि लौकडाउन की स्थिति से यह स्पष्ट है कि इसे बड़ी संख्या में छाप कर वितिरत नहीं किया जा सकता.हम अपने सभी पाठकों से कह रहे हैं कि वे इस लीफलैट को अधिक से अधिक संख्या में वितरित करने के लिए उपलब्ध सभी साधनों, सोशल मीदिया आदि इंटरनेट के सभी माध्यमों आदि का प्रयोग करें. हम उनसे यह भी उम्मीद करते हैं कि वे इस पर्चे पर होने वाली बहसों, प्रतिक्रियाओं तथा प्रस्तुत आलेख पर अपने विचारों से भी अवगत कराएँ. सर्वहारा क्रांति के लिए संघर्ष में जुटे साथियों के यह इस लिए लिये भी आवश्यक है कि वे एकजुटता अभिव्यक्त करे और एक दूसरे के साथ संपर्क स्थापित करें. हम कुछ समय के लिए भौतिक तौर पर अलग थलग हो सकते हैं, लेकिन हम तब भी राजनैतिक रूप में एक साथ होंगे.

केवल अंतर्राष्ट्रीय स्तर का वर्ग संघर्ष ही पूंजीवाद का विनाश कर सकता है.

जलवायु परिवर्तन के विरोध में अधिक लोकप्रिय बैनर में से एक है: जलवायु नहीं, सिस्टम बदलो.

जर्मन इंकलाब के सबक

जब 30 दिसम्‍बर 1918 और 1 जनवरी 1919 के बीच जर्मन कम्‍युनिस्‍ट पार्टी की स्‍थापना की गई तो लगा जैसे सामाजिक जनवाद के प्रति क्रांतिकारी विरोध ने अभिव्‍यक्‍त पा ली हो। लेकिन जर्मन पार्टी (जो ठीक उस क्षण प्रकट हुई जब सर्वहारा गलियों में हथियारबन्‍द संघर्ष में लिप्‍त था और, अल्‍प-अवधि के लिए, वास्‍तव में कुछ औद्योगिक केन्‍द्रों में सत्‍ता पर कब्‍जा कर रहा था) ने तुरन्‍त ही अपने उदगम के बेमेल चरित्र को तथा उन कार्यभारों, जिन्‍हें  पूरा करने के लिए उसकी रचना की गई थी, की एक सार्वभौमिक और सम्‍पूर्ण समझ हासिल करने की अपनी असमर्थता को प्रकट किया....

आर्थिक संकट: बचने की कोई राह नहीं यूरोपीय संघ या पूंजीवाद के पास

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में मुख्य अर्थशास्त्री ओलिविए ब्लॅनचॉर्ड के अनुसार यूरोजोन और विश्व अर्थव्यवस्था बहुत ही खतरनाक हालात में हैं। अप्रैल 2012 में ब्लॅनचॉर्ड ने चेतावनी दी कि अगर ग्रीस यूरो से बाहर निकल  जाता है तो "संभव है कि यूरो क्षेत्र की अन्य अर्थव्यवस्थाएं गंभीर दबाव में आ जाएँ और वित्तीय बाजारों में भारी आतंक फैल जाएगा। इन परिस्थितियों में, यूरो क्षेत्र के विघटन की संभावना से इंकार नहीं किया सकता है।....

भारत द्वारा बैलिस्टिक मिसाइल का प्रक्षेपण एशिया के सैन्यीकरण में एक और कदम

19 अप्रैल 2012 को भारतीय पूंजीपति वर्ग ने आईसीबीएम बैलिस्टिक मिसाइल के अपने संस्करण अग्नि-5 का प्रक्षेपण किया और एशिया में पहले से ही उग्र हथियारों की होड़ को और बढ़ावा दिया। इस परीक्षण के साथ भारत विश्व साम्राज्यवादी अपराधियों के उस चुनिंदा क्लब में शामिल हो गया जिनके पास अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलें हैं....

पूँजीवाद का जनवादीकरण करें या उसका विनाश?

सेन्ट पॉल के अधिग्रहण[1] स्थित टैन्ट सिटी यूनिवर्सिटी की दीवारों पर लिखे ''पूंजीवाद का जनवादीकरण करो'' के नारे ने ऐसी तीखी बहस छेडी कि अंततोगत्वा बैनरों को ही वहां से हटाना पडा।

यह परिणाम दिखाता है कि सेन्ट पॉल, यूबीएस तथा अन्यत्र अधिग्रहणों ने उन तमाम लोगों को, जो वर्तमान व्यवस्था से असन्तुस्ट हैं और एक विकल्प की खोज में हैं, चर्चा के लिये एक लाभदायिक स्थान मुहैया कराया है......

संकट द्वारा विभाजित है पूँजीपति वर्ग, पर मज़दूर वर्ग के खिलाफ वह एकजुट है!

पिछले कुछ महीनों से विश्व अर्थव्यव्स्था तबाही में से गुज़र रही है जिसे छिपाना  शासक वर्ग के लिए कठिनतर होता गया है। जी20 से लेकर जर्मनी और फ्रांस की अन्तहीन मीटिंगों समेत,  ‘दुनिया को बचाने’ के लिए की गईं विभिन्न अंतरराष्ट्रीय शिखर वार्ताओं ने साबित कर दिया है कि पूँजीपति वर्ग अपनी व्यवस्था को पुनरुज्जीवित करने में असमर्थ है। पूँजीवाद एक अन्धीगली में फंस गया है। और किसी समाधान अथवा संभावना का यह नितान्त अभाव विभिन्न राष्ट्रों में तनाव भड़काने लगा है।.....

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