1917 का रुसी इंकलाब पहले विश्वयुद्व में उभरी सर्वहारा क्रांति की विश्व क्रांतिकारी लहर का सर्वोच्च बिन्दू था। पूंजीवादी चढाव से पतनशीलता के मोड पर स्थित यह वह घड़ी थी जब मज़दूर वरग ने रुस में पूंजी की सत्ता को उखाड फेंका। उसने पूंजी तथा श्रम में विश्वव्यापी मुठभेडों का द्वार खोला। इस अर्थ में यह मज़दूर वरग का अब तक का सर्वाधिक समृद्द तजरूबा था।
पर रूसी इंकलाब अलग-थलग पड गया और 1925-26 के आते आते अद्यःपतन का शिकार हो गया। रूस में पूंजीवाद ने राज्यपूंजीवाद के अति भौंडे तथा विकृत रूप, स्तालिनवाद, का रूप लिया। आगामी सात दशकों तक स्तालिनवाद को एक तरफ मज़दूर वरग को कुचलने के लिए इस्तेमाल किया गया। दूसरी ओर उसे मज़दूर वरग को गुमराह करने तथा साम्यवाद के मुक्तिकामी विचारों को बदनाम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा। और 1989 से स्तालिनवाद के पतन को मज़दूर वरग के खिलाफ एक नए अभियान के लिए प्रयोग किया जा रहा है...