संकट द्वारा विभाजित है पूँजीपति वर्ग, पर मज़दूर वर्ग के खिलाफ वह एकजुट है!

पिछले कुछ महीनों से विश्व अर्थव्यव्स्था तबाही में से गुज़र रही है जिसे छिपाना  शासक वर्ग के लिए कठिनतर होता गया है। जी20 से लेकर जर्मनी और फ्रांस की अन्तहीन मीटिंगों समेत,  ‘दुनिया को बचाने’ के लिए की गईं विभिन्न अंतरराष्ट्रीय शिखर वार्ताओं ने साबित कर दिया है कि पूँजीपति वर्ग अपनी व्यवस्था को पुनरुज्जीवित करने में असमर्थ है। पूँजीवाद एक अन्धीगली में फंस गया है। और किसी समाधान अथवा संभावना का यह नितान्त अभाव विभिन्न राष्ट्रों में तनाव भड़काने लगा है।.....

कोपेनहेगन ने दिखाया - कोई समाधान नहीं है पूँजीवाद के पास

एक सहमति, फिर भी विरोध; [1] मौसम वार्ताओं में इज्ज़त बचाने के लिए आखिरी घड़ी में अफरातफरी; [2] ओबामा का मौसम संबन्धी समझौता टेस्ट में फेल [3].. मीडिया का फैसला एकमत था : ‘ऐतिहासिक’ शिखर वार्ता असफलता में खत्म हुई थी।.....

28 फरवरी 2012 की अखिल भारतीय मज़दूर हड़ताल आम हड़ताल अथवा यूनियनी रस्म अदायगी?

28 फरवरी 2012 को देश के विभिन्न हिस्सों में फैले दस करोड मज़दूरों की नुमाइंदगी करती यूनियनों द्वारा बुलाई हड़ताल हुई। सभी पार्टियों, यहां तक कि हिन्दूवादी बीजेपी, की यूनियनें भी हड़ताल में शामिल हुईं। इसके साथ ही हज़ारों स्थानीय तथा क्षेत्रीय यूनियनें भी। बैंक कर्मी, पोस्टल तथा राज़्य ट्रांसपोर्ट मज़दूर, टीचर्स, गोदी मज़दूर तथा अन्य क्षेत्रों के मज़दूरों ने हड़ताल में हिस्सा लिया। सभी यूनियनें का इस हड़ताल पर सहमत होना इसके पीछे मज़दूर संघर्षों का एक विकास दिखाता है। .....

पूँजीवाद कर्ज में क्यों डूब रहा है?

विश्व अर्थव्यवस्था रसातल के कगार पर लगती है। 1929 से भी बदतर एक भारी मंदी का खतरा सदैव बढ़ रहा है। बैंक, व्यापार, नगर पालिकाएँ, क्षेत्र और यहां तक कि राज्य दिवालियेपन के रुबरु हैं। और एक चीज़ जिसकी मीडिया अब बात नहीं करता वह है जिसे वे 'कर्ज संकट' कहते हैं...

1871 का पेरिस कम्यून : जब मजदूर वर्ग ने पहली बार सत्ता संभाली

घटना 140 वर्ष पहले की है जब फ्रांस के पूंजीपति वर्ग ने करीब 20,00 मजदूरों का कत्ले आम कर सर्वहारा के प्रथम क्रांतिकारी अनुभव को मिटा दिया। पेरिस कम्यून पहला अवसर था जब मजदूर वर्ग इतनी बडी ताकत से इतिहास के मंच पर प्रकट हुआ। पहली बार, मजदूरों ने यह दिखा दिया कि वे पूंजीवाद की राज्य मशीनरी को तहस-नहस करने में सक्षम हैं और इस प्रकार उसने साबित किया कि समाज में वही एकमात्र क्रान्तिकारी वर्ग है। .....

चीन में प्रतिरोधों का सरकारी दमन से सामना

जेंग्चेंग का सिंतंग क्षेत्र, जो चीन के दक्षिणी गुअंग्जौ प्रान्त में है, 60 से अधिक अंतरराष्ट्रीय ब्रांडों के लिए 26 करोड़ जोड़े जींस का वार्षिक उत्पादन करता है, यह चीन के जींस उत्पादन का 60% और दुनिया के उत्पादन का एक तिहाई है। विश्व की जींस की राजधानी के रूप विख्यात यह पिछले ३० वर्षों के चीनी आर्थिक विकास का प्रतीक है। जून 2011 के माह में, एक 20 वर्षीय गर्भवती के साथ पुलिस के सलूक के खिलाफ हजारों मजदूरों द्वारा गुस्साए प्रदर्शन और पुलिस के साथ मुठभेडें हुईं....

वर्गों संघर्ष के दौरान हस्तक्षेप कैसे करें ?

यहाँ हम उन साथियों के बीच हुई वार्ता को प्रकाशित कर रहे हैं जो अमेरिका में वेरीजोन के हड़ताली मजदूरों के बीच हस्तक्षेप में लगे हुए थे, जिनमें से कुछ आईसीसी के जुझारु थे और कुछ हमदर्द....

30 जून: यह समय संघर्षो को अपने नियंत्रण में लेने का है!

शिक्षा, नागरिक सेवा, स्थानीय परिषदों के लगभग दस लाख कर्मचारी 30 जून को हड़तालपर जाने की तैयारी क्यों कर रहे हैं ? उसी कारण से जिस के लिए पिछली शरद ऋतु में अनेक व्यवसायों के पाँच लाख श्रमिकों ने 26 मार्च, 2011 को लंदन की सड़कों पर मार्च किया। और उसी कारण से जिस के लिए दसियों हजार विश्वविद्यालय और स्कूली छात्रों ने प्रदर्शनों, बहिष्कार और अधिग्रहण के समूचे आंदोलनो में भाग लिया....

लीबिया: पूँजीवादी गुटीय झगडों द्वारा दफन एक जन विद्रोह

लगता है लीबिया में जो आंदोलन दमन के खिलाफ आबादी के हिस्सों की हताश प्रतिक्रिया के रूप में शुरू हुआ था, उसे लीबिया में तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शासक वर्ग ने तेजी से अपने हितों के लिए इस्तेमाल कर लिया है। एक आंदोलन जो युवा लोगों के नरसंहार को रोकने के प्रचण्ड प्रयास के रूप में शुरू हुआ था, युवाओं के एक अन्य नरसंहार में समाप्त हो रहा है, अब “आज़ाद लीबिया” के नाम पर।

यूपी के रोड ट्रांसपोर्ट मज़दूर फिर युनियनों द्वारा पराजित

भारत भर में रोड ट्रांसपोर्ट मज़दूर बुरी तरह से शोषित हैं। चाहे ड्राईवर हों या कंडक्टर या वर्कशाप मज़दूर, सभी का हाल एक ही है। बहुत कम तनखाहें, काम के लंबे और अनाप-शनाप घंटे और कठोर स्थितियाँ, अधिकारी तबके का निरंतर दबाब और दमन। रोज़ की जिन्दगी की यही दिनचर्या है। यह हर जगह के लिए सच है। फिर चाहे राज्यों के रोड ट्रांसपोर्ट निगमों के मज़दूर हों। चाहे राजधानी के, जहां शासक वर्ग अपनी शान की नुमायश खातिर कामंनवेल्थ खेलों जैसे तमाशों पर पैसे खरच करने में कोइ कम नहीं छोडता, डीटीसी मज़दूर हों...

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